Specific Relief Act 1963 : Remedial Statutory Act

specific relief act 1963

The Specific Relief Act, 1963 (Act 47 of 1963)

Assented to on 13 December 1963

Effective : 01 Mar 1964

धारा 1: संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रवर्तन

  1. नाम: इसे विशेष अनुतोष अधिनियम, 1963 कहा जाता है।
  2. विस्तार: यह पूरे भारत में लागू होता है (2019 के संशोधन के बाद जम्मू-कश्मीर में भी)।
  3. प्रवर्तन: यह 1 मार्च, 1964 से प्रभावी है, जैसा कि केंद्र सरकार ने अधिसूचित किया।

धारा 2: परिभाषाएँ

(a) “दायित्व” (Obligation): प्रत्येक कर्तव्य जो कानून द्वारा लागू किया जा सकता है।

(b) “निपटान” (Settlement): एक दस्तावेज (Instrument) जो संपत्ति के उत्तराधिकार (Devolution of successive interests) को निर्धारित करता है, लेकिन वसीयत (Will) या उपवसीयत (Codicil) नहीं होता, जैसा कि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 में परिभाषित है।

(c) “न्यास” (Trust): इसका वही अर्थ होगा जो भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा 3 में दिया गया है, और इसमें अध्याय IX के अंतर्गत न्यास जैसी बाध्यता (Obligation in the nature of a trust) भी शामिल है।

(d) “न्यासधारी” (Trustee): संपत्ति को न्यास (Trust) के रूप में धारण करने वाला प्रत्येक व्यक्ति

(e) अन्य शब्द और अभिव्यक्तियाँ: जो इस अधिनियम में परिभाषित नहीं हैं, लेकिन भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 में परिभाषित हैं, वे वही अर्थ रखेंगे जो उस अधिनियम में निर्दिष्ट हैं।

 

धारा 3: अपवाद (Savings)

इस अधिनियम में कुछ भी ऐसा नहीं है जो—

(a) किसी व्यक्ति को अनुबंध के तहत मिलने वाले किसी अन्य कानूनी अधिकार या राहत (Relief other than Specific Performance) से वंचित करे।

(b) भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 के तहत दस्तावेजों पर लागू नियमों को प्रभावित करे।

 

निष्कर्ष (Conclusion) :  इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि यह अधिनियम किसी भी व्यक्ति के अन्य कानूनी अधिकारों या भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 के प्रावधानों को प्रभावित न करे

 

धारा 4: विशेष अनुतोष केवल नागरिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए

विशेष अनुतोष (Specific Relief) केवल व्यक्तिगत नागरिक अधिकारों (Individual Civil Rights) को लागू करने के लिए दिया जा सकता है, न कि केवल दंडात्मक कानून (Penal Law) को लागू करने के लिए।

 

भाग II – विशिष्ट अनुतोष (Part II – Specific Relief)

 

धारा 5: विशिष्ट अचल संपत्ति की पुनः प्राप्ति

जो व्यक्ति विशिष्ट अचल संपत्ति (Specific Immovable Property) के कब्जे का हकदार है, वह इसे नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908) में निर्दिष्ट तरीके से पुनः प्राप्त कर सकता है।

 

धारा 6: अचल संपत्ति से बेदखल व्यक्ति द्वारा मुकदमा

(1) कब्जा वापस पाने का अधिकार:

यदि कोई व्यक्ति कानूनी प्रक्रिया के बिना और उसकी सहमति के बिना उसकी अचल संपत्ति (Immovable Property) से बेदखल कर दिया जाता है, तो वह या उसके माध्यम से अधिकार रखने वाला कोई अन्य व्यक्ति मुकदमा दायर कर कब्जा वापस ले सकता है, भले ही प्रतिवादी किसी अन्य शीर्षक (Ownership Title) का दावा करे।

(2) मुकदमा दायर करने की समय सीमा और सरकार के खिलाफ निषेध:

इस धारा के तहत—
(a) बेदखली की तारीख से छह महीने के भीतर ही मुकदमा किया जा सकता है।
(b) सरकार के खिलाफ इस धारा के तहत मुकदमा दायर नहीं किया जा सकता।

(3) अपील (Appeal) और पुनरावलोकन (Review) पर रोक:

इस धारा के तहत दाखिल किसी भी मुकदमे में पारित आदेश या डिक्री के खिलाफ अपील (Appeal) या पुनरावलोकन (Review) नहीं किया जा सकता।  Only Revision is Allowed.

(4) स्वामित्व स्थापित करने का अधिकार सुरक्षित:

यह धारा किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति पर स्वामित्व (Ownership Title) साबित करने और कब्जा वापस पाने के लिए मुकदमा करने से नहीं रोकती

निष्कर्ष (Conclusion):

धारा 6 का उद्देश्य स्वतंत्र कब्जे (Possession) की सुरक्षा करना है, भले ही कब्जाधारी कानूनी स्वामी (Legal Owner) हो या न हो। यह गैरकानूनी तरीके से बेदखली (Illegal Dispossession) को रोकता है, लेकिन यह सरकार के खिलाफ लागू नहीं होता और इसमें सीमित समय-सीमा (छह महीने) होती है।

धारा 7: विशिष्ट चल संपत्ति की पुनः प्राप्ति

(1) कब्जा वापस पाने का अधिकार:

जो व्यक्ति विशिष्ट चल संपत्ति (Specific Movable Property) के कब्जे का हकदार है, वह इसे नागरिक प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908) में निर्दिष्ट तरीके से पुनः प्राप्त कर सकता है।

(2) स्पष्टीकरण:

  • स्पष्टीकरण 1: न्यासधारी (Trustee) इस धारा के तहत उस चल संपत्ति के कब्जे के लिए मुकदमा कर सकता है, जिसमें किसी अन्य व्यक्ति का हित (Beneficial Interest) है, जिसके लिए वह न्यासधारी है।
  • स्पष्टीकरण 2: विशेष या अस्थायी अधिकार (Special or Temporary Right) भी पर्याप्त है, यदि व्यक्ति को वर्तमान में उस संपत्ति का कब्जा पाने का अधिकार है।

निष्कर्ष (Conclusion):  धारा 7 यह सुनिश्चित करती है कि यदि कोई व्यक्ति किसी विशिष्ट चल संपत्ति का वैध हकदार है, तो वह इसे कानूनी प्रक्रिया के माध्यम से वापस प्राप्त कर सकता है। यहां तक कि न्यासधारी या अस्थायी अधिकार रखने वाला व्यक्ति भी इस धारा के तहत संपत्ति की पुनः प्राप्ति के लिए मुकदमा कर सकता है।

धारा 8: गैर-स्वामी द्वारा संपत्ति लौटाने की बाध्यता

यदि कोई व्यक्ति किसी विशिष्ट चल संपत्ति (Specific Movable Property) के कब्जे या नियंत्रण में है, लेकिन वह उसका स्वामी (Owner) नहीं है, तो उसे निम्नलिखित परिस्थितियों में कानूनी रूप से उस संपत्ति को सौंपने (Deliver) के लिए बाध्य किया जा सकता है :-

(1) जब संपत्ति लौटाने की बाध्यता होती है:

(a) यदि प्रतिवादी वादी (Plaintiff) का एजेंट (Agent) या न्यासधारी (Trustee) है और संपत्ति को इसी क्षमता में धारण कर रहा है।
(b) यदि संपत्ति का नुकसान केवल मौद्रिक मुआवजे (Monetary Compensation) से पूरा नहीं किया जा सकता।
(c) यदि वास्तविक क्षति (Actual Damage) का निर्धारण अत्यधिक कठिन है।
(d) यदि वादी से संपत्ति का कब्जा अवैध रूप से छीन (transferred)लिया गया है

(2) स्पष्टीकरण:

जब संपत्ति धारा (b) या (c) के अंतर्गत दावा की जाती है, तो न्यायालय यह मानकर चलेगा कि:-

(a) केवल पैसे से उचित राहत नहीं मिल सकती; या
(b) संपत्ति के नुकसान से हुई वास्तविक क्षति का निर्धारण अत्यधिक कठिन होगा, जब तक कि इसका विपरीत प्रमाण न दिया जाए।

निष्कर्ष (Conclusion):  धारा 8 यह सुनिश्चित करती है कि यदि कोई गैर-स्वामी किसी विशिष्ट चल संपत्ति का कब्जा रखता है, तो उसे कानूनी रूप से उसे उसके वैध स्वामी या कब्जे के हकदार व्यक्ति को सौंपना होगा, खासकर जब केवल मुआवजा पर्याप्त न हो या संपत्ति गलत तरीके से छीन ली गई हो

धारा 9: अनुबंध पर आधारित राहत के दावों में प्रतिरक्षा (Defences)

यदि इस अध्याय के तहत किसी अनुबंध (Contract) से संबंधित कोई राहत (Relief) मांगी जाती है, तो प्रतिवादी (Defendant) अपने बचाव (Defence) में किसी भी प्रासंगिक कानून के तहत उपलब्ध किसी भी आधार (Ground) को प्रस्तुत कर सकता है।

निष्कर्ष (Conclusion): यह धारा यह स्पष्ट करती है कि अनुबंध से संबंधित मुकदमों में, प्रतिवादी को अनुबंध कानून (Contract Law) के तहत उपलब्ध सभी वैध बचाव प्रस्तुत करने का अधिकार होगा

धारा 10: अनुबंध के विशेष प्रदर्शन को लागू करने के मामले

न्यायालय द्वारा किसी अनुबंध (Contract) का विशेष प्रदर्शन (Specific Performance) लागू किया जा सकता है, लेकिन यह धारा 11(2), धारा 14 और धारा 16 में दिए गए प्रावधानों के अधीन होगा।

 निष्कर्ष (Conclusion): इस धारा के अनुसार, विशेष प्रदर्शन केवल कुछ विशेष परिस्थितियों में लागू किया जा सकता है और इसे अन्य संबंधित धाराओं में उल्लिखित शर्तों और प्रतिबंधों के अधीन रखा गया है।

धारा 11: न्यास (Trust) से जुड़े अनुबंधों के विशेष प्रदर्शन को लागू करने के मामले

(1) जब विशेष प्रदर्शन लागू किया जा सकता है:

यदि किसी अनुबंध के तहत किया जाने वाला कार्य पूरी तरह या आंशिक रूप से न्यास (Trust) के निर्वहन में आता है, तो उसका विशेष प्रदर्शन (Specific Performance) लागू किया जा सकता है, जब तक कि यह अधिनियम अन्यथा न कहे।

(2) जब विशेष प्रदर्शन लागू नहीं होगा:

यदि न्यासधारी (Trustee) ने अपनी अधिकार सीमा (Powers) से अधिक जाकर या न्यास का उल्लंघन (Breach of Trust) करते हुए कोई अनुबंध किया है, तो ऐसे अनुबंध का विशेष प्रदर्शन न्यायालय द्वारा लागू नहीं किया जाएगा

निष्कर्ष (Conclusion):  यह धारा यह स्पष्ट करती है कि न्यायालय विशेष प्रदर्शन का आदेश तभी देगा, जब अनुबंध न्यास के दायित्वों के तहत वैध रूप से किया गया होयदि न्यासधारी ने अपने अधिकारों का अतिक्रमण किया है या न्यास का उल्लंघन किया है, तो ऐसे अनुबंध को लागू नहीं किया जाएगा

 

धारा 12: अनुबंध के किसी भाग के विशेष प्रदर्शन (Specific Performance) का प्रवर्तन

(1) सामान्य नियम:

न्यायालय आमतौर पर किसी अनुबंध के केवल एक भाग का विशेष प्रदर्शन करने का आदेश नहीं देगा, जब तक कि इस धारा में अन्यथा न कहा गया हो।

(2) जब अनुबंध का आंशिक प्रदर्शन संभव है:

यदि किसी पक्ष (Party) द्वारा पूरे अनुबंध को पूरा करना असंभव है, लेकिन जो भाग अधूरा रह जाएगा वह बहुत छोटा है और उसका मौद्रिक मुआवजा (Monetary Compensation) दिया जा सकता है, तो—

  • किसी भी पक्ष के अनुरोध पर, न्यायालय उस भाग का विशेष प्रदर्शन लागू कर सकता है, जो पूरा किया जा सकता है।
  • अधूरे भाग के लिए मौद्रिक मुआवजा दिया जा सकता है।

(3) जब अनुबंध का आंशिक प्रदर्शन असंभव है:

यदि जो भाग अधूरा रह जाएगा
(a) अनुबंध का एक महत्वपूर्ण भाग है, भले ही इसका मौद्रिक मुआवजा दिया जा सकता हो, या
(b) ऐसा भाग है जिसका मौद्रिक मुआवजा संभव नहीं है,
तो उस स्थिति में दोषी पक्ष (Defaulter) अनुबंध के विशेष प्रदर्शन का दावा नहीं कर सकता

हालांकि, नुकसान न उठाने वाला पक्ष (Other Party) अदालत से अनुरोध कर सकता है कि—

  • दोषी पक्ष जितना संभव हो, उतने भाग का विशेष प्रदर्शन करे
  • नुकसान उठाने वाला पक्ष :-
  1. मूल्य घटाकर भुगतान कर सकता है (यदि भाग (a) के तहत आता है)।
  2. पूरा भुगतान कर सकता है (यदि भाग (b) के तहत आता है)।
  3. अनुबंध के शेष भाग के प्रदर्शन और मुआवजे के सभी दावों को त्याग सकता है

(4) जब अनुबंध के स्वतंत्र भागों को अलग से लागू किया जा सकता है:

यदि अनुबंध के कुछ भाग स्वतंत्र (Independent) और अलग-अलग हैं, और उनमें से कोई एक भाग विशेष प्रदर्शन के योग्य है, तो अदालत उस भाग के विशेष प्रदर्शन का आदेश दे सकती है।

स्पष्टीकरण:

यदि अनुबंध के समय मौजूद कोई विषय-वस्तु (Subject-Matter) बाद में नष्ट हो जाती है, तो यह माना जाएगा कि वह पक्ष पूरा अनुबंध पूरा करने में असमर्थ है

निष्कर्ष (Conclusion):

धारा 12 यह स्पष्ट करती है कि—

  1. न्यायालय पूरे अनुबंध के विशेष प्रदर्शन को प्राथमिकता देगा, न कि उसके किसी भाग को।
  2. यदि अधूरा भाग छोटा और मुआवजा योग्य है, तो आंशिक प्रदर्शन हो सकता है।
  3. यदि अधूरा भाग महत्वपूर्ण है या मुआवजा नहीं दिया जा सकता, तो विशेष प्रदर्शन लागू नहीं किया जाएगा।
  4. यदि अनुबंध के स्वतंत्र भाग (Independent Parts) हैं, तो उन भागों का विशेष प्रदर्शन किया जा सकता है।

धारा 13: बिना स्वामित्व या अपूर्ण स्वामित्व वाले व्यक्ति के खिलाफ क्रेता या पट्टेदार के अधिकार

(1) जब विक्रेता या पट्टेदार का स्वामित्व अपूर्ण या अनुपस्थित हो:

यदि कोई व्यक्ति किसी अचल संपत्ति (Immovable Property) को बेचने या पट्टे पर देने का अनुबंध करता है, लेकिन उसके पास स्वामित्व (Title) नहीं है, या उसका स्वामित्व अपूर्ण (Imperfect Title) है,
तो क्रेता (Purchaser) या पट्टेदार (Lessee) को निम्नलिखित अधिकार मिलते हैं—

(a) स्वामित्व प्राप्त होने पर अनुबंध पूरा करने का अधिकार:

यदि अनुबंध के बाद विक्रेता या पट्टेदार को संपत्ति में कोई स्वामित्व (Interest) प्राप्त होता है, तो क्रेता या पट्टेदार उसे अनुबंध पूरा करने के लिए बाध्य कर सकता है

(b) आवश्यक सहमति प्राप्त करने का अधिकार:

यदि अन्य व्यक्तियों की सहमति (Concurrence) आवश्यक है और वे विक्रेता या पट्टेदार के अनुरोध पर ऐसा करने के लिए बाध्य हैं, तो क्रेता या पट्टेदार विक्रेता को ऐसी सहमति प्राप्त करने के लिए बाध्य कर सकता है

(c) ऋण-मुक्त संपत्ति प्राप्त करने का अधिकार:

यदि विक्रेता दावा करता है कि संपत्ति पर कोई भार (Encumbrance) नहीं है, लेकिन वास्तव में संपत्ति बंधक (Mortgage) रखी गई है, और यह बंधक क्रय मूल्य (Purchase Money) से अधिक नहीं है, और विक्रेता को केवल बंधक समाप्त करने (Right to Redeem) का अधिकार है, तो क्रेता उसे बंधक समाप्त करने और स्वच्छ स्वामित्व (Clear Title) देने के लिए बाध्य कर सकता है

(d) मुकदमे की असफलता की स्थिति में राशि वापस पाने का अधिकार:

यदि विक्रेता या पट्टेदार अनुबंध के विशेष प्रदर्शन (Specific Performance) के लिए मुकदमा करता है, और मुकदमा केवल स्वामित्व की कमी (Want of Title) या अपूर्ण स्वामित्व (Imperfect Title) के कारण खारिज हो जाता है, तो उत्तरदाता (Defendant, यानी क्रेता या पट्टेदार) को—

अपनी जमा राशि (Deposit) ब्याज सहित वापस पाने का,

मुकदमे के खर्च (Litigation Costs) का, और

संपत्ति में विक्रेता या पट्टेदार के स्वामित्व पर अपनी जमा राशि, ब्याज और खर्च के लिए एक प्रतिलाभाधिकार (Lien) पाने का अधिकार होगा।

(2) चल संपत्ति (Movable Property) पर भी यह प्रावधान लागू:

धारा 13(1) के प्रावधान, जहां तक संभव हो, चल संपत्ति (Movable Property) की बिक्री या किराये (Hire) से संबंधित अनुबंधों पर भी लागू होंगे।

निष्कर्ष (Conclusion):

यह धारा क्रेता या पट्टेदार के अधिकारों की रक्षा करती है, जब विक्रेता या पट्टेदार के पास वैध स्वामित्व नहीं होता या उसका स्वामित्व अपूर्ण होता है। यदि विक्रेता अनुबंध पूरा नहीं कर सकता, तो क्रेता या पट्टेदार को मुआवजा, संपत्ति का स्वच्छ स्वामित्व, या अपनी जमा राशि वापस पाने का अधिकार मिलता है।

धारा 14: ऐसे अनुबंध जो विशेष रूप से प्रवर्तनीय (Specifically Enforceable) नहीं हैं

निम्नलिखित प्रकार के अनुबंधों का विशेष प्रदर्शन (Specific Performance) न्यायालय द्वारा लागू नहीं किया जा सकता:

(a) जब किसी पक्ष ने अनुबंध का प्रतिस्थापन (Substituted Performance) प्राप्त कर लिया हो:

  • यदि किसी पक्ष ने अनुबंध का वैकल्पिक (Substituted) निष्पादन धारा-20 के तहत प्राप्त कर लिया है, तो वह विशेष प्रदर्शन का दावा नहीं कर सकता

(b) जब अनुबंध के निष्पादन में निरंतर कर्तव्य (Continuous Duty) शामिल हो:

  • यदि किसी अनुबंध का निष्पादन ऐसे निरंतर कर्तव्य (Continuous Duty) पर निर्भर करता है, जिसका न्यायालय निरीक्षण नहीं कर सकता, तो इसका विशेष प्रदर्शन लागू नहीं किया जा सकता

(c) जब अनुबंध व्यक्तिगत योग्यता (Personal Qualification) पर निर्भर हो:

  • यदि अनुबंध की शर्तें किसी पक्ष की व्यक्तिगत योग्यताओं (Personal Skills, Talent, या Trustworthiness) पर निर्भर करती हैं, और न्यायालय इसे लागू नहीं कर सकता, तो ऐसा अनुबंध विशेष प्रदर्शन के योग्य नहीं होगा।

(d) जब अनुबंध स्वभाव से ही समाप्त करने योग्य (Determinable) हो:

  • यदि कोई अनुबंध अपनी प्रकृति से ही समाप्त किया जा सकता है (Determinable), तो न्यायालय इसका विशेष प्रदर्शन लागू नहीं करेगा।

निष्कर्ष (Conclusion): धारा 14 यह स्पष्ट करती है कि हर अनुबंध का विशेष प्रदर्शन लागू नहीं किया जा सकता। यदि अनुबंध का प्रतिस्थापन किया जा चुका हो, उसमें निरंतर कर्तव्य शामिल हो, वह व्यक्तिगत योग्यताओं पर निर्भर हो, या स्वभाव से ही समाप्त करने योग्य हो, तो ऐसे अनुबंध का न्यायालय द्वारा विशेष प्रदर्शन लागू नहीं किया जाएगा

धारा 14A: न्यायालय द्वारा विशेषज्ञों (Experts) को नियुक्त करने की शक्ति

(1) विशेषज्ञ की नियुक्ति:

  • यदि किसी मुकदमे में विशेषज्ञ की राय (Expert Opinion) की आवश्यकता होती है, तो न्यायालय एक या अधिक विशेषज्ञ नियुक्त कर सकता है
  • न्यायालय विशेषज्ञ को निर्देश दे सकता है कि वह किसी विशिष्ट मुद्दे (Specific Issue) पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करे और न्यायालय में सबूत (Evidence) सहित दस्तावेज़ पेश करे

(2) विशेषज्ञ को जानकारी प्रदान करने का निर्देश:

  • न्यायालय किसी भी व्यक्ति को यह निर्देश दे सकता है कि वह विशेषज्ञ को आवश्यक जानकारी दे
  • यदि आवश्यक हो, तो न्यायालय दस्तावेज़, वस्तुएं (Goods), या संपत्ति का निरीक्षण करने की अनुमति विशेषज्ञ को दे सकता है।

(3) विशेषज्ञ की रिपोर्ट मुकदमे का हिस्सा होगी:

  • विशेषज्ञ द्वारा दी गई रिपोर्ट या राय मुकदमे के रिकॉर्ड का हिस्सा बनेगी
  • न्यायालय (या न्यायालय की अनुमति से कोई भी पक्ष) विशेषज्ञ से खुली अदालत (Open Court) में पूछताछ कर सकता है

(4) विशेषज्ञ को शुल्क व खर्च की अदायगी:

  • विशेषज्ञ को न्यायालय द्वारा निश्चित किया गया शुल्क (Fee), खर्च (Cost) या अन्य खर्चे दिए जाएंगे
  • यह भुगतान न्यायालय के आदेशानुसार संबंधित पक्षों द्वारा तय अनुपात में किया जाएगा

निष्कर्ष (Conclusion):

धारा 14A न्यायालय को यह अधिकार देती है कि जहां आवश्यक हो, वहां विशेषज्ञों की नियुक्ति कर सके। विशेषज्ञों की राय और रिपोर्ट मुकदमे का हिस्सा बनती है और उनकी जाँच-पड़ताल न्यायालय में की जा सकती है। इससे न्यायिक प्रक्रिया अधिक सटीक और निष्पक्ष (Accurate & Fair) बनती है

धारा 15: कौन विशिष्ट निष्पादन (Specific Performance) प्राप्त कर सकता है?

इस अध्याय में अन्यथा प्रावधान किए गए मामलों को छोड़कर, किसी अनुबंध का विशिष्ट निष्पादन निम्नलिखित व्यक्तियों द्वारा प्राप्त किया जा सकता है:

(a) अनुबंध के किसी भी पक्ष द्वारा:

  • अनुबंध का कोई भी पक्ष (Party) विशिष्ट निष्पादन का दावा कर सकता है

(b) उत्तराधिकारी (Representative) या प्रधान (Principal) द्वारा:

  • अनुबंध के किसी भी पक्ष का उत्तराधिकारी (Representative in Interest) या प्रधान (Principal) भी दावा कर सकता है।
  • शर्त: यदि अनुबंध में किसी पक्ष की कौशल (Skill), दिवालियापन (Solvency) या व्यक्तिगत गुणवत्ता (Personal Quality) आवश्यक हो, या अनुबंध में यह प्रावधान हो कि उसका हित (Interest) स्थानांतरित नहीं किया जा सकता, तो उत्तराधिकारी या प्रधान को विशिष्ट निष्पादन का अधिकार तभी होगा जब:
    • मूल पक्ष ने पहले ही अनुबंध की अपनी शर्तें पूरी कर दी हों, या
    • अन्य पक्ष ने उसके उत्तराधिकारी या प्रधान द्वारा किए गए निष्पादन को स्वीकार कर लिया हो।

(c) विवाह (Marriage) या पारिवारिक समझौते (Family Settlement) से जुड़े अनुबंध में:

  • यदि अनुबंध विवाह संबंधी समझौते या एक ही परिवार के सदस्यों के बीच विवाद निपटाने (Compromise of Doubtful Rights) से जुड़ा हो, तो जो भी व्यक्ति उससे लाभान्वित होता है, वह विशिष्ट निष्पादन का दावा कर सकता है

(d) जीवनकाल के लिए किरायेदार (Tenant for Life) द्वारा किए गए अनुबंध में:

  • यदि कोई किरायेदार अपने जीवनकाल (Tenant for Life) में अनुबंध करता है, तो उसके बाद का उत्तराधिकारी (Remainderman) विशिष्ट निष्पादन प्राप्त कर सकता है।

(e) पुनरावर्तक (Reversioner in Possession) द्वारा:

  • जब कोई व्यक्ति अपने पूर्वज (Predecessor in Title) के साथ एक करार (Covenant) करता है, और वर्तमान उत्तराधिकारी (Reversioner) को उस करार का लाभ मिलना चाहिए, तो वह विशिष्ट निष्पादन मांग सकता है।

(f) पुनरावर्तक (Reversioner in Remainder) द्वारा:

  • यदि अनुबंध ऐसा करार है जिससे पुनरावर्तक (Reversioner) को लाभ मिलना चाहिए और उसका उल्लंघन (Breach) उसे गंभीर नुकसान पहुंचाएगा, तो वह विशिष्ट निष्पादन मांग सकता है।

(fa) सीमित दायित्व भागीदारी (Limited Liability Partnership – LLP) के विलय (Amalgamation) की स्थिति में:

  • यदि एक LLP किसी अनुबंध में प्रवेश करती है और बाद में किसी अन्य LLP में विलय हो जाती है, तो नई LLP विशिष्ट निष्पादन का दावा कर सकती है।

(g) कंपनी (Company) के विलय की स्थिति में:

  • यदि कोई कंपनी अनुबंध में प्रवेश करती है और बाद में किसी अन्य कंपनी में विलय (Amalgamation) हो जाती है, तो नई कंपनी उस अनुबंध का विशिष्ट निष्पादन लागू करा सकती है

(h) कंपनी के प्रमोटरों द्वारा पूर्व-निगमन अनुबंध (Pre-Incorporation Contracts) की स्थिति में:

  • यदि किसी कंपनी के प्रमोटरों (Promoters) ने कंपनी के गठन से पहले एक अनुबंध किया है, और वह अनुबंध कंपनी के उद्देश्य के अनुरूप है, तो कंपनी विशिष्ट निष्पादन का दावा कर सकती है।
  • शर्त: कंपनी को अनुबंध स्वीकार करना होगा और अन्य पक्ष को इसकी सूचना देनी होगी

निष्कर्ष (Conclusion):

धारा 15 यह निर्धारित करती है कि कौन-कौन से व्यक्ति अनुबंध के विशिष्ट निष्पादन का दावा कर सकते हैं। इसमें अनुबंध के मूल पक्ष, उसके उत्तराधिकारी, परिवारिक समझौते के लाभार्थी, किरायेदार के बाद का उत्तराधिकारी, पुनरावर्तक, विलय के बाद बनी नई LLP या कंपनी, और प्रमोटरों द्वारा पूर्व-निगमन अनुबंध करने वाली कंपनियों को यह अधिकार दिया गया है।

धारा 16: विशिष्ट निष्पादन से संबंधित व्यक्तिगत बाधाएँ (Personal Bars to Relief)

किसी अनुबंध का विशिष्ट निष्पादन (Specific Performance) निम्नलिखित व्यक्तियों के पक्ष में लागू नहीं किया जा सकता:

(a) जिसने अनुबंध का स्थानापन्न निष्पादन (Substituted Performance) प्राप्त कर लिया हो

  • यदि किसी व्यक्ति ने धारा 20 के तहत अनुबंध का स्थानापन्न निष्पादन (Substituted Performance) प्राप्त कर लिया है, तो वह विशिष्ट निष्पादन की मांग नहीं कर सकता

(b) जो अनुबंध को पूरा करने में असमर्थ हो या उसका उल्लंघन करे

  • यदि कोई व्यक्ति:
    • अनुबंध को पूरा करने में अक्षम (Incapable) हो जाता है, या
    • किसी आवश्यक शर्त (Essential Term) का उल्लंघन करता है, या
    • अनुबंध के साथ धोखाधड़ी (Fraud) करता है, या
    • जानबूझकर अनुबंध की अपेक्षित शर्तों का उल्लंघन करता है,
      तो वह विशिष्ट निष्पादन की मांग नहीं कर सकता

(c) जो यह साबित करने में असफल रहे कि वह अनुबंध के लिए हमेशा तैयार और इच्छुक था

  • किसी भी व्यक्ति को यह साबित करना होगा कि:
    • उसने अनुबंध की आवश्यक शर्तों को पूरा किया है, या
    • वह अनुबंध की शर्तों को पूरा करने के लिए हमेशा तैयार और इच्छुक था
  • अपवाद: यदि उत्तरदाता (Defendant) ने अनुबंध के निष्पादन को रोक दिया या उसे माफ कर दिया, तो उस स्थिति में उसे साबित करने की आवश्यकता नहीं होगी

व्याख्या (Explanation) – उपधारा (c) के लिए:

  1. यदि अनुबंध में धनराशि (Payment of Money) शामिल है, तो मांग करने वाले व्यक्ति (Plaintiff) को प्रतिवादी (Defendant) को वास्तव में पैसा सौंपने या अदालत में जमा करने की कोई आवश्यकता नहीं होगी, जब तक कि अदालत ऐसा करने के लिए न कहे
  2. मांग करने वाले को यह साबित करना होगा कि उसने अनुबंध की वास्तविक शर्तों के अनुसार निष्पादन किया है या उसे निष्पादित करने के लिए तैयार और इच्छुक था

निष्कर्ष (Conclusion):

धारा 16 यह स्पष्ट करती है कि विशिष्ट निष्पादन किन व्यक्तियों को नहीं दिया जा सकता। इसमें वे लोग शामिल हैं जो अनुबंध का स्थानापन्न निष्पादन ले चुके हैं, अनुबंध की आवश्यक शर्तों का उल्लंघन कर चुके हैं, धोखाधड़ी करते हैं, या यह साबित नहीं कर सकते कि वे अनुबंध को पूरा करने के लिए हमेशा तैयार और इच्छुक थे।

धारा 17: बिना स्वामित्व वाले व्यक्ति द्वारा संपत्ति बेचने या किराए पर देने का अनुबंध विशेष रूप से लागू नहीं होगा

(1) किसी विक्रेता (Vendor) या पट्टेदार (Lessor) के पक्ष में निम्नलिखित परिस्थितियों में अनुबंध का विशेष निष्पादन (Specific Performance) लागू नहीं किया जा सकता:

(a) यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए कि उसके पास संपत्ति का कोई स्वामित्व (Title) नहीं है, फिर भी उसने संपत्ति को बेचने या किराए पर देने का अनुबंध किया है।
(b) यदि कोई व्यक्ति यह सोचकर अनुबंध में प्रवेश करता है कि उसके पास संपत्ति का अच्छा स्वामित्व है, लेकिन निर्धारित समय (जिसे पक्षकारों ने तय किया हो या जिसे अदालत ने निर्धारित किया हो) पर वह खरीदार (Purchaser) या पट्टेदार (Lessee) को एक स्पष्ट और संदेह रहित स्वामित्व देने में असमर्थ हो जाता है

(2) यह प्रावधान चल संपत्ति (Movable Property) की बिक्री या किराए पर देने के अनुबंधों पर भी लागू होगा।

निष्कर्ष (Conclusion):

इस धारा के अनुसार, किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा किया गया बिक्री या पट्टे का अनुबंध, जिसका संपत्ति पर कोई वैध स्वामित्व नहीं है, विशेष निष्पादन के लिए लागू नहीं होगा। यह प्रावधान चल (Movable) और अचल (Immovable) दोनों प्रकार की संपत्तियों पर लागू होता है

धारा 18: परिवर्तनों (Variation) के बिना प्रवर्तन नहीं

यदि वादी (Plaintiff) लिखित अनुबंध (Contract) के विशेष निष्पादन (Specific Performance) की मांग करता है, और प्रतिवादी (Defendant) अनुबंध में कोई परिवर्तन (Variation) होने का दावा करता है, तो वादी को केवल उसी परिवर्तन (Variation) के साथ अनुबंध का निष्पादन प्राप्त हो सकता है। यह निम्नलिखित परिस्थितियों में लागू होगा:

(a) यदि धोखाधड़ी (Fraud), तथ्य की गलती (Mistake of Fact), या कपटपूर्ण प्रस्तुति (Misrepresentation) के कारण लिखित अनुबंध की शर्तें या प्रभाव वह नहीं हैं जो वास्तव में पक्षकारों (Parties) के बीच सहमत हुए थे, या अनुबंध में वे सभी शर्तें शामिल नहीं हैं जिनके आधार पर प्रतिवादी ने अनुबंध में प्रवेश किया था।

(b) यदि पक्षकारों का उद्देश्य (Object) एक विशेष कानूनी परिणाम (Legal Result) प्राप्त करना था, लेकिन अनुबंध उसे पूरा करने में सक्षम नहीं है

(c) यदि अनुबंध के निष्पादन (Execution) के बाद पक्षकारों ने आपसी सहमति से उसकी शर्तों में परिवर्तन (Variation) किया हो

निष्कर्ष (Conclusion):

यदि प्रतिवादी यह साबित करता है कि अनुबंध की शर्तों में कोई परिवर्तन हुआ है, तो वादी को विशेष निष्पादन (Specific Performance) केवल उसी परिवर्तन के साथ मिल सकता है, न कि मूल अनुबंध के आधार पर

धारा 19: पक्षकारों और उनके अधीन उत्तराधिकारियों के विरुद्ध राहत (Relief against Parties and Their Successors)

इस अध्याय में अन्यथा प्रावधान किए गए मामलों को छोड़कर, किसी अनुबंध (Contract) का विशेष निष्पादन (Specific Performance) निम्नलिखित व्यक्तियों के विरुद्ध लागू किया जा सकता है:

(a) अनुबंध के किसी भी पक्ष (Either Party) के विरुद्ध।

(b) किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जो अनुबंध के बाद उसके अंतर्गत अधिकार प्राप्त करता है, लेकिन यदि वह व्यक्ति खरीदी की गई संपत्ति के लिए उचित मूल्य चुका चुका है और उसे मूल अनुबंध की जानकारी नहीं थी, तो उसके विरुद्ध निष्पादन लागू नहीं होगा

(c) किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध जिसका अधिकार अनुबंध से पहले का हो, लेकिन यदि वह अधिकार प्रतिवादी द्वारा निरस्त किया जा सकता था, तो उस व्यक्ति पर भी विशेष निष्पादन लागू होगा

(ca) यदि किसी सीमित देयता भागीदारी (Limited Liability Partnership – LLP) ने अनुबंध किया हो और बाद में वह किसी अन्य LLP में विलय (Amalgamation) हो जाए, तो नई LLP पर अनुबंध का दायित्व रहेगा

(d) यदि किसी कंपनी (Company) ने अनुबंध किया हो और बाद में वह किसी अन्य कंपनी में विलय हो जाए, तो नई कंपनी अनुबंध के तहत उत्तरदायी होगी

(e) यदि किसी कंपनी के प्रवर्तकों (Promoters) ने उसके पंजीकरण से पहले अनुबंध किया हो, और वह अनुबंध कंपनी के उद्देश्य के अनुरूप हो, तो कंपनी उस अनुबंध का निष्पादन कर सकती है।
लेकिन शर्त यह है कि कंपनी ने अनुबंध को स्वीकार कर लिया हो और इसकी सूचना दूसरे पक्ष को दे दी हो

निष्कर्ष (Conclusion):

विशेष निष्पादन (Specific Performance) मुख्य रूप से अनुबंध के पक्षकारों और उनके उत्तराधिकारियों पर लागू होता है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में यह विलय की गई कंपनियों, LLPs और पूर्व पंजीकृत कंपनियों पर भी लागू हो सकता है

धारा 20: अनुबंध के स्थान पर वैकल्पिक निष्पादन (Substituted Performance of Contract)

(1) यदि कोई पक्ष अनुबंध का पालन नहीं करता और इससे दूसरे पक्ष को हानि होती है, तो पीड़ित पक्ष को यह विकल्प होगा कि वह अनुबंध को किसी तीसरे पक्ष या अपनी एजेंसी के माध्यम से पूरा कराए और इस पर हुए खर्च तथा अन्य लागतों की भरपाई अनुबंध तोड़ने वाले पक्ष से कर सके

(2) हालांकि, अनुबंध के स्थान पर वैकल्पिक निष्पादन तभी किया जा सकता है जब पीड़ित पक्ष अनुबंध तोड़ने वाले पक्ष को कम से कम 30 दिनों का लिखित नोटिस देकर उसे अनुबंध पूरा करने का अवसर प्रदान करे। यदि वह पक्ष अनुबंध पूरा करने से इंकार कर देता है या असफल रहता है, तभी पीड़ित पक्ष किसी तीसरे पक्ष या अपनी एजेंसी के माध्यम से अनुबंध पूरा करा सकता है।
इसके अतिरिक्त, पीड़ित पक्ष केवल तभी खर्च और लागत की वसूली कर सकता है, जब उसने वास्तव में अनुबंध को किसी तीसरे पक्ष या अपनी एजेंसी के माध्यम से पूरा कराया हो

(3) यदि पीड़ित पक्ष ने अनुबंध किसी तीसरे पक्ष या अपनी एजेंसी के माध्यम से पूरा करा लिया है, तो वह अनुबंध तोड़ने वाले पक्ष के खिलाफ विशेष निष्पादन (Specific Performance) का दावा नहीं कर सकता

(4) यह धारा पीड़ित पक्ष को अनुबंध तोड़ने वाले पक्ष के खिलाफ हर्जाने (Compensation) का दावा करने से नहीं रोकती

निष्कर्ष (Conclusion):

धारा 20 यह सुनिश्चित करती है कि यदि कोई पक्ष अनुबंध पूरा करने में विफल रहता है, तो पीड़ित पक्ष को अनुबंध का वैकल्पिक निष्पादन कराने का अधिकार होगा और उसे हुए खर्च की वसूली भी कर सकता है
हालांकि, विशेष निष्पादन का दावा तभी किया जा सकता है जब अनुबंध किसी तीसरे पक्ष से पूरा न कराया गया हो। यह प्रावधान अनुबंधों के निष्पादन को प्रभावी बनाने और अनुबंध तोड़ने से बचने के लिए एक निवारक (deterrent) के रूप में कार्य करता है

धारा 20A: अधोसंरचना परियोजनाओं से संबंधित अनुबंधों के लिए विशेष प्रावधान

(1) न्यायालय द्वारा रोक (Injunction) पर प्रतिबंध

यदि कोई अनुबंध किसी अधोसंरचना परियोजना (Infrastructure Project) से संबंधित है, तो न्यायालय उस अनुबंध के तहत किसी भी प्रकार की रोक (Injunction) नहीं लगाएगा, यदि इससे परियोजना की प्रगति या पूर्णता में बाधा उत्पन्न होती है

(2) केंद्र सरकार द्वारा संशोधन का अधिकार

केंद्र सरकार, अधोसंरचना परियोजनाओं के विकास की आवश्यकता के अनुसार, अधिसूचना (Notification) द्वारा अनुसूची (Schedule) में उल्लिखित परियोजनाओं या उप-क्षेत्रों में संशोधन कर सकती है।

(3) संसदीय निरीक्षण (Parliamentary Oversight)

  • केंद्र सरकार द्वारा जारी की गई प्रत्येक अधिसूचना संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत की जाएगी।
  • इसे कुल 30 दिनों की अवधि के लिए प्रस्तुत किया जाएगा, जो एक या अधिक सत्रों में पूरी की जा सकती है
  • यदि संसद के दोनों सदन इस अधिसूचना को संशोधित या अस्वीकार करने का निर्णय लेते हैं, तो यह केवल संशोधित रूप में प्रभावी रहेगा या पूरी तरह अप्रभावी हो जाएगा।
  • हालांकि, ऐसे संशोधन या रद्दीकरण का पहले किए गए किसी भी कार्य पर प्रभाव नहीं पड़ेगा

निष्कर्ष (Conclusion):

धारा 20A यह सुनिश्चित करती है कि न्यायिक प्रक्रियाओं के कारण अधोसंरचना परियोजनाओं में अनावश्यक देरी न हो

  • न्यायालय रोक नहीं लगा सकता, जिससे परियोजना बाधित हो।
  • केंद्र सरकार को आवश्यकतानुसार अधोसंरचना परियोजनाओं की सूची में संशोधन करने का अधिकार है
  • संसद इस प्रक्रिया की निगरानी करेगी और आवश्यकतानुसार अधिसूचनाओं में बदलाव कर सकती है

धारा 20B: विशेष न्यायालय (Special Courts)

(1) विशेष न्यायालयों की नियुक्ति

राज्य सरकार, उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने के बाद, राजपत्र (Official Gazette) में अधिसूचना जारी करके एक या अधिक सिविल न्यायालयों को “विशेष न्यायालय” घोषित कर सकती है

(2) क्षेत्राधिकार (Jurisdiction)

  • इन विशेष न्यायालयों को अधोसंरचना परियोजनाओं (Infrastructure Projects) से जुड़े अनुबंधों से संबंधित मुकदमों की सुनवाई का अधिकार होगा
  • यह न्यायालय केवल निर्धारित क्षेत्र की सीमा के भीतर ही कार्य करेंगे

निष्कर्ष (Conclusion):

धारा 20B का मुख्य उद्देश्य अधोसंरचना परियोजनाओं से जुड़े अनुबंधों के विवादों के शीघ्र समाधान के लिए विशेष न्यायालयों की स्थापना करना है। इससे न्यायिक प्रक्रिया तेज होगी और विकास परियोजनाओं में अनावश्यक देरी को रोका जा सकेगा। इसके तहत, राज्य सरकार उच्च न्यायालय के परामर्श से ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए विशेष न्यायालय नामित कर सकती है, जिससे न्यायिक प्रक्रिया अधिक प्रभावी और व्यवस्थित बन सके।

धारा 20C: मुकदमों का शीघ्र निपटान

  1. अनिवार्य समय-सीमा – इस अधिनियम के तहत दायर मुकदमे को 12 महीनों के भीतर निपटाना होगा।
  2. समय-सीमा की गणना – यह अवधि प्रतिवादी (Defendant) को समन (Summons) की सेवा की तिथि से शुरू होगी।
  3. अतिरिक्त समयअधिकतम 6 महीने की अतिरिक्त अवधि दी जा सकती है।
  4. लिखित कारण आवश्यक – समय सीमा बढ़ाने के लिए अदालत को लिखित रूप में कारण दर्ज करने होंगे
  5. सीपीसी से स्वतंत्रता – यह प्रावधान दिवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC, 1908) के प्रावधानों के बावजूद लागू होगा।

निष्कर्ष :  यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि मुकदमों का निपटान तेजी से हो, जिससे न्यायिक प्रणाली में अनावश्यक विलंब न हो और पीड़ित पक्ष को समय पर न्याय मिल सके

धारा 21: कुछ मामलों में हर्जाना देने की शक्ति

  1. विशेष निष्पादन के साथ हर्जाना – यदि वादी विशेष निष्पादन (Specific Performance) का दावा करता है, तो वह अनुबंध के उल्लंघन के लिए हर्जाने (Compensation) की मांग भी कर सकता है
  2. विशेष निष्पादन अस्वीकृत होने पर हर्जाना – यदि अदालत यह मानती है कि विशेष निष्पादन संभव नहीं है, लेकिन अनुबंध का उल्लंघन हुआ है, तो वादी को हर्जाना दिया जाएगा
  3. विशेष निष्पादन के साथ अतिरिक्त हर्जाना – यदि अदालत विशेष निष्पादन का आदेश देती है, लेकिन इसे न्यायसंगत नहीं मानती, तो अनुबंध उल्लंघन के लिए अतिरिक्त हर्जाना दिया जा सकता है
  4. हर्जाना तय करने के नियम – हर्जाने की राशि तय करने में भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 73 के सिद्धांतों का पालन किया जाएगा।
  5. हर्जाने की मांग वादपत्र में होनी चाहिए – यदि वादी ने वादपत्र (Plaint) में पहले से हर्जाने की मांग नहीं की है, तो अदालत कार्रवाई के किसी भी चरण में उसे संशोधित करने की अनुमति दे सकती है
  6. अनुबंध निष्पादन असंभव होने पर भी हर्जानायदि अनुबंध विशेष निष्पादन के योग्य नहीं है, तब भी अदालत इस धारा के तहत हर्जाना देने का अधिकार रखती है

निष्कर्ष –  यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि अनुबंध के उल्लंघन की स्थिति में, वादी को विशेष निष्पादन या हर्जाना, या दोनों मिल सकते हैं, जिससे अनुबंध तोड़ने वाले पक्ष को दंडित किया जा सके और वादी को हुए नुकसान की भरपाई हो सके

धारा 22: कब्जा, विभाजन, बयाना राशि की वापसी आदि के लिए राहत देने की शक्ति

  1. विशेष निष्पादन के साथ अतिरिक्त राहत – यदि कोई व्यक्ति अचल संपत्ति के स्थानांतरण (Transfer of Immovable Property) के लिए विशेष निष्पादन का दावा करता है, तो वह निम्नलिखित राहतें भी मांग सकता है:
    • (a) संपत्ति का कब्जा (Possession), या विभाजन (Partition) और अलग कब्जा
    • (b) अन्य वैध राहतें, जिसमें बयाना राशि (Earnest Money) या जमा धन की वापसी शामिल हो सकती है, यदि विशेष निष्पादन का दावा अस्वीकृत हो जाता है।
  2. विशेष रूप से दावा आवश्यक – अदालत तब तक कोई राहत नहीं देगी, जब तक कि वादी ने इसे अपने वादपत्र (Plaint) में विशेष रूप से दावा न किया हो।
    • यदि वादी ने पहले यह राहत नहीं मांगी है, तो अदालत उसे किसी भी चरण में वादपत्र संशोधित करने की अनुमति दे सकती है
  3. हर्जाने की शक्ति बनी रहेगी – यदि अदालत धारा 22(1)(b) के तहत कोई राहत देती है, तो इससे धारा 21 के तहत हर्जाना देने की शक्ति प्रभावित नहीं होगी

निष्कर्ष : यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि यदि किसी को संपत्ति स्थानांतरण के लिए विशेष निष्पादन की आवश्यकता हो, तो वह कब्जा, विभाजन, या बयाना राशि की वापसी जैसी अतिरिक्त राहत भी मांग सकता है। यह वादी के अधिकारों की रक्षा करने और उचित न्याय दिलाने में मदद करती है

धारा 23 – हर्जाने की निश्चित राशि विशेष निष्पादन (Specific Performance) में बाधा नहीं है

यदि कोई अनुबंध ऐसा है जिसे कानूनन विशेष रूप से पूरा कराया जा सकता है, तो सिर्फ इस कारण से कि उसमें उल्लंघन की स्थिति में भुगतान की एक निश्चित राशि तय की गई है और अनुबंध तोड़ने वाला पक्ष वह राशि देने को तैयार है — विशेष निष्पादन रोका नहीं जाएगा। बशर्ते कि न्यायालय यह माने कि वह राशि सिर्फ अनुबंध को पूरा कराने के उद्देश्य से तय की गई थी, न कि इसलिए कि अनुबंध तोड़ने वाले पक्ष को पैसे देकर अनुबंध न निभाने का विकल्प दिया जाए।

न्यायालय यदि इस धारा के तहत विशेष निष्पादन का आदेश देता है, तो वह अनुबंध में तय राशि के भुगतान का अलग से आदेश नहीं देगा।

धारा 24 – विशेष निष्पादन का दावा खारिज होने पर हर्जाने का दावा वर्जित

यदि किसी अनुबंध (या उसके किसी भाग) के विशेष निष्पादन के लिए किया गया वाद (सूट) खारिज कर दिया जाता है, तो वादी उस अनुबंध (या उसके उस भाग) के उल्लंघन के लिए हर्जाने की मांग नहीं कर सकता

लेकिन, यदि अनुबंध के उल्लंघन के कारण वादी को कोई अन्य राहत कानूनन मिल सकती है, तो उसका दावा करना प्रतिबंधित नहीं होगा

धारा 25 – पूर्ववर्ती धाराओं का कुछ निर्णयों और वसीयत में दिए गए निपटान के निर्देशों पर लागू होना

इस अध्याय में अनुबंधों से संबंधित जो प्रावधान दिए गए हैं, वे उन निर्णयों (Awards) पर भी लागू होंगे जिन पर “मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996” लागू नहीं होता, और उन वसीयत या कोडिसिल (वसीयत में संशोधन) में दिए गए विशेष निपटान करने के निर्देशों पर भी लागू होंगे।

धारा 26 – किन परिस्थितियों में दस्तावेज (इंस्ट्रूमेंट) में सुधार (Rectification) किया जा सकता है

यदि किसी लिखित अनुबंध या दस्तावेज़ (जो कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत न आने वाले कंपनी के अनुच्छेद नहीं हैं) में पक्षों की वास्तविक मंशा धोखे या आपसी भूल के कारण सही रूप में व्यक्त नहीं होती, तो:
(a) कोई भी पक्ष या उसका उत्तराधिकारी दस्तावेज़ के संशोधन के लिए मुकदमा कर सकता है,
(b) यदि कोई पक्ष ऐसा अधिकार दावा करता है जो उस दस्तावेज़ पर आधारित है, तो वह अपने मुकदमे में दस्तावेज़ को संशोधित करने की मांग कर सकता है,
(c) ऐसा कोई प्रतिवादी भी, जो ऐसे मुकदमे में हो, अपनी अन्य दलीलों के साथ-साथ संशोधन की मांग कर सकता है

यदि न्यायालय यह पाता है कि दस्तावेज़ धोखे या भूल के कारण वास्तविक मंशा को प्रकट नहीं करता, तो वह अपने विवेक से संशोधन का आदेश दे सकता है, जब तक कि किसी तीसरे पक्ष के द्वारा सद्भावना में प्राप्त अधिकार प्रभावित न हों

एक लिखित अनुबंध को पहले संशोधित किया जा सकता है, और यदि पक्ष ने अपने दावे में यह मांगा हो और न्यायालय उपयुक्त समझे, तो उसका विशेष निष्पादन (specific performance) भी कराया जा सकता है

किसी भी पक्ष को संशोधन का लाभ तभी मिलेगा जब उसने इसे स्पष्ट रूप से मांगा हो;
यदि मांग नहीं की गई हो, तो न्यायालय उचित शर्तों के साथ याचिका में संशोधन की अनुमति दे सकता है

धारा 27 – कब अनुबंध को रद्द (Rescind) किया जा सकता है या नहीं किया जा सकता

(1) कोई भी व्यक्ति जो किसी अनुबंध में रुचि रखता है, अनुबंध को रद्द करने के लिए मुकदमा कर सकता है, और न्यायालय निम्नलिखित स्थितियों में अनुबंध को रद्द घोषित कर सकता है:
(a) जब अनुबंध वादी के लिए निरस्त करने योग्य (voidable) या समाप्त करने योग्य (terminable) हो;
(b) जब अनुबंध गैरकानूनी हो परंतु उसका कारण स्पष्ट रूप से दिखाई न देता हो, और प्रतिवादी की गलती वादी से अधिक हो।

(2) उपरोक्त के बावजूद, न्यायालय अनुबंध को रद्द करने से इन कारणों से इंकार कर सकता है:
(a) जब वादी ने स्पष्ट या अप्रत्यक्ष रूप से अनुबंध को स्वीकृति दे दी हो (ratify कर लिया हो);

(b) जब अनुबंध बनने के बाद परिस्थितियाँ बदल गई हों, और उस बदलाव से पक्षों को पहले की स्थिति में लाना संभव न हो (बशर्ते यह बदलाव प्रतिवादी की गलती से न हुआ हो);
(c) जब तीसरे पक्षों ने अनुबंध के चलते बिना किसी पूर्व जानकारी और सद्भावना से अधिकार प्राप्त कर लिए हों;
(d) जब अनुबंध का केवल एक हिस्सा रद्द किया जाना चाहा जाए, लेकिन वह हिस्सा अन्य हिस्सों से अलग न किया जा सकता हो

स्पष्टीकरण: इस धारा में “अनुबंध” का अर्थ, उन क्षेत्रों में जहाँ संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 लागू नहीं होता, लिखित अनुबंध से है।

धारा 28 – ऐसे मामलों में अनुबंध को समाप्त करना, जहाँ अचल संपत्ति की बिक्री या पट्टे के लिए विशिष्टन का आदेश दिया गया है (Rescission of Contract – Sale/Lease of Immovable Property)

  1. यदि किसी वाद में अदालत ने अचल संपत्ति की बिक्री या पट्टे के लिए विशिष्ट履न (Specific Performance) का डिक्री पारित किया है और खरीदार या पट्टेदार अदालत द्वारा निर्धारित समय या अदालत द्वारा दी गई अतिरिक्त समय सीमा में वह राशि (जैसे खरीद मूल्य या अन्य धनराशि) का भुगतान नहीं करता है, तो विक्रेता या पट्टेदार उसी वाद में आवेदन कर सकता है कि अनुबंध को समाप्त कर दिया जाए। अदालत इस आवेदन पर, न्याय के अनुसार, अनुबंध को आंशिक रूप से (गलती करने वाले पक्ष के लिए) या पूरी तरह से समाप्त कर सकती है।
  2. जब अनुबंध को उपरोक्त तरीके से समाप्त किया जाता है:
    • 📌 (a) यदि खरीदार या पट्टेदार ने संपत्ति पर कब्जा ले लिया है, तो अदालत उसे वह कब्जा विक्रेता या पट्टेदार को लौटाने का आदेश देगी।
    • 📌 (b) अदालत यह भी आदेश दे सकती है कि कब्जा लेने की तारीख से लेकर उसे लौटाने तक की सारी आय/भाड़ा आदि खरीदार या पट्टेदार विक्रेता या पट्टेदार को दे। यदि न्याय की मांग हो, तो खरीदार/पट्टेदार द्वारा दी गई कोई भी अग्रिम राशि या जमानत राशि वापस करने का आदेश भी दिया जा सकता है।
  3. यदि खरीदार या पट्टेदार अदालत के आदेशानुसार निर्धारित समय में वह राशि चुका देता है, तो वह उसी वाद में आवेदन कर सकता है और अदालत उसे उचित अतिरिक्त राहतें दे सकती है, जैसे:
    • 🔸 उचित विक्रय विलेख (Conveyance) या पट्टा (Lease Deed) तैयार कराना।
    • 🔸 कब्जा देना, या संपत्ति का विभाजन और पृथक कब्जा देना।
  4. 📌 इस धारा में दी गई राहत के लिए अलग से कोई नया वाद नहीं किया जा सकता।
  5. अदालत इस धारा के अंतर्गत कार्यवाही के खर्चों का निर्णय स्वयं कर सकती है।

धारा 29 – विशिष्टन के वाद में वैकल्पिक रूप से अनुबंध समाप्त करने की प्रार्थना (Alternative Prayer for Rescission)

यदि कोई वादी लिखित अनुबंध के लिए विशिष्ट  की मांग करते हुए वाद दायर करता है, तो वह वैकल्पिक रूप से यह भी मांग कर सकता है कि यदि अनुबंध को लागू नहीं किया जा सके, तो उसे समाप्त कर निरस्त कर दिया जाए। यदि अदालत विशिष्टन से इंकार करती है, तो वह अनुबंध को समाप्त कर निरस्त करने का आदेश दे सकती है।

 धारा 30 – अनुबंध समाप्त करने वाले पक्ष से न्यायानुसार व्यवहार (Equity on Rescission)

जब अदालत अनुबंध को समाप्त करने का निर्णय देती है, तो वह उस पक्ष से, जिसे राहत दी गई है, यह अपेक्षा कर सकती है कि:

  • वह दूसरे पक्ष से प्राप्त कोई लाभ लौटाए (जहाँ तक संभव हो), और
  • उसे ऐसा मुआवज़ा भी दे, जैसा न्याय की दृष्टि से उचित हो।

अध्याय 5: दस्तावेजों की निरस्तीकरण (Cancellation of Instruments)

धारा 31 – दस्तावेजों को निरस्त करने का आदेश कब दिया जा सकता है (When Cancellation May Be Ordered)

  1. यदि कोई व्यक्ति यह मानता है कि उसके खिलाफ कोई लिखित दस्तावेज अवैध (Void) या रद्द करने योग्य (Voidable) है और यदि वह दस्तावेज प्रभाव में रहा, तो उसे गंभीर नुकसान हो सकता है, तो वह अदालत में वाद दायर कर सकता है कि उसे अवैध या रद्द योग्य घोषित कर दिया जाए।
    👉 अदालत अपने विवेक से ऐसा आदेश पारित कर सकती है और दस्तावेज को निरस्त करने का निर्देश दे सकती है।
  2. यदि वह दस्तावेज भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 के अंतर्गत पंजीकृत किया गया है, तो अदालत अपने निर्णय की प्रति उस रजिस्ट्रार को भेजेगी जहाँ वह दस्तावेज पंजीकृत हुआ था। फिर वह अधिकारी अपने रिकॉर्ड में उस दस्तावेज की निरस्तीकरण की सूचना दर्ज करेगा।

धारा 32 – दस्तावेजों को आंशिक रूप से निरस्त करना (Partial Cancellation of Instruments)

यदि कोई दस्तावेज कई अलग-अलग अधिकारों या कर्तव्यों का प्रमाण है, तो अदालत किसी उपयुक्त मामले में उसे आंशिक रूप से निरस्त कर सकती है और शेष भाग को प्रभावी बनाए रख सकती है।

धारा 33 – जब कोई दस्तावेज निरस्त किया जाए या अमान्य/रद्द करने योग्य सिद्ध हो, तो लाभ लौटाने या क्षतिपूर्ति देने का अधिकार (Power to Require Restoration of Benefit or Compensation)

(1) जब कोई दस्तावेज निरस्त किया जाता है (Cancelled):
यदि अदालत किसी दस्तावेज को निरस्त घोषित करती है, तो वह उस पक्ष से, जिसे यह राहत दी गई है (यानि जिसने दस्तावेज को रद्द करवाया), यह आदेश दे सकती है कि:

  • वह दूसरे पक्ष से प्राप्त कोई भी लाभ (जहाँ तक संभव हो) लौटा दे, और
  • यदि आवश्यक हो, तो उसे ऐसा मुआवज़ा (Compensation) दे, जो न्यायसंगत हो।

(2) जब प्रतिवादी यह सिद्ध करके वाद जीत जाता है कि दस्तावेज अमान्य या रद्द योग्य है:

(a) यदि प्रतिवादी यह साबित करता है कि जो दस्तावेज उसके खिलाफ लागू किया जा रहा था वह रद्द करने योग्य (Voidable) था,
→ और यदि प्रतिवादी को उस दस्तावेज के तहत दूसरे पक्ष से कोई लाभ मिला है,
→ तो अदालत उससे कह सकती है कि वह वह लाभ, जहाँ तक संभव हो, वापस लौटाए या उसके बराबर क्षतिपूर्ति करे

(b) यदि प्रतिवादी यह साबित करता है कि अनुबंध उसके खिलाफ अमान्य (Void) है क्योंकि वह भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 11 के अनुसार अनुबंध करने के लिए अयोग्य था (जैसे कि नाबालिग या मानसिक रूप से असमर्थ),
→ और फिर भी उसे अनुबंध के तहत कोई लाभ मिला है,
→ तो अदालत यह आदेश दे सकती है कि वह लाभ, जहाँ तक संभव हो, दूसरे पक्ष को वापस लौटाए,
→ लेकिन उतनी ही सीमा तक, जितना वह या उसकी संपत्ति उस लाभ से वास्तव में लाभान्वित हुए हों।

महत्वपूर्ण बिंदु याद रखने के लिए:

  • जब भी दस्तावेज निरस्त हो या प्रतिवादी उसे अमान्य साबित कर दे → तो लाभ लौटाना या मुआवज़ा देना ज़रूरी हो सकता है।
  • न्याय का मूल सिद्धांत है कि कोई भी व्यक्ति अवैध या अमान्य दस्तावेज से अनुचित लाभ न उठाए।
  • अदालत “जहाँ तक संभव हो” के आधार पर निर्णय देती है — यानि लाभ पूरा न सही, पर यथासंभव लौटाया जाना चाहिए।

अध्याय VI – घोषणात्मक डिक्री (Declaratory Decrees)

धारा 34 – वैधानिक स्थिति या अधिकार की घोषणा के बारे में अदालत का विवेकाधिकार (Discretion of Court for Declaration of Status or Right)

 यदि कोई व्यक्ति किसी वैधानिक स्थिति (Legal Character) या किसी संपत्ति से जुड़े किसी अधिकार (Right) का दावा करता है,
→ और कोई दूसरा व्यक्ति उस अधिकार को नकारता है या नकारने का इच्छुक है,
→ तो वह व्यक्ति अदालत में वाद दायर कर सकता है कि अदालत यह घोषणा करे कि वह उस स्थिति या अधिकार का हकदार है

अदालत अपने विवेक से यह घोषणा कर सकती है कि वादी उस स्थिति या अधिकार का वास्तविक हकदार है।

इस वाद में वादी को कोई और अतिरिक्त राहत माँगने की आवश्यकता नहीं है। वह केवल घोषणा (Declaration) की मांग कर सकता है।

परंतु — यदि वादी घोषणा से आगे कोई और राहत प्राप्त करने में सक्षम है, और फिर भी वह अन्य राहत नहीं माँगता,
→ तो अदालत केवल घोषणा नहीं देगी।
यानी, अगर वादी किसी संपत्ति पर अधिकार चाहता है और कब्जा भी मिल सकता है, लेकिन वह केवल घोषणा ही माँगता है, तो अदालत यह घोषणा नहीं करेगी।

स्पष्टीकरण (Explanation):
अगर कोई ट्रस्टी (Trustee) किसी ऐसे व्यक्ति के पक्ष में संपत्ति रखता है, जो अभी मौजूद नहीं है,
→ तो ट्रस्टी को ऐसे व्यक्ति के विरोध में दावा करने वाला माना जाएगा,
→ और उसे भी ऐसे घोषणात्मक वाद में पक्षकार माना जाएगा।

धारा 35 – घोषणा का प्रभाव (Effect of Declaration)

इस अध्याय के अंतर्गत जो भी घोषणा (Declaration) की जाती है,
→ वह केवल इन लोगों पर बाध्यकारी (Binding) होती है:

  1. वाद के पक्षकारों (Parties to the suit) पर,
  2. उनके द्वारा दावा करने वाले उत्तराधिकारी या प्रतिनिधियों पर, और
  3. यदि कोई पक्षकार ट्रस्टी है, तो उन व्यक्तियों पर जिनके लिए (यदि वे अस्तित्व में होते) वह ट्रस्टी होता।

📌 यानी यह घोषणा सार्वभौमिक नहीं होती, केवल उन्हीं व्यक्तियों पर लागू होती है जो वाद से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं।

PART III – निवारक राहत (Preventive Relief)

CHAPTER VII – सामान्यतः निषेधाज्ञा (Injunctions Generally)

धारा 36 – निवारक राहत कैसे दी जाती है (How Preventive Relief is Granted)

निवारक राहत (Preventive Relief) का उद्देश्य किसी गलत कार्य को रोकना होता है।
👉 यह राहत अदालत के विवेकाधिकार (discretion) से दी जाती है और इसे निषेधाज्ञा (injunction) के रूप में दिया जाता है — जो दो प्रकार की हो सकती है:

  • अस्थायी (Temporary) निषेधाज्ञा
  • स्थायी (Perpetual) निषेधाज्ञा

धारा 37 – अस्थायी और स्थायी निषेधाज्ञाएं (Temporary and Perpetual Injunctions)

(1) अस्थायी निषेधाज्ञाएं (Temporary Injunctions):

  • ये एक निर्धारित समय तक या तब तक जारी रहती हैं जब तक कि अदालत अगला आदेश न दे।
  • इन्हें मुकदमे के किसी भी चरण में दिया जा सकता है।
  • इनका संचालन दीवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC) द्वारा किया जाता है।

(2) स्थायी निषेधाज्ञाएं (Perpetual Injunctions):

  • इन्हें केवल मुकदमे की पूर्ण सुनवाई के बाद और उसके गुण-दोष के आधार पर डिक्री के रूप में दिया जाता है।
  • इसके द्वारा प्रतिवादी को वादी के अधिकार के विरोध में कोई कार्य करने से स्थायी रूप से रोका जाता है

CHAPTER VIII – स्थायी निषेधाज्ञाएं (Perpetual Injunctions)

धारा 38 – स्थायी निषेधाज्ञा कब दी जाती है (When Perpetual Injunction is Granted)

(1) यदि वादी के पक्ष में कोई कर्तव्य (Obligation) है (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से), और उस कर्तव्य के उल्लंघन की आशंका है,
→ तो अदालत स्थायी निषेधाज्ञा दे सकती है ताकि उस कर्तव्य का उल्लंघन रोका जा सके।

(2) यदि यह कर्तव्य किसी अनुबंध (Contract) से उत्पन्न होता है,
→ तो अदालत Chapter II में बताए गए नियमों का पालन करेगी (जो अनुबंध से संबंधित हैं)।

(3) यदि प्रतिवादी वादी की संपत्ति या उसके उपयोग के अधिकार में हस्तक्षेप करता है या करने की धमकी देता है,
→ तो अदालत इन मामलों में स्थायी निषेधाज्ञा दे सकती है:

🔸 (a) प्रतिवादी वादी की संपत्ति का ट्रस्टी है।
🔸 (b) हानि की वास्तविक मात्रा का अनुमान लगाने का कोई मानक नहीं है।
🔸 (c) ऐसी क्षति हुई है जिसमें पैसे से राहत पर्याप्त नहीं होगी
🔸 (d) यदि निषेधाज्ञा नहीं दी गई तो कई अलग-अलग मुकदमेबाज़ियाँ करनी पड़ेंगी।

धारा 39 – आदेशात्मक निषेधाज्ञाएं (Mandatory Injunctions)

जब किसी कर्तव्य के उल्लंघन को रोकने के लिए किसी व्यक्ति को कुछ कार्य करने के लिए मजबूर करना जरूरी हो,
→ और अदालत उन कार्यों को बलपूर्वक करवा सकती हो,
→ तब अदालत, अपने विवेक से:

  • उल्लंघन को रोकने के लिए निषेधाज्ञा दे सकती है, और
  • आवश्यक कार्य को करवाने का आदेश भी दे सकती है

📌 इसे Mandatory Injunction कहा जाता है।

🔹 धारा 40 – निषेधाज्ञा के स्थान पर या साथ में हर्जाना (Damages in lieu of or in addition to Injunction)

(1) यदि वादी ने धारा 38 (स्थायी निषेधाज्ञा) या धारा 39 (आदेशात्मक निषेधाज्ञा) के तहत वाद दायर किया है,
→ तो वह निषेधाज्ञा के साथ-साथ या उसके स्थान पर हर्जाने (Damages) की मांग कर सकता है।
→ अदालत यदि उचित समझे, तो हर्जाना दे सकती है।

(2) लेकिन, जब तक वादी अपनी याचिका में स्पष्ट रूप से हर्जाने की मांग नहीं करता,
→ तब तक उसे इस धारा के तहत हर्जाने की राहत नहीं दी जाएगी

📌 परंतु, यदि वादी ने शुरू में हर्जाना नहीं माँगा,
→ तो अदालत उसे किसी भी समय याचिका में संशोधन करने की अनुमति दे सकती है ताकि वह हर्जाने की मांग जोड़ सके।

(3) यदि अदालत वादी के पक्ष में कर्तव्य के उल्लंघन को रोकने वाला वाद खारिज कर देती है,
→ तो वादी को बाद में उसी उल्लंघन के लिए हर्जाने का मुकदमा दायर करने का अधिकार नहीं रहेगा

संक्षेप में स्मरण हेतु चार्ट:

धारा 41 – निषेधाज्ञा (Injunction) कब नहीं दी जाती (Injunction When Refused)

न्यायालय निम्नलिखित मामलों में निषेधाज्ञा (Injunction) नहीं देगा:

🔸 (a) यदि किसी व्यक्ति के विरुद्ध ऐसा आदेश माँगा गया हो जिससे वह पहले से चल रही न्यायिक कार्यवाही (Judicial Proceeding) को जारी रखने से रोका जाए,
➡ तब निषेधाज्ञा नहीं दी जाएगी, जब तक यह आवश्यक न हो कि बहुसंख्यक मुकदमों को रोकने के लिए ऐसा करना ज़रूरी हो।

🔸 (b) यदि निषेधाज्ञा किसी ऐसे व्यक्ति के विरुद्ध माँगी गई हो जो उच्चतर न्यायालय में कोई कार्यवाही शुरू कर रहा हो,
➡ तो निचली अदालत उसे रोक नहीं सकती

🔸 (c) कोई भी व्यक्ति किसी विधायी निकाय (Legislative Body) से संपर्क करने से रोका नहीं जा सकता।

🔸 (d) कोई व्यक्ति आपराधिक कार्यवाही (Criminal Proceeding) को शुरू करने या आगे बढ़ाने से निषेधाज्ञा के माध्यम से नहीं रोका जा सकता।

🔸 (e) किसी ऐसे अनुबंध के उल्लंघन को रोकने के लिए निषेधाज्ञा नहीं दी जा सकती, जिसकी विशिष्टन (Specific Performance) करवाई नहीं जा सकती।

🔸 (f) किसी कार्य को नुकसानदायक (Nuisance) कहकर रोका नहीं जा सकता, जब तक कि यह स्पष्ट न हो कि वह वास्तव में नुकसानदायक होगा।

🔸 (g) यदि वादी ने उस लगातार हो रहे उल्लंघन (Continuing Breach) को स्वयं सहन कर लिया हो,
➡ तब उसे निषेधाज्ञा नहीं मिलेगी।

🔸 (h) यदि कोई अन्य सामान्य कानूनी उपाय (remedy) उपलब्ध है जो उतना ही प्रभावी है,
➡ तब निषेधाज्ञा नहीं दी जाएगी, सिवाय ट्रस्ट के उल्लंघन (Breach of Trust) के मामलों में।

🔸 (ha) यदि निषेधाज्ञा से किसी इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट की प्रगति या पूरा होना बाधित होगा, या उस परियोजना से जुड़ी सेवाएं प्रभावित होंगी,
➡ तो भी निषेधाज्ञा नहीं दी जाएगी।

🔸 (i) यदि वादी या उसके प्रतिनिधि का आचरण ऐसा रहा हो कि वह न्यायालय से सहायता पाने का पात्र न रह गया हो,
➡ तो उसे निषेधाज्ञा नहीं मिलेगी।

🔸 (j) यदि वादी का उस विषय में कोई निजी स्वार्थ या हित (Personal Interest) नहीं है,
➡ तो वह निषेधाज्ञा का हकदार नहीं होगा।

धारा 42 – नकारात्मक अनुबंध (Negative Agreement) को निषेधाज्ञा द्वारा लागू करना (Injunction to Perform Negative Agreement)

📌 धारा 41 के उपबंध (e) के बावजूद:

🔸 जब कोई अनुबंध दो हिस्सों से मिलकर बना हो:

  1. सकारात्मक भाग (Affirmative Agreement) — कोई कार्य करने का वादा
  2. नकारात्मक भाग (Negative Agreement) — कोई कार्य नहीं करने का वादा (प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से)

👉 तब यदि अदालत उस सकारात्मक भाग को लागू नहीं कर सकती (यानी Specific Performance नहीं करा सकती),
➡ फिर भी वह नकारात्मक भाग को लागू करने के लिए निषेधाज्ञा दे सकती है

📌 शर्त: वादी ने उस अनुबंध को, जहाँ तक वह उस पर लागू होता है, स्वयं उचित रूप से निभाया हो

 

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भाग I – प्रारंभिक (Part I – Preliminary)

धारा 1 – संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ
(Section 1 – Short title, extent and commencement)
धारा 2 – परिभाषाएँ
(Section 2 – Definitions)
धारा 3 – अपवर्जन
(Section 3 – Savings)
धारा 4 – विशिष्ट अनुतोष केवल व्यक्तिगत नागरिक अधिकारों को लागू करने के लिए दिया जाएगा, दंडात्मक कानूनों को लागू करने के लिए नहीं
(Section 4 – Specific relief to be granted only for enforcing individual civil rights and not for enforcing penal laws)

भाग II – विशिष्ट अनुतोष (Part II – Specific Relief)

अध्याय I – संपत्ति का पुनः अधिग्रहण (Chapter I – Recovery of Possession of Property)
धारा 5 – विशिष्ट अचल संपत्ति की पुनर्प्राप्ति
(Section 5 – Recovery of specific immovable property)
धारा 6 – अचल संपत्ति से बेदखल किए गए व्यक्ति द्वारा वाद
(Section 6 – Suit by person dispossessed of immovable property)
धारा 7 – विशिष्ट चल संपत्ति की पुनर्प्राप्ति
(Section 7 – Recovery of specific movable property)
धारा 8 – स्वामी के रूप में नहीं, लेकिन कब्जे में रहने वाले व्यक्ति की सुपुर्दगी की देयता
(Section 8 – Liability of person in possession, not as owner, to deliver to persons entitled to immediate possession)

अध्याय II – अनुबंधों का विशिष्ट निष्पादन (Chapter II – Specific Performance of Contracts)
धारा 9 – अनुबंध पर आधारित राहत के वादों के संबंध में प्रतिरक्षा
(Section 9 – Defenses respecting suits for relief based on contract)
धारा 10 – अनुबंधों का विशिष्ट निष्पादन
(Section 10Specific performance of contracts)
धारा 11 – ट्रस्ट से संबंधित अनुबंधों का विशिष्ट निष्पादन
(Section 11 – Cases in which specific performance of contracts connected with trusts enforceable)
धारा 12 – अनुबंध के भाग का निष्पादन
(Section 12 – Specific performance of part of contract)
धारा 13अपूर्ण शीर्षक वाले व्यक्ति के विरुद्ध क्रेता/पट्टेदार के अधिकार
(Section 13 – Rights of purchaser or lessee against person with imperfect title)
धारा 14 – ऐसे अनुबंध जो विशेष रूप से निष्पादित नहीं किए जा सकते
(Section 14Contracts not specifically enforceable)
धारा 14A – न्यायालय द्वारा विशेषज्ञों की सहायता लेने की शक्ति
(Section 14A – Power of court to engage experts to assist on issues relating to specific performance of contract)
धारा 15 – कौन विशिष्ट निष्पादन प्राप्त कर सकता है
(Section 15 – Who may obtain specific performance)
धारा 16 – राहत के लिए व्यक्तिगत अयोग्यताएँ
(Section 16 – Personal bars to relief)
धारा 17बिना शीर्षक वाले द्वारा अनुबंध, निष्पादन योग्य नहीं
(Section 17 – Contract to sell or let property by one who has no title, not specifically enforceable)

धारा 18परिवर्तन के साथ ही निष्पादन
(Section 18 – Non-enforcement except with variation)
धारा 19 – पक्षकारों और उनके उत्तराधिकारियों के विरुद्ध राहत
(Section 19 – Relief against parties and persons claiming under them by subsequent title)
धारा 20अनुबंध का प्रतिस्थापित निष्पादन
(Section 20 – Substituted performance of contract)
धारा 20A – अवसंरचना परियोजनाओं से संबंधित अनुबंधों के लिए विशेष प्रावधान
(Section 20A – Special provisions for contracts relating to infrastructure project)
धारा 20B – विशेष न्यायालय
(Section 20B – Special Courts)

धारा 20C – वादों का त्वरित निपटान
(Section 20C – Expeditious disposal of suits)
धारा 21 – कुछ मामलों में क्षतिपूर्ति देने की शक्ति
(Section 21 – Power to award compensation in certain cases)
धारा 22 – कब्जा, विभाजन, अग्रिम धनवापसी आदि के लिए राहत
(Section 22 – Power to grant relief for possession, partition, refund of earnest money, etc.)
धारा 23 – हानि का निर्धारण निष्पादन में बाधा नहीं
(Section 23 – Liquidation of damages not a bar to specific performance)
धारा 24 – निष्पादन वाद की खारिजी के बाद क्षतिपूर्ति का वाद अवरुद्ध
(Section 24 – Bar of suit for compensation for breach after dismissal of suit for specific performance)

अध्याय III – लिखतों का परिशोधन (Chapter III – Rectification of Instruments)
धारा 26 – कब लिखतों का परिशोधन किया जा सकता है
(Section 26 – When instrument may be rectified)

अध्याय IV – अनुबंधों का समापन (Chapter IV – Rescission of Contracts)
धारा 27 – समापन कब किया जा सकता है या अस्वीकार किया जा सकता है
(Section 27 – When rescission may be adjudged or refused)
धारा 28 – अचल संपत्ति के अनुबंधों का निरस्तीकरण जिनका निष्पादन डिक्रीबद्ध हुआ है
(Section 28 – Rescission in certain circumstances of contracts for the sale or lease of immovable property, the specific performance of which has been decreed)
धारा 29 – वैकल्पिक प्रार्थना
(Section 29 – Alternative prayer for rescission in suit for specific performance)
धारा 30 – न्यायालय द्वारा न्यायसंगत शर्तें लगाने की शक्ति
(Section 30 – Court may require parties rescinding to do equity)

अध्याय V – लिखतों का निरस्तीकरण (Chapter V – Cancellation of Instruments)
धारा 31कब लिखत का निरस्तीकरण किया जा सकता है
(Section 31 – When cancellation may be ordered)

धारा 32 – आंशिक निरस्तीकरण
(Section 32 – What instruments may be partially cancelled)
धारा 33
– लाभ की पुनर्स्थापना या क्षतिपूर्ति का आदेश

(Section 33 – Power to require benefit to be restored or compensation to be made when instrument is cancelled or is successfully resisted as being void or voidable)

अध्याय VI – घोषणात्मक डिक्री (Chapter VI – Declaratory Decrees)
धारा 34स्थिति या अधिकार की घोषणा
(Section 34
– Discretion of court as to declaration of status or right)

धारा 35 – घोषणा का प्रभाव
(Section 35 – Effect of declaration)

भाग III – निवारक राहत (Part III – Preventive Relief)

अध्याय VII – सामान्यतः निषेधाज्ञाएँ (Chapter VII – Injunctions Generally)
धारा 36 – निवारक राहत कैसे दी जाती है
(Section 36 – Preventive relief how granted)
धारा 37 – अस्थायी और स्थायी निषेधाज्ञाएँ
(Section 37 – Temporary and perpetual injunctions)

अध्याय VIII – स्थायी निषेधाज्ञाएँ (Chapter VIII – Perpetual Injunctions)
धारा 38स्थायी निषेधाज्ञा कब दी जाती है
(Section 38 – Perpetual injunction when granted)

धारा 39 – अनिवार्य निषेधाज्ञाएँ
(Section 39 – Mandatory injunctions)
धारा 40 – निषेधाज्ञा के स्थान पर या साथ में हर्जाना
(Section 40 – Damages in lieu of, or in addition to, injunction)
धारा 41 – निषेधाज्ञा कब अस्वीकार की जाती है
(Section 41 – Injunction when refused)
धारा 42 – नकारात्मक अनुबंध के निष्पादन के लिए निषेधाज्ञा
(Section 42 – Injunction to perform negative agreement)