Sexual Harassment of Women at Workplace (Prevention, Prohibition and Redressal) Act 2013

Sexual Harassments Act

The Sexual Harassment of Women at Workplace

(Prevention, Prohibition and Redressal) Act, 2013

Act No. 14/2013, President Assent: 22 Apr 2013

Effective: 09 Dec 2013

 

धारा 1: संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ

(1) इस अधिनियम का नाम कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, प्रतिषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 है।

(2) यह अधिनियम पूरे भारत में लागू होता है।

(3) यह उस तारीख से लागू होगा, जिसे केंद्र सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा घोषित करेगी। (यह अधिनियम
9 दिसंबर 2013 से लागू हुआ।)

धारा 2 – परिभाषाएँ

इस अधिनियम में, जब तक संदर्भ कुछ और न कहे, तब तक:

(a) “पीड़ित महिला” (Aggrieved Woman) का अर्थ है —

  1. कार्यस्थल के संबंध में — कोई भी महिला, चाहे उसकी उम्र कुछ भी हो और वह नियोजित हो या नहीं, जो यह आरोप लगाए कि उस पर प्रतिवादी (respondent) द्वारा यौन उत्पीड़न किया गया है।
  2. घर या निवास स्थान के संबंध में — कोई भी महिला जो उस घर में काम करती हो।

(b) “उपयुक्त सरकार” (Appropriate Government) का अर्थ है —

  1. ऐसे कार्यस्थल के संबंध में, जो पूरी तरह या आंशिक रूप से निम्नलिखित में से किसी के द्वारा स्थापित, स्वामित्व वाला, नियंत्रित या वित्तपोषित हो:
    (A) केंद्र सरकार या केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा — केंद्र सरकार।
    (B) राज्य सरकार द्वारा — राज्य सरकार।
  2. ऐसे कार्यस्थलों के लिए जो उपरोक्त में शामिल नहीं हैं — राज्य सरकार।

(c) “अध्यक्ष” (Chairperson): स्थानीय शिकायत समिति (Local Complaints Committee) के अध्यक्ष, जिसकी नामित धारा 7(1) के तहत होती है।

(d) “जिला अधिकारी” (District Officer): वह अधिकारी जिसे धारा 5 के तहत अधिसूचित किया गया हो।

(e) “घरेलू कामगार” (Domestic Worker): वह महिला जो किसी घर में घरेलू कार्य करने के लिए, चाहे नकद में या वस्तु में भुगतान के लिए, सीधे या एजेंसी के माध्यम से, अस्थायी, स्थायी, अंशकालिक या पूर्णकालिक आधार पर काम करती हो; लेकिन नियोक्ता के परिवार की सदस्य नहीं होनी चाहिए।

(f) “कर्मचारी” (Employee): वह व्यक्ति जो कार्यस्थल पर किसी भी तरह का काम करता हो — नियमित, अस्थायी, दैनिक वेतन, अनुबंध पर, एजेंट के माध्यम से, स्वेच्छा से, या बिना वेतन के, चाहे कार्य की शर्तें स्पष्ट हों या न हों। इसमें सहकर्मी, अनुबंध कर्मचारी, प्रशिक्षु, शिक्षु आदि भी शामिल हैं।

(g) “नियोक्ता” (Employer):

  1. किसी भी सरकारी विभाग, संगठन, संस्था, कार्यालय आदि के संबंध में — उस इकाई का प्रमुख या सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी।
  2. अन्य कार्यस्थलों के लिए — जो व्यक्ति workplace के प्रबंधन, देखरेख और नियंत्रण के लिए उत्तरदायी हो।
    स्पष्टीकरण:प्रबंधन” में नीतियाँ बनाने और लागू करने वाले व्यक्ति, बोर्ड या समिति शामिल हैं।
  3. अनुबंध कर्मचारियों के संबंध में — वह व्यक्ति जो उनके साथ अनुबंध करता है।
  4. घर या निवास स्थान में — वह व्यक्ति या परिवार जो घरेलू कामगार को काम पर रखता है, चाहे संख्या, समय या कार्य का प्रकार कुछ भी हो।

(h) “आंतरिक समिति” (Internal Committee): जिसे धारा 4 के तहत गठित किया गया हो।

(i) “स्थानीय समिति” (Local Committee): जिसे धारा 6 के तहत गठित किया गया हो।

(j) “सदस्य” (Member): आंतरिक समिति या स्थानीय समिति का कोई भी सदस्य।

(k) “निर्धारित” (Prescribed): इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों द्वारा निर्धारित।

(l) “अध्यक्ष अधिकारी” (Presiding Officer): आंतरिक समिति की प्रमुख महिला सदस्य, जिसे धारा 4(2) के तहत नामित किया गया हो।

(m) “प्रतिवादी” (Respondent): वह व्यक्ति जिसके विरुद्ध पीड़ित महिला ने धारा 9 के अंतर्गत शिकायत दर्ज की हो।

(n) “यौन उत्पीड़न” (Sexual Harassment): निम्नलिखित में से एक या अधिक अवांछित (unwelcome) कृत्य या व्यवहार, चाहे सीधे तौर पर हो या संकेत में:

  1. शारीरिक संपर्क या शारीरिक रूप से पास आना
  2. यौन संबंध की माँग या अनुरोध करना
  3. यौन रंग की टिप्पणी करना
  4. अश्लील चित्र या वीडियो दिखाना
  5. कोई अन्य शारीरिक, मौखिक या इशारे में यौन प्रकृति का अवांछित व्यवहार

(o)कार्यस्थल” (Workplace) में शामिल हैं —

  1. कोई भी सरकारी विभाग, संगठन, संस्था आदि जो सरकार या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा स्थापित या वित्तपोषित हो
  2. कोई भी निजी संस्था, कंपनी, NGO, स्कूल, अस्पताल आदि
  3. अस्पताल या नर्सिंग होम
  4. खेल संस्थान, स्टेडियम या प्रतियोगिता स्थल (रिहायशी हो या नहीं)
  5. ऐसा कोई स्थान जहां कर्मचारी को काम के दौरान जाना पड़े, जैसे यात्रा या ट्रांसपोर्ट
  6. घर या निवास स्थान

(p) “असंगठित क्षेत्र” (Unorganised Sector): ऐसा कार्यस्थल जो किसी व्यक्ति या स्वयं-रोजगार करने वाले द्वारा चलाया जाता हो, जिसमें 10 से कम कर्मचारी हों, और जो वस्तु/सेवा का निर्माण या बिक्री करता हो।

धारा 3 – यौन उत्पीड़न की रोकथाम

(1) किसी भी महिला को किसी भी कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न का शिकार नहीं बनाया जाएगा।

(2) यदि कोई निम्नलिखित परिस्थितियाँ किसी यौन उत्पीड़न के कार्य या व्यवहार से जुड़ी हों, या उसके कारण उत्पन्न हों, तो वे यौन उत्पीड़न मानी जा सकती हैं:

(i) उसकी नौकरी में उसे विशेष लाभ देने का सीधा या संकेत के रूप में वादा किया जाना।
(ii) उसकी नौकरी में नुकसान पहुँचाने की सीधी या संकेत रूप में धमकी देना।
(iii) उसकी वर्तमान या भविष्य की नौकरी की स्थिति को लेकर सीधी या संकेत रूप में धमकी देना।
(iv) उसके काम में बाधा डालना या उसके लिए डरावना, अपमानजनक या शत्रुतापूर्ण कार्य वातावरण बनाना।
(v) ऐसा अपमानजनक व्यवहार करना जो उसके स्वास्थ्य या सुरक्षा को प्रभावित कर सकता हो।

धारा 4 – आंतरिक शिकायत समिति (Internal Complaint Committee) का गठन

(1) हर कार्यस्थल का नियोक्ता लिखित आदेश द्वारा एक समिति गठित करेगा, जिसे “आंतरिक शिकायत समिति” (Internal Complaints Committee) कहा जाएगा। यह भी आवश्यक है कि यदि कार्यस्थल के कार्यालय या प्रशासनिक इकाइयाँ अलग-अलग स्थानों पर, या डिवीजनल / सब-डिवीजनल स्तर पर स्थित हैं, तो हर प्रशासनिक इकाई या कार्यालय में अलग-अलग आंतरिक समिति गठित की जाएगी।

(2) आंतरिक समिति में निम्नलिखित सदस्य होंगे, जिन्हें नियोक्ता नामित करेगा:

(a) एक अध्यक्ष (Presiding Officer) — जो उस कार्यस्थल पर कार्यरत किसी वरिष्ठ महिला कर्मचारी को बनाया जाएगा।
यह शर्त भी है कि यदि उस कार्यस्थल पर कोई वरिष्ठ महिला उपलब्ध नहीं है, तो अध्यक्ष को किसी अन्य कार्यालय या प्रशासनिक इकाई से नामित किया जाएगा, जैसा उप-धारा (1) में उल्लेख किया गया है।
और यदि वहां भी वरिष्ठ महिला कर्मचारी उपलब्ध नहीं है, तो अध्यक्ष को उसी नियोक्ता के किसी अन्य कार्यस्थल या विभाग/संगठन से नामित किया जाएगा।

(b) कम से कम दो सदस्य (Members) — जो कर्मचारियों में से हों, और जो महिलाओं के हितों के प्रति समर्पित हों, या सामाजिक कार्य का अनुभव रखते हों, या विधिक जानकारी रखते हों।

(c) एक बाहरी सदस्य — जो किसी गैर-सरकारी संगठन (NGO) या संस्था से हो, जो महिलाओं के हितों से जुड़ी हो, या ऐसा व्यक्ति जो यौन उत्पीड़न के मामलों से परिचित हो।

यह अनिवार्य है कि समिति के कुल सदस्यों में कम-से-कम आधे सदस्य महिलाएं हों।

(3) अध्यक्ष और सभी सदस्य नामांकन की तिथि से अधिकतम तीन वर्षों तक पद पर रहेंगे, और यह अवधि नियोक्ता द्वारा निर्धारित की जाएगी।

(4) जो सदस्य गैर-सरकारी संगठन या संस्था से नामित होता है, उसे कार्यवाही में भाग लेने के लिए नियोक्ता द्वारा निर्धारित शुल्क या भत्ता दिया जाएगा।

(5) यदि समिति का अध्यक्ष या कोई सदस्य —

(a) धारा 16 का उल्लंघन करता है;  या
(b) किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है, या उसके खिलाफ कोई आपराधिक जांच चल रही है; या
(c) किसी अनुशासनात्मक प्रक्रिया में दोषी पाया गया है या ऐसी प्रक्रिया चल रही है; या
(d) उसने अपने पद का ऐसा दुरुपयोग किया है जिससे उसका पद पर बने रहना जनहित के विरुद्ध हो जाए —

तो ऐसे अध्यक्ष या सदस्य को समिति से हटा दिया जाएगा, और उस रिक्त पद के लिए इस धारा के प्रावधानों के अनुसार नया नामांकन किया जाएगा।

धारा 5 – जिला अधिकारी की अधिसूचना

उचित सरकार (Appropriate Government) किसी जिले के लिए इस अधिनियम के अंतर्गत अधिकारों के प्रयोग या कर्तव्यों के निर्वहन हेतु जिला मजिस्ट्रेट (District Magistrate), अपर जिला मजिस्ट्रेट (Additional District Magistrate), कलेक्टर (Collector) या उप कलेक्टर (Deputy Collector) को “जिला अधिकारी” (District Officer) के रूप में अधिसूचित कर सकती है।

धारा 6 – स्थानीय समिति (Local Committee) का गठन और क्षेत्राधिकार

(1) हर जिले में, जिला अधिकारी उस जिले के लिए एक समिति का गठन करेगा, जिसे “स्थानीय समिति” (Local Committee) कहा जाएगा।

इसका उद्देश्य उन संस्थानों से यौन उत्पीड़न की शिकायतें प्राप्त करना है जहाँ या तो कर्मचारियों की संख्या दस से कम है, इसलिए आंतरिक समिति (Internal Committee) गठित नहीं की गई है, या शिकायत स्वयं नियोक्ता (employer) के खिलाफ की गई है।

(2) जिला अधिकारी को यह भी करना होगा कि हर: ग्रामीण या आदिवासी क्षेत्र में हर ब्लॉक, तालुका और तहसील में, और शहरी क्षेत्र में हर वार्ड या नगरपालिका में एक नोडल अधिकारी (Nodal Officer) को नामित करे, जो शिकायतें प्राप्त करेगा और उन्हें संबंधित स्थानीय समिति को सात दिनों के भीतर भेजेगा।

(3) संबंधित स्थानीय समिति का अधिकार क्षेत्र (jurisdiction) उस जिले के उन सभी क्षेत्रों तक होगा, जहाँ उसे गठित किया गया है।

धारा 7 – स्थानीय समिति की संरचना, कार्यकाल और अन्य शर्तें

(1) स्थानीय समिति (Local Committee) में निम्नलिखित सदस्य होंगे, जिन्हें जिला अधिकारी द्वारा नामित किया जाएगा:-

(a) एक अध्यक्ष (Chairperson) — जिसे महिलाओं के हितों से जुड़े सामाजिक कार्य में प्रतिष्ठित और समर्पित महिला में से नामित किया जाएगा।

(b) एक सदस्य — जिसे जिले के किसी ब्लॉक, तालुका, तहसील, वार्ड या नगरपालिका में कार्यरत महिलाओं में से नामित किया जाएगा।

(c) दो सदस्य — जिनमें से कम से कम एक महिला होना अनिवार्य है। ये सदस्य ऐसे गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) या संस्थाओं से होंगे जो महिलाओं के हितों से जुड़े हों या यौन उत्पीड़न के मुद्दों से परिचित व्यक्ति हों।
प्रथम प्रावधान: इनमें से कम से कम एक को अधिवक्ता पृष्ठभूमि या विधिक ज्ञान होना वांछनीय है।
द्वितीय प्रावधान: इनमें से कम से कम एक महिला अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) या केंद्र सरकार द्वारा समय-समय पर अधिसूचित अल्पसंख्यक समुदाय से होनी चाहिए।

(d) जिला स्तर पर सामाजिक कल्याण या महिला एवं बाल विकास विभाग से संबंधित अधिकारी स्वतः पदेन सदस्य (ex officio member) होंगे।

(2) अध्यक्ष और सभी सदस्य नियुक्ति की तिथि से अधिकतम तीन वर्षों तक पद पर रहेंगे, और यह अवधि जिला अधिकारी द्वारा निर्धारित की जाएगी।
(3) यदि अध्यक्ष या कोई सदस्य :-
(a) धारा 16 का उल्लंघन करता है;
(b) किसी अपराध में दोषी ठहराया गया है या उसके विरुद्ध कोई आपराधिक जांच लंबित है;
(c) किसी अनुशासनात्मक प्रक्रिया में दोषी पाया गया है या ऐसी प्रक्रिया लंबित है;
(d) अपने पद का दुरुपयोग इस हद तक करता है कि उसका पद पर बने रहना जनहित के विपरीत हो —
तो ऐसे अध्यक्ष या सदस्य को समिति से हटा दिया जाएगा, और इस तरह खाली हुए पद को इस धारा के अनुसार नए नामांकन से भरा जाएगा।

(4) स्थानीय समिति के अध्यक्ष या सदस्य, जो उप-धारा (1) के खण्ड (b) और (d) के अंतर्गत नामित नहीं हैं, उन्हें बैठकें करने के लिए निर्धारित शुल्क या भत्ता मिलेगा, जैसा कि नियमों द्वारा तय किया जाएगा।

धारा 8 – अनुदान और लेखा परीक्षण

(1) केंद्र सरकार, संसद द्वारा इस उद्देश्य के लिए विधि द्वारा की गई यथोचित विनियोजन के बाद, राज्य सरकार को वह राशि अनुदान के रूप में दे सकती है जो वह उपयुक्त समझे, ताकि धारा 7 की उप-धारा (4) में उल्लिखित शुल्क या भत्तों के भुगतान हेतु उसका उपयोग किया जा सके।

(2) राज्य सरकार किसी एक एजेंसी की स्थापना कर सकती है और उप-धारा (1) के तहत प्राप्त अनुदान को उस एजेंसी को हस्तांतरित कर सकती है।

(3) वह एजेंसी जिला अधिकारी को वह राशि प्रदान करेगी जो धारा 7 की उप-धारा (4) में उल्लिखित शुल्क या भत्तों के भुगतान के लिए आवश्यक हो।

(4) उप-धारा (2) में उल्लिखित एजेंसी के खातों को उस प्रकार से संरक्षित और लेखा-परीक्षित (audited) किया जाएगा जैसा कि राज्य के महालेखाकार (Accountant General) से परामर्श करके निर्धारित किया जाए, और उस एजेंसी के खातों का प्रभार रखने वाला व्यक्ति राज्य सरकार को, निर्धारित तिथि से पहले, अपने ऑडिट किए हुए खातों की प्रति एवं लेखा परीक्षक की रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।

धारा 9 – यौन उत्पीड़न की शिकायत

(1) कोई भी पीड़ित महिला कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न की शिकायत लिखित रूप में आंतरिक समिति (Internal Committee) को कर सकती है, यदि वह गठित है; और यदि नहीं है, तो स्थानीय समिति (Local Committee) को कर सकती है। यह शिकायत घटना की तिथि से तीन महीने के भीतर की जानी चाहिए। यदि घटनाएँ कई बार हुई हों, तो अंतिम घटना की तिथि से तीन महीने के भीतर शिकायत की जानी चाहिए।
प्रथम प्रावधान: यदि शिकायत लिखित रूप में करना संभव न हो, तो आंतरिक समिति की अध्यक्ष या कोई भी सदस्य, या स्थानीय समिति की अध्यक्ष या कोई सदस्य, उस महिला को शिकायत लिखवाने में हर संभव सहायता प्रदान करेगा।
द्वितीय प्रावधान: यदि आंतरिक समिति या स्थानीय समिति यह पाती है कि महिला द्वारा निर्धारित समय में शिकायत न कर पाने के पर्याप्त कारण हैं, और उन्हें लिखित रूप में दर्ज करती है, तो वह अधिकतम तीन महीने तक समय सीमा बढ़ा सकती है।

(2) यदि पीड़ित महिला शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम है, या उसकी मृत्यु हो गई है, या किसी अन्य कारण से शिकायत करने में असमर्थ है, तो उसकी ओर से उसका कानूनी उत्तराधिकारी (legal heir) या ऐसा अन्य व्यक्ति, जैसा कि नियमों में बताया गया है, इस धारा के अंतर्गत शिकायत कर सकता है।

धारा 10 – सुलह

(1) आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, जैसा भी मामला हो, धारा 11 के अंतर्गत जांच शुरू करने से पहले, यदि पीड़ित महिला अनुरोध करे, तो वह उस महिला और प्रतिवादी (जिस पर आरोप है) के बीच सुलह (समझौता) के लिए कदम उठा सकती है।
प्रावधान: सुलह का आधार कभी भी पैसे से संबंधित समझौता नहीं हो सकता।

(2) यदि उप-धारा (1) के तहत सुलह हो जाती है, तो आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, जैसा भी मामला हो, उस सुलह को लिखित रूप में दर्ज करेगी और उसे नियोजक (employer) या जिला अधिकारी को भेजेगी ताकि वे सिफारिशों के अनुसार आवश्यक कार्यवाही करें।

(3) आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, जैसा भी मामला हो, उप-धारा (2) के अंतर्गत दर्ज सुलह की प्रतियां पीड़ित महिला और प्रतिवादी दोनों को उपलब्ध कराएगी।

(4) यदि उप-धारा (1) के तहत सुलह हो जाती है, तो फिर आंतरिक समिति या स्थानीय समिति कोई भी आगे जांच नहीं करेगी।

धारा 11 – शिकायत की जांच

(1) धारा 10 के प्रावधानों के अधीन, यदि प्रतिवादी (जिस पर आरोप है) कोई कर्मचारी है, तो आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, जैसा भी मामला हो, उस कर्मचारी पर लागू सेवा नियमों के अनुसार शिकायत की जांच करेगी।
यदि ऐसे कोई सेवा नियम मौजूद नहीं हैं, तो जांच नियमों के अनुसार की जाएगी। और यदि घरेलू कामगार (Domestic Worker) का मामला हो, और प्रथम दृष्टया मामला बनता है, तो स्थानीय समिति शिकायत को 7 दिनों के भीतर पुलिस को भेजेगी, ताकि भारतीय दंड संहिता की धारा 509 या कोई अन्य लागू धारा के अंतर्गत मामला दर्ज किया जा सके।

प्रथम प्रावधान: यदि पीड़ित महिला यह सूचित करती है कि धारा 10 की उप-धारा (2) के अंतर्गत हुए समझौते की किसी शर्त का पालन प्रतिवादी ने नहीं किया है, तो समिति शिकायत की जांच फिर से शुरू करेगी या उसे पुलिस को भेजेगी।

द्वितीय प्रावधान: यदि दोनों पक्ष कर्मचारी हैं, तो जांच के दौरान दोनों को सुनने का मौका दिया जाएगा, और जांच की रिपोर्ट की एक प्रति दोनों पक्षों को दी जाएगी, ताकि वे रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया (representation) दे सकें।

(2) भारतीय दंड संहिता की धारा 509 में कुछ भी होने के बावजूद, यदि प्रतिवादी को दोषी ठहराया जाता है, तो न्यायालय पीड़ित महिला को उचित मुआवजा देने का आदेश दे सकता है, जैसा वह धारा 15 के अनुसार उपयुक्त समझे।

(3) उप-धारा (1) के अंतर्गत जांच करने के लिए, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति को दीवानी न्यायालय (Civil Court) जैसी शक्तियाँ होंगी, जैसे कि –

(a) किसी व्यक्ति को समन जारी करना, बुलाना और शपथ पर बयान लेना।
(b) दस्तावेजों की जांच और प्रस्तुति की मांग करना
(c) कोई अन्य विषय, जो नियमों द्वारा निर्धारित किया जा सके।

(4) उप-धारा (1) के तहत जांच 90 दिनों के भीतर पूरी करनी होगी।

धारा 12 – जांच के लंबित रहने के दौरान कार्रवाई

(1) जब जांच प्रक्रिया चल रही हो, तब यदि पीड़ित महिला लिखित अनुरोध करती है, तो आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, जैसा भी मामला हो, नियोक्ता को निम्नलिखित में से कोई भी कार्रवाई करने की सिफारिश कर सकती है:

(a) पीड़ित महिला या प्रतिवादी (जिस पर आरोप है) को किसी अन्य कार्यस्थल पर स्थानांतरित किया जाए;
(b) पीड़ित महिला को तीन महीने तक अवकाश (leave) दिया जाए;
(c) पीड़ित महिला को ऐसी अन्य राहत दी जाए जैसा कि नियमों में निर्धारित किया गया हो।

(2) इस धारा के तहत जो अवकाश पीड़ित महिला को दिया जाएगा, वह उसके पहले से निर्धारित अवकाश के अतिरिक्त (in addition) होगा।

(3) आंतरिक समिति या स्थानीय समिति द्वारा उप-धारा (1) के अंतर्गत की गई सिफारिशों पर नियोक्ता को अनिवार्य रूप से अमल करना होगा, और उस अमल की रिपोर्ट समिति को भेजनी होगी।

धारा 13 – जांच रिपोर्ट

(1) जब इस अधिनियम के तहत जांच पूरी हो जाती है, तब आंतरिक समिति या स्थानीय समिति (जैसा भी मामला हो) अपनी जांच की रिपोर्ट नियोक्ता या ज़िलाधिकारी (जैसा भी मामला हो) को जांच पूरी होने की तारीख से 10 दिनों के अंदर देगी और यह रिपोर्ट दोनों संबंधित पक्षों को उपलब्ध कराई जाएगी।

(2) यदि आंतरिक समिति या स्थानीय समिति (जैसा भी मामला हो) यह निष्कर्ष निकालती है कि प्रतिवादी (जिस पर आरोप है) के खिलाफ आरोप सिद्ध नहीं हुआ है, तो वह नियोक्ता और ज़िलाधिकारी को सिफारिश करेगी कि इस मामले में कोई कार्रवाई करने की ज़रूरत नहीं है।

(3) यदि आंतरिक समिति या स्थानीय समिति (जैसा भी मामला हो) यह निष्कर्ष निकालती है कि प्रतिवादी पर आरोप सिद्ध हो गया है, तो वह नियोक्ता या ज़िलाधिकारी (जैसा भी मामला हो) को निम्नलिखित सिफारिश करेगी:

(i) प्रतिवादी के खिलाफ सेवा नियमों के अनुसार अनुचित व्यवहार (misconduct) के रूप में कार्रवाई की जाए, और यदि कोई सेवा नियम नहीं हैं, तो निर्धारित तरीके से कार्रवाई की जाए।

(ii) प्रतिवादी की तनख्वाह या मजदूरी में से ऐसी राशि काटी जाए जो पीड़ित महिला या उसके कानूनी उत्तराधिकारियों को दी जा सके, जैसा कि धारा 15 के अनुसार तय किया गया हो। यह सिफारिश सेवा नियमों में कुछ भी विपरीत हो, फिर भी लागू होगी।

बशर्ते यदि नियोक्ता प्रतिवादी की तनख्वाह से वह राशि काटने में असमर्थ हो क्योंकि वह ड्यूटी पर मौजूद नहीं है या उसकी नौकरी खत्म हो गई है, तो प्रतिवादी को निर्देश दिया जा सकता है कि वह वह राशि पीड़िता को स्वयं दे

बशर्ते यदि प्रतिवादी वह राशि देने में विफल हो जाए, तो आंतरिक समिति या स्थानीय समिति (जैसा मामला हो) उस राशि की वसूली के लिए आदेश ज़िलाधिकारी को भेज सकती है, और इसे भू-राजस्व (land revenue) के बकाया के रूप में वसूला जाएगा।

(4) नियोक्ता या ज़िलाधिकारी को समिति की सिफारिश मिलने के 60 दिनों के अंदर उस पर कार्रवाई करनी होगी

 

धारा 14: झूठी या दुर्भावनापूर्ण शिकायत और झूठे साक्ष्य के लिए सजा

(1) जब आंतरिक समिति या स्थानीय समिति (जो भी लागू हो) यह निष्कर्ष निकालती है कि प्रतिवादी (जिसके ऊपर आरोप है) के खिलाफ लगाया गया आरोप दुर्भावनापूर्ण (जानबूझकर गलत) है या पीड़ित महिला या अन्य कोई व्यक्ति जिसने शिकायत की है उसने शिकायत जानते हुए झूठी की है या उसने कोई नकली या गुमराह करने वाला दस्तावेज़ दिया है, तब समिति नियोक्ता या जिला अधिकारी (जो भी लागू हो) को यह सिफारिश कर सकती है कि उस महिला या व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई की जाए जिसने शिकायत की है (धारा 9 की उपधारा (1) या (2) के अंतर्गत), उस सेवा नियम के अनुसार जो उस पर लागू होता है, और यदि कोई सेवा नियम नहीं है, तो जैसा नियमों में बताया गया हो वैसा किया जाए।

शर्त यह है कि: सिर्फ इसलिए कि शिकायत को साबित नहीं किया जा सका या पर्याप्त सबूत नहीं दिए जा सके, इसका मतलब यह नहीं कि शिकायतकर्ता के खिलाफ इस धारा के अंतर्गत कार्रवाई की जाए।

दूसरी शर्त यह है कि: शिकायतकर्ता की दुर्भावनापूर्ण मंशा पहले जांच के द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार सिद्ध की जानी चाहिए, तभी कोई कार्रवाई की सिफारिश की जा सकती है।

(2) जब आंतरिक समिति या स्थानीय समिति (जो भी लागू हो) यह निष्कर्ष निकालती है कि जांच के दौरान किसी गवाह ने झूठा साक्ष्य दिया या कोई नकली या गुमराह करने वाला दस्तावेज़ पेश किया, तो समिति उस गवाह के नियोक्ता या जिला अधिकारी (जो भी लागू हो) को यह सिफारिश कर सकती है कि उस गवाह के खिलाफ उसके ऊपर लागू सेवा नियमों के अनुसार कार्रवाई की जाए, और यदि कोई सेवा नियम नहीं है, तो नियमों में बताए अनुसार कार्रवाई की जाए।

धारा 15 – क्षतिपूर्ति का निर्धारण

जिस भी मामले में आंतरिक समिति या स्थानीय समिति को पीड़ित महिला को धारा 13 की उप-धारा (3) की क्लॉज (ii) के तहत राशि देने का निर्णय करना हो, उसमें समिति को निम्न बातों का ध्यान रखना होगा:

(a) उस महिला को हुई मानसिक पीड़ा, दर्द, कष्ट और भावनात्मक तनाव;

(b) यौन उत्पीड़न की घटना के कारण उसके करियर के अवसरों का नुकसान;

(c) पीड़ित द्वारा किए गए मेडिकल खर्चे, चाहे वो शारीरिक इलाज के हों या मानसिक (साइकेट्रिक) इलाज के;

(d) प्रतिवादी (आरोपी) की आय और उसकी आर्थिक स्थिति;

(e) यह देखा जाए कि पूरी राशि एक साथ दी जा सकती है या किस्तों में देना ज़्यादा सही होगा।

 

धारा 16 – शिकायत और जांच की जानकारी को प्रकाशित करने या सार्वजनिक करने पर रोक

  • भले ही सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 (22 का 2005) में कुछ भी कहा गया हो, लेकिन इस अधिनियम के तहत धारा 9 के अंतर्गत की गई शिकायत की सामग्री, पीड़ित महिला, प्रतिवादी (जिस पर आरोप है), और गवाहों की पहचान और पता, सुलह और जांच प्रक्रिया से जुड़ी कोई भी जानकारी, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति (जैसा मामला हो) की सिफारिशें, और नियोक्ता या ज़िलाधिकारी द्वारा इस अधिनियम के अंतर्गत की गई कार्रवाई — इन सभी बातों को प्रकाशित नहीं किया जाएगा, न ही संप्रेषित किया जाएगा, और न ही किसी भी रूप में जनता, प्रेस या मीडिया को बताया जाएगा।
  • बशर्ते कि इस अधिनियम के तहत किसी यौन उत्पीड़न की शिकार पीड़िता को मिले न्याय के बारे में जानकारी दी जा सकती है लेकिन पीड़िता और गवाहों का नाम, पता, पहचान या कोई भी ऐसा विवरण जिससे उनकी पहचान हो सके – वह नहीं बताया जाएगा।

धारा 17 – शिकायत और जांच की जानकारी को सार्वजनिक करने पर दंड

  • अगर कोई व्यक्ति, जिसे इस अधिनियम के तहत शिकायत, जांच, सिफारिशें या कार्रवाई से संबंधित काम सौंपा गया है, वह धारा 16 के नियमों का उल्लंघन करता है,
    तो उस व्यक्ति पर दंड लगाया जाएगा
  • यह दंड उस व्यक्ति पर लागू सेवा नियमों के अनुसार होगा,
    या अगर कोई सेवा नियम नहीं हैं,
    तो जैसा नियमों में निर्धारित किया गया हो, उस तरीके से दंड दिया जाएगा।

धारा 18 – अपील

(1) कोई भी व्यक्ति जो इन सिफारिशों से पीड़ित है

    • धारा 13 की उप-धारा (2) के तहत की गई सिफारिशों से,
    • या धारा 13 की उप-धारा (3) के खंड (i) या (ii) से,
    • या धारा 14 की उप-धारा (1) या (2) से,
    • या धारा 17 से,
    • या इन सिफारिशों को लागू नहीं करने से,

तो वह व्यक्ति, अपनी सेवा नियमों के अनुसार न्यायालय या अधिकरण (tribunal) में अपील कर सकता है।

    • और यदि कोई सेवा नियम लागू नहीं हैं, तो फिर, देश में लागू किसी अन्य कानून के हक को प्रभावित किए बिना, वह व्यक्ति नियमों में बताए गए तरीके से अपील कर सकता है।

(2) उप-धारा (1) के तहत की गई अपील सिफारिशों की तारीख से 90 दिनों के अंदर दायर की जानी चाहिए।

धारा 19 – नियोक्ता के कर्तव्य

हर नियोक्ता को ये करना होगा –

(a) कार्यस्थल पर एक सुरक्षित वातावरण देना होगा जिसमें कार्यस्थल पर संपर्क में आने वाले व्यक्तियों से भी सुरक्षा शामिल होगी।
(b) कार्यस्थल पर किसी स्पष्ट (प्रमुख) स्थान पर यौन उत्पीड़न के दंडात्मक परिणामों की सूचना और धारा 4 की उप-धारा (1) के तहत गठित आंतरिक समिति का आदेश प्रदर्शित करना होगा।
(c) नियमित अंतराल पर कर्मचारियों को इस अधिनियम के प्रावधानों के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए कार्यशालाएँ और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना होगा, और आंतरिक समिति के सदस्यों के लिए उन्मुखीकरण कार्यक्रम आयोजित करना होगा जैसा कि नियमों में बताया गया हो।
(d) आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, जैसा भी मामला हो, को शिकायत से निपटने और जांच करने के लिए आवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध करानी होंगी।
(e) प्रतिवादी और गवाहों की उपस्थिति सुनिश्चित कराने में सहायता करनी होगी, आंतरिक समिति या स्थानीय समिति के समक्ष।
(f) आंतरिक समिति या स्थानीय समिति को वह जानकारी उपलब्ध करानी होगी जो उन्होंने धारा 9 की उप-धारा (1) के तहत की गई शिकायत के संबंध में मांगी हो।
(g) महिला को यदि वह चाहती हो, तो भारतीय दंड संहिता (1860 की धारा 45) या उस समय लागू किसी अन्य कानून के तहत अपराध की शिकायत दर्ज कराने में सहायता करनी होगी।
(h) यदि पीड़ित महिला चाहती हो और यदि उत्पीड़न करने वाला व्यक्ति कर्मचारी न हो, तो कार्यस्थल पर जहाँ यौन उत्पीड़न की घटना हुई हो, भारतीय दंड संहिता या किसी अन्य लागू कानून के तहत उसके विरुद्ध कार्रवाई शुरू करानी होगी।
(i) यौन उत्पीड़न को सेवा नियमों के तहत दुर्व्यवहार माना जाएगा और उसके लिए कार्रवाई शुरू करनी होगी।
(j) आंतरिक समिति द्वारा रिपोर्टों की समय पर प्रस्तुति की निगरानी करनी होगी।

धारा 20 – जिला अधिकारी के कर्तव्य और अधिकार

जिला अधिकारी को यह करना होगा—
(a) स्थानीय समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट की समय पर प्रस्तुति की निगरानी करनी होगी।
(b) यौन उत्पीड़न और महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए गैर-सरकारी संगठनों को शामिल करने हेतु आवश्यक कदम उठाने होंगे।

धारा 21 – समिति द्वारा वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करना

(1) आंतरिक समिति या स्थानीय समिति, जैसा भी मामला हो, हर कैलेंडर वर्ष में, नियमानुसार निर्धारित प्रारूप और समय पर एक वार्षिक रिपोर्ट तैयार करेगी और वह रिपोर्ट नियोक्ता तथा जिला अधिकारी को सौंपेगी।
(2) जिला अधिकारी उप-धारा (1) के अंतर्गत प्राप्त वार्षिक रिपोर्टों पर एक संक्षिप्त रिपोर्ट राज्य सरकार को भेजेगा।

 

धारा 22 – नियोक्ता द्वारा वार्षिक रिपोर्ट में जानकारी शामिल करना

नियोक्ता अपनी संस्था की वार्षिक रिपोर्ट में, यदि कोई मामला दर्ज किया गया हो, तो इस अधिनियम के अंतर्गत दर्ज मामलों की संख्या और उनकी निपटान की स्थिति को शामिल करेगा।
अगर ऐसी कोई रिपोर्ट तैयार करना आवश्यक नहीं है, तो नियोक्ता इन मामलों की संख्या, यदि कोई हो, को जिला अधिकारी को सूचित करेगा।

धारा 23 – उपयुक्त सरकार द्वारा कार्यान्वयन की निगरानी और डेटा बनाए रखना

उपयुक्त सरकार इस अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी करेगी और कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के सभी मामलों में दर्ज मामलों और निपटाए गए मामलों की संख्या से संबंधित डेटा (आंकड़े) बनाए रखेगी।

धारा 24 – उपयुक्त सरकार द्वारा अधिनियम का प्रचार करने के लिए उपाय करना

उपयुक्त सरकार, उपलब्ध वित्तीय और अन्य संसाधनों के अधीन, निम्नलिखित कार्य कर सकती है:

(a) इस अधिनियम के प्रावधानों को समझाने के लिए जानकारी, शिक्षा, संवाद और प्रशिक्षण सामग्री तैयार करना और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित करना ताकि कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से सुरक्षा देने वाले इस कानून की सार्वजनिक समझ को बढ़ाया जा सके;

(b) स्थानीय समिति के सदस्यों के लिए परिचयात्मक और प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार करना।

धारा 25 – सूचना मांगने और रिकॉर्ड के निरीक्षण की शक्ति

(1) जब उपयुक्त सरकार को यह संतोष हो जाए कि जनहित में या कार्यस्थल पर महिला कर्मचारियों के हित में ऐसा करना आवश्यक है, तब वह लिखित आदेश द्वारा—

(a) किसी भी नियोक्ता या जिला अधिकारी को यौन उत्पीड़न से संबंधित ऐसी जानकारी लिखित रूप में देने के लिए कह सकती है, जैसी कि सरकार मांग सकती है;

(b) किसी अधिकारी को अधिकार दे सकती है कि वह यौन उत्पीड़न से संबंधित रिकॉर्ड और कार्यस्थल का निरीक्षण करे, और वह अधिकारी उस निरीक्षण की रिपोर्ट उस अवधि के भीतर प्रस्तुत करेगा जैसा आदेश में कहा गया हो।

(2) हर नियोक्ता और जिला अधिकारी उस निरीक्षण करने वाले अधिकारी को, जब वह मांग करे, सभी ऐसी जानकारी, रिकॉर्ड और अन्य दस्तावेज़ जो उसके पास हों और उस निरीक्षण से संबंधित हों, दिखाएगा।

धारा 26 – अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करने पर दंड

(1) जब कोई नियोक्ता निम्नलिखित कार्य करने में असफल हो जाए—

(a) धारा 4 की उप-धारा (1) के अनुसार आंतरिक समिति का गठन नहीं करता है;

(b) धारा 13, 14 और 22 के तहत आवश्यक कार्रवाई नहीं करता है;

(c) इस अधिनियम के अन्य प्रावधानों या इसके तहत बनाए गए किसी भी नियम का उल्लंघन करता है, उल्लंघन करने का प्रयास करता है, या उल्लंघन करने में मदद करता है; तो उस पर 50,000 रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।

(2) यदि कोई नियोक्ता, पहले इस अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया हो और बाद में वही अपराध दोबारा करे और फिर से दोषी ठहराया जाए, तो उस पर निम्नलिखित कार्रवाई की जा सकती है—

(i) पहली बार दोषी पाए जाने पर लगने वाले दंड से दो गुना दंड लगाया जा सकता है, बशर्ते कि वह दंड उस अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम सीमा से अधिक न हो;

बशर्ते कि यदि किसी अन्य कानून के तहत उस अपराध के लिए अधिक कठोर सजा निर्धारित हो, तो न्यायालय उस अधिक सजा को ध्यान में रखेगा;

(ii) सरकार या स्थानीय प्राधिकरण द्वारा उस नियोक्ता का लाइसेंस रद्द किया जा सकता है, या उसकी स्वीकृति/पंजीकरण को वापस लिया जा सकता है, या नवीनीकरण से मना किया जा सकता है, जैसा मामला हो।

धारा 27 – न्यायालयों द्वारा अपराधों का संज्ञान लेना

(1) कोई भी न्यायालय इस अधिनियम या इसके तहत बनाए गए किसी नियम के अंतर्गत दंडनीय किसी भी अपराध का संज्ञान (मामला स्वीकार करना) तब तक नहीं लेगा, जब तक कि—

पीड़ित महिला द्वारा, या आंतरिक समिति या स्थानीय समिति द्वारा अधिकृत किसी व्यक्ति द्वारा शिकायत दर्ज न की गई हो।

(2) इस अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय किसी भी अपराध की सुनवाई—

महानगरीय मजिस्ट्रेट या प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट से नीचे का कोई भी न्यायालय नहीं कर सकता।

(3) इस अधिनियम के तहत हर अपराध ग़ैर-संज्ञेय (non-cognizable) होगा।
(अर्थात् पुलिस बिना न्यायालय की अनुमति के FIR दर्ज नहीं कर सकती और न ही सीधे गिरफ़्तारी कर सकती है।)

धारा 28 – किसी अन्य कानून की हानि न होना

इस अधिनियम के प्रावधान, जो भी अन्य कानून वर्तमान में लागू है, उसके प्रावधानों के अतिरिक्त (in addition) होंगे,
और उसके विरुद्ध नहीं माने जाएंगे (not in derogation)।

मतलब: यह कानून किसी अन्य मौजूदा कानून को खत्म या कमज़ोर नहीं करता, बल्कि उसके साथ-साथ चलेगा।

धारा 29 – उपयुक्त सरकार की नियम बनाने की शक्ति

  • (1) केंद्र सरकार, सरकारी राजपत्र (Official Gazette) में सूचना द्वारा, इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए नियम बना सकती है।
  • (2) विशेष रूप से, और ऊपर दिए गए सामान्य अधिकारों को प्रभावित किए बिना, ये नियम निम्नलिखित विषयों के लिए बनाए जा सकते हैं:
  • (a) धारा 4 की उप-धारा (4) के तहत सदस्यों को दी जाने वाली फीस या भत्ता।
  • (b) धारा 7 की उप-धारा (1) के खंड (c) के तहत सदस्यों का नामांकन
  • (c) धारा 7 की उप-धारा (4) के तहत अध्यक्ष और सदस्यों को दी जाने वाली फीस या भत्ता।
  • (d) धारा 9 की उप-धारा (2) के तहत शिकायत कौन कर सकता है।
  • (e) धारा 11 की उप-धारा (1) के तहत जांच की विधि
  • (f) धारा 11 की उप-धारा (2) के खंड (c) के तहत जांच की शक्तियाँ।
  • (g) धारा 12 की उप-धारा (1) के खंड (c) के तहत दी जाने वाली राहत
  • (h) धारा 13 की उप-धारा (3) के खंड (i) के तहत की जाने वाली कार्रवाई का तरीका।
  • (i) धारा 14 की उप-धारा (1) और (2) के तहत कार्रवाई का तरीका।
  • (j) धारा 17 के तहत कार्रवाई का तरीका
  • (k) धारा 18 की उप-धारा (1) के तहत अपील करने की विधि।
  • (l) धारा 19 के खंड (c) के तहत कर्मचारियों के लिए कार्यशालाओं, जागरूकता कार्यक्रमों और समिति के सदस्यों के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित करने की विधि।
  • (m) धारा 21 की उप-धारा (1) के तहत वार्षिक रिपोर्ट तैयार करने का प्रारूप और समय

(3) केंद्र सरकार द्वारा इस अधिनियम के अंतर्गत बनाया गया प्रत्येक नियम, बनाए जाने के बाद यथाशीघ्र संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सामने रखा जाएगा – कुल तीस दिनों के लिए, जो एक सत्र या दो या अधिक सत्रों में हो सकता है।
बशर्ते कि यदि दोनों सदन सहमत हों कि नियम में कोई संशोधन हो या नियम ना बनाया जाए, तो वह नियम या तो संशोधित रूप में प्रभावी रहेगा या प्रभावहीन हो जाएगा।
बशर्ते कि ऐसा कोई संशोधन या रद्द करना, उस नियम के अंतर्गत पहले किए गए कार्यों को प्रभावित नहीं करेगा।

(4) धारा 8 की उप-धारा (4) के तहत राज्य सरकार द्वारा बनाया गया कोई भी नियम, बनाए जाने के बाद यथाशीघ्र राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों के सामने रखा जाएगा — यदि दो सदन हों; और यदि केवल एक सदन हो, तो उसी के सामने रखा जाएगा।

धारा 30 – कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति

(1) अगर इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने में कोई कठिनाई आती है, तो केंद्र सरकार, सरकारी राजपत्र (Official Gazette) में आदेश द्वारा, ऐसे प्रावधान बना सकती है जो इस अधिनियम के प्रावधानों से विरोधाभासी ना हों, और जो उसे उस कठिनाई को दूर करने के लिए आवश्यक लगे।
बशर्ते कि इस धारा के अंतर्गत ऐसा कोई आदेश, इस अधिनियम के लागू होने की तारीख से दो साल की अवधि समाप्त होने के बाद नहीं बनाया जाएगा।

(2) इस धारा के अंतर्गत बनाया गया हर आदेश, बनाए जाने के बाद यथाशीघ्र, संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सामने रखा जाएगा।