The Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005
महिलाओं से घरेलू हिंसा से सुरक्षा अधिनियम, 2005
President Assent : 13 Sep 2005
Effective : 26 Oct 2006
Section 1. Short title, extent and commencement.
(1) इस अधिनियम को घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम, 2005 कहा जाएगा।
(2) यह पूरे भारत में लागू होगा।
(3) यह उस तिथि से लागू होगा, जिसे केंद्रीय सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा निर्धारित करेगी। (26 अक्टूबर 2006)
धारा 2. परिभाषाएँ। (Definitions)
इस अधिनियम में, जब तक संदर्भ से अन्यथा न निकलता हो, निम्नलिखित शब्दों का अर्थ होगा:
(a) “पीड़ित व्यक्ति” (aggrieved person) का अर्थ है कोई भी महिला जो प्रतिवादी (respondent) के साथ घरेलू नातेदारी (domestic relationship) में है या रही है और जो यह दावा करती है कि उसे प्रतिवादी द्वारा घरेलू हिंसा (domestic violence) का शिकार किया गया है।
(b) “बालक” (child) का अर्थ है कोई भी व्यक्ति जो अठारह वर्ष (eighteen years) से कम उम्र का हो और इसमें गोद लिया हुआ (adopted), सौतेला (step), या पालक (foster) बच्चा भी शामिल है।
(c) “मुआवजा आदेश/ प्रतिकर आदेश” (compensation order) का अर्थ है एक आदेश जो धारा 22 (Section 22) के अनुसार दिया जाता है।
(d) “अभिरक्षा आदेश” (custody order) का अर्थ है एक आदेश जो धारा 21 (Section 21) के अनुसार दिया जाता है।
(e) “घरेलू घटना रिपोर्ट” (domestic incident report) का अर्थ है एक रिपोर्ट जो एक पीड़ित व्यक्ति द्वारा घरेलू हिंसा की शिकायत मिलने पर निर्धारित रूप (prescribed form) में बनाई जाती है।
(f) “घरेलू संबंध” (domestic relationship) का अर्थ है दो व्यक्तियों के बीच संबंध जो एक साझा घर (shared household) में रहते हैं या कभी भी साथ में रहे हैं, और वे रक्त संबंध (consanguinity), विवाह (marriage), विवाह के समान संबंध (relationship in the nature of marriage), गोद लेने (adoption) या संयुक्त परिवार (joint family) के सदस्य के रूप में एक साथ रहते हैं।
(g) “घरेलू हिंसा” (domestic violence) का वही अर्थ होगा जो उसे धारा 3 (Section 3) में दिया गया है।
(h) “दहेज” (dowry) का वही अर्थ होगा जो उसे दहेज निषेध अधिनियम, 1961 (28 of 1961) की धारा 2 (Section 2) में दिया गया है।
(i) “न्यायिक मजिस्ट्रेट” (Magistrate) का अर्थ है प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट (Judicial Magistrate of the first class), या जो भी मामला हो, मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (Metropolitan Magistrate), जो भारतीय दंड संहिता, 1973 (2 of 1974) के तहत क्षेत्राधिकार (jurisdiction) का प्रयोग करता है, जहां पीड़ित व्यक्ति अस्थायी रूप से या अन्यथा निवास (resides) करती है, या प्रतिवादी (respondent) निवास (resides) करता है या जहां घरेलू हिंसा (domestic violence) का आरोप (alleged) लगाया गया है।
(j) “चिकित्सा सुविधा” (medical facility) का अर्थ है ऐसी सुविधा जो राज्य सरकार (State Government) द्वारा इस अधिनियम के प्रयोजनों (purposes) के लिए एक चिकित्सा सुविधा के रूप में अधिसूचित (notified) की जाती है।
(k) “आर्थिक राहत” (monetary relief) का अर्थ है वह मुआवजा (compensation) जिसे मजिस्ट्रेट (Magistrate) प्रतिवादी (respondent) से पीड़ित व्यक्ति को देने का आदेश (order) दे सकता है, किसी भी समय, जब आवेदन (application) पर सुनवाई (hearing) की जा रही हो, ताकि पीड़ित व्यक्ति द्वारा घरेलू हिंसा के कारण हुए खर्चे (expenses) और हानि (loss) की भरपाई हो सके।
(l) “अधिसूचना” (notification) का अर्थ है एक अधिसूचना जो राजपत्र (Official Gazette) में प्रकाशित (published) की जाती है और “अधिसूचित” (notified) शब्द का अर्थ भी उसी प्रकार लिया जाएगा।
(m) “निर्धारित” (prescribed) का अर्थ है इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों (rules) द्वारा निर्धारित (prescribed)।
(n) “सुरक्षा अधिकारी” (Protection Officer) का अर्थ है वह अधिकारी जिसे राज्य सरकार (State Government) ने धारा 8 के उपधारा (sub-section) (1) के तहत नियुक्त (appointed) किया है।
(o) “सरंक्षण आदेश” (protection order) का अर्थ है वह आदेश (order) जो धारा 18 (Section 18) के अनुसार दिया जाता है।
(p) “निवास आदेश” (residence order) का अर्थ है वह आदेश (order) जो धारा 19 के उपधारा (sub-section) (1) के अनुसार दिया जाता है।
(q) “प्रतिवादी” (respondent) का अर्थ है कोई भी वयस्क पुरुष (adult male person) कोई व्यक्ति जो पीड़ित व्यक्ति (aggrieved person) के साथ घरेलू संबंध (domestic relationship) में है या था और जिस पर पीड़ित व्यक्ति (aggrieved person) ने इस अधिनियम (Act) के तहत किसी भी राहत (relief) की मांग (petition) की है:
बशर्ते (provided that) कि एक पीड़ित पत्नी (aggrieved wife) या विवाह के समान संबंध (relationship in the nature of marriage) में रहने वाली महिला (woman) अपने पति (husband) या पुरुष साथी (male partner) के रिश्तेदार (relative) के खिलाफ भी शिकायत (complaint) दर्ज कर सकती है।
(r) “सेवा प्रदाता” (service provider) का अर्थ है वह संस्था (entity) जो धारा 10 के उपधारा (sub-section) (1) के तहत पंजीकृत (registered) है।
(s) “साझा घर” (shared household) का अर्थ है वह घर (household) जहां पीड़ित व्यक्ति (aggrieved person) रहती है या कभी भी किसी घरेलू संबंध (domestic relationship) में रहती थी, चाहे अकेले (alone) या प्रतिवादी (respondent) के साथ, और इसमें ऐसा घर भी शामिल है चाहे वह संयुक्त रूप से (jointly) या अकेले (singly) पीड़ित व्यक्ति (aggrieved person) और प्रतिवादी (respondent) द्वारा मालिकाना (owned) हो या किराए पर लिया गया हो (tenanted), या इनमें से कोई भी किसी के द्वारा जिसके पास कोई अधिकार (right), शीर्षक (title), हित (interest) या इक्विटी (equity) हो और इसमें ऐसा घर भी शामिल है जो संयुक्त परिवार (joint family) का हो जिसमें प्रतिवादी (respondent) सदस्य (member) हो, चाहे प्रतिवादी (respondent) या पीड़ित व्यक्ति (aggrieved person) का उस घर (household) में कोई अधिकार (right), शीर्षक (title) या हित (interest) हो या न हो।
(t) “आश्रय गृह” (shelter home) का अर्थ है कोई भी आश्रय गृह (shelter home) जिसे राज्य सरकार (State Government) द्वारा इस अधिनियम (Act) के उद्देश्यों (purposes) के लिए आश्रय गृह (shelter home) के रूप में अधिसूचित (notified) किया जाता है।
धारा 3. घरेलू हिंसा की परिभाषा।
इस अधिनियम के उद्देश्य से, यदि प्रतिवादी का कोई कृत्य, चूक या आचरण निम्नलिखित करता है तो वह घरेलू हिंसा मानी जाएगी:
(a) अगर वह पीड़ित महिला की शारीरिक, मानसिक, जीवन, अंग या कल्याण (well being) को नुकसान पहुँचाता है या ऐसा करने की कोशिश करता है। इसमें शारीरिक उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न, मानसिक उत्पीड़न और आर्थिक उत्पीड़न शामिल है; या
(b) अगर वह पीड़ित महिला या उसके किसी रिश्तेदार को धमकाकर दहेज या अन्य संपत्ति की मांग करता है या उसे नुकसान पहुँचाता है; या
(c) अगर उसका कृत्य या आचरण पीड़ित महिला या उसके रिश्तेदार को धमकाता है जैसा कि (a) या (b) में बताया गया है; या
(d) अगर वह शारीरिक या मानसिक रूप से पीड़ित महिला को चोट पहुँचाता है।
व्याख्या I:
(i) “शारीरिक उत्पीड़न” का मतलब है कोई भी कृत्य जो शारीरिक दर्द, हानि, या जीवन, अंग या स्वास्थ्य को खतरे में डालता है या पीड़ित महिला के स्वास्थ्य या विकास को नुकसान पहुँचाता है, जिसमें हमला, धमकी देना और बल प्रयोग शामिल है;
(ii) “यौन उत्पीड़न” का मतलब है कोई भी यौन कृत्य जो महिला की इज्जत को नुकसान पहुँचाता है, उसे अपमानित करता है या उसकी गरिमा को ठेस पहुंचाता हो |
(iii) “मौखिक और भावनात्मक उत्पीड़न” में शामिल हैं:
- अपमान, मजाक, नाम calling, और खासकर संतान या बेटा न होने को लेकर अपमानित करना;
- शारीरिक दर्द देने की बार-बार धमकियाँ देना;
(iv) “आर्थिक उत्पीड़न” का मतलब है:
- पीड़ित महिला को उसकी आवश्यक आर्थिक या वित्तीय संसाधनों से वंचित करना, जो कि उसे किसी कानून, रिवाज, कोर्ट के आदेश, या अन्य तरीके से मिलते हैं, जैसे घरेलू सामान, बच्चों की देखभाल, स्रिजधन, संपत्ति, किराया और भरण पोषण;
- घरेलू सामान का नष्ट करना या संपत्ति, चाहे वह चल या अचल हो, बेचने या हस्तांतरित करना, जिससे पीड़ित का अधिकार होता है या जो उसे जरुरत के अनुसार चाहिए;
- पीड़ित महिला को उन संसाधनों या सुविधाओं से वंचित करना जो वह घरेलू रिश्ते के तहत उपयोग करती है;
व्याख्या II: यह तय करते वक्त कि प्रतिवादी का कृत्य “घरेलू हिंसा” के तहत आता है या नहीं, मामले के सभी तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखा जाएगा।
धारा 4. सरंक्षण अधिकारी को सूचना और सूचनादाता की जिम्मेदारी से मुक्ती।
(1) यदि किसी व्यक्ति को यह विश्वास हो कि घरेलू हिंसा का कोई कृत्य किया गया है, किया जा रहा है, या किया जाने की संभावना है, तो वह इसके बारे में संबंधित सरंक्षण अधिकारी को सूचना दे सकता है।
(2) यदि कोई व्यक्ति अच्छे इरादे से उप-धारा (1) के उद्देश्य के लिए सूचना देता है, तो उसे इसके लिए कोई भी नागरिक या आपराधिक जिम्मेदारी नहीं होगी।
धारा 5. पुलिस अधिकारियों, सरंक्षण अधिकारियों, सेवा प्रदाताओं और मजिस्ट्रेट के कर्तव्य।
(1) यदि कोई पुलिस अधिकारी, सरंक्षण अधिकारी, सेवा प्रदाता या मजिस्ट्रेट घरेलू हिंसा की शिकायत प्राप्त करता है या वह घटना स्थल पर मौजूद होता है, या जब उसे घरेलू हिंसा की घटना की सूचना दी जाती है, तो वह पीड़ित व्यक्ति को निम्नलिखित जानकारी देगा:
(a) इस अधिनियम के तहत सरंक्षण आदेश, धन सहायता आदेश, अभिरक्षा आदेश, निवास आदेश, मुआवजा आदेश या इनमें से एक या एक से अधिक आदेश प्राप्त करने के लिए आवेदन करने का अधिकार।
(b) सेवा प्रदाताओं की सेवाएं उपलब्ध हैं, इसकी जानकारी।
(c) सरंक्षण अधिकारियों की सेवाएं उपलब्ध हैं, इसकी जानकारी।
(d) 1987 के कानूनी सेवाएं प्राधिकरण अधिनियम के तहत मुफ्त कानूनी सेवाएं प्राप्त करने का अधिकार।
(e) भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के तहत शिकायत दर्ज करने का अधिकार (जहां उपयुक्त हो)।
बशर्ते कि इस अधिनियम में कोई भी प्रावधान ऐसा नहीं समझा जाएगा जिससे पुलिस अधिकारी की यह जिम्मेदारी कम हो जाए कि वह किसी संज्ञेय अपराध की सूचना मिलने पर कानून के अनुसार कार्यवाही करे।
धारा 6. आश्रय गृहों के कर्तव्य।
यदि किसी पीड़ित महिला द्वारा, या उसकी ओर से किसी सरंक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता द्वारा, किसी आश्रय गृह के प्रभारी व्यक्ति से उस महिला को आश्रय देने का अनुरोध किया जाता है, तो उस आश्रय गृह का प्रभारी व्यक्ति उस पीड़ित महिला को आश्रय गृह में आश्रय (shelter) प्रदान करेगा।
धारा 7. चिकित्सीय सुविधाओं के कर्तव्य।
यदि किसी पीड़ित महिला द्वारा, या उसकी ओर से किसी सरंक्षण अधिकारी (Protection Officer) या सेवा प्रदाता (Service Provider) द्वारा, किसी चिकित्सीय सुविधा के प्रभारी व्यक्ति से उसे कोई चिकित्सीय सहायता (medical aid) देने का अनुरोध किया जाता है, तो उस चिकित्सीय सुविधा का प्रभारी व्यक्ति उस पीड़ित महिला को चिकित्सीय सुविधा में चिकित्सीय सहायता प्रदान करेगा।
धारा 8. सरंक्षण अधिकारियों की नियुक्ति।
(1) राज्य सरकार, अधिसूचना (notification) द्वारा, प्रत्येक ज़िले में आवश्यकतानुसार जितनी संख्या में उचित समझे उतने सरंक्षण अधिकारी (Protection Officers) नियुक्त करेगी और यह भी अधिसूचित करेगी कि किस क्षेत्र या क्षेत्रों में वह सरंक्षण अधिकारी इस अधिनियम के अंतर्गत प्रदान किए गए अधिकारों का प्रयोग करेगा और कर्तव्यों का पालन करेगा।
(2) सरंक्षण अधिकारी यथासंभव महिलाएँ होंगी और उनके पास वह योग्यता (qualifications) और अनुभव (experience) होना चाहिए जो नियमों द्वारा निर्धारित किया गया हो।
(3) सरंक्षण अधिकारी और उसके अधीनस्थ अन्य अधिकारियों की सेवा की शर्तें (terms and conditions of service) ऐसी होंगी जैसी कि नियमों द्वारा निर्धारित की जाएँगी।
Section – 9 : Duties and functions of Protection Officers
(धारा 9. सरंक्षण अधिकारियों के कर्तव्य और कार्य)
(1) सरंक्षण अधिकारी का यह कर्तव्य होगा कि –
(a) मजिस्ट्रेट को इस अधिनियम के अंतर्गत अपने कार्यों के निर्वहन (discharge of functions) में सहायता करे।
(b) जब घरेलू हिंसा की कोई शिकायत प्राप्त हो, तो निर्धारित प्रपत्र और विधि के अनुसार एक घरेलू घटना रिपोर्ट (domestic incident report) मजिस्ट्रेट को दे और उसकी प्रतियाँ उस पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी को भेजे जिसके क्षेत्र में घरेलू हिंसा हुई है, तथा सेवा प्रदाताओं को भी भेजे।
(c) यदि पीड़िता ऐसा चाहती है, तो मजिस्ट्रेट के पास, निर्धारित प्रपत्र और विधि में, संरक्षण आदेश (protection order) प्राप्त करने के लिए राहत की मांग का आवेदन करे।
(d) यह सुनिश्चित करे कि पीड़िता को विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 (Legal Services Authorities Act, 1987) के तहत निःशुल्क विधिक सहायता (free legal aid) मिले और शिकायत करने का निर्धारित प्रपत्र उसे निःशुल्क मिले।
(e) उस क्षेत्र में मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत सभी सेवा प्रदाताओं (service providers) की सूची बनाए रखे, जैसे कि विधिक सहायता या परामर्शदाता, आश्रय गृह और चिकित्सा सुविधाएँ।
(f) यदि पीड़िता को आवश्यकता हो तो उसे सुरक्षित आश्रय (safe shelter home) उपलब्ध कराए और आश्रय में रखने की रिपोर्ट की प्रति पुलिस थाने और उस मजिस्ट्रेट को भेजे जिसके अधिकार क्षेत्र में आश्रय गृह आता है।
(g) यदि पीड़िता को शारीरिक चोटें लगी हों, तो उसका चिकित्सीय परीक्षण (medical examination) करवाए और चिकित्सा रिपोर्ट की प्रति संबंधित पुलिस थाने और मजिस्ट्रेट को भेजे।
(h) यह सुनिश्चित करे कि धारा 20 के अंतर्गत दिया गया वित्तीय राहत आदेश (monetary relief order), दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) में निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार पूरा किया जाए और लागू किया जाए।
(i) ऐसे अन्य कार्य भी करे जो इस अधिनियम के अंतर्गत नियमों द्वारा निर्धारित किए गए हों।
(2) सरंक्षण अधिकारी मजिस्ट्रेट के नियंत्रण और पर्यवेक्षण (control and supervision) में रहेगा और मजिस्ट्रेट तथा सरकार द्वारा इस अधिनियम के अनुसार जो कर्तव्य दिए गए हों, उन्हें निभाएगा।
धारा 10. सेवा प्रदाता (Service Providers)
(1) जिन नियमों को इस उद्देश्य से बनाया गया हो, उनके अधीन, कोई भी स्वैच्छिक संस्था (voluntary association) जो सोसायटी पंजीकरण अधिनियम, 1860, या कंपनी अधिनियम, 1956, या उस समय लागू किसी अन्य कानून के तहत पंजीकृत हो और जिसका उद्देश्य किसी भी वैध (lawful) तरीके से महिलाओं के अधिकारों और हितों की रक्षा करना हो — जैसे कि विधिक सहायता (legal aid), चिकित्सीय सहायता (medical aid), वित्तीय सहायता (financial aid) या अन्य कोई सहायता देना — वह इस अधिनियम के उद्देश्य से राज्य सरकार के पास सेवा प्रदाता के रूप में पंजीकरण (registration) करवाएगी।
(2) उपधारा (1) के अंतर्गत पंजीकृत सेवा प्रदाता को निम्नलिखित शक्तियां होंगे :-
(a) यदि पीड़ित महिला चाहे, तो घरेलू घटना रिपोर्ट (domestic incident report) निर्धारित प्रारूप में दर्ज करे और उसकी प्रति उस क्षेत्र के मजिस्ट्रेट और सरंक्षण अधिकारी को भेजे जहाँ घरेलू हिंसा हुई थी।
(b) पीड़ित महिला का चिकित्सीय परीक्षण (medical examination) करवाए और चिकित्सा रिपोर्ट की प्रति सरंक्षण अधिकारी और उस पुलिस थाने को भेजे, जिसके अधिकार क्षेत्र में घरेलू हिंसा हुई थी।
(c) यह सुनिश्चित करे कि यदि पीड़ित महिला को आवश्यकता हो, तो उसे आश्रय गृह (shelter home) में आश्रय मिले और उसे आश्रय गृह में ठहराने की रिपोर्ट उस पुलिस थाने को भेजे, जिसके अधिकार क्षेत्र में वह हिंसा हुई थी।
(3) किसी भी सेवा प्रदाता या उसके किसी सदस्य के विरुद्ध कोई भी वाद (suit), अभियोजन (prosecution) या अन्य विधिक कार्यवाही नहीं की जाएगी, यदि वह इस अधिनियम के अंतर्गत अपने कर्तव्यों का पालन या अधिकारों का प्रयोग करते हुए सद्भावना (good faith) में कार्य कर रहा हो या ऐसा करने का प्रयत्न कर रहा हो, और उसका उद्देश्य घरेलू हिंसा को रोकना (prevention of धारा
धारा 11. सरकार के कर्तव्य
केंद्र सरकार और प्रत्येक राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक उपाय करेंगी कि—
(a) इस अधिनियम के प्रावधानों का व्यापक प्रचार-प्रसार सार्वजनिक मीडिया के माध्यम से, जिसमें टेलीविज़न, रेडियो और प्रिंट मीडिया शामिल हैं, नियमित अंतराल पर किया जाए।
(b) केंद्र सरकार और राज्य सरकार के अधिकारियों को, जिनमें पुलिस अधिकारी और न्यायिक सेवाओं के सदस्य शामिल हैं, इस अधिनियम से संबंधित विषयों पर समय-समय पर संवेदनशीलता (sensitization) और जागरूकता (awareness) से संबंधित प्रशिक्षण दिया जाए।
(c) कानून, गृह मंत्रालय (जिसमें कानून और व्यवस्था), स्वास्थ्य और मानव संसाधन से संबंधित मंत्रालयों और विभागों के बीच इस अधिनियम में बताए गए घरेलू हिंसा से जुड़े मुद्दों के समाधान हेतु प्रभावी समन्वय स्थापित किया जाए और उसका समय-समय पर पुनरावलोकन (review) किया जाए।
(d) महिलाओं को इस अधिनियम के अंतर्गत दी जाने वाली सेवाओं से संबंधित मंत्रालयों, जिनमें न्यायालय भी शामिल हैं, के लिए उचित प्रोटोकॉल तैयार किए जाएं और उन्हें लागू किया जाए।
Section-12. मजिस्ट्रेट को आवेदन (Application to Magistrate)
(1) पीड़ित महिला (aggrieved person) या उसकी ओर से सरंक्षण अधिकारी (Protection Officer) या कोई अन्य व्यक्ति, इस अधिनियम के अंतर्गत एक या एक से अधिक राहत पाने के लिए मजिस्ट्रेट को आवेदन दे सकता है।
बशर्ते मजिस्ट्रेट ऐसा कोई आदेश पारित करने से पहले सरंक्षण अधिकारी या सेवा प्रदाता (service provider) से प्राप्त घरेलू हिंसा की रिपोर्ट (Domestic Incident Report) को ध्यान में रखेगा।
(2) उप-धारा (1) के तहत मांगी गई राहत में मुआवजा (compensation) या क्षतिपूर्ति (damages) के भुगतान के लिए आदेश की मांग शामिल हो सकती है, जो कि पीड़ित महिला के उस अधिकार को प्रभावित नहीं करेगा जिसके तहत वह घरेलू हिंसा के कारण हुई चोटों के लिए सिविल मुकदमा दायर कर सकती है।
बशर्ते अगर किसी अन्य न्यायालय द्वारा पीड़ित महिला के पक्ष में मुआवजा या क्षतिपूर्ति की कोई डिक्री (decree) पारित की गई है, तो मजिस्ट्रेट द्वारा इस अधिनियम के तहत दिए गए आदेश के अनुसार दिए गए या दिए जाने वाले किसी भी राशि को उस डिक्री की राशि में समायोजित (set off) कर दिया जाएगा, और उस डिक्री को केवल शेष राशि के लिए लागू (executable) माना जाएगा, चाहे दीवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 (Code of Civil Procedure, 1908) या कोई अन्य कानून कुछ भी कहे।
(3) उप-धारा (1) के तहत हर आवेदन नियत प्रारूप (prescribed form) में होगा और उसमें आवश्यक विवरण (particulars) होंगे, या जितना संभव हो उतना करीब होगा।
(4) मजिस्ट्रेट पहले सुनवाई की तारीख तय करेगा, जो सामान्यतः आवेदन की प्राप्ति की तारीख से तीन दिन से अधिक नहीं होगी।
(5) मजिस्ट्रेट हर आवेदन को, पहली सुनवाई की तारीख से साठ दिन की अवधि के भीतर निपटाने का प्रयास करेगा।
Section-13. नोटिस की सेवा (Service of Notice)
(1) धारा 12 के अंतर्गत तय की गई सुनवाई की तारीख की सूचना (notice of hearing) मजिस्ट्रेट द्वारा सरंक्षण अधिकारी (Protection Officer) को दी जाएगी। यह सरंक्षण अधिकारी उस नोटिस को नियमानुसार निर्धारित तरीकों से प्रतिवादी (respondent) और मजिस्ट्रेट द्वारा निर्देशित किसी अन्य व्यक्ति को भी सेवा (deliver) करेगा, और यह कार्य अधिकतम दो दिनों के भीतर, या मजिस्ट्रेट द्वारा अनुमति प्राप्त किसी और उपयुक्त समयावधि में किया जाएगा, जिसकी गणना नोटिस प्राप्त होने की तारीख से की जाएगी।
(2) सरंक्षण अधिकारी द्वारा नियत प्रारूप (prescribed form) में किया गया नोटिस सेवा का घोषणापत्र (declaration of service) यह प्रमाण (proof) होगा कि नोटिस प्रतिवादी और मजिस्ट्रेट द्वारा निर्देशित अन्य व्यक्ति को दिया गया था, जब तक कि इसका उल्टा सिद्ध न हो जाए।
Section-14 : परामर्श (Counselling)
(1) मजिस्ट्रेट, इस अधिनियम के अंतर्गत चल रही कार्यवाही के किसी भी चरण (stage) पर, प्रतिवादी (respondent) या पीड़ित व्यक्ति (aggrieved person) को—या तो अलग-अलग या दोनों को साथ में—परामर्श (counselling) लेने का निर्देश (direction) दे सकता है। यह परामर्श किसी ऐसे सेवा प्रदाता (service provider) के सदस्य से कराया जाएगा, जिसके पास परामर्श से संबंधित नियत (prescribed) योग्यता (qualification) और अनुभव (experience) हो।
(2) यदि मजिस्ट्रेट उपधारा (1) के तहत कोई निर्देश देता है, तो वह मामले की अगली सुनवाई की तारीख दो महीने से अधिक की अवधि नहीं रखते हुए तय करेगा।
Section-15. कल्याण विशेषज्ञ की सहायता (Assistance of welfare expert)
इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी कार्यवाही (proceeding) में, मजिस्ट्रेट अपनी जिम्मेदारियों (functions) को निभाने में सहायता (assistance) के उद्देश्य से, किसी व्यक्ति की सेवाएं (services) ले सकता है — जो व्यक्ति पीड़ित महिला (aggrieved person) से संबंधित हो या न हो, और जो परिवार कल्याण (family welfare) को बढ़ावा देने के कार्य में लगा हो — और ऐसा व्यक्ति, यदि संभव हो, तो महिला (woman) होना चाहिए।
Section-16. कार्यवाही का कैमरा (गोपनीय) में होना (Proceedings to be held in camera)
अगर मजिस्ट्रेट यह समझे कि मामले की परिस्थितियाँ (circumstances) ऐसी हैं कि गोपनीय (in camera) कार्यवाही ज़रूरी है, और अगर किसी भी पक्ष (party) की ऐसी इच्छा हो, तो वह इस अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही को कैमरा (गोपनीय) में कर सकता है।
Section 17: साझा गृह में रहने का अधिकार (Right to reside in a shared household)
(1) इस अधिनियम के अलावा, किसी भी अन्य कानून में जो भी कहा गया हो, हर महिला जो घरेलू रिश्ते (domestic relationship) में है, उसे साझा गृह (shared household) में रहने का अधिकार होगा, चाहे उसका उस गृह में कोई अधिकार, संपत्ति या लाभकारी अधिकार (right, title or beneficial interest) हो या न हो।
(2) पीड़ित महिला (aggrieved person) को साझा गृह (shared household) या उसके किसी भी हिस्से से उत्तरदाता (respondent) द्वारा तब तक निकाला या बाहर नहीं किया जा सकता जब तक कि यह प्रक्रिया कानून (procedure established by law) के अनुसार न की जाए।
Section 18 : सरंक्षण आदेश (Protection Orders)
मैजिस्ट्रेट, पीड़ित व्यक्ति (aggrieved person) और उत्तरदाता (respondent) को सुनवाई का अवसर देने के बाद और यह संतुष्ट होने पर कि घरेलू हिंसा (domestic violence) हुई है या होने वाली है, पीड़ित व्यक्ति के पक्ष में सरंक्षण आदेश (protection order) जारी कर सकते हैं और उत्तरदाता को निम्नलिखित कार्यों से रोक सकते हैं:
(a) घरेलू हिंसा का कोई भी कृत्य करने से;
(b) घरेलू हिंसा के कृत्यों में सहायता करने या उसे बढ़ावा देने से;
(c) पीड़ित व्यक्ति के कार्यस्थल (place of employment) में प्रवेश करने से, या यदि पीड़ित व्यक्ति बच्चा है, तो उसके स्कूल या अन्य किसी स्थान पर जहाँ वह नियमित रूप से जाती हो;
(d) किसी भी रूप में, जैसे व्यक्तिगत, मौखिक, लिखित, इलेक्ट्रॉनिक या टेलीफोनिक संपर्क के माध्यम से, पीड़ित व्यक्ति से संवाद करने का प्रयास करने से;
(e) किसी भी संपत्ति को हटा देने, बैंक लॉकर या बैंक खाते को संचालित करने से जो दोनों पक्षों, पीड़ित व्यक्ति और उत्तरदाता, द्वारा संयुक्त रूप से या अकेले उत्तरदाता द्वारा उपयोग की जाती हो, जिसमें उसका स्त्रीधन (stridhan) या कोई अन्य संपत्ति शामिल है, चाहे वह दोनों के द्वारा संयुक्त रूप से हो या अलग-अलग, बिना मैजिस्ट्रेट की अनुमति के;
(f) पीड़ित व्यक्ति की सहायता करने वाले आश्रितों, अन्य रिश्तेदारों या किसी भी व्यक्ति को हिंसा करने से;
(g) सुरक्षा आदेश में निर्दिष्ट किसी अन्य कार्य को करने से।
Section-19: निवास आदेश (Residence Orders)
(1) धारा 12 के उपधारा (1) के तहत आवेदन का निपटारा करते हुए, यदि मैजिस्ट्रेट यह संतुष्ट हो जाते हैं कि घरेलू हिंसा हुई है, तो वे निवास आदेश (residence order) पारित कर सकते हैं, जो निम्नलिखित में से एक या अधिक हो सकते हैं:
(a) उत्तरदाता को पीड़ित व्यक्ति को साझा आवास (shared household) से किसी भी तरीके से कब्जा छीनने या उसे परेशान करने से रोकना, चाहे उत्तरदाता के पास उस साझा आवास में कानूनी या समान अधिकार (legal or equitable interest) हो या नहीं;
(b) उत्तरदाता को साझा आवास से खुद को हटा देने का आदेश देना;
(c) उत्तरदाता या उसके किसी रिश्तेदार को उस हिस्से में प्रवेश करने से रोकना, जहाँ पीड़ित व्यक्ति निवास करती है;
(d) उत्तरदाता को साझा आवास को बेचने या किसी प्रकार से हस्तांतरित करने से रोकना;
(e) उत्तरदाता को साझा आवास में अपने अधिकारों को छोड़ने से रोकना, सिवाय इसके कि मैजिस्ट्रेट की अनुमति हो;
(f) उत्तरदाता को यह सुनिश्चित करने का आदेश देना कि पीड़ित व्यक्ति को साझा आवास में जितनी सहूलियत मिलती है, उतनी ही सहूलियत के साथ वैकल्पिक आवास (alternate accommodation) उपलब्ध कराया जाए या इसका किराया दिया जाए।
बशर्ते, धारा (b) के तहत कोई आदेश उस व्यक्ति के खिलाफ नहीं पारित किया जाएगा जो महिला हो।
(2) मैजिस्ट्रेट अतिरिक्त शर्तें लागू कर सकते हैं या कोई अन्य आदेश पारित कर सकते हैं जो वे पीड़ित व्यक्ति या उसके किसी बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित समझें।
(3) मैजिस्ट्रेट उत्तरदाता से यह सुनिश्चित करने के लिए बांड (bond) भरने का आदेश दे सकते हैं, जिसमें शर्तें हो सकती हैं, ताकि घरेलू हिंसा को रोका जा सके।
(4) उपधारा (3) के तहत पारित किया गया आदेश भारतीय दंड संहिता, 1973 की धारा 8 के तहत एक आदेश माना जाएगा और उसी तरह से निपटारा किया जाएगा।
(5) उपधारा (1), (2) या (3) के तहत आदेश पारित करते समय, न्यायालय यह आदेश भी पारित कर सकता है कि निकटतम पुलिस स्टेशन के अधिकारी को पीड़ित व्यक्ति को सुरक्षा देने या उसके लिए या उसके द्वारा किए गए आवेदन की क्रियान्वयन में सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया जाए।
(6) उपधारा (1), (2) या (3) के तहत आदेश पारित करते समय, मैजिस्ट्रेट उत्तरदाता पर किराया और अन्य भुगतानों से संबंधित जिम्मेदारियाँ भी लगा सकते हैं, जो दोनों पक्षों की वित्तीय आवश्यकताओं और संसाधनों को ध्यान में रखते हुए उचित हों।
(7) मैजिस्ट्रेट यह निर्देश भी दे सकते हैं कि जिस पुलिस स्टेशन के क्षेत्राधिकार में मैजिस्ट्रेट से आवेदन किया गया है, वह पुलिस अधिकारी संरक्षण देश के कार्यान्वयन में सहायता प्रदान करें।
(8) मैजिस्ट्रेट उत्तरदाता को यह आदेश दे सकते हैं कि वह पीड़ित व्यक्ति को उसका स्त्रीधन (stridhan) या कोई अन्य संपत्ति या मूल्यवान सुरक्षा वापस करे, जिनका वह हकदार है।
Section 20. Monetary Reliefs (धनीय अनुतोष)
(1) धारा 12 के उपधारा (1) के तहत आवेदन का निपटारा करते हुए, मैजिस्ट्रेट यह आदेश दे सकते हैं कि उत्तरदाता पीड़ित व्यक्ति और उसके किसी बच्चे को घरेलू हिंसा के परिणामस्वरूप हुए खर्च और हानि को पूरा करने के लिए मौद्रिक राहत (monetary relief) का भुगतान करें, और यह राहत निम्नलिखित में से एक या अधिक हो सकती है, लेकिन केवल इन तक सीमित नहीं है:
(a) आय का नुकसान (loss of earnings);
(b) चिकित्सा खर्च (medical expenses);
(c) उस संपत्ति का नुकसान जो पीड़ित व्यक्ति के नियंत्रण से हटा दी गई हो या नष्ट या क्षतिग्रस्त हो गई हो (loss caused due to the destruction, damage or removal of any property from the control of the aggrieved person);
(d) पीड़ित व्यक्ति और उसके बच्चों के लिए भरण-पोषण (maintenance for the aggrieved person as well as her children), जिसमें धारा 125, भारतीय दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (2 of 1974) या किसी अन्य लागू कानून के तहत या इसके अतिरिक्त भरण-पोषण का आदेश भी शामिल हो सकता है।
(2) इस धारा के तहत दी गई मौद्रिक राहत पर्याप्त, उचित और न्यायसंगत होनी चाहिए और पीड़ित व्यक्ति के जीवन स्तर के अनुरूप होनी चाहिए, जिसका वह अभ्यस्त है।
(3) मैजिस्ट्रेट के पास यह अधिकार है कि वह मामले की प्रकृति और परिस्थितियों के अनुसार एक उचित एकमुश्त भुगतान (lump sum payment) या मासिक भरण-पोषण (monthly payments of maintenance) का आदेश दें।
(4) मैजिस्ट्रेट, उपधारा (1) के तहत पारित किए गए मौद्रिक राहत के आदेश की एक प्रति संबंधित पक्षों और उस पुलिस स्टेशन के प्रभारी को भेजेंगे, जिसके क्षेत्राधिकार में उत्तरदाता निवास करता है।
(5) उत्तरदाता को उपधारा (1) के तहत पारित किए गए आदेश में निर्दिष्ट अवधि के भीतर पीड़ित व्यक्ति को मौद्रिक राहत का भुगतान करना होगा।
(6) यदि उत्तरदाता उपधारा (1) के आदेश के अनुसार भुगतान नहीं करता है, तो मैजिस्ट्रेट यह निर्देश दे सकते हैं कि उत्तरदाता के नियोक्ता या ऋणदाता, पीड़ित व्यक्ति को सीधे भुगतान करें या कोर्ट में उत्तरदाता के वेतन या कर्ज का एक हिस्सा जमा करें, जो राशि उत्तरदाता द्वारा भुगतान की जाने वाली मौद्रिक राहत में समायोजित की जा सकती है।
धारा 21 : कस्टडी आदेश (Custody Orders) : अभिरक्षा आदेश
किसी अन्य लागू कानून में जो कुछ भी प्रावधान हो, इसके बावजूद, मैजिस्ट्रेट इस अधिनियम के तहत सुरक्षा आदेश या किसी अन्य राहत के लिए आवेदन की सुनवाई के किसी भी चरण में पीड़ित व्यक्ति या उसके behalf पर आवेदन करने वाले व्यक्ति को किसी भी बच्चे या बच्चों की अस्थायी अभिरक्षा (temporary custody) दे सकते हैं और यदि आवश्यक हो, तो उत्तरदाता द्वारा उन बच्चों का दौरा करने की व्यवस्था भी निर्दिष्ट कर सकते हैं।
बशर्ते कि यदि मैजिस्ट्रेट यह मानते हैं कि उत्तरदाता द्वारा किसी भी तरह का दौरा बच्चे या बच्चों के हितों के लिए हानिकारक हो सकता है, तो मैजिस्ट्रेट उस दौरे को अनुमति नहीं देंगे।
धारा 22. मुआवजा आदेश (Compensation Orders)
इस अधिनियम के तहत अन्य किसी राहत के अतिरिक्त, यदि पीड़ित व्यक्ति द्वारा आवेदन किया जाता है, तो मैजिस्ट्रेट एक आदेश पारित कर सकते हैं, जिसमें उत्तरदाता को उस द्वारा किए गए घरेलू हिंसा के कृत्यों से उत्पन्न हुए चोटों, मानसिक यातना और भावनात्मक तनाव के लिए मुआवजा और क्षति भुगतान करने का निर्देश दिया जा सकता है।
धारा 23. अंतरिम और एकपक्षीय आदेश देने की शक्ति (Power to grant interim and ex parte orders)
(1) इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी कार्यवाही में, मैजिस्ट्रेट ऐसा कोई भी अंतरिम (interim) आदेश पारित कर सकता है जैसा वह न्यायसंगत और उचित समझे।
(2) यदि मैजिस्ट्रेट को यह संतोष हो जाए कि आवेदन में प्रथम दृष्टया (prima facie) यह दर्शाया गया है कि उत्तरदाता घरेलू हिंसा कर रहा है, कर चुका है या उसके द्वारा घरेलू हिंसा किए जाने की संभावना है, तो वह पीड़ित व्यक्ति के हलफनामे के आधार पर (जो नियमानुसार निर्धारित रूप में हो), धारा 18, धारा 19, धारा 20, धारा 21 या धारा 22 के अंतर्गत उत्तरदाता के विरुद्ध एकपक्षीय (ex-parte) आदेश पारित कर सकता है।
धारा 24. न्यायालय द्वारा आदेश की प्रतियां नि:शुल्क देना (Court to give copies of order free of cost)
जहाँ कहीं भी मैजिस्ट्रेट इस अधिनियम के अंतर्गत कोई आदेश पारित करता है, वहाँ वह यह आदेश देगा कि उस आदेश की एक प्रति निम्नलिखित को नि:शुल्क दी जाए :-
- आवेदन से संबंधित पक्षों को,
- उस पुलिस स्टेशन के प्रभारी पुलिस अधिकारी को, जिसके क्षेत्राधिकार में मैजिस्ट्रेट को आवेदन किया गया है,
- और उस क्षेत्राधिकार की सीमा में स्थित किसी भी सेवा प्रदाता (service provider) को।
यदि किसी सेवा प्रदाता ने घरेलू हिंसा की रिपोर्ट (Domestic Incident Report) दर्ज कराई है, तो उसे भी आदेश की प्रति दी जाएगी।
धारा 25. आदेशों की अवधि और परिवर्तन (Duration and alteration of orders)
(1) धारा 18 के अंतर्गत पारित सुरक्षा आदेश (protection order) तब तक प्रभावी रहेगा जब तक पीड़ित व्यक्ति (aggrieved person) उसे समाप्त करने के लिए आवेदन न करे।
(2) यदि मैजिस्ट्रेट को पीड़ित व्यक्ति या प्रतिवादी (respondent) द्वारा आवेदन प्राप्त होने पर यह संतोष होता है कि परिस्थितियों में ऐसा कोई परिवर्तन हुआ है जिससे किसी आदेश में परिवर्तन, संशोधन या रद्द करना आवश्यक हो गया है, तो वह लिखित रूप में कारण दर्ज करते हुए उपयुक्त आदेश पारित कर सकता है।
धारा 26. अन्य वादों और विधिक कार्यवाहियों में राहत (Relief in other suits and legal proceedings)
(1) धारा 18, 19, 20, 21 और 22 के अंतर्गत जो भी राहतें उपलब्ध हैं, वे पीड़ित व्यक्ति (aggrieved person) और प्रतिवादी (respondent) को प्रभावित करने वाली किसी भी विधिक कार्यवाही (legal proceeding) में, चाहे वह दीवानी न्यायालय (civil court), पारिवारिक न्यायालय (family court) या दांडिक न्यायालय (criminal court) में लंबित हो — और चाहे वह कार्यवाही इस अधिनियम के प्रारंभ होने से पहले शुरू हुई हो या बाद में — वहां भी मांगी जा सकती हैं।
(2) उप-धारा (1) में उल्लिखित राहतें, पीड़ित व्यक्ति द्वारा ऐसे दीवानी या दांडिक न्यायालय में मांगी गई अन्य राहतों के साथ-साथ और उनके अतिरिक्त भी मांगी जा सकती हैं।
(3) यदि पीड़ित व्यक्ति को इस अधिनियम के अलावा किसी अन्य कार्यवाही में कोई राहत प्राप्त हुई हो, तो वह उस राहत के दिए जाने की जानकारी मैजिस्ट्रेट को देना बाध्य होगी।
धारा 27. क्षेत्राधिकार (Jurisdiction)
(1) प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट (Judicial Magistrate of the First Class) या मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (Metropolitan Magistrate) की वह अदालत, जिसके स्थानीय क्षेत्राधिकार (local limits) में–
(a) पीड़ित व्यक्ति (aggrieved person) स्थायी या अस्थायी रूप से निवास करता है, व्यापार करता है या नौकरी करता है; या
(b) प्रतिवादी (respondent) निवास करता है, व्यापार करता है या नौकरी करता है; या
(c) कारण-कार्रवाई (cause of action) उत्पन्न हुई है,
वह न्यायालय ही इस अधिनियम के अंतर्गत संरक्षण आदेश (protection order) और अन्य आदेश पारित करने तथा इस अधिनियम के तहत अपराधों का विचारण करने के लिए सक्षम न्यायालय (competent court) होगी।
(2) इस अधिनियम के अंतर्गत पारित कोई भी आदेश पूरे भारत में लागू (enforceable) होगा।
धारा 28. प्रक्रिया (Procedure)
(1) जब तक इस अधिनियम में अन्यथा प्रावधान न किया गया हो, धारा 12, 18, 19, 20, 21, 22 और 23 के अंतर्गत सभी कार्यवाहियाँ तथा धारा 31 के अंतर्गत अपराध, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (1973 की संहिता संख्या 2) के प्रावधानों द्वारा शासित (governed) होंगे।
(2) उप-धारा (1) में कुछ भी होने के बावजूद, न्यायालय, धारा 12 या धारा 23 की उप-धारा (2) के अंतर्गत आवेदन के निपटारे (disposal) के लिए अपनी स्वयं की प्रक्रिया निर्धारित (lay down its own procedure) कर सकता है।
धारा 29. अपील (Appeal)
मैजिस्ट्रेट द्वारा पारित आदेश की प्रति पीड़ित व्यक्ति या प्रतिवादी को, जो भी बाद में हो, प्राप्त होने की तिथि से तीस दिन के भीतर सत्र न्यायालय (Court of Session) में अपील की जा सकती है।
धारा 30. सरंक्षण अधिकारी और सेवा प्रदाता के सदस्य लोक सेवक माने जाएंगे (Protection Officers and members of service providers to be public servants)
जब सरंक्षण अधिकारी (Protection Officers) और सेवा प्रदाता के सदस्य (members of service providers) इस अधिनियम या इसके अंतर्गत बनाए गए किसी भी नियम या आदेश के अनुसार कार्य कर रहे हों या ऐसा करने का प्रयास कर रहे हों, तो उन्हें भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code, 1860) की धारा 21 के अर्थ के अंतर्गत लोक सेवक (public servant) माना जाएगा। (Section 2 (28) of BNS, 2023)
धारा 31. प्रतिवादी द्वारा संरक्षण आदेश का उल्लंघन करने पर दंड (Penalty for breach of protection order by respondent)
(1) यदि प्रतिवादी (respondent) द्वारा संरक्षण आदेश (protection order) या अंतरिम संरक्षण आदेश (interim protection order) का उल्लंघन किया जाता है, तो वह इस अधिनियम के अंतर्गत एक अपराध होगा और इसके लिए—
(a) एक वर्ष तक का कारावास (imprisonment of either description),
(b) या बीस हजार रुपये तक का जुर्माना (fine),
(c) या दोनों (both) — दंड के रूप में दिए जा सकते हैं।
(2) इस धारा की उपधारा (1) के अंतर्गत जो अपराध हुआ है, उसका विचारण, यथासंभव, उसी मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाएगा, जिसने वह आदेश पारित किया था, जिसका उल्लंघन होने का आरोप लगाया गया है।
(3) जब मजिस्ट्रेट उपधारा (1) के अंतर्गत आरोप तय करता है, तो वह—
(a) भारतीय दंड संहिता, 1860 (Indian Penal Code, 1860) की धारा 498A,
(b) या उस संहिता (Code) के किसी अन्य प्रावधान,
(c) या दहेज निषेध अधिनियम, 1961 (Dowry Prohibition Act, 1961) —
के अंतर्गत भी आरोप तय कर सकता है, यदि तथ्यों से उन प्रावधानों के अंतर्गत अपराध होना स्पष्ट होता है।
धारा 32. संज्ञान और सबूत (Cognizance and proof)
(1) दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (2 of 1974) में निहित किसी भी बात के होते हुए भी, धारा 31 की उपधारा (1) के अधीन अपराध संज्ञेय (cognizable) और अजमानतीय (non-bailable) होगा।
(2) केवल पीड़ित व्यक्ति (aggrieved person) के बयान (testimony) के आधार पर ही न्यायालय यह निष्कर्ष (conclude) निकाल सकता है कि धारा 31 की उपधारा (1) के अधीन आरोपी (accused) द्वारा अपराध किया गया है।
धारा 33. संरक्षण अधिकारी द्वारा कर्तव्य का पालन न करने पर दण्ड (Penalty for not discharging duty by Protection Officer)
यदि कोई संरक्षण अधिकारी (Protection Officer) न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा संरक्षण आदेश (protection order) में निर्देशित अपने कर्तव्यों को बिना किसी उचित कारण (without any sufficient cause) के करने से विफल (fails) या इंकार (refuses) करता है, तो
उसे एक वर्ष तक की कारावास (imprisonment of either description for a term which may extend to one year) या
बीस हजार रुपये तक का जुर्माना (fine which may extend to twenty thousand rupees) या
दोनों (or with both) से दण्डित किया जा सकता है।
धारा 34. संरक्षण अधिकारी द्वारा किए गए अपराध का संज्ञान (Cognizance of offence committed by Protection Officer)
किसी संरक्षण अधिकारी (Protection Officer) के विरुद्ध कोई भी अभियोजन (prosecution) या अन्य कानूनी कार्यवाही (legal proceeding) नहीं की जाएगी जब तक कि राज्य सरकार या उसके द्वारा इस प्रयोजन के लिए अधिकृत अधिकारी की पूर्व स्वीकृति (previous sanction) के साथ शिकायत दर्ज (complaint is filed) न की गई हो।
धारा 35. सद्भावना से की गई कार्रवाई की सुरक्षा (Protection of action taken in good faith)
कोई वाद (suit), अभियोजन (prosecution) या अन्य कानूनी कार्यवाही (legal proceeding) संरक्षण अधिकारी (Protection Officer) के विरुद्ध नहीं की जाएगी, यदि इस अधिनियम या इसके अंतर्गत बनाए गए किसी नियम या आदेश के अंतर्गत सद्भावना में (in good faith) की गई या की जाने की इच्छा से की गई किसी भी कार्रवाई से कोई हानि हुई हो या होने की संभावना हो।
धारा 36. यह अधिनियम किसी अन्य कानून से हानिकारक (नुकसानदायक) नहीं होगा (Act not in derogation of any other law)
इस अधिनियम के प्रावधान उस समय लागू किसी अन्य कानून (any other law for the time being in force) के प्रावधानों के अतिरिक्त (in addition to) होंगे, और उन्हें कमज़ोर या निष्प्रभावी (not in derogation of) नहीं करेंगे।
धारा 37. केंद्रीय सरकार को नियम बनाने की शक्ति (Power of Central Government to make rules)
(1) केंद्र सरकार अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए नियम बना सकती है।
(2) विशेष रूप से, और उपर्युक्त सामान्य शक्ति को सीमित किए बिना, ऐसे नियम निम्नलिखित विषयों में से किसी एक या सभी के लिए प्रावधान कर सकते हैं:
(a) धारा 8 की उप-धारा (2) के अंतर्गत एक संरक्षण अधिकारी के पास होने वाली योग्यता और अनुभव।
(b) धारा 8 की उप-धारा (3) के अंतर्गत संरक्षण अधिकारियों और उनके अधीनस्थ अन्य अधिकारियों की सेवा की शर्तें और स्थितियाँ।
(c) धारा 9 की उप-धारा (1) के खंड (b) के अंतर्गत घरेलू हिंसा की घटना की रिपोर्ट दर्ज करने की विधि और प्रपत्र।
(d) धारा 9 की उप-धारा (1) के खंड (c) के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को संरक्षण आदेश के लिए आवेदन करने की विधि और प्रपत्र।
(e) धारा 9 की उप-धारा (1) के खंड (d) के अंतर्गत शिकायत दर्ज करने का प्रपत्र।
(f) धारा 9 की उप-धारा (1) के खंड (i) के अंतर्गत संरक्षण अधिकारी द्वारा निभाए जाने वाले अन्य कर्तव्यों का निर्धारण।
(g) धारा 10 की उप-धारा (1) के अंतर्गत सेवा प्रदाताओं का पंजीकरण नियमन करने वाले नियम।
(h) धारा 12 की उप-धारा (1) के अंतर्गत राहत प्राप्त करने के लिए आवेदन करने की विधि और धारा 12 की उप-धारा (3) के अंतर्गत आवेदन में दी जाने वाली जानकारी।
(i) धारा 13 की उप-धारा (1) के अंतर्गत नोटिसों की सेवा देने के साधन।
(j) धारा 13 की उप-धारा (2) के अंतर्गत संरक्षण अधिकारी द्वारा नोटिस सेवा की घोषणा करने का प्रपत्र।
(k) धारा 14 की उप-धारा (1) के अंतर्गत सेवा प्रदाता के सदस्य के पास परामर्श में आवश्यक योग्यता और अनुभव।
(l) धारा 23 की उप-धारा (2) के अंतर्गत पीड़ित महिला द्वारा शपथपत्र (affidavit) दाखिल करने का प्रपत्र।
(m) कोई अन्य विषय जिसे निर्धारित किया जाना है या जिसे निर्धारित किया जा सकता है।
(3) इस अधिनियम के अंतर्गत बनाया गया प्रत्येक नियम, यथाशीघ्र, संसद के दोनों सदनों के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा, जब वे सत्र में हों, कुल तीस दिनों की अवधि के लिए, जो एक सत्र या दो या अधिक क्रमिक सत्रों में हो सकती है। और यदि, उक्त सत्र या उसके बाद वाले सत्र के समाप्त होने से पहले, दोनों सदन किसी नियम में संशोधन करने पर सहमत हों या दोनों सदन सहमत हों कि वह नियम नहीं बनाया जाना चाहिए, तो ऐसा नियम तत्पश्चात केवल संशोधित रूप में ही प्रभावी होगा या प्रभावहीन हो जाएगा, जैसा मामला हो; परंतु ऐसा कोई संशोधन या निरसन उस नियम के अंतर्गत पहले किए गए कार्य की वैधता को प्रभावित नहीं करेगा।