The Transfer of Property Act, 1882
Act 4 of 1882
धारा 1 से 3 : प्रस्तावना और परिभाषाएँ – Sections 1 to 3: Preliminary and Definitions
कानून का उद्देश्य
यह अधिनियम ऐसे मामलों में संपत्ति के हस्तांतरण से संबंधित कानून को स्पष्ट करने और उसमें सुधार करने के लिए बनाया गया है जहाँ पक्षकारों द्वारा संपत्ति का हस्तांतरण होता है।
धारा 1 : संक्षिप्त नाम, प्रारंभ और विस्तार
इस अधिनियम को Transfer of Property Act, 1882 कहा जाता है।
प्रभावी तिथि: यह अधिनियम 1 जुलाई 1882 से लागू हुआ।
विस्तार: यह प्रारंभ में पूरे भारत में लागू था, परन्तु 1 नवम्बर 1956 से पहले भाग B राज्यों, बॉम्बे, पंजाब और दिल्ली जैसे क्षेत्रों पर तत्काल लागू नहीं हुआ था।
राज्य सरकारें आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इस अधिनियम को पूरी तरह या आंशिक रूप से अपने क्षेत्रों में लागू कर सकती हैं या इसकी कुछ धाराओं से किसी क्षेत्र को छूट भी दे सकती हैं।
कुछ धाराएँ जैसे धारा 54 का दूसरा अनुच्छेद, धारा 3, 59, 107 और 123 उन जिलों या क्षेत्रों में लागू नहीं होंगी जो Indian Registration Act, 1908 से बाहर रखे गए हैं।
धारा 2 : पुराने अधिनियमों की समाप्ति और अपवाद
इस अधिनियम के लागू क्षेत्र में अनुसूची में उल्लिखित कुछ पुराने कानून रद्द किए जाते हैं, लेकिन यह निम्न बातों को प्रभावित नहीं करता:
(a) कोई अन्य ऐसा कानून जो स्पष्ट रूप से रद्द नहीं किया गया हो।
(b) कोई ऐसा अनुबंध या संपत्ति की प्रकृति जो इस अधिनियम के अनुरूप हो और वर्तमान कानून द्वारा अनुमत हो।
(c) इस अधिनियम के लागू होने से पहले बनी कोई कानूनी स्थिति, अधिकार या दायित्व।
(d) इस अधिनियम की धारा 57 और अध्याय IV को छोड़कर, कोई भी ऐसा हस्तांतरण जो कानून या न्यायालय के आदेश से हुआ हो।
इसके अतिरिक्त, अधिनियम का दूसरा अध्याय मुस्लिम कानून के किसी भी नियम को प्रभावित नहीं करेगा।
धारा 3 : व्याख्या – परिभाषाएँ
“अचल संपत्ति” में खड़े पेड़, फसलें या घास शामिल नहीं हैं।
“दस्तावेज़” से अभिप्राय गैर-वसीयतनामा दस्तावेज़ है।
“प्रमाणित (attested)” का अर्थ है:
कम से कम दो गवाहों द्वारा उस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करना जिन्होंने या तो
- कर्ता को दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करते देखा हो,
- या किसी अन्य व्यक्ति को कर्ता के निर्देश पर हस्ताक्षर करते देखा हो,
- या कर्ता से उसकी हस्ताक्षर की पुष्टि प्राप्त की हो।
लेकिन यह जरूरी नहीं कि दोनों गवाह एक साथ उपस्थित हों या किसी विशेष रूप का पालन किया गया हो।
“पंजीकृत (registered)” का मतलब है किसी भी क्षेत्र में वर्तमान पंजीयन कानून के अनुसार पंजीकृत किया गया दस्तावेज़।
“पृथ्वी से संलग्न (attached to the earth)” का मतलब है:
(a) पेड़-पौधों की तरह जड़ से जुड़ा होना,
(b) दीवारों/इमारतों की तरह मिट्टी में गड़ा होना,
(c) किसी ऐसी चीज़ से जुड़ा होना जो स्थायी लाभ के लिए पहले से गड़ी हो।
“दावे योग्य दावा (actionable claim)” का अर्थ है कोई ऐसा ऋण या लाभकारी अधिकार जो
- चल संपत्ति में हो,
- दावा करने वाले के पास भौतिक या कानूनी कब्जे में न हो,
- और जिसे न्यायालय द्वारा अधिकार रूप में स्वीकार किया गया हो।
“सूचना होना” का मतलब है कि किसी व्यक्ति को
- उस तथ्य की वास्तविक जानकारी हो,
- या उसने जानबूझकर जांच से बचा,
- या अत्यधिक लापरवाही की जिससे वह जानकारी मिल सकती थी।
स्पष्टीकरण I:
अगर कोई संपत्ति का लेन-देन पंजीकरण द्वारा होना आवश्यक है और वह पंजीकृत किया गया है, तो संपत्ति खरीदने वाला व्यक्ति पंजीकरण की तिथि से उस दस्तावेज़ की जानकारी रखता माना जाएगा, यदि:
- दस्तावेज़ Indian Registration Act, 1908 के अनुसार पंजीकृत किया गया हो,
- दस्तावेज़ की प्रविष्टि धारा 51 के अनुसार की गई हो,
- लेन-देन की जानकारी धारा 55 के अनुसार सूची में सही दर्ज की गई हो।
स्पष्टीकरण II:
जो व्यक्ति किसी अचल संपत्ति को प्राप्त करता है, उसे उस व्यक्ति के अधिकार की जानकारी मानी जाएगी जो वास्तविक रूप से कब्जे में है।
स्पष्टीकरण III:
अगर किसी व्यक्ति का एजेंट, जो उसका प्रतिनिधित्व कर रहा है, कोई सूचना प्राप्त करता है, तो उसे ऐसा माना जाएगा कि वह सूचना स्वामी को भी है, जब तक कि एजेंट ने जानबूझकर धोखा न दिया हो।
अगर एजेंट ने जानबूझकर तथ्य को छिपाया हो, तो स्वामी पर वह सूचना लागू नहीं होगी, विशेषकर उस व्यक्ति के विरुद्ध जो उस धोखे में शामिल था या उसे जानता था।
धारा 4 : अनुबंध संबंधी उपबंध, अनुबंध अधिनियम का भाग माने जाएंगे
इस अधिनियम के वे अध्याय और धाराएँ जो अनुबंध से संबंधित हैं, उन्हें भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 का भाग माना जाएगा।
धारा 54 (अनुच्छेद 2 व 3), धारा 59, 107 और 123 को भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 का पूरक (supplemental) माना जाएगा।
धारा 5 : “संपत्ति का हस्तांतरण” की परिभाषा
“संपत्ति का हस्तांतरण” से तात्पर्य है किसी जीवित व्यक्ति द्वारा कोई संपत्ति, वर्तमान में या भविष्य में,
- एक या एक से अधिक अन्य जीवित व्यक्तियों को,
- स्वयं को,
- या स्वयं को और एक या अधिक अन्य व्यक्तियों को देना।
ऐसे कार्य को करना ही “संपत्ति का हस्तांतरण करना” कहलाता है।
इस धारा में “जीवित व्यक्ति” में कंपनी, संघ या व्यक्तियों का समूह (चाहे पंजीकृत हो या नहीं) भी शामिल हैं, परंतु यह किसी भी ऐसे वर्तमान कानून को प्रभावित नहीं करता जो कंपनियों, संघों या समूहों से संबंधित संपत्ति के हस्तांतरण को नियंत्रित करता हो।
धारा 6 : क्या हस्तांतरित किया जा सकता है
किसी भी प्रकार की संपत्ति का हस्तांतरण किया जा सकता है, सिवाय उन स्थितियों के जो इस अधिनियम या अन्य किसी वर्तमान कानून द्वारा निषिद्ध हों। निम्नलिखित को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता:
(a) उत्तराधिकारी बनने की संभावना, किसी संबंधी से मृत्यु पर वसीयत मिलने की संभावना, या अन्य कोई सिर्फ संभावना।
(b) शर्त भंग होने पर पुनः प्रवेश का अधिकार केवल संपत्ति के स्वामी को ही हस्तांतरित किया जा सकता है, किसी और को नहीं।
(c) कोई अधिकार-मार्ग (easement) बिना उससे जुड़ी मूल संपत्ति के हस्तांतरित नहीं किया जा सकता।
(d) ऐसी संपत्ति जिसमें स्वामी को ही व्यक्तिगत रूप से उपयोग करने का अधिकार हो, उसे वह हस्तांतरित नहीं कर सकता।
(dd) भविष्य की निर्वाह राशि का अधिकार, चाहे वह कैसे भी निश्चित या संरक्षित हो, हस्तांतरित नहीं किया जा सकता।
(e) केवल मुकदमा करने का अधिकार हस्तांतरित नहीं किया जा सकता।
(f) सार्वजनिक पद या उसका वेतन, चाहे वह अभी देय हो या बाद में, हस्तांतरित नहीं किया जा सकता।
(g) सरकारी सैन्य, नौसेना, वायुसेना या नागरिक पेंशन, और राजनीतिक पेंशन को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता।
(h) ऐसा कोई हस्तांतरण नहीं हो सकता जो
(1) स्वभाव के विरुद्ध हो,
(2) गैर-कानूनी उद्देश्य या विचार पर आधारित हो (अनुबंध अधिनियम की धारा 23 के अनुसार),
(3) कानूनन अयोग्य व्यक्ति को किया गया हो।
(i) यह धारा यह अधिकार नहीं देती कि
- गैर-हस्तांतरणीय कब्जे वाला किरायेदार,
- राजस्व बकाया होने पर पट्टेदार,
- Court of Wards द्वारा प्रबंधित संपत्ति का पट्टेदार
अपना हित हस्तांतरित करे।
धारा 7 : कौन संपत्ति हस्तांतरित कर सकता है
हर वह व्यक्ति जो अनुबंध करने में सक्षम है और किसी हस्तांतरित की जा सकने वाली संपत्ति का स्वामी है, या
जिसे किसी और की संपत्ति हस्तांतरित करने का अधिकार प्राप्त है, वह संपत्ति को
- पूरी तरह या आंशिक रूप से,
- बिना शर्त या शर्त के साथ,
- कानून द्वारा निर्धारित सीमा और तरीके से
हस्तांतरित करने में सक्षम है।
धारा 8 : हस्तांतरण का प्रभाव
जब तक कोई विभिन्न मंशा स्पष्ट या स्पष्ट रूप से निहित न हो, संपत्ति का हस्तांतरण करने से, हस्तांतरित करने वाला अपना वह सम्पूर्ण हित जो वह उस समय हस्तांतरित कर सकता है, प्राप्तकर्ता को तुरंत दे देता है।
इसमें निम्न बातों का समावेश होता है:
- भूमि में – उससे जुड़ी easements (अधिकार-मार्ग), किराया व लाभ (हस्तांतरण के बाद के)।
- मशीनरी में – भूमि से जुड़ी मशीनों के चलायमान हिस्से।
- मकान में – उससे जुड़ी easements, किराया, ताले, चाबियाँ, दरवाज़े, खिड़कियाँ आदि।
- ऋण या दावे में – उससे जुड़ी securities (यदि वे अन्य ऋणों से संबंधित न हों), लेकिन हस्तांतरण से पहले का बकाया ब्याज शामिल नहीं होगा।
- धन या आय देने वाली संपत्ति में – हस्तांतरण के बाद मिलने वाली ब्याज या आय।
धारा 9 : मौखिक हस्तांतरण
जहाँ किसी कानून द्वारा लिखित रूप अनिवार्य नहीं है, वहाँ संपत्ति का हस्तांतरण मौखिक रूप से किया जा सकता है।
धारा 10 : हस्तांतरण में अधिकार समाप्त करने वाली शर्त
अगर किसी संपत्ति का हस्तांतरण इस शर्त के साथ किया जाए कि प्राप्तकर्ता या उसके उत्तराधिकारी अपना हित बेच या हस्तांतरित नहीं कर सकते, तो ऐसी शर्त अमान्य (void) होगी।
अपवाद: पट्टे (lease) में ऐसी शर्त जो पट्टेदार के हित में हो — वैध होगी।
विशेष प्रावधान: यदि कोई महिला (जो हिंदू, मुस्लिम या बौद्ध न हो) को विवाह के दौरान उसका हित हस्तांतरित न करने की शर्त के साथ संपत्ति दी जाए, तो यह वैध होगी।
धारा 11 : अधिकार का उपयोग सीमित करने वाली शर्त
यदि किसी व्यक्ति के पक्ष में कोई पूर्ण अधिकार दिया गया हो, लेकिन यह निर्देश हो कि वह उसे किसी विशेष तरीके से उपयोग करे, तो वह व्यक्ति उस हित का उपयोग ऐसे कर सकेगा जैसे ऐसा कोई निर्देश न हो।
अपवाद: अगर यह निर्देश दूसरी संपत्ति के लाभकारी उपयोग के लिए दिया गया हो, तो हस्तांतरित करने वाला व्यक्ति उसका पालन कराने का अधिकार रखेगा।
धारा 12 : दिवालियापन या हस्तांतरण के प्रयास पर अधिकार समाप्त करने वाली शर्त
अगर किसी संपत्ति का हस्तांतरण इस शर्त के साथ किया गया हो कि प्राप्तकर्ता के दिवालिया होने या उसे बेचने के प्रयास पर उसका अधिकार समाप्त हो जाएगा, तो ऐसी शर्त अमान्य होगी।
अपवाद: पट्टे (lease) में ऐसी शर्त यदि पट्टेदार के हित में हो, तो वैध होगी।
धारा 13 : अजन्मे व्यक्ति के लिए हस्तांतरण
यदि किसी अजन्मे व्यक्ति के लिए (जो हस्तांतरण के समय मौजूद नहीं है) हित दिया जाए, और वह किसी पहले से दिए गए हित के अधीन हो, तो ऐसा हित तब तक प्रभावी नहीं होगा, जब तक वह हस्तांतरणकर्ता के बचे हुए संपूर्ण हित पर लागू न हो।
उदाहरण:
A अपनी संपत्ति B को इस शर्त पर देता है कि A और उसकी भावी पत्नी जीवनभर उसका लाभ उठाएँगे, फिर उनके सबसे बड़े बेटे को जीवनभर, और फिर दूसरे बेटे को। चूँकि बड़े बेटे को दिया गया हित A के बचे हुए संपूर्ण हित तक विस्तृत नहीं है, यह प्रभावी नहीं होगा।
धारा 14 : स्थायी अधिकार (Perpetuity) के विरुद्ध नियम
कोई भी हस्तांतरण ऐसा नहीं हो सकता जिससे ऐसा हित उत्पन्न हो जो
- एक या अधिक मौजूदा व्यक्तियों के जीवनकाल के बाद शुरू हो, और
- किसी ऐसे व्यक्ति की अल्पवयता तक टिका रहे जो उस अवधि के समाप्त होने पर जीवित हो, और
- यदि वह व्यक्ति वयस्कता प्राप्त कर ले, तो हित उसी को प्राप्त हो।
ऐसा हित अमान्य होगा।
धारा 15 : ऐसे वर्ग को हित जिसमें कुछ व्यक्तियों पर धारा 13 और 14 लागू हो
अगर किसी वर्ग को हित दिया गया हो और उसमें से कुछ व्यक्तियों पर धारा 13 या 14 के कारण हित असफल हो जाए, तो केवल उन्हीं व्यक्तियों के लिए हित असफल होगा, पूरा वर्ग असफल नहीं होगा।
धारा 16 : पूर्व हित के असफल होने पर प्रभाव में आने वाला हित
यदि धारा 13 या 14 के कारण किसी व्यक्ति या वर्ग को दिया गया पूर्व हित असफल हो जाए, तो उसी लेन-देन में ऐसा कोई भी बाद का हित जो उस पूर्व हित के असफल होने पर प्रभाव में आना था, वह भी असफल हो जाएगा।
धारा 17 : आय के संचित (बचाने) करने का निर्देश
(1) यदि हस्तांतरण की शर्तों में यह कहा गया हो कि संपत्ति से उत्पन्न आय को पूरी या आंशिक रूप से संचित किया जाए, और यह संचित अवधि निम्न में से किसी एक से अधिक हो:
(a) हस्तांतरणकर्ता का जीवनकाल, या
(b) हस्तांतरण की तिथि से 18 वर्ष की अवधि,
तो उस अधिक अवधि तक का संचित करने का निर्देश अमान्य होगा।
उस अवधि के अंत में, संपत्ति और उसकी आय उसी प्रकार से मानी जाएगी जैसे वह निर्देशित संचित अवधि समाप्त हो गई हो।
(2) लेकिन यह धारा उन निर्देशों को प्रभावित नहीं करेगी जो इस उद्देश्य से हों:
(i) हस्तांतरणकर्ता या किसी हितधारी के ऋण चुकाने के लिए,
(ii) हस्तांतरणकर्ता या किसी हितधारी के बच्चों या वंशजों के लिए हिस्सेदारी देने के लिए,
(iii) संपत्ति की रक्षा या रख-रखाव के लिए।
धारा 18 : जनहित में स्थायी हस्तांतरण
धाराएँ 14, 16 और 17 की सीमाएँ तब लागू नहीं होती जब संपत्ति का हस्तांतरण जनहित में हो, जैसे धर्म, ज्ञान, व्यापार, स्वास्थ्य, सुरक्षा या मानवता के कल्याण से संबंधित किसी उद्देश्य के लिए।
धारा 19 : निहित (Vested) हित
जब किसी व्यक्ति के पक्ष में संपत्ति का ऐसा हित दिया जाता है जिसकी प्रभावी तिथि निश्चित नहीं की गई हो, या जिसमें यह कहा गया हो कि वह तुरंत या किसी आवश्यक घटना के घटने पर प्रभावी होगा, तो ऐसा हित निहित (vested) माना जाएगा, जब तक विपरीत मंशा स्पष्ट न हो।
यदि हित प्राप्तकर्ता की मृत्यु हस्तांतरण से पहले हो जाए, तब भी वह हित नष्ट नहीं होता।
स्पष्टीकरण:
यह नहीं माना जाएगा कि हित निहित नहीं है, केवल इसलिए क्योंकि:
- उसका उपभोग टाल दिया गया हो,
- किसी अन्य व्यक्ति को पहले का हित दिया गया हो,
- आय को बचाने का निर्देश दिया गया हो,
- या ऐसा प्रावधान हो कि किसी विशेष घटना के होने पर हित किसी और को मिल जाएगा।
धारा 20 : अजन्मे व्यक्ति का हित कब निहित होता है
जब किसी अजन्मे व्यक्ति के लिए हित दिया गया हो, तो जैसे ही उसका जन्म होता है, वह (जब तक विपरीत मंशा न हो) उस हित का निहित अधिकार प्राप्त कर लेता है, भले ही वह जन्म के तुरंत बाद उसका उपभोग न कर सके।
धारा 21 : संभावित (Contingent) हित
जब हस्तांतरण में हित इस शर्त पर दिया जाए कि वह केवल किसी अनिश्चित घटना के घटने पर प्रभावी होगा, तो यह हित संभावित होगा।
- यह हित घटना घटने पर निहित हो जाता है।
- यदि घटना घटने की संभावना समाप्त हो जाए, तो भी यह निहित हो जाता है।
अपवाद: यदि कोई व्यक्ति किसी विशेष उम्र पर हित प्राप्त करता है और उसे उस उम्र तक पहुँचने से पहले आय प्राप्त करने या अपने लाभ के लिए उपयोग करने का अधिकार भी दिया गया हो, तो ऐसा हित संभावित नहीं माना जाएगा।
धारा 22 : किसी विशेष उम्र तक पहुँचने वाले वर्ग के सदस्यों को हित
यदि किसी वर्ग के केवल उन सदस्यों को हित दिया गया है जो किसी विशेष उम्र तक पहुँचें, तो वह हित उन सदस्यों को नहीं मिलेगा जो उस उम्र तक नहीं पहुँचे हैं।
धारा 23 : किसी अनिश्चित घटना पर आधारित हित
जब हस्तांतरण में किसी व्यक्ति को हित केवल किसी अनिश्चित घटना के घटने पर मिलने की बात कही गई हो, और घटना के घटने का समय नहीं बताया गया हो, तो यदि वह घटना तब तक नहीं घटती जब तक कि मध्यवर्ती या पूर्ववर्ती हित समाप्त न हो जाए, तो वह हित असफल हो जाएगा।
धारा 24 : कुछ व्यक्तियों में से जो किसी अनिर्दिष्ट समय पर जीवित हों
जब हस्तांतरण में हित केवल उन व्यक्तियों को दिया गया हो जो किसी अनिर्दिष्ट समय पर जीवित हों, तो वह हित उन्हें मिलेगा जो मध्यवर्ती या पूर्ववर्ती हित के समाप्त होते समय जीवित होंगे, जब तक हस्तांतरण की शर्तों से विपरीत मंशा स्पष्ट न हो।
उदाहरण:
A, संपत्ति B को जीवनभर के लिए देता है, और उसके बाद C और D को बराबर हिस्से में या उन दोनों में से जो जीवित हो उसे।
यदि C, B की मृत्यु से पहले मर जाता है और D बचा रहता है, तो B की मृत्यु पर संपत्ति D को मिलेगी।
धारा 25 : सशर्त हस्तांतरण
यदि संपत्ति का हस्तांतरण किसी ऐसी शर्त पर निर्भर हो जो असंभव हो, या
- कानून द्वारा वर्जित हो,
- किसी कानून के प्रावधानों को निष्फल कर दे,
- छल या धोखा शामिल हो,
- किसी व्यक्ति या संपत्ति को हानि पहुंचाए,
- या न्यायालय उसे अनैतिक या सार्वजनिक नीति के विरुद्ध माने,
तो ऐसा हित अमान्य होगा।
उदाहरण:
(a) B को खेत इस शर्त पर दिया जाए कि वह 1 घंटे में 100 मील चले — अमान्य।
(b) B को C से विवाह की शर्त पर राशि दी जाए, जबकि C मर चुकी हो — अमान्य।
(c) C की हत्या की शर्त पर राशि दी जाए — अमान्य।
(d) C को पति छोड़ने की शर्त पर राशि दी जाए — अमान्य।
धारा 26 : शर्त पूरी करना (पूर्ववर्ती शर्त)
अगर किसी व्यक्ति को संपत्ति में हित इस शर्त पर दिया जाए कि वह पहले कुछ करे, और वह कार्य सार्थक रूप से पूरा कर लिया गया हो, तो वह शर्त पूरी मानी जाएगी।
उदाहरण:
(a) तीन व्यक्तियों की सहमति से विवाह करना — एक के मरने के बाद बाकी दो की सहमति पर्याप्त।
(b) विवाह के बाद सहमति लेना — शर्त पूरी नहीं मानी जाएगी।
धारा 27 : एक व्यक्ति के लिए सशर्त हस्तांतरण और असफलता पर दूसरे को हित
अगर एक व्यक्ति के पक्ष में हित दिया गया और उसी लेन-देन में यह कहा गया हो कि पहला हित असफल होने पर वही हित दूसरे को मिलेगा, तो यदि पहला हित असफल हो जाता है — दूसरे व्यक्ति को हित मिल जाएगा, चाहे असफलता किसी और रूप में हुई हो।
परंतु, यदि यह स्पष्ट हो कि विशिष्ट प्रकार की असफलता पर ही दूसरा हित मिलना चाहिए, तो ऐसा ही होगा।
उदाहरण:
(a) A मृत्यु के बाद B को पट्टा बनवाने की शर्त पर राशि देता है, न करने पर C को। B की A से पहले मृत्यु हो जाती है — C को मिलेगा।
(b) A पत्नी को संपत्ति देता है, पर यदि वह A के जीवनकाल में मर जाए तो B को। A व पत्नी एकसाथ मर जाते हैं, यह पता नहीं चलता कि कौन पहले मरा — B को नहीं मिलेगा।
धारा 28 : अनिश्चित घटना के घटने या न घटने पर अन्य व्यक्ति को हित
जब संपत्ति इस शर्त पर हस्तांतरित की जाए कि
- किसी अनिश्चित घटना के घटने पर हित किसी अन्य को मिल जाए,
- या न घटने पर हित किसी अन्य को मिल जाए,
तो वह धारा 10, 12, 21-27 के नियमों के अधीन होगा।
धारा 29 : बाद की शर्त की पूर्ति आवश्यक
धारा 28 के अंतर्गत किए गए हस्तांतरण में, जब तक शर्त पूर्ण रूप से नहीं पूरी होती, तब तक दूसरे व्यक्ति को हित नहीं मिलेगा।
उदाहरण:
B को 500 रु. की राशि वयस्क होने या विवाह करने पर मिलनी थी, पर यह शर्त थी कि अगर वह नाबालिग रहते या C की सहमति के बिना विवाह करे, तो राशि D को मिलेगी। B 17 की उम्र में बिना सहमति विवाह करता है — D को राशि मिलेगी।
धारा 30 : यदि बाद की व्यवस्था अमान्य हो तो पहली प्रभावित नहीं होगी
अगर हस्तांतरण की बाद की व्यवस्था अमान्य हो जाती है, तो पहली व्यवस्था प्रभावित नहीं होगी।
उदाहरण:
B को खेत जीवनभर के लिए दिया गया, पर यदि वह पति को छोड़ दे तो C को। वह पति को नहीं छोड़ती — B को संपत्ति वैसे ही मिलेगी, जैसे कोई शर्त न हो।
धारा 31 : हित समाप्त होने की शर्त
अगर यह शर्त हो कि किसी अनिश्चित घटना के होने या न होने पर हित समाप्त हो जाएगा, और वह धारा 12 के अधीन वैध हो, तो ऐसी शर्त प्रभावी होगी।
उदाहरण:
(a) B को जीवनभर के लिए खेत, पर यदि वह लकड़ी काटे तो उसका हित समाप्त — काटने पर हित समाप्त।
(b) B को खेत इस शर्त पर कि यदि वह 3 वर्ष में इंग्लैंड न जाए तो हित समाप्त — न जाने पर हित समाप्त।
धारा 32 : ऐसी शर्त वैध होनी चाहिए
कोई भी शर्त जिससे हित समाप्त होता है, तभी वैध मानी जाएगी जब वह घटना वैधानिक रूप से किसी हित की रचना की शर्त बन सकती हो।
धारा 33 : कर्तव्य पूरा करने की बिना समय-सीमा वाली शर्त
अगर शर्त यह हो कि लाभार्थी कोई कार्य करेगा, लेकिन समय नहीं बताया गया, तो यदि वह कार्य को स्थायी रूप से या अनिश्चित काल के लिए असंभव बना दे, तो शर्त टूटी मानी जाएगी।
धारा 34 : कार्य पूरा करने की समयबद्ध शर्त
यदि कोई कार्य एक निर्दिष्ट समय में किया जाना हो, और वह कार्य उस व्यक्ति द्वारा टाल दिया जाए जिसे शर्त न पूरी होने पर लाभ होगा, तो उस व्यक्ति के विरुद्ध अतिरिक्त समय दिया जाएगा।
अगर समय निर्धारित न हो, और शर्त को टालने में कोई धोखा या छल किया गया हो, तो वह शर्त पूर्ण मानी जाएगी।
धारा 35 : कब निर्वाचन आवश्यक होता है
जब कोई व्यक्ति ऐसी संपत्ति को हस्तांतरित करने का दावा करता है जिस पर उसका कोई अधिकार नहीं है, लेकिन उसी लेन-देन में वह उस संपत्ति के वास्तविक मालिक को कोई लाभ भी देता है, तो उस मालिक को निर्वाचन करना होगा —
या तो वह हस्तांतरण को स्वीकार करे
या उसे अस्वीकार करे और उस लाभ को त्याग दे।
यदि वह लाभ छोड़ता है, तो वह लाभ हस्तांतरक या उसके प्रतिनिधियों को लौट जाएगा।
यदि हस्तांतरण मूल्य के बिना (gratuitous) हुआ हो और हस्तांतरक की मृत्यु हो जाए या वह फिर से हस्तांतरण करने में अयोग्य हो जाए, तो लाभ छोड़े जाने पर वह प्रतिपूर्ति का भार वहन करेगा।
यदि हस्तांतरण मूल्य के साथ हुआ हो, तो संपत्ति पाने से वंचित व्यक्ति को उसकी पूरी क्षतिपूर्ति करनी होगी।
उदाहरण:
C की संपत्ति एक फार्म है जिसकी कीमत ₹800 है। A एक विलेख के द्वारा उसे B को देने का दावा करता है, साथ ही C को ₹1000 देता है। यदि C फार्म अपने पास रखता है, तो उसे ₹1000 छोड़ने होंगे।
यदि C के चुनाव से पहले A की मृत्यु हो जाए, तो उसके प्रतिनिधियों को ₹1000 में से ₹800 B को देने होंगे।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- चाहे हस्तांतरणकर्ता यह मानता हो कि संपत्ति उसकी है या नहीं, यह नियम लागू होगा।
- कोई व्यक्ति जो प्रत्यक्ष लाभ नहीं ले रहा है, पर परोक्ष रूप से ले रहा है, उसे निर्वाचन की आवश्यकता नहीं।
- एक व्यक्ति जो एक पात्रता में लाभ ले रहा है, वह दूसरी पात्रता में असहमति जता सकता है।
अपवाद:
यदि किसी लाभ को विशेष रूप से संपत्ति के बदले में दिया गया हो, और मालिक वह संपत्ति मांगे, तो उसे उस विशेष लाभ को छोड़ना होगा, पर उसी लेन-देन के अन्य लाभों को नहीं।
यदि लाभ लेने वाला व्यक्ति लाभ का भोग कर चुका है और उसे अपनी निर्वाचन करने की जिम्मेदारी तथा प्रासंगिक परिस्थितियों की जानकारी है, तो वह हस्तांतरण को स्वीकार करता माना जाएगा।
यदि वह व्यक्ति दो वर्ष तक कोई असहमति नहीं जताता, तो स्वीकृति मान ली जाएगी।
यदि वह कोई ऐसा कार्य करता है जिससे संपत्ति की पहले जैसी स्थिति में वापसी असंभव हो जाए, तो उसे स्वीकृति मानी जाएगी।
उदाहरण:
A ने C की संपत्ति B को दे दी और उसी लेन-देन में C को एक कोयला खान दी। C ने खान का उपयोग किया और उसे खत्म कर दिया — यह माना जाएगा कि C ने B को संपत्ति दिए जाने को स्वीकार कर लिया।
यदि कोई व्यक्ति एक वर्ष तक अपनी स्वीकृति या असहमति नहीं जताता, तो हस्तांतरणकर्ता उसे ऐसा करने के लिए कह सकता है और उसके न करने पर उसे स्वीकृति मान लिया जाएगा।
यदि कोई व्यक्ति अयोग्यता (जैसे अल्पायु, मानसिक अयोग्यता) में है, तो चुनाव तब तक टाला जाएगा जब तक वह योग्यता प्राप्त न कर ले या कोई सक्षम प्राधिकारी उसका चुनाव न करे।
धारा 36 : नियमित आय के भुगतान का विभाजन
जब तक कोई अनुबंध या स्थानीय प्रथा कुछ और न कहे, तो किराया, पेंशन, लाभांश, वार्षिक वेतन आदि,
जब संपत्ति में हित का हस्तांतरण होता है, तो वे लाभ हर दिन के अनुसार माने जाएंगे और उसी अनुसार हस्तांतरणकर्ता व प्राप्तकर्ता में विभाजित होंगे, लेकिन भुगतान नियत दिन पर ही होगा।
धारा 37 : बंटवारे के बाद दायित्वों का विभाजन
जब किसी संपत्ति का हस्तांतरण होने से वह कई हिस्सों में बंट जाती है, और उसके साथ जुड़ा कोई लाभ या दायित्व कई हिस्सेदारों में बंटता है —
तो बिना किसी विपरीत अनुबंध के, वह दायित्व हर हिस्सेदार को उसकी हिस्सेदारी के अनुसार पूरा किया जाएगा, यदि
- वह दायित्व अलग-अलग किया जा सकता हो, और
- इससे कुल दायित्व में कोई भारी वृद्धि न हो।
यदि दायित्व को अलग नहीं किया जा सकता या विभाजन से उसमें अत्यधिक वृद्धि होती हो, तो वह सिर्फ उसी हिस्सेदार के लिए पूरा किया जाएगा, जिसे बाकी सभी संयुक्त रूप से नामित करें।
जब तक उस व्यक्ति को इस विभाजन की उचित सूचना न दी जाए, तब तक वह व्यक्ति उस दायित्व के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
यह धारा कृषि पट्टों पर लागू नहीं होती, जब तक राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा ऐसा न कहे।
उदाहरण:
(a) A ने एक मकान B, C और D को बेचा, जिसे E को ₹30 वार्षिक किराए पर दिया गया था, और एक मोटा भेड़ देना भी शामिल था। B ने आधा पैसा दिया, C और D ने एक-चौथाई-एक-चौथाई। अब E को B को ₹15, C और D को ₹7.50-₹7.50 देना होगा, और भेड़ उन तीनों के निर्देश से देना होगा।
(b) गाँव का हर मकान हर साल 10 दिन का काम करता था। अब B, C, D सभी E से 10-10 दिन का काम मांगते हैं — E केवल कुल 10 दिन का काम करेगा, जैसा B, C, D मिलकर कहें।
धारा 38 : जब व्यक्ति कुछ परिस्थितियों में ही संपत्ति हस्तांतरित कर सकता है
यदि कोई व्यक्ति केवल कुछ विशेष और परिवर्तनीय परिस्थितियों में अचल संपत्ति हस्तांतरित करने का अधिकारी हो, और वह यह दावा कर संपत्ति को मूल्य लेकर बेचता है, तो
यदि खरीदार ने उचित सावधानी बरती और सच्चे विश्वास से कार्य किया,
तो यह माना जाएगा कि ऐसी परिस्थितियाँ वास्तव में मौजूद थीं, भले ही बाद में साबित हो कि वे नहीं थीं।
उदाहरण: एक हिंदू विधवा A, अपनी जरूरत के लिए अपनी संपत्ति का एक खेत B को बेचती है। B जांच करता है कि A की आय पर्याप्त नहीं है और ईमानदारी से खरीदता है। यह माना जाएगा कि बिक्री के लिए आवश्यक परिस्थिति मौजूद थी।
धारा 39 : जब तीसरे व्यक्ति को भरण-पोषण का अधिकार हो
यदि कोई तीसरा व्यक्ति किसी अचल संपत्ति से आय के माध्यम से भरण-पोषण या विवाह आदि की व्यवस्था पाने का हकदार हो, और वह संपत्ति हस्तांतरित हो जाए,
तो उसका अधिकार उस हस्तांतरण-प्राप्तकर्ता पर लागू होगा—
- अगर उसे इस अधिकार की जानकारी थी, या
- हस्तांतरण निशुल्क था
लेकिन यदि हस्तांतरण मूल्य के साथ और बिना जानकारी के हुआ है, तो उस पर यह अधिकार लागू नहीं होगा।
धारा 40 : जब उपयोग पर प्रतिबंध या अनुबंध की बाध्यता हो
यदि किसी तीसरे व्यक्ति को यह अधिकार हो कि वह दूसरे की संपत्ति के उपयोग को किसी विशेष तरीके से रोक सके, या उसे कोई ऐसी बाध्यता प्राप्त हो जो न तो संपत्ति में हित है न ही उपभोग का अधिकार (easement),
तो वह अधिकार उस खरीदार पर लागू होगा जो —
- या तो उसे इस अधिकार की सूचना हो, या
- हस्तांतरण निशुल्क हुआ हो,
लेकिन वह उस पर लागू नहीं होगा जो उसे बिना जानकारी और मूल्य देकर खरीदे।
उदाहरण: A ने B को सुल्तानपुर बेचने का अनुबंध किया, लेकिन बाद में वह C को बेच देता है और C को इसकी जानकारी थी — B, C पर अनुबंध लागू कर सकता है।
धारा 41 : प्रकट मालिक द्वारा हस्तांतरण
यदि कोई व्यक्ति किसी संपत्ति का प्रकट मालिक (ostensible owner) है और यह स्थिति वास्तविक मालिक की स्पष्ट या परोक्ष सहमति से है,
तो यदि वह संपत्ति मूल्य लेकर बेचता है, और खरीदार ने उचित सावधानी बरती और ईमानदारी से कार्य किया,
तो वह हस्तांतरण अमान्य नहीं माना जाएगा, भले ही प्रकट मालिक के पास अधिकार न हो।
धारा 42 : पहले किए गए हस्तांतरण को रद्द करने की शक्ति रखने वाले व्यक्ति द्वारा पुनः हस्तांतरण
यदि कोई व्यक्ति संपत्ति को हस्तांतरित करता है और उसमें रद्द करने का अधिकार अपने पास रखता है,
तो यदि वह बाद में उसी संपत्ति को किसी अन्य को मूल्य पर हस्तांतरित करता है,
तो यह नया हस्तांतरण, पहले वाले को उस सीमा तक रद्द कर देगा, जहाँ तक उसकी शक्ति है।
उदाहरण: A, B को एक मकान पट्टे पर देता है, लेकिन अगर B इसका गलत उपयोग करे तो पट्टा रद्द करने का अधिकार अपने पास रखता है। A को लगता है कि गलत उपयोग हुआ है और वह मकान C को दे देता है — यह C को पट्टा देना, B के पट्टे को रद्द कर देता है (यदि सर्वेयर की राय ऐसा कहती है)।
धारा 43 : जब व्यक्ति अनधिकृत होकर संपत्ति बेचता है और बाद में अधिकार प्राप्त करता है
यदि कोई व्यक्ति किसी अचल संपत्ति को यह झूठा या गलती से दर्शाते हुए बेचता है कि उसके पास उसका अधिकार है, और वह बाद में उस पर अधिकार प्राप्त करता है,
तो खरीदार यदि चाहे, तो वह हस्तांतरण बाद में भी वैध माना जाएगा, जब तक कि अनुबंध बना हुआ हो।
लेकिन यदि किसी अन्य ने ईमानदारी से बिना जानकारी और मूल्य देकर खरीदा, तो उसका अधिकार प्रभावित नहीं होगा।
उदाहरण: A, जो अपने पिता B से अलग हो चुका है, C को तीन खेत बेचता है — जिनमें से Z वास्तव में B के पास है। बाद में B की मृत्यु पर A को Z खेत मिल जाता है। यदि C ने अनुबंध नहीं तोड़ा हो, तो वह A से Z की मांग कर सकता है।
धारा 44 : सहस्वामित्व में से एक मालिक द्वारा हस्तांतरण
यदि दो या अधिक सह-मालिकों में से कोई एक कानूनी रूप से सक्षम होकर अपनी हिस्सेदारी या उसमें कोई हित बेच देता है,
तो खरीदार को —
- वह हिस्सेदारी,
- उसमें सहभागिता का अधिकार,
- संपत्ति का विभाजन कराने का अधिकार,
मिल जाएगा, लेकिन जो उस हिस्से पर पहले से लागू शर्तें या जिम्मेदारियां होंगी, वे भी उस पर लागू होंगी।
लेकिन, यदि वह हिस्सा किसी संयुक्त परिवार के घर में है और खरीदार परिवार का सदस्य नहीं है, तो उसे संपत्ति में सहभागिता या भागीदारी का अधिकार नहीं मिलेगा।
धारा 45 : मूल्य के लिए संयुक्त हस्तांतरण (Joint Transfer for Consideration)
जब अचल संपत्ति दो या अधिक व्यक्तियों को मूल्य लेकर हस्तांतरित की जाती है, और
- यदि वह मूल्य साझे फंड से दिया गया है, तो संपत्ति में उनका हिस्सा उसी अनुपात में होगा,
- और यदि वे अलग-अलग अपने-अपने फंड से भुगतान करते हैं, तो जो जितना भुगतान करता है, उस अनुपात में संपत्ति में उसका हिस्सा होगा।
यदि यह स्पष्ट नहीं है कि किसने कितना दिया, तो सभी को बराबर हिस्से का माना जाएगा।
धारा 46 : अलग-अलग हितों वाले व्यक्तियों द्वारा मूल्य पर हस्तांतरण
यदि अचल संपत्ति को ऐसे व्यक्तियों द्वारा बेचा गया है जिनके उसमें अलग-अलग हित हैं,
तो वे व्यक्ति, जब तक अन्यथा अनुबंध न हो,
- बराबर मूल्य के हित हो तो बराबर हिस्से के हकदार होंगे,
- अन्यथा उनके-उनके हित के मूल्य के अनुपात में मूल्य के हिस्सेदार होंगे।
उदाहरण: A के पास आधा हिस्सा है, B और C के पास एक-चौथाई-एक-चौथाई। यदि वे एक-आठवां हिस्सा बेचते हैं, तो A को एक-आठवां, B और C को एक-एक सोलहवां हिस्सा मिलेगा।
धारा 47 : सामान्य संपत्ति में सह-मालिकों द्वारा साझा हस्तांतरण
जब कई सह-मालिक मिलकर किसी अचल संपत्ति में हिस्सा हस्तांतरित करते हैं बिना यह बताए कि किसके हिस्से से किया गया है,
तो
- यदि सभी के हिस्से बराबर हों तो बराबर अनुपात में समझा जाएगा,
- अन्यथा उनके हिस्सों के अनुपात में माना जाएगा।
उदाहरण: A के पास 8 आना, B और C के पास 4-4 आना हिस्सा है। यदि वे मिलकर 2 आना हिस्सा D को बेचते हैं, तो 1 आना A से, और आधा-आधा आना B और C से माना जाएगा।
धारा 48 : अधिकारों की प्राथमिकता (Priority of Rights)
यदि कोई व्यक्ति एक ही संपत्ति में अलग-अलग समय पर कई अधिकार बनाता है,
और वे सभी एक साथ लागू नहीं हो सकते,
तो बाद में बनाया गया अधिकार, पहले से बने अधिकार के अधीन रहेगा, जब तक अन्यथा कोई अनुबंध न हो।
धारा 49 : बीमा पॉलिसी में हस्तांतरित व्यक्ति का अधिकार
यदि किसी अचल संपत्ति को बीमा की स्थिति में बेचा गया है,
और संपत्ति को आग से क्षति होती है,
तो खरीदार यह मांग कर सकता है कि बीमाधनराशि से संपत्ति को पुनः स्थापित किया जाए,
जब तक कि कोई अन्य अनुबंध न हो।
धारा 50 : गलत मालिक को किराया देने पर खरीदार की रक्षा
यदि किसी ने ईमानदारी से संपत्ति किसी व्यक्ति से ली और उसे किराया आदि दिया,
लेकिन बाद में पता चला कि वह व्यक्ति उसका सही मालिक नहीं था,
तो किराया देने वाला व्यक्ति उत्तरदायी नहीं होगा,
यदि उसने भलाई से और बिना जानकारी के दिया हो।
धारा 51 : गलत अधिकार में विश्वास करके सुधार करने वाला व्यक्ति
यदि कोई खरीदार ईमानदारी से यह मानकर कि वह मालिक है, संपत्ति में सुधार करता है,
और फिर उसे बेहतर अधिकार वाले द्वारा हटा दिया जाता है,
तो वह व्यक्ति या तो:
- सुधार की वास्तविक कीमत चुका सकता है, या
- संपत्ति का हिस्सा उस खरीदार को बेच सकता है।
यदि ऐसे समय में फसल बोई गई हो, तो वह फसल उसी खरीदार की होगी, और उसे उसे काटने-ले जाने की पूरी स्वतंत्रता होगी।
धारा 52 : लंबित वाद में संपत्ति का स्थानांतरण (Lis Pendens)
जब किसी अचल संपत्ति पर कोई वाद लंबित हो, तो
कोई भी पक्ष बिना अदालत की अनुमति के संपत्ति का हस्तांतरण नहीं कर सकता,
जो किसी अन्य पक्ष के वाद में प्राप्त होने वाले अधिकारों को प्रभावित करे।
स्पष्टीकरण: वाद की लंबित स्थिति उस दिन से मानी जाएगी जिस दिन वाद दायर हुआ, और तब तक मानी जाएगी जब तक कि
- अंतिम डिक्री या आदेश पारित न हो जाए, और
- उसका पूरा पालन या समापन न हो जाए।
धारा 53 : धोखाधड़ीपूर्ण हस्तांतरण (Fraudulent Transfer)
(1) यदि कोई व्यक्ति अचल संपत्ति को अपने लेनदारों को धोखा देने या देरी करने की मंशा से हस्तांतरित करता है,
तो ऐसा हस्तांतरण प्रभावित लेनदार द्वारा रद्द किया जा सकता है।
शुद्ध नीयत (good faith) और मूल्य देकर खरीदी गई संपत्ति इससे प्रभावित नहीं होगी।
कोई भी लेनदार (भले ही उसने डिक्री निष्पादित की हो या नहीं) ऐसा वाद सभी लेनदारों के हित में दाखिल कर सकता है।
(2) यदि बिना मूल्य का हस्तांतरण इस उद्देश्य से किया गया हो कि बाद के खरीदार को धोखा मिले,
तो बाद वाला खरीदार उस हस्तांतरण को रद्द करवा सकता है।
लेकिन सिर्फ इस कारण कि बाद में मूल्य देकर हस्तांतरण किया गया, इसे धोखाधड़ी नहीं माना जाएगा।
धारा 53A : आंशिक निष्पादन (Part Performance)
जब कोई व्यक्ति लिखित अनुबंध द्वारा अचल संपत्ति को मूल्य लेकर बेचने का वादा करता है,
और
- खरीदार ने वास्तव में कब्जा ले लिया हो, या
- पहले से कब्जे में रहकर कुछ कार्य किया हो,
और - वह अपना अनुबंध पूरा करने को तैयार हो,
तो भले ही हस्तांतरण विधिवत पूरा न हुआ हो,
बेचने वाला या उसके उत्तराधिकारी उस संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं जता सकते,
जो कब्जे में आ चुकी है, जब तक अनुबंध में ऐसा विशेष रूप से उल्लेख न हो।
परंतु, यदि बाद का खरीदार बिना अनुबंध की जानकारी के मूल्य चुका देता है, तो उसके अधिकार सुरक्षित रहेंगे।
धारा 54 : विक्रय की परिभाषा (“Sale” Defined)
विक्रय वह है, जिसमें मालिकाना अधिकार को मूल्य के बदले में स्थानांतरित किया जाता है—
चाहे वह मूल्य पूरा दिया गया हो, वादा किया गया हो, या आंशिक रूप से दिया गया हो।
- ₹100 या अधिक मूल्य की मूर्त अचल संपत्ति, या
अमूर्त अधिकार (जैसे पुनरावर्तन) को केवल पंजीकृत दस्तावेज से ही बेचा जा सकता है। - ₹100 से कम मूल्य की मूर्त अचल संपत्ति को पंजीकरण या कब्जा सौंपकर बेचा जा सकता है।
विक्रय अनुबंध केवल भविष्य में संपत्ति बेचने की सहमति है; यह स्वतः कोई अधिकार नहीं बनाता।
धारा 55 : विक्रेता और खरीदार के अधिकार और दायित्व (Rights and Liabilities of Seller and Buyer)
(1) विक्रेता के दायित्व—
(a) संपत्ति या अपने अधिकारों में कोई गंभीर दोष हो, तो उसे बताना।
(b) शीर्षक से जुड़े सभी दस्तावेज दिखाना।
(c) खरीदार के उचित प्रश्नों का उत्तर देना।
(d) कीमत मिलने पर उचित दस्तावेज बनाकर देना।
(e) बिक्री तक संपत्ति और दस्तावेजों की उचित देखभाल करना।
(f) खरीदार को कब्जा देना।
(g) बिक्री तक का किराया, टैक्स व दायित्व चुकाना।
(2) यह माना जाएगा कि विक्रेता के पास स्थानांतरण करने का अधिकार था और उसने ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे संपत्ति बोझिल हो।
(3) यदि खरीदार ने पूरी कीमत दे दी, तो विक्रेता को सभी दस्तावेज सौंपने होंगे, सिवाय:
(a) यदि वह संपत्ति का कोई भाग रख रहा हो, तो दस्तावेज भी रख सकता है।
(b) यदि संपत्ति अलग-अलग खरीदारों को बिकी हो, तो सबसे बड़ी हिस्से वाला खरीदार दस्तावेजों का हकदार होगा।
(4) विक्रेता का अधिकार—
(a) संपत्ति पर स्वामित्व जब तक खरीदार को न मिले, तब तक किराया और लाभ।
(b) यदि खरीदार ने पूरी कीमत नहीं दी, और मालिकाना अधिकार पास हो गया हो, तो विक्रेता को उस पर चार्ज (security) का अधिकार।
(5) खरीदार के दायित्व—
(a) यदि उसे कोई ऐसी जानकारी है जो विक्रेता को नहीं, और उससे संपत्ति की कीमत बढ़ती है, तो उसे बताना।
(b) विक्रय की समाप्ति पर कीमत चुकाना।
(c) स्वामित्व मिल जाने के बाद नुकसान का जिम्मा लेना।
(d) स्वामित्व मिलने के बाद सभी सरकारी कर और ऋण चुकाना।
(6) खरीदार के अधिकार—
(a) स्वामित्व मिलने के बाद बढ़ी हुई संपत्ति या आय का लाभ।
(b) यदि उसने पूर्व भुगतान कर दिया और संपत्ति नहीं मिली, तो संपत्ति पर चार्ज का अधिकार या earnest money की वापसी।
धोखाधड़ी की मंशा से जानकारी छुपाना धोखाधड़ी माना जाएगा।
धारा 56 : उत्तरवर्ती खरीदार द्वारा संतुलन (Marshalling by Subsequent Purchaser)
यदि किसी मालिक ने दो या अधिक संपत्तियों को एक ही व्यक्ति को बंधक (mortgage) रखा हो,
और बाद में कोई एक संपत्ति किसी और को बेच दे,
तो खरीदार को यह अधिकार होगा कि बकाया ऋण उस संपत्ति से चुकाया जाए जो उसने नहीं खरीदी,
लेकिन यह अधिकार मूल बंधककर्ता या अन्य कानूनी हितधारकों के अधिकारों को नुकसान नहीं पहुंचा सकता।
धारा 57 : न्यायालय द्वारा बंधकों की व्यवस्था एवं बंधक मुक्त विक्रय (Provision by Court for Encumbrances and Sale Freed Therefrom)
यदि कोई अचल संपत्ति किसी बंधक या अन्य देनदारी से बाधित हो, और उसे न्यायालय द्वारा या डिक्री की पालना में या न्यायालय के बाहर बेचा जाए, तो—
(a) न्यायालय, किसी पक्षकार की याचिका पर, यह निर्देश दे सकता है कि—
- यदि संपत्ति पर वार्षिक या मासिक देयता हो, या
किसी सीमित अधिकार पर पूंजीराशि (capital sum) का भार हो,
तो इतनी राशि न्यायालय में जमा की जाए, जो केंद्र सरकार की प्रतिभूतियों में निवेश पर मिलने वाले ब्याज से उस देनदारी की पूर्ति कर सके। - अन्य किसी पूंजीराशि के भार के मामले में, पूरी देनदारी और उस पर देय ब्याज के बराबर राशि न्यायालय में जमा की जाए।
साथ ही, भविष्य में आने वाले खर्चों, ब्याज आदि के लिए अतिरिक्त राशि, जो मूल जमा की गई राशि का 1/10 तक हो सकती है, भी जमा करवाई जाएगी, जब तक न्यायालय विशेष कारणों से अधिक राशि आवश्यक न समझे।
(b) इसके बाद, न्यायालय बंधकधारी को सूचना देकर, या उचित कारणों से सूचना दिए बिना,
संपत्ति को बंधक मुक्त घोषित कर सकता है और विक्रय को प्रभावी बनाने के लिए संवहन आदेश (conveyance or vesting order) दे सकता है।
(c) न्यायालय उस धन की भुगतान या हस्तांतरण के लिए आदेश दे सकता है जो न्यायालय में जमा है,
और उसके पूंजी या आय के प्रयोग/वितरण के संबंध में भी निर्देश दे सकता है।
(d) इस धारा के अंतर्गत पारित किसी भी घोषणा, आदेश या निर्देश के विरुद्ध अपील की जा सकती है, जैसे वह डिक्री हो।
(e) “न्यायालय” से तात्पर्य है—
- उच्च न्यायालय (सिविल अधिकार क्षेत्र में),
- जिला न्यायाधीश की न्यायालय (जहाँ संपत्ति स्थित है),
- अन्य कोई न्यायालय जिसे राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा सक्षम घोषित करे।
धारा 58 : “बंधक”, “बंधककर्ता”, “बंधक-धारी”, “बंधक-धन” और “बंधक-पत्र” की परिभाषाएँ (Definitions)
(a) बंधक (Mortgage):
जब किसी विशेष अचल संपत्ति में एक व्यक्ति (बंधककर्ता) किसी ऋण, भविष्य के दायित्व या पैसे की वापसी को सुरक्षित करने के लिए स्वामित्व का कुछ अंश स्थानांतरित करता है, तो उसे बंधक कहते हैं।
- स्थानांतरक को बंधककर्ता (Mortgagor),
- प्राप्तकर्ता को बंधक-धारी (Mortgagee),
- बकाया मूलधन व ब्याज को बंधक-धन (Mortgage-money),
- और हस्तांतरण का दस्तावेज बंधक-पत्र (Mortgage-deed) कहा जाता है।
(b) सरल बंधक (Simple Mortgage):
- बंधककर्ता कब्जा नहीं देता,
- पर स्वयं जिम्मेदारी लेता है ऋण चुकाने की,
- यदि भुगतान न हो, तो बंधक-धारी संपत्ति की बिक्री करवा सकता है।
इसे सरल बंधक कहा जाता है।
(c) सशर्त विक्रय द्वारा बंधक (Mortgage by Conditional Sale):
बंधककर्ता संपत्ति को इस शर्त पर बेचता है, कि—
- यदि निर्धारित तिथि तक भुगतान न हो, तो विक्रय पूर्ण रूप से वैध हो जाए,
- या भुगतान हो जाए तो विक्रय निरस्त हो जाए,
- या भुगतान पर खरीदार संपत्ति वापिस करे।
नोट: यह बंधक तभी माना जाएगा, जब यह शर्त विक्रय-पत्र में स्पष्ट रूप से लिखी हो।
(d) उपभोगात्मक बंधक (Usufructuary Mortgage):
- बंधककर्ता संपत्ति का कब्जा बंधक-धारी को देता है या देने की बात करता है,
- और बंधक-धारी को भाड़ा व लाभ लेने तथा उसे ब्याज या मूलधन के बदले रखने का अधिकार देता है।
इसे उपभोगात्मक बंधक कहते हैं।
(e) इंग्लिश बंधक (English Mortgage):
- बंधककर्ता निश्चित तिथि पर ऋण चुकाने की जिम्मेदारी लेता है,
- और संपत्ति का पूर्ण स्वामित्व बंधक-धारी को स्थानांतरित करता है,
- पर यह शर्त रहती है कि भुगतान पर संपत्ति वापिस कर दी जाएगी।
(f) शीर्षक पत्रों की सुपुर्दगी द्वारा बंधक (Mortgage by Deposit of Title-Deeds):
कोलकाता, मद्रास, बॉम्बे या राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किसी नगर में,
यदि कोई व्यक्ति कर्जदाता को संपत्ति के शीर्षक दस्तावेज सौंपता है, ताकि उस पर अधिकार बनाया जा सके,
तो उसे बंधक द्वारा शीर्षक पत्रों की सुपुर्दगी कहते हैं।
(g) अपवादात्मक बंधक (Anomalous Mortgage):
जो बंधक उपरोक्त पांच प्रकारों में से किसी में नहीं आता,
उसे अपवादात्मक बंधक (Anomalous Mortgage) कहा जाता है।
धारा 59A : बंधककर्ता और बंधक-धारी से तात्पर्य उनके अधिकार लेने वाले व्यक्ति भी
जब तक किसी धारा में विशेष रूप से कुछ और न कहा गया हो, इस अध्याय में “बंधककर्ता” और “बंधक-धारी” शब्दों में उन व्यक्तियों को भी सम्मिलित माना जाएगा, जो उनके अधिकारों को उत्तराधिकार या अन्य माध्यम से प्राप्त करते हैं।
धारा 60 : बंधक मुक्ति का अधिकार (Right of Mortgagor to Redeem)
जब बंधक की मूलधन राशि देय हो जाती है, तो बंधककर्ता को निम्नलिखित अधिकार होता है, यदि वह उचित समय और स्थान पर पूरी बंधक राशि चुका दे—
(a) बंधक-पत्र और अन्य दस्तावेज वापस पाने का,
(b) यदि बंधक-धारी कब्जे में हो तो संपत्ति का कब्जा वापस पाने का,
(c) अपनी लागत पर संपत्ति का पुनः हस्तांतरण (या किसी अन्य व्यक्ति को) कराने या बंधक अधिकार समाप्ति की लिखित स्वीकृति रजिस्टर्ड कराने का।
शर्त: यह अधिकार केवल तब तक मान्य है जब तक यह किसी समझौते या न्यायालय के आदेश द्वारा समाप्त न कर दिया गया हो।
इसे बंधक मुक्ति का अधिकार (Right to Redeem) कहते हैं और इसे लागू करने के लिए दायर वाद को बंधक मुक्ति वाद (Suit for Redemption) कहा जाता है।
विशेष: यदि कोई केवल एक भाग का स्वामी है, तो वह केवल अपना हिस्सा तब ही छुड़ा सकता है जब बंधक-धारी ने उस हिस्से का अधिकार प्राप्त कर लिया हो।
धारा 60A : बंधककर्ता द्वारा तीसरे पक्ष को हस्तांतरण की मांग (Transfer to Third Party)
यदि बंधककर्ता को बंधक मुक्ति का अधिकार प्राप्त है, तो वह यह भी कह सकता है कि संपत्ति की पुनः वापसी के बजाय,
बंधक राशि और संपत्ति किसी तीसरे व्यक्ति को स्थानांतरित की जाए, और बंधक-धारी ऐसा करने को बाध्य होगा।
- यदि कोई अन्य दावेदार (encumbrancer) बीच में हो, तो उसका अधिकार बंधककर्ता से पहले मान्य होगा।
- यह धारा उस स्थिति में लागू नहीं होती जहाँ बंधक-धारी स्वयं कब्जे में हो या रहा हो।
धारा 60B : दस्तावेजों का निरीक्षण और प्रतिलिपि का अधिकार
जब तक बंधक मुक्ति का अधिकार बना हुआ है, बंधककर्ता को यह अधिकार होगा कि वह बंधक-धारी के पास रखे दस्तावेजों का निरीक्षण कर सके और प्रतियां निकाल सके,
परंतु—
- वह ऐसा अपने खर्चे पर,
- और बंधक-धारी द्वारा इस कार्य पर आए व्यय का भुगतान करके ही कर सकेगा।
धारा 61 : पृथक या संयुक्त रूप से बंधक मुक्ति का अधिकार
यदि बंधककर्ता ने एक ही बंधक-धारी के पक्ष में दो या अधिक बंधक किए हों, और उन सभी की मूलधन राशि देय हो गई हो, तो—
बंधककर्ता को यह अधिकार होगा कि वह किसी एक बंधक को पृथक रूप से या एक साथ एकाधिक बंधकों को छुड़ा सकता है,
जब तक कोई विपरीत अनुबंध न हो।
धारा 62 : उपभोगात्मक बंधककर्ता का कब्जा प्राप्त करने का अधिकार
जहाँ बंधक उपभोगात्मक (Usufructuary) हो, वहाँ बंधककर्ता को निम्नलिखित स्थितियों में कब्जा और दस्तावेज वापिस पाने का अधिकार है—
(a) यदि बंधक-धारी संपत्ति से प्राप्त किराए व लाभ से बंधक राशि वसूलने का अधिकारी हो, तो—
जैसे ही वह राशि पूरी हो जाए, बंधककर्ता संपत्ति वापिस पा सकता है।
(b) यदि केवल आंशिक बकाया वसूली का अधिकार हो, तो—
निर्धारित अवधि समाप्त होने पर और शेष राशि का भुगतान करने पर बंधककर्ता को संपत्ति वापिस मिल सकती है।
धारा 63 : बंधक संपत्ति में वृद्धि (Accession)
यदि बंधक अवधि के दौरान बंधक-धारी के कब्जे में रहते हुए संपत्ति में कोई वृद्धि (Accession) हुई हो, तो—
- बंधक मुक्ति के समय बंधककर्ता को उसका भी अधिकार होगा, जब तक कोई विपरीत अनुबंध न हो।
- यदि वह वृद्धि बंधक-धारी के खर्च से हुई हो और अलग से उपयोग संभव हो, तो बंधककर्ता को उसकी लागत चुकानी होगी।
- यदि वह वृद्धि संरक्षण हेतु आवश्यक थी या बंधककर्ता की अनुमति से हुई, तो बंधककर्ता को लागत + ब्याज (9% प्रति वर्ष, यदि कोई दर तय न हो) देना होगा।
- ऐसी वृद्धि से जो लाभ हुआ हो, वह बंधककर्ता के पक्ष में जोड़ा जाएगा।
यदि उपभोगात्मक बंधक हो और वृद्धि बंधक-धारी के खर्च से हुई हो, तो उससे उत्पन्न लाभ को बंधक राशि पर देय ब्याज से समायोजित किया जाएगा।
धारा 63A : संपत्ति में सुधार (Improvements)
(1) यदि बंधक-धारी के कब्जे में संपत्ति में कोई सुधार हुआ हो, तो—
बंधक मुक्ति पर बंधककर्ता उसका स्वामी होगा, जब तक कोई अन्य अनुबंध न हो, और उसे उसकी लागत नहीं देनी होगी।
(2) परंतु यदि सुधार—
- संपत्ति को नष्ट होने से बचाने,
- या सुरक्षा को अपर्याप्त होने से बचाने,
- या किसी न्यायसंगत सरकारी आदेश के पालन में हुआ हो,
तो बंधककर्ता को वह लागत, 9% वार्षिक ब्याज सहित, मूलधन में जोड़कर देनी होगी, और उससे प्राप्त लाभ, यदि कोई हो, बंधककर्ता को जोड़ा जाएगा।
धारा 64 : नवीनीकृत लीज का लाभ
यदि बंधक की गई संपत्ति लीज पर है और बंधक-धारी उस लीज का नवीनीकरण (renewal) प्राप्त कर लेता है, तो बंधक मुक्ति के समय बंधककर्ता को नए लीज का लाभ मिलेगा, जब तक कि कोई विपरीत अनुबंध न हो।
धारा 65 : बंधककर्ता द्वारा निहित अनुबंध (Implied Contracts by Mortgagor)
यदि कोई विपरीत अनुबंध न हो, तो यह माना जाएगा कि बंधककर्ता ने बंधक-धारी से निम्नलिखित बातें मानी हैं—
(a) वह जिस हित को स्थानांतरित कर रहा है, वह वास्तव में अस्तित्व में है और वह उसे स्थानांतरित करने का अधिकार रखता है।
(b) वह अपने स्वामित्व को साबित करेगा, या यदि संपत्ति बंधक-धारी के कब्जे में है, तो उसे ऐसा करने में सहायता करेगा।
(c) जब तक बंधक-धारी संपत्ति के कब्जे में नहीं आता, तब तक बंधककर्ता सभी सार्वजनिक करों का भुगतान करेगा।
(d) यदि संपत्ति लीज पर है, तो लीज के सभी किराए, शर्तें और अनुबंध बंधक शुरू होने तक पूरा कर चुका है, और जब तक सुरक्षा बनी हुई है और बंधक-धारी कब्जे में नहीं है, तब तक वह लीज के तहत किराया देगा, शर्तों का पालन करेगा, और बंधक-धारी को नुकसान से बचाएगा।
(e) यदि संपत्ति पहले से ही किसी बंधक में है (द्वितीय या बाद का बंधक), तो बंधककर्ता पूर्व बंधकों पर ब्याज समय से चुकाएगा और मूलधन समय पर चुका देगा।
ये अनुबंध बंधक-धारी के हितों से जुड़े होते हैं और बंधक-धारी के उत्तराधिकारी भी इन्हें लागू कर सकते हैं।
धारा 65A : बंधककर्ता का पट्टे का अधिकार (Mortgagor’s Power to Lease)
(1) जब तक बंधककर्ता वैध रूप से संपत्ति के कब्जे में है, वह लीज (पट्टा) बना सकता है, और वह बंधक-धारी पर बाध्यकारी होगा।
(2) लीज की शर्तें निम्नलिखित होंगी—
- (a) सामान्य प्रबंधन के अनुसार व स्थानीय प्रथा के अनुसार हो।
- (b) उचित किराया रखा जाए, कोई प्रीमियम न लिया जाए, और किराया पहले से न लिया गया हो।
- (c) नवीनीकरण की शर्त न हो।
- (d) लीज छह माह के भीतर प्रभावी हो जाए।
- (e) यदि भवन का पट्टा है, तो उसकी अवधि तीन वर्ष से अधिक न होनी चाहिए, और किराया अदायगी व पुनः प्रवेश की शर्त होनी चाहिए।
(3) यदि बंधक-पत्र में कुछ और कहा गया हो, तो उपधारा (1) लागू नहीं होगी। उपधारा (2) की शर्तें भी बंधक-पत्र द्वारा बदली जा सकती हैं।
धारा 66 : बंधककर्ता द्वारा संपत्ति की क्षति (Waste by Mortgagor)
बंधककर्ता यदि संपत्ति के कब्जे में है, तो वह सामान्य रूप से संपत्ति की गिरावट के लिए उत्तरदायी नहीं है।
परंतु वह कोई ऐसा कार्य नहीं कर सकता जो संपत्ति को स्थायी क्षति पहुँचाए, यदि बंधक सुरक्षा अपर्याप्त हो या उस कार्य के कारण अपर्याप्त हो जाए।
स्पष्टीकरण: सुरक्षा तभी अपर्याप्त मानी जाएगी यदि संपत्ति का मूल्य—
- बकाया बंधक राशि से 1/3 से अधिक नहीं है (सामान्य संपत्ति), या
- 1/2 से अधिक नहीं है (यदि भवन है)।
धारा 67 : फोरक्लोजर या बिक्री का अधिकार (Right to Foreclosure or Sale)
बंधक-धारी को, जब तक विपरीत अनुबंध न हो, बंधक राशि देय हो जाने के बाद और बंधक मुक्ति की डिक्री होने से पहले, यह अधिकार होता है कि—
- वह न्यायालय से डिक्री ले कि बंधककर्ता की संपत्ति छुड़ाने का अधिकार समाप्त हो जाए (Foreclosure), या
- संपत्ति बिक्री के लिए डिक्री दिलवाए।
फोरक्लोजर वाद उसी डिक्री के लिए होता है जिसमें बंधककर्ता के छुड़ाने का अधिकार पूर्ण रूप से समाप्त किया जाता है।
सीमाएँ:
(a) केवल शर्तीय विक्रय बंधक (Mortgage by Conditional Sale) या वह असामान्य बंधक, जिसमें ऐसी शर्त हो, फोरक्लोजर वाद कर सकते हैं।
(b) वह बंधककर्ता जो स्वयं बंधक-धारी के अधिकार का ट्रस्टी हो, वाद नहीं कर सकता।
(c) सार्वजनिक हित वाली संपत्तियाँ (रेलवे, नहर आदि) पर यह लागू नहीं।
(d) कोई आंशिक बंधक-धारी आंशिक संपत्ति हेतु तब तक वाद नहीं कर सकता, जब तक सभी बंधक-धारी (बंधककर्ता की सहमति से) अपने हितों को अलग न कर लें।
धारा 67A : कई बंधकों पर एक ही वाद
यदि कोई बंधक-धारी एक ही बंधककर्ता से दो या अधिक बंधक रखता है और सभी पर धारा 67 के तहत एक जैसे अधिकार रखता है, और वह किसी एक बंधक पर वाद करता है, तो उसे सभी बंधकों के लिए एक साथ वाद करना होगा, जब तक कि कोई विपरीत अनुबंध न हो।
धारा 68 : बंधक राशि की वसूली हेतु वाद (Right to Sue for Mortgage-Money)
बंधक-धारी केवल निम्नलिखित स्थितियों में बंधक राशि की वसूली हेतु वाद कर सकता है—
(a) जब बंधककर्ता ने स्वयं भुगतान का वचन दिया हो।
(b) जब किसी अन्य कारण से (बंधककर्ता या बंधक-धारी की गलती के बिना) संपत्ति नष्ट हो जाए या सुरक्षा अपर्याप्त हो जाए, और बंधक-धारी ने बंधककर्ता को वैकल्पिक सुरक्षा देने का अवसर दिया हो पर उसने न दिया हो।
(c) जब बंधककर्ता की गलती से बंधक-धारी को सुरक्षा से वंचित होना पड़े।
(d) जब बंधक-धारी को संपत्ति पर कब्जे का अधिकार है, पर बंधककर्ता कब्जा न दे या बाधा डाले।
शर्त: उपधारा (1)(a) की स्थिति में बंधककर्ता का खरीदार या उत्तराधिकारी बंधक राशि के लिए जिम्मेदार नहीं होगा।
(2) उपधारा (1)(a) या (b) के अंतर्गत लाए गए वाद को न्यायालय रोक सकता है, जब तक बंधक-धारी अपनी सभी संपत्ति संबंधित उपायों को नहीं आजमा लेता, या सुरक्षा छोड़कर संपत्ति वापस नहीं करता।
धारा 69 : न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना बिक्री (Power of Sale without Court)
बंधक-धारी को, न्यायालय के हस्तक्षेप के बिना, केवल निम्नलिखित परिस्थितियों में संपत्ति बेचने का अधिकार होता है—
(a) यदि बंधक English Mortgage हो, और बंधककर्ता या बंधक-धारी हिंदू, मुसलमान, बौद्ध आदि न हो।
(b) यदि बंधक-पत्र में यह अधिकार स्पष्ट रूप से दिया गया हो और बंधक-धारी सरकार हो।
(c) यदि यह अधिकार बंधक-पत्र में हो और संपत्ति कलकत्ता, मद्रास, बॉम्बे या अन्य अधिसूचित नगर में हो।
(2) यह अधिकार तब ही प्रयोग किया जा सकता है जब—
- तीन महीने पूर्व बंधककर्ता को नोटिस दिया गया हो, और वह भुगतान न करे, या
- ₹500 से अधिक ब्याज तीन महीने तक बकाया हो।
(3) यदि यह बिक्री नियमों के विपरीत हुई हो, तो खरीदार का स्वत्व चुनौती नहीं किया जा सकता, लेकिन जो व्यक्ति नुकसान उठाएगा उसे हर्जाना मिल सकता है।
(4) बिक्री से प्राप्त राशि पहले—
- बिक्री से जुड़े व्यय, शुल्क, फिर
- बंधक राशि व अन्य देयताओं की भरपाई,
- फिर बची राशि बंधककर्ता को दी जाएगी।
(5) यह धारा 1 जुलाई 1882 से पहले दिए गए अधिकारों पर लागू नहीं होगी।
धारा 69A : रिसीवर की नियुक्ति (Appointment of Receiver)
(1) यदि किसी बंधक-धारी को धारा 69 के तहत संपत्ति बेचने का अधिकार है, तो वह लेखन द्वारा एक रिसीवर नियुक्त कर सकता है, जो बंधक संपत्ति से होने वाली आय को प्राप्त करेगा।
(2)
- यदि बंधक-पत्र में कोई व्यक्ति रिसीवर के रूप में नामित है और वह कार्य करने को तैयार है, तो वही नियुक्त होगा।
- यदि ऐसा कोई नहीं है, तो बंधककर्ता की सहमति से कोई और व्यक्ति नियुक्त किया जा सकता है।
- सहमति न होने पर, न्यायालय द्वारा नियुक्त व्यक्ति को ही बंधक-धारी द्वारा नियुक्त माना जाएगा।
- रिसीवर को बंधककर्ता और बंधक-धारी दोनों की सहमति, या न्यायालय द्वारा हटाया जा सकता है।
- यदि पद रिक्त हो जाए, तो उसी प्रक्रिया से नया रिसीवर नियुक्त होगा।
(3) रिसीवर को बंधककर्ता का एजेंट माना जाएगा, और उसका कार्य या गलती बंधककर्ता की जिम्मेदारी होगी, जब तक कि बंधक-पत्र में कुछ और न कहा गया हो या गलती बंधक-धारी के हस्तक्षेप से न हो।
(4) रिसीवर को, बंधककर्ता या बंधक-धारी के नाम पर आय वसूलने, रसीद देने, और बंधक-धारी द्वारा सौंपे गए अधिकारों का प्रयोग करने की पूर्ण शक्ति होगी।
(5) कोई भी व्यक्ति रिसीवर को भुगतान करते समय यह जाँचने के लिए बाध्य नहीं होगा कि उसकी नियुक्ति वैध थी या नहीं।
(6) रिसीवर को प्राप्त राशि में से अधिकतम 5% तक कमीशन मिल सकता है। यदि दर निर्दिष्ट नहीं है, तो 5% माना जाएगा, या न्यायालय द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
(7) बंधक-धारी के लिखित निर्देश पर रिसीवर संपत्ति का बीमा कर सकता है (यदि वह बीमायोग्य हो)।
(8) रिसीवर द्वारा प्राप्त धन का उपयोग इस क्रम में होगा—
(i) सभी कर, भूमि-राजस्व, शुल्क आदि का भुगतान।
(ii) बंधक से पहले के किसी भी वार्षिक भुगतान या ब्याज का भुगतान।
(iii) उसका कमीशन, बीमा प्रीमियम, मरम्मत खर्च।
(iv) बंधक पर देय ब्याज।
(v) यदि बंधक-धारी निर्देश दे, तो मूलधन का भुगतान।
(vi) शेष धन उसी व्यक्ति को जाएगा, जो रिसीवर के बिना उसका हकदार होता।
(9) उपधारा (1) तभी लागू होगी जब बंधक-पत्र में इसका विरोध न किया गया हो।
अन्य उपधाराओं (3) से (8) तक की बातें बंधक-पत्र द्वारा बदली या बढ़ाई जा सकती हैं।
(10) बंधक संपत्ति के प्रबंधन से जुड़े साधारण प्रश्नों पर, पक्षकार बिना मुकदमा चलाए न्यायालय से राय, निर्देश या सलाह ले सकते हैं।
सुनवाई में वही व्यक्ति भाग ले सकता है जिसे न्यायालय उपयुक्त समझे।
इसके खर्च न्यायालय के विवेक पर होंगे।
(11) इस धारा में “न्यायालय” से तात्पर्य उस न्यायालय से है, जो उस बंधक को लागू करने के लिए मुकदमे की सुनवाई कर सकता है।
धारा 70 : बंधक संपत्ति में वृद्धि (Accession to Mortgaged Property)
यदि बंधक संपत्ति में बंधक के बाद कोई वृद्धि होती है, तो जब तक कोई विपरीत अनुबंध न हो, बंधक-धारी को वह वृद्धि सुरक्षा के उद्देश्य से प्राप्त होगी।
उदाहरण:
(a) किसी खेत के किनारे नदी है और नदी के कटाव से खेत बढ़ता है—बंधक-धारी को वह अतिरिक्त भूमि मिलती है।
(b) खाली भूखंड पर मकान बना दिया गया—बंधक-धारी को भवन सहित सुरक्षा मिलती है।
धारा 71 : लीज का नवीनीकरण (Renewal of Mortgaged Lease)
यदि बंधक संपत्ति लीज पर है और बंधककर्ता उसका नवीनीकरण करवा लेता है, तो बंधक-धारी को नई लीज के अंतर्गत सुरक्षा प्राप्त होगी, जब तक कि कोई अन्य अनुबंध न हो।
धारा 72 : कब्जाधारी बंधक-धारी के अधिकार (Rights of Mortgagee in Possession)
बंधक-धारी, यदि कब्जे में है, तो वह निम्न कार्यों हेतु धन खर्च कर सकता है—
(b) संपत्ति को नष्ट होने, ज़ब्ती या बिक्री से बचाने हेतु।
(c) बंधककर्ता के स्वामित्व को बनाए रखने के लिए।
(d) स्वयं के स्वत्व को बंधककर्ता के विरुद्ध पुष्ट करने हेतु।
(e) यदि संपत्ति नवीनीकरण योग्य लीज पर है, तो उसका नवीनीकरण करवाने हेतु।
यह धन, जब तक विपरीत अनुबंध न हो, मूलधन में जोड़ दिया जाएगा और उस पर वही ब्याज लगेगा, या यदि तय नहीं हो, तो 9% वार्षिक ब्याज लगेगा।
शर्त:
(b) और (c) के तहत खर्च तब ही “आवश्यक” माना जाएगा जब बंधककर्ता को पहले अवसर दिया गया हो और वह उपयुक्त कदम उठाने में असफल रहा हो।
बीमा संबंधी अधिकार:
अगर संपत्ति बीमायोग्य है, तो बंधक-धारी उसे आग से नुकसान से बीमित करवा सकता है और प्रीमियम भी मूलधन में जोड़कर ब्याज सहित वसूल सकता है, बशर्ते—
- बीमा की राशि बंधक-पत्र में बताई गई सीमा से अधिक न हो, या
- यदि नहीं बताई हो तो, पुनर्निर्माण लागत का दो-तिहाई से अधिक न हो।
नोट:
अगर बंधककर्ता ने पहले से बीमा करा रखा है उसी सीमा में, तो बंधक-धारी को पुनः बीमा कराने का अधिकार नहीं है।
धारा 73 : लगान की बिक्री या अधिग्रहण में बंधक-धारी का अधिकार – Right to proceeds of revenue sale or compensation on acquisition
(1) यदि बंधक संपत्ति सरकारी बकाया या किराया न चुकाने पर बेची जाती है, और यह गलती बंधक-धारी की नहीं है, तो बिक्री के बाद बचे शेष धन से बंधक-धारी को बंधक धन की वसूली का अधिकार होगा।
(2) यदि बंधक संपत्ति का भूमि अधिग्रहण कानून या अन्य किसी अधिनियम के तहत अधिग्रहण होता है, तो बंधक-धारी मुआवजे से बंधक धन वसूल सकता है।
(3) ऐसे दावे पूर्ववर्ती दावों को छोड़कर सभी पर प्राथमिकता रखते हैं, भले ही बंधक धन अभी देय न हुआ हो।
धारा 74 और 75 : निरस्त (Repealed)
धारा 76 : कब्जाधारी बंधक-धारी की जिम्मेदारियां – Liabilities of mortgagee in possession
जब बंधक-धारी बंधक अवधि में संपत्ति पर कब्जा लेता है, तो उसकी जिम्मेदारियां होंगी—
(a) संपत्ति को सावधानीपूर्वक अपने जैसी समझकर प्रबंधित करना।
(b) किराया व लाभ पूरा वसूलने का प्रयास करना।
(c) (अगर कोई अन्य अनुबंध न हो) प्राप्त आय से सरकारी कर, किराया आदि भुगतान करना।
(d) (अन्य अनुबंध न होने पर) किराया व लाभ में से, उपर्युक्त खर्च व ब्याज काटकर, आवश्यक मरम्मत कराना।
(e) कोई ऐसा कार्य न करना जो संपत्ति को स्थायी नुकसान पहुंचाए।
(f) यदि उसने संपत्ति का आग से नुकसान के लिए बीमा कराया है, तो नुकसान होने पर प्राप्त राशि का उपयोग पुनर्निर्माण या बंधक धन की अदायगी में करना।
(g) सभी आय और खर्च का स्पष्ट हिसाब रखना, और बंधककर्ता के अनुरोध पर उसकी प्रामाणिक प्रति देना।
(h) जो आय उसे प्राप्त हुई (या यदि वह स्वयं वहाँ रह रहा है तो उसका उपयुक्त किराया), खर्च व ब्याज काटकर बकाया ब्याज या मूलधन घटाने में जोड़ी जाएगी, शेष राशि बंधककर्ता को दी जाएगी।
(i) जब बंधककर्ता पूरा बकाया जमा करता है या न्यायालय में जमा करता है, तो उस दिन से प्राप्त आय का हिसाब देना होगा, और उस दिन के बाद का कोई खर्च नहीं काट सकता।
डिफॉल्ट की स्थिति में हानि: यदि बंधक-धारी अपनी इन जिम्मेदारियों का पालन नहीं करता, तो हुआ नुकसान उसके विरुद्ध जोड़ा जाएगा।
धारा 77 : ब्याज के स्थान पर प्राप्तियां – Receipts in lieu of interest
यदि यह अनुबंधित है कि कब्जे के दौरान आय को ब्याज या ब्याज+मूलधन की किश्तों के स्थान पर लिया जाएगा, तो धारा 76 के (b), (d), (g), (h) लागू नहीं होंगे।
धारा 78 : पूर्ववर्ती बंधक-धारी की प्राथमिकता का स्थगन – Postponement of prior mortgagee
यदि पहले के बंधक-धारी की धोखाधड़ी, झूठे कथन या लापरवाही से किसी अन्य व्यक्ति ने बंधक के आधार पर धन दिया, तो पहले वाला बंधक-धारी बाद वाले से पिछड़ेगा।
धारा 79 : अधिकतम सीमा दर्शाने वाले बंधक – Mortgage to secure uncertain amount when maximum is expressed
यदि बंधक में कहा गया हो कि वह भविष्य के लेन-देन या चलते खाते के लिए है और अधिकतम सीमा निर्धारित हो, तो बाद में उसी संपत्ति पर किया गया बंधक (जिसे पहले बंधक की जानकारी है) पहले वाले के पीछे रहेगा, भले ही बाद की उधारी पहले बंधक की जानकारी में हुई हो।
उदाहरण:
A ने Sultanpur को B & Co. को अधिकतम ₹10,000 के खाते के लिए बंधक किया। फिर A ने वही संपत्ति ₹10,000 के लिए C को बंधक की, जो B & Co. के बंधक से परिचित था। B & Co. बाद में कुल ₹10,000 तक उधारी बढ़ाता है—B & Co. को C पर प्राथमिकता मिलेगी।
धारा 80 : निरस्त (Repealed)
धारा 81 : सुरक्षा का मार्शलिंग – Marshalling of securities
यदि कोई व्यक्ति दो या अधिक संपत्तियाँ एक व्यक्ति को गिरवी रखता है, फिर उन्हीं में से किसी एक या अधिक को दूसरे व्यक्ति को गिरवी रखता है, तो दूसरा बंधक-धारी, पहले बंधक को ऐसी संपत्ति से वसूलने की मांग कर सकता है जो उसके बंधक में शामिल न हो, बशर्ते इससे पहले बंधक-धारी या अन्य हितधारकों का कोई नुकसान न हो।
धारा 82 : बंधक-ऋण में योगदान – Contribution to mortgage-debt
यदि बंधक संपत्ति अलग-अलग स्वामित्व वाले लोगों की हो, तो उनके हिस्से प्रत्येक के स्वामित्व अनुसार ऋण में योगदान देंगे।
मूल्यांकन उस तारीख से होगा जब बंधक किया गया था, और उस दिन की पूर्ववर्ती देनदारियों को घटाकर मूल्य तय होगा।
दूसरी स्थिति में, यदि दो संपत्तियाँ एक ही मालिक की हों—
- एक को पहले ऋण के लिए बंधक किया गया
- फिर दोनों को दूसरे ऋण के लिए
- और पहला ऋण पहली संपत्ति से चुका दिया गया
=> तो दोनों संपत्तियाँ दूसरे ऋण में बराबर योगदान देंगी, लेकिन पहले ऋण की राशि घटाकर।
नोट: यह धारा धारा 81 के तहत अधिकारों से प्रभावित नहीं करती।
धारा 83 : बंधक-धन न्यायालय में जमा करने की शक्ति – Power to deposit in Court money due on mortgage
बंधककर्ता (या वह व्यक्ति जो मुकदमा दायर करने का अधिकारी है) जब भी मूलधन देय हो जाए, और बंधक मुक्ति का मुकदमा समय से पहले न रुका हो, तब वह जमा योग्य राशि को न्यायालय में जमा कर सकता है, उसी न्यायालय में जिसमें वह मुकदमा दायर कर सकता था।
जमा की गई राशि पर बंधक-धारी का अधिकार:
- न्यायालय बंधक-धारी को लिखित सूचना देगा।
- बंधक-धारी शपथ-पत्र सहित आवेदन देकर और बंधक-पत्र व अन्य दस्तावेज कोर्ट में जमा करके, वह राशि ले सकता है।
- बंधककर्ता को बंधक-पत्र और दस्तावेज वापस मिलेंगे।
यदि बंधक-धारी संपत्ति पर कब्जे में है, तो न्यायालय राशि देने से पहले निर्देश देगा कि वह—
- संपत्ति का कब्जा लौटाए,
- और बंधककर्ता को संपत्ति पुनः स्थानांतरित करे या
- बंधक समाप्ति की लिखित पावती दे और यदि पंजीकृत बंधक हो, तो उसे पंजीकृत कराए।
धारा 84 : ब्याज का समाप्त होना – Cessation of Interest
यदि बंधककर्ता या अन्य व्यक्ति (जो धारा 83 के अंतर्गत अधिकृत है) बंधक राशि चुका देता है या कोर्ट में जमा कर देता है, तो उस दिन से मूलधन पर ब्याज बंद हो जाएगा—
- जब प्रस्ताव (tender) किया गया हो, तो उस दिन से
- और यदि सीधा जमा किया हो, तो उस दिन से जब उसने सारी औपचारिकताएं पूरी कर दी हों ताकि बंधक-धारी वह राशि कोर्ट से निकाल सके और उसे धारा 83 के अंतर्गत सूचना मिल गई हो।
परंतु, यदि बंधककर्ता बिना पूर्व प्रस्ताव दिए राशि जमा कर वापस ले लेता है, तो निकासी की तारीख से फिर से ब्याज देना होगा।
यदि अनुबंध में यह प्रावधान हो कि बंधक-धारी को पूर्व सूचना मिलनी चाहिए, और वह सूचना नहीं दी गई, तो बंधक-धारी को ब्याज का अधिकार बना रहेगा।
धारा 85 से 90 : निरस्त (Repealed)
धारा 91 : मोचन (Redemption) का मुकदमा कौन कर सकता है – Persons who may sue for redemption
बंधककर्ता के अतिरिक्त निम्नलिखित व्यक्ति भी बंधक संपत्ति का मोचन कर सकते हैं या मुकदमा दायर कर सकते हैं—
(a) वह कोई भी व्यक्ति (जो बंधक-धारी न हो) जिसका उस संपत्ति में या मोचन के अधिकार में कोई स्वार्थ या दावा हो;
(b) कोई जमानतदाता जिसने बंधक ऋण का भुगतान सुनिश्चित किया हो;
(c) कोई ऋणदाता जिसने बंधककर्ता की संपत्ति के प्रबंधन हेतु संपत्ति की बिक्री का डिक्री हासिल किया हो।
धारा 92 : उपस्थापन – Subrogation
धारा 91 में वर्णित कोई भी व्यक्ति (बंधककर्ता को छोड़कर) या कोई सह-बंधककर्ता, यदि वह संपत्ति का मोचन करता है, तो उसे पूर्ववर्ती बंधक-धारी जैसे अधिकार मिलते हैं—मोचन, विक्रय या नीलामी के संदर्भ में।
इसे “उपस्थापन का अधिकार” कहते हैं, और ऐसा व्यक्ति बंधक-धारी के अधिकारों में उपस्थापित (subrogated) माना जाता है।
यदि किसी व्यक्ति ने बंधककर्ता को बंधक चुकाने के लिए राशि दी है, और बंधककर्ता ने पंजीकृत दस्तावेज द्वारा सहमति दी है, तो वह भी उपस्थापित होगा।
लेकिन जब तक बंधक पूरी तरह चुका नहीं दिया गया हो, तब तक यह अधिकार नहीं मिलेगा।
धारा 93 : टैकिंग का निषेध – Prohibition of Tacking
कोई भी बंधक-धारी यदि पहले के बंधक का भुगतान करता है, तो वह केवल इस कारण अपनी मूल सुरक्षा को प्राथमिकता में नहीं ला सकता।
इसी प्रकार, बाद में दी गई किसी उधारी के लिए बंधक रखने पर भी उसे पूर्वता का लाभ नहीं मिलेगा, सिवाय धारा 79 के मामले में।
धारा 94 : मध्यस्थ बंधक-धारी का अधिकार – Rights of mesne mortgagee
जब संपत्ति पर लगातार कई ऋणों के लिए बंधक रखा गया हो, तो जो बंधक-धारी बीच में है, उसे अपने से बाद के बंधक-धारियों के विरुद्ध उसी प्रकार का अधिकार प्राप्त होगा जैसा कि बंधककर्ता के विरुद्ध होता।
धारा 95 : सह-बंधककर्ता द्वारा चुकाए खर्च की वसूली – Right of redeeming co-mortgagor to expenses
यदि कई बंधककर्ताओं में से कोई एक पूरी संपत्ति का मोचन करता है, तो वह उपस्थापन के अधिकार के साथ-साथ, अन्य बंधककर्ताओं से उनके हिस्से के अनुसार उचित खर्च की वसूली कर सकता है।
धारा 96 : अभिलेख जमा कर बंधक – Mortgage by deposit of title-deeds
साधारण बंधक पर लागू प्रावधान, टाइटल डीड जमा करने वाले बंधक (equitable mortgage) पर भी उसी प्रकार लागू होंगे।
धारा 97 : निरस्त (Repealed)
धारा 98 : मिश्रित बंधक में पक्षों के अधिकार व दायित्व – Rights and liabilities of parties to anomalous mortgages
मिश्रित (अनियमित) बंधक के मामले में, पक्षकारों के अधिकार और दायित्व बंधक-पत्र में वर्णित अनुबंध द्वारा निर्धारित होंगे।
जहाँ अनुबंध नहीं है, वहाँ स्थानीय प्रचलन लागू होगा।
धारा 99 : निरस्त (Repealed)
धारा 100 : प्रभार – Charges
जब किसी व्यक्ति की संपत्ति को कानून या अनुबंध द्वारा किसी अन्य व्यक्ति के धन की सुरक्षा बना दिया जाए, और वह लेन-देन बंधक न हो, तो उसे प्रभार (charge) कहा जाता है।
ऐसे प्रभार पर साधारण बंधक से संबंधित सभी धाराएं यथासंभव लागू होंगी।
अपवाद:
- यदि ट्रस्टी का खर्च ट्रस्ट-संपत्ति पर प्रभार हो, तो इस धारा में शामिल नहीं होगा।
- यदि संपत्ति किसी ऐसे व्यक्ति को बिना जानकारी और वैध कीमत पर स्थानांतरित की गई है, तो उस पर प्रभार लागू नहीं किया जा सकता।
धारा 101 : बाद के दावेदारों के संदर्भ में विलय का अभाव – No merger in case of subsequent encumbrance
कोई भी बंधक-धारी या प्रभारधारी यदि बंधककर्ता या स्वामी से संपत्ति का अधिकार खरीदता है, तो इससे बंधक का विलय नहीं होता (यानी उसका अधिकार समाप्त नहीं होता)।
बाद के बंधक-धारियों या प्रभारधारियों को पहले बंधक का मोचन करना होगा—वे बिना मोचन के न तो संपत्ति बेच सकते हैं और न ही फोरक्लोज कर सकते हैं।
धारा 102 : अभिकर्ता पर सेवा या निवेदन – Service or tender on or to agent
अगर वह व्यक्ति, जिसे कोई सूचना दी जानी है या कोई निवेदन किया जाना है, उस ज़िले में नहीं रहता जहाँ संपत्ति स्थित है, तो उसकी ओर से अधिकृत किसी एजेंट (जैसे जिसे आम पावर ऑफ अटॉर्नी मिला हो) को वह सूचना देना या निवेदन करना पर्याप्त माना जाएगा।
अगर कोई ऐसा व्यक्ति या एजेंट नहीं है जिसे सूचना दी जा सके, तो संबंधित व्यक्ति अदालत में आवेदन कर सकता है, जो तय करेगी कि सूचना किस प्रकार दी जाए; और इस प्रकार दी गई सूचना को वैध माना जाएगा।
प्रावधान: अगर सूचना धारा 83 के अंतर्गत देय है (अर्थात अदालत में जमा की गई राशि की सूचना), तो आवेदन उसी अदालत में किया जाएगा जहाँ राशि जमा की गई है।
अगर निवेदन करने योग्य कोई व्यक्ति या एजेंट ज्ञात नहीं है या नहीं मिल रहा है, तो निवेदन की जाने वाली राशि को अदालत में जमा किया जा सकता है, और यह कार्य वैध निवेदन माना जाएगा।
धारा 103 : अयोग्य व्यक्ति को सूचना, निवेदन या जमा की प्रक्रिया – Notice, etc., to or by person incompetent to contract
अगर सूचना देना या लेना, निवेदन करना या स्वीकार करना, या अदालत से राशि निकालना किसी ऐसे व्यक्ति से संबंधित है जो संविदा करने में अयोग्य है (जैसे नाबालिग या मानसिक रूप से असक्षम), तो यह कार्य उसके कानूनी संरक्षक द्वारा किया जा सकता है।
अगर ऐसा कोई संरक्षक नहीं है, तो अदालत से आवेदन करके अस्थायी संरक्षक (guardian ad litem) नियुक्त किया जा सकता है जो इन कार्यों को करेगा। इस प्रक्रिया में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश 32 के नियम लागू होंगे।
धारा 104 : नियम बनाने की शक्ति – Power to make rules
उच्च न्यायालय, इस अध्याय की धाराओं को लागू करने हेतु अपने अधीनस्थ दीवानी न्यायालयों में, समय-समय पर इस अधिनियम के अनुरूप नियम बना सकता है।
अध्याय V – अचल संपत्ति के पट्टों के विषय में (Leases of Immovable Property)
धारा 105 : पट्टे की परिभाषा – Lease defined
पट्टा का अर्थ है, किसी अचल संपत्ति को एक निश्चित समय के लिए (लिखित या मौखिक अनुबंध के अनुसार) या स्थायी रूप से, किसी मूल्य (धन, सेवा, फसल का हिस्सा आदि) के बदले में उपयोग करने का अधिकार देना।
इसमें:
- संपत्ति देने वाला होता है पट्टेदार (lessor)
- लेने वाला होता है पत्तेदार (lessee)
- दिया गया मूल्य कहलाता है प्रीमियम (premium)
- और नियमित रूप से दिया जाने वाला मूल्य कहलाता है किराया (rent)
धारा 106 : जब लिखित अनुबंध न हो, तो पट्टे की अवधि – Duration of certain leases in absence of written contract
(1) अगर कोई लिखित अनुबंध या स्थानीय प्रथा नहीं है:
- कृषि या औद्योगिक उद्देश्यों के लिए पट्टा = वर्ष-दर-वर्ष माना जाएगा, और इसे समाप्त करने के लिए दोनों पक्षों को 6 महीने की सूचना देना अनिवार्य है।
- अन्य किसी उद्देश्य के लिए पट्टा = महीना-दर-महीना, समाप्त करने के लिए 15 दिन की सूचना।
(2) यह सूचना उस दिन से मानी जाएगी जिस दिन प्राप्तकर्ता को सूचना मिली।
(3) यदि सूचना की अवधि कम है लेकिन वाद सूचना अवधि समाप्त होने के बाद दायर किया गया है, तो सूचना को अमान्य नहीं माना जाएगा।
(4) सूचना लिखित होनी चाहिए, हस्ताक्षरित हो, और डाक से भेजी जाए या स्वयं दी जाए, या निवास स्थान/संपत्ति पर चिपकाई जाए।
धारा 108 : पट्टेदार और पत्तेदार के अधिकार और कर्तव्य – Rights and liabilities of lessor and lessee
(A) पट्टेदार (Lessor) के अधिकार और कर्तव्य:
(a) पट्टेदार को कोई महत्वपूर्ण दोष, जो संपत्ति में है और पत्तेदार को ज्ञात नहीं, वह बताना होगा।
(b) पत्तेदार के निवेदन पर उसे संपत्ति का कब्जा देना होगा।
(c) यदि पत्तेदार किराया भरता है और अनुबंधों का पालन करता है, तो उसे बिना विघ्न संपत्ति का उपयोग करने देना होगा।
(B) पत्तेदार (Lessee) के अधिकार और कर्तव्य:
(d) पट्टे की अवधि में कोई वृद्धि (जैसे भूमि का विस्तार) पत्तेदार को प्राप्त होगी।
(e) अगर आग, तूफ़ान, बाढ़ या युद्ध से संपत्ति नष्ट हो जाए या उपयोग के लायक न रहे, तो पत्तेदार चाहें तो पट्टा समाप्त कर सकते हैं।
(f) यदि पट्टेदार ने सूचना दी और पट्टेदार जरूरी मरम्मत न करे, तो पत्तेदार स्वयं मरम्मत कर सकता है और खर्च किराए से घटा सकता है।
(g) अगर पट्टेदार को कोई भुगतान करना है जिसे यदि वह न करे तो वह बोझ पत्तेदार पर पड़े, तो पत्तेदार भुगतान करके वह रकम वसूल सकता है।
(h) पट्टा समाप्त होने के बाद भी, जब तक कब्जा है, पत्तेदार अपनी लगाई चीजें हटा सकता है, पर संपत्ति को यथावत छोड़े।
(i) अगर पट्टा किसी कारण से (पत्तेदार की गलती नहीं) समाप्त होता है, तो पत्तेदार फसलें काट सकता है।
(j) पत्तेदार अपना अधिकार बेच सकता है, बंधक रख सकता है या उपपट्टा दे सकता है, पर इससे उसकी मूल जिम्मेदारियाँ समाप्त नहीं होतीं। (कुछ मामलों में जैसे कि भू-राजस्व बकाया हो, यह अनुमति नहीं है)।
(k) पत्तेदार को वह बात बतानी होगी जिससे उसके अधिकार की कीमत बढ़ती हो और जो पट्टेदार को ज्ञात है पर पट्टेदार को नहीं।
(l) पत्तेदार को समय पर किराया या प्रीमियम देना होगा।
(m) पत्तेदार को संपत्ति को अच्छे हाल में रखना होगा और नुकसान की स्थिति में उसे ठीक करना होगा।
(n) अगर पत्तेदार को पता चले कि संपत्ति पर दावा या अतिक्रमण हो रहा है, तो उसे पट्टेदार को सूचित करना होगा।
(o) पत्तेदार संपत्ति का उपयोग ऐसे करे जैसे कोई सामान्य समझदार व्यक्ति करता है, और उसे नुकसान न पहुंचाए।
(p) बिना अनुमति, स्थायी निर्माण नहीं कर सकता (सिर्फ कृषि प्रयोजनों के लिए कर सकता है)।
(q) पट्टा समाप्त होने पर, पत्तेदार को संपत्ति का कब्जा वापस देना होगा।
धारा 109 : पट्टेदार के अधिकारों का स्थानांतरण – Rights of lessor’s transferee
अगर पट्टेदार (lessor) लीज़ की गई संपत्ति या उसके किसी हिस्से को या अपने उस हिस्से के अधिकार को किसी अन्य को स्थानांतरित करता है, तो स्थानांतरणकर्ता व्यक्ति (transferee) को, जब तक वह मालिक बना रहे, उस संपत्ति या हिस्से पर वही अधिकार मिलेंगे और यदि पट्टेदार चाहे तो उसे वही दायित्व भी होंगे। परंतु केवल इस स्थानांतरण से मूल पट्टेदार के दायित्व खत्म नहीं होते, जब तक किरायेदार (lessee) यह न तय करे कि वह स्थानांतरित व्यक्ति को उत्तरदायी मानेगा।
लेकिन, नया मालिक (transferee) केवल स्थानांतरण के बाद की किराया राशि का हकदार होगा; पहले के बकाया किराये पर नहीं। और अगर किरायेदार को स्थानांतरण का पता नहीं था और उसने मूल मालिक को किराया दे दिया, तो उसे दोबारा किराया नहीं देना होगा।
अगर किराया या प्रीमियम का हिस्सा तय नहीं हो पाया तो न्यायालय तय कर सकता है कि किस हिस्से के लिए कितना किराया देना है।
धारा 110 : लीज़ के समय की गणना – Exclusion of day on which term commences
यदि लीज़ किसी निश्चित दिन से शुरू होती है, तो उस दिन को गणना में शामिल नहीं किया जाएगा। अगर कोई दिन तय नहीं है, तो समय लीज़ बनने के दिन से गिना जाएगा।
यदि लीज़ एक वर्ष या वर्षों की है और कुछ तय नहीं किया गया है, तो वह उस दिन की सालगिरह तक चलेगी जिससे वह शुरू हुई।
अगर लीज़ समय से पहले समाप्त की जा सकती है और यह नहीं बताया गया कि किसके विकल्प से समाप्त होगी, तो यह अधिकार किरायेदार (lessee) का होगा।
धारा 111 : पट्टे की समाप्ति – Determination of lease
लीज़ समाप्त मानी जाती है—
(a) जब लीज़ में तय समय पूरा हो जाए;
(b) किसी शर्त पर आधारित हो और वह घटना घट जाए;
(c) यदि पट्टेदार का अधिकार किसी घटना से खत्म हो जाए;
(d) जब किरायेदार और पट्टेदार का सम्पूर्ण अधिकार एक ही व्यक्ति में एक ही समय पर मिल जाए;
(e) जब किरायेदार स्वेच्छा से अपना अधिकार वापिस दे दे;
(f) जब व्यवहार से यह प्रतीत हो कि किरायेदार ने अधिकार छोड़ दिया है;
(g) दंड के आधार पर:
- शर्त तोड़ना,
- किसी तीसरे के अधिकार को स्वीकार करना,
- दिवालिया घोषित होना, आदि;
(h) लीज़ खत्म करने की सूचना पर।
उदाहरण (f): किरायेदार नया पट्टा स्वीकार कर ले तो पहले वाला स्वतः समाप्त।
धारा 112 : दंड की माफी – Waiver of forfeiture
अगर पट्टेदार को लीज़ समाप्त करने का अधिकार हो, लेकिन वह किराया स्वीकार कर ले जो दंड लगने के बाद देय हुआ है, तो यह माना जाएगा कि उसने दंड को माफ कर दिया, अगर वह दंड के बारे में जानता था।
धारा 113 : खाली करने की सूचना की माफी – Waiver of notice to quit
अगर एक पक्ष द्वारा दी गई संपत्ति खाली करने की सूचना दूसरे पक्ष द्वारा सहमति या व्यवहार से माफ कर दी जाती है, तो वह सूचना समाप्त मानी जाएगी।
उदाहरण:
- नोटिस के बाद किराया स्वीकार कर लिया गया।
- एक नोटिस के बाद दूसरा नोटिस दिया गया।
धारा 114 : किराया न देने पर राहत – Relief against forfeiture for non-payment of rent
अगर किराया न देने के कारण पट्टा समाप्त हो गया और मकान मालिक उसे हटाने का मुकदमा करता है, तो किरायेदार सुनवाई के समय किराया, ब्याज और खर्चों का भुगतान या सुरक्षा देकर राहत पा सकता है, और पट्टा फिर से जारी माना जाएगा।
धारा 114A : अन्य मामलों में राहत – Relief against forfeiture in certain other cases
अगर किसी शर्त का उल्लंघन हुआ है और उस पर लीज़ समाप्त करने का अधिकार है, तो मकान मालिक को पहले लिखित नोटिस देना होगा और किरायेदार को सुधार का मौका देना होगा। यदि किरायेदार ऐसा नहीं करता, तभी हटाने का मुकदमा चल सकता है।
यह धारा लागू नहीं होती:
- किरायेदारी का स्थानांतरण करने वाली शर्त पर,
- किराया न देने वाली शर्त पर।
धारा 115 : उपपट्टों पर प्रभाव – Effect of surrender and forfeiture on under-leases
अगर किरायेदार ने किसी हिस्से का उपपट्टा (sub-lease) किया है, तो अगर वह लीज़ स्वेच्छा से खत्म कर देता है, तो यह उपपट्टा प्रभावित नहीं होगा। लेकिन अगर दंड के आधार पर लीज़ समाप्त होती है, तो उपपट्टा भी खत्म हो जाएगा, जब तक कि यह दंड मकान मालिक ने धोखाधड़ी से न लगवाया हो या अदालत राहत न दे।
धारा 116 : किरायेदारी का बने रहना – Effect of holding over
अगर लीज़ की अवधि खत्म हो गई और किरायेदार या उपकिरायेदार संपत्ति में बना रहा और मकान मालिक ने उससे किराया स्वीकार कर लिया या उसे बने रहने दिया, तो लीज़ फिर से नवीनीकृत मानी जाएगी — वर्ष-दर-वर्ष या माह-दर-माह, जैसा उपयोग हो।
उदाहरण:
- पाँच साल की लीज़ के बाद भी किरायेदार किराया देता रहा – माह-दर-माह लीज़ मानी जाएगी।
धारा 117 : कृषि प्रयोजनों के पट्टों पर अध्याय की छूट – Exemption of leases for agricultural purposes
इस अध्याय की कोई भी धारा कृषि प्रयोजन के लिए किए गए पट्टों (leases) पर लागू नहीं होगी, जब तक कि राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा यह न घोषित करे कि ये धाराएं कुछ या सभी कृषि पट्टों पर लागू होंगी, और वह भी किसी लागू स्थानीय कानून के अधीन।
ध्यान दें: ऐसी अधिसूचना प्रकाशन के छह महीने बाद ही प्रभाव में आएगी।
अध्याय VI – संपत्ति की अदला-बदली (Of Exchanges)
धारा 118 : “अदला-बदली” की परिभाषा – “Exchange” defined
जब दो व्यक्ति आपसी सहमति से एक वस्तु की मालिकाना हक़ के बदले दूसरी वस्तु की मालिकाना हक़ का आपसी हस्तांतरण करते हैं, तो उसे “अदला-बदली (exchange)” कहा जाता है। इसमें एक या दोनों वस्तुएँ पैसे भी हो सकती हैं।
इसका हस्तांतरण वही विधि अपनाकर किया जाएगा जो बिक्री (sale) के लिए लागू है।
धारा 119 : अदला-बदली में मिली वस्तु से वंचित होने पर अधिकार – Right of party deprived
अगर अदला-बदली में मिली वस्तु में किसी पक्ष के स्वामित्व में दोष हो और इस कारण दूसरा पक्ष उस वस्तु या उसके हिस्से से वंचित हो जाए, तो (जब तक कुछ अलग तय न किया गया हो), दोषपूर्ण पक्ष को:
- या तो हानि की भरपाई करनी होगी,
- या यदि वस्तु अब भी उसके पास है, तो वंचित व्यक्ति उसे वापिस ले सकता है।
धारा 120 : पक्षकारों के अधिकार और दायित्व – Rights and liabilities of parties
जब तक कुछ अलग न तय हो, हर पक्ष विक्रेता (seller) के समान दायित्वों और अधिकारों का धारक होता है उस वस्तु के लिए जो वह देता है, और क्रेता (buyer) के समान दायित्व और अधिकार होते हैं उस वस्तु के लिए जो वह लेता है।
धारा 121 : मुद्रा की अदला-बदली – Exchange of money
जब दो पक्ष पैसे की अदला-बदली करते हैं, तो हर पक्ष यह गारंटी करता है कि उसका दिया गया पैसा असली (genuine) है।
अध्याय VII – उपहार (Of Gifts)
धारा 122 : “उपहार” की परिभाषा – “Gift” defined
“उपहार” का अर्थ है, कोई व्यक्ति स्वेच्छा से और बिना किसी मूल्य के किसी निश्चित चल या अचल संपत्ति को दूसरे व्यक्ति को स्थानांतरित करता है, और दूसरा व्यक्ति उसे स्वीकार कर लेता है।
स्वीकृति कब होनी चाहिए: यह स्वीकृति दाता के जीवनकाल में और जब वह देने में सक्षम हो, तभी होनी चाहिए।
यदि प्राप्तकर्ता (donee) की मृत्यु उपहार स्वीकार करने से पहले हो जाए, तो उपहार अमान्य (void) होगा।
धारा 124 : वर्तमान और भविष्य की संपत्ति का उपहार – Gift of existing and future property
अगर उपहार में मौजूदा और भविष्य की संपत्ति दोनों दी गई हों, तो भविष्य की संपत्ति वाला हिस्सा अमान्य (void) होगा।
धारा 125 : यदि कई लोगों को उपहार दिया गया हो, और कोई न माने – Gift to several, one doesn’t accept
अगर किसी वस्तु का उपहार दो या अधिक लोगों को दिया गया और उनमें से कोई एक स्वीकृति नहीं देता, तो उस व्यक्ति का हिस्सा अमान्य माना जाएगा।
धारा 126 : उपहार को निलंबित या रद्द करने की स्थिति – When gift may be suspended or revoked
- अगर दाता और प्राप्तकर्ता तय करते हैं कि किसी निर्धारित घटना (जो दाता की इच्छा पर निर्भर न हो) के होने पर उपहार रद्द या स्थगित होगा, तो ऐसा हो सकता है।
- लेकिन अगर उपहार को केवल दाता की इच्छा पर रद्द करने का अधिकार रखा गया, तो वह उपहार पूरी तरह या उस हिस्से में अमान्य होगा।
- इसके अलावा, उपहार उसी प्रकार रद्द किया जा सकता है जैसे किसी अनुबंध को, यदि वह अनुबंध की तरह रद्द करने योग्य हो (केवल बिना मूल्य/consideration वाली स्थिति को छोड़कर)।
- एक बार वैध उपहार देने के बाद, सामान्यतः उसे रद्द नहीं किया जा सकता।
यह धारा उन खरीदारों को प्रभावित नहीं करती जिन्होंने मूल्य चुकाया है और जिन्हें उपहार के बारे में जानकारी नहीं थी।
उदाहरण:
- (a) A ने B को खेत उपहार में दिया, और शर्त रखी कि यदि B और उसके वंशज A से पहले मर जाएँ, तो खेत A को लौट आएगा। B बिना वंशज के मर गया। A खेत वापिस ले सकता है।
- (b) A ने B को ₹1,00,000 उपहार में दिया और शर्त रखी कि वह ₹10,000 अपनी इच्छा से वापिस ले सकता है। ₹90,000 का उपहार वैध है, लेकिन ₹10,000 का नहीं।
धारा 127 : बोझिल उपहार – Onerous Gifts
यदि किसी उपहार में एक साथ कई वस्तुएँ दी गई हैं, जिनमें से कुछ पर कोई दायित्व (obligation) हो और कुछ पर न हो, तो प्राप्तकर्ता (donee) उपहार को केवल तभी स्वीकार कर सकता है जब वह सभी वस्तुओं को एक साथ स्वीकार करे।
यदि उपहार अलग-अलग स्वतंत्र वस्तुओं के रूप में दिया गया है, तो प्राप्तकर्ता किसी एक को स्वीकार और दूसरी को अस्वीकार कर सकता है, भले ही एक लाभदायक और दूसरी बोझिल हो।
बोझिल उपहार और अयोग्य व्यक्ति:
यदि कोई व्यक्ति जो अनुबंध करने में अक्षम है, ऐसा उपहार स्वीकार करता है जिसमें कोई दायित्व जुड़ा हो, तो वह ऐसे दायित्व से बंधा नहीं माना जाएगा।
लेकिन यदि वह बाद में सक्षम हो जाने के बाद और दायित्व की जानकारी होते हुए भी उस संपत्ति को अपने पास रखे, तो वह ऐसे दायित्वों से बाध्य हो जाएगा।
उदाहरण:
- (a) A ने B को दो कंपनियों के शेयर दिए — एक लाभदायक और दूसरी घाटे में। B ने घाटे वाली कंपनी के शेयर लेने से इंकार कर दिया, इसलिए वह लाभ वाली कंपनी के शेयर भी नहीं ले सकता।
- (b) A ने B को एक मकान की लीज़ (जो घाटे में है) दी और अलग से पैसा भी दिया। B ने लीज़ अस्वीकार की लेकिन पैसा रख लिया — वह पैसा रख सकता है क्योंकि दोनों लेन-देन स्वतंत्र थे।
धारा 128 : सार्वभौमिक प्राप्तकर्ता – Universal Donee
अगर कोई उपहार दाता की पूरी संपत्ति का है, तो प्राप्तकर्ता (donee) उस उपहार की सीमा तक दाता के सभी कर्जों और दायित्वों का व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होगा।
धारा 129 : मरणासन्न स्थिति में उपहार और मुस्लिम कानून – Saving of donations mortis causa and Muhammadan Law
इस अध्याय की कोई भी बात:
- मृत्यु की आशंका में चल संपत्ति के उपहार (donation mortis causa) पर लागू नहीं होती।
- और मुस्लिम विधि (Muslim Law) के किसी नियम को प्रभावित नहीं करती।
अध्याय VIII – क्रियाशील दावा का स्थानांतरण (Transfer of Actionable Claims)
धारा 130 : क्रियाशील दावा का हस्तांतरण – Transfer of actionable claim
- क्रियाशील दावा (actionable claim) का हस्तांतरण, चाहे वह मूल्य देकर हो या बिना मूल्य के, केवल एक लिखित हस्तांतरणपत्र द्वारा किया जा सकता है जो स्थानांतरणकर्ता (transferor) या उसके अधिकृत एजेंट द्वारा हस्ताक्षरित हो।
एक बार यह दस्तावेज़ बन जाने के बाद:
- स्थानांतरणकर्ता के सभी अधिकार और उपाय (remedies) प्राप्तकर्ता (transferee) को हस्तांतरित हो जाते हैं,
- चाहे स्थानांतरण की सूचना दी गई हो या नहीं।
प्रावधान: जब तक ऋणी (debtor) या अन्य संबंधित व्यक्ति को यह सूचना नहीं दी जाती, तब तक वह स्थानांतरणकर्ता से उसी तरह लेन-देन कर सकता है जैसे पहले करता था।
- प्राप्तकर्ता उस क्रियाशील दावे के लिए स्वयं मुकदमा या कानूनी कार्रवाई कर सकता है, बिना स्थानांतरणकर्ता की सहमति या उसे पक्ष बनाए।
अपवाद: यह धारा समुद्री या अग्नि बीमा की पॉलिसियों पर लागू नहीं होती, और बीमा अधिनियम, 1938 की धारा 38 से प्रभावित नहीं करती।
उदाहरण:
- (i) A ने B से पैसा लेना है, B ने यह दावा C को सौंप दिया। लेकिन A को सूचना नहीं मिली और उसने B को पैसा दे दिया। यह भुगतान वैध है, और C A से दोबारा पैसा नहीं माँग सकता।
- (ii) A ने अपने जीवन पर बीमा कराया और उसे बैंक को गिरवी रख दिया। A की मृत्यु के बाद बैंक बिना A के उत्तराधिकारी की सहमति के बीमा की राशि पा सकता है।
धारा 131 : सूचना लिखित और हस्ताक्षरित हो – Notice to be in writing, signed
क्रियाशील दावे के स्थानांतरण की सूचना:
- लिखित होनी चाहिए, और
- स्थानांतरणकर्ता या उसके अधिकृत एजेंट द्वारा हस्ताक्षरित होनी चाहिए।
यदि वह हस्ताक्षर करने से इंकार करे, तो प्राप्तकर्ता या उसका एजेंट सूचना दे सकते हैं।
इस सूचना में प्राप्तकर्ता का नाम और पता देना आवश्यक है।
धारा 132 : प्राप्तकर्ता की देनदारी – Liability of transferee
प्राप्तकर्ता को वह दावा उसी स्थिति में प्राप्त होता है, जिस स्थिति में वह स्थानांतरणकर्ता को प्राप्त था। यानी:
- प्राप्तकर्ता को वही दायित्व और निष्पक्षताएँ भुगतनी पड़ेंगी जो स्थानांतरणकर्ता को भुगतनी पड़तीं।
उदाहरण:
- (i) A को B से पैसा लेना है, और B को A से भी कुछ लेना है। A ने यह दावा C को सौंप दिया। C ने B पर मुकदमा किया। B अपनी रकम A से काट सकता है, भले ही C को पता न हो।
- (ii) A ने B के नाम एक बॉन्ड बनाया, लेकिन ऐसी परिस्थितियाँ थीं कि A उसे रद्द कर सकता था। B ने वह बॉन्ड C को बेच दिया, लेकिन C को यह परिस्थिति पता नहीं थी। तब भी C A पर उस बॉन्ड को लागू नहीं कर सकता।
धारा 133 : देनदार की सक्षमता की गारंटी – Warranty of solvency of debtor
यदि कोई व्यक्ति किसी ऋण (debt) का स्थानांतरण करता है और यह गारंटी देता है कि देनदार सक्षम है भुगतान करने में, तो ऐसी गारंटी, जब तक कोई अलग अनुबंध न हो, केवल उस समय की सक्षमता (solvency) पर लागू मानी जाएगी जब स्थानांतरण हुआ।
यदि स्थानांतरण मूल्य के बदले किया गया है, तो गारंटी केवल उस मूल्य या धनराशि तक सीमित होगी, जितनी में स्थानांतरण किया गया।
धारा 134 : बंधक ऋण – Mortgaged debt
जब कोई ऋण इस उद्देश्य से स्थानांतरित किया जाता है कि उससे किसी वर्तमान या भविष्य के ऋण का भुगतान सुरक्षित किया जा सके, तो:
- उस स्थानांतरित ऋण से प्राप्त राशि का उपयोग पहले वसूली की लागत चुकाने में होगा,
- फिर उस ऋण की भुगतान राशि चुकाने में, जो उस समय तक सुरक्षित किया गया है,
- और यदि कुछ बचता है, तो वह राशि स्थानांतरणकर्ता या अन्य पात्र व्यक्ति को दी जाएगी।
धारा 135 : अग्नि बीमा पॉलिसी के अधिकारों का हस्तांतरण – Assignment of rights under policy of insurance against fire
यदि कोई व्यक्ति किसी अग्नि बीमा पॉलिसी (fire insurance policy) को लिखित रूप से किसी अन्य को सौंप देता है, और उस व्यक्ति को बीमित संपत्ति का पूरा स्वामित्व प्राप्त हो गया है, तो:
- उस व्यक्ति को ऐसे सभी कानूनी अधिकार मिल जाते हैं, जैसे बीमा अनुबंध उसी से किया गया हो।
धारा 135A : (निरस्त) – Repealed
यह धारा अब कानून से हटा दी गई है।
धारा 136 : न्यायालयों से जुड़े अधिकारियों की अक्षमता – Incapacity of officers connected with Courts of Justice
कोई भी:
- न्यायाधीश,
- वकील, या
- न्यायालय से जुड़ा अधिकारी,
किसी क्रियाशील दावे को न तो खरीद सकता है, न व्यापार कर सकता है, न उसमें हिस्सेदारी ले सकता है और न ही किसी प्रकार की शर्त या अनुबंध कर सकता है।
यदि वह ऐसा करता है, तो न्यायालय ऐसा दावा उसके (या उसके द्वारा किसी अन्य के) पक्ष में प्रवर्तित नहीं करेगा।
धारा 137 : परक्राम्य लिखतों आदि की छूट – Saving of negotiable instruments, etc.
इस अध्याय की उपर्युक्त धाराएँ लागू नहीं होती हैं:
- शेयर, स्टॉक्स, डिबेंचर आदि पर,
- ऐसे दस्तावेजों पर जो कानून या परंपरा के अनुसार परक्राम्य (negotiable) माने जाते हैं,
- या ऐसे व्यापारिक दस्तावेज़, जो माल के स्वामित्व या नियंत्रण को साबित करते हैं।
स्पष्टीकरण:
“व्यापारिक दस्तावेज़ जो माल के स्वामित्व को दर्शाते हैं” में निम्न शामिल हैं:
- बिल ऑफ लैडिंग (bill of lading),
- डॉक-वारंट,
- वेयरहाउस की रसीद,
- रेलवे रसीद,
- डिलीवरी ऑर्डर या वारंट,
- और कोई भी ऐसा दस्तावेज़ जो व्यापार में सामान्यतः उपयोग होता है माल पर नियंत्रण या स्वामित्व दर्शाने या स्थानांतरण हेतु।