The Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961

The Rajasthan Court Fees and Suits Valuation Act, 1961

राजस्थान न्यायालय शुल्क एवं वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961

 (अधिनियम संख्या 23 का वर्ष 1961)

उद्देश्य और कारण का विवरण (संशोधन अधिनियम 2009)

विवाद निपटान के वैकल्पिक तरीकों से संबंधित सेक्शन 89 के तहत यदि कोई मामला सुलझा लिया जाता है, तो कोर्ट फीस वापसी से जुड़ी व्यवस्था के विषय में माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 2 अगस्त, 2005 के निर्णय में (रिट याचिका सिविल संख्या 496/200 – Salem Advocate Bar Association, Tamil Nadu बनाम भारत संघ) निम्नलिखित टिप्पणी की –

“जहाँ कोई मामला सेक्शन 89 के अंतर्गत सुझाए गए किसी एक तरीके से सुलझता है, वहाँ कोर्ट फीस की वापसी का प्रावधान करना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है, जैसा कि सेंट्रल कोर्ट फीस एक्ट में 1999 के संशोधनों द्वारा किया गया। राज्य सरकार को अपने राज्य अधिनियम में इसी प्रकार के संशोधन करने पर विचार करना चाहिए।”

(निर्णय का अनुच्छेद 67)

माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश और जनहित को ध्यान में रखते हुए, राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 (अधिनियम संख्या 23, 1961) में एक नया सेक्शन 65-बी जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया है।

यह विधेयक उपरोक्त उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए लाया गया है।

(राष्ट्रपति की स्वीकृति 26 अगस्त, 1961 को प्राप्त हुई)

यह एक अधिनियम है जो राजस्थान राज्य में कोर्ट फीस और वाद मूल्यांकन से संबंधित कानूनों में संशोधन और समेकन के लिए बनाया गया है।

अध्याय I : प्रारम्भिक – Chapter I: Preliminary

धारा 1 : संक्षिप्त शीर्षक, क्षेत्र और प्रवर्तन – Short title, extent and commencement

(1) इस अधिनियम को राजस्थान न्यायालय शुल्क और वाद मूल्यांकन अधिनियम, 1961 कहा जाएगा।
(2) यह अधिनियम पूरे राजस्थान राज्य में लागू होगा।
(3) यह वह तारीख होगी जब राज्य सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा इसे लागू करेगी।

धारा 2 : अधिनियम का अनुप्रयोग – Application of Act

(1) यह अधिनियम केंद्र सरकार के अधीन कार्यरत अधिकारियों के समक्ष प्रस्तुत या प्रस्तुत किए जाने वाले दस्तावेजों पर लागू नहीं होगा।
(2) यदि किसी अन्य कानून में किसी कार्यवाही से संबंधित शुल्क वसूलने के लिए विशेष प्रावधान हैं, तो उन प्रावधानों के अधीन इस अधिनियम के शुल्क से संबंधित प्रावधान लागू होंगे

धारा 3 : परिभाषाएँ – Definitions

जब तक प्रसंग अन्यथा न हो, इस अधिनियम में –
(i) “अपील” में क्रॉस ऑब्जेक्शन भी शामिल है।

(ii) “न्यायालय” से तात्पर्य है कोई भी दीवानी, राजस्व या आपराधिक न्यायालय और इसमें कोई अधिनाधिकरण या विशेष/स्थानीय कानून के तहत अधिकार रखने वाला प्राधिकारी भी शामिल है।

(iii) “निर्धारित” का अर्थ है इस अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों द्वारा निर्धारित

(iv) जो शब्द इस अधिनियम या राजस्थान सामान्य क्लॉजेस अधिनियम, 1955 में परिभाषित नहीं हैं परंतु दिवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 में परिभाषित हैं, वे वहीं अर्थ ग्रहण करेंगे।

अध्याय II : शुल्क देने की बाध्यता – Chapter II: Liability to Pay Fee

धारा 4 : न्यायालयों और लोक कार्यालयों में शुल्क की वसूली – Levy of fee in Courts and Public Offices

कोई भी ऐसा दस्तावेज जिस पर इस अधिनियम के अंतर्गत शुल्क देय है, तब तक –
(i) किसी न्यायालय (जिसमें उच्च न्यायालय भी शामिल है) में दायर, प्रदर्शित, दर्ज या क्रियान्वित नहीं किया जाएगा, और
(ii) किसी लोक कार्यालय में दाखिल, दर्ज या क्रियान्वित नहीं किया जाएगा जब तक उस दस्तावेज पर निर्धारित न्यूनतम शुल्क अदा न किया गया हो

परन्तु, यदि किसी अपराधिक न्यायालय को यह आवश्यक प्रतीत होता है कि उचित शुल्क न चुकाए गए दस्तावेज की दाखिला या प्रदर्शना न्याय की विफलता को रोकने के लिए आवश्यक है, तो यह धारा ऐसा करने से रोक नहीं लगाएगी

धारा 5 : अनजाने में प्राप्त दस्तावेजों पर शुल्क – Fees on documents inadvertently received

यदि कोई दस्तावेज पूरे या आंशिक शुल्क के बिना गलती से न्यायालय या लोक कार्यालय में प्राप्त हो गया है, तो न्यायालय या कार्यालयाध्यक्ष विवेक अनुसार समय निश्चित कर उस व्यक्ति को शुल्क अदा करने की अनुमति दे सकता है।
शुल्क चुकाने पर, ऐसा दस्तावेज ऐसा माना जाएगा जैसे वह प्रारंभ में ही उचित शुल्क के साथ दाखिल हुआ हो

धारा 6 : बहुविध वाद – Multifarious suits

(1) यदि किसी वाद में एक ही कारण पर आधारित अनेक पृथक और भिन्न राहतें मांगी गई हों, तो वादपत्र पर उन सबकी कुल मूल्य की आधार पर शुल्क लगेगा
परन्तु, यदि कोई राहत केवल मुख्य राहत की सहायक हो, तो केवल मुख्य राहत की मूल्य पर शुल्क लगेगा।

(2) यदि एक ही कारण पर आधारित वैकल्पिक रूप से एक से अधिक राहतें मांगी गई हों, तो सबसे अधिक शुल्क वाली राहत के अनुसार शुल्क लिया जाएगा।

(3) यदि वाद में दो या अधिक पृथक कारणों पर आधारित राहतें मांगी गई हों, तो प्रत्येक कारण के लिए जैसे अलग-अलग वाद दायर किए जाते, वैसे ही कुल शुल्क लगेगा।
परन्तु, यदि राहतें एक ही व्यक्ति के विरुद्ध एक ही लेन-देन से उत्पन्न हुई हैं और वैकल्पिक रूप से मांगी गई हैं, तो केवल सबसे अधिक शुल्क वाली राहत का शुल्क देय होगा।

(4) उप-धारा (3) से दिवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 की आदेश II के नियम 6 के तहत न्यायालय की शक्ति प्रभावित नहीं होगी।

(5) इस धारा के प्रावधान अपीलों, आवेदन-पत्रों, याचिकाओं और लिखित वक्तव्यों पर भी समान रूप से लागू होंगे

स्पष्टीकरण – यदि वाद अचल संपत्ति के कब्जे और अंतरिम लाभों (mesne profits) के लिए है, तो माना जाएगा कि वे एक ही कारण पर आधारित हैं।

अध्याय III : विभागीय शुल्क निर्धारण – Chapter III: Departmental Determination of Fee

धारा 7 : बाजार मूल्य का निर्धारण – Determination of market value

(1) जहाँ कहीं शुल्क का निर्धारण किसी संपत्ति के बाजार मूल्य पर निर्भर करता है, वह मूल्य वादपत्र प्रस्तुत करने की तिथि को माना जाएगा।
(2) यदि भूमि धारा 24(क) या (ख), धारा 26(क), धारा 28, धारा 29, धारा 35(1) या (3), धारा 36 या धारा 44 के अंतर्गत आती है, तो उसका बाजार मूल्य होगा –
(क) यदि भूमि पर किराया निर्धारित है, तो पिछली बन्दोबस्त में स्वीकृत किराया दर का 25 गुना
(ख) यदि भूमि पर किराया निर्धारित नहीं है, तो आसपास की समान भूमि की पिछली बन्दोबस्त में स्वीकृत किराया दर का 25 गुना

धारा 8 : समन्यस्त दावा या प्रतिदावा – Set off or counter claim

कोई भी लिखित बयान जिसमें समन्यस्त दावा या प्रतिदावा किया गया हो, उस पर वादपत्र के समान शुल्क देय होगा।

धारा 9 : एक से अधिक वर्गों में आने वाले दस्तावेज – Documents falling under two or more descriptions

यदि कोई दस्तावेज इस अधिनियम के दो या अधिक वर्गों में आता है और उनके लिए अलग-अलग शुल्क निर्धारित हैं, तो उस पर केवल सबसे अधिक शुल्क देय होगा।
परंतु, यदि एक वर्ग विशेष और दूसरा सामान्य हो, तो विशेष वर्ग के अनुसार शुल्क देय होगा।

धारा 10 : वाद विषय की जानकारी और मूल्यांकन – Statement of particulars of subject-matter of suit and plaintiff’s valuation thereof

जहाँ वाद में वादपत्र पर शुल्क वाद विषय के बाजार मूल्य पर निर्भर हो, वहाँ वादी को वादपत्र के साथ एक निर्धारित प्रपत्र में विषय और उसका मूल्यांकन देना होगा, जब तक कि यह विवरण वादपत्र में ही न हो।

धारा 11 : उचित शुल्क पर निर्णय – Decision as to proper fee

(1) वाद पंजीकृत करने से पहले, न्यायालय वादपत्र और धारा 10 के अंतर्गत दिए गए विवरण के आधार पर उचित शुल्क निर्धारित करेगा। यह निर्णय पुनरीक्षण के अधीन होगा।

(2) प्रतिवादी यह कह सकता है कि वाद का मूल्यांकन ठीक नहीं है या शुल्क कम है। ऐसे सभी प्रश्नों का निपटारा वाद की सुनवाई से पूर्व होगा।

यदि न्यायालय पाता है कि मूल्यांकन गलत है या शुल्क कम है, तो वादपत्र में संशोधन और शुल्क जमा कराने की तिथि निश्चित की जाएगी।

यदि निर्धारित समय में संशोधन या शुल्क जमा नहीं किया गया, तो वादपत्र खारिज किया जाएगा और न्यायालय यथोचित आदेश पारित करेगा।

(3) यदि किसी प्रतिवादी को मुद्दों के निर्धारण के बाद जोड़ा गया है, तो वह भी लिखित बयान में मूल्यांकन या शुल्क पर आपत्ति उठा सकता है। ऐसे मामलों में भी सबूत लेने से पहले उपरोक्त प्रक्रिया अपनाई जाएगी।

स्पष्टीकरण: यह उपधारा ऐसे प्रतिवादी पर लागू नहीं होगी जिसे उत्तराधिकारी या प्रतिनिधि के रूप में जोड़ा गया हो और जिसे पहले से आपत्ति दर्ज करने का अवसर मिला हो।
(4)
(क) यदि कोई वाद अपील में जाता है, तो अपील न्यायालय स्वयं या किसी पक्ष के आवेदन पर निचली अदालत द्वारा शुल्क निर्धारण की समीक्षा कर सकता है।
स्पष्टीकरण: भले ही अपील वाद के केवल किसी भाग पर हो, वह अपील मानी जाएगी।

(ख) यदि अपील न्यायालय पाता है कि निचली अदालत में कम शुल्क जमा हुआ है, तो वह संबंधित पक्ष को निर्धारित समय में अंतर शुल्क जमा करने का निर्देश देगा।

(ग) यदि यह शुल्क नहीं जमा किया गया और वह राहत, जिसे अपीलकर्ता अपील में चाहता है, निचली अदालत ने अस्वीकार कर दी थी, तो अपील खारिज कर दी जाएगी।

लेकिन यदि वह राहत निचली अदालत द्वारा दी गई थी, तो शुल्क भूमि राजस्व की बकाया राशि की तरह वसूल किया जाएगा।
(घ) यदि निचली अदालत में अधिशेष शुल्क जमा हुआ है, तो न्यायालय उसे वापस करने का आदेश देगा।
(5) प्रतिवादी के लिखित बयान में क्षेत्राधिकार निर्धारण से संबंधित सभी प्रश्नों का निर्णय भी वाद की सुनवाई से पूर्व किया जाएगा।

स्पष्टीकरण: “दावे की मेरिट” से तात्पर्य ऐसे सभी मुद्दों से है जो मुकदमे के मूल दावे के निपटारे से संबंधित हों, न कि वाद के ढांचे, पक्षकारों के मिसजॉइंडर, क्षेत्राधिकार या शुल्क संबंधी मुद्दों से।

धारा 12 : मुद्दों पर अतिरिक्त शुल्क – Additional fee on issues framed

यदि किसी पक्षकार पर किसी मुद्दे के निर्धारण के कारण अतिरिक्त शुल्क देय हो जाता है और वह निर्धारित समय में शुल्क नहीं देता, तो उस मुद्दे को वाद से हटा दिया जाएगा और शेष मुद्दों पर सुनवाई की जाएगी।

धारा 13 : दावे के हिस्से का परित्याग – Relinquishment of portion of claim

यदि वादी को अतिरिक्त शुल्क चुकाने को कहा जाए, तो वह अपने दावे का कुछ हिस्सा त्यागकर वादपत्र में संशोधन कर सकता है ताकि दिया गया शुल्क पर्याप्त हो जाए।

ऐसा संशोधन न्यायालय द्वारा अनुमति पर होगा और बाद में वादी उस छोड़े गए हिस्से को दोबारा नहीं जोड़ सकता

धारा 14 : लिखित बयान पर शुल्क – Fee payable on written statement

जहाँ प्रतिवादी द्वारा दायर लिखित बयान पर शुल्क देय हो, वहां धारा 11 की सभी प्रक्रियाएं लागू होंगी, और प्रतिवादी को वादी तथा संबंधित पक्षकार को प्रतिवादी माना जाएगा।

धारा 15 : अपीलों आदि पर शुल्क – Fee payable on appeals etc.

धाराएं 10 से 13, जैसे वादपत्रों पर शुल्क निर्धारण हेतु लागू होती हैं, वैसे ही वे द्वितीय अपील, क्रॉस-ऑब्जेक्शन या उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश के निर्णय के विरुद्ध अपील जैसे मामलों में भी उसी प्रकार लागू होंगी

अध्याय IV : गणना – Chapter IV: Computation

धारा 16 : याचिकाओं, आवेदनों आदि पर देय शुल्क – Fee payable on petitions, applications etc.

धाराएं 10 से 13 जैसी वादपत्रों पर शुल्क निर्धारण के लिए लागू होती हैं, वैसे ही वे याचिकाओं, आवेदनों और अन्य कार्यवाहियों पर शुल्क निर्धारण हेतु भी समान रूप से लागू होंगी।

धारा 17 : न्यायालय शुल्क परीक्षक – Court-fee Examiners

(1) उच्च न्यायालय ऐसे अधिकारी नियुक्त कर सकता है जिन्हें न्यायालय शुल्क परीक्षक कहा जाएगा। इनका कार्य अधीनस्थ न्यायालयों के अभिलेखों का निरीक्षण करना होगा, ताकि यह देखा जा सके कि वाद विषय का मूल्यांकन और शुल्क की पर्याप्तता के संबंध में प्रस्तुत विवरण और न्यायालयों के आदेश सही हैं या नहीं
(2) ऐसे परीक्षकों द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में उठाए गए प्रश्नों को संबंधित न्यायालय सुनकर और तय करेगा। इसके लिए यह स्पष्ट किया गया है कि न्यायालय पहले दिए गए निर्णय की पुनरावृत्ति (review) भी कर सकता है।

धारा 18 : जांच और आयोग – Inquiry and commission

वाद या कार्यवाही के वाद विषय का मूल्यांकन सही है या शुल्क पर्याप्त है, यह निर्णय करने हेतु न्यायालय उचित जांच कर सकता है। यदि आवश्यक हो तो न्यायालय स्थानीय या अन्य जांच हेतु किसी उपयुक्त व्यक्ति को आयोग जारी कर सकता है। उसकी रिपोर्ट और रिकार्ड किया गया साक्ष्य, साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य होगा

धारा 19 : राज्य सरकार को सूचना – Notice to the State Government

यदि किसी वादपत्र, लिखित बयान, याचिका या अपील से संबंधित शुल्क या वाद विषय का मूल्यांकन ऐसा है जो शुल्क को प्रभावित करता है, तो न्यायालय यदि उचित समझे, तो राज्य सरकार को नोटिस दे सकता है
ऐसे मामलों में, राज्य सरकार को उस प्रश्न के निर्णय के लिए वाद या कार्यवाही का पक्षकार माना जाएगा, और जब न्यायालय अंतिम आदेश या डिक्री पारित करेगा, तो उस निर्णय को उस डिक्री या आदेश का हिस्सा माना जाएगा।

धारा 20 : शुल्क की गणना कैसे की जाए – Fee how reckoned

इस अधिनियम के अंतर्गत देय शुल्क की गणना इस अध्याय, अध्याय VI, VII और अनुसूची I व II के अनुसार की जाएगी।

धारा 21 : धनराशि या हर्जाना के वाद – Suits for money or damages

जहाँ वाद धनराशि, हर्जाना, मुआवजा, भरण-पोषण की बकाया राशि, वार्षिzकी या अन्य आवधिक भुगतान से संबंधित हो, वहां शुल्क दावा की गई राशि पर आधारित होगा।

पहला प्रावधान: यदि वाद मानहानि के लिए हर्जाना मांगता है, तो शुल्क दावा की गई राशि पर लगेगा, लेकिन अधिकतम रु. 25,000 तक ही देय होगा।

दूसरा प्रावधान: यदि वाद घातक दुर्घटना अधिनियम, 1855 के तहत हो, तो वादपत्र या अपील पर मात्र 10 रुपये का निश्चित शुल्क देय होगा।

[2020 के संशोधन द्वारा प्रतिस्थापित]

धारा 22 : भरण-पोषण और वार्षिकी के वाद – Suits for maintenance and annuities
इन वादों में शुल्क निम्न प्रकार से निर्धारित होगा –

(क) यदि वाद भरण-पोषण के लिए है, तो एक वर्ष के लिए मांगी गई राशि पर शुल्क लगेगा।

(ख) यदि वाद भरण-पोषण की वृद्धि या कमी के लिए है, तो वार्षिक वृद्धि/कमी की राशि पर शुल्क लगेगा।

(ग) यदि वाद वार्षिकी या आवधिक भुगतान से संबंधित है, तो एक वर्ष के लिए मांगी गई राशि का पांच गुना शुल्क देय होगा।

प्रथम प्रावधान: यदि वार्षिकी पाँच वर्षों से कम अवधि के लिए देय है, तो शुल्क कुल देय राशि पर आधारित होगा।

द्वितीय प्रावधान:

  • भरण-पोषण की वृद्धि का वाद उस न्यायालय में दायर होगा जो वृद्ध दर पर वाद स्वीकार करने की अधिकारिता रखता हो।
  • भरण-पोषण की कमी का वाद उस न्यायालय में दायर होगा जो कम की गई दर पर वाद स्वीकार करने की अधिकारिता रखता हो।

अध्याय IV : गणना – Chapter IV: Computation (जारी)

धारा 23 : चल संपत्ति से संबंधित वाद – Suits for movable property

(1) जब वाद चल संपत्ति (टाइटल दस्तावेज़ों को छोड़कर) के लिए हो:
(क) यदि वाद विषय की बाजार कीमत हो, तो शुल्क उसी पर आधारित होगा।
(ख) यदि बाजार कीमत न हो, तो शुल्क वादपत्र में मूल्यांकित राहत की राशि पर आधारित होगा।

(2)
(क) जब वाद टाइटल दस्तावेजों के कब्जे के लिए हो और –
(i) वादपत्र में वादी के धन या संपत्ति पर अधिकार को नकारा गया हो, या
(ii) ऐसा कोई मुद्दा तय हुआ हो,
तो शुल्क उस राशि या संपत्ति के बाजार मूल्य के चौथाई हिस्से पर लिया जाएगा।
परंतु, यदि विवादित हिस्सा कुल राशि या संपत्ति का एक भाग मात्र है, तो शुल्क उस भाग के चौथाई हिस्से पर लगेगा।

(ख) जब वादी के धन या संपत्ति पर अधिकार को नहीं नकारा गया हो, तो शुल्क वादपत्र में किए गए मूल्यांकन या न्यायालय द्वारा किए गए मूल्यांकन में जो अधिक हो, उस पर आधारित होगा।

स्पष्टीकरण: “टाइटल दस्तावेज़” वह दस्तावेज़ है जो किसी संपत्ति में किसी भी प्रकार के अधिकार, स्वामित्व या हित को वर्तमान या भविष्य में बनाता, घोषित करता, स्थानांतरित करता, सीमित करता या समाप्त करता है।

धारा 24 : घोषणात्मक डिक्री के लिए वाद – Suits for declaration

जब वाद केवल घोषणा या घोषणा के साथ राहत हेतु हो (धारा 25 के अंतर्गत नहीं):
(क) यदि राहत घोषणा और संपत्ति के कब्जे के लिए है, तो शुल्क संपत्ति के बाजार मूल्य पर लगेगा, लेकिन न्यूनतम शुल्क ₹20 होगा।
(ख) यदि राहत घोषणा और निषेधाज्ञा के लिए है और यह किसी अचल संपत्ति से संबंधित है, तो शुल्क बाजार मूल्य के आधे पर लगेगा, न्यूनतम ₹20।
(ग) यदि relief किसी विशेष अधिकार (जैसे किसी नाम, चिह्न, पुस्तक आदि का उपयोग/प्रदर्शन) के उल्लंघन पर आधारित है, तो शुल्क वादपत्र में किए गए मूल्यांकन पर, परंतु न्यूनतम ₹40।
(घ) यदि घोषणा संपत्ति से संबंधित है और कोई अन्य राहत नहीं मांगी गई, तो शुल्क संपत्ति के बाजार मूल्य पर, न्यूनतम ₹20।
(ङ) अन्य सभी मामलों में, भले ही वाद विषय का मूल्यांकन संभव हो या नहीं, शुल्क वादपत्र में किए गए मूल्यांकन पर, परंतु न्यूनतम ₹25।

धारा 25 : दत्तक ग्रहण से संबंधित वाद – Adoption suits

जहां दत्तक ग्रहण की वैधता या अवैधता को लेकर घोषणा मांगी जाती है और यह किसी संपत्ति से संबंधित हो:
(i) यदि संपत्ति का मूल्य ₹5000 या उससे कम है – शुल्क ₹50।
(ii) यदि मूल्य ₹5000 से अधिक लेकिन ₹10,000 तक है – शुल्क ₹100।
(iii) यदि मूल्य ₹10,000 से अधिक है – शुल्क ₹500।

धारा 26 : निषेधाज्ञा के वाद – Suits for injunction

(क) यदि वादी का दावा किसी अचल संपत्ति से संबंधित है और वह कहता है कि उसका स्वामित्व नकारा गया है, तो शुल्क बाजार मूल्य के आधे पर या ₹300 में जो भी अधिक हो।
(ख) यदि relief किसी विशेष अधिकार (जैसे चिह्न, पुस्तक आदि) के उल्लंघन से संबंधित हो, तो शुल्क वादपत्र में किए गए मूल्यांकन पर या ₹500 में जो अधिक हो।
(ग) अन्य सभी मामलों में शुल्क वादपत्र में किए गए मूल्यांकन पर या ₹400 में जो अधिक हो

धारा 27 : न्यास संपत्ति से संबंधित वाद – Suits relating to trust property

जब वाद न्यास संपत्ति के कब्जे या संयुक्त कब्जे या घोषणात्मक डिक्री (सहायक राहत के साथ या बिना) के लिए हो और पक्षकार ट्रस्टी, पूर्व ट्रस्टी या प्रतिद्वंद्वी ट्रस्टी हों, तो शुल्क संपत्ति के बाजार मूल्य के पांचवें भाग पर लगेगा, अधिकतम ₹200।
यदि संपत्ति का बाजार मूल्य नहीं है, तो शुल्क ₹1000।
प्रावधान: अगर संपत्ति का बाजार मूल्य नहीं है, तो न्यायालय की क्षेत्राधिकार सीमा के निर्धारण के लिए वादी द्वारा वादपत्र में जो मूल्यांकित किया गया है वही मान्य होगा।
स्पष्टीकरण: हिन्दू, मुस्लिम या अन्य धार्मिक या धर्मार्थ न्यास की संपत्ति को भी न्यास संपत्ति माना जाएगा और उसका प्रबंधक ट्रस्टी समझा जाएगा।

धारा 28 : विशिष्ट राहत अधिनियम, 1877 के तहत कब्जे के वाद – Suits for possession under the Specific Relief Act, 1877

यदि वाद धारा 9 के अंतर्गत है, तो शुल्क संपत्ति के बाजार मूल्य के आधे पर या ₹200 में जो अधिक हो, लगाया जाएगा।

धारा 29 : अन्य प्रकार के कब्जे के वाद – Suits for possession not otherwise provided for

जहां अचल संपत्ति के कब्जे का वाद किसी अन्य धारा में शामिल नहीं है, वहां शुल्क संपत्ति के बाजार मूल्य पर, न्यूनतम ₹20 देय होगा।

धारा 30 : उपशमन (Easement) से संबंधित वाद – Suits relating to easement

उपशमन अधिकारों से जुड़े वादों में शुल्क वादपत्र में मूल्यांकित राशि पर होगा, जो कभी भी ₹200 से कम नहीं होगा।
प्रावधान: यदि राहत के साथ मुआवजा भी मांगा गया है, तो मुआवजे की राशि पर अतिरिक्त शुल्क भी देय होगा।

धारा 31 : प्राथमिकता (Pre-emption) के अधिकार से संबंधित वाद – Pre-emption suits

जहां वादी बिक्री को टालने हेतु प्राथमिकता के अधिकार को लागू करना चाहता है, वहां शुल्क उस बिक्री मूल्य या संपत्ति के बाजार मूल्य में जो कम हो, उस पर आधारित होगा।

अध्याय IV : गणना – Chapter IV: Computation (जारी)

धारा 32 : बंधक (Mortgage) से संबंधित वाद – Suits relating to mortgages

(1) यदि वाद बंधक पर बकाया धन की वसूली का हो, तो शुल्क उस दावे की राशि पर लगेगा।

(2) यदि ऐसे वाद में पूर्ववर्ती बंधकधारी को पक्षकार बनाया जाए और वह अपने लिखित कथन में अपनी बंधक राशि की वसूली की प्रार्थना करे, तो उस पर लिखित कथन के अनुसार शुल्क देय होगा।

प्रावधान: यदि उस बंधकधारी ने किसी अन्य प्रक्रिया में इस दावे पर शुल्क पहले ही चुकाया है, तो उस शुल्क का समायोजन किया जाएगा।

(3) यदि वाद में बंधक संपत्ति नीलाम होती है और पूर्ववर्ती या पश्चातवर्ती बंधकधारी नीलामी राशि से भुगतान की याचिका लगाता है, तो उसे अपने दावे की राशि के अनुसार शुल्क देना होगा।

प्रावधान: यदि वह व्यक्ति उसी वाद का पक्षकार है और लिखित कथन में शुल्क चुका चुका है, तो याचिका पर अलग से शुल्क नहीं देना होगा।

दूसरा प्रावधान: यदि वह वाद का पक्षकार नहीं था पर उसने किसी अन्य प्रक्रिया में शुल्क चुकाया है, तो उसका समायोजन किया जाएगा।

(4) यदि कोई सह-बंधकधारी सभी के लिए वाद करता है, तो शुल्क पूरे बंधक पर दावा की गई राशि पर लगेगा।
प्रावधान: यदि कोई सह-बंधकधारी जो प्रतिवादी है, वाद में अधिक राशि का दावा करता है, तो वाद पत्र और लिखित कथन में दर्शाए गए दावों में अंतर पर अतिरिक्त शुल्क लगेगा।

स्पष्टीकरण: यह उपधारा सीमावधि के कानून को प्रभावित नहीं करेगी।
(5)
(क) यदि कोई उपबंधकधारी (sub-mortgagee) अपनी उपबंधक राशि की वसूली के लिए बंधक संपत्ति की बिक्री की प्रार्थना करता है, तो शुल्क उपबंधक की दावे की राशि पर लगेगा।

(ख) यदि उपबंधकधारी बंधक संपत्ति की मुख्य बिक्री की प्रार्थना करता है और मूल बंधककर्ता को प्रतिवादी बनाया गया है, तो शुल्क मूल बंधक की पूरी दावे की राशि पर लगेगा।

(6) यदि कोई पूर्ववर्ती/पश्चातवर्ती बंधकधारी ऐसे वाद में पक्षकार बनाया गया है जो धारा (4) या (5) के अंतर्गत आता है, तो धारा (2) और (3) के प्रावधान लागू होंगे

(7) यदि मूल बंधकधारी, जिसे वाद में पक्षकार बनाया गया है, अपने लिखित कथन में अधिक राशि का दावा करता है, तो धारा (4) के प्रावधान लागू होंगे

(8) जब वादी बंधक मोचन (redemption) का वाद करता है, तो शुल्क बंधक पर बकाया राशि पर लगेगा।
प्रावधान: यदि वाद में दर्शाई गई राशि से अधिक पाई जाती है, तो अंतर की राशि पर शुल्क चुकाए बिना डिक्री नहीं दी जाएगी

दूसरा प्रावधान: यदि वाद उपभोगाधारित या मिश्रित बंधक से संबंधित है और वादी मोचन के साथ अतिरिक्त लाभ का हिसाब भी चाहता है, तो अलग से हिसाब की राहत पर शुल्क लगेगा।

(9) यदि बंधकधारी बंधक निरस्त करने या बिक्री पूर्ण घोषित करने का वाद करता है, तो शुल्क मुख्य राशि व ब्याज पर लगेगा।

धारा 33 : हिसाब के वाद – Suits for accounts

(1) जब वाद हिसाब से संबंधित हो, तो शुल्क वादपत्र में बताई गई अनुमानित राशि पर लगेगा।
(2) यदि मुकदमे में वादी को वादपत्र में अनुमानित राशि से अधिक राशि मिलती है, तो तब तक डिक्री नहीं दी जाएगी, जब तक अतिरिक्त शुल्क अदा न किया जाए।
(3) यदि अतिरिक्त शुल्क निर्धारित समय में नहीं दिया गया, तो डिक्री केवल चुकाए गए शुल्क तक सीमित होगी।
(4) यदि मुकदमे में यह सिद्ध होता है कि प्रतिवादी को कोई राशि देनी है, तो उसे डिक्री तभी मिलेगी जब वह संबंधित शुल्क अदा करेगा।

धारा 34 : साझेदारी विच्छेद से संबंधित वाद – Suits for dissolution of partnership

(1) साझेदारी विच्छेद व हिसाब या भूतपूर्व साझेदारी के हिसाब हेतु वाद में शुल्क वादी द्वारा अपनी साझेदारी हिस्सेदारी के अनुमानित मूल्य पर लगेगा।

(2) यदि मुकदमे में वादी की हिस्सेदारी का मूल्य वादपत्र में बताए गए मूल्य से अधिक पाया जाता है, तो अंतिम डिक्री, भुगतान या संपत्ति का आवंटन तब तक नहीं होगा जब तक अतिरिक्त शुल्क अदा न किया जाए।
(3) ऐसे किसी भी वाद में प्रतिवादी के पक्ष में अंतिम डिक्री, भुगतान, या संपत्ति आवंटन तब तक नहीं किया

धारा 35 : बंटवारे के वाद – Partition Suits

(1) जब वादी को संपत्ति के संयुक्त स्वामित्व से बाहर रखा गया हो, तो उसके हिस्से की बाजार कीमत पर शुल्क लगेगा

(2) जब वादी संपत्ति के संयुक्त कब्जे में हो, तो शुल्क निम्न प्रकार लगेगा—
(i) यदि हिस्सा ₹5,000 या उससे कम है — ₹30,
(ii) ₹5,000 से अधिक लेकिन ₹10,000 तक — ₹100,
(iii) ₹10,000 से अधिक — ₹200।

(3) जब प्रतिवादी अपने हिस्से का बंटवारा और पृथक कब्जा मांगता है, तो उसकी लिखित कथन पर शुल्क या तो उसके हिस्से की आधी बाजार कीमत पर, या उपधारा (2) में बताए गए आधे दर पर लगेगा, यह इस पर निर्भर करेगा कि वह संयुक्त कब्जे में है या नहीं

(4) यदि वादी या प्रतिवादी वाद में कोई डिक्री या दस्तावेज रद्द करवाना चाहता है जो धारा 38 के अंतर्गत आता हो, तो उसके लिए अलग से शुल्क देय होगा।

धारा 36 : संयुक्त कब्जे के वाद – Suit for Joint Possession

यदि वादी को संयुक्त संपत्ति से बेदखल किया गया हो, और वह संयुक्त कब्जा चाहता हो, तो शुल्क उसके हिस्से की बाजार कीमत पर लगेगा।

धारा 37 : प्रबंध वाद – Administration Suits
(1) संपत्ति के प्रबंध के वाद में, शुल्क धारा 45 में बताए अनुसार लगेगा।
(2) यदि वादी को कोई राशि या हिस्सा मिलना निश्चित होता है, और वह भुगतान किए शुल्क से अधिक मूल्य का हो, तो डिक्री या भुगतान तब तक नहीं होगा, जब तक शेष शुल्क अदा न कर दिया जाए
(3) प्रतिवादी के पक्ष में भी कोई भुगतान या डिक्री तब तक नहीं दी जाएगी जब तक वह अपने हिस्से पर शुल्क अदा न कर दे
(4) यदि वादी या प्रतिवादी ने पहले किसी अन्य प्रक्रिया में शुल्क चुकाया है, तो उसका समायोजन किया जाएगा।

धारा 38 : डिक्री या दस्तावेज रद्द करने के वाद – Suits for Cancellation of Decrees or Documents

(1) यदि वाद किसी डिक्री, धन या संपत्ति से संबंधित दस्तावेज को रद्द करने के लिए है, तो शुल्क वाद की विषय-वस्तु के मूल्य पर लगेगा—
(क) यदि पूरा दस्तावेज रद्द किया जा रहा है, तो पूरे मूल्य पर,
(ख) यदि केवल आंशिक रद्द किया जा रहा है, तो उसी भाग के मूल्य पर
(2) यदि दस्तावेज से होने वाली देयता विभाजित नहीं की जा सकती और राहत केवल किसी विशेष संपत्ति या हिस्से से संबंधित है, तो शुल्क उस हिस्से के मूल्य या पूरी देयता में से जो कम हो, उस पर लगेगा।
स्पष्टीकरण: कोई भी पुरस्कार (award) रद्द करने का वाद, डिक्री रद्द करने के वाद के समान माना जाएगा।

धारा 39 : कुर्की रद्द करने के वाद – Suits to Set Aside Attachment

(1) यदि वाद संपत्ति की कुर्की रद्द करने के लिए है, तो शुल्क उस राशि पर लगेगा जिसके लिए कुर्की हुई हो, या संपत्ति की ¼ बाजार कीमत पर, जो भी कम हो।
(2) अन्य किसी सारांश आदेश को रद्द करने के वाद में यदि विषय-वस्तु की बाजार कीमत हो, तो ¼ मूल्य पर शुल्क, अन्यथा धारा 45 में तय दर पर शुल्क लगेगा।
स्पष्टीकरण: सहकारी समितियों के रजिस्ट्रार को इस धारा के अंतर्गत दीवानी न्यायालय माना जाएगा।

धारा 40 : विशेष निष्पादन वाद – Suits for Specific Performance

शुल्क इस प्रकार लगेगा—
(क) बिक्री अनुबंध: अनुबंध मूल्य पर,
(ख) बंधक अनुबंध: बंधक की गई राशि पर,
(ग) पट्टा अनुबंध: प्रीमियम + औसत वार्षिक किराया,
(घ) विनिमय अनुबंध: विनिमय की गई संपत्ति की कीमत या बाजार मूल्य,
(ङ) अन्य अनुबंध: यदि बाजार मूल्य हो तो उस पर, अन्यथा धारा 45 के अनुसार

धारा 41 : मकान मालिक और किरायेदार के बीच वाद – Suits between Landlord and Tenant

(1) निम्न वादों में—
(क) किरायेदार द्वारा पट्टे की प्रति देना,
(ख) किराया बढ़ाना,
(ग) मकान मालिक द्वारा पट्टा देना,
(घ) अवैध रूप से निकाले गए किरायेदार द्वारा कब्जा वापस पाना,
(ङ) किराए के अधिकार को सिद्ध या असिद्ध करना,
शुल्क उस संपत्ति के एक वर्ष के किराए पर लगेगा, जो वाद से संबंधित है।
(2) यदि वाद किरायेदार से कब्जा वापस पाने का है, तो शुल्क प्रीमियम और पिछले एक वर्ष के किराए पर लगेगा।
स्पष्टीकरण: किराया में उपयोग और कब्जे के लिए हर्जाना भी शामिल होगा।

धारा 42 : अनुचित लाभ (Mesne Profits) के वाद

(1) यदि वाद में अनुचित लाभ की मांग की गई हो, तो शुल्क उन लाभों की मांगी गई राशि पर लगेगा। यदि न्यायालय द्वारा निर्धारित लाभ वादी की मांग से अधिक हो, तो अंतर का शुल्क अदा किए बिना डिक्री पारित नहीं होगी

(2) यदि डिक्री में संपत्ति पर हुए अनुचित लाभ की जांच का निर्देश हो (वाद के पहले या बाद की अवधि में), तो अंतिम डिक्री तभी दी जाएगी जब वादी द्वारा पूर्व में अदा शुल्क और वास्तव में देय शुल्क के अंतर की भरपाई की जाएगी

(3) यदि डिक्री के बाद किसी निश्चित दर पर अनुचित लाभ का भुगतान आदेशित हो, तो निष्पादन से पहले उस राशि पर पूर्ण शुल्क का भुगतान अनिवार्य होगा।

धारा 43 : सार्वजनिक मामलों से संबंधित वाद
दिवानी प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 91 या 92 के अंतर्गत राहत के लिए दाखिल वाद में ₹30 शुल्क देय होगा।

धारा 44 : अंतर्विरोध वाद (Interpleader Suits)
(1) ऐसे वाद में शुल्क धारा 45 के अनुसार लगेगा।
(2) जब वाद में विभिन्न पक्षों के बीच विवाद तय किए जाते हैं, तो शुल्क ऋण या धन या संपत्ति के मूल्य पर लगेगा। जो शुल्क पहले वादी द्वारा अदा किया गया हो, उसका समायोजन कर, शेष शुल्क विरोधी पक्षों में समान रूप से बांटा जाएगा
(3) न्यायालय के अधिकार निर्धारण हेतु मूल्य वही होगा जो वाद के विषय (ऋण, धन या संपत्ति) का मूल्य होगा।

धारा 45 : अन्य अप्रावधानित वादों पर शुल्क

जहाँ वाद किसी अन्य धारा में वर्णित नहीं है, वहाँ शुल्क निम्न अनुसार होगा—
(i) ₹1,000 से कम मूल्य पर — ₹10
(ii) ₹1,000 से ₹3,000 तक — ₹30
(iii) ₹3,000 से ₹5,000 तक — ₹100
(iv) ₹5,000 से ₹10,000 तक — ₹200
(v) ₹10,000 से अधिक — ₹300

धारा 46 : मुआवज़े संबंधी आदेश पर अपील का शुल्क

किसी अधिनियम के अंतर्गत सार्वजनिक प्रयोजनों के लिए संपत्ति के अधिग्रहण पर पारित मुआवज़ा आदेश के विरुद्ध अपील में शुल्क दिए गए मुआवज़े और अपीलकर्ता द्वारा मांगे गए मुआवज़े के अंतर पर लगेगा।

धारा 47 : अपीलों में शुल्क

अपील में वही शुल्क देय होगा जो कि प्रथम न्यायालय में वाद की विषयवस्तु पर देय होता:
परंतु, यदि प्रारंभिक डिक्री के विरुद्ध अपील लंबित है और अंतिम डिक्री के विरुद्ध नई अपील दाखिल की गई हो, तो पहले की अपील में अदा किया गया शुल्क समायोजित किया जाएगा।

स्पष्टीकरण:
(1) चाहे अपील राहत मिलने या अस्वीकृति पर हो, शुल्क वही लगेगा जो वह राहत प्रथम न्यायालय में मांगने पर लगता।
(2) खर्चे अपील की विषयवस्तु तब ही माने जाएंगे, जब खर्च पर स्वतंत्र राहत मांगी गई हो।
(3) वाद लंबित रहने के दौरान का ब्याज अपील की विषयवस्तु में गिना जाएगा, सिवाय इसके कि वादी उसे छोड़ दे।
(4) यदि अपील में मांगी गई राहत पहले की तुलना में अलग है, तो शुल्क अपील में मांगी गई राहत पर लगेगा।
(5) यदि अपील की विषयवस्तु का बाजार मूल्य निर्धारित किया जाना हो, तो मूल्य वाद दायर करने की तिथि को माना जाएगा।

Chapter V : वादों का मूल्यांकन – Valuation of Suits

धारा 48 : अन्यथा विनिर्दिष्ट नहीं वाद

(1) ऐसे वादों में जिनकी न्यायालय की अधिकार-सीमा के निर्धारण हेतु मूल्य की कोई विशेष व्यवस्था इस अधिनियम या अन्य किसी विधि में नहीं है, वहाँ न्यायालयीय अधिकार के निर्धारण हेतु मूल्य तथा अधिनियम के अंतर्गत शुल्क निर्धारण हेतु मूल्य समान माने जाएंगे

(2) जहाँ शुल्क एक नियत दर पर देय है, वहाँ न्यायालयीय अधिकार के लिए मूल्य बाजार मूल्य होगा; और यदि मूल्य का आकलन संभव न हो, तो वादपत्र में वादी द्वारा दर्शाया गया मूल्य माना जाएगा।

धारा 49 : मूल्य निर्धारण पर आपत्ति संबंधी प्रक्रिया

(1) यदि किसी वाद या अपील के अधिक या कम मूल्यांकन के कारण कोई न्यायालय अधिकार क्षेत्र से बाहर होकर कार्य कर बैठा हो, तो अपीलीय न्यायालय इस आपत्ति पर ध्यान नहीं देगा जब तक—
(a) यह आपत्ति प्रथम न्यायालय में प्रथम बार मुद्दे तय करते समय, या निचली अपीलीय अदालत में अपील पत्र में न उठाई गई हो; या
(b) अपीलीय न्यायालय यह लिखित रूप से संतुष्ट न हो जाए कि मूल्यांकन ने वाद या अपील के न्यायिक निपटारे को हानि पहुंचाई है
(2) यदि उपरोक्त (a) के अनुसार आपत्ति उठाई गई हो, परंतु न्यायालय (b) के दोनों बिंदुओं से संतुष्ट न हो, और अन्य आधारों पर निर्णय संभव हो, तो मान लिया जाएगा कि अधिकार क्षेत्र में कोई दोष नहीं था
(3) यदि न्यायालय (a) के अनुसार आपत्ति को विधिसम्मत पाता है और (b) दोनों बातों से संतुष्ट है, परंतु उसके पास अन्य आवश्यक सामग्री नहीं है, तो वह वाद को उस न्यायालय को भेजेगा जो वाद सुनने के लिए सक्षम है
(4) यह धारा पुनरीक्षण अधिकार का प्रयोग करने वाले न्यायालयों पर भी लागू होगी।

धारा 50 : प्रोबेट या उत्तराधिकार पत्र के लिए आवेदन

(1) हर आवेदन Schedule III, Part I के रूप में दो प्रतियों में संपत्ति का मूल्यांकन सहित होना चाहिए।
(2) आवेदन प्राप्त होने पर न्यायालय इसकी प्रतियाँ उस जिले के कलेक्टर को भेजेगा, जहाँ संपत्ति स्थित है (या जहाँ संपत्ति का सबसे मूल्यवान भाग स्थित हो)।

धारा 51 : शुल्क अधिरोपण

(1) प्रोबेट या उत्तराधिकार पत्र हेतु शुल्क, Schedule I, Article 6 के अनुसार लगेगा—

(a) मृत्यु की तारीख से एक वर्ष के भीतर आवेदन होने पर, उस दिन की बाजार कीमत पर शुल्क लगेगा।
(b) एक वर्ष के बाद आवेदन होने पर, आवेदन की तारीख की बाजार कीमत पर शुल्क लगेगा।
स्पष्टीकरण: यदि कोई व्यक्ति मिताक्षरा विधि के तहत संयुक्त परिवार का सदस्य हो और मृतक सदस्य की संपत्ति पर प्रोबेट/उत्तराधिकार पत्र मांगे, तो वह मृतक को मृत्यु के ठीक पहले प्राप्त होने वाले हिस्से पर शुल्क देगा।
(2) शुल्क निर्धारण के लिए—
(a) Schedule III, Part I, Annexure B की वस्तुओं का मूल्य संपत्ति से घटाया जाएगा, लेकिन यदि संपत्ति का आंशिक प्रोबेट आवेदन हो, तो शेष संपत्ति के अंतिम संस्कार खर्च या बंधक घटाया नहीं जाएगा।
(b) मृतक द्वारा सृजित पावर ऑफ अपॉइंटमेंट को भी लिया जाएगा, और उस संपत्ति का मूल्य जो इसमें आती है, जोड़ा जाएगा।

धारा 52 : प्रोबेट का अनुदान

कलेक्टर को संदर्भ भेजने या उसकी आपत्ति के चलते प्रोबेट देने में विलंब नहीं किया जाएगा, लेकिन जब तक यह संतुष्ट न हो जाए कि नेट वैल्यू के अनुसार नियत शुल्क अदा किया गया है, तब तक कोई प्रोबेट या उत्तराधिकार पत्र नहीं दिया जाएगा

अपवाद: यदि आवेदन एडमिनिस्ट्रेटर जनरल ने किया है, तो न्यायालय उसकी शर्तों के अधीन प्रोबेट दे सकता है बशर्ते वह निर्धारित समय में शुल्क अदा करने का वचन दे।

Chapter V : वादों का मूल्यांकन – Valuation of Suits (अन्य धाराएँ)

धारा 53 : अनेक अनुदानों के मामलों में राहत

(1) यदि किसी संपत्ति के संपूर्ण भाग के लिए प्रोबेट या उत्तराधिकार पत्र पहले ही जारी हो चुका हो और उस पर पूर्ण शुल्क अदा किया जा चुका हो, तो उसी संपत्ति (या उसके किसी भाग) के लिए जब वैसा ही दूसरा अनुदान जारी किया जाए, तो कोई नया शुल्क देय नहीं होगा
(2) यदि पहले किसी भाग विशेष पर प्रोबेट या पत्र दिया गया था, और अब संपत्ति के उसी भाग या उसमें समाहित संपत्ति पर नया अनुदान दिया जा रहा है, तो पहले से दिए गए शुल्क की कटौती की जाएगी।

धारा 54 : कलेक्टर द्वारा जांच

(1) धारा 50(2) के अंतर्गत भेजे गए आवेदन और मूल्यांकन की प्रति पर कलेक्टर चाहे तो स्वयं या अपने अधीनस्थ से संपत्ति के मूल्य की जांच कर सकता है और जहाँ संपत्ति किसी अन्य जिले में हो, वहाँ के कलेक्टर से सही मूल्य मांग सकता है।
(2) अन्य जिला कलेक्टर को यह मूल्यांकन जानकारी प्रदान करनी होगी
(3) यदि कलेक्टर को लगता है कि वादी ने मूल्यांकन कम करके बताया है, तो वह वादी को उपस्थित कराकर साक्ष्य ले सकता है और संशोधित मूल्यांकन दाखिल करने का निर्देश दे सकता है।
(4) यदि प्रोबेट/पत्र जारी हो चुका हो और बाद में पता चले कि कम शुल्क अदा किया गया, तो कलेक्टर धारा 56(4) के अनुसार कार्रवाई करेगा।
(5) यदि वादी संतोषजनक संशोधित मूल्यांकन न दे, तो कलेक्टर 6 माह के भीतर न्यायालय में आवेदन कर सकता है कि वह संपत्ति के सही मूल्य की जांच कराए।

धारा 55 : न्यायालय को आवेदन और उसकी शक्तियाँ

(1) कलेक्टर के अनुरोध पर न्यायालय (या अधीनस्थ न्यायालय/अधिकारी) संपत्ति के सही मूल्य का परीक्षण करेगा।
(2) इस जांच हेतु न्यायालय/अधिकारी वादी को शपथ पर पूछताछ कर सकता है और प्रमाण ले सकता है।
(3) न्यायालय जांच पूर्ण होने पर संपत्ति का अंतिम मूल्य तय करेगा जो अंतिम और बाध्यकारी होगा।
(4) न्यायालय जांच की लागत पर Code of Civil Procedure, 1908 के अनुसार आदेश दे सकता है।

धारा 56 : जहाँ बहुत कम शुल्क अदा हुआ हो

(1) यदि किसी भूल या जानकारी के अभाव में कम शुल्क अदा हो गया हो, और अनुदान कार्यान्वयन में है, तो 6 माह के भीतर वादी कलेक्टर के पास आवेदन कर शेष शुल्क जमा करवा सकता है, बशर्ते कोई धोखा या देरी का उद्देश्य न हो
(2) यदि 6 माह में शुल्क न चुकाया गया तो वादी पाँच गुना जुर्माने का उत्तरदायी होगा।
(3) यदि ऐसा आवेदन नहीं किया गया, तो कलेक्टर पाँच गुना तक जुर्माना लगाकर प्रोबेट/पत्र को मुहरबंद करवा सकता है।
(4) यदि जांच (धारा 54 या 55) के दौरान शुल्क कम पाया गया और कमी जानबूझकर की गई थी, तो जुर्माना लिया जाएगा।
(5) राजस्व मंडल जुर्माने या दंड को आंशिक या पूर्ण माफ कर सकता है।

धारा 57 : शुल्क कम अदा होने पर प्रशासनकर्ता से सुरक्षा

कलेक्टर प्रोबेट/पत्र को तब तक मुहरबंद नहीं करेगा, जब तक प्रशासनकर्ता न्यायालय को उचित सुरक्षा न दे दे, जैसे कि यदि मृत्यु के समय पूरी संपत्ति ज्ञात होती तो आवश्यक होती।

धारा 58 : अत्यधिक शुल्क अदा होने पर राहत

(1) यदि बाद में पता चले कि अधिक शुल्क अदा किया गया, तो वादी तीन वर्षों के भीतर कलेक्टर से रिफंड का आवेदन कर सकता है।
(2) यदि कलेक्टर संतुष्ट हो तो—
(i) प्रमाणपत्र देगा कि इतनी राशि रिफंड की गई है।
(ii) अंतर की राशि वादी को वापस करेगा
(3) यदि किसी कानूनी प्रक्रिया या अन्य कारण से वादी रिफंड हेतु तीन वर्ष के भीतर दावा नहीं कर सका, तो कलेक्टर उचित कारणों पर समय बढ़ा सकता है
(4) यदि कलेक्टर रिफंड न दे, तो वादी राजस्व मंडल में अपील कर सकता है।

धारा 59 : दंड, लागत आदि की वसूली

जो भी शेष शुल्क, लागत, जुर्माना, या जब्ती वादी/प्रशासनकर्ता को देय हो, उसे भूमि राजस्व की बकाया राशि की तरह वसूला जा सकता है।

धारा 60 : राजस्व मंडल की शक्तियाँ

इस अध्याय के अंतर्गत कलेक्टर की सभी शक्तियाँ और कर्तव्य राजस्व मंडल के नियंत्रण में होंगे।

धारा 61 : वादपत्र या अपील खंडन पर शुल्क की वापसी – Refund in cases of rejection of plaint etc.

(1) अगर वादपत्र (plaint) या अपील पत्र (appeal memo) को Order 7 Rule 11 या Order 41 Rule 3 या 11 के तहत खारिज कर दिया जाए, तो न्यायालय चाहे तो वादी या अपीलकर्ता को दिया गया न्याय शुल्क पूरा या आंशिक रूप से वापस करने का आदेश दे सकता है।
(2) यदि अपील समय-सीमा (limitation) के बाहर दाखिल होने के कारण खारिज हो जाती है, तो शुल्क का आधा भाग वापस किया जाएगा।

धारा 62 : पुनः विचार या पुनः निर्णय पर शुल्क की वापसी – Refund in cases of remand

(1) यदि कोई वादपत्र या अपील जिसे निचली अदालत ने खारिज किया था, ऊपरी अदालत द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है या मुकदमा पुनः निर्णय के लिए वापस भेजा जाता है, तो न्यायालय अपीलकर्ता को पूरा शुल्क वापस करने का आदेश दे सकता है।
(2) यदि दूसरी अपील या हाईकोर्ट के एकल न्यायाधीश के निर्णय के विरुद्ध की गई अपील में मामला निचली अदालत को वापस भेजा जाता है, तो भी पूरा शुल्क वापस किया जा सकता है।
शर्तें:

  • यदि पुनः विचार उस पक्ष की गलती के कारण हुआ, तो कोई वापसी नहीं होगी।
  • अगर आंशिक मामला वापस भेजा गया हो, तो उसी हिस्से के अनुपात में ही शुल्क लौटेगा।

धारा 63 : गलती के आधार पर शुल्क वापसी – Refund on grounds of mistake

(1) यदि किसी स्पष्ट त्रुटि के आधार पर पुनर्विचार याचिका स्वीकार की जाती है और निर्णय को बदला जाता है, तो अतिरिक्त भुगतान किया गया शुल्क वापस किया जाएगा।
(2) जो भी शुल्क गलती से या अनजाने में चुका दिया गया हो, वह वापस किया जाएगा।

धारा 64 : कुछ दस्तावेजों को शुल्क से छूट – Exemption of certain documents
कुछ दस्तावेजों पर कोई शुल्क नहीं लगेगा, जैसे:

  • सैनिकों द्वारा दी गई वकालतनामा,
  • सरकारी सिंचाई जल की आपूर्ति से संबंधित आवेदन,
  • पहली बार गवाह को बुलाने का आवेदन,
  • आपराधिक मामलों में जमानत बॉन्ड,
  • पुलिस को अपराध की सूचना देने वाला आवेदन,
  • जेल में बंद व्यक्ति द्वारा किया गया आवेदन,
  • सरकारी सेवक की शिकायतें,
  • सरकारी बकाया राशि की भुगतान की मांग,
  • नगरपालिका कर के खिलाफ अपील,
  • भूमि अधिग्रहण मुआवजे की मांग,
  • सेवा से निलंबन/निकाले जाने पर अपील।

धारा 65 : शुल्क घटाने या माफ करने की शक्ति – Power to reduce or remit fees

राज्य सरकार सरकारी गजट में सूचना प्रकाशित करके राज्य के किसी भाग में किसी या सभी मामलों में शुल्क को घटा सकती है या माफ कर सकती है।

धारा 65A : शुल्क से छूट – Power to exempt fees

राज्य सरकार जनहित में किसी वर्ग को किसी प्रकार के वादों में शुल्क से पूरी तरह या आंशिक रूप से छूट दे सकती है।

धारा 65B : वैकल्पिक विवाद समाधान में शुल्क वापसी – Refund of fees under ADR

यदि अदालत द्वारा पक्षों को CPC की धारा 89 के तहत मध्यस्थता, पंचायती समझौता आदि के लिए भेजा जाता है और मामला सुलझ जाता है, तो वादी को पूर्ण शुल्क वापसी का प्रमाण पत्र दिया जाएगा।

Chapter VIII – विविध (Miscellaneous)

धारा 66 : शुल्कों की वसूली मुद्रांकन द्वारा – Collection of fees by stamps

(1) सभी शुल्क स्टांप के माध्यम से लिए जाएंगे।
(2) स्टांप चिपकाए हुए या मुद्रांकित या दोनों प्रकार हो सकते हैं जैसा राज्य सरकार तय करे।

धारा 67 : दस्तावेज में त्रुटि सुधारने पर नया शुल्क नहीं – Amended document

अगर कोई दस्तावेज केवल गलती सुधारने के लिए संशोधित किया गया हो, तो उस पर दोबारा शुल्क नहीं लगेगा।

धारा 68 : स्टांप का निरस्तीकरण – Cancellation of stamp

जब तक स्टांप निरस्त (cancel) नहीं किया जाता, तब तक वह दस्तावेज अदालत में प्रस्तुत या उपयोग नहीं किया जा सकता।

धारा 69 : कटौती – Deduction to be made

यदि कोई शुल्क वापस किया जा रहा हो या खराब स्टांप के बदले नया देना हो, तो नकद में लौटाई गई राशि में से हर रुपये पर 6 पैसे काटे जाएंगे।

परंतु: यदि अदालत के आदेश पर शुल्क वापस किया जा रहा हो, तो कोई कटौती नहीं होगी।

धारा 70 : दंड – Penalty

यदि कोई अधिकृत व्यक्ति नियमों का उल्लंघन करता है या कोई अनधिकृत व्यक्ति स्टांप बेचता है, तो उसे 6 महीने की जेल या ₹500 जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।

धारा 71 : उच्च न्यायालय की नियम बनाने की शक्ति – Power of High Court to make rules
उच्च न्यायालय कुछ विषयों पर नियम बना सकता है, जैसे:

  • प्रक्रिया शुल्क,
  • कर्मचारियों का पारिश्रमिक,
  • प्रक्रिया सर्वर की संख्या,
  • फीस तालिका का प्रदर्शन आदि।
    इन नियमों को राज्य सरकार की मंजूरी के बाद गजट में प्रकाशित किया जाएगा।

धारा 72 : राजस्व बोर्ड की नियम बनाने की शक्ति – Power of Board of Revenue to make rules
राजस्व बोर्ड राज्य सरकार की मंजूरी से राजस्व न्यायालयों और अपने कार्यों हेतु नियम बना सकता है।

धारा 73 : राज्य सरकार की नियम बनाने की शक्ति – Power of State Government to make rules
राज्य सरकार निम्न विषयों पर नियम बना सकती है:

  • स्टांप की आपूर्ति,
  • कितने स्टांप लगेंगे,
  • लेखा,
  • खराब स्टांप,
  • बिक्री व्यवस्था,
  • अन्य संबंधित विषय।
    ये नियम विधानसभा में रखे जाएंगे और आवश्यक हो तो संशोधित या रद्द भी किए जा सकते हैं।

धारा 74 : निरसन और संरक्षण – Repeal and Saving

(1) राजस्थान न्याय शुल्क अधिनियम (अनुकूलन) अध्यादेश, 1950 (Rajasthan Ordinance 9 of 1950), राजस्थान वाद मूल्य निर्धारण अधिनियम, 1958 (Rajasthan Act 3 of 1959) और उन दोनों में किए गए सभी संशोधन अधिनियमों को इस अधिनियम द्वारा निरस्त किया जाता है। इस निरसन पर राजस्थान सामान्य धाराएँ अधिनियम, 1955 (Rajasthan Act 8 of 1955) की धाराएँ लागू होंगी।

(2) हालाँकि इन अधिनियमों को निरस्त कर दिया गया है, फिर भी इस अधिनियम के लागू होने से पहले दर्ज किए गए सभी वाद और कार्यवाहियाँ तथा उनसे उत्पन्न होने वाली अपील, पुनरावलोकन या अन्य कोई कार्यवाही, चाहे वे इस अधिनियम के लागू होने से पहले या बाद में आरंभ हुई हों, पूर्ववर्ती अध्यादेशों, अधिनियमों और उनके अंतर्गत बनाए गए नियमों के अनुसार ही संचालित की जाएंगी।

सरल शब्दों में:
इस अधिनियम के लागू होने से पहले शुरू हुए सभी मामले पुराने कानूनों (1950 और 1958 के अधिनियम) के अनुसार ही निपटाए जाएंगे। यह अधिनियम केवल नए मामलों पर ही लागू होगा।

Kindly See Schedule I & II