The Indecent Representation of Women (Prohibition) Act, 1986
महिलाओं का अशिष्ट चित्रण (निषेध) अधिनियम, 1986
Act 60 of 1986
उद्देश्य विवरण : Preamble – Purpose of the Act
यह एक अधिनियम है जिसका उद्देश्य विज्ञापनों, प्रकाशनों, लेखन, चित्रों, आकृतियों या किसी भी अन्य माध्यम से स्त्रियों के अशोभनीय चित्रण पर रोक लगाना है, तथा इससे संबंधित या सहायक मामलों के लिए प्रावधान करना है।
महत्वपूर्ण बिंदु: स्त्रियों के अशोभनीय चित्रण पर रोक, विज्ञापन, लेखन, चित्र आदि किसी भी माध्यम में, संबंधित और सहायक विषयों को भी शामिल करता है।
धारा 1 : संक्षिप्त शीर्षक, विस्तार और प्रारंभ – Section 1: Short title, extent and commencement
(1) इस अधिनियम को स्त्रियों के अशोभनीय चित्रण का प्रतिषेध अधिनियम, 1986 कहा जाएगा।
(2) यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत में लागू होता है।
(3) यह अधिनियम 2 अक्टूबर, 1987 से लागू होगा, जिसे केंद्र सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से लागू किया गया।
धारा 2 : परिभाषाएँ – Section 2: Definitions
इस अधिनियम में, जब तक संदर्भ अन्यथा न हो:
(क) “विज्ञापन” में कोई भी सूचना, परिपत्र, लेबल, रैपर या अन्य दस्तावेज तथा किसी भी प्रकाश, ध्वनि, धुएं या गैस के माध्यम से किया गया दृश्य प्रदर्शन शामिल है।
(ख) “वितरण” में नि:शुल्क या अन्यथा नमूनों के रूप में वितरण भी शामिल है।
(ग) “स्त्रियों का अशोभनीय चित्रण” का अर्थ है स्त्री के शरीर, रूप या किसी भी अंग को इस प्रकार दिखाना जिससे वह अशोभनीय, अपमानजनक, अपमानसूचक लगे या जिससे सार्वजनिक नैतिकता पर बुरा प्रभाव पड़े।
(घ) “लेबल” का अर्थ है कोई भी लिखित, मुद्रित, अंकित या चित्रित सामग्री जो किसी पैकेज पर लगाई गई हो या दिखाई दे।
(ङ) “पैकेज” में डिब्बा, कार्टन, टिन या अन्य कोई कंटेनर शामिल है।
(च) “निर्धारित” का अर्थ है इस अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए नियमों द्वारा निर्धारित।
धारा 3 : स्त्रियों के अशोभनीय चित्रण वाले विज्ञापनों पर निषेध – Section 3: Prohibition of advertisements containing indecent representation of woman
कोई भी व्यक्ति ऐसा कोई विज्ञापन प्रकाशित नहीं करेगा, करवाएगा या प्रदर्शित करने की व्यवस्था या भागीदारी नहीं करेगा जिसमें किसी भी रूप में स्त्रियों का अशोभनीय चित्रण हो।
धारा 4 : अशोभनीय चित्रण वाले प्रकाशनों आदि पर निषेध – Section 4: Prohibition of publication or sending by post of books, pamphlets, etc.
कोई भी व्यक्ति ऐसा कोई पुस्तक, पैम्फलेट, लेख, स्लाइड, फिल्म, लेखन, चित्र, फोटोग्राफ या आकृति आदि नहीं बनाएगा, बेचेगा, किराये पर देगा, वितरित करेगा, डाक से भेजेगा जिसमें स्त्रियों का अशोभनीय चित्रण हो।
यह धारा निम्न पर लागू नहीं होगी:
(क) कोई भी सामग्री जो जनहित में विज्ञान, साहित्य, कला या ज्ञान के उद्देश्य से उचित रूप से प्रकाशित हो, या जो धार्मिक उद्देश्यों के लिए प्रयुक्त हो।
(ख) प्राचीन स्मारक, मंदिर, या मूर्तियों के रथ आदि पर बना कोई चित्रण।
(ग) ऐसी फिल्म जिस पर सिनेमा अधिनियम, 1952 के भाग II के प्रावधान लागू होते हैं।
धारा 5 : प्रवेश और तलाशी की शक्ति – Section 5: Powers to enter and search
(1) निर्धारित नियमों के अंतर्गत, राज्य सरकार द्वारा अधिकृत कोई राजपत्रित अधिकारी:
(क) किसी भी स्थान पर उचित समय पर प्रवेश और तलाशी ले सकता है, यदि उसे विश्वास है कि वहाँ इस अधिनियम के अंतर्गत अपराध हुआ है।
(ख) ऐसा कोई विज्ञापन या अन्य सामग्री जब्त कर सकता है जो अधिनियम का उल्लंघन करती हो।
(ग) कोई भी दस्तावेज, रजिस्टर, वस्तु आदि की जांच कर सकता है और जब्त कर सकता है, यदि उससे अपराध का प्रमाण मिल सकता हो।
शर्तें:
किसी निजी निवास में प्रवेश बिना वारंट के नहीं किया जाएगा।
यदि कोई विज्ञापन किसी वस्तु में इस प्रकार जुड़ा हो कि उसे अलग करना संभव न हो, तो पूरी वस्तु जब्त की जा सकती है।
(2) इस अधिनियम के तहत तलाशी और जब्ती के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के प्रावधान लागू होंगे।
(3) जब कोई अधिकारी कुछ जब्त करता है, तो वह निकटतम मजिस्ट्रेट को सूचित करेगा और उसके आदेश प्राप्त करेगा।
धारा 6 : दंड – Section 6: Penalty
जो कोई धारा 3 या 4 का उल्लंघन करेगा, उसे:
पहली बार दोषी पाए जाने पर – दो वर्ष तक की कारावास और दो हजार रुपये तक का जुर्माना।
दूसरी या बाद की बार दोषी पाए जाने पर – कम से कम छह माह की कारावास (अधिकतम पाँच वर्ष तक) और दस हजार से एक लाख रुपये तक का जुर्माना।
धारा 7 : कंपनियों द्वारा अपराध – Section 7: Offences by companies
(1) यदि कोई अपराध कंपनी द्वारा किया गया है, तो उस समय कंपनी का प्रबंधन संभालने वाला हर व्यक्ति भी अपराधी माना जाएगा, जब तक वह यह सिद्ध न कर दे कि यह अपराध उसकी जानकारी के बिना या पूरी सावधानी के बावजूद हुआ।
(2) यदि यह सिद्ध हो जाए कि किसी निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अधिकारी की सहमति, मिलीभगत या लापरवाही से अपराध हुआ है, तो वह भी दोषी होगा।
स्पष्टीकरण:
(क) “कंपनी” में फर्म या व्यक्तियों का संघ भी शामिल है।
(ख) “निदेशक” का अर्थ फर्म के लिए उसका साझेदार है।
धारा 8 : अपराध संज्ञेय और जमानती होंगे – Section 8: Offences to be cognizable and bailable
(1) इस अधिनियम के अंतर्गत अपराध जमानती होंगे।
(2) ऐसे अपराध संज्ञेय होंगे।
धारा 9 : सद्भावना से की गई कार्रवाई को संरक्षण – Section 9: Protection of action taken in good faith
इस अधिनियम के अंतर्गत केंद्र सरकार, राज्य सरकार या उनके किसी अधिकारी द्वारा सद्भावना में की गई कार्रवाई के विरुद्ध कोई मुकदमा, अभियोजन या अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जाएगी।
धारा 10 : नियम बनाने की शक्ति – Section 10: Power to make rules
(1) केंद्र सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियम बना सकती है ताकि इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू किया जा सके।
(2) विशेष रूप से ये नियम निम्न बातों के लिए हो सकते हैं:
(क) विज्ञापन या अन्य वस्तुओं की जब्ती का तरीका और उसकी सूची तैयार करने का तरीका।
(ख) अन्य कोई विषय जो अधिनियम के तहत निर्धारित किया जाना आवश्यक हो।
(3) बनाए गए हर नियम को संसद के दोनों सदनों के समक्ष 30 दिनों के लिए रखा जाएगा। यदि दोनों सदन किसी संशोधन पर सहमत हों या नियम को अमान्य करें, तो वह नियम उसी रूप में प्रभावी होगा या अप्रभावी हो जाएगा, किंतु पहले किए गए कार्य उस पर प्रभाव नहीं डालेंगे।
Questions and Answers
प्रश्न 1: इस अधिनियम का उद्देश्य क्या है?
उत्तर: इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य विज्ञापनों, प्रकाशनों, लेखन, चित्रों, आकृतियों या किसी अन्य माध्यम से महिलाओं के अशोभनीय चित्रण को रोकना है। प्रीएंबल (उद्देश्य विवरण) स्पष्ट करता है कि यह कानून महिलाओं की गरिमा की रक्षा के लिए बनाया गया है ताकि समाज में उनकी छवि को ठेस पहुँचाने वाली किसी भी प्रकार की गतिविधि को रोका जा सके। यह अधिनियम सभी प्रकार के माध्यमों जैसे विज्ञापन, पुस्तकें, पैम्फलेट, लेख, फिल्में, चित्र, फोटोग्राफ आदि पर लागू होता है। यह महिलाओं के सम्मान को बनाए रखने के लिए आवश्यक और सहायक सभी मामलों को कवर करता है। यह कानून 2 अक्टूबर 1987 से पूरे भारत में लागू हुआ और इसका दायरा व्यापक है जिससे यह प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में प्रभावी रूप से लागू होता है।
प्रश्न 2: इस अधिनियम का संक्षिप्त शीर्षक, विस्तार और प्रारंभ कब हुआ?
उत्तर: धारा 1 में स्पष्ट किया गया है कि इस अधिनियम को “महिलाओं का अशोभनीय चित्रण (निषेध) अधिनियम, 1986″ कहा जाएगा। यह अधिनियम भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होता है। इसका प्रवर्तन 2 अक्टूबर 1987 से हुआ, जिसे केंद्र सरकार ने राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से लागू किया। इस धारा का उद्देश्य अधिनियम को राष्ट्रीय स्तर पर लागू करना है ताकि महिलाओं के अशोभनीय चित्रण से संबंधित अपराध किसी भी स्थान पर रोके जा सकें। यह धारा अधिनियम की मूलभूत वैधता और भौगोलिक क्षेत्राधिकार को निर्धारित करती है।
प्रश्न 3: इस अधिनियम में “विज्ञापन” और “वितरण” की परिभाषा क्या है?
उत्तर: धारा 2(क) और (ख) में “विज्ञापन” और “वितरण” की परिभाषाएँ दी गई हैं। “विज्ञापन” का अर्थ है किसी भी माध्यम से सूचना का प्रसार करना जिसमें सूचना, परिपत्र, लेबल, रैपर, दस्तावेज, प्रकाश, ध्वनि, धुआं या गैस के माध्यम से किया गया दृश्य प्रदर्शन शामिल है। “वितरण” का अर्थ है किसी सामग्री का वितरण करना, जिसमें नि:शुल्क या नमूनों के रूप में वितरण भी शामिल है। इन परिभाषाओं का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अशोभनीय चित्रण किसी भी प्रकार के विज्ञापन या वितरण में न हो। यह अधिनियम के दायरे को व्यापक बनाता है और हर प्रकार की प्रचार सामग्री को शामिल करता है।
प्रश्न 4: “महिलाओं का अशोभनीय चित्रण” का क्या अर्थ है?
उत्तर: धारा 2(ग) के अनुसार “महिलाओं का अशोभनीय चित्रण” का अर्थ है महिला के शरीर, रूप या किसी भी अंग को इस प्रकार प्रस्तुत करना कि वह अशोभनीय, अपमानजनक या सार्वजनिक नैतिकता को प्रभावित करने वाला हो। यह परिभाषा यह स्पष्ट करती है कि महिलाओं का ऐसा कोई भी चित्रण जो समाज में उनकी गरिमा को ठेस पहुँचाएगा या सार्वजनिक शालीनता पर बुरा प्रभाव डालेगा, निषिद्ध है। यह प्रावधान अधिनियम का मुख्य आधार है और इसके माध्यम से महिलाओं के सम्मान को बनाए रखने का प्रयास किया जाता है।
प्रश्न 5: अशोभनीय चित्रण वाले विज्ञापनों पर निषेध का क्या प्रावधान है?
उत्तर: धारा 3 में स्पष्ट किया गया है कि कोई भी व्यक्ति ऐसा कोई विज्ञापन प्रकाशित, करवाएगा या प्रदर्शित करने की व्यवस्था नहीं करेगा जिसमें महिलाओं का अशोभनीय चित्रण हो। यह प्रावधान व्यापक है और विज्ञापन एजेंसियों, प्रिंट मीडिया, डिजिटल प्लेटफॉर्म तथा किसी भी प्रचार माध्यम पर लागू होता है। इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि विज्ञापनों में महिलाओं की गरिमा का सम्मान किया जाए और उन्हें अपमानजनक रूप में न दिखाया जाए।
प्रश्न 6: पुस्तकों और अन्य प्रकाशनों में अशोभनीय चित्रण पर क्या प्रतिबंध है?
उत्तर: धारा 4 में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति ऐसी पुस्तक, पैम्फलेट, लेख, स्लाइड, फिल्म, चित्र, फोटोग्राफ या आकृति नहीं बनाएगा, बेचेगा, किराए पर देगा, वितरित करेगा या डाक से भेजेगा जिसमें महिलाओं का अशोभनीय चित्रण हो। यह प्रावधान साहित्यिक और दृश्य माध्यम में महिलाओं की गरिमा बनाए रखने के लिए बनाया गया है। इसका दायरा बहुत व्यापक है और यह सभी प्रकार की मुद्रित तथा ऑडियो-विजुअल सामग्री पर लागू होता है।
प्रश्न 7: धारा 4 के तहत किन परिस्थितियों में छूट दी गई है?
उत्तर: धारा 4(क) से (ग) में कुछ अपवाद दिए गए हैं जिनमें यह प्रतिबंध लागू नहीं होता। जैसे कि जनहित में विज्ञान, साहित्य, कला या ज्ञान के उद्देश्य से प्रकाशित सामग्री, धार्मिक उद्देश्यों के लिए प्रयुक्त चित्रण, प्राचीन स्मारकों, मंदिरों या मूर्तियों पर बना चित्रण, और ऐसी फिल्में जिन पर सिनेमा अधिनियम, 1952 के प्रावधान लागू होते हैं। इस छूट का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि उपयोगी, शैक्षिक या सांस्कृतिक सामग्री पर अधिनियम का प्रभाव न पड़े।
प्रश्न 8: अधिकारियों को अधिनियम के तहत क्या तलाशी और जब्ती की शक्तियाँ दी गई हैं?
उत्तर: धारा 5 के अनुसार, राज्य सरकार द्वारा अधिकृत कोई राजपत्रित अधिकारी यदि यह मानता है कि अधिनियम का उल्लंघन हुआ है तो वह किसी भी स्थान पर उचित समय पर प्रवेश और तलाशी कर सकता है। वह अशोभनीय चित्रण वाले विज्ञापन या अन्य सामग्री जब्त कर सकता है और अपराध के प्रमाण हेतु दस्तावेजों या वस्तुओं की जांच कर सकता है। निजी निवास में प्रवेश के लिए वारंट आवश्यक है। तलाशी और जब्ती के लिए दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 के प्रावधान लागू होंगे और जब्त सामग्री को निकटतम मजिस्ट्रेट को प्रस्तुत करना होगा।
प्रश्न 9: इस अधिनियम के उल्लंघन पर क्या दंड का प्रावधान है?
उत्तर: धारा 6 में दंड का प्रावधान है। पहली बार अपराध करने पर दोषी को दो वर्ष तक की कारावास और दो हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। दूसरी या बाद की बार दोषी पाए जाने पर उसे कम से कम छह माह (अधिकतम पाँच वर्ष) की कारावास और दस हजार से एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। यह कठोर दंड यह सुनिश्चित करने के लिए रखा गया है कि लोग इस अधिनियम का उल्लंघन करने से बचें।
प्रश्न 10: कंपनियों द्वारा किए गए अपराधों के लिए कौन जिम्मेदार होगा?
उत्तर: धारा 7 के अनुसार, यदि अपराध कंपनी द्वारा किया गया है तो कंपनी का प्रबंधन संभालने वाला हर व्यक्ति दोषी माना जाएगा। यदि यह साबित हो जाए कि अपराध उसकी जानकारी के बिना या पूरी सावधानी बरतने के बावजूद हुआ तो उसे दंड से छूट मिल सकती है। यदि यह सिद्ध हो जाए कि किसी निदेशक, प्रबंधक, सचिव या अधिकारी की सहमति, मिलीभगत या लापरवाही से अपराध हुआ है, तो वह भी दोषी होगा। इसमें फर्म और व्यक्तियों का संघ भी शामिल है।
प्रश्न 11: इस अधिनियम के अंतर्गत अपराधों की प्रकृति क्या है?
उत्तर: धारा 8 में कहा गया है कि इस अधिनियम के अंतर्गत अपराध संज्ञेय और जमानती होंगे। इसका अर्थ है कि पुलिस ऐसे अपराधों में बिना वारंट के गिरफ्तारी कर सकती है, लेकिन आरोपी को जमानत पर छोड़ा जा सकता है। यह प्रावधान महिलाओं के अशोभनीय चित्रण से जुड़े मामलों में त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है।
प्रश्न 12: सद्भावना से की गई कार्रवाई को क्या संरक्षण प्राप्त है?
उत्तर: धारा 9 के अनुसार, यदि केंद्र सरकार, राज्य सरकार या उनके किसी अधिकारी द्वारा कोई कार्रवाई सद्भावना (Good Faith) में की गई है तो उसके विरुद्ध कोई मुकदमा, अभियोजन या अन्य कानूनी कार्यवाही नहीं की जाएगी। यह प्रावधान अधिकारियों को निष्पक्ष रूप से काम करने का कानूनी संरक्षण प्रदान करता है ताकि वे अधिनियम को प्रभावी ढंग से लागू कर सकें।
प्रश्न 13: इस अधिनियम के अंतर्गत नियम बनाने की शक्ति किसके पास है?
उत्तर: धारा 10 केंद्र सरकार को यह शक्ति देती है कि वह इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियम बना सके। ये नियम विशेष रूप से विज्ञापन या अन्य वस्तुओं की जब्ती की प्रक्रिया, सूची तैयार करने के तरीके और अन्य निर्धारित विषयों से संबंधित हो सकते हैं। बनाए गए नियमों को संसद के दोनों सदनों में 30 दिनों के लिए प्रस्तुत करना आवश्यक है।
प्रश्न 14: क्या इस अधिनियम का दायरा केवल विज्ञापन तक सीमित है?
उत्तर: नहीं, यह अधिनियम केवल विज्ञापनों तक सीमित नहीं है। धारा 3 और 4 के अनुसार यह अधिनियम पुस्तकों, पैम्फलेट, लेखों, फिल्मों, चित्रों, फोटोग्राफ आदि पर भी लागू होता है। इसका उद्देश्य महिलाओं के अशोभनीय चित्रण को किसी भी प्रकार के माध्यम से रोकना है। इस प्रकार यह अधिनियम महिलाओं की गरिमा की रक्षा के लिए एक व्यापक कानूनी ढांचा प्रदान करता है।
प्रश्न 15: इस अधिनियम के प्रभाव से समाज में क्या परिवर्तन अपेक्षित हैं?
उत्तर: इस अधिनियम का प्रभाव यह है कि महिलाओं की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाले विज्ञापन, प्रकाशन या चित्रण पर रोक लगे। यह अधिनियम समाज में सार्वजनिक शालीनता बनाए रखने में मदद करता है और महिलाओं को अपमानजनक रूप से प्रस्तुत करने वाली गतिविधियों को दंडनीय बनाता है। इससे मीडिया और प्रकाशन उद्योगों में जिम्मेदारी बढ़ती है और समाज में महिलाओं के प्रति सम्मानजनक दृष्टिकोण विकसित होता है।