The Hindu Adoptions and Maintenance Act, 1956
हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956
Act 78 of 1956
Assented to on 21 December 1956
Commenced on 21 December 1956
धारा 1 – संक्षिप्त शीर्षक और विस्तार
(1) इस कानून का नाम है: हिन्दू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956।
(2) यह पूरे भारत में लागू है
धारा 2 – अधिनियम का अनुप्रयोग
(1) यह कानून निम्नलिखित लोगों पर लागू होता है:
(a) वो लोग जो हिन्दू धर्म में विश्वास रखते हैं, चाहे वो किसी भी रूप में हों – जैसे वीरशैव, लिंगायत, ब्रह्मो समाज, आर्य समाज, प्रार्थना समाज आदि।
(b) बौद्ध, जैन और सिख धर्म के अनुयायी।
(c) वो लोग जो मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं हैं, और जो अगर यह कानून न होता, तब हिन्दू कानून या उसकी परंपरा द्वारा शासित होते।
स्पष्टीकरण (Explanation):
(1) हर वैध या अवैध बच्चा, जिसके माता-पिता दोनों हिन्दू/बौद्ध/जैन/सिख हों – उसे हिन्दू माना जाएगा।
(2) यदि माता-पिता में से कोई एक हिन्दू/बौद्ध/जैन/सिख हो और बच्चे का पालन उसी परिवार, समुदाय, जनजाति में हुआ हो – तो बच्चा हिन्दू माना जाएगा।
(3) जिन बच्चों को माता-पिता ने त्याग दिया हो या जिनके माता-पिता ज्ञात न हों, लेकिन उनका पालन-पोषण हिन्दू/बौद्ध/जैन/सिख के रूप में हुआ हो – वे भी हिन्दू माने जाएँगे।
(4) धर्म बदल कर हिन्दू बनने वाला व्यक्ति भी इस कानून के अधीन आएगा।
(2) लेकिन, अगर कोई व्यक्ति अनुसूचित जनजाति का सदस्य है, तो ये कानून तब तक लागू नहीं होगा जब तक केंद्र सरकार राजपत्र में नोटिफिकेशन जारी न करे।
(3) इस अधिनियम में “हिन्दू” शब्द का अर्थ ऐसे व्यक्तियों पर भी लागू होगा, जो धर्म से हिन्दू नहीं हैं लेकिन ऊपर बताए गए प्रावधानों के कारण उन पर यह अधिनियम लागू होता है।
धारा 3 – परिभाषाएँ
जब तक संदर्भ कुछ और न कहे, इन शब्दों के अर्थ इस प्रकार हैं :
(a) प्रथा (Custom): ऐसा नियम जो लंबे समय से लगातार किसी क्षेत्र, जनजाति, समुदाय या परिवार में माना जाता रहा हो और जिसका कानून जैसा प्रभाव हो।
बशर्ते कि वह नियम स्पष्ट हो, अनुचित या सार्वजनिक नीति के विरुद्ध न हो।
बशर्ते कि अगर वह नियम केवल परिवार तक सीमित है, तो परिवार द्वारा उसे छोड़ा न गया हो।
(b) रखरखाव (Maintenance) में क्या-क्या आता है:
(i) खाना, कपड़ा, मकान, शिक्षा, इलाज और देखभाल।
(ii) अविवाहित बेटी के लिए उसके विवाह का उचित खर्चा भी इसमें शामिल है।
(c) नाबालिग (Minor) वह है जिसने 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है।
धारा 4 – अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव
जब तक इस अधिनियम में कुछ और न कहा गया हो:
(a) इस अधिनियम के लागू होने से पहले की हिन्दू विधि की कोई भी परंपरा, नियम या व्याख्या, इस अधिनियम के विषयों के संबंध में अब लागू नहीं होगी।
(b) कोई भी पुराना कानून, अगर वो इस अधिनियम के प्रावधानों से टकराता है, तो वह अब लागू नहीं होगा।
Chapter-II
धारा 5 – दत्तक ग्रहण इस अध्याय द्वारा विनियमित किया जाएगा
(1) इस अधिनियम के लागू होने के बाद, कोई भी हिन्दू दत्तक ग्रहण तभी कर सकता है जब यह इस अध्याय में दिए गए नियमों के अनुसार हो।
अगर किसी ने इन नियमों का उल्लंघन करके दत्तक ग्रहण किया, तो वह शून्य (Void) होगा।
(2) ऐसा शून्य दत्तक ग्रहण:
ना तो दत्तक परिवार में किसी व्यक्ति को कोई नया अधिकार देगा,
और ना ही जन्म परिवार के लोगों के अधिकारों को नष्ट करेगा।
धारा 6 – वैध दत्तक ग्रहण की अपेक्षित शर्तें
कोई भी दत्तक ग्रहण तब तक वैध नहीं होगा, जब तक:
(1) गोद लेने वाले व्यक्ति में गोद लेने की क्षमता और अधिकार दोनों न हों।
(2) गोद देने वाले व्यक्ति में भी गोद देने की क्षमता हो।
(3) गोद लिया जाने वाला व्यक्ति भी गोद लिए जाने योग्य होना चाहिए।
(4) और दत्तक ग्रहण इस अध्याय में दी गई बाकी शर्तों के अनुसार किया गया हो।
धारा 7 – किसी हिन्दू पुरुष की दत्तक ग्रहण करने की क्षमता
- कोई भी हिन्दू पुरुष, जो स्वस्थ दिमाग वाला और नाबालिग न हो, पुत्र या पुत्री को गोद लेने की क्षमता रखता है।
- परंतु अगर उसकी पत्नी जीवित है, तो वह पत्नी की सहमति के बिना दत्तक ग्रहण नहीं करेगा,
जब तक कि: पत्नी ने पूरी तरह से संसार त्याग (renounced) न दिया हो, या पत्नी हिन्दू न रह गई हो, या पत्नी को सक्षम न्यायालय ने विकृतचित्त (पागल) घोषित न कर दिया हो।
स्पष्टीकरण:
यदि किसी पुरुष की एक से अधिक पत्नियाँ जीवित हैं, तो सभी पत्नियों की सहमति आवश्यक होगी,
सिवाय उन पत्नियों के, जिनकी सहमति ऊपर बताई गई किसी वजह से अनावश्यक हो।
धारा 8 – किसी हिन्दू महिला की दत्तक ग्रहण करने की क्षमता
- कोई भी हिन्दू महिला, जो स्वस्थ दिमाग की और नाबालिग न हो, पुत्र या पुत्री को गोद लेने की क्षमता रखती है।
- परंतु अगर उसका पति जीवित है, तो वह पति की सहमति के बिना पुत्र या पुत्री को नहीं गोद लेगी,
जब तक कि: पति ने पूरी तरह से संसार त्याग न दिया हो, या पति हिन्दू न रह गया हो, या पति को सक्षम न्यायालय ने विकृतचित्त घोषित न कर दिया हो।
धारा 9 – दत्तक ग्रहण देने में सक्षम व्यक्ति
(1) केवल बच्चे का पिता, माता या अभिभावक ही बच्चे को गोद देने का अधिकार रखते हैं।
(2) अगर पिता और माता दोनों जीवित हैं, तो दोनों को समान अधिकार है:
परंतु कोई भी अकेले, दूसरे की सहमति के बिना, दत्तक ग्रहण नहीं करवा सकता,
जब तक कि दूसरे ने संसार का त्याग न कर दिया हो, या वह हिन्दू न रह गया हो, या उसे सक्षम न्यायालय ने विकृतचित्त (unsound mind) घोषित न कर दिया हो।
(3) (यह क्लॉज रिक्त छोड़ दिया गया है यानी हटाया हुआ है।) deleted
(4) अगर:
पिता और माता दोनों मर चुके हों, या
दोनों ने संसार त्याग दिया हो, या
दोनों ने बच्चे को त्याग दिया हो, या
दोनों को विकृतचित्त घोषित किया गया हो, या
माता-पिता का कुछ पता न हो,
तब, संरक्षक (guardian) बच्चे को न्यायालय की पूर्व अनुमति से किसी भी व्यक्ति को (स्वयं को भी) गोद दे सकता है।
(5) संरक्षक को अनुमति देने से पहले, न्यायालय को यह सुनिश्चित करना होगा कि:
दत्तक ग्रहण बच्चे के कल्याण (welfare) के लिए हो।
बच्चे की आयु (age) और समझ (understanding) के अनुसार उसकी इच्छाओं का भी सम्यक विचार हो।
गोद लेने के लिए किसी भी तरह का पैसा, भुगतान, या इनाम ना लिया गया हो और ना ही देने के लिए सहमति हुई हो, सिवाय इसके कि जो न्यायालय द्वारा स्वीकृत हो।
स्पष्टीकरण:
(1) “पिता” और “माता” में दत्तक पिता और दत्तक माता शामिल नहीं हैं।
(2) “संरक्षक” का मतलब है:
(a) वह व्यक्ति जिसे बच्चे के माता-पिता ने अपनी इच्छा से अभिभावक नियुक्त किया हो, या
(b) जिसे न्यायालय ने अभिभावक नियुक्त किया या घोषित किया हो।
(3) “न्यायालय” का मतलब है:
वह शहर सिविल न्यायालय या जिला न्यायालय, जिसकी सीमा में बच्चा सामान्यतः रहता है।
धारा 10 – वे व्यक्ति जिन्हें गोद लिया जा सकेगा
किसी भी व्यक्ति को तब तक गोद नहीं लिया जा सकता जब तक ये चारों शर्तें पूरी न हों:
( i ) वह व्यक्ति हिन्दू हो।
( ii ) वह पहले से गोद नहीं लिया गया हो।
( iii ) वह अविवाहित हो,
बशर्ते कि कोई ऐसी परंपरा (custom) या रूढ़ि (usage) हो जो विवाहित को गोद लेने की अनुमति देती हो।
( iv ) वह 15 साल से कम उम्र का हो,
बशर्ते कि कोई ऐसी परंपरा या प्रथा हो जो 15 वर्ष से अधिक आयु वाले को गोद लेने की अनुमति देती हो।
धारा 11 – वैध दत्तक ग्रहण के लिए अन्य शर्तें
हर गोद लेने के लिए इन शर्तों का पालन जरूरी है:
(i) अगर दत्तक पुत्र (लड़का) गोद लिया जा रहा है — तो जिस व्यक्ति (पिता या माता) द्वारा वह गोद लिया जा रहा है, उस समय उसका कोई हिन्दू पुत्र, पौत्र या परपौत्र (खून या दत्तक द्वारा) जीवित नहीं होना चाहिए।
(ii) अगर दत्तक पुत्री (लड़की) गोद ली जा रही है — तो जिस व्यक्ति द्वारा वह गोद ली जा रही है, उस समय उसकी कोई हिन्दू पुत्री या पुत्र की पुत्री जीवित नहीं होनी चाहिए।
(iii) अगर गोद लेने वाला पुरुष है और जिसे गोद लिया जा रहा है वह महिला है, तो गोद लेने वाला पुरुष कम से कम 21 साल बड़ा होना चाहिए।
(iv) अगर गोद लेने वाली महिला है और जिसे गोद लिया जा रहा है वह पुरुष है, तो गोद लेने वाली महिला कम से कम 21 साल बड़ी होनी चाहिए।
(v) एक ही बच्चे को दो या अधिक लोग एक साथ गोद नहीं ले सकते।
(vi) बच्चा वास्तव में माता-पिता या संरक्षक द्वारा गोद दिया गया हो, या उनके अधिकार में रहते हुए गोद दिया गया हो, और उसे उसके जन्म परिवार से हटा कर या यदि त्यागा गया है या माता-पिता अज्ञात हैं, तो जहां उसका पालन-पोषण हुआ है, वहां से उसे दत्तक परिवार में स्थानांतरित करने के इरादे से गोद लिया गया हो।
बशर्ते: “दत्त होम” (यानि गोद लेने की धार्मिक या सांस्कृतिक विधि) की आवश्यकता नहीं है।
धारा 12 – दत्तक ग्रहण के प्रभाव
जिस दिन बच्चा गोद लिया गया, उस दिन से:
- वह हर उद्देश्य के लिए अपने दत्तक पिता या माता का संतान माना जाएगा।
- उसके जन्म परिवार से सभी रिश्ते समाप्त हो जाएंगे।
- और दत्तक परिवार में नए रिश्ते स्थापित हो जाएंगे।
परंतु:
( a ) बच्चा किसी ऐसे व्यक्ति से विवाह नहीं कर सकता जिससे वह अपने जन्म परिवार में रहते हुए विवाह नहीं कर सकता था।
( b ) जो संपत्ति बच्चे के पास गोद लिए जाने से पहले थी, वह उसी में बनी रहेगी,
बशर्ते कि उसके साथ जुड़े दायित्व (जैसे जन्म परिवार के रिश्तेदारों का भरण-पोषण) बने रहेंगे।
( c ) गोद लिया गया बच्चा किसी अन्य व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं करेगा, जो संपत्ति गोद लेने से पहले उस व्यक्ति के पास थी।
धारा 13 – दत्तक माता-पिता का अपनी संपत्ति का निपटान करने का अधिकार
किसी भी विपरीत समझौते के बावजूद,
दत्तक ग्रहण करने से दत्तक पिता या माता अपनी संपत्ति को जीवनकाल में ट्रांसफर (अंतर-जीव हस्तांतरण – inter -vivos) या वसीयत (will) के ज़रिए बांटने के अधिकार से वंचित नहीं होते।
धारा 14 – कुछ मामलों में दत्तक माता का निर्धारण (Determination)
(1) अगर कोई हिन्दू पुरुष जिसकी पत्नी जीवित है — किसी बच्चे को गोद लेता है, तो वह पत्नी दत्तक माता मानी जाएगी।
(2) अगर एक से अधिक पत्नियों की सहमति से बच्चा गोद लिया गया है, तो
जिस पत्नी का विवाह सबसे पहले हुआ हो, वह दत्तक माता मानी जाएगी
और बाकी पत्नियां सौतेली माता मानी जाएंगी।
(3) अगर कोई विधुर या अविवाहित पुरुष बच्चा गोद लेता है, और बाद में शादी करता है, तो
विवाह के बाद वाली पत्नी सौतेली माता मानी जाएगी।
(4) अगर कोई विधवा या अविवाहित महिला बच्चा गोद लेती है, और बाद में शादी करती है, तो
पति सौतेला पिता माना जाएगा।
धारा 15 – वैध दत्तक ग्रहण रद्द नहीं किया जाएगा
कोई भी वैध दत्तक ग्रहण:
- न तो दत्तक पिता या माता द्वारा रद्द किया जा सकता है,
- न ही दत्तक बच्चा अपनी दत्तक स्थिति छोड़कर जन्म परिवार में वापस जा सकता है।
धारा 16 – दत्तक ग्रहण से संबंधित पंजीकृत दस्तावेजों के बारे में उपधारणा
जब कोई दस्तावेज जो
- विधि के अनुसार पंजीकृत है,
- और जिसमें बालक को दत्तक देने वाले और लेने वाले दोनों के हस्ताक्षर हैं,
- न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है,
तो न्यायालय यह मान लेगा कि
दत्तक ग्रहण इस अधिनियम के नियमों के अनुसार हुआ है,
जब तक कि इसे गलत साबित न कर दिया जाए।
धारा 17 – कुछ भुगतानों का प्रतिषेध
(1) कोई भी व्यक्ति किसी के दत्तक ग्रहण के बदले कोई भुगतान (payment) या इनाम (reward) नहीं ले सकता या लेने के लिए सहमत नहीं हो सकता,
और कोई भी व्यक्ति किसी को ऐसा भुगतान या इनाम नहीं दे सकता या देने के लिए सहमत नहीं हो सकता।
(2) जो व्यक्ति उपधारा (1) का उल्लंघन करेगा, उसे
- छह महीने तक कारावास, या
- जुर्माना, या
- दोनों सजा दी जा सकती है
(3) इस धारा के तहत कोई अभियोजन (prosecution) तभी शुरू होगा जब:
- राज्य सरकार या उसके द्वारा अधिकृत अधिकारी की पूर्व मंजूरी (previous sanction) प्राप्त हो।
धारा 18 – पत्नी का भरण-पोषण
(1) इस धारा के नियमों के अनुसार,
कोई भी हिन्दू पत्नी, चाहे वह इस अधिनियम के लागू होने से पहले या बाद में विवाहिता हो, अपने जीवनकाल में अपने पति से भरण-पोषण पाने की हकदार होगी।
(2) एक हिन्दू पत्नी अपने भरण-पोषण के अधिकार को खोए बिना पति से अलग रह सकती है —
(a) अगर पति ने उसे त्याग दिया हो (बिना उचित कारण, बिना सहमति, या इच्छा के विरुद्ध छोड़ दिया हो या जानबूझकर उपेक्षा की हो)।
(b) अगर पति ने उसके साथ क्रूरता से व्यवहार किया हो जिससे पत्नी को यह डर हो कि साथ रहना नुकसानदेह होगा।
(c) Deleted
(d) अगर पति की कोई दूसरी पत्नी जीवित हो।
(e) अगर पति घर में उपपत्नी (concubine) रखता हो या कहीं और उपपत्नी के साथ नियमित रूप से रहता हो।
(f) अगर पति ने धर्म परिवर्तन कर लिया हो और अब हिन्दू न रह गया हो।
(g) अगर अलग रहने का कोई और उचित कारण हो।
(3) अगर पत्नी व्यभिचारिणी (व्यभिचार करने वाली) हो या धर्म परिवर्तन कर हिन्दू धर्म छोड़ चुकी हो, तो
वह पति से अलग रहने और भरण-पोषण की हकदार नहीं होगी।
धारा 19 – विधवा पुत्रवधू का भरण-पोषण
(1) कोई भी हिन्दू विधवा पुत्रवधू, चाहे उसका विवाह इस अधिनियम के पहले या बाद में हुआ हो,
अपने पति की मृत्यु के बाद अपने ससुर से भरण-पोषण पाने की हकदार होगी:
बशर्ते कि:
वह अपनी कमाई या संपत्ति से खुद का भरण-पोषण करने में असमर्थ हो;
या
अपने पति, माता-पिता, बेटा या बेटी की संपत्ति से भरण-पोषण पाने में असमर्थ हो।
(2) यह दायित्व तभी लागू होगा जब:
ससुर के पास ऐसी सहदायिक संपत्ति (ancestral joint/ coprcenary property) हो,
जिसमें से पुत्रवधू को कोई हिस्सा नहीं मिला हो।
यह दायित्व पुत्रवधू के पुनर्विवाह के साथ समाप्त हो जाएगा।
धारा 20 – बच्चों और वृद्ध माता-पिता का भरण-पोषण
(1) कोई भी हिन्दू अपने जीवनकाल में —
- अपनी वैध या अवैध संतानों का, और
- अपने वृद्ध या अशक्त (infirm) माता-पिता का भरण-पोषण करने के लिए बाध्य है।
(2) कोई भी वैध या अवैध बच्चा अपने पिता या माता से भरण-पोषण मांग सकता है,
बशर्ते कि वह बच्चा नाबालिग हो।
(3) किसी व्यक्ति का अपने वृद्ध माता-पिता या अविवाहित बेटी का भरण-पोषण करने का दायित्व तभी है जब:
- वे अपनी कमाई या संपत्ति से अपना भरण-पोषण नहीं कर पा रहे हों।
स्पष्टीकरण: - इस धारा में “माता-पिता” में निःसंतान सौतेली मां भी शामिल है।
धारा 21 – आश्रितों की परिभाषा
इस अध्याय के लिए “आश्रित” मतलब मृत व्यक्ति के ये रिश्तेदार:
(i) उसका पिता।
(ii) उसकी मां।
(iii) उसकी विधवा पत्नी (जब तक वह पुनर्विवाह न करे)।
(iv) उसका बेटा, या बेटे का बेटा, या बेटे के बेटे का बेटा (जब तक वह अवयस्क हो), बशर्ते कि वह भरण-पोषण पाने में असमर्थ हो —
- पौत्र के लिए: पिता या माता की संपत्ति से।
- परपोत्र के लिए: पिता, माता, या दादा-दादी की संपत्ति से।
(v) उसकी अविवाहित बेटी, या बेटे की अविवाहित बेटी, या बेटे के बेटे की अविवाहित बेटी (जब तक अविवाहित हो), बशर्ते कि वह भरण-पोषण पाने में असमर्थ हो —
- पौत्री के लिए: पिता या माता की संपत्ति से।
- परपौत्री के लिए: पिता, माता, दादा या दादी की संपत्ति से।
(vi) उसकी विधवा बेटी, बशर्ते कि वह भरण-पोषण पाने में असमर्थ हो —
- पति की संपत्ति से, या
- बेटे-बेटी या उनकी संपत्ति से, या
- ससुर या उसके पिता या उनकी संपत्ति से।
(vii) उसके बेटे की या बेटे के बेटे की विधवा (जब तक पुनर्विवाह न करे), बशर्ते कि वह पति की संपत्ति, बेटा-बेटी या उनकी संपत्ति से भरण-पोषण पाने में असमर्थ हो।
(viii) उसका नाबालिग नाजायज बेटा (जब तक नाबालिग है)।
(ix) उसकी नाजायज बेटी (जब तक अविवाहित है)।
धारा 22 – आश्रितों का भरण-पोषण
(1) उपधारा (2) के नियमों के अधीन रहते हुए, जो व्यक्ति हिन्दू मर गया है, उसके उत्तराधिकारी (विरासत लेने वाले) मृतक से मिली संपत्ति में से मृतक के आश्रितों का भरण-पोषण करने के लिए ज़िम्मेदार होंगे।
(2) अगर कोई आश्रित, वसीयत या बिना वसीयत के, इस अधिनियम के लागू होने के बाद मरे किसी हिन्दू की संपत्ति में हिस्सा नहीं पा सका, तो वह इस अधिनियम के नियमों के अनुसार संपत्ति लेने वालों से भरण-पोषण पाने का हकदार होगा।
(3) जो भी संपत्ति लेगा, उसका ज़िम्मा उसके हिस्से या अंश के मूल्य के अनुपात में होगा।
(4) उपधारा (2) और (3) के होते हुए भी, अगर कोई व्यक्ति खुद भी आश्रित है और उसे जो संपत्ति मिली है उसका मूल्य इतना कम है कि अगर उस पर भरण-पोषण देने का बोझ डाला जाए तो वह खुद मिलने वाले भरण-पोषण से कम हो जाए, तो ऐसा व्यक्ति दूसरों के भरण-पोषण का ज़िम्मेदार नहीं होगा।
धारा 23 – भरण-पोषण की रकम
(1) अदालत के विवेक (समझदारी/फैसले) पर होगा कि भरण-पोषण दिया जाए या नहीं, और यदि हाँ, तो कितना दिया जाए। इसके लिए अदालत को उपधारा (2) और (3) में दी गई बातों पर ध्यान देना होगा।
(2) पत्नी, बच्चों और बूढ़े या कमजोर माता-पिता को दी जाने वाली भरण-पोषण की राशि तय करते समय निम्न बातों का ध्यान रखा जाएगा –
(a) पक्षों की सामाजिक स्थिति और स्तर।
(b) दावेदार की उचित ज़रूरतें।
(c) अगर दावेदार अलग रह रहा है तो क्या उसका अलग रहना उचित है।
(d) दावेदार की संपत्ति का मूल्य और उसकी कमाई या किसी अन्य आय।
(e) भरण-पोषण पाने के हकदार व्यक्तियों की संख्या।
(3) आश्रित को दी जाने वाली भरण-पोषण राशि तय करते समय ध्यान दिया जाएगा –
(a) मृतक की संपत्ति का शुद्ध मूल्य, ऋण चुकाने के बाद।
(b) मृतक द्वारा वसीयत में आश्रित के लिए किया गया कोई प्रावधान।
(c) मृतक और आश्रित के बीच संबंध की निकटता।
(d) आश्रित की उचित आवश्यकताएँ।
(e) मृतक और आश्रित के बीच पहले का संबंध।
(f) आश्रित की संपत्ति का मूल्य, कमाई और अन्य आय।
(g) भरण-पोषण पाने के हकदार आश्रितों की संख्या।
धारा 24 – भरण-पोषण का दावेदार हिन्दू होना चाहिए
अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य धर्म में चला गया है और हिन्दू नहीं रहा, तो वह इस अध्याय के तहत भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकता।
धारा 25 – परिस्थितियों के परिवर्तन पर भरण-पोषण की राशि में परिवर्तन
अगर भरण-पोषण की रकम अदालत के आदेश या समझौते से तय की गई हो, चाहे अधिनियम से पहले या बाद में, फिर भी अगर परिस्थितियाँ बदल जाती हैं तो उस रकम को बदला जा सकता है।
धारा 26 – ऋणों (Debts) को प्राथमिकता दी जाएगी
धारा 27 के नियमों के अधीन रहते हुए, मृतक के द्वारा लिए गए सभी प्रकार के ऋणों का भुगतान करना भरण-पोषण के दावों से पहले किया जाएगा।
धारा 27 – भरण-पोषण कब प्रभारित (charge) होगा
जब तक वसीयत, अदालत के आदेश, आश्रित और संपत्ति के मालिक के बीच समझौते, या किसी अन्य तरीके से स्पष्ट रूप से प्रभार न बनाया गया हो, तब तक मृतक की संपत्ति या उसके भाग पर आश्रित का भरण-पोषण का कोई भार नहीं बनेगा।
धारा 28 – भरण-पोषण के अधिकार पर संपत्ति के अंतरण का प्रभाव
अगर किसी आश्रित को संपत्ति से भरण-पोषण का अधिकार है और वह संपत्ति या उसका कोई भाग किसी और को ट्रांसफर कर दिया जाता है, तो:
- अगर ट्रांसफर पाने वाले को भरण-पोषण के अधिकार की जानकारी थी या ट्रांसफर मुफ्त में हुआ है, तो आश्रित उसका दावा उस पर लागू कर सकता है।
- लेकिन अगर संपत्ति प्रतिफल (कीमत) लेकर और बिना जानकारी के ट्रांसफर हुई है, तो आश्रित उस नए मालिक से भरण-पोषण नहीं मांग सकता।
धारा – 29. Repealed
धारा 30 – बचत
इस अधिनियम में जो भी बातें लिखी गई हैं, वे इस अधिनियम के लागू होने से पहले किए गए किसी भी दत्तक ग्रहण (adoption) पर कोई असर नहीं डालेंगी।
और ऐसे पहले किए गए दत्तक ग्रहण की वैधता (validity) और प्रभाव (effect) का फैसला ऐसे किया जाएगा जैसे यह अधिनियम कभी पास ही नहीं हुआ हो।