The Bharatiya Nyaya Sanhita, 2023
Act No. 45/2023
अध्याय I – प्रारंभिक
धारा 1 – संक्षिप्त नाम, प्रारंभ और प्रवर्तन
(1) इस अधिनियम को भारतीय न्याय संहिता, 2023 कहा जाएगा।
(2) यह संहिता भारत सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियुक्त दिनांक से लागू (01 Jul 2023)होगी। विभिन्न प्रावधानों के लिए अलग-अलग तिथियाँ नियुक्त की जा सकती हैं।
(3) हर व्यक्ति को इस संहिता के अंतर्गत उन कार्यों या चूकों के लिए दंडित किया जाएगा जो इसके प्रावधानों के विरुद्ध भारत में किए गए हों।
(4) यदि कोई व्यक्ति ऐसा अपराध करता है जो भारत के बाहर हुआ है, लेकिन किसी भारतीय कानून के तहत भारत में मुकदमा चल सकता है, तो उसे इस संहिता के अनुसार ऐसे ही दंडित किया जाएगा जैसे वह अपराध भारत में हुआ हो।
(5) यह संहिता इन व्यक्तियों पर भी लागू होगी—
(a) जो कोई भारतीय नागरिक भारत के बाहर कोई अपराध करता है।
(b) जो कोई व्यक्ति भारत में पंजीकृत किसी जहाज या विमान पर अपराध करता है, चाहे वह कहीं भी हो।
(c) जो कोई व्यक्ति भारत के बाहर रहते हुए भारत में स्थित किसी कंप्यूटर संसाधन को निशाना बनाकर अपराध करता है।
व्याख्या: “अपराध” में वे कार्य भी शामिल हैं जो भारत के बाहर किए गए हों, लेकिन अगर वही कार्य भारत में होते तो वे इस संहिता के अंतर्गत दंडनीय होते।
उदाहरण: A, एक भारतीय नागरिक, भारत के बाहर हत्या करता है। उसे भारत में किसी भी स्थान पर हत्या के लिए अभियोजित और दोषी ठहराया जा सकता है।
(6) यह संहिता भारतीय सेना, नौसेना, वायुसेना के अधिकारियों, सैनिकों, नाविकों की विद्रोह या पलायन से संबंधित किसी अधिनियम या किसी विशेष या स्थानीय कानून को प्रभावित नहीं करेगी।
धारा 2 – परिभाषाएँ (Definitions)
- “कर्म (act)” – एक कार्य या कार्यों की श्रृंखला दोनों को दर्शाता है।
- “पशु (animal)” – मनुष्य को छोड़कर कोई भी जीवित प्राणी।
- “बालक (child)” – 18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति।
- “जालसाजी (counterfeit)” – जब कोई व्यक्ति धोखा देने की नीयत से एक वस्तु को दूसरी जैसी बनाता है।
- व्याख्या: हूबहू समानता आवश्यक नहीं। यदि समानता से धोखा हो सकता है, तो धोखे की नीयत मानी जाएगी।
- “न्यायालय (Court)” – ऐसा न्यायाधीश या न्यायाधीशों की समिति जो कानून द्वारा न्यायिक कार्य के लिए सक्षम हो।
- “मृत्यु (death)” – मानव की मृत्यु।
- “बेईमानी से (dishonestly)” – गलत लाभ पहुँचाने या हानि पहुँचाने की नीयत से किया गया कार्य।
- “दस्तावेज़ (document)” – कोई भी सामग्री जिस पर अक्षर, संख्या, चिन्ह आदि से कोई बात अभिव्यक्त की गई हो, चाहे इलेक्ट्रॉनिक या डिजिटल रूप में हो।
- उदाहरण: अनुबंध-पत्र, चेक, पावर ऑफ अटॉर्नी, नक्शा, निर्देश आदि।
- “धोखाधड़ी से (fraudulently)” – केवल धोखा देने की नीयत से किया गया कार्य।
- “लिंग (gender)” – “he” और उसके रूप सभी लिंगों (पुरुष, महिला, ट्रांसजेंडर) पर लागू।
- “सद्भावना (good faith)” – बिना उचित ध्यान व सावधानी के किया गया कार्य सद्भावना नहीं है।
- “सरकार (Government)” – केंद्र सरकार या राज्य सरकार।
- “शरण देना (harbour)” – किसी व्यक्ति को छिपाने या पकड़ से बचाने हेतु सहायता देना।
- “चोट (injury)” – शरीर, मन, प्रतिष्ठा या संपत्ति को अवैध रूप से पहुंचाई गई क्षति।
- “अवैध/कानूनन बाध्य (illegal/legally bound)” – जो कार्य अपराध हो, या कानून से निषिद्ध हो, या जिससे सिविल कार्यवाही बनती हो, वह अवैध है।
- “न्यायाधीश (Judge)” – वह व्यक्ति जो न्यायिक निर्णय देने के लिए अधिकृत हो।
- “जीवन (life)” – मानव जीवन।
- “स्थानीय कानून (local law)” – भारत के किसी विशेष क्षेत्र में लागू कानून।
- “पुरुष (man)” – किसी भी उम्र का पुरुष मानव।
- “माह/वर्ष (month/year)” – ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार गिने जाएँगे।
- “चल संपत्ति (movable property)” – भूमि और उस पर स्थायी रूप से जुड़ी वस्तुओं को छोड़कर सभी प्रकार की संपत्ति।
- “संख्या (number)” – एकवचन में बहुवचन और बहुवचन में एकवचन भी शामिल हैं।
- “शपथ (oath)” – किसी सार्वजनिक सेवक (Public Servant) के समक्ष दी गई विधिक घोषणा भी शामिल।
- “अपराध (offence)” – सामान्यतः वह कार्य जो इस संहिता द्वारा दंडनीय हो।
- कुछ धाराओं में विशेष या स्थानीय कानून के तहत दंडनीय कार्य भी “अपराध” कहलाते हैं, यदि सजा 6 माह या अधिक हो।
- “चूक (omission)” – एक चूक या चूकों की श्रृंखला दोनों।
- “व्यक्ति (person)” – व्यक्ति, कंपनी, संस्था (पंजीकृत या नहीं)।
- “जनता (public)” – किसी भी वर्ग या समुदाय की जनता।
- “लोक सेवक (public servant)” – विभिन्न सरकारी, न्यायिक, सैनिक, स्थानीय निकाय, निर्वाचनी या अन्य कार्य करने वाले अधिकारी/व्यक्ति।
- “कारण सहित विश्वास (reason to believe)” – यदि विश्वास करने का उचित कारण हो।
- “विशेष कानून (special law)” – किसी विशेष विषय पर लागू कानून।
- “मूल्यवान प्रतिभूति (valuable security)” – वह दस्तावेज जिससे कोई विधिक अधिकार बनता, बढ़ता, समाप्त होता या स्थानांतरित होता है।
- “पोत (vessel)” – जल मार्ग से लोगों या वस्तुओं को ले जाने हेतु बनाई गई वस्तु।
- “स्वेच्छा से (voluntarily)” – जब कोई व्यक्ति किसी कार्य को ऐसे साधनों से करता है जिससे वह प्रभाव उत्पन्न करना चाहता है या जानता है कि होगा।
- “वसीयत (will)” – कोई भी वसीयतनामा दस्तावेज।
- “महिला (woman)” – किसी भी उम्र की स्त्री।
- “गैरकानूनी लाभ (wrongful gain)” – उस संपत्ति का लाभ जिसे व्यक्ति पाने का कानूनी अधिकार नहीं रखता।
- “गैरकानूनी हानि (wrongful loss)” – उस संपत्ति की हानि जिसे व्यक्ति रखने का कानूनी अधिकार रखता है।
- “गैरकानूनी रूप से प्राप्त करना/खोना (gaining/losing wrongfully)” – जब व्यक्ति संपत्ति को गलत तरीके से प्राप्त करता या बनाए रखता है / या उससे वंचित किया जाता है।
- अन्य शब्द जो इस संहिता में परिभाषित नहीं हैं पर आईटी अधिनियम, 2000 या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में परिभाषित हैं, तो उनका वही अर्थ होगा।
धारा 3 – सामान्य व्याख्याएँ (General Explanation)
(1) हर अपराध की परिभाषा, दंड प्रावधान और उदाहरण, “सामान्य अपवाद” अध्याय में दिए गए अपवादों के अधीन माने जाएंगे, भले ही वे परिभाषा या उदाहरण में बार-बार न लिखे हों।
🔸 उदाहरण:
(a) 7 साल से कम उम्र का बच्चा अपराध नहीं कर सकता, यह बात हर अपराध की परिभाषा में न लिखी हो, तब भी मानी जाएगी।
(b) पुलिस अधिकारी A हत्या के आरोपी Z को बिना वारंट पकड़ता है, तो यह गलत कारावास नहीं माना जाएगा क्योंकि वह कानून से ऐसा करने के लिए बाध्य है।
(2) संहिता में जहाँ किसी शब्द का अर्थ समझाया गया है, वहाँ वह अर्थ पूरे संहिता में वैसा ही माना जाएगा।
(3) यदि किसी व्यक्ति की संपत्ति उसके पति/पत्नी, क्लर्क या नौकर के पास है, तो वह उसकी ही मानी जाएगी।
🔸 व्याख्या: अस्थायी या एक अवसर के लिए रखा गया क्लर्क/नौकर भी इसी श्रेणी में आता है।
(4) जब तक विपरीत आशय न हो, “किए गए कार्यों” में “अवैध चूक (illegal omission)” भी शामिल मानी जाएगी।
(5) यदि कई व्यक्ति किसी आपराधिक कार्य को साझा इरादे से करते हैं, तो हर व्यक्ति उसी तरह जिम्मेदार होगा जैसे उसने अकेले वह कार्य किया हो।
(6) यदि कोई कार्य सिर्फ आपराधिक ज्ञान या इरादे से अपराध बनता है और उसे कई व्यक्ति करते हैं, तो सभी वैसे ही दोषी होंगे जैसे उन्होंने अकेले वह कार्य किया हो।
(7) किसी परिणाम को कार्य या चूक से लाने को अपराध कहा गया है, तो कार्य और चूक दोनों से मिलकर वह अपराध करना भी वही अपराध माना जाएगा।
🔸 उदाहरण: A ने Z को खाना न देकर और पीटकर जानबूझकर मार डाला — यह हत्या है।
(8) अगर कोई अपराध कई कार्यों से मिलकर होता है और कोई व्यक्ति उनमें से कोई एक कार्य करके सहयोग करता है, तो वह भी अपराधी है।
🔸 उदाहरण:
(a) A और B मिलकर Z को धीमा ज़हर देते हैं — दोनों हत्या के दोषी।
(b) A और B जेलर हैं और बारी-बारी से कैदी Z को भूखा रखते हैं — दोनों हत्या के दोषी।
(c) A ने भूख से कमजोर किया और B ने जानबूझकर खाना न देकर Z को मारा — B हत्या का दोषी, A हत्या के प्रयास का दोषी।
(9) यदि कई लोग किसी आपराधिक कार्य में शामिल हैं, तो वे उस कार्य से अलग-अलग अपराधों के लिए दोषी हो सकते हैं।
🔸 उदाहरण: A ने उकसावे में Z की हत्या की — सिर्फ दोषसिद्ध मानव वध (culpable homicide)। लेकिन B ने जानबूझकर मदद की — B हत्या (murder) का दोषी।
अध्याय II – दंडों के विषय में (Of Punishments)
धारा 4 – दंड (Punishments)
इस संहिता के प्रावधानों के अंतर्गत अपराधियों को निम्नलिखित दंड दिए जा सकते हैं—
(a) मृत्यु दंड (Death);
(b) आजीवन कारावास (Imprisonment for life);
(c) कारावास, जो दो प्रकार का होता है—
(1) कठोर कारावास (Rigorous) – जिसमें कठिन परिश्रम होता है;
(2) साधारण कारावास (Simple);
(d) संपत्ति की जब्ती (Forfeiture of property);
(e) जुर्माना (Fine);
(f) सामुदायिक सेवा (Community Service)।
धारा 5 – दंड का परिवर्तन (Commutation of sentence)
महत्वपूर्ण बिंदु (याद रखने के लिए):
✅ उचित सरकार अपराधी की सहमति के बिना, इस संहिता के अंतर्गत दिए गए किसी भी दंड को, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 474 के अनुसार किसी अन्य दंड में बदल सकती है।
स्पष्टीकरण – “उचित सरकार” का अर्थ है:
(a) यदि दंड मृत्यु दंड है या ऐसा अपराध है जो संघ की कार्यकारी शक्ति के अंतर्गत आता है – केंद्र सरकार।
(b) यदि दंड (मृत्यु हो या न हो) ऐसा अपराध है जो राज्य की कार्यकारी शक्ति के अंतर्गत आता है – उस राज्य की सरकार जिसमें अपराधी को दंडित किया गया है।
धारा 5 – दंड का परिवर्तन (Commutation of sentence)
उचित सरकार (Appropriate Govt ) अपराधी की सहमति के बिना, इस संहिता के अंतर्गत दिए गए किसी भी दंड को, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 474 के अनुसार किसी अन्य दंड में बदल सकती है।
स्पष्टीकरण – “उचित सरकार” का अर्थ है:
(a) यदि दंड मृत्यु दंड है या ऐसा अपराध है जो संघ की कार्यकारी शक्ति के अंतर्गत आता है – केंद्र सरकार।
(b) यदि दंड (मृत्यु हो या न हो) ऐसा अपराध है जो राज्य की कार्यकारी शक्ति के अंतर्गत आता है – उस राज्य की सरकार जिसमें अपराधी को दंडित किया गया है।
धारा 6 – दंड की अवधि के अंश (Fractions of terms of punishment)
❖ जब दंड की अवधि का अंश (fraction) निकाला जाता है, तो आजीवन कारावास को 20 वर्ष की सजा के बराबर माना जाएगा, यदि कहीं और कुछ अलग न दिया गया हो।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
✔ आजीवन कारावास = 20 वर्ष (जब fraction निकालना हो)।
✔ ‘जब तक कुछ और न कहा गया हो’ = अपवाद संभव है।
धारा 7 – कुछ मामलों में कारावास पूरी तरह या आंशिक रूप से कठोर या साधारण हो सकता है
❖ जहाँ किसी अपराधी को ऐसा कारावास दिया जा सकता है जो कठोर (rigorous) या साधारण (simple) हो, वहाँ न्यायालय यह निर्देश दे सकता है कि–
✔ पूरी सजा कठोर कारावास हो,
या
✔ पूरी सजा साधारण कारावास हो,
या
✔ कुछ हिस्सा कठोर हो और बाकी साधारण कारावास हो।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
- न्यायालय तय करता है कारावास का प्रकार।
- एक ही सजा में दोनों प्रकार का मिश्रण संभव है।
धारा 8 – जुर्माना: राशि, भुगतान न करने पर दायित्व आदि
(1) यदि कानून में यह नहीं बताया गया हो कि जुर्माना कितनी राशि तक लगाया जा सकता है, तो
❖ जुर्माने की अधिकतम सीमा तय नहीं है,
परंतु यह अत्यधिक (excessive) नहीं होना चाहिए।
(2) हर उस मामले में जहाँ—
(a) सजा में कैद और जुर्माना, दोनों हो सकते हैं, और जुर्माना लगाया गया हो (चाहे कैद के साथ या बिना);
(b) सजा में कैद या जुर्माना, या केवल जुर्माना हो और केवल जुर्माना लगाया गया हो;
❖ न्यायालय यह निर्देश दे सकता है कि जुर्माना न देने की स्थिति में
⇒ अपराधी को अतिरिक्त कैद भुगतनी होगी,
जो उसके द्वारा भुगती जा रही किसी अन्य कैद से अलग और अतिरिक्त होगी।
(3) यदि अपराध के लिए कैद और जुर्माना, दोनों का प्रावधान हो,
तो जुर्माना न देने पर दी गई कैद की अवधि, उस अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम कैद की अवधि का एक-चौथाई से अधिक नहीं हो सकती।
(4) जुर्माना या सामुदायिक सेवा न करने पर जो कैद दी जाती है, वह उसी प्रकार की हो सकती है जैसी सजा उस अपराध के लिए दी जा सकती थी।
(5) यदि अपराध के लिए केवल जुर्माना या सामुदायिक सेवा का प्रावधान है,
तो जुर्माना/सेवा न करने पर दी गई कैद —
❖ साधारण कारावास होगी, और उसकी अवधि इस प्रकार होगी—
- (a) ₹5000 तक के जुर्माने पर – 2 महीने तक,
- (b) ₹10,000 तक के जुर्माने पर – 4 महीने तक,
- (c) अन्य सभी मामलों में – 1 वर्ष तक।
(6)
(a) जुर्माना न देने पर दी गई कैद तुरंत समाप्त हो जाएगी, यदि जुर्माना पूरा अदा या वसूल कर लिया जाए।
(b) यदि कैद की पूरी अवधि पूरी होने से पहले, जुर्माने का इतना भाग अदा या वसूल हो जाए
⇒ कि शेष बचे जुर्माने के अनुपात में पर्याप्त कैद भुगती जा चुकी हो,
⇒ तो कैद समाप्त हो जाएगी।
★ उदाहरण:
A को ₹1000 जुर्माना और जुर्माना न देने पर 4 महीने की कैद दी गई।
- यदि ₹750 पहले महीने के अंत तक दे दिया जाए, तो A को पहले महीने के बाद छोड़ दिया जाएगा।
- यदि ₹750 पहले महीने के अंत या बाद में दिया जाए, तब भी A को तुरंत रिहा किया जाएगा।
- यदि ₹500 दो महीने के भीतर दे दिए जाएं, तो दो महीने पूरे होने पर A रिहा हो जाएगा।
(7) जो जुर्माना या उसका कोई भाग बकाया है,
उसे —
❖ सजा सुनाए जाने के 6 वर्ष के भीतर कभी भी वसूल किया जा सकता है,
और यदि अपराधी को 6 वर्षों से अधिक की कैद दी गई हो, तो उस पूरी अवधि के भीतर कभी भी वसूल किया जा सकता है।
❖ अपराधी की मृत्यु होने पर भी, उसकी संपत्ति, जो कानूनी रूप से उसकी देनदारियों के लिए जिम्मेदार हो,
⇒ जुर्माने की वसूली से मुक्त नहीं होगी।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
✔ जुर्माने की अधिकतम राशि निर्धारित नहीं है, पर वह अत्यधिक नहीं हो सकती।
✔ जुर्माना न देने पर अतिरिक्त कैद हो सकती है।
✔ जुर्माना न देने पर दी गई कैद की अवधि सीमित होती है।
✔ कैद जुर्माना चुकाने पर तुरंत समाप्त हो सकती है।
✔ जुर्माना मृत्यु के बाद भी संपत्ति से वसूला जा सकता है।
धारा 10 – कई अपराधों में से किसी एक का दोषी, जब स्पष्ट न हो कि कौन सा अपराध किया
❖ यदि किसी व्यक्ति को कई अपराधों में से किसी एक का दोषी माना जाए, पर यह संदेह हो कि कौन सा अपराध किया,
तो—
✔ ऐसे व्यक्ति को उस अपराध की सजा दी जाएगी, जिसके लिए सबसे कम सजा का प्रावधान है, अगर सभी अपराधों के लिए समान सजा न हो।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:-
- दोष निश्चित नहीं हो तो न्यूनतम सजा।
- समान सजा होने पर न्यूनतम सजा का नियम लागू नहीं।
धारा 11 – एकांत कारावास (Solitary confinement)
❖ यदि किसी व्यक्ति को ऐसा अपराध करने पर दोषी ठहराया जाए, जिसके लिए न्यायालय कठोर कारावास (rigorous imprisonment) देने का अधिकार रखता है,
तो न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि –
✔ उसे एकांत कारावास (solitary confinement) में भी रखा जाए,
परंतु कुल अवधि 3 महीने से अधिक नहीं होगी, और यह निम्नानुसार तय होगी:
(a) अगर सजा 6 महीने तक की है – एकांत कारावास 1 महीने तक।
(b) अगर सजा 6 महीने से अधिक लेकिन 1 वर्ष तक की है – एकांत कारावास 2 महीने तक।
(c) अगर सजा 1 वर्ष से अधिक की है – एकांत कारावास 3 महीने तक।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
- एकांत कारावास केवल कठोर कारावास मामलों में।
- अधिकतम अवधि: 3 महीने।
- अवधि सजा की लंबाई पर निर्भर करती है।
धारा 12 – एकांत कारावास की सीमा (Limit of solitary confinement)
❖ एकांत कारावास लागू करते समय:
✔ एक बार में अधिकतम 14 दिन तक ही रखा जा सकता है।
✔ प्रत्येक एकांत अवधि के बीच का अंतराल (gap) भी उतनी ही अवधि का होना चाहिए जितनी एकांत कारावास की अवधि थी।
✔ यदि कुल सजा 3 महीने से अधिक हो, तो एक महीने में अधिकतम 7 दिन ही एकांत कारावास दिया जा सकता है, और उसमें भी उतनी ही अवधि का अंतराल जरूरी होगा।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
- एक बार में अधिकतम 14 दिन।
- हर एकांत अवधि के बाद उतना ही विश्राम (gap) जरूरी।
- सजा 3 महीने से अधिक हो तो हर महीने अधिकतम 7 दिन ही एकांत कारावास।
धारा 13 – पिछली सजा के बाद कुछ अपराधों के लिए बढ़ी हुई सजा
❖ कोई व्यक्ति अगर—
✔ पहले भारत के किसी न्यायालय द्वारा
✔ अध्याय X या अध्याय XVII के तहत किसी ऐसे अपराध में दोषी ठहराया गया हो,
जिसमें 3 वर्ष या उससे अधिक की सजा हो सकती है, और
✔ बाद में फिर उन्हीं अध्यायों के अंतर्गत ऐसा ही अपराध करे,
तो —
❖ उस व्यक्ति को हर ऐसे बाद के अपराध के लिए–
👉 आजीवन कारावास,
या
👉 10 वर्ष तक की कठोर या साधारण कारावास दी जा सकती है।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
- अध्याय X या XVII में पहले सजा मिल चुकी हो।
- फिर उसी तरह का अपराध करने पर सजा बढ़ेगी।
- अधिकतम सजा: आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की कैद।
Chapter- III : General Exception
धारा 14 – कानून द्वारा बाध्य व्यक्ति द्वारा किया गया कार्य, या तथ्य की भूल से बाध्य मानकर किया गया कार्य
❖ ऐसा कोई कार्य अपराध नहीं है जो किसी व्यक्ति द्वारा किया गया हो,
✔ जो वास्तव में कानून द्वारा करने के लिए बाध्य हो,
या
✔ जो तथ्य की भूल (mistake of fact) के कारण, ईमानदारी से यह मानता हो कि वह कानून द्वारा ऐसा करने के लिए बाध्य है।
(कानून की भूल नहीं, केवल तथ्य की भूल मान्य है।)
उदाहरण:
(a) A एक सैनिक है, और अपने वरिष्ठ अधिकारी के आदेश पर (जो कानून के अनुसार है) भीड़ पर गोली चलाता है — कोई अपराध नहीं।
(b) A न्यायालय का अधिकारी है, Y को गिरफ्तार करने का आदेश मिला है, लेकिन जांच के बाद गलती से Z को Y समझकर गिरफ्तार करता है — कोई अपराध नहीं।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
- कानून द्वारा बाध्यता या तथ्य की ईमानदार भूल होनी चाहिए।
- कानून की भूल (mistake of law) स्वीकार नहीं है।
- ऐसा कार्य अपराध नहीं माना जाएगा।
धारा 15 – न्यायिक कार्य करते समय न्यायाधीश द्वारा किया गया कार्य
❖ कोई कार्य अपराध नहीं है, यदि वह—
✔ किसी न्यायाधीश द्वारा न्यायिक रूप से किया गया हो,
✔ और वह कार्य उस शक्ति के प्रयोग में किया गया हो
जो—
👉 वास्तव में कानून द्वारा दी गई हो,
या
👉 जिसे वह ईमानदारी से कानून द्वारा दी गई मानता हो।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
- न्यायिक कार्य हो।
- शक्ति कानून द्वारा दी गई हो या न्यायाधीश ने उसे ईमानदारी से ऐसा माना हो।
- ऐसा कार्य अपराध नहीं माना जाएगा।
धारा 16 – न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसार किया गया कार्य
❖ कोई कार्य अपराध नहीं माना जाएगा, यदि वह कार्य—
✔ किसी न्यायालय के निर्णय या आदेश के अनुसार किया गया हो,
✔ और वह निर्णय या आदेश प्रभाव में मौजूद हो,
✔ भले ही उस न्यायालय के पास उस निर्णय या आदेश देने का अधिकार न हो,
✔ बशर्ते कि वह व्यक्ति, जो वह कार्य कर रहा हो, ईमानदारी से विश्वास करता हो कि न्यायालय के पास वह अधिकार था।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
- निर्णय/आदेश का पालन हो।
- आदेश प्रभाव में हो।
- न्यायालय के अधिकार की वास्तविकता से फर्क नहीं,
- लेकिन विश्वास ईमानदार होना चाहिए।
- ऐसा कार्य अपराध नहीं।
धारा 17 – कानून द्वारा न्यायसंगत व्यक्ति द्वारा या तथ्य की भूल से न्यायसंगत मानकर किया गया कार्य
❖ ऐसा कोई कार्य अपराध नहीं है, जो किसी व्यक्ति द्वारा किया गया हो,
✔ जो कानून द्वारा न्यायसंगत हो,
या
✔ जो तथ्य की गलती के कारण, पर कानून की गलती के कारण नहीं, ईमानदारी से यह मानता हो कि वह कानून द्वारा न्यायसंगत है।
उदाहरण:
A ने देखा कि Z ने हत्या की है। A ने कानून द्वारा सभी को दी गई शक्ति का प्रयोग करते हुए, ईमानदारी से विश्वास करके, Z को पकड़ लिया ताकि उचित अधिकारियों के पास ले जाए। भले ही बाद में पता चले कि Z ने आत्मरक्षा की, A ने कोई अपराध नहीं किया।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
- कानून द्वारा न्यायसंगत होना चाहिए।
- तथ्य की गलती पर विश्वास मान्य है, कानून की गलती नहीं।
- ऐसा कार्य अपराध नहीं माना जाएगा।
धारा 18 – वैध कार्य करते समय आकस्मिक घटना
❖ कोई कार्य अपराध नहीं है, यदि वह—
✔ वैध कार्य हो,
✔ वैध तरीके और साधनों से किया गया हो,
✔ सावधानी और उचित ध्यान के साथ किया गया हो,
✔ और कोई आपराधिक इरादा या जानबूझकर गलती न हो,
✔ लेकिन फिर भी दुर्घटना या दुर्भाग्य से हो जाए।
उदाहरण:
A एक कुल्हाड़ी से काम कर रहा है, कुल्हाड़ी का सिर उड़कर पास खड़े व्यक्ति को मार देता है। यदि A ने पूरी सावधानी रखी थी, तो यह कार्य माफ़ी योग्य है और अपराध नहीं।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
- वैध कार्य हो।
- सही तरीका और सावधानी हो।
- कोई जानबूझकर या अपराध इरादा न हो।
- दुर्घटना होने पर भी अपराध नहीं माना जाएगा।
धारा 19 – हानि पहुँचने की संभावना वाले कार्य, परन्तु बिना आपराधिक इरादा और किसी अन्य हानि से बचाने के लिए किया गया
❖ कोई कार्य सिर्फ इस कारण अपराध नहीं है कि उसे करते समय यह ज्ञात था कि उससे हानि हो सकती है,
✔ यदि वह कार्य किसी आपराधिक इरादे के बिना,
✔ ईमानदारी से,
✔ किसी व्यक्ति या संपत्ति को दूसरी हानि से बचाने के लिए किया गया हो।
व्याख्या:
इस बात का निर्णय तथ्य पर निर्भर करता है कि बचाई जाने वाली हानि इतनी गंभीर और निकट थी कि हानि होने की जानकारी के बावजूद वह कार्य करना उचित और क्षम्य था या नहीं।
उदाहरण:
(a) A एक जहाज़ का कप्तान है। सामने नाव B है जिसमें 20-30 लोग हैं। सीधा चलने पर टक्कर निश्चित है। अगर वह दिशा बदलता है तो नाव C से टकराने का खतरा है जिसमें केवल 2 लोग हैं। A दिशा बदलता है ताकि B को बचा सके — यदि उसने ईमानदारी से और बिना इरादे के ऐसा किया, तो अपराध नहीं है।
(b) A एक भीषण आग में आग को फैलने से रोकने के लिए कुछ घर गिरा देता है, ताकि मानव जीवन या संपत्ति को बचाया जा सके। यदि यह साबित हो कि नुकसान बहुत निकट और गंभीर था, तो A का कार्य अपराध नहीं है।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
- आपराधिक इरादा नहीं होना चाहिए।
- कार्य किसी अन्य हानि से बचने के लिए होना चाहिए।
- ईमानदारी और उचित कारण जरूरी है।
- जोखिम उठाना तर्कसंगत और क्षम्य होना चाहिए।
धारा 20 – सात वर्ष से कम आयु के बच्चे का कार्य
❖ सात वर्ष से कम आयु का बच्चा जो कार्य करता है, वह अपराध नहीं माना जाएगा।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
- 7 वर्ष से कम आयु = कोई दंडनीय अपराध नहीं।
- पूर्ण प्रतिरक्षा (Full immunity)।
धारा 21 – सात से बारह वर्ष की आयु के बच्चे का कार्य (यदि अपरिपक्व समझ है)
❖ 7 वर्ष से अधिक और 12 वर्ष से कम आयु का बच्चा यदि—
✔ उस समय अपने कार्य की प्रकृति और परिणाम को समझने की पर्याप्त समझ नहीं रखता था,
✔ तो उसका किया हुआ कार्य अपराध नहीं माना जाएगा।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
- उम्र: 7 से 12 वर्ष
- यदि पर्याप्त समझ नहीं = कोई अपराध नहीं
- बच्चे की मनोदशा और समझ की स्थिति महत्वपूर्ण है।
धारा 22 – अस्वस्थ मानसिक स्थिति वाले व्यक्ति का कार्य
❖ कोई भी कार्य जो ऐसा व्यक्ति करता है,
✔ जो उस समय मानसिक रूप से अस्वस्थ हो,
✔ और अपनी क्रिया की प्रकृति या उसकी अवैधता को समझने में असमर्थ हो,
तो वह कार्य अपराध नहीं माना जाएगा।
★ महत्वपूर्ण बिंदु:
- व्यक्ति का मानसिक अस्वस्थ होना जरूरी है।
- कार्य की प्रकृति या अवैधता को समझने में असमर्थ होना जरूरी।
- ऐसी स्थिति में किया गया कार्य अपराध नहीं।
धारा 23 — उस व्यक्ति का कार्य अपराध नहीं है जो इच्छा के विरुद्ध नशा करने के कारण विवेकशक्ति खो चुका हो।
❖ कोई भी कार्य अपराध नहीं होगा, अगर वह उस व्यक्ति द्वारा किया गया हो जो उस समय:
(a) नशे के कारण उस कार्य की प्रकृति को समझने में असमर्थ हो, या
(b) यह न समझ पा रहा हो कि वह जो कर रहा है वह गलत है या कानून के विरुद्ध है,
बशर्ते (provided that):
जिस पदार्थ से नशा हुआ हो, वह व्यक्ति की जानकारी के बिना या उसकी इच्छा के विरुद्ध दिया गया हो।
मुख्य बिंदु:
▪ विवेकशक्ति न होने पर कार्य अपराध नहीं होगा।
▪ नशा जबरदस्ती या बिना जानकारी के कराया गया हो।
धारा 25 — सहमति से किया गया ऐसा कार्य जो मृत्यु या गम्भीर चोट पहुँचाने का इरादा या ज्ञान न रखता हो, अपराध नहीं है।
❖ कोई कार्य अपराध नहीं होगा, यदि —
(a) उसका उद्देश्य मृत्यु या गम्भीर चोट पहुँचाना नहीं है, और
(b) करने वाले को यह ज्ञात नहीं है कि वह कार्य मृत्यु या गम्भीर चोट पहुँचा सकता है,
और
(c) हानि उस व्यक्ति को हुई हो जिसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक हो, और जिसने उस हानि को सहने के लिए स्पष्ट या अनुमानित सहमति (express or implied consent) दी हो,
या
(d) जिसने उस हानि का जोखिम उठाने की सहमति दी हो।
उदाहरण:
A और Z आपस में खेल-खेल में तलवारबाज़ी करने पर सहमत होते हैं। यह सहमति यह दर्शाती है कि दोनों बिना बेईमानी के होने वाली हानि को स्वीकार करते हैं। यदि A खेल में नियम अनुसार Z को चोट पहुँचा देता है, तो यह अपराध नहीं होगा।
मुख्य बिंदु:
▪ मृत्यु या गम्भीर चोट का इरादा या ज्ञान न हो।
▪ पीड़ित की उम्र 18 वर्ष से अधिक हो।
▪ उसने स्पष्ट या अनुमानित सहमति दी हो।
▪ जोखिम की सहमति होने पर भी अपराध नहीं बनता।
धारा 26 — भलाई के लिए सद्भावपूर्वक और सहमति से किया गया ऐसा कार्य, जिसका उद्देश्य मृत्यु नहीं है, अपराध नहीं है।
❖ कोई कार्य अपराध नहीं होगा, यदि —
(a) उसका उद्देश्य मृत्यु नहीं है,
(b) वह कार्य किसी व्यक्ति के हित (benefit) के लिए सद्भावपूर्वक (in good faith) किया गया हो,
(c) जिससे हानि हो सकती है या होने की संभावना हो सकती है,
(d) लेकिन वह व्यक्ति जिसकी स्पष्ट या अनुमानित सहमति (express or implied consent) हो —
▪ उस हानि को सहने की सहमति दे,
▪ या उस हानि का जोखिम उठाने की सहमति दे।
उदाहरण:
A एक सर्जन है। वह जानता है कि एक ऑपरेशन से Z की मृत्यु हो सकती है, लेकिन वह Z की भलाई के लिए और Z की सहमति से ऑपरेशन करता है। A ने कोई अपराध नहीं किया।
मुख्य बिंदु:
▪ कार्य का उद्देश्य मृत्यु नहीं होना चाहिए।
▪ भलाई के लिए सद्भावपूर्वक किया गया हो।
▪ सहमति (स्पष्ट या अनुमानित) होनी चाहिए।
▪ जोखिम या हानि सहने की सहमति हो।
धारा 27 — बच्चे या विक्षिप्त व्यक्ति के हित में, सद्भावपूर्वक और अभिभावक की सहमति से किया गया कार्य अपराध नहीं है।
❖ कोई कार्य अपराध नहीं होगा, यदि —
(a) वह 12 वर्ष से कम आयु के बच्चे या विक्षिप्त व्यक्ति के हित में सद्भावपूर्वक किया गया हो,
(b) वह कार्य उस व्यक्ति के अभिभावक या विधिक रूप से उत्तरदायी व्यक्ति द्वारा या उसकी स्पष्ट या अनुमानित सहमति से किया गया हो,
(c) भले ही उससे हानि हो, या करने वाले को हानि की संभावना ज्ञात हो।
बशर्ते यह अपवाद निम्न मामलों पर लागू नहीं होगा:
(a) जानबूझकर मृत्यु करना या मृत्यु करने का प्रयास करना,
(b) ऐसा कार्य करना जो मृत्यु की संभावना वाला हो, यदि उसका उद्देश्य मृत्यु या गम्भीर चोट को रोकना, या किसी गंभीर बीमारी/कमज़ोरी का इलाज न हो,
(c) स्वेच्छा से गम्भीर चोट पहुँचाना या उसका प्रयास करना, जब तक उद्देश्य मृत्यु या गम्भीर चोट रोकना या गंभीर बीमारी का इलाज न हो,
(d) ऐसे अपराध की सहायता करना, जिस पर यह अपवाद लागू नहीं होता।
उदाहरण:
A अपने बच्चे के हित में, उसकी सहमति के बिना, पत्थरी की सर्जरी करवाता है। A को यह ज्ञात है कि ऑपरेशन से मृत्यु हो सकती है, लेकिन उसका उद्देश्य मृत्यु नहीं बल्कि इलाज है। यह अपवाद के अंतर्गत आएगा।
मुख्य बिंदु:
▪ कार्य बच्चे (12 वर्ष से कम) या विक्षिप्त व्यक्ति के हित में हो।
▪ सद्भावपूर्वक हो।
▪ अभिभावक की स्पष्ट या अनुमानित सहमति हो।
▪ कुछ मामलों (जैसे जानबूझकर मृत्यु, गम्भीर चोट आदि) में अपवाद लागू नहीं होगा।
धारा 28 — डर, भ्रांति या अयोग्यता से दी गई सहमति वैध नहीं मानी जाएगी।
❖ किसी भी धारा के तहत वैध सहमति नहीं मानी जाएगी, यदि —
(a) सहमति डर (injury के डर) या तथ्य की गलतफहमी (misconception) के कारण दी गई हो, और कार्य करने वाले को पता हो या विश्वास करने का कारण हो कि सहमति डर या भ्रांति के कारण दी गई है।
(b) सहमति किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा दी गई हो जो विक्षिप्त (unsound mind) या नशे में हो और सहमति के प्रभाव को समझने में असमर्थ हो।
(c) (जब तक संदर्भ में कुछ और न हो) सहमति किसी 12 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति द्वारा दी गई हो।
मुख्य बिंदु:
▪ डर या भ्रांति से दी गई सहमति अमान्य।
▪ विक्षिप्तता या नशे में दी गई सहमति अमान्य।
▪ 12 वर्ष से कम की सहमति अमान्य (जब तक संदर्भ कुछ और न कहे)।
धारा 29 — ऐसे कार्य जिन पर हानि से स्वतंत्र रूप से अपराध लगता है, उन पर धारा 25, 26 और 27 के अपवाद लागू नहीं होते।
❖ धारा 25, 26 और 27 के अपवाद उन कार्यों पर लागू नहीं होंगे जो अपने आप में अपराध हैं, चाहे उनसे हानि हो या न हो, या उनका उद्देश्य हानि हो या हो सकती हो, चाहे सहमति देने वाले व्यक्ति को हो या जिसकी ओर से सहमति दी गई हो।
उदाहरण:
गर्भपात कराना (जब तक महिला की जान बचाने के लिए सद्भाव से न किया गया हो) अपने आप में अपराध है। इस कारण गर्भपात से हुई हानि के कारण यह अपराध नहीं माना जाता; और महिला या उसके अभिभावक की सहमति गर्भपात को सही नहीं ठहराती।
मुख्य बिंदु:
▪ कुछ कार्य अपने आप में अपराध हैं।
▪ धारा 25, 26, 27 के अपवाद उन पर लागू नहीं।
▪ सहमति ऐसे अपराधों को वैध नहीं बनाती।
धारा 30 — सहमति के बिना भी सद्भावपूर्वक किसी व्यक्ति के हित में किया गया कार्य अपराध नहीं है, जब सहमति देना संभव न हो।
❖ कोई कार्य अपराध नहीं होगा यदि —
(a) वह किसी व्यक्ति के हित में सद्भावपूर्वक किया गया हो,
(b) उस व्यक्ति से सहमति लेना असंभव हो या वह सहमति देने में असमर्थ हो,
(c) उस व्यक्ति का कोई अभिभावक या उत्तरदायी न हो जिससे समय पर सहमति ली जा सके।
बशर्ते यह अपवाद निम्न मामलों पर लागू नहीं होगा:
(a) जानबूझकर मृत्यु करना या मृत्यु का प्रयास करना।
(b) ऐसा कार्य करना जो मृत्यु की संभावना रखता हो और उद्देश्य मृत्यु या गम्भीर चोट रोकना या इलाज न हो।
(c) जानबूझकर चोट पहुँचाना या चोट पहुँचाने का प्रयास, जब तक उद्देश्य मृत्यु या चोट रोकना न हो।
(d) ऐसे अपराध की सहायता करना जिस पर यह अपवाद लागू न हो।
उदाहरण:
- Z बेहोश हो गया, डॉक्टर A ने उसकी भलाई के लिए ऑपरेशन किया। A ने कोई अपराध नहीं किया।
- Z को बाघ ने पकड़ा, A ने गोली चलाई जिससे Z घायल हुआ पर A का उद्देश्य मृत्यु नहीं था। A ने कोई अपराध नहीं किया।
- बच्चे को तुरंत ऑपरेशन की जरूरत थी, अभिभावक नहीं मिला, डॉक्टर ने भलाई के लिए ऑपरेशन किया। कोई अपराध नहीं।
- आग लगने पर A ने बच्चे Z को ऊपर से नीचे गिराया, भले ही चोट लगी या मृत्यु हुई, पर भलाई के लिए किया गया था। कोई अपराध नहीं।
स्पष्टीकरण: सिर्फ़ पैसों का लाभ “हित” नहीं माना जाएगा।
मुख्य बिंदु:
▪ सहमति न होने पर भी भलाई के लिए सद्भावपूर्वक किया गया कार्य अपराध नहीं।
▪ सहमति लेना असंभव या असमर्थ व्यक्ति हो।
▪ जानबूझकर मृत्यु या चोट के प्रयास पर अपवाद नहीं।
▪ पैसों का लाभ “हित” नहीं।
धारा 31 — सद्भावपूर्वक की गई सूचना अपराध नहीं होती।
❖ कोई भी सूचना, यदि वह उस व्यक्ति के हित में और सद्भावपूर्वक दी जाए, तो उससे हुई हानि के कारण वह अपराध नहीं होगी।
उदाहरण: A, एक सर्जन, सद्भावपूर्वक रोगी को बताता है कि उसकी मृत्यु होने वाली है। रोगी इस सूचना के शॉक से मर जाता है। A ने कोई अपराध नहीं किया, भले ही उसे पता था कि सूचना से रोगी की मौत हो सकती है।
मुख्य बिंदु:
▪ सूचना सद्भावपूर्वक दी गई हो।
▪ सूचना का उद्देश्य व्यक्ति का हित हो।
▪ हानि होने पर भी अपराध नहीं।
धारा 32 – धमकी से मजबूर होकर किया गया कार्य (सिवाय हत्या और राज्य-विरोधी अपराध के) अपराध नहीं है।
❖ जब कोई व्यक्ति धमकी से ऐसा कार्य करता है कि उसे तुरंत मौत का डर हो, तो वह अपराधी नहीं माना जाएगा, सिवाय हत्या और राज्य-विरोधी मृत्यु-दंड योग्य अपराध के।
बशर्ते वह व्यक्ति खुद से या मामूली खतरे की वजह से ऐसी स्थिति में न पहुंचा हो जहाँ वह मजबूर हुआ।
स्पष्टीकरण 1:
जो व्यक्ति खुद से या पिटाई की धमकी पर डकैत गिरोह में शामिल हो जाए और उनके चरित्र को जाने, उसे इस अपवाद का लाभ नहीं मिलेगा।
स्पष्टीकरण 2:
जो व्यक्ति डकैत गिरोह द्वारा पकड़ लिया गया हो और तुरंत मौत की धमकी पर अपराध करे (जैसे लोहार द्वारा घर का ताला तोड़ना), उसे यह अपवाद मिलेगा।
मुख्य बिंदु:
▪ धमकी से मजबूर होकर किया गया कार्य अपराध नहीं।
▪ हत्या और राज्य-विरोधी अपराध पर अपवाद।
▪ खुद से खतरे में नहीं पड़ना चाहिए।
▪ गिरोह के दबाव में काम करने वाले को अपवाद मिलेगा।
धारा 33 – हल्की चोट पहुँचाने वाला कार्य अपराध नहीं।
❖ यदि कोई कार्य किसी को इतनी हल्की चोट पहुँचाता है या पहुँचाने का इरादा रखता है, या यह ज्ञात हो कि हल्की चोट हो सकती है, पर वह चोट इतनी मामूली हो कि सामान्य समझ और संयम वाला व्यक्ति भी शिकायत न करे, तो वह कार्य अपराध नहीं होगा।
मुख्य बिंदु:
▪ चोट बहुत हल्की हो।
▪ सामान्य समझ वाला व्यक्ति शिकायत न करे।
▪ ऐसी चोट के कारण कोई अपराध नहीं।
Right of Private Defense
धारा 34 — आत्मरक्षा में किया गया कार्य अपराध नहीं।
❖ जो कार्य स्वयं की या दूसरों की रक्षा (आत्मरक्षा) के अधिकार का प्रयोग करते हुए किया गया हो, वह अपराध नहीं माना जाएगा।
मुख्य बिंदु:
▪ आत्मरक्षा में किया गया कार्य।
▪ कोई अपराध नहीं होगा।
धारा 35 — शरीर और संपत्ति की आत्मरक्षा का अधिकार।
❖ हर व्यक्ति को, धारा 37 में दिए गए प्रतिबंधों के अधीन, निम्नलिखित की रक्षा करने का अधिकार है—
(a) अपने शरीर या किसी अन्य व्यक्ति के शरीर की, ऐसे किसी अपराध के विरुद्ध जो मानव शरीर को प्रभावित करता हो।
(b) अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की चल या अचल संपत्ति की, ऐसे कार्यों के विरुद्ध जो चोरी, डकैती, नुक़सान या आपराधिक अतिक्रमण हों या उनका प्रयास हों।
मुख्य बिंदु:
▪ आत्मरक्षा का अधिकार — शरीर और संपत्ति दोनों के लिए।
▪ स्वयं और दूसरों की रक्षा की अनुमति।
▪ चोरी, डकैती, क्षति, अतिक्रमण या उनके प्रयास के विरुद्ध भी रक्षा का अधिकार।
▪ यह अधिकार धारा 37 के प्रतिबंधों के अधीन है।
धारा 36 — विक्षिप्त व्यक्ति आदि के कार्य के विरुद्ध आत्मरक्षा का अधिकार।
❖ यदि कोई कार्य, जो सामान्यतः अपराध होता, लेकिन करने वाले व्यक्ति की अवयस्कता, अपरिपक्व समझ, पागलपन, नशा या भ्रम के कारण अपराध नहीं माना गया—
❖ तब भी, प्रत्येक व्यक्ति को वैसा ही आत्मरक्षा का अधिकार होगा, जैसा होता अगर वह कार्य वास्तव में अपराध होता।
उदाहरण:
(a) Z, जो पागल है, A को मारने का प्रयास करता है — Z अपराधी नहीं, पर A को आत्मरक्षा का पूरा अधिकार है।
(b) A रात में अपने ही घर में प्रवेश करता है, Z उसे चोर समझकर हमला करता है — Z अपराधी नहीं, पर A को आत्मरक्षा का वैसा ही अधिकार है।
मुख्य बिंदु:
▪ विक्षिप्त, बच्चे, नशे में या भ्रम में व्यक्ति के कार्य के खिलाफ भी आत्मरक्षा का अधिकार।
▪ भले ही सामने वाला व्यक्ति कानूनन दोषी न हो, पर आत्मरक्षा का अधिकार बना रहता है।
धारा 37 — जिन कार्यों के विरुद्ध आत्मरक्षा का अधिकार नहीं है।
(1) निम्न मामलों में आत्मरक्षा का अधिकार नहीं होता—
(a) जब कोई सार्वजनिक सेवक अपने पद के अंतर्गत सद्भावना (good faith) में कोई ऐसा कार्य करे या उसका प्रयास करे जिससे मृत्यु या गंभीर चोट का कोई यथोचित डर न हो, भले ही वह कार्य पूरी तरह वैध न हो।
(b) जब ऐसा कार्य किसी सार्वजनिक सेवक के निर्देश पर किया गया हो और उससे मृत्यु या गंभीर चोट का डर न हो।
(c) जब व्यक्ति के पास सरकारी सहायता लेने का समय हो।
(2) आत्मरक्षा का अधिकार कभी भी आवश्यक से अधिक नुकसान पहुँचाने तक नहीं बढ़ता।
व्याख्या 1:
अगर किसी को यह पता न हो या यह मानने का कारण न हो कि कार्य करने वाला व्यक्ति सार्वजनिक सेवक है, तो उसका आत्मरक्षा का अधिकार समाप्त नहीं होता।
व्याख्या 2:
यदि कार्य किसी सार्वजनिक सेवक के निर्देश पर किया गया है, तो तब तक आत्मरक्षा का अधिकार समाप्त नहीं होगा जब तक—
▪ यह ज्ञात न हो कि वह व्यक्ति सार्वजनिक सेवक के निर्देश से कार्य कर रहा है;
▪ या वह व्यक्ति अधिकार का संदर्भ न दे,
▪ या यदि उसके पास लिखित प्राधिकरण है तो मांगने पर प्रस्तुत न करे।
मुख्य बिंदु:
▪ सार्वजनिक सेवक के कार्य पर आत्मरक्षा का अधिकार सीमित।
▪ यदि मृत्यु या गंभीर चोट का खतरा न हो तो आत्मरक्षा नहीं।
▪ अगर सरकारी सहायता लेना संभव हो तो आत्मरक्षा नहीं।
▪ आत्मरक्षा में आवश्यकता से अधिक क्षति नहीं पहुँचाई जा सकती।
धारा 38 – जब शरीर की निजी रक्षा का अधिकार मृत्यु कारित करने तक बढ़ता है
(Section 38 – When right of private defence of body extends to causing death)
यदि कोई व्यक्ति शरीर की निजी रक्षा करते समय, धारा 37 की सीमाओं के अंतर्गत, निम्नलिखित अपराधों में से किसी से अपनी रक्षा करता है, तो वह हमलावर को जानबूझकर मृत्यु या अन्य क्षति पहुँचा सकता है —
यह अधिकार तब होता है जब हमला इस प्रकार का हो:
(a) जिससे यह डर होना उचित हो कि मृत्यु हो सकती है।
(b) जिससे यह डर होना उचित हो कि गंभीर चोट हो सकती है।
(c) बलात्कार करने की मंशा से किया गया हमला।
(d) अप्राकृतिक कामुक इच्छा पूरी करने की मंशा से किया गया हमला।
(e) अपहरण या अगवा करने की मंशा से किया गया हमला।
(f) गलत तरीके से बंदी बनाने की मंशा से हमला, जिससे यह डर हो कि वह व्यक्ति सार्वजनिक अधिकारियों से सहायता नहीं ले पाएगा।
(g) तेज़ाब फेंकने या पिलाने का कृत्य या उसका प्रयास, जिससे यह डर होना उचित हो कि गंभीर चोट हो सकती है।
मुख्य बिंदु याद रखने हेतु:
➡ शरीर की रक्षा में मृत्यु तक पहुँचाने वाला कृत्य तभी वैध है जब हमला ऊपर दिए गए किसी कारण से हो।
➡ धारा 37 की सीमाएँ लागू रहती हैं।
Section 39. शरीर की निजी रक्षा का अधिकार – मौत के अलावा चोट पहुँचाने तक सीमित
अगर अपराध सेक्शन 38 में बताए गए प्रकार का नहीं है, तो शरीर की निजी रक्षा का अधिकार हमलावर की जान लेने तक नहीं जाता। परंतु, सेक्शन 37 में बताए गए नियमों के अनुसार, हमलावर को मौत के अलावा कोई और चोट पहुँचाना निजी रक्षा का अधिकार होगा।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- अगर अपराध सेक्शन 38 के अंतर्गत नहीं है, तो मौत तक की निजी रक्षा नहीं।
- मौत के अलावा कोई भी चोट पहुँचाना निजी रक्षा में शामिल।
- सेक्शन 37 के नियम लागू होंगे।
Section 40. शरीर के निजी सुरक्षा का अधिकार कब शुरू होता है और चलता रहता है।
जब शरीर को खतरा महसूस होने लगे, चाहे अपराध हुआ हो या न हुआ हो, तब निजी सुरक्षा का अधिकार शुरू हो जाता है। यह अधिकार तब तक चलता रहता है जब तक खतरे का एहसास बना रहता है।
Section 41. जब संपत्ति की निजी रक्षा का अधिकार मृत्यु तक पहुँचाने तक बढ़ता है।
संपत्ति की निजी रक्षा का अधिकार, धारा 37 के प्रतिबंधों के तहत, अपराधी को जानबूझकर मौत या कोई अन्य नुकसान पहुँचाने तक बढ़ जाता है, यदि वह अपराध निम्नलिखित में से कोई हो:—
(a) डकैती;
(b) सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले घर में घुसना;
(c) आग या विस्फोटक से किसी मकान, तम्बू या जहाज को नुकसान पहुँचना, जो मानव निवास या संपत्ति के रखरखाव के लिए इस्तेमाल हो;
(d) चोरी, नुकसान या घर में घुसपैठ ऐसी परिस्थिति में जिससे यह उचित रूप से डर हो कि अगर निजी रक्षा न की जाए तो मौत या गंभीर चोट हो सकती है।
Section 42. जब ऐसी रक्षा का अधिकार मृत्यु के अलावा किसी अन्य नुकसान पहुँचाने तक हो।
अगर अपराध चोरी, तोड़फोड़ या अपराधी घुसपैठ हो, और वह अपराध सेक्शन 41 में दिए गए खास मामलों में से न हो, तो निजी रक्षा का अधिकार दोषी को जानबूझकर मौत पहुँचाने तक नहीं बढ़ता, लेकिन सेक्शन 37 में बताए गए नियमों के तहत, दोषी को मृत्यु के अलावा कोई अन्य नुकसान पहुँचाने तक बढ़ता है।
Section 43. संपत्ति की निजी रक्षा का आरंभ और जारी रहना
(a) संपत्ति को खतरे का उचित डर शुरू होते ही निजी रक्षा का अधिकार शुरू होता है।
(b) चोरी के खिलाफ तब तक जारी रहता है जब तक अपराधी संपत्ति लेकर भाग न जाए या पुलिस की मदद मिल जाए या संपत्ति वापस मिल जाए।
(c) डकैती के खिलाफ तब तक जारी रहता है जब तक अपराधी किसी को मौत, चोट या गैरकानूनी रोक-टोक पहुंचाने की कोशिश करता रहे या तुरंत मौत, चोट या रोक-टोक का डर बना रहे।
(d) गैरकानूनी घुसपैठ या नुकसान के खिलाफ तब तक जारी रहता है जब तक अपराधी ऐसा करता रहे।
(e) सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले घर में घुसने के खिलाफ तब तक जारी रहता है जब तक घर में घुसपैठ जारी रहे।
Section 44. निर्दोष व्यक्ति को नुकसान के खतरे पर जानलेवा हमला के खिलाफ निजी रक्षा का अधिकार
जब निजी रक्षा करते समय ऐसा हमला हो जो मौत का डर पैदा करे, और रक्षक ऐसा रक्षा करे कि निर्दोष व्यक्ति को नुकसान का खतरा हो, तब भी रक्षक का निजी रक्षा का अधिकार उस खतरे को उठाने तक बढ़ जाता है।
उदाहरण:
अगर किसी भीड़ ने A पर जानलेवा हमला किया और A को खुद की रक्षा के लिए गोली चलानी पड़े, जिससे भीड़ में मौजूद बच्चे भी घायल हो जाएं, तो A पर कोई अपराध नहीं होगा।
Chapter – IV: Of Abetment, Criminal Conspiracy and Attempt of abetment
Section 45: किसी काम को उकसाना (Abetment of a thing)
कोई व्यक्ति किसी काम को उकसाता है, जब—
(a) वह किसी व्यक्ति को वह काम करने के लिए उकसाए; या
(b) वह किसी साजिश में दूसरों के साथ मिलकर उस काम को करने की योजना बनाए, और उस योजना के अनुसार कोई अवैध काम या चूक हो; या
(c) जान-बूझकर किसी काम को करने में मदद करे, चाहे वह कोई काम करे या अवैध चूक करे।
Explanation 1:
अगर कोई व्यक्ति जान-बूझकर कोई गलत बात बताकर या जरूरी बात छुपाकर किसी काम को करवाता है, तो वह उकसाने वाला माना जाता है।
Illustration:
A, जो एक सरकारी अधिकारी है, को कोर्ट का आदेश लेकर Z को पकड़ना है। B जानता है कि C, Z नहीं है, फिर भी B जान-बूझकर A को बताता है कि C ही Z है, जिससे A C को पकड़ लेता है। यहां B ने C को पकड़ने के लिए उकसाया।
Explanation 2:
जो कोई भी किसी काम को करने में पहले से या करते समय कोई मदद करता है, जिससे वह काम आसानी से हो जाए, उसे भी उकसाने वाला माना जाता है।
Section 46 – Abettor (उकसाने वाला व्यक्ति)
सरल हिंदी में संक्षेप (महत्वपूर्ण बिंदु सहित):
👉 कोई व्यक्ति अपराध का उकसाव (abetment) करता है यदि वह—
(a) किसी को अपराध करने के लिए उकसाता है; या
(b) किसी साज़िश में शामिल होता है और उस साज़िश के चलते कोई कार्य या गैरकानूनी चूक होती है; या
(c) किसी कार्य को करने में जानबूझकर मदद करता है, चाहे वह कार्य या चूक हो।
Explanation 1: अगर कोई ऐसा कार्य करने को उकसाता है जिसे वह खुद करने का कानूनी दायित्व नहीं रखता, फिर भी वह उकसाने का अपराधी है।
Explanation 2: उकसाए गए कार्य का होना जरूरी नहीं है, केवल उकसाना ही अपराध है।
Illustration (उदाहरण):
- A ने B को C की हत्या के लिए उकसाया, लेकिन B ने मना कर दिया — A फिर भी अपराधी है।
- A ने B को D की हत्या के लिए उकसाया, B ने चाकू मारा, D बच गया — A अपराधी है।
Explanation 3: उकसाए गए व्यक्ति का कानूनी रूप से सक्षम होना ज़रूरी नहीं, न ही उसका अपराध करने का इरादा जरूरी है।
उदाहरण:
- A, एक बच्चे को हत्या के लिए उकसाता है — बच्चा भले अपराध का पात्र न हो, A फिर भी अपराधी है।
- A, पागल B को घर जलाने के लिए उकसाता है — B अपराधी नहीं, पर A दोषी है।
- A, B को चोरी करने को कहता है और झूठ बोलता है कि सामान उसका है — B दोषी नहीं, पर A अपराधी है।
Explanation 4:
👉 अपराध का उकसाव खुद एक अपराध है, इसलिए उकसाव का भी उकसाव अपराध है।
उदाहरण: A ने B को कहा कि वह C को Z की हत्या के लिए उकसाए — Z मारा गया — A और B दोनों दोषी हैं।
Explanation 5:
👉 साज़िश के लिए जरूरी नहीं कि उकसाने वाला और अपराध करने वाला व्यक्ति एक-दूसरे को जानते हों।
उदाहरण: A और B ने ज़हर देने की योजना बनाई, B ने C को ज़हर लाने को कहा, A ने ज़हर देकर Z की हत्या की — C भी अपराधी है।
🔴 याद रखने योग्य मुख्य बातें:
- केवल उकसाना ही अपराध है, चाहे अपराध हुआ हो या नहीं।
- पागल या बच्चा भी अगर उकसावे से अपराध करता है, तब भी उकसाने वाला दोषी होता है।
- अपराध के लिए साज़िश में शामिल होना, भले नाम न लिया गया हो, भी अपराध है।
धारा 47 – भारत में विदेश में होने वाले अपराध का अभिप्रेरण (Abetment in India of offences outside India)
जो व्यक्ति भारत में रहते हुए भारत के बाहर ऐसा कोई कार्य करने के लिए अभिप्रेरित (instigate) करता है, जो यदि भारत में किया जाता तो अपराध होता, वह इस संहिता के अंतर्गत अपराध का अभिप्रेरक माना जाएगा।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- भारत में बैठकर कोई व्यक्ति अगर विदेश में अपराध करवाता है → अभिप्रेरण माना जाएगा।
उदाहरण:
A भारत में है और B को, जो देश X में है, हत्या करने के लिए उकसाता है → A हत्या के अभिप्रेरण का दोषी है।
धारा 48 – भारत में अपराध के लिए भारत के बाहर किया गया उकसावा (Abetment outside India for offence in India)
जो व्यक्ति भारत के बाहर किसी को भारत में अपराध करने के लिए उकसाता है, वह इस संहिता के अनुसार अपराध का अभिप्रेरक (अभिकर्ता/उकसाने वाला) माना जाएगा।
🔹 मुख्य बिंदु:
- भारत के बाहर उकसाना
- भारत में अपराध होना
- ऐसा व्यक्ति भारत में अपराध के लिए जिम्मेदार माना जाएगा।
उदाहरण:
A, देश X में रहकर, B को भारत में हत्या करने के लिए उकसाता है। A हत्या के उकसावे का दोषी है।
धारा 49 – उकसावे की सजा यदि उकसाया गया कार्य उसके परिणामस्वरूप किया गया हो और उसकी सजा का कोई विशेष प्रावधान न हो
👉 यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध का उकसावा (abetment) करता है,
और वह अपराध उकसावे के कारण किया जाता है,
और इस संहिता में उस उकसावे की सजा का कोई विशेष प्रावधान नहीं है,
तो ऐसे व्यक्ति को उसी सजा से दंडित किया जाएगा जो उस अपराध के लिए निर्धारित है।
व्याख्या:
यदि कोई कार्य उकसावे के कारण,
जैसे कि –
- प्रेरणा (instigation) से,
- षड्यंत्र (conspiracy) में भाग लेने से, या
- सहायता (aid) से किया गया हो, तो उसे उकसावे का परिणाम माना जाएगा।
🔹 उदाहरण (a):
A, B को झूठी गवाही देने के लिए उकसाता है। B झूठी गवाही देता है।
➡ A ने B का अपराध उकसाया और उसी सजा का पात्र है।
🔹 उदाहरण (b):
A और B मिलकर Z को जहर देने की साजिश रचते हैं।
A ज़हर लाकर B को देता है,
B ज़हर दे देता है और Z की मृत्यु हो जाती है।
➡ B हत्या का दोषी है।
➡ A षड्यंत्र द्वारा उकसावे का दोषी है और हत्या की सजा का पात्र है।
📌 मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:-
- उकसावा + अपराध का परिणाम = वही सजा
- कोई अलग सजा न हो तो, अपराध की सजा ही लागू होगी
- प्रेरणा, साजिश, या सहायता के कारण यदि अपराध हुआ तो यह “उकसावे का परिणाम” माना जाएगा।
धारा 50 – यदि उकसाए गए व्यक्ति ने उकसाने वाले से भिन्न इरादे से कार्य किया हो तब उकसाने की सजा
जो कोई किसी अपराध के करने के लिए उकसाता है, और यदि उकसाया गया व्यक्ति वह कार्य ऐसे इरादे या ज्ञान के साथ करता है जो उकसाने वाले से भिन्न है, तो उकसाने वाले को उस अपराध की वही सजा दी जाएगी, जो उसे तब दी जाती जब वह कार्य उसी इरादे या ज्ञान से किया गया होता जो उकसाने वाले का था, और किसी अन्य प्रकार से नहीं।
धारा 51 – जब एक कार्य के लिए उकसाया गया और कोई भिन्न कार्य किया गया तब उकसाने वाले की ज़िम्मेदारी
(Section 51 – Liability of abettor when one act abetted and different act done)
सरल हिंदी में संक्षेप:
अगर कोई व्यक्ति किसी एक कार्य के लिए उकसाता है लेकिन कोई दूसरा कार्य हो जाता है, तो उकसाने वाला उसी तरह और उसी सीमा तक ज़िम्मेदार होगा जैसे उसने वही कार्य सीधे उकसाया हो
बशर्ते –
- किया गया कार्य उस उकसावे का संभावित परिणाम (probable consequence) हो, और
- वह कार्य उकसावे के प्रभाव में, या
- सहायता से, या
- षड्यंत्र (conspiracy) के तहत किया गया हो।
मुख्य बिंदु:
- भिन्न कार्य के लिए भी उकसाने वाला ज़िम्मेदार हो सकता है।
- बशर्ते वह कार्य उकसावे का संभावित परिणाम हो।
उदाहरण:
(a) A ने एक बच्चे को Z के खाने में ज़हर मिलाने के लिए उकसाया और ज़हर दिया। बच्चा गलती से Y के खाने में ज़हर मिला देता है।
➡ यदि यह गलती A की उकसावे के प्रभाव में हुई और यह कार्य उकसावे का संभावित परिणाम था, तो A उतना ही ज़िम्मेदार होगा जैसे उसने Y के खाने में ज़हर मिलाने के लिए कहा हो।
(b) A ने B को Z का घर जलाने के लिए उकसाया। B ने घर जलाया और साथ ही चोरी भी की।
➡ A आग लगाने का दोषी है, लेकिन चोरी का नहीं, क्योंकि चोरी अलग कार्य है और आग लगाने का संभावित परिणाम नहीं था।
(c) A ने B और C को आधी रात में हथियारों से लैस कर एक घर में डकैती के लिए उकसाया। घर में घुसने पर Z ने विरोध किया, तो उन्होंने Z की हत्या कर दी।
➡ यदि हत्या उकसावे का संभावित परिणाम थी, तो A हत्या के लिए भी उतना ही ज़िम्मेदार होगा जितना कि B और C।
याद रखने का सूत्र:
“भले कार्य अलग हो, अगर वह उकसावे का संभावित नतीजा है, तो उकसाने वाला भी उतना ही दोषी।”
धारा 52 – जब उकसाने वाला दोनों अपराधों के लिए दंडनीय होता है – उकसाया गया कार्य और किया गया अतिरिक्त कार्य
(Section 52 – Abettor when liable to cumulative punishment for act abetted and for act done)
सरल हिंदी में संक्षेप:
अगर धारा 51 के अनुसार कोई अतिरिक्त कार्य उस उकसाए गए कार्य के साथ किया जाता है
और वह अलग अपराध बनाता है, तो उकसाने वाला दोनों अपराधों के लिए दंडनीय होगा।
मुख्य बिंदु:
- अगर दोनों कार्य (उकसाया गया + अतिरिक्त कार्य) अलग-अलग अपराध बनाते हैं,
➤ तो उकसाने वाला दोनों के लिए सज़ा का पात्र होगा।
उदाहरण:
A ने B को सरकारी कर्मचारी द्वारा जब्ती (distress) का बलपूर्वक विरोध करने के लिए उकसाया।
B ने विरोध करते हुए जान-बूझकर कर्मचारी को गंभीर चोट पहुँचा दी।
➡ अब B ने दो अपराध किए –
(1) जब्ती का विरोध करना
(2) गंभीर चोट पहुँचाना
→ इसलिए B दोनों अपराधों के लिए दंडनीय है।
➡ अगर A को पहले से यह आशंका थी कि B विरोध करते समय गंभीर चोट पहुँचा सकता है,
→ तो A भी दोनों अपराधों के लिए दंडनीय होगा।
याद रखने का सूत्र:
“दो अपराध = दो सज़ा, अगर उकसाने वाला जानता था तो वह भी दोनों के लिए दोषी।”
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धारा 53 – जब उकसाने वाले की मंशा से अलग प्रभाव होता है, तब उसकी ज़िम्मेदारी
(Section 53 – Liability of abettor for an effect caused by act abetted different from that intended by abettor)
सरल हिंदी में संक्षेप:
अगर कोई व्यक्ति किसी विशेष परिणाम की मंशा से किसी कार्य के लिए उकसाता है,
लेकिन उस कार्य से कोई अलग परिणाम होता है,
तो उकसाने वाला उस अलग परिणाम के लिए भी उतना ही दोषी होगा
जैसे उसने उसी परिणाम की मंशा से उकसाया हो,
बशर्ते उसे पता हो कि वह कार्य उस परिणाम को संभवत: उत्पन्न कर सकता है।
मुख्य बिंदु:
- परिणाम भले अलग हो, लेकिन अगर वह संभावित था और उकसाने वाले को पता था,
➤ तो वह उसी प्रकार और सीमा में ज़िम्मेदार होगा।
उदाहरण:
A ने B को Z को गंभीर चोट पहुँचाने के लिए उकसाया।
B ने Z को गंभीर चोट पहुँचाई, जिससे Z की मृत्यु हो गई।
➡ अगर A को यह ज्ञात था कि गंभीर चोट से मृत्यु हो सकती है,
→ तो A हत्या की सज़ा का पात्र होगा।
याद रखने का सूत्र:
“अगर परिणाम अलग है, लेकिन संभावित था और पता था — तो उकसाने वाला पूरी तरह दोषी।”
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धारा 54 – जब उकसाने वाला अपराध के समय मौजूद हो
(Section 54 – Abettor present when offence is committed)
सरल हिंदी में संक्षेप:
अगर कोई व्यक्ति ऐसा है जो अनुपस्थित होता तो भी उकसावे के कारण अपराध के लिए दंडनीय होता, और वह व्यक्ति अपराध करते समय उपस्थित हो, तो उसे ऐसा माना जाएगा कि उसने स्वयं वह कार्य या अपराध किया है।
मुख्य बिंदु:
- उपस्थित उकसाने वाला = अपराधी की तरह दोषी
- सिर्फ उकसाने वाला नहीं, बल्कि स्वयं अपराध करने वाला माना जाएगा।
याद रखने का सूत्र:
“अगर उकसाने वाला अपराध के समय मौजूद है – तो वो मानो खुद अपराधी है।”
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धारा 55 – मौत या आजीवन कारावास वाले अपराध के उकसावे पर दंड
(Section 55 – Abetment of offence punishable with death or imprisonment for life)
सरल हिंदी में संक्षेप:
- कोई अगर ऐसे अपराध को उकसाए जो मौत या आजीवन कारावास योग्य हो,
- और वह अपराध हो न पाए,
- और इस संहिता में ऐसे उकसावे के लिए कोई सजा विशेष नहीं हो,
- तो उकसाने वाले को सात साल तक की सजा और जुर्माना दिया जाएगा।
- अगर उस उकसावे की वजह से कोई हानि या चोट होती है,
- तो उकसाने वाला चौदह साल तक की सजा और जुर्माना भुगतने के लिए तैयार रहेगा।
मुख्य बिंदु:
- मौत या आजीवन कारावास वाले अपराध के उकसावे पर कम से कम 7 साल की सजा।
- अगर चोट-हानि हुई तो सजा बढ़कर 14 साल तक हो सकती है।
- जुर्माना भी लगेगा।
उदाहरण:
A ने B को Z की हत्या के लिए उकसाया। हत्या नहीं हुई।
➡ A को सात साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
➡ अगर इस उकसावे की वजह से Z को कोई चोट लगी, तो A को चौदह साल तक की सजा और जुर्माना होगा।
याद रखने का सूत्र:
“मौत या आजीवन कारावास वाले अपराध का उकसावा – सजा 7 से 14 साल तक, साथ में जुर्माना भी।”
धारा 56 – कारावास योग्य अपराध के उकसावे पर दंड
(Section 56 – Abetment of offence punishable with imprisonment)
सरल हिंदी में संक्षेप:
- जो कोई कारावास योग्य अपराध को उकसाए,
- और वह अपराध न हो पाए,
- तथा इस संहिता में ऐसे उकसावे की सजा नहीं बताई हो,
- तो उकसाने वाले को उस अपराध की सबसे लंबी सजा का एक चौथाई तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
- अगर उकसाने वाला या उकसाया गया कोई सरकारी कर्मचारी है, जिसकी ज़िम्मेदारी उस अपराध को रोकना है,
- तो उसे सबसे लंबी सजा का आधा तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
मुख्य बिंदु:
- उकसावे पर सजा:
➤ सामान्य व्यक्ति – सजा का 1/4 तक कैद या जुर्माना या दोनों
➤ सरकारी कर्मचारी (जिन्हें रोकना होता है) – सजा का 1/2 तक कैद या जुर्माना या दोनों
उदाहरण:
(a) A ने B को झूठी गवाही देने के लिए उकसाया। B ने गवाही नहीं दी।
➡ फिर भी A अपराध का दोषी है, सजा हो सकती है।
(b) A पुलिस अधिकारी है, जिसकी ड्यूटी चोरी रोकनी है, लेकिन उसने चोरी के लिए उकसाया। चोरी नहीं हुई।
➡ A को आधी सबसे लंबी सजा और जुर्माना हो सकता है।
(c) B ने A (पुलिस अधिकारी) को चोरी के लिए उकसाया। चोरी नहीं हुई।
➡ B को भी आधी सबसे लंबी सजा और जुर्माना हो सकता है।
याद रखने का सूत्र:
“उकसावे पर सजा – आम जनता को 1/4 तक, सरकारी कर्मचारी को 1/2 तक कैद या जुर्माना।”
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धारा 57 – सार्वजनिक या दस से अधिक लोगों द्वारा अपराध करवाने के लिए उकसाना
(Section 57 – Abetting commission of offence by public or by more than ten persons)
सरल हिंदी में संक्षेप:
- जो कोई सार्वजनिक रूप से या दस से अधिक लोगों के समूह को अपराध करने के लिए उकसाए,
- उसे सात साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
मुख्य बिंदु:
- 10 से ज्यादा लोगों या जनता को उकसाने पर सजा
- सजा: 7 साल तक की कैद + जुर्माना
उदाहरण:
A ने सार्वजनिक जगह पर पोस्टर लगाकर एक समूह (जिसमें दस से अधिक लोग हैं) को किसी विरोधी समूह पर हमला करने के लिए बुलाया।
➡ A इस धारा के अंतर्गत अपराधी है।
याद रखने का सूत्र:
“जनता या 10+ लोगों को अपराध के लिए उकसाना – 7 साल तक कैद और जुर्माना।”
धारा 58 – मौत या आजीवन कारावास वाले अपराध के डिजाइन को छिपाना
(Section 58 – Concealing design to commit offence punishable with death or imprisonment for life)
सरल हिंदी में संक्षेप:
- जो कोई जान-बूझकर या जानता हुए कि वह मदद करेगा,
- मौत या आजीवन कारावास वाले अपराध के डिजाइन (योजना) को छुपाए या झूठी जानकारी दे,
- तो उस पर सजा लगेगी:
(a) अगर अपराध हो जाए, तो 7 साल तक कैद हो सकती है।
(b) अगर अपराध न हो, तो 3 साल तक कैद और जुर्माना होगा।
मुख्य बिंदु:
- डिजाइन छुपाना या झूठ बोलना – सजा का कारण।
- अपराध होने पर सजा ज्यादा, न होने पर कम।
- जुर्माना भी लग सकता है।
उदाहरण:
A को पता है कि B के यहाँ डकैती होने वाली है, पर A जज को झूठ बोलकर बताता है कि डकैती C में होगी, ताकि डकैती होने में मदद हो। डकैती B में हो जाती है।
➡ A इस धारा के तहत दंडनीय है।
याद रखने का सूत्र:
“मौत/आजीवन अपराध की योजना छिपाई या झूठ बोला – अपराध हो तो 7 साल, नहीं तो 3 साल और जुर्माना।”
धारा 59 – सरकारी कर्मचारी द्वारा रोकने वाले अपराध की योजना छिपाना
(Section 59 – Public servant concealing design to commit offence which it is his duty to prevent)
सरल हिंदी में संक्षेप:
- कोई सरकारी कर्मचारी, जिसका काम है अपराध रोकना,
- अगर जान-बूझकर या जानते हुए रोकने वाले अपराध की योजना छिपाए या झूठ बोले,
- तो उस पर सजा लगेगी:
(a) अगर अपराध हो, तो उस अपराध की सबसे लंबी सजा का आधा तक कैद या जुर्माना या दोनों।
(b) अगर अपराध मौत या आजीवन कारावास योग्य हो, तो 10 साल तक कैद।
(c) अगर अपराध न हो, तो उस अपराध की सबसे लंबी सजा का 1/4 तक कैद या जुर्माना या दोनों।
मुख्य बिंदु:
- सरकारी कर्मचारी का कर्तव्य होता है अपराध रोकना।
- योजना छुपाना या झूठ बोलना – सजा का कारण।
- अपराध होने पर सजा ज्यादा, न होने पर कम।
- जुर्माना भी हो सकता है।
उदाहरण:
A, पुलिस अधिकारी, जिसे चोरी की योजना की सूचना देना जरूरी है,
पर जानबूझकर B की चोरी की योजना की सूचना नहीं देता।
➡ A इस धारा के तहत दंडनीय है।
याद रखने का सूत्र:
“सरकारी कर्मचारी जो रोकने वाला अपराध छिपाए – अपराध पर आधी सजा या 10 साल तक, न हो तो 1/4 सजा और जुर्माना।”
धारा 60 – कारावास से दंडनीय अपराध की योजना छिपाना
(Section 60 – Concealing design to commit offence punishable with imprisonment)
सरल हिंदी में संक्षेप:
- कोई व्यक्ति अगर जानबूझकर या जानते हुए कि वह मदद करेगा,
- ऐसे अपराध की योजना को छुपाता है जो कैद से दंडनीय है,
- या उस योजना के बारे में झूठा बयान देता है,
तो उसे सजा होगी:
(a) अगर अपराध हो जाए —
➡ उस अपराध की अधिकतम सजा का 1/4 (चौथाई) तक कैद।
(b) अगर अपराध न हो —
➡ अधिकतम सजा का 1/8 (आठवां हिस्सा) तक कैद या
➡ उस अपराध के लिए नियत जुर्माना या
➡ दोनों।
मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:
- कैद वाले अपराध की योजना छुपाना = सजा तय।
- अपराध हुआ = 1/4 तक कैद
- अपराध नहीं हुआ = 1/8 तक कैद या जुर्माना या दोनों।Bottom of Form
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Of Criminal Conspiracy
धारा 61 – आपराधिक षड्यंत्र (Criminal Conspiracy)
सरल हिंदी में संक्षेप:
(1) आपराधिक षड्यंत्र क्या है:
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति इस उद्देश्य से सहमत हों कि—
- (a) कोई ग़ैरकानूनी कार्य करें, या
- (b) कोई कानूनी कार्य ग़ैरकानूनी तरीक़े से करें,
तो इसे आपराधिक षड्यंत्र (Criminal Conspiracy) कहा जाता है।
🔹 बशर्ते:
सिर्फ़ अपराध करने की सहमति से ही षड्यंत्र माना जाएगा, जब तक उस सहमति के तहत कोई और कार्य न कर दिया जाए।
🔸 स्पष्टीकरण:
ग़ैरकानूनी कार्य मुख्य उद्देश्य हो या सिर्फ एक हिस्सा—दोनों ही स्थिति में षड्यंत्र कहलाएगा।
(2) षड्यंत्र में शामिल व्यक्ति की सजा:
- (a) अगर षड्यंत्र का उद्देश्य ऐसा अपराध है जो मृत्यु, आजीवन कारावास या 2 वर्ष या उससे अधिक कठोर कारावास से दंडनीय है, और उसके लिए अलग से सजा न दी गई हो,
➤ तो षड्यंत्र करने वाला उसी प्रकार दंडनीय होगा जैसे उसने अपराध में उकसाया हो। - (b) अन्य मामलों में,
➤ अधिकतम 6 माह की कैद, या जुर्माना, या दोनों।
मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:
- दो या अधिक व्यक्तियों की ग़ैरकानूनी उद्देश्य से सहमति = आपराधिक षड्यंत्र
- मृत्यु/आजीवन/2+ साल वाले अपराध के षड्यंत्र की सजा = उकसाने जैसा दंड
- अन्य मामलों में = 6 माह तक की सजा या जुर्माना
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धारा 62 – आजीवन कारावास या अन्य कारावास से दंडनीय अपराध करने का प्रयास (Punishment for attempt)
सरल हिंदी में संक्षेप:
👉 यदि कोई व्यक्ति ऐसा अपराध करने का प्रयास करता है जो कि इस संहिता के अनुसार —
- आजीवन कारावास या
- अन्य कारावास से दंडनीय हो,
और उस प्रयास में कोई कार्य कर देता है,
🔹 और अगर उस प्रयास की सजा के लिए अलग से कोई प्रावधान न हो,
तो उसे उस अपराध के लिए निर्धारित कारावास की—
➤ अर्ध-अवधि (half) तक की सजा,
या
➤ उसी अपराध के अनुसार जुर्माना,
या
➤ दोनों हो सकते हैं।
📌 उदाहरण:
(a) A ने एक बक्सा तोड़कर गहने चुराने का प्रयास किया, पर बक्से में गहने नहीं थे — फिर भी चोरी के प्रयास का दोषी।
(b) A ने Z की जेब में हाथ डाला जेब काटने के लिए, पर जेब खाली थी — फिर भी जेब काटने के प्रयास का दोषी।
🔑 याद रखने योग्य मुख्य बातें:
- आजीवन या अन्य कारावास वाले अपराध का प्रयास = अर्ध-अवधि तक की सजा
- प्रयास में कोई कार्य होना ज़रूरी है
- जुर्माना या दोनों भी संभव
Chapter –V
Offence related to Woman and Child Top of Form
Section 63 – Rape (बलात्कार)
बलात्कार तब माना जाएगा जब कोई पुरुष—
(a) अपने लिंग (penis) को किसी स्त्री की योनि (vagina), मुँह, मूत्रमार्ग (urethra) या गुदा (anus) में किसी भी हद तक प्रवेश करता है, या उसे ऐसा करवाता है अपने साथ या किसी और के साथ।
(b) कोई वस्तु या शरीर का कोई हिस्सा (लिंग को छोड़कर) किसी भी हद तक स्त्री की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में प्रवेश करता है, या उसे ऐसा करवाता है।
(c) स्त्री के शरीर के किसी हिस्से को इस तरह छेड़छाड़ करता है कि उससे योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या शरीर के किसी भाग में प्रवेश हो, या ऐसा करवाता है।
(d) स्त्री की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा पर मुँह लगाता है, या उसे ऐसा करवाता है।
यदि ये कार्य निम्नलिखित में से किसी भी परिस्थिति में किए जाएँ तो बलात्कार कहलाता है—
(i) स्त्री की इच्छा के विरुद्ध।
(ii) स्त्री की बिना सहमति के।
(iii) जब सहमति मृत्यु या चोट का डर दिखाकर ली गई हो।
(iv) जब पुरुष जानता है कि वह उसका पति नहीं है, फिर भी स्त्री इस भ्रम में सहमति देती है कि वह उसका पति है।
(v) जब स्त्री मानसिक विकार, नशे या किसी नशीले/हानिकारक पदार्थ के प्रभाव में हो और उसे अपनी सहमति के परिणाम समझ न आते हों।
(vi) जब स्त्री की उम्र 18 वर्ष से कम हो, चाहे सहमति हो या न हो।
(vii) जब स्त्री सहमति देने की स्थिति में न हो।
Explanation 1: “Vagina” में “labia majora” (बाहरी योनि होंठ) भी शामिल है।
Explanation 2: सहमति का अर्थ है – स्पष्ट, स्वेच्छा से दी गई सहमति, जो शब्दों, इशारों या किसी अन्य प्रकार के संप्रेषण (communication) से दी गई हो।
बशर्ते: केवल यह तथ्य कि स्त्री ने शारीरिक रूप से विरोध नहीं किया, इसका मतलब यह नहीं कि उसने सहमति दी है।
अपवाद 1: कोई भी चिकित्सीय प्रक्रिया बलात्कार नहीं मानी जाएगी।
अपवाद 2: यदि पुरुष अपनी पत्नी (जो 18 वर्ष से कम न हो) से यौन संबंध बनाए, तो वह बलात्कार नहीं है।
📌 मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:
- सहमति और इच्छा के बिना यौन कार्य = बलात्कार।
- 18 वर्ष से कम उम्र में = हमेशा बलात्कार।
- भ्रम, डर या नशे में दी गई सहमति = वैध नहीं।
- पत्नी से संबंध (18 से ऊपर) = बलात्कार नहीं।
- केवल विरोध न करना = सहमति नहीं माना जाएगा।
Section 64 – Punishment for Rape (बलात्कार की सज़ा)
(1) सामान्य बलात्कार की सज़ा:
👉 जिसने बलात्कार किया (जब उप-धारा (2) लागू न हो) —
➡ कम से कम 10 वर्ष का कठोर कारावास, जो आजीवन कारावास तक बढ़ सकता है + जुर्माना।
(2) विशेष परिस्थितियों में बलात्कार पर सख्त सज़ा:
👉 निम्नलिखित मामलों में बलात्कार करने वाले को कम से कम 10 वर्ष का कठोर कारावास, जो जीवन भर (natural life) तक बढ़ सकता है + जुर्माना।
(a) पुलिसकर्मी द्वारा बलात्कार, अगर—
(i) अपने थाने की सीमा में; या
(ii) किसी थाना भवन में; या
(iii) अपनी हिरासत या अधीनस्थ की हिरासत में स्त्री पर।
(b) सरकारी कर्मचारी द्वारा अपनी या अधीनस्थ की हिरासत में स्त्री पर।
(c) सेना के सदस्य द्वारा उस क्षेत्र में जहाँ उसे तैनात किया गया हो।
(d) जेल, बालगृह, या महिलाओं/बच्चों के संस्थान में कर्मचारी/प्रबंधन द्वारा वहाँ की महिला बंदी पर।
(e) अस्पताल के कर्मचारी/प्रबंधन द्वारा वहाँ की महिला पर।
(f) रिश्तेदार, अभिभावक, शिक्षक या स्त्री पर अधिकार/विश्वास रखने वाला व्यक्ति।
(g) साम्प्रदायिक या जातीय दंगों के दौरान।
(h) जब स्त्री गर्भवती हो, यह जानते हुए भी।
(i) जब स्त्री सहमति देने में असमर्थ हो।
(j) जब पुरुष स्त्री पर नियंत्रण या प्रभुत्व की स्थिति में हो।
(k) मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम स्त्री पर।
(l) बलात्कार के दौरान स्त्री को गंभीर चोट, अंग भंग, चेहरा बिगाड़ना या जान को खतरा।
(m) एक ही स्त्री पर बार-बार बलात्कार।
स्पष्टीकरण (Explanation):
(a) “Armed forces” में थल, जल, वायु सेना, अर्धसैनिक बल व केंद्र/राज्य सरकार के अधीन अन्य सहायक बल शामिल हैं।
(b) “Hospital” का मतलब है अस्पताल का परिसर, जिसमें इलाज, देखभाल या पुनर्वास केंद्र भी शामिल हैं।
(c) “Police officer” का वही अर्थ जो Police Act, 1861 में है।
(d) “Women’s or children’s institution” का मतलब है अनाथालय, विधवा आश्रम, उपेक्षित महिलाओं या बच्चों का घर आदि।
📌 मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:
- न्यूनतम सज़ा = 10 साल कठोर कारावास + जुर्माना।
- विशेष मामलों में = जीवन भर जेल तक की सज़ा।
- किसी अधिकारी, रिश्तेदार, दंगे, अस्पताल, मानसिक/शारीरिक अक्षमता आदि की स्थिति में सज़ा और भी सख्त।
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Section 65 – Punishment for Rape in Certain Cases (कुछ विशेष मामलों में बलात्कार की सज़ा)
(1) 16 वर्ष से कम उम्र की स्त्री पर बलात्कार:
👉 सज़ा:
- न्यूनतम 20 वर्ष का कठोर कारावास,
- अधिकतम आजीवन कारावास (पूरा जीवन) तक,
- साथ में जुर्माना।
📌 बशर्ते:
- जुर्माना पीड़िता के इलाज और पुनर्वास के लिए न्यायसंगत और उचित होना चाहिए।
- जुर्माना पीड़िता को ही दिया जाएगा।
(2) 12 वर्ष से कम उम्र की स्त्री पर बलात्कार:
👉 सज़ा:
- न्यूनतम 20 वर्ष का कठोर कारावास,
- अधिकतम आजीवन कारावास (पूरा जीवन) या मृत्युदंड,
- साथ में जुर्माना।
📌 बशर्ते:
- जुर्माना पीड़िता के इलाज और पुनर्वास के लिए न्यायसंगत और उचित होना चाहिए।
- जुर्माना पीड़िता को ही दिया जाएगा।
📌 मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:
- 16 से कम उम्र = कम से कम 20 साल की सज़ा + जुर्माना।
- 12 से कम उम्र = 20 साल से मृत्युदंड तक + जुर्माना।
- जुर्माना पीड़िता को दिया जाएगा और चिकित्सा व पुनर्वास के लिए होना चाहिए।
Section 66 – पीड़ित की मृत्यु या स्थायी अचेत अवस्था की स्थिति में पहुँचाने पर बलात्कार की सज़ा –
👉 जो कोई भी धारा 64(1) या 64(2) के तहत दंडनीय बलात्कार करता है, और उस दौरान ऐसी चोट पहुँचाता है जिससे—
- स्त्री की मृत्यु हो जाए, या
- वह स्थायी अचेत अवस्था (persistent vegetative state) में चली जाए,
तो उसे मिलेगी:
➡ कम से कम 20 साल का कठोर कारावास,
➡ जो आजीवन (पूरा जीवन) कारावास तक बढ़ सकता है,
➡ या मृत्यु दंड (फांसी)।
📌 मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:
- बलात्कार + स्त्री की मृत्यु या स्थायी अचेत अवस्था = 20 साल से फांसी तक की सज़ा।
- आजीवन कारावास का अर्थ = पूरा जीवन जेल में रहना।
Section 67 – अलगाव की स्थिति में पत्नी से बिना सहमति यौन संबंध –
यदि कोई पुरुष अपनी पत्नी से, जो उससे अलग रह रही हो (चाहे कोर्ट के आदेश से या अन्यथा), उसकी सहमति के बिना यौन संबंध बनाता है, तो—
➡ सज़ा:
- न्यूनतम 2 वर्ष,
- अधिकतम 7 वर्ष तक की जेल,
- साथ में जुर्माना।
व्याख्या:
इस धारा में “यौन संबंध” से तात्पर्य धारा 63 के (a) से (d) तक वर्णित कार्यों से है।
📌 मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:
- अलग रह रही पत्नी से बिना सहमति यौन संबंध = अपराध।
- सज़ा = 2 से 7 साल की जेल + जुर्माना।
Section 68 – प्राधिकृत व्यक्ति द्वारा यौन संबंध (Sexual intercourse by a person in authority)
👉 यदि कोई व्यक्ति, जो निम्न में से किसी पद या स्थिति में है—
(a) अधिकार की स्थिति में या विश्वासपूर्ण संबंध में हो,
(b) सरकारी कर्मचारी हो,
(c) जेल, बालगृह या महिलाओं/बच्चों के संस्थान का अधीक्षक या प्रबंधक हो,
(d) अस्पताल का प्रबंधन या स्टाफ सदस्य हो,
और वह अपनी स्थिति का दुरुपयोग कर, अपनी हिरासत या देखरेख में या परिसर में उपस्थित किसी स्त्री को यौन संबंध के लिए प्रेरित या बहकाता है (जबकि यह बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता), तो—
➡ सज़ा:
- कम से कम 5 साल का कठोर कारावास,
- अधिकतम 10 साल तक का कठोर कारावास,
- साथ में जुर्माना।
🔎 व्याख्याएँ (Explanations):
Explanation 1: “यौन संबंध” का अर्थ धारा 63 के (a) से (d) तक के कार्य हैं।
Explanation 2: धारा 63 की व्याख्या 1 इस धारा पर भी लागू होगी।
Explanation 3: “अधीक्षक” का मतलब ऐसा कोई भी व्यक्ति जो जेल, बालगृह, या संस्थान में अधिकार या नियंत्रण रखता हो।
Explanation 4: “अस्पताल” और “महिला या बच्चों का संस्थान” के अर्थ वही हैं जो धारा 64(2) की व्याख्या में दिए गए हैं।
📌 मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:
- अधिकार का दुरुपयोग कर यौन संबंध बनाना (बलात्कार नहीं) = 5 से 10 साल की कठोर कैद + जुर्माना।
- यह अपराध स्थिति, अधिकार या भरोसे के दुरुपयोग पर आधारित है।
Section 69 – कपटपूर्ण तरीकों से यौन संबंध (Sexual intercourse by employing deceitful means) –
👉 यदि कोई पुरुष किसी स्त्री से,
- झूठे वादे,
- झूठे विवाह के वादे (जिसे पूरा करने की मंशा न हो),
- या कपटपूर्ण तरीकों से यौन संबंध बनाता है,
और वह कार्य बलात्कार की श्रेणी में नहीं आता, तो—
➡ सज़ा:
- अधिकतम 10 साल तक की जेल,
- साथ में जुर्माना।
🔎 व्याख्या:
“कपटपूर्ण तरीके” में शामिल हैं:
- झूठे वादे से नौकरी या प्रमोशन का लालच देना,
- पहचान छुपाकर शादी करना।
📌 मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:
- झूठ, धोखा या झूठे शादी के वादे से यौन संबंध = अपराध।
- सज़ा = 10 साल तक की जेल + जुर्माना।
Section 70 – सामूहिक बलात्कार (Gang Rape) –
(1) सामान्य मामले में सामूहिक बलात्कार:
👉 यदि किसी स्त्री के साथ एक या एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा, सामूहिक रूप से या साझा इरादे से बलात्कार किया जाए, तो—
➡ सभी व्यक्ति बलात्कार के दोषी माने जाएंगे और उन्हें मिलेगी:
- कम से कम 20 साल का कठोर कारावास,
- जो आजीवन (पूरे जीवन) कारावास तक बढ़ सकता है,
- साथ में उचित जुर्माना,
जो पीड़िता के इलाज और पुनर्वास के लिए होगा और उसे ही दिया जाएगा।
(2) जब पीड़िता 18 वर्ष से कम उम्र की हो:
👉 यदि 18 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार होता है, तो—
➡ सभी व्यक्ति बलात्कार के दोषी माने जाएंगे और उन्हें मिलेगी:
- आजीवन कारावास (पूरा जीवन जेल में) या
- मृत्युदंड (फांसी),
- साथ में उचित जुर्माना,
जो पीड़िता के इलाज और पुनर्वास के लिए होगा और उसे ही दिया जाएगा।
📌 मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:
- सामूहिक बलात्कार = सभी व्यक्ति दोषी।
- सज़ा:
- सामान्य पीड़िता: 20 साल से लेकर आजीवन कारावास तक + जुर्माना
- 18 से कम उम्र की पीड़िता: आजीवन कारावास या फांसी + जुर्माना
- जुर्माना पीड़िता को देना अनिवार्य है
Section 71 – पुनरावृत्ति करने वाले अपराधियों के लिए सज़ा (Punishment for repeat offenders) –
यदि कोई व्यक्ति पहले धारा 64, 65, 66 या 70 के अंतर्गत अपराध के लिए दोषी ठहराया जा चुका है,
और बाद में फिर से उन्हीं धाराओं में से किसी के तहत अपराध करता है, तो—
➡ सज़ा:
- आजीवन कारावास (अर्थात् जीवन भर के लिए जेल) या
- मृत्युदंड (फांसी)।
📌 मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:
- पहले से दोषी व्यक्ति द्वारा दोबारा वही अपराध करने पर = आजीवन कारावास या फांसी।
Section 72 – पीड़िता की पहचान प्रकट करने पर सज़ा (Disclosure of identity of victim) –
(1) यदि कोई व्यक्ति, जो धारा 64, 65, 66, 67, 68, 69, 70 या 71 के तहत अपराध का शिकार हुई महिला (पीड़िता) की पहचान बताने वाला नाम या कोई जानकारी छापता या प्रकाशित करता है, तो—
➡ सज़ा:
- 2 साल तक की जेल,
- साथ में जुर्माना।
(2) लेकिन यह सज़ा लागू नहीं होगी यदि पहचान छापना या प्रकाशित करना—
(a) पुलिस थाने के अधिकारी या जांच कर रहे पुलिस अधिकारी के लिखित आदेश से,
(b) और वह जांच के उद्देश्य से अच्छा विश्वास (good faith) रखते हुए ऐसा कर रहा हो।
📌 मुख्य बिंदु:
- पीड़िता की पहचान छिपाना जरूरी है।
- बिना अनुमति पहचान बताने पर जेल और जुर्माना।
- पुलिस की जांच के लिए छपने पर सजा नहीं।
Section 73 – बिना अनुमति कोर्ट की कार्यवाही से संबंधित सामग्री छापना या प्रकाशित करना – सरल और याद रखने योग्य हिंदी में:
अगर कोई व्यक्ति, धारा 72 में वर्णित अपराध से जुड़ी कोर्ट की कार्यवाही की कोई जानकारी बिना कोर्ट की पूर्व अनुमति के छापता या प्रकाशित करता है, तो—
➡ सजा:
- 2 साल तक की जेल हो सकती है,
- साथ में जुर्माना भी हो सकता है।
स्पष्टीकरण:
- उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय का फैसला छापना या प्रकाशित करना इस धारा के अंतर्गत अपराध नहीं माना जाएगा।
📌 मुख्य बिंदु:
- कोर्ट की कार्यवाही की जानकारी बिना अनुमति छापना जुर्म है।
- हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के फैसले को प्रकाशित करना अपराध नहीं।
महिला के विरुद्ध आपराधिक बल और हमला
(Criminal Force and Assault against Woman)
Section 74 – महिला की शील भंग करने के इरादे से हमला या आपराधिक बल का प्रयोग –
जो कोई भी किसी महिला पर हमला करता है या आपराधिक बल का उपयोग करता है, और उसका मकसद या संभावना हो कि वह महिला की शील (संवेदनशीलता/सम्मान) को ठेस पहुंचाएगा, तो—
➡ सजा:
- कम से कम 1 साल और अधिकतम 5 साल की जेल,
- साथ में जुर्माना भी हो सकता है।
📌 मुख्य बिंदु:
- महिला की शील भंग करने का इरादा होना जरूरी।
- हमला या बल प्रयोग पर सख्त सजा।
Section 75 – यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) –
(1) कोई पुरुष यदि निम्नलिखित में से कोई काम करता है—
(i) बिना महिला की इच्छा के शारीरिक संपर्क या अश्लील छेड़छाड़;
(ii) यौन संबंध बनाने की मांग या आग्रह;
(iii) महिला की मर्जी के खिलाफ अश्लील तस्वीरें दिखाना;
(iv) यौन संबंधी आपत्तिजनक टिप्पणियाँ करना,
तो वह यौन उत्पीड़न का दोषी होगा।
(2) (i), (ii), या (iii) के लिए—
सजा: 3 साल तक कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों।
(3) (iv) के लिए—
सजा: 1 साल तक कारावास, या जुर्माना, या दोनों।
मुख्य बिंदु:
- शारीरिक, मांग, अश्लीलता दिखाना, या अश्लील टिप्पणी—सब यौन उत्पीड़न हैं।
- अलग-अलग अपराधों के लिए अलग-अलग सजा निर्धारित।
Section 76: महिला को कपड़े उतारने (disrobe) की नीयत से हमला या बल प्रयोग
जो कोई भी किसी महिला पर कपड़े उतारने या उसे नंगा करने की नीयत से हमला करता है या ऐसा करने में उकसाता है, उसे कम से कम तीन साल और अधिकतम सात साल की सश्रम जेल और जुर्माने की सजा दी जाएगी।
Section 77: Voyeurism (निजी क्रिया की निगरानी)
जो कोई भी किसी महिला को उसकी निजी क्रिया करते हुए बिना उसकी अनुमति के देखे या उसकी तस्वीर बनाए, जहाँ उसे यह उम्मीद हो कि वह देखा नहीं जाएगा, या ऐसी तस्वीरें दूसरों तक पहुंचाए, तो:
- पहली बार दोषी पाया गया तो कम से कम 1 साल की जेल हो सकती है, और यह बढ़कर 3 साल तक हो सकती है, साथ ही जुर्माना भी लगेगा।
- दूसरी या अगली बार दोषी पाया गया तो कम से कम 3 साल की जेल होगी, जो 7 साल तक बढ़ सकती है, साथ ही जुर्माना भी लगेगा।
महत्वपूर्ण बातें:
- “निजी क्रिया” में ऐसे स्थान पर देखना शामिल है जहाँ आमतौर पर निजता की उम्मीद होती है, जैसे कि महिला के जननांग, पिछवाड़ा या स्तन खुले हों या केवल अंतर्वस्त्र पहने हों, या महिला शौचालय का उपयोग कर रही हो, या कोई यौन क्रिया कर रही हो जो आमतौर पर सार्वजनिक नहीं होती।
- यदि महिला तस्वीर लेने या क्रिया को मानती है, पर उसे दूसरों तक फैलाए जाने की अनुमति नहीं देती और ऐसा किया जाता है, तो यह अपराध माना जाएगा।
Section 78 – Stalking / पीछा करना
(1) कोई पुरुष यदि—
(i) किसी महिला का पीछा करता है और बार-बार व्यक्तिगत बातचीत की कोशिश करता है, जबकि महिला ने स्पष्ट रूप से मना कर दिया हो; या
(ii) महिला की इंटरनेट, ई-मेल या अन्य इलेक्ट्रॉनिक संचार का निगरानी करता है,
तो वह Stalking (पीछा करने) का अपराध करता है।
बशर्ते (Proviso): यह पीछा करना अपराध नहीं माना जाएगा अगर पुरुष यह सिद्ध कर दे कि—
(i) यह अपराध रोकने या पता लगाने के लिए किया गया था और वह राज्य द्वारा ऐसा करने के लिए अधिकृत था; या
(ii) यह किसी क़ानून के तहत या उसकी शर्तों का पालन करते हुए किया गया; या
(iii) परिस्थितियों के अनुसार यह व्यवहार उचित और न्यायसंगत था।
(2) सज़ा:
- पहली बार अपराध करने पर – 3 साल तक की जेल (किसी भी प्रकार की) + जुर्माना।
- दूसरी बार या बार-बार अपराध करने पर – 5 साल तक की जेल (किसी भी प्रकार की) + जुर्माना।
📌 परीक्षा के लिए महत्वपूर्ण बिंदु:
- पीछा करना = बार-बार संपर्क की कोशिश + महिला की मर्ज़ी के खिलाफ
- पहली बार सज़ा = 3 साल + जुर्माना
- दोबारा सज़ा = 5 साल + जुर्माना
- कुछ परिस्थितियों में पीछा करना अपराध नहीं माना जाएगा (जैसे कि कानूनन कर्तव्य)।
Section 79 – Word, gesture or act intended to insult modesty of a woman: किसी स्त्री की लज्जा का अपमान करने के इरादे से शब्द, संकेत या कृत्य करना
❖ कोई पुरुष, जो किसी स्त्री की लज्जा (modesty) को अपमानित (insult) करने के इरादे से –
(i) कोई शब्द बोलता है,
(ii) कोई आवाज़ करता है या संकेत (gesture) करता है,
(iii) कोई वस्तु दिखाता है,
या
(iv) उसकी निजता (privacy) में बाधा डालता है,
➤ उसे 3 साल तक की साधारण कारावास (simple imprisonment) और जुर्माना (fine) हो सकता है।
🔸 Important for exam:
- अपमान का इरादा ज़रूरी।
- स्त्री को दिखने या सुनाई देने की संभावना होनी चाहिए।
- अधिकतम सजा: 3 साल साधारण कारावास + जुर्माना।
Offences Relating to Marriage – विवाह से संबंधित अपराध
Section 80 – Dowry Death / दहेज मृत्यु
(1) यदि किसी महिला की मृत्यु जलने या शारीरिक चोट के कारण या असामान्य परिस्थितियों में, विवाह के 7 वर्षों के भीतर होती है और यह सिद्ध हो कि मृत्यु से पहले उसे पति या उसके रिश्तेदार द्वारा दहेज के लिए प्रताड़ित किया गया, तो ऐसी मृत्यु को “दहेज मृत्यु” कहा जाएगा, और पति या रिश्तेदार को मृत्यु का जिम्मेदार माना जाएगा।
स्पष्टीकरण – “दहेज” का अर्थ दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 2 के अनुसार होगा।
(2) दहेज मृत्यु करने वाले को 7 वर्ष से कम नहीं की सजा दी जाएगी, जो आजीवन कारावास तक बढ़ सकती है।
📌 परीक्षा हेतु मुख्य बिंदु (Important Points for Exam):
- विवाह के 7 वर्ष के भीतर मृत्यु होनी चाहिए।
- दहेज के लिए प्रताड़ना सिद्ध होनी चाहिए।
- न्यूनतम सजा: 7 वर्ष।
- अधिकतम सजा: आजीवन कारावास।
Section 81 – Cohabitation caused by man deceitfully inducing belief of lawful marriage: धोखे से वैध विवाह का भ्रम देकर सहवास कराना
जो कोई पुरुष किसी महिला को, जो उससे वैध रूप से विवाहित नहीं है, धोखे से यह विश्वास दिलाता है कि वे वैध रूप से विवाहित हैं और इस विश्वास में महिला उसके साथ सहवास या यौन संबंध बनाती है, ऐसे पुरुष को दस साल तक की कैद और जुर्माने की सजा दी जाएगी।
महत्वपूर्ण बिंदु (Important Points for Exam):
- धोखा देकर महिला को वैध विवाह का भ्रम देना।
- उस विश्वास में महिला से सहवास या यौन संबंध बनाना।
- सजा: दस साल तक की कैद और जुर्माना।
Section 82. Marrying again during lifetime of husband or wife – पति या पत्नी के जीवित रहते पुनः विवाह करना
(1) जिसका पति या पत्नी जीवित हो, और फिर भी जो व्यक्ति ऐसा विवाह करता है जो इस कारण शून्य (void) माना जाता है कि पहले वाला पति या पत्नी अभी जीवित है, उसे सात वर्ष तक की किसी भी प्रकार की कैद और जुर्माने की सजा दी जाएगी।
Exception: यदि ऐसा व्यक्ति जिसकी शादी कोर्ट द्वारा अवैध घोषित हो, या जो व्यक्ति सात साल से अपने पूर्व पति या पत्नी की गैरमौजूदगी और मृत्यु की अनिश्चितता के कारण विवाह करता है, और उसने दूसरी शादी से पहले सच्चाई दूसरी पार्टी को बता दी हो, तो यह धारा लागू नहीं होगी।
(2) जो व्यक्ति अपनी पहली शादी की बात छिपाकर दूसरी शादी करता है, उसे दस वर्ष तक की किसी भी प्रकार की कैद और जुर्माने की सजा दी जाएगी।
महत्वपूर्ण बिंदु (Exam Important Points):
- जीवित पति या पत्नी के रहते दूसरा विवाह अवैध।
- सात साल से गैरमौजूदगी पर शर्तें।
- पहली शादी छिपाना अपराध।
- सजा: 7 साल तक की कैद (पहले अपराध पर), 10 साल तक की कैद (पहली शादी छिपाने पर)।
धारा 83 – विवाह संस्कार को धोखाधड़ी से करना जबकि वैध विवाह न हो
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- धोखाधड़ी से विवाह संस्कार करना
- जानबूझकर यह जानकर कि वैध विवाह नहीं हो रहा है
- सजा: अधिकतम 7 साल की कैद + जुर्माना
सरल हिन्दी में याद रखने योग्य रूप:
जो कोई, बेईमानी से या धोखाधड़ी की नीयत से, विवाह का संस्कार इस जानकार करता है कि इससे उसका वैध विवाह नहीं हो रहा है, उसे अधिकतम 7 वर्ष की कैद (किसी भी प्रकार की) और जुर्माना हो सकता है।
धारा 84 – किसी विवाहित स्त्री को आपराधिक नीयत से फुसलाना, ले जाना या रोककर रखना
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- विवाहित स्त्री को फुसलाना (enticing), ले जाना या छुपाना
- जानबूझकर या विश्वास होने पर कि वह किसी और की पत्नी है
- अवैध संबंध (illicit intercourse) कराने की नीयत से
- सजा: अधिकतम 2 साल की कैद या जुर्माना या दोनों
सरल हिन्दी में याद रखने योग्य रूप:
जो कोई ऐसी स्त्री को, जो किसी और की पत्नी है और जिसे वह जानता है या विश्वास करता है, अवैध संबंध कराने की नीयत से फुसलाता है, ले जाता है, छुपाता है या रोककर रखता है, उसे अधिकतम 2 साल की कैद, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
धारा 85 – पति या उसके रिश्तेदार द्वारा स्त्री पर क्रूरता करना
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- पति या पति का रिश्तेदार
- स्त्री के साथ क्रूरता (cruelty) करता है
- सजा: अधिकतम 3 साल की कैद + जुर्माना
सरल हिन्दी में याद रखने योग्य रूप:
जो कोई पति या पति का रिश्तेदार, किसी स्त्री के साथ क्रूरता करता है, उसे अधिकतम 3 वर्ष की कैद और जुर्माना हो सकता है।
धारा 86 – क्रूरता की परिभाषा
महत्त्वपूर्ण बिंदु (धारा 85 के लिए लागू):
(a) कोई भी जानबूझकर किया गया ऐसा आचरण, जिससे स्त्री आत्महत्या करने पर मजबूर हो सकती है, या जिससे उसके जीवन, अंग या मानसिक या शारीरिक स्वास्थ्य को गंभीर क्षति या खतरा हो।
(b) स्त्री को इस उद्देश्य से तंग करना कि वह या उसके संबंधी किसी अवैध संपत्ति या कीमती चीज की मांग पूरी करें, या ऐसी मांग पूरी न करने पर तंग किया जाना।
क्रूरता का मतलब है —
(a) ऐसा जानबूझकर व्यवहार जिससे स्त्री आत्महत्या कर सकती है या उसकी जान, शरीर या मानसिक/शारीरिक सेहत को गंभीर नुकसान या खतरा हो।
(b) दहेज या किसी भी अवैध मांग को मनवाने के लिए स्त्री या उसके परिवार को तंग करना।
धारा 87 – महिला का अपहरण, बहलाना या विवश करके विवाह या अवैध संबंध के लिए प्रेरित करना
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- किसी महिला का अपहरण या बहलाना इस नीयत से कि:
- उसे उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी से विवाह करने को मजबूर किया जाए, या
- उसे अवैध संबंध के लिए मजबूर या बहकाया जाए।
- या यह जानते हुए कि ऐसा हो सकता है।
- या किसी महिला को आपराधिक डर, पद का दुरुपयोग या किसी अन्य ज़बरदस्ती के तरीके से यह नीयत रखते हुए किसी स्थान से ले जाना कि वह अवैध संबंध के लिए मजबूर या बहकाई जाएगी।
- सजा: अधिकतम 10 साल की कैद + जुर्माना
सरल हिन्दी में याद रखने योग्य रूप:
जो कोई महिला का अपहरण या बहलाता है इस नीयत से कि वह जबरदस्ती विवाह करे या अवैध संबंध बनाए, या यह जानता है कि ऐसा हो सकता है, या कोई महिला को डर, पद का दुरुपयोग या ज़बरदस्ती से इस नीयत से ले जाता है, वह 10 साल तक की कैद और जुर्माने से दंडित होगा।
Offences related to Causing Miscarriage etc.
धारा 88 – गर्भपात कराना
महत्त्वपूर्ण बिंदु :–
- कोई भी जानबूझकर गर्भवती महिला का गर्भपात कराए।
- यदि गर्भपात महिला की जान बचाने के लिए अच्छे विश्वास में नहीं किया गया हो।
- सामान्य गर्भपात पर सजा: अधिकतम 3 साल की कैद या जुर्माना या दोनों।
- यदि गर्भ अधिक विकसित (quick with child) हो, तो सजा: अधिकतम 7 साल की कैद + जुर्माना।
- स्पष्टीकरण: महिला द्वारा खुद गर्भपात कराना भी इसी धारा में आता है।
सरल हिंदी में याद रखने योग्य:
जो कोई जानबूझकर गर्भवती महिला का गर्भपात कराता है, बिना महिला की जान बचाने के लिए, उसे 3 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों, और अगर बच्चा अधिक विकसित हो तो 7 साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। महिला द्वारा खुद गर्भपात कराना भी इस धारा के अंतर्गत आता है।
Section 89 – Causing miscarriage without woman’s consent
धारा 89 – महिला की सहमति के बिना गर्भपात कराना
सरल और संक्षिप्त व्याख्या:
जो कोई भी धारा 88 के तहत अपराध करता है बिना महिला की सहमति के, चाहे महिला गर्भवती (quick with child) हो या न हो, उसे आजीवन कारावास (imprisonment for life) या दस वर्षों तक की किसी भी प्रकार की कारावास (imprisonment of either description) की सजा दी जाएगी, साथ ही जुर्माना (fine) भी लगेगा।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- महिला की सहमति जरूरी है।
- गर्भवती होने या न होने से सजा पर असर नहीं।
- सजा: आजीवन कारावास या 10 साल तक की कारावास।
- जुर्माना भी देना होगा।
Section 90 – Death caused by act done with intent to cause miscarriage
धारा 90 – गर्भपात का इरादा रखकर किया गया कार्य जिससे महिला की मृत्यु हो
सरल और संक्षिप्त व्याख्या:
(1) जो कोई महिला के गर्भपात का इरादा रखकर ऐसा कोई काम करे जिससे महिला की मृत्यु हो जाए, उसे दस साल तक की कारावास (imprisonment of either description) और जुर्माना (fine) मिलेगा।
(2) यदि ऐसा काम महिला की सहमति के बिना किया गया हो, तो उसे आजीवन कारावास (imprisonment for life) या उप-धारा (1) के अनुसार सजा दी जाएगी।
स्पष्टीकरण: अपराध के लिए जरूरी नहीं कि आरोपी को पता हो कि उसके कार्य से मृत्यु हो सकती है।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- गर्भपात का इरादा होना जरूरी।
- मृत्यु होने पर सजा 10 साल तक की कारावास और जुर्माना।
- बिना महिला की सहमति के किया गया कार्य, सजा आजीवन कारावास तक हो सकती है।
- आरोपी को मृत्यु की संभावना जानना जरूरी नहीं।
Section 91 – Act done with intent to prevent child being born alive or to cause to die after birth
धारा 91 – बच्चे के जीवित जन्म को रोकने या जन्म के बाद मृत्यु का कारण बनने के लिए किया गया कार्य
जो कोई भी किसी बच्चे के जन्म से पहले ऐसा कोई काम करता है, जिसका मकसद बच्चे को जीवित जन्म लेने से रोकना या जन्म के बाद उसकी मृत्यु कराना हो, और ऐसा काम करके वह मकसद पूरा करता है, तो यदि वह काम माँ की जान बचाने के लिए ईमानदारी से नहीं किया गया है, तो उसे दस साल तक की कारावास (imprisonment of either description), जुर्माना (fine), या दोनों की सजा दी जाएगी।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- मकसद बच्चे को जीवित जन्म से रोकना या जन्म के बाद मृत्यु कराना।
- माँ की जान बचाने के लिए किया गया काम बशर्ते (except if) हो।
- सजा: 10 साल तक की कारावास या जुर्माना या दोनों।
Section 92 – Causing death of quick unborn child by act amounting to culpable homicide
धारा 92 – गर्भस्थ तेज़ भ्रूण (quick unborn child) की मृत्यु का कारण बनने वाला कार्य, जो आपराधिक मानव वध (culpable homicide) के बराबर हो
यदि कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है, जो यदि किसी व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनता, तो वह culpable homicide (आपराधिक मानव वध) कहलाता, और वही कार्य यदि गर्भ में पल रहे तेज़ भ्रूण (quick unborn child) की मृत्यु का कारण बनता है, तो उस व्यक्ति को 10 वर्ष तक की कारावास (imprisonment of either description) और जुर्माना (fine) की सजा दी जा सकती है।
स्पष्ट उदाहरण (Illustration):
A को पता है कि उसका कार्य एक गर्भवती महिला की मृत्यु का कारण बन सकता है। वह कार्य करता है जिससे महिला घायल होती है लेकिन मरती नहीं, परंतु उसके गर्भ में पल रहा तेज़ भ्रूण मर जाता है। ऐसी स्थिति में A इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।
महत्वपूर्ण बिंदु:
- गर्भस्थ “quick” बच्चे की मृत्यु का कारण बना हो।
- कार्य ऐसा हो जो यदि किसी जीवित व्यक्ति पर किया जाए तो culpable homicide बनता।
- सजा: 10 साल तक की कारावास और जुर्माना।
- महिला की मृत्यु नहीं हुई हो, पर भ्रूण की मृत्यु होनी चाहिए।
Offence against Child
Section 93 – Exposure and abandonment of child under twelve years of age, by parent or person having care of it
धारा 93 – 12 वर्ष से कम आयु के बच्चे को छोड़ना या त्यागना, माता-पिता या संरक्षक द्वारा
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- अपराधी: माता-पिता या बच्चे की देखभाल करने वाला कोई व्यक्ति
- बच्चा: 12 वर्ष से कम उम्र का
- अपराध: बच्चे को किसी स्थान पर इस नीयत से छोड़ना या त्याग देना कि उसे पूरी तरह से छोड़ दिया जाए।
- सजा: 7 साल तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों।
- स्पष्टीकरण: यदि इस कारण बच्चे की मृत्यु हो जाती है, तो अपराधी पर हत्या या गैर इरादतन हत्या का मामला भी चल सकता है।
सरल हिंदी में याद रखने योग्य:
अगर कोई माता-पिता या संरक्षक 12 साल से कम उम्र के बच्चे को पूरी तरह त्यागने की नीयत से छोड़ता है, तो उसे 7 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
अगर बच्चा मर जाए, तो हत्या या गैर इरादतन हत्या का मुकदमा भी चल सकता है।
Section 94 – Concealment of birth by secret disposal of dead body
धारा 94 – जन्म को छुपाने के लिए मृत शिशु के शव को गुप्त रूप से ठिकाने लगाना
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- अपराधी: कोई भी व्यक्ति
- कृत्य: मृत शिशु के शव को गुप्त रूप से दफनाना या ठिकाने लगाना
- उद्देश्य: जन्म को छुपाना या छुपाने का प्रयास करना, चाहे शिशु की मृत्यु जन्म से पहले, बाद या दौरान हुई हो।
- सजा: 2 साल तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों।
सरल हिंदी में याद रखने योग्य:
जो कोई शिशु के शव को छिपकर दफनाता या ठिकाने लगाता है ताकि उसके जन्म को छुपाया जा सके, उसे 2 साल तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
Section 95 – Hiring, employing or engaging a child to commit an offence
धारा 95 – बच्चे को अपराध करने के लिए रखना, नियोजित करना या लगाना
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- अपराधी: कोई भी व्यक्ति
- कृत्य: किसी बच्चे को अपराध करने के लिए रखना, काम पर लगाना या प्रयोग करना
- सजा: न्यूनतम 3 वर्ष की कैद, अधिकतम 10 वर्ष तक की कैद और जुर्माना
- यदि अपराध वास्तव में हो जाए, तो अपराधी को वैसी ही सजा मिलेगी जैसी उसने खुद अपराध किया हो।
- स्पष्टीकरण: बच्चे का यौन शोषण या पोर्नोग्राफी में प्रयोग भी इस धारा के अंतर्गत आता है।
सरल हिंदी में याद रखने योग्य:
जो कोई बच्चे को किसी अपराध के लिए नियुक्त करता है या लगाता है, उसे 3 साल से 10 साल तक की कैद और जुर्माना होगा।
अगर अपराध हो जाए, तो उसे वही सजा मिलेगी जैसे उसने खुद किया हो।
यौन शोषण या पोर्न में बच्चे का प्रयोग भी इसमें शामिल है।
Section 96 – Procuration of child
धारा 96 – बच्चे को अनुचित उद्देश्य से ले जाना या प्रेरित करना
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- कोई भी व्यक्ति
- किसी भी माध्यम से बच्चे को कहीं जाने के लिए प्रेरित करे या कोई कार्य करवाए
- नीयत: कि बच्चे को किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध यौन संबंध के लिए मजबूर या बहकाया जाए
- या यह जानते हुए कि ऐसा होना संभव है
- सजा: अधिकतम 10 वर्ष तक की कैद और जुर्माना
सरल हिंदी में याद रखने योग्य:
जो कोई भी किसी बच्चे को बहलाकर या प्रेरित करके यह नीयत रखता है कि उसे अवैध यौन संबंध के लिए मजबूर या बहकाया जाए, उसे 10 साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
Section 97 – Kidnapping or abducting child under ten years of age with intent to steal from its person
धारा 97 – 10 वर्ष से कम आयु के बच्चे का अपहरण या उसे बहला-फुसलाकर ले जाना, उसके पास से चोरी की नीयत से
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- कोई व्यक्ति
- 10 वर्ष से कम आयु के बच्चे का अपहरण या बहला-फुसलाकर ले जाना
- नीयत: बच्चे के पास से कोई चल संपत्ति (movable property) बेईमानी से चुराना
- सजा: अधिकतम 7 वर्ष तक की कैद और जुर्माना
सरल हिंदी में याद रखने योग्य:
जो कोई 10 साल से कम उम्र के बच्चे को इस नीयत से ले जाता है कि उसके पास से चीज़ चुराए, उसे 7 साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
Section 98 – Selling child for purposes of prostitution, etc.
धारा 98 – वेश्यावृत्ति आदि के उद्देश्य से बच्चे को बेचना
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- कोई व्यक्ति यदि किसी बच्चे को:
- बेचता है,
- किराये पर देता है, या
- किसी भी रूप में उसका निपटान करता है
- नीयत से कि उस बच्चे को कभी भी:
- वेश्यावृत्ति,
- अवैध यौन संबंध, या
- किसी भी अवैध या अनैतिक कार्य के लिए प्रयोग किया जाएगा,
- या यह जानते हुए कि ऐसा किया जाना संभव है
- सजा: अधिकतम 10 साल तक की कैद और जुर्माना।
Explanation 1 (व्याख्या 1):
यदि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की को किसी वेश्या या कोठा चलाने वाले व्यक्ति को बेचा या किराये पर दिया गया हो, तो माना जाएगा कि ऐसा वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से किया गया, जब तक कि इसका उल्टा साबित न हो।
Explanation 2 (व्याख्या 2):
“अवैध यौन संबंध” का अर्थ है – ऐसा यौन संबंध जो:
- शादीशुदा न हो,
- या कोई ऐसा सामाजिक या धार्मिक संबंध न हो जिसे वैध माना गया हो,
- लेकिन यदि दोनों समुदायों में ऐसा संबंध वैवाहिक जैसा माना जाता है, तो वह इससे बाहर होगा।
सरल हिंदी में याद रखने योग्य:–
जो कोई बच्चे को वेश्यावृत्ति, अवैध यौन संबंध या किसी अनैतिक कार्य के लिए बेचता, किराये पर देता या निपटान करता है, उसे 10 साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
18 साल से कम उम्र की लड़की को वेश्या या कोठा संचालक को देना = वेश्यावृत्ति की नीयत मानी जाएगी, जब तक विपरीत सिद्ध न हो।
Section 99 – Buying child for purposes of prostitution, etc.
धारा 99 – वेश्यावृत्ति आदि के उद्देश्य से बच्चे को खरीदना
महत्त्वपूर्ण बिंदु:
- कोई व्यक्ति यदि किसी बच्चे को:
- खरीदता है,
- किराये पर लेता है, या
- किसी भी प्रकार से कब्जे में लेता है
- नीयत से कि उस बच्चे को कभी भी:
- वेश्यावृत्ति,
- अवैध यौन संबंध, या
- किसी भी अवैध या अनैतिक कार्य में लगाया जाएगा,
- या यह जानते हुए कि ऐसा होना संभावित है
- सजा: न्यूनतम 7 वर्ष की कैद, अधिकतम 14 वर्ष तक की कैद, और जुर्माना
Explanation 1 (व्याख्या 1):
यदि कोई वेश्या या कोठा चलाने वाला व्यक्ति 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की को खरीदता, किराये पर लेता या कब्जे में लेता है, तो जब तक विपरीत सिद्ध न हो, माना जाएगा कि उसने ऐसा वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से किया।
Explanation 2 (व्याख्या 2):
“अवैध यौन संबंध” का वही अर्थ है जो धारा 98 में दिया गया है।
सरल हिंदी में याद रखने योग्य:
जो कोई भी बच्चे को वेश्यावृत्ति, अवैध यौन संबंध या अनैतिक कार्य के लिए खरीदता, किराये पर लेता या कब्जे में लेता है, उसे कम से कम 7 साल और अधिकतम 14 साल तक की कैद और जुर्माना होगा।
18 साल से कम उम्र की लड़की को वेश्या या कोठा संचालक द्वारा लेना = वेश्यावृत्ति की नीयत मानी जाएगी, जब तक विपरीत सिद्ध न हो।
Chapter – VI
Of offences affecting the Human Body
Section 100 – Culpable Homicide
धारा 100 – आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide)
महत्त्वपूर्ण बिंदु (Important Points):
जो व्यक्ति ऐसा कोई कार्य करता है जिससे : –
- मृत्यु की नीयत (intention) हो,
- या ऐसी शारीरिक चोट पहुँचाने की नीयत हो जिससे मृत्यु हो सकती है,
- या यह ज्ञान (knowledge) हो कि ऐसा कार्य मृत्यु का कारण बन सकता है,
तो वह आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide) का अपराध करता है।
🔹 Illustrations (उदाहरण):
(a) A एक गड्ढे को छुपाने के लिए उस पर लकड़ियाँ और घास रखता है, जिससे किसी की मृत्यु हो सकती है। Z उस पर चलता है और मर जाता है।
➡ A ने आपराधिक मानव वध किया।
(b) A जानता है कि Z झाड़ी के पीछे है, लेकिन B नहीं जानता। A, B को गोली चलाने को कहता है जिससे Z मर जाता है।
➡ B निर्दोष हो सकता है, पर A ने आपराधिक मानव वध किया।
(c) A एक मुर्गी को मारने के इरादे से गोली चलाता है लेकिन झाड़ी के पीछे छिपे B को मार देता है। A को नहीं पता था कि B वहाँ है।
➡ A ने कोई नीयत या ज्ञान नहीं रखा, इसलिए यह आपराधिक मानव वध नहीं है।
🔹 Explanations (व्याख्याएँ):
Explanation 1:
अगर कोई व्यक्ति किसी रोगी या दुर्बल व्यक्ति को चोट पहुँचाता है जिससे उसकी मृत्यु तेज हो जाती है, तो उसे मृत्यु का कारण माना जाएगा।
Explanation 2:
यदि मृत्यु किसी चोट के कारण होती है, तो उपचार से मृत्यु रोकी जा सकती थी, यह कहना अपराध को नहीं बचा सकता।
Explanation 3:
गर्भ में बच्चे की मृत्यु मानव वध नहीं मानी जाती। लेकिन यदि बच्चा जीवीत रूप से भी पैदा हो गया हो, तो उसकी मृत्यु कराना आपराधिक मानव वध हो सकता है।
✅ स्मरण हेतु सारांश (Summary for Memory):
👉 मृत्यु की नीयत, या मृत्यु का ज्ञान रखते हुए कोई कार्य किया जाए जिससे मृत्यु हो — Culpable Homicide कहलाता है।
👉 दुर्बल व्यक्ति को चोट से मृत्यु = दोषी।
👉 अच्छा इलाज मिल जाता तो भी दोषी।
👉 गर्भस्थ शिशु की मृत्यु = नहीं, लेकिन जन्मे हुए शिशु की मृत्यु = हो सकता है culpable homicide।
Section 101 – Murder (हत्या)
💥 परिभाषा (Definition):
जब कोई व्यक्ति किसी की मृत्यु इस इरादे से करता है—
(a) मृत्यु करने के इरादे से, या
(b) ऐसी चोट पहुंचाने के इरादे से, जो उसे पता है कि मृत्यु का कारण बन सकती है, या
(c) ऐसी शारीरिक चोट पहुंचाने के इरादे से, जो सामान्य रूप से मृत्यु कर सकती है, या
(d) ऐसा कार्य करता है जो अत्यंत खतरनाक है और बिना किसी वैध कारण के किया गया हो, जिससे मृत्यु संभव है—
तो यह हत्या (Murder) कहलाता है।
📌 Illustrations (उदाहरण):
- (a) A ने Z को जान से मारने की नीयत से गोली मारी – हत्या।
- (b) A को पता है Z को गंभीर बीमारी है, फिर भी चोट पहुँचाई – हत्या।
- (c) A ने सामान्यतः मृत्यु करने वाली चोट दी – हत्या।
- (d) A ने भीड़ में तोप चला दी – हत्या।
Exceptions (अपवाद): हत्या नहीं मानी जाएगी अगर—
Exception 1 – Grave and sudden provocation (गंभीर और अचानक उत्तेजना):
अगर कोई व्यक्ति गंभीर और अचानक उत्तेजना में नियंत्रण खोकर किसी को मार देता है, तो यह हत्या नहीं बल्कि आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide) है।
🔸 बशर्ते कि उत्तेजना—
(a) जानबूझकर न की गई हो,
(b) किसी सरकारी अधिकारी द्वारा कानून के पालन में न हो,
(c) निजी रक्षा के अधिकार में न हो।
📝 उदाहरण: यदि A को Z की बातों से गुस्सा आता है और वह Z के बच्चे Y को मार देता है — यह हत्या है, क्योंकि उत्तेजना Y ने नहीं दी।
Exception 2 – Right of private defence exceeded (निजी रक्षा का अधिकार पार कर गया):
अगर कोई व्यक्ति अपनी या संपत्ति की रक्षा में कानून से अधिक बल प्रयोग कर बैठता है, लेकिन नीयत पूर्व नियोजित नहीं थी — तो हत्या नहीं मानी जाएगी।
उदाहरण: Z A को कोड़े से मारने की कोशिश करता है, A गोली मार देता है — हत्या नहीं।
Exception 3 – Public servant acting in good faith (सरकारी कर्मचारी द्वारा सद्भावना में की गई कार्यवाही):
अगर सरकारी कर्मचारी कानून के अंतर्गत सद्भावना से कर्तव्य निभाते हुए हद पार कर दे, और नीयत से किसी को नहीं मारे – यह हत्या नहीं।
Exception 4 – Sudden fight (अचानक झगड़े में हत्या) :-
अगर अचानक झगड़ा हो जाए, कोई पूर्व नियोजन न हो, और न ही अत्यधिक क्रूरता हो — तो हत्या नहीं।
Exception 5 – Death with consent (स्वीकृति से मृत्यु):
अगर कोई व्यक्ति 18 वर्ष से अधिक उम्र का हो और अपनी मृत्यु के जोखिम को स्वेच्छा से स्वीकार करे, तो हत्या नहीं।
📝 उदाहरण: अगर A , Z (एक बच्चे) को आत्महत्या के लिए उकसाता है — चूंकि Z नाबालिग है, उसकी सहमति वैध नहीं, इसलिए यह हत्या है।
📚 मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:
🔸 हत्या (Murder) = जानबूझकर या खतरनाक कार्य से मृत्यु
🔸 अपवाद (Exception) = उत्तेजना, निजी रक्षा, सरकारी कार्य, अचानक झगड़ा, सहमति से मृत्यु
🔸 सभी मामलों में इरादा (intention) और परिस्थिति (circumstance) महत्वपूर्ण है।
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Section 102 – Culpable Homicide by Causing Death of Person Other than Intended Person
धारा 102 – जिस व्यक्ति की मृत्यु का इरादा नहीं था, उसकी मृत्यु होने पर आपराधिक मानव वध (Culpable Homicide)
सरल हिन्दी में संक्षेप रूप में समझने व याद रखने हेतु:
अगर कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जिससे किसी की मृत्यु होने का इरादा होता है या वह जानता है कि मृत्यु हो सकती है, और उस कार्य से किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है (जिसकी मृत्यु का न तो इरादा था और न ही संभावना का ज्ञान था),
तो यह “आपराधिक मानव वध” (Culpable Homicide) माना जाएगा,
और उसी प्रकार दंडनीय होगा जैसे उस व्यक्ति की मृत्यु हुई होती, जिसकी मृत्यु का इरादा था या संभावना का ज्ञान था।
📌 महत्वपूर्ण बिंदु:
- जानबूझकर किया गया खतरनाक कार्य।
- मृत्यु किसी अन्य व्यक्ति की हो जाती है।
- अपराध वही माना जाएगा जैसा इरादा था।
✅ उदाहरण के लिए याद रखने का सूत्र:
“जिसको मारना था, वो बच गया; पर जो मरा, उसके लिए भी वही अपराध लगेगा।”
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Section 103 – Punishment for Murder | हत्या के लिए दंड
Clause (1):
जिस किसी ने हत्या (murder) की है, उसे मृत्यु दंड या आजीवन कारावास दिया जाएगा और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
Clause (2):
यदि 5 या अधिक लोग मिलकर हत्या करते हैं और हत्या का कारण हो —
जाति, धर्म, नस्ल, समुदाय, लिंग, जन्म स्थान, भाषा, व्यक्तिगत विश्वास या ऐसा कोई अन्य कारण,
तो ऐसे हर व्यक्ति को मृत्यु दंड या आजीवन कारावास दिया जाएगा और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
✅ मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:
- हत्या = मृत्यु दंड या आजीवन कारावास + जुर्माना
- 5 या अधिक लोगों द्वारा पूर्वग्रह/भेदभाव के आधार पर की गई हत्या = समान रूप से सख्त सजा
Section 104 – Punishment for murder by life-convict
धारा 104 – आजीवन कारावास की सजा पाए व्यक्ति द्वारा हत्या करने पर दंड
🔹 महत्वपूर्ण बिंदु (Important Points):
- यह धारा उन व्यक्तियों पर लागू होती है जो पहले से आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं।
- यदि ऐसा व्यक्ति हत्या करता है, तो उसे दी जा सकती है:
✅ मृत्युदंड (Death Penalty) या
✅ आजीवन कारावास – और यह आजीवन कारावास का अर्थ होगा कि वह व्यक्ति अपने जीवन के शेष समय तक जेल में रहेगा।
🔹 सरल हिंदी में संक्षेप (Simplified Summary in Hindi):
अगर कोई ऐसा व्यक्ति जो पहले से आजीवन कारावास की सजा काट रहा है, फिर से हत्या करता है, तो उसे या तो फाँसी दी जा सकती है या आजीवन जेल, और यह जेल उसकी पूरी बाकी जिंदगी तक चलेगी।
✔️ याद रखने योग्य बात:
दूसरी बार हत्या करने वाले आजीवन कारावास प्राप्त अपराधी के लिए सजा और भी सख्त होती है – मृत्युदंड या उम्रभर की जेल।
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Section 105 – Punishment for Culpable Homicide not amounting to Murder
धारा 105 – हत्या न होने वाले आपराधिक मानव वध की सजा
🔹 महत्वपूर्ण बिंदु (Important Points):
- यह धारा हत्या नहीं लेकिन ग़ैर-इरादतन मानव वध (culpable homicide not amounting to murder) पर लागू होती है।
- सज़ा की दो श्रेणियाँ हैं – यह इस पर निर्भर करता है कि मृत्यु किस प्रकार की मानसिक अवस्था में हुई।
🔹 सरल हिंदी में संक्षेप (Simplified Hindi Summary for Exam):
यदि कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जिससे किसी की मृत्यु हो जाती है, परन्तु वह हत्या (murder) नहीं मानी जाती, तो उसे निम्न में से कोई एक सजा दी जाएगी —
👉 पहला भाग (यदि मृत्यु की मंशा से किया गया काम):
- अगर मृत्यु पहुँचाने की मंशा से या ऐसा शारीरिक नुकसान पहुँचाने की मंशा से कार्य किया गया जो मृत्यु ला सकता है —
तो सजा: - आजीवन कारावास, या
- 5 से 10 साल तक की सजा, और
- जुर्माना भी।
👉 दूसरा भाग (यदि केवल मृत्यु की संभावना जानकर काम किया गया, मंशा नहीं थी):
- अगर व्यक्ति को यह ज्ञान था कि उसके काम से मृत्यु हो सकती है, लेकिन उसकी कोई मंशा नहीं थी किसी को मारने की या गंभीर चोट देने की —
तो सजा: - 10 साल तक की जेल, और
- जुर्माना।
🔸 याद रखने वाली बात (For Exam):
- यह धारा हत्या से कम गंभीर अपराध को कवर करती है।
- दो प्रकार की मानसिक अवस्था (intention vs knowledge) के अनुसार अलग-अलग सजा निर्धारित की गई है।
- “Culpable Homicide not amounting to murder” = जान-बूझकर या जानकर की गई ऐसी हरकत जिससे मौत हो गई, लेकिन हत्या जैसी नहीं मानी गई।
Section 106 – Causing Death by Negligence
धारा 106 – लापरवाही से मृत्यु कारित करना
(1) Death by Rash or Negligent Act (except Culpable Homicide)
(1) लापरवाही या लापरवाहीपूर्ण कार्य से मृत्यु (गैर-इरादतन हत्या नहीं)
- यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य की मृत्यु किसी लापरवाही या उतावलेपन से करता है,
जो कि गैर-इरादतन हत्या (Culpable Homicide) नहीं है,
तो उसे:- 5 वर्ष तक की जेल (किसी भी प्रकार की – सश्रम या बिना सश्रम),
- और जुर्माना भी हो सकता है।
👉 विशेष स्थिति – चिकित्सा क्षेत्र से संबंधित:
- अगर यह कार्य एक Registered Medical Practitioner द्वारा मेडिकल प्रक्रिया करते समय हुआ है, तो:
- उसे 2 वर्ष तक की सज़ा हो सकती है (सश्रम या बिना सश्रम),
- और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
📌 Explanation (व्याख्या):
Registered Medical Practitioner वह होता है:
- जिसके पास National Medical Commission Act, 2019 के तहत मान्य चिकित्सा योग्यता हो, और
- जिसका नाम National Medical Register या State Medical Register में दर्ज हो।
(2) Death by Rash and Negligent Driving and Running Away
(2) लापरवाही से वाहन चलाकर मृत्यु करना और भाग जाना
- यदि कोई व्यक्ति:
- लापरवाही से वाहन चलाते समय किसी की मृत्यु करता है,
- और घटना के बाद पुलिस अधिकारी या मजिस्ट्रेट को सूचित किए बिना भाग जाता है,
तो उसे: - 10 वर्ष तक की सजा हो सकती है (सश्रम या बिना सश्रम),
- और जुर्माना भी लगेगा।
📚 Revision Points (दोहराने के लिए मुख्य बिंदु):
- यह धारा Culpable Homicide से अलग है – यानी इरादा नहीं होता, लेकिन लापरवाही होती है।
- डॉक्टर के लिए विशेष प्रावधान – सजा कम (2 वर्ष), पर जिम्मेदारी है।
- ड्राइविंग केस में अगर भाग जाते हो बिना सूचना दिए, तो कड़ी सज़ा (10 वर्ष)।
Section 107 – Abetment of Suicide of Child or Person of Unsound Mind
धारा 107 – बालक या मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति को आत्महत्या के लिए उकसाना
मुख्य प्रावधान (Main Provision):
अगर कोई व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए उकसाता है, जो:
- बालक (Child) है,
- या मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति (Person of Unsound Mind) है,
- या अत्यधिक भ्रमित स्थिति (Delirious person) में है,
- या नशे की हालत में (Intoxicated person) है,
तो ऐसा व्यक्ति:
- मृत्युदंड (Death Penalty),
- या आजन्म कारावास (Life Imprisonment),
- या 10 वर्ष तक की सजा,
- साथ ही जुर्माने (Fine) के लिए भी उत्तरदायी होगा।
📌 Important Terms (महत्वपूर्ण शब्द):
- Abetment (उकसाना) = किसी को मानसिक या शारीरिक रूप से आत्महत्या करने के लिए प्रेरित करना।
- Child = ऐसा व्यक्ति जिसकी उम्र कानूनन 18 वर्ष से कम है।
- Unsound mind / Delirious / Intoxicated = ऐसे व्यक्ति जो निर्णय लेने में अक्षम हैं।
🧠 Revision Points (पुनरावृत्ति के लिए):
- अगर आत्महत्या करने वाला कमज़ोर मानसिक स्थिति में है (बालक, पागलपन, भ्रम, नशा),
तो उकसाने वाले को कड़ी सज़ा दी जाती है। - सज़ा बहुत गंभीर है – मृत्यु, आजन्म कारावास या 10 वर्ष तक की सजा + जुर्माना।
- इस धारा का उद्देश्य कमजोर वर्गों की रक्षा करना है।
Section 108 – Abetment of Suicide – आत्महत्या के लिए उकसाना
🔹 महत्वपूर्ण बिंदु (Important Points):
- Offence (अपराध): आत्महत्या के लिए उकसाना (abetment of suicide)
- पक्ष: कोई भी व्यक्ति
- दंड (Punishment):
- अधिकतम 10 साल तक की कैद (Simple या Rigorous कोई भी हो सकती है)
- साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है
✅ सरल और संक्षिप्त हिंदी में समझें:
अगर कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, और कोई दूसरा व्यक्ति उसे आत्महत्या करने के लिए उकसाता है (प्रेरित करता है), तो वह व्यक्ति अपराधी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को अधिकतम 10 साल तक की कैद हो सकती है और साथ में जुर्माना भी लग सकता है।
🧠 याद रखने की ट्रिक:
“उकसावे से आत्महत्या = 10 साल तक की सज़ा + जुर्माना”
Section 109 – Attempt to Murder – हत्या का प्रयास
✅ मुख्य बिंदु (Important Points):
- अपराध (Offence):
हत्या करने के इरादे या जानकारी के साथ कोई कार्य करना, जिससे अगर मृत्यु हो जाती, तो वह हत्या माना जाता। - सजा (Punishment):
- अधिकतम 10 वर्ष की सजा (साधारण या कठोर कारावास) + जुर्माना
- अगर चोट लगती है, तो आजन्म कारावास या उपरोक्त सजा
- अगर अपराधी पहले से ही आजीवन कारावास की सजा काट रहा है और चोट पहुंची है, तो:
- मृत्युदंड या शेष जीवन तक कारावास (Natural life imprisonment)
सरल हिंदी में समझें:
अगर कोई व्यक्ति किसी को मारने के इरादे से ऐसा काम करता है कि अगर उसी काम से किसी की मृत्यु हो जाती, तो वह हत्या मानी जाती, तो वह “हत्या के प्रयास” का दोषी होता है।
अगर चोट लगती है, तो सजा और भी कड़ी हो जाती है – उम्रकैद या मृत्युदंड तक हो सकता है (अगर वह पहले से उम्रकैद काट रहा है)।
याद रखने की ट्रिक:
“इरादा + जानबूझकर प्रयास → मौत न भी हो = Attempt to Murder”
→ 10 साल तक की सजा / चोट लगे तो उम्रकैद / पहले से उम्रकैद है तो मौत की सजा भी हो सकती है।
📌 Illustrations (उदाहरण) – सरल रूप में:
- (a) A ने Z को गोली मारी मारने की नीयत से — अगर Z मरता तो हत्या होती — इसलिए A दोषी है।
- (b) A ने एक छोटे बच्चे को मरने के इरादे से रेगिस्तान में छोड़ दिया — भले ही बच्चा मरा नहीं — फिर भी A दोषी है।
- (c) A ने Z को मारने के लिए बंदूक खरीदी और लोड की — अब तक अपराध नहीं हुआ। लेकिन जब A ने गोली चलाई — अपराध हो गया। अगर Z को चोट लगी — A को कड़ी सजा मिलेगी।
- (d) A ने ज़हर मिलाया और ज़हर मिला खाना Z की मेज़ पर रख दिया — हत्या का प्रयास पूरा हुआ, भले ही Z ने खाया नहीं।
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धारा 110 – जानलेवा हमला करने का प्रयास (Attempt to commit culpable homicide)
✅ सरल अर्थ:–
अगर कोई व्यक्ति किसी को मारने की नीयत या जानकारी के साथ ऐसा कोई काम करता है कि अगर उसकी वजह से मौत हो जाती, तो वह “ग़ैर-इरादतन हत्या” (culpable homicide not amounting to murder) का दोषी होता —
तो वह व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
✅ सजा:
- अगर किसी को चोट नहीं लगी:
👉 3 साल तक की जेल, या
👉 जुर्माना, या
👉 दोनों। - अगर किसी को चोट लगती है:
👉 7 साल तक की जेल, या
👉 जुर्माना, या
👉 दोनों।
🔸 उदाहरण (Illustration):
A, गहरे और अचानक उभरे ग़ुस्से में Z पर गोली चलाता है।
अगर गोली लगने से Z की मौत हो जाती, तो A पर गैर-इरादतन हत्या का आरोप लगता।
इसलिए, भले मौत न हुई हो, A ने Section 110 का अपराध किया है।
📝 मुख्य बातें याद रखने के लिए:
- नीयत या जानकारी (Intention or knowledge) ज़रूरी है।
- मौत नहीं हुई हो, फिर भी अपराध माना जाएगा।
- चोट लगे तो सजा ज़्यादा (up to 7 years)।
- ग़ैर-इरादतन हत्या का प्रयास है, हत्या नहीं।
- Section 110 = Attempt to commit culpable homicide, जो मर्डर नहीं है।
धारा 111 – संगठित अपराध (Organised Crime)
✅ संगठित अपराध क्या होता है?
अगर कोई व्यक्ति या लोगों का समूह मिलकर लगातार गैरकानूनी गतिविधियाँ करता है जैसे:
- अपहरण, डकैती, वाहन चोरी
- जबरन वसूली (extortion), ज़मीन पर कब्ज़ा
- सुपारी देकर हत्या, आर्थिक अपराध
- साइबर क्राइम, मानव, हथियार, ड्रग्स या अन्य वस्तुओं की तस्करी
- वेश्यावृत्ति या फिरौती के लिए मानव तस्करी
और ये कार्य वे हिंसा, डराने-धमकाने, ज़बरदस्ती या किसी अन्य गैरकानूनी तरीके से भौतिक / आर्थिक लाभ के लिए करते हैं, तो इसे संगठित अपराध माना जाता है।
महत्वपूर्ण परिभाषाएँ:
- संगठित अपराध सिंडिकेट (Organised Crime Syndicate):
2 या अधिक लोग जो मिलकर बार-बार अपराध करें। - लगातार गैरकानूनी गतिविधि:
ऐसा अपराध जो कानूनन दंडनीय हो (3 वर्ष या उससे अधिक की सज़ा हो सकती हो) और पिछले 10 वर्षों में 2 या अधिक चार्जशीट कोर्ट में दाखिल की गई हो। - आर्थिक अपराध (Economic Offence):
धोखाधड़ी, जालसाजी, Hawala लेनदेन, नकली नोट/स्टांप बनाना, बैंक या संस्थानों से धोखाधड़ी आदि।
सज़ाएँ (Penalties):
- अगर किसी की मृत्यु हो जाए:
➤ मौत की सज़ा या उम्रकैद + कम से कम ₹10 लाख जुर्माना। - अन्य मामलों में:
➤ कम से कम 5 साल से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा + ₹5 लाख से कम नहीं जुर्माना। - अगर कोई व्यक्ति सहायता करे, साजिश रचे या कोशिश करे:
➤ कम से कम 5 साल से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा + ₹5 लाख जुर्माना। - अगर कोई सदस्य हो संगठित अपराध सिंडिकेट का:
➤ कम से कम 5 साल से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा + ₹5 लाख जुर्माना। - अगर कोई अपराधी को छुपाए/आश्रय दे:
➤ कम से कम 3 साल से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा + ₹5 लाख जुर्माना।
🔹 पति/पत्नी द्वारा छुपाने पर यह लागू नहीं होता। - अगर कोई अपराध से जुड़ी संपत्ति रखे:
➤ कम से कम 3 साल से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा + ₹2 लाख जुर्माना। - अगर किसी अपराधी के लिए अवैध संपत्ति रखे और उसका स्रोत न बता सके:
➤ कम से कम 3 साल से लेकर 10 साल तक की सज़ा + ₹1 लाख जुर्माना।
📌 याद रखने वाले Keywords:
- संगठित अपराध = लगातार + संगठित + अवैध गतिविधियाँ
- मुख्य अपराध: हत्या, जबरन वसूली, तस्करी, धोखाधड़ी आदि
- न्यूनतम सजा: 3 साल से शुरू, अधिकतम: मौत की सजा
- आर्थिक लाभ हेतु अपराध = संगठित अपराध
- दोष साबित होने पर भारी जुर्माना अनिवार्य
धारा 113 – आतंकवादी कृत्य (Terrorist Act)
1. आतंकवादी कृत्य क्या होता है?
अगर कोई व्यक्ति निम्न उद्देश्य से कोई कार्य करता है:
- भारत की एकता, अखंडता, संप्रभुता, सुरक्षा या आर्थिक सुरक्षा को धमकाने या नुकसान पहुँचाने के इरादे से
- भारत या किसी विदेशी देश के नागरिकों में आतंक फैलाने के उद्देश्य से
और वह ऐसा करता है:
(a) खतरनाक तरीकों से जैसे:
- बम, डाइनामाइट, विस्फोटक, आग लगाने वाले पदार्थ, हथियार, गैस, रसायन, जैविक/नाभिकीय/रेडियोधर्मी पदार्थ आदि का प्रयोग करके
जिससे:
- किसी की मृत्यु या चोट हो
- संपत्ति का नुकसान/नाश हो
- समाज के लिए आवश्यक सेवाएं या आपूर्ति बाधित हों
- नकली मुद्रा बनाकर आर्थिक स्थिरता को नुकसान हो
- भारत या विदेश में सरकारी/रक्षा से जुड़ी संपत्ति को नुकसान हो
(b) यदि वह किसी सरकारी अधिकारी को जान से मारने या डराने की कोशिश करे
(c) यदि वह किसी को बंधक बनाकर सरकार या संस्था को मजबूर करे कि वह कोई काम करे या न करे
👉 तो इसे आतंकवादी कृत्य कहा जाएगा।
📘 महत्वपूर्ण परिभाषाएँ (Explanation):
- Public Functionary (लोक सेवक): जैसे राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, न्यायाधीश, या केंद्र सरकार द्वारा घोषित व्यक्ति।
- Counterfeit Currency: नकली भारतीय मुद्रा, जिसकी पुष्टि किसी प्रमाणिक फोरेंसिक एजेंसी ने की हो।
2. सजा (Punishments):
🔹 अगर मौत हुई हो:
- मृत्युदंड या उम्रकैद + जुर्माना
🔹 अन्य मामलों में:
- 5 साल से लेकर उम्रकैद तक + जुर्माना अनिवार्य
3. अन्य दंडनीय कार्य:
क्र. | कार्य | सजा |
1. | साजिश रचना, कोशिश करना, उकसाना, मदद करना | 5 साल से लेकर उम्रकैद + जुर्माना |
2. | आतंकी प्रशिक्षण शिविर चलाना या भर्ती करना | 5 साल से उम्रकैद + जुर्माना |
3. | आतंकी संगठन का सदस्य होना | उम्रकैद तक + जुर्माना |
4. | आतंकवादी को छुपाना या आश्रय देना (जानबूझकर) | 3 साल से उम्रकैद + जुर्माना (पति/पत्नी को छूट) |
5. | आतंकी गतिविधियों से प्राप्त संपत्ति रखना | उम्रकैद तक + जुर्माना |
🧾 अन्य विशेष बात:
- मामला इस धारा या UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत दर्ज किया जाए या नहीं, इसका निर्णय पुलिस अधीक्षक (Superintendent of Police) करेगा।
संक्षिप्त याद करने योग्य बिंदु:
- इरादा + खतरनाक माध्यम = आतंकवादी कृत्य
- नुकसान किसी व्यक्ति, संपत्ति, सेवा, आर्थिक प्रणाली या सरकार को
- मिनिमम सजा 3 साल से शुरू, मैक्सिमम = मृत्यु दंड/उम्रकैद
- साजिश, भर्ती, मदद, संपत्ति रखना – सब दंडनीय
Offence related to Hurt
धारा 114 – चोट (Hurt)
(भारतीय दंड संहिता, सरलीकृत रूप में समझाया गया)
📚 सरल हिंदी में सारांश:
अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को शारीरिक पीड़ा (bodily pain), बीमारी (disease) या कमजोरी (infirmity) पहुँचाता है, तो उसे “चोट पहुँचाना” (hurt) कहा जाता है।
🔍 महत्वपूर्ण बातें याद रखने के लिए:
- चोट के 3 रूप होते हैं:
- शारीरिक पीड़ा (Bodily Pain) – जैसे मारना, थप्पड़ मारना।
- बीमारी फैलाना (Causing Disease) – जैसे जानबूझकर संक्रमण फैलाना।
- शारीरिक कमजोरी या अशक्तता (Infirmity) – जैसे किसी की चलने-फिरने की क्षमता को नुकसान पहुँचाना।
- किसी प्रकार का स्थायी नुकसान जरूरी नहीं है।
सिर्फ थोड़ी देर की पीड़ा या तकलीफ भी “चोट” मानी जाती है। - चोट पहुँचाने के लिए नीयत (intention) का होना जरूरी नहीं।
अगर किसी के कार्य से यह प्रभाव हुआ, तो यह चोट मानी जाएगी।
📝 याद रखने वाला सूत्र:
“शारीरिक दर्द, बीमारी या कमजोरी = चोट (Hurt)”
धारा 115 – स्वेच्छा से चोट पहुँचाना (Voluntarily Causing Hurt)
(भारतीय दंड संहिता का सरलीकृत एवं परीक्षा उपयोगी सार)
📚 सरल हिंदी में सारांश:
(1) अगर कोई व्यक्ति जान-बूझकर (intentionally) या जानते हुए (knowingly) किसी को चोट पहुँचाता है, और उससे वास्तव में चोट लगती है, तो इसे “स्वेच्छा से चोट पहुँचाना” कहा जाता है।
(2) ऐसा करने वाले व्यक्ति को, यदि वह धारा 122(1) के अपवाद में नहीं आता, तो उसे –
- 1 साल तक की कैद, या
- ₹10,000 तक का जुर्माना, या
- दोनों की सजा हो सकती है।
🔍 महत्वपूर्ण बिंदु (Highlight Points):
- स्वेच्छा से (Voluntarily) का मतलब है –
👉 नीयत से या जानबूझकर चोट पहुँचाना। - तीन शर्तें पूरी होनी चाहिए:
- कोई कार्य किया गया हो।
- कार्य करने का उद्देश्य या ज्ञान हो कि इससे चोट होगी।
- वास्तव में चोट हुई हो।
- सजा का प्रावधान:
- अधिकतम 1 वर्ष की कैद,
- अथवा ₹10,000 जुर्माना,
- या दोनों।
- धारा 122(1) का अपवाद:
यदि मामला धारा 122(1) में आता है (जैसे निजी सुरक्षा के अधिकार की सीमाओं में), तो यह धारा लागू नहीं होगी।
धारा 116 – गंभीर चोट (Grievous Hurt)
👉 परिभाषा:
धारा 116 के अनुसार, केवल कुछ विशेष प्रकार की चोटों को ही “गंभीर चोट (Grievous Hurt)” माना जाता है।
📌 प्रमुख बिंदु (Important Points):
- (a) नपुंसक बनाना (Emasculation):
किसी पुरुष को प्रजनन योग्य नहीं बनाना। - (b) आंख की रोशनी का स्थायी रूप से चले जाना:
किसी एक या दोनों आंखों की दृष्टि सदा के लिए समाप्त हो जाए। - (c) कान की सुनने की शक्ति का स्थायी रूप से समाप्त हो जाना:
किसी एक या दोनों कानों से हमेशा के लिए सुनाई न देना। - (d) किसी अंग या जोड़ का अभाव:
शरीर के किसी अंग या जोड़ को पूरी तरह खो देना। - (e) अंग या जोड़ की शक्ति का नष्ट होना या स्थायी रूप से खराब हो जाना:
हाथ, पैर आदि की कार्य क्षमता का खत्म हो जाना। - (f) सिर या चेहरे का स्थायी विकृति (Disfiguration):
चेहरे या सिर पर ऐसा स्थायी दाग या बिगाड़ जो चेहरा विकृत कर दे। - (g) हड्डी या दांत का टूटना या हट जाना (Fracture/Dislocation):
किसी हड्डी या दांत का टूट जाना या अपनी जगह से खिसक जाना। - (h) ऐसी कोई चोट जो जान के लिए खतरा बने या 15 दिनों तक गंभीर दर्द दे या सामान्य दिनचर्या में बाधा डाले:
चोट इतनी गंभीर हो कि व्यक्ति की जान को खतरा हो, उसे लगातार 15 दिनों तक अत्यधिक पीड़ा हो या वह अपने सामान्य काम न कर सके।
📝 परीक्षा के लिए याद रखने योग्य सूत्र:
“Emasculation, Eyes, Ears, Limbs, Power, Face, Fracture, Life-risk/15-day pain = Grievous Hurt (धारा 116)”
धारा 117 – जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाना (Voluntarily Causing Grievous Hurt) का सरल और संक्षिप्त हिंदी सारांश
📘 मुख्य परिभाषा:
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर ऐसी चोट पहुंचाता है जो:
- गंभीर चोट (Grievous Hurt) हो,
- और उसे ऐसा करने का इरादा हो या उसे यह ज्ञात हो कि इससे गंभीर चोट हो सकती है,
तो उसे “जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाना” कहा जाता है।
🔍 स्पष्टीकरण (Explanation):
यदि कोई व्यक्ति:
- गंभीर चोट पहुँचाता है और
- उसे जानबूझकर या संभावित रूप से ऐसा करने का ज्ञान होता है,
तभी उसे जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाने वाला माना जाएगा।
➡️ लेकिन, यदि वह एक तरह की गंभीर चोट पहुँचाने का इरादा करता है और किसी दूसरे प्रकार की गंभीर चोट पहुँचती है, तो भी वह दोषी माना जाएगा।
📌 उदाहरण (Illustration):
A, Z के चेहरे को स्थायी रूप से विकृत करने का इरादा रखता है और Z को एक घूंसा मारता है।
चेहरा विकृत नहीं होता, लेकिन Z को 15 दिन तक गंभीर शारीरिक पीड़ा होती है।
➡️ A ने जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाई मानी जाएगी।
🔒 सजा से संबंधित उपखंड:
🔹**(2) सामान्य सजा:**
यदि कोई व्यक्ति (धारा 122(2) के अपवाद को छोड़कर) जानबूझकर गंभीर चोट करता है, तो उसे:
- 7 साल तक की जेल (साधारण या कठोर) हो सकती है,
- और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
(3) यदि चोट से स्थायी विकलांगता या वेजिटेटिव स्टेट हो जाए:**
- तो कठोर कारावास 10 वर्ष से कम नहीं होगा,
- और आजीवन कारावास (प्राकृतिक जीवनकाल तक) भी हो सकता है।
(4) यदि 5 या अधिक लोग किसी व्यक्ति को उसकी जाति, धर्म, लिंग, भाषा, जन्म स्थान आदि के आधार पर गंभीर चोट पहुँचाएं:**
- तो हर सदस्य पर गंभीर चोट पहुँचाने का अपराध लगेगा,
- और सात साल तक की सजा + जुर्माना हो सकता है।
📌 याद रखने योग्य बिंदु (For Exam Revision):
बिंदु | सारांश |
✅ इरादा + गंभीर चोट | तभी “जानबूझकर गंभीर चोट” माना जाएगा |
⚖️ सजा | 7 साल + जुर्माना (सामान्य), 10 साल से आजीवन (अगर स्थायी विकलांगता हो) |
👥 भीड़ द्वारा हमला | 5 या अधिक लोग अगर समूह में चोट पहुंचाएं तो सभी दोषी |
📚 उदाहरण | चेहरा विकृत करने का प्रयास नाकाम लेकिन 15 दिन का दर्द — फिर भी अपराध सिद्ध |
धारा 118 – खतरनाक हथियारों या साधनों से जानबूझकर चोट या गंभीर चोट पहुँचाना
(Voluntarily Causing Hurt or Grievous Hurt by Dangerous Weapons or Means)
📘 सरल हिंदी सारांश (Summary in Hindi):
🔹 उपखंड (1) – जानबूझकर चोट पहुँचाना (Hurt):
अगर कोई व्यक्ति (धारा 122(1) के अपवाद को छोड़कर) किसी खतरनाक हथियार या साधन का इस्तेमाल करके जानबूझकर चोट पहुँचाता है, तो वह दंडनीय होगा।
खतरनाक हथियार/साधनों में शामिल हैं:
- गोली मारने, छुरे से चुभाने या काटने वाले उपकरण (जैसे: बंदूक, चाकू, तलवार)
- ऐसा कोई भी हथियार जो मृत्यु की संभावना उत्पन्न करे
- आग या गर्म पदार्थ
- ज़हर या जंगला पदार्थ (corrosive substance)
- विस्फोटक वस्तु
- ऐसा कोई भी पदार्थ जो शरीर के लिए हानिकारक हो अगर उसे:
- साँस से लिया जाए (inhale),
- निगला जाए (swallow), या
- खून में पहुँच जाए (inject)
- किसी जानवर का उपयोग (जैसे कुत्ते से हमला करवाना)
👉 सजा:
- 3 साल तक की जेल (साधारण या कठोर),
- या ₹20,000 तक जुर्माना,
- या दोनों।
उपखंड (2) – जानबूझकर गंभीर चोट पहुँचाना (Grievous Hurt):
अगर इन्हीं खतरनाक तरीकों से जानबूझकर गंभीर चोट पहुँचाई जाती है (धारा 122(2) को छोड़कर), तो सजा और अधिक कठोर होती है।
👉 सजा:
- आजीवन कारावास, या
- 1 वर्ष से 10 वर्ष तक की जेल (कठोर या साधारण),
- साथ में जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
📌 महत्वपूर्ण बिंदु (Highlights for Exam):
बिंदु | विवरण |
✅ अपराध | खतरनाक हथियारों/साधनों से जानबूझकर चोट या गंभीर चोट |
⚠️ साधन | आग, ज़हर, तेज़ धार हथियार, विस्फोटक, साँस/खून से हानिकारक वस्तुएँ, जानवर आदि |
👮♂️ चोट (Hurt) | 3 साल तक की जेल या ₹20,000 जुर्माना या दोनों |
🔒 गंभीर चोट (Grievous Hurt) | 1 साल से 10 साल या आजीवन कारावास + जुर्माना |
❌ अपवाद | धारा 122 के उपखंडों में वर्णित विशेष मामलों को छोड़कर |
🎯 स्मरण सूत्र (Revision Tip):
“खतरनाक हथियार + जानबूझकर चोट = जेल / ज़ुर्माना;
खतरनाक हथियार + गंभीर चोट = ज़्यादा कठोर सजा (1 साल से लेकर आजीवन)”
धारा 119 – संपत्ति की वसूली या अवैध कार्य के लिए जानबूझकर चोट या गंभीर चोट पहुँचाना
(Voluntarily causing hurt or grievous hurt to extort property, or to constrain to an illegal act)
उपखंड (1) – जानबूझकर चोट पहुँचाना (Hurt):
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर चोट पहुँचाता है इस उद्देश्य से कि:
- पीड़ित व्यक्ति या उससे संबंधित किसी व्यक्ति से संपत्ति या कीमती वस्तु (valuable security) प्राप्त की जाए,
या - पीड़ित या उससे संबंधित किसी व्यक्ति को कोई अवैध कार्य करने के लिए मजबूर किया जाए,
या - ऐसा कोई कार्य करने के लिए मजबूर किया जाए जो किसी अपराध को करने में मदद करे,
➡️ तो उसे:
👉 सज़ा:
- 10 साल तक की जेल (साधारण या कठोर),
- साथ में जुर्माना भी हो सकता है।
उपखंड (2) – जानबूझकर गंभीर चोट पहुँचाना (Grievous Hurt):
अगर ऊपर बताए गए उद्देश्य से गंभीर चोट पहुँचाई जाती है, तो सज़ा और अधिक कड़ी होगी।
👉 सज़ा:
- आजीवन कारावास,
या 10 साल तक की जेल (साधारण या कठोर), - साथ में जुर्माना।
📌 महत्वपूर्ण कानूनी बिंदु (Key Points):
स्थिति | सज़ा |
❗ चोट पहुँचाना (Extortion या अवैध काम करवाने के लिए) | 10 साल तक की जेल + जुर्माना |
❗ गंभीर चोट पहुँचाना (उसी उद्देश्य से) | आजीवन कारावास या 10 साल तक की जेल + जुर्माना |
🧠 याद रखने योग्य बात:
“अगर कोई व्यक्ति किसी से संपत्ति छीनने या उसे अपराध करने के लिए मजबूर करने के इरादे से चोट पहुँचाता है — तो यह धारा 119 के अंतर्गत अपराध है।”
धारा 120: स्वेच्छा से चोट या गंभीर चोट पहुंचाना, स्वीकारोक्ति उगलवाने या संपत्ति वापस लेने के लिए
- प्रावधान (उपधारा 1):
यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को जानबूझकर इस उद्देश्य से चोट पहुंचाता है कि:- वह पीड़ित या उससे संबंधित किसी व्यक्ति से अपराध या अनुचित आचरण की स्वीकारोक्ति करवाए, या
- कोई ऐसी जानकारी प्राप्त करे जिससे किसी अपराध का पता लगाया जा सके, या
- पीड़ित या उससे संबंधित किसी व्यक्ति को संपत्ति या मूल्यवान दस्तावेज वापस करने, दावा चुकाने, या
- ऐसी जानकारी देने के लिए मजबूर करे जिससे संपत्ति या सुरक्षा वापस मिल सके,
तो वह व्यक्ति सात वर्ष तक की सजा से दंडित किया जा सकता है, साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
- दृष्टांत (उदाहरण):
- (a) यदि एक पुलिस अधिकारी A, Z को पीटता है ताकि Z किसी अपराध को स्वीकार करे — A दोषी है।
- (b) यदि पुलिस अधिकारी A, B को इसलिए पीटता है कि B चोरी की संपत्ति कहाँ छुपाई गई है, यह बताए — A दोषी है।
- (c) यदि एक राजस्व अधिकारी A, Z को मारता है ताकि Z बकाया राजस्व चुका दे — A दोषी है।
- प्रावधान (उपधारा 2):
यदि उपरोक्त उद्देश्यों के लिए जानबूझकर गंभीर चोट (grievous hurt) पहुंचाई जाती है,
तो दोषी को दस वर्ष तक की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है।
स्मरण बिंदु:
- यह धारा शारीरिक यातना के खिलाफ है, चाहे वह पुलिस, राजस्व अधिकारी या कोई भी व्यक्ति क्यों न हो।
- चोट का उद्देश्य यदि स्वीकारोक्ति, जानकारी प्राप्त करना, या संपत्ति की वापसी से जुड़ा हो, तो यह अपराध है।
- सामान्य चोट के लिए 7 वर्ष, और गंभीर चोट के लिए 10 वर्ष तक की सजा का प्रावधान है।
धारा 121: लोक सेवक को उसका कर्तव्य निभाने से रोकने के लिए स्वेच्छा से चोट या गंभीर चोट पहुंचाना
उपधारा (1): सामान्य चोट के लिए प्रावधान
यदि कोई व्यक्ति:
- किसी लोक सेवक (public servant) को उसके कानूनी कर्तव्य के निर्वहन के दौरान जानबूझकर चोट पहुंचाता है,
या - किसी लोक सेवक को उसका कर्तव्य निभाने से रोकने या डराने के इरादे से चोट पहुंचाता है,
या - किसी लोक सेवक द्वारा कानूनी कर्तव्य के अंतर्गत किए गए किसी कार्य के परिणामस्वरूप उसे चोट पहुंचाता है,
तो ऐसे व्यक्ति को:-
- 5 वर्ष तक की कारावास, या
- जुर्माना, या
- दोनों से दंडित किया जा सकता है।
उपधारा (2): गंभीर चोट (grievous hurt) के लिए प्रावधान
यदि ऊपर दिए गए किसी भी उद्देश्य से गंभीर चोट जानबूझकर पहुंचाई जाती है,
तो दोषी को:
- न्यूनतम 1 वर्ष की सजा (अनिवार्य), और
- अधिकतम 10 वर्ष तक की सजा,
- साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
मुख्य बातें (स्मरण हेतु):
- यह धारा लोक सेवकों की सुरक्षा सुनिश्चित करती है ताकि वे अपने कार्य निर्भय होकर कर सकें।
- चोट अगर साधारण हो तो अधिकतम 5 वर्ष की सजा संभव है।
- यदि गंभीर चोट पहुंचाई जाती है, तो 1 वर्ष की अनिवार्य न्यूनतम सजा और 10 वर्ष तक की अधिकतम सजा दी जा सकती है।
- यह धारा लोक सेवकों को धमकाने, रोकने या प्रतिशोध लेने जैसे कृत्यों को अपराध मानती है।
धारा 122: उकसावे के कारण स्वेच्छा से चोट या गंभीर चोट पहुंचाना
यदि कोई व्यक्ति किसी गंभीर और अचानक उकसावे की स्थिति में स्वेच्छा से किसी को चोट पहुंचाता है, और उसका उद्देश्य या ज्ञान यह नहीं होता कि वह किसी और (उकसाने वाले के अतिरिक्त) को नुकसान पहुंचा सकता है, तो उसे अधिकतम एक माह की सजा, या ₹5000 तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। यदि इसी परिस्थिति में वह व्यक्ति गंभीर चोट पहुंचाता है, तो उसे अधिकतम पांच वर्ष की सजा, या ₹10,000 तक का जुर्माना, या दोनों दंड दिए जा सकते हैं।
यह धारा धारा 101 की अपवाद 1 के अधीन है, जिसका अर्थ है कि यह रियायत केवल तभी मिलेगी जब उकसावा अचानक और गंभीर हो तथा आरोपी का कृत्य स्वाभाविक भावनात्मक प्रतिक्रिया हो, न कि पूर्वनियोजित हिंसा। इस धारा का उद्देश्य कानून द्वारा ऐसे मामलों में मानव स्वभाव की तत्काल प्रतिक्रिया को समझते हुए सीमित दंड का प्रावधान करना है।
धारा 123: विष आदि के माध्यम से चोट पहुंचाना, अपराध करने के इरादे से
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य को जानबूझकर कोई ज़हर, नशे की दवा, बेहोश करने वाला पदार्थ, या हानिकारक वस्तु देता है या दिलवाता है, इस इरादे से कि:
- उसे चोट पहुंचाई जाए,
- कोई अपराध किया जाए या उसे करने में सहायता मिले,
या - यह जानते हुए कि इससे उस व्यक्ति को चोट पहुंच सकती है,
तो ऐसा करने वाले को अधिकतम दस वर्ष तक की सजा और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
यह धारा विशेष रूप से ऐसे मामलों पर लागू होती है जहाँ विष या अन्य रसायनों का प्रयोग जानबूझकर नुकसान पहुंचाने या अपराध को आसान बनाने के लिए किया जाता है, और यह गंभीर दंडनीय अपराध माना जाता है।
धारा 124 : एसिड आदि के उपयोग से जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाना
इस धारा के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति एसिड डालकर या पिलाकर या किसी अन्य माध्यम से जानबूझकर या यह जानते हुए कि इससे किसी व्यक्ति को गंभीर नुकसान होगा — जैसे कि शारीरिक अंगों में स्थायी या आंशिक क्षति, विकृति, जलन, अंग-भंग, विकृत रूप देना या अपंग बनाना, या किसी व्यक्ति को स्थायी रूप से अचेतावस्था (vegetative state) में पहुंचाना — तो उसे कम से कम 10 वर्ष की सजा, जो आजीवन कारावास तक बढ़ सकती है, और जुर्माना भी होगा।
यह जुर्माना उचित और पीड़ित के इलाज के खर्च को पूरा करने योग्य होना चाहिए और यह सीधा पीड़ित को ही भुगतान किया जाएगा।
यदि कोई व्यक्ति एसिड फेंकने या पिलाने की कोशिश करता है, या किसी अन्य तरीके से उपरोक्त प्रकार की चोट या विकृति पहुंचाने का प्रयास करता है, तो उसे कम से कम 5 वर्ष से लेकर 7 वर्ष तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।
व्याख्या:
- “एसिड” में वे सभी पदार्थ शामिल हैं जिनमें अम्लीय, ज्वलनशील या संक्षारक गुण होते हैं, जो शरीर पर स्थायी/अस्थायी चोट या विकृति पहुंचा सकते हैं।
- विकृति, क्षति या अचेतावस्था का स्थायी और अपरिवर्तनीय होना आवश्यक नहीं है — अस्थायी रूप भी इस धारा के अंतर्गत दंडनीय है।
यह धारा विशेष रूप से एसिड अटैक जैसे घृणित अपराधों पर सख्त नियंत्रण और पीड़ित के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाई गई है।
धारा 125: ऐसा कृत्य जिससे किसी के जीवन या व्यक्तिगत सुरक्षा को खतरा हो
यदि कोई व्यक्ति ऐसा कार्य करता है जो लापरवाही या उतावलेपन से किया गया हो और जिससे किसी व्यक्ति के जीवन या उसकी सुरक्षा को खतरा उत्पन्न होता हो, तो उसे अधिकतम 3 माह की सजा, या ₹2500 तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
लेकिन यदि:
(a) उस कार्य के कारण किसी को चोट (hurt) पहुंचती है, तो दोषी को अधिकतम 6 माह की सजा, या ₹5000 तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
(b) उस कार्य से गंभीर चोट (grievous hurt) पहुंचती है, तो दोषी को अधिकतम 3 वर्ष की सजा, या ₹10,000 तक का जुर्माना, या दोनों दंड दिए जा सकते हैं।
यह धारा ऐसे कृत्यों को दंडनीय बनाती है जो मानव जीवन और सुरक्षा के प्रति लापरवाह व्यवहार के कारण खतरनाक सिद्ध हो सकते हैं, भले ही वह जानबूझकर ना किए गए हों।
Wrongful Restraint and Wrongful Confinement
धारा 126: अनुचित निरोध (Wrongful Restraint)
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को उस दिशा में जाने से रोकता है, जहाँ वह व्यक्ति कानूनी रूप से जाने का अधिकार रखता है, तो यह अनुचित निरोध (Wrongful Restraint) कहलाता है।
अपवाद: यदि कोई व्यक्ति किसी निजी रास्ते (भूमि या जल पर) को रोकता है और उसे ईमानदारी से यह विश्वास हो कि उसे ऐसा करने का कानूनी अधिकार है, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराध नहीं माना जाएगा।
उदाहरण: यदि A, Z के उस रास्ते को रोकता है जिस पर Z को चलने का अधिकार है और A को यह विश्वास नहीं है कि उसे ऐसा करने का हक है, तो A ने Z को अनुचित रूप से रोका।
दंड: अनुचित निरोध करने वाले व्यक्ति को एक माह तक की साधारण कारावास, या ₹5000 तक का जुर्माना, या दोनों दंड दिए जा सकते हैं।
यह धारा उन स्थितियों को दंडित करती है जहाँ व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता से चलने-फिरने के अधिकार से अवैध रूप से रोका जाता है, चाहे वह थोड़े समय के लिए ही क्यों न हो।
धारा 127: अनुचित कारावास (Wrongful Confinement)
जब कोई व्यक्ति किसी अन्य को ऐसी सीमा के भीतर जबरन रोकता है, जिससे वह व्यक्ति उस सीमित क्षेत्र से बाहर न जा सके, तो उसे अनुचित कारावास कहा जाता है। उदाहरण के लिए, किसी को कमरे में बंद कर देना, या बंदूकधारियों से बाहर जाने से रोकना- ऐसे कार्य इस अपराध की श्रेणी में आते हैं।
दंड प्रावधान इस प्रकार हैं:
- सामान्य अनुचित कारावास के लिए – अधिकतम 1 वर्ष की सजा, या ₹5000 जुर्माना, या दोनों।
- यदि किसी व्यक्ति को 3 दिन या उससे अधिक समय तक बंद रखा जाए – अधिकतम 3 वर्ष की सजा, या ₹10,000 जुर्माना, या दोनों।
- यदि कारावास 10 दिन या उससे अधिक का हो – अधिकतम 5 वर्ष की सजा और कम से कम ₹10,000 जुर्माना।
- यदि किसी व्यक्ति को यह जानते हुए बंद रखा जाता है कि उसकी रिहाई के लिए अदालत द्वारा आदेश (writ) जारी हो चुका है, तो अतिरिक्त 2 वर्ष की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है।
- यदि किसी को इस तरह छिपाकर बंद किया जाए कि उसकी स्थिति या स्थान किसी रिश्तेदार, जानकार या सरकारी अधिकारी को पता न चल सके, तो अतिरिक्त 3 वर्ष की सजा और जुर्माना लगाया जाएगा।
- यदि कारावास का उद्देश्य किसी से धन, संपत्ति, सुरक्षा, या किसी अवैध कार्य के लिए दबाव बनाना हो, तो अधिकतम 3 वर्ष की सजा और जुर्माना होगा।
- यदि किसी को जबरन कैद कर उससे अपराध स्वीकार करवाना, या चोरी गई वस्तु की जानकारी लेना, या किसी संपत्ति की पुनः प्राप्ति का दबाव बनाना हो, तो भी अधिकतम 3 वर्ष की सजा और जुर्माना का प्रावधान है।
यह धारा व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करती है और जबरन बंधक बनाए जाने, धमकी देकर जानकारी या संपत्ति हड़पने जैसे कृत्यों के खिलाफ कड़ा कानूनी संरक्षण प्रदान करती है।
धारा 128 : बल (Force)
अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की गति में परिवर्तन करता है, उसे गति देता है या उसकी गति को रोकता है, तो वह “बल का प्रयोग” करता है। यही बात तब भी लागू होती है जब कोई व्यक्ति किसी वस्तु को इस प्रकार गति देता है कि वह वस्तु दूसरे व्यक्ति के शरीर, उसके पहने या उठाए गए सामान, या किसी ऐसी चीज़ से संपर्क में आती है जो उस व्यक्ति की संवेदना को प्रभावित करती है।
यह बल निम्नलिखित तीन तरीकों में से किसी एक तरीके से उत्पन्न किया गया होना चाहिए:
(a) स्वयं की शारीरिक शक्ति से,
(b) किसी वस्तु को इस प्रकार व्यवस्थित करके कि वह स्वतः गति, गति में परिवर्तन या गति की समाप्ति कर सके,
(c) किसी पशु को चलने, गति बदलने या रुकने के लिए प्रेरित करके।
इस प्रकार, बल का प्रयोग केवल प्रत्यक्ष शारीरिक संपर्क तक सीमित नहीं है, बल्कि अप्रत्यक्ष तरीकों से भी हो सकता है, यदि उसका प्रभाव व्यक्ति की संवेदना या शारीरिक स्थिति पर पड़ता है।
धारा 129 – आपराधिक बल (Criminal Force)
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर जानबूझकर बल का प्रयोग करता है, बिना उसकी सहमति के, किसी अपराध को अंजाम देने के उद्देश्य से, या इस आशय से कि उससे उस व्यक्ति को चोट पहुँचे, डर लगे या उसे कष्ट या परेशानी हो, तो वह “आपराधिक बल” का प्रयोग करता है।
इसमें केवल प्रत्यक्ष धक्का देना या मारना ही शामिल नहीं है, बल्कि यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य की गति में बदलाव लाता है (जैसे नाव को बहा देना, घोड़ों को दौड़ाना, पालकी को रोकना), या कोई वस्तु (जैसे पत्थर, पानी, जानवर आदि) इस तरह संचालित करता है कि वह दूसरे व्यक्ति से संपर्क में आती है, तो वह भी “बल” का प्रयोग है। यदि यह कार्य जानबूझकर, बिना सहमति के और किसी अपराध की मंशा से किया गया हो, तो वह “आपराधिक बल” कहलाता है।
उदाहरणों के अनुसार, नाव की रस्सी खोलना, घोड़ों को तेज दौड़ाना, पत्थर फेंकना, किसी महिला की चुन्नी खींचना, गर्म पानी से नुकसान पहुँचाना या कुत्ते को भड़काना—all इन सब परिस्थितियों में यदि ये कार्य बिना सामने वाले की सहमति से और उसे डराने, चोट पहुँचाने या परेशान करने की मंशा से किए गए हों, तो ये “आपराधिक बल” के अंतर्गत आते हैं।
धारा 130 – आक्रमण (Assault)
यदि कोई व्यक्ति ऐसा कोई इशारा या तैयारी करता है, इस आशय से या यह जानते हुए कि इससे सामने वाला व्यक्ति यह समझेगा कि उस पर आपराधिक बल प्रयोग किया जाने वाला है, तो उसे “आक्रमण” (Assault) कहा जाता है।
स्पष्टीकरण: केवल शब्दों से आक्रमण नहीं होता, लेकिन यदि कोई शब्द किसी इशारे या तैयारी को ऐसा अर्थ दे जिससे सामने वाले को भय हो कि उस पर हमला किया जाएगा, तो वह आक्रमण बन सकता है।
उदाहरण:
(a) A अगर Z की ओर मुट्ठी लहराता है ताकि Z यह माने कि A उसे मारने वाला है, तो यह आक्रमण है।
(b) A अगर एक खूंखार कुत्ते की जंजीर खोलने की कोशिश करता है जिससे Z को लगे कि कुत्ता उस पर छोड़ा जाएगा, तो यह भी आक्रमण है।
(c) यदि A डंडा उठाकर Z से कहता है “मैं तुझे मारूंगा“, तो भले ही शब्द अपने आप में आक्रमण न हों, परंतु शब्दों के साथ की गई तैयारी (डंडा उठाना) आक्रमण मानी जाएगी।
इस प्रकार, आक्रमण में शारीरिक संपर्क आवश्यक नहीं है, बल्कि सामने वाले में आपराधिक बल के आसन्न प्रयोग का डर पैदा होना ही पर्याप्त है।
धारा 131 – गंभीर उकसावे के बिना हमला या आपराधिक बल प्रयोग की सजा
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर हमला करता है या आपराधिक बल का प्रयोग करता है, और वह कार्य उस व्यक्ति द्वारा दिए गए किसी गंभीर और अचानक उकसावे के बिना किया गया हो, तो ऐसे अपराधी को तीन महीने तक की कारावास, या एक हजार रुपये तक जुर्माना, या दोनों दंड के रूप में दिए जा सकते हैं।
स्पष्टीकरण 1: कुछ स्थितियों में “गंभीर और अचानक उकसावा” दंड को कम नहीं करेगा—
(a) यदि अपराधी ने स्वयं उकसावा जानबूझकर ढूंढ़ा या उकसाने की योजना बनाई हो,
(b) यदि उकसावा किसी व्यक्ति द्वारा कानून के अनुसार या सार्वजनिक सेवक द्वारा अपनी कानूनी शक्ति का प्रयोग करते हुए दिया गया हो,
(c) यदि उकसावा किसी के वैध आत्मरक्षा के अधिकार का प्रयोग करने से उत्पन्न हुआ हो।
स्पष्टीकरण 2: यह तय करना कि उकसावा वास्तव में गंभीर और अचानक था या नहीं, तथ्यों का प्रश्न है, जिसे हर मामले में साक्ष्यों के आधार पर तय किया जाएगा।
इस प्रकार, इस धारा का उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि किसी व्यक्ति पर बल का प्रयोग केवल तभी कम दंडनीय हो सकता है जब उकसावा वास्तव में गंभीर और अचानक हो—और वह भी सीमित परिस्थितियों में।
धारा 132 – लोक सेवक को कर्तव्य पालन से रोकने हेतु हमला या आपराधिक बल प्रयोग
यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक पर हमला करता है या उस पर आपराधिक बल का प्रयोग करता है, जब वह लोक सेवक अपने कर्तव्य का पालन कर रहा हो, या उसे उसके कर्तव्य निभाने से रोकने के इरादे से, या उसके द्वारा वैध रूप से किए गए किसी कार्य के परिणामस्वरूप, तो ऐसे व्यक्ति को दो वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों दंड स्वरूप दिए जा सकते हैं।
इस धारा का उद्देश्य लोक सेवकों को उनके वैधानिक कर्तव्यों के निर्वहन के दौरान सुरक्षा प्रदान करना है, ताकि वे निर्भय होकर अपने कार्य कर सकें। लोक सेवक को डराना, धमकाना या बल प्रयोग करना, चाहे वह कर्तव्य के दौरान हो या उसके किसी वैध कार्य के कारण, एक गंभीर अपराध है।
धारा 133 – किसी व्यक्ति का अपमान करने के उद्देश्य से हमला या आपराधिक बल प्रयोग (गंभीर उकसावे के बिना)
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर हमला करता है या उस पर आपराधिक बल का प्रयोग करता है, इस उद्देश्य से कि वह व्यक्ति अपमानित हो, और यह कार्य उस व्यक्ति द्वारा दिए गए किसी गंभीर और अचानक उकसावे के बिना किया गया हो, तो ऐसे अपराधी को दो वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों दंडस्वरूप दिए जा सकते हैं।
इस धारा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति की गरिमा की रक्षा करना है। यदि कोई किसी को जानबूझकर अपमानित करने के लिए उस पर हमला करता है, और यह कार्य बिना किसी वैध या गंभीर उकसावे के किया गया हो, तो वह एक दंडनीय अपराध माना जाता है।
धारा 134 – किसी व्यक्ति द्वारा पहने या ले जाए जा रहे संपत्ति की चोरी के प्रयास में हमला या आपराधिक बल प्रयोग
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर हमला करता है या उस पर आपराधिक बल का प्रयोग करता है, उस संपत्ति की चोरी करने के प्रयास में जो उस व्यक्ति ने पहन रखी हो या वह लेकर चल रहा हो, तो ऐसे अपराधी को दो वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों दंड के रूप में दिए जा सकते हैं।
इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि व्यक्ति की व्यक्तिगत सुरक्षा और उसकी साथ ले जाई जा रही संपत्ति की रक्षा की जाए। यदि चोरी का प्रयास बल प्रयोग या हमले के साथ किया जाता है, तो अपराध अधिक गंभीर माना जाता है और विशेष दंड का प्रावधान होता है।
धारा 135 – किसी व्यक्ति को गलत तरीके से बंदी बनाने के प्रयास में हमला या आपराधिक बल प्रयोग
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को ग़लत रूप से बंदी बनाने (Wrongfully Confine) के प्रयास में उस पर हमला करता है या आपराधिक बल का प्रयोग करता है, तो उसे एक वर्ष तक की कारावास, या पाँच हज़ार रुपये तक जुर्माना, या दोनों दंड स्वरूप दिए जा सकते हैं।
इस धारा का उद्देश्य व्यक्ति की आज़ादी और स्वतंत्र आवागमन के अधिकार की रक्षा करना है। यदि कोई किसी को जबरन रोकने या सीमित करने के प्रयास में बल प्रयोग करता है, तो वह एक दंडनीय अपराध है, भले ही वास्तविक बंदीकरण न हो पाया हो।
धारा 136 – गंभीर और अचानक उकसावे पर हमला या आपराधिक बल प्रयोग
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दिए गए गंभीर और अचानक उकसावे के कारण उस पर हमला करता है या आपराधिक बल का प्रयोग करता है, तो उसे एक महीने तक की साधारण कारावास, या एक हजार रुपये तक जुर्माना, या दोनों दंड स्वरूप दिए जा सकते हैं।
स्पष्टीकरण: इस धारा में वही स्पष्टीकरण लागू होता है जो धारा 131 में दिया गया है, अर्थात:
- यदि उकसावा अपराधी ने जानबूझकर खुद पैदा किया हो,
- या उकसावा किसी लोक सेवक द्वारा उसके वैध कर्तव्य के पालन में किया गया हो,
- या वैध आत्मरक्षा में किया गया हो,
तो ऐसे मामलों में उकसावा अपराध को कम नहीं करता।
इस धारा का उद्देश्य यह मानना है कि कुछ परिस्थितियों में गंभीर और अचानक उकसावे की स्थिति में व्यक्ति के व्यवहार पर अस्थायी प्रभाव पड़ सकता है, लेकिन इसकी भी सीमा तय की गई है और सजा कम दी जाती है।
Offence relating to Kidnapping, abduction, Slavery and Forced Labour
धारा 137 – अपहरण (Kidnapping)
(1) अपहरण दो प्रकार का होता है:
(a) भारत से अपहरण: यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य को भारत की सीमाओं से बाहर ले जाता है, उसकी या उसके कानूनी रूप से अधिकृत व्यक्ति की अनुमति के बिना, तो यह भारत से अपहरण कहलाता है।
(b) वैध संरक्षक से अपहरण: यदि कोई व्यक्ति किसी बालक या मंदबुद्धि व्यक्ति को उसके वैध संरक्षक की अनुमति के बिना उसके संरक्षण से ले जाता है या बहला-फुसलाकर ले जाता है, तो यह वैध संरक्षक से अपहरण कहलाता है।
व्याख्या: “वैध संरक्षक” में वह कोई भी व्यक्ति शामिल है जिसे कानूनन उस बालक या मंदबुद्धि व्यक्ति की देखभाल या निगरानी का दायित्व सौंपा गया हो।
अपवाद: यदि कोई व्यक्ति सच्ची नीयत (good faith) से स्वयं को अवैध संतान का पिता मानता है, या यह विश्वास करता है कि वह बच्चे की वैध अभिरक्षा (custody) पाने का अधिकारी है, तो जब तक उसका कार्य अनैतिक या अवैध उद्देश्य से न किया गया हो, वह अपहरण की श्रेणी में नहीं आएगा।
(2) दंड: जो कोई किसी व्यक्ति का भारत से या वैध संरक्षक से अपहरण करता है, उसे सात वर्ष तक की कारावास और जुर्माना – दोनों का दंड दिया जा सकता है।
सारांश: इस धारा के अनुसार, बिना सहमति किसी व्यक्ति को भारत से बाहर ले जाना या किसी बालक/मंदबुद्धि व्यक्ति को उसके संरक्षक से दूर ले जाना अपहरण है, जो एक गंभीर अपराध है और इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान है।
धारा 138 – अपहरण (Abduction)
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य को बलपूर्वक मजबूर करता है या धोखे से बहला-फुसलाकर उसे किसी स्थान से ले जाने के लिए प्रेरित करता है, तो इसे अपहरण कहा जाता है। इसमें व्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन होता है, और यह कार्य शारीरिक बल या कपटपूर्ण उपायों के माध्यम से किया जाता है।
यह धारा यह स्पष्ट करती है कि अपहरण केवल किसी को किसी स्थान से हटाने की प्रक्रिया को दर्शाता है, न कि उसे रखने या छुपाने को। यह अपराध तब माना जाता है जब ले जाने की क्रिया जबरन या धोखे से की गई हो, भले ही उसका उद्देश्य कुछ भी हो। यह प्रावधान विशेष रूप से तब महत्त्वपूर्ण हो जाता है जब इसका उपयोग अन्य गंभीर अपराधों जैसे बलात्कार, हत्या या बंधक बनाने के साथ किया जाता है।
धारा 139 – भिक्षावृत्ति के उद्देश्य से बच्चे का अपहरण या अंग-भंग (Kidnapping or maiming a child for purposes of begging)
इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे का अपहरण करता है, या बिना वैध संरक्षक हुए उसकी अभिरक्षा प्राप्त करता है, ताकि उस बच्चे का भिक्षावृत्ति (begging) के लिए उपयोग किया जा सके, तो उसे न्यूनतम 10 वर्ष की कठोर कारावास दी जाएगी, जो आजीवन कारावास तक बढ़ सकती है, और साथ ही जुर्माना भी लगेगा।
यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे को भिक्षावृत्ति के लिए अंग-भंग (maim) करता है, तो उसे न्यूनतम 20 वर्ष की कारावास होगी, जो उसके शेष जीवन तक की आजीवन कारावास हो सकती है, और साथ ही जुर्माना भी लगेगा।
यदि कोई व्यक्ति (जो बच्चे का वैध संरक्षक नहीं है) किसी बच्चे को भिक्षावृत्ति में लगाता है, तो यह माना जाएगा कि उसने बच्चे का अपहरण किया या अभिरक्षा प्राप्त की, जब तक कि वह इसके विपरीत सिद्ध न कर दे।
“भिक्षावृत्ति” (Begging) में शामिल हैं:
- सार्वजनिक स्थान पर गाना, नाचना, भविष्य बताना, वस्तुएं बेचना आदि के बहाने से भीख माँगना,
- किसी निजी स्थान में जाकर भीख माँगना,
- शरीर या जानवर के घाव, विकृति, या बीमारी दिखाकर दया की भीख लेना,
- बच्चे को दिखाकर भीख माँगना।
निष्कर्ष: यह धारा बच्चों को भिक्षा माफिया व शोषण से बचाने के लिए अत्यंत कठोर दंड का प्रावधान करती है, विशेषकर जब बच्चों का शारीरिक नुकसान किया जाता है या उनका उपयोग भीख माँगने के लिए किया जाता है।
धारा 140: हत्या, फिरौती आदि उद्देश्यों से अपहरण या अगवा करने का अपराध
जो कोई किसी व्यक्ति का अपहरण या अगवा इस उद्देश्य से करता है कि उसकी हत्या की जाए या उसे ऐसी स्थिति में डाला जाए जिससे उसकी हत्या की संभावना हो, उसे आजीवन कारावास या अधिकतम 10 वर्ष का कठोर कारावास और जुर्माना हो सकता है। उदाहरण के लिए, अगर कोई किसी व्यक्ति को मूर्ति की बलि चढ़ाने हेतु या हत्या के लिए उसके घर से ले जाता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।
यदि कोई व्यक्ति अपहरण के बाद उस व्यक्ति को बंदी बनाकर रखता है और उसे मौत या चोट पहुंचाने की धमकी देता है या ऐसा व्यवहार करता है जिससे मृत्यु या चोट की आशंका उत्पन्न हो, या वास्तव में उसे चोट या मृत्यु पहुंचाकर सरकार, विदेशी राज्य, अंतरराष्ट्रीय संस्था या अन्य किसी व्यक्ति से कोई कार्य करवाने, रुकवाने या फिरौती की मांग करता है, तो ऐसे अपराध के लिए मृत्यु दंड या आजीवन कारावास और जुर्माने का प्रावधान है।
इसके अलावा, यदि अपहरण इस उद्देश्य से किया गया हो कि व्यक्ति को गुप्त और अवैध रूप से बंदी बनाकर रखा जाए, तो दोषी को अधिकतम 7 वर्ष का कारावास और जुर्माना हो सकता है। वहीं, यदि अपहरण किसी व्यक्ति को गंभीर चोट, गुलामी, या अप्राकृतिक यौन शोषण की स्थिति में डालने के इरादे से किया गया हो या ऐसा होने की संभावना जानते हुए किया गया हो, तो दोषी को अधिकतम 10 वर्ष का कारावास और जुर्माना हो सकता है।
यह धारा अपहरण से जुड़े गंभीर अपराधों को उनकी मंशा और परिणाम के आधार पर वर्गीकृत करती है और उनके लिए कठोर दंड निर्धारित करती है।
धारा 141: विदेशी देश से लड़की या लड़के का भारत में आयात
जो कोई भी किसी 21 वर्ष से कम आयु की लड़की या 18 वर्ष से कम आयु के लड़के को विदेश से भारत में इस नीयत से लाता है कि उस लड़की या लड़के को किसी अन्य व्यक्ति के साथ अवैध यौन संबंध के लिए मजबूर किया जाए या बहकाया जाए, या यह जानते हुए कि ऐसा हो सकता है, तो वह व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा। ऐसे अपराध के लिए अधिकतम 10 वर्ष तक का कारावास और जुर्माना का प्रावधान है।
यह धारा बच्चों की तस्करी और यौन शोषण जैसे गंभीर अपराधों को रोकने हेतु बनाई गई है और इसमें नीयत और संभावित परिणाम दोनों को ध्यान में रखा गया है।
धारा 142: अपहृत या अगवा किए गए व्यक्ति को गलत तरीके से छिपाना या कैद में रखना
जो कोई यह जानते हुए कि किसी व्यक्ति का अपहरण या अगवा किया गया है, उस व्यक्ति को ग़लत तरीके से छिपाता है या बंदी बनाकर रखता है, तो उसे उसी प्रकार दंडित किया जाएगा मानो उसने स्वयं उस व्यक्ति का अपहरण या अगवा उसी उद्देश्य या जानकारी के साथ किया हो, जिस उद्देश्य या जानकारी के साथ उसने उसे छिपाया या कैद में रखा है।
इस धारा का उद्देश्य अपहृत या अगवा व्यक्तियों को छिपाने वालों को सह-अपराधी मानकर समान दंड देना है, जिससे अपराधियों को शरण देने या उनके अपराध में भागीदारी करने से रोका जा सके।
धारा 143: मानव तस्करी का अपराध
जो कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को शोषण के उद्देश्य से धमकी, बल प्रयोग, अपहरण, धोखा, शक्ति का दुरुपयोग, या लाभ/भुगतान देकर भर्ती करता है, ले जाता है, आश्रय देता है, स्थानांतरित करता है या प्राप्त करता है, वह “मानव तस्करी” का दोषी होता है। “शोषण” में शारीरिक और यौन शोषण, गुलामी या गुलामी जैसी प्रथाएं, बंधुआ मजदूरी, भिक्षावृत्ति, या जबरन अंग निकासी शामिल हैं। पीड़ित की सहमति इस अपराध के निर्धारण में अप्रासंगिक मानी जाती है।
इस अपराध के लिए न्यूनतम 7 वर्ष की कठोर कारावास तथा अधिकतम 10 वर्ष की सजा और जुर्माना निर्धारित है। यदि एक से अधिक व्यक्ति की तस्करी की जाती है तो सजा 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक बढ़ सकती है। बच्चों की तस्करी की स्थिति में न्यूनतम 10 वर्ष की सजा और अधिकतम आजीवन कारावास है; यदि एक से अधिक बच्चों की तस्करी हो, तो न्यूनतम 14 वर्ष की सजा लागू होगी। यदि कोई व्यक्ति बाल तस्करी के अपराध में एक से अधिक बार दोषी पाया गया, तो उसे शेष जीवनकाल तक जेल में रहना होगा। यदि कोई सरकारी कर्मचारी या पुलिसकर्मी इस अपराध में शामिल हो, तो उसे भी शेष जीवन के लिए कारावास और जुर्माना भुगतना होगा।
धारा 144: तस्करी किए गए व्यक्ति का शोषण
यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए या ऐसा मानने का पर्याप्त कारण होने पर कि किसी बच्चे की तस्करी की गई है, उस बच्चे का किसी भी रूप में यौन शोषण करता है, तो उसे कम से कम 5 वर्ष की कठोर कारावास की सजा होगी, जिसे 10 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, साथ ही जुर्माना भी लगेगा।
इसी प्रकार, यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए या ऐसा मानने का कारण होने पर कि किसी व्यक्ति (बालक नहीं) की तस्करी की गई है, उसका यौन शोषण करता है, तो उसे कम से कम 3 वर्ष की कठोर कारावास की सजा होगी, जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, और उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा।
यह धारा तस्करी के शिकार व्यक्तियों के शोषण को रोकने के लिए कड़ी सजा का प्रावधान करती है।
धारा 145: गुलामों का आदतन लेन-देन करना
जो कोई व्यक्ति बार-बार गुलामों का आयात, निर्यात, स्थानांतरण, खरीद, बिक्री, तस्करी या किसी भी रूप में लेन-देन करता है, वह इस अपराध का दोषी माना जाएगा। ऐसे व्यक्ति को आजीवन कारावास या अधिकतम 10 वर्ष तक के साधारण या कठोर कारावास की सजा दी जा सकती है, साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
यह धारा गुलामी जैसी अमानवीय प्रथा के बार-बार किए जाने वाले अपराध पर कठोर दंड का प्रावधान करती है।
धारा 146: अवैध रूप से जबरन श्रम कराना
जो कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति को उसकी इच्छा के विरुद्ध जबरन श्रम करने के लिए बाध्य करता है, वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा। ऐसे व्यक्ति को अधिकतम एक वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
यह धारा व्यक्ति की स्वतंत्रता और श्रम के अधिकार की रक्षा हेतु अवैध और जबरन कराए गए श्रम के विरुद्ध कानूनी सुरक्षा प्रदान करती है।
CHAPTER VII
OFFENCES AGAINST STATE
धारा 147: भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ना, उसका प्रयास करना या उसमें सहायता देना
जो कोई भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ता है, या ऐसा युद्ध छेड़ने का प्रयास करता है, या उसमें सहयोग करता है, वह इस धारा के अंतर्गत गंभीर अपराध का दोषी है। ऐसे व्यक्ति को मृत्युदंड या आजन्म कारावास की सजा दी जा सकती है, और उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
उदाहरण:
यदि ‘A’ भारत सरकार के विरुद्ध किसी विद्रोह में शामिल होता है, तो वह इस धारा के तहत युद्ध छेड़ने का अपराध करता है।
यह धारा राष्ट्र की संप्रभुता और सुरक्षा के विरुद्ध किसी भी प्रकार की सशस्त्र कार्रवाई को रोकने हेतु कठोर दंड का प्रावधान करती है।
धारा 148: भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध संबंधी अपराधों की साजिश
जो कोई भारत के भीतर या बाहर रहते हुए धारा 147 (भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध) के तहत दंडनीय अपराधों की साजिश करता है, या आपराधिक बल या उसके प्रदर्शन के माध्यम से केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार को डराने (overawe) की साजिश करता है, वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।
ऐसे अपराध के लिए आजीवन कारावास या अधिकतम 10 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास, और जुर्माना लगाया जा सकता है।
व्याख्या:
इस धारा के अंतर्गत साजिश साबित करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि कोई कार्य या अवैध चूक वास्तव में की गई हो। केवल साजिश पर्याप्त है।
यह प्रावधान देश की सुरक्षा और सरकार की स्वतंत्र कार्यप्रणाली के विरुद्ध साजिशों को रोकने हेतु बनाया गया है।
धारा 149: भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध करने के उद्देश्य से हथियार आदि एकत्र करना
जो कोई व्यक्ति भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने के इरादे से लोगों, हथियारों या गोलाबारूद को एकत्र करता है, या किसी भी प्रकार से युद्ध के लिए तैयारी करता है, वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को आजीवन कारावास या अधिकतम 10 वर्ष तक के साधारण या कठोर कारावास, और जुर्माना से दंडित किया जा सकता है।
यह प्रावधान राष्ट्र की सुरक्षा के विरुद्ध किसी भी प्रकार की सशस्त्र तैयारी को रोकने के लिए कठोर दंड निर्धारित करता है।
धारा 150: भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध की योजना छुपाना
जो कोई व्यक्ति किसी कार्य द्वारा या किसी अवैध चूक के माध्यम से यह छुपाता है कि भारत सरकार के विरुद्ध युद्ध छेड़ने की कोई योजना है, और ऐसा छुपाना या तो जानबूझकर युद्ध को आसान बनाने के इरादे से करता है, या यह जानते हुए करता है कि ऐसा छुपाना युद्ध छेड़ने को संभव बना सकता है — वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी होगा।
इस अपराध के लिए अधिकतम 10 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास और जुर्माना का प्रावधान है।
यह धारा राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों की किसी भी जानकारी को जानबूझकर छुपाने को गंभीर अपराध मानती है और उसे रोकने हेतु दंड निर्धारित करती है।
धारा 151: राष्ट्रपति या राज्यपाल पर वैध अधिकार के प्रयोग को बाधित करने हेतु हमला करना
यदि कोई व्यक्ति भारत के राष्ट्रपति या किसी राज्य के राज्यपाल को यह बाध्य करने या प्रेरित करने के उद्देश्य से कि वे अपने वैध अधिकारों का प्रयोग करें या न करें — उन पर हमला करता है, उन्हें ग़लत तरीके से रोके रखता है, या अपराध करने की धमकी या बल के माध्यम से उन्हें डराता है या डराने का प्रयास करता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे अपराध के लिए अधिकतम 7 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास और जुर्माना का प्रावधान है।
यह प्रावधान राष्ट्र के शीर्ष संवैधानिक पदों की गरिमा और स्वतंत्र कार्यक्षमता की रक्षा के लिए बनाया गया है।
धारा 152: भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाला कार्य
जो कोई व्यक्ति जानबूझकर या उद्देश्यपूर्वक किसी भी माध्यम से — जैसे बोले गए या लिखित शब्दों, संकेतों, दृश्य प्रस्तुति, इलेक्ट्रॉनिक संचार या वित्तीय साधनों द्वारा — भारत में देशद्रोह, सशस्त्र विद्रोह, विघटनकारी गतिविधियाँ भड़काता है या भड़काने का प्रयास करता है, या अलगाववादी भावना को बढ़ावा देता है, अथवा भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालता है, वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे अपराध के लिए आजीवन कारावास या अधिकतम 7 वर्ष का कारावास, और जुर्माना का प्रावधान है।
व्याख्या: यदि कोई व्यक्ति सरकारी नीतियों या प्रशासनिक कार्यों की आलोचना इस उद्देश्य से करता है कि उन्हें कानूनी तरीकों से बदला जाए, और उसमें उपर्युक्त देशविरोधी गतिविधियों को भड़काने का प्रयास न हो – तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराध नहीं माना जाएगा।
यह धारा राष्ट्र की अखंडता की रक्षा हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है, और देशविरोधी विचारधारा के प्रचार को रोकने के लिए कठोर दंड का प्रावधान करती है।
धारा 153: भारत सरकार के साथ शांतिपूर्ण संबंध रखने वाले किसी विदेशी राष्ट्र के विरुद्ध युद्ध छेड़ना
जो कोई व्यक्ति ऐसे किसी विदेशी राज्य, जो भारत के साथ शांतिपूर्ण संबंध में है, के विरुद्ध युद्ध छेड़ता है, या ऐसा युद्ध छेड़ने का प्रयास करता है, या उसमें सहायता करता है, वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को आजीवन कारावास (जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकता है), या अधिकतम 7 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास (जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकता है), या केवल जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
यह धारा भारत की विदेशी नीति और अंतरराष्ट्रीय संबंधों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए बनाई गई है, जिससे मित्र देशों के साथ शांति बनी रहे।
धारा 154: भारत के साथ शांतिपूर्ण संबंध रखने वाले किसी विदेशी राज्य की सीमा में लूटपाट करना
जो कोई व्यक्ति किसी ऐसे विदेशी राज्य, जो भारत के साथ शांति में है, की सीमा में जाकर लूटपाट करता है या लूटपाट की तैयारी करता है, वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी होगा।
ऐसे व्यक्ति को अधिकतम 7 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास, जुर्माना, और साथ ही वह संपत्ति जब्त की जा सकती है जो इस अपराध में प्रयोग की गई हो, या लूटपाट से प्राप्त हुई हो।
यह धारा अंतरराष्ट्रीय कानून, भारत की विदेश नीति और शांतिपूर्ण राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है।
धारा 155 : युद्ध या लूटपाट से प्राप्त संपत्ति को जानबूझकर ग्रहण करना (धारा 153 और 154 से संबंधित)
जो कोई व्यक्ति यह जानते हुए कि कोई संपत्ति धारा 153 (विदेशी राष्ट्र के विरुद्ध युद्ध) या धारा 154 (विदेशी राष्ट्र की सीमा में लूटपाट) में किए गए अपराध के दौरान प्राप्त की गई है, उस संपत्ति को प्राप्त करता है, वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को अधिकतम 7 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास, जुर्माना, और उस संपत्ति की जब्ती (forfeiture) का दंड दिया जा सकता है।
यह प्रावधान युद्ध या लूटपाट से जुड़ी आपराधिक संपत्ति के लेन-देन को रोकने के लिए बनाया गया है, ताकि ऐसे अपराधों को प्रोत्साहन न मिले।
धारा 156: राज्य या युद्ध बंदी को जानबूझकर भगाने वाला लोक सेवक
जो कोई व्यक्ति लोक सेवक होते हुए, किसी राज्य बंदी या युद्ध बंदी की हिरासत में ज़िम्मेदारी रखते हुए, उसे जानबूझकर भागने देता है, वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे लोक सेवक को आजीवन कारावास या अधिकतम 10 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास, और जुर्माना से दंडित किया जा सकता है।
यह धारा राष्ट्र की सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रिया की गंभीरता को सुनिश्चित करने हेतु सरकारी अधिकारियों पर विशेष उत्तरदायित्व निर्धारित करती है।
धारा 157: लोक सेवक द्वारा लापरवाहीवश राज्य या युद्ध बंदी को भागने देना
यदि कोई लोक सेवक, जो किसी राज्य बंदी या युद्ध बंदी की हिरासत का उत्तरदायी है, अपनी लापरवाही के कारण उस बंदी को क़ैद से भाग जाने देता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।
इस अपराध के लिए अधिकतम 3 वर्ष तक का साधारण कारावास और जुर्माना का प्रावधान है।
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि बंदियों की सुरक्षा में लापरवाही करने वाले सरकारी कर्मचारी भी उत्तरदायी हों और उन पर आवश्यक कानूनी कार्रवाई हो सके।
धारा 158: राज्य या युद्ध बंदी को भगाने में सहायता, बचाने या छिपाने का अपराध
जो कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी राज्य बंदी या युद्ध बंदी को क़ानूनी हिरासत से भागने में सहायता करता है, या उसे छुड़ाता है अथवा छुड़ाने का प्रयास करता है, या ऐसे बंदी को छिपाता या शरण देता है, अथवा उसकी पुनः गिरफ्तारी में बाधा डालता है या उसका प्रयास करता है, वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे अपराध के लिए आजीवन कारावास, या अधिकतम 10 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास, और जुर्माना का प्रावधान है।
व्याख्या: यदि कोई राज्य या युद्ध बंदी, जिसे सीमित क्षेत्र में परोल (parole) पर छोड़ा गया है, उन सीमाओं को लांघता है, तो उसे क़ानूनी हिरासत से फरार माना जाएगा।
यह धारा राज्य की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए गंभीर सजा का प्रावधान करती है।
CHAPTER-VIII
OFFENCES RELATED TO THE ARMY, NAVY, AIR FORCE
धारा 159: विद्रोह के लिए उकसाना या सैनिक, नाविक या वायुसैनिक को कर्तव्य से भटकाने का प्रयास
जो कोई व्यक्ति भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना में कार्यरत किसी अधिकारी, सैनिक, नाविक या वायुसैनिक को विद्रोह (mutiny) के लिए उकसाता है, या उसे उसकी निष्ठा या कर्तव्य से भटकाने का प्रयास करता है, वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी होगा।
ऐसे अपराध के लिए आजीवन कारावास या अधिकतम 10 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास, और जुर्माना का प्रावधान है।
यह प्रावधान सैन्य अनुशासन और राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है, ताकि सैन्यबलों की निष्ठा और कार्यक्षमता प्रभावित न हो ।
धारा 160: विद्रोह में सहायताकारी (उकसाने) पर यदि विद्रोह हो जाए तो दंड
जो कोई व्यक्ति भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना में कार्यरत किसी अधिकारी, सैनिक, नाविक या वायुसैनिक द्वारा विद्रोह (mutiny) करने के लिए उकसाता है, और यदि उस उकसावे के परिणामस्वरूप वास्तव में विद्रोह हो जाता है, तो वह व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत गंभीर अपराध का दोषी होगा।
ऐसे अपराध के लिए मृत्युदंड, या आजीवन कारावास, या अधिकतम 10 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास, और जुर्माना का प्रावधान है।
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि सैन्य विद्रोह जैसे अत्यंत गंभीर अपराध में उकसावे की भूमिका निभाने वाले व्यक्ति को कड़ा दंड मिले, जिससे देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य अनुशासन बना रहे।
धारा 161: कर्तव्यरत वरिष्ठ अधिकारी पर सैनिक, नाविक या वायुसैनिक द्वारा हमले के लिए उकसाना
यदि कोई व्यक्ति भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी अधिकारी, सैनिक, नाविक या वायुसैनिक द्वारा कर्तव्य पालन कर रहे उसके वरिष्ठ अधिकारी पर हमला करने के लिए उकसाता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को अधिकतम 3 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास, और जुर्माना से दंडित किया जा सकता है।
यह प्रावधान सैन्य बलों में अनुशासन और वरिष्ठता की गरिमा बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
धारा 162: वरिष्ठ अधिकारी पर हमले के लिए उकसाना, यदि हमला हो जाए
यदि कोई व्यक्ति भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी सैनिक, नाविक या वायुसैनिक द्वारा कर्तव्यरत वरिष्ठ अधिकारी पर हमला करने के लिए उकसाता है, और उस उकसावे के परिणामस्वरूप वास्तव में हमला हो जाता है, तो वह व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत और अधिक गंभीर अपराध का दोषी होगा।
ऐसे अपराध के लिए अधिकतम 7 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास, और जुर्माना का प्रावधान है।
यह कानून यह सुनिश्चित करता है कि यदि उकसावे का वास्तविक हिंसात्मक परिणाम सामने आता है, तो उकसाने वाले को भी गंभीर दंड भुगतना पड़े।
धारा 163: सैनिक, नाविक या वायुसैनिक के पलायन (desertion) के लिए उकसाना
जो कोई व्यक्ति भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी अधिकारी, सैनिक, नाविक या वायुसैनिक को पलायन (desertion) के लिए उकसाता है, वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को अधिकतम 2 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
यह प्रावधान सैन्य बलों में कर्तव्यपरायणता बनाए रखने और अनुशासन भंग करने वाले कृत्यों को हतोत्साहित करने के लिए लागू किया गया है।
धारा 164: पलायन करने वाले सैनिक, नाविक या वायुसैनिक को आश्रय देना
यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना का कोई अधिकारी, सैनिक, नाविक या वायुसैनिक पलायन (desertion) कर चुका है, उसे आश्रय देता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को अधिकतम 2 वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
अपवाद: यदि आश्रय पलायन करने वाले की पत्नी या पति द्वारा दिया गया हो, तो यह अपराध नहीं माना जाएगा।
यह प्रावधान सैन्य पलायन को हतोत्साहित करने और ऐसे व्यक्तियों को संरक्षण देने वालों पर कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए लागू किया गया है।
धारा 165: व्यापारी जहाज पर पलायनकर्ता का छिपा होना – जहाज के प्रभारी की लापरवाही
यदि भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना का कोई पलायनकर्ता (deserter) किसी व्यापारी जहाज (merchant vessel) पर छिपा होता है, और उस जहाज का मास्टर या प्रभारी व्यक्ति उस छिपने की बात से अनभिज्ञ होता है, फिर भी यदि वह यह जान सकता था परंतु उसने अपने कर्तव्यों में लापरवाही बरती या जहाज पर अनुशासन की कमी के कारण ऐसा हुआ, तो उसे अधिकतम ₹3000 तक के दंड से दंडित किया जा सकता है।
यह प्रावधान जहाज के प्रभारियों को सतर्क रहने और पलायनकर्ताओं को अशासकीय मदद न मिलने देने के उद्देश्य से बनाया गया है।
धारा 166: सैनिक, नाविक या वायुसैनिक द्वारा आदेश अवज्ञा (insubordination) के कार्य में उकसाना
जो कोई व्यक्ति यह जानते हुए कि वह जिस कार्य के लिए उकसा रहा है वह भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी अधिकारी, सैनिक, नाविक या वायुसैनिक द्वारा किया गया आदेश की अवज्ञा (insubordination) का कार्य है, और यदि उस उकसावे के परिणामस्वरूप ऐसा कार्य किया जाता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को अधिकतम दो वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
यह प्रावधान सेना में अनुशासन और आज्ञापालन सुनिश्चित करने हेतु बनाया गया है।
धारा 167: कुछ अधिनियमों के अधीन व्यक्तियों पर यह संहिता लागू नहीं होगी
जो व्यक्ति वायुसेना अधिनियम, 1950, सेना अधिनियम, 1950, या नौसेना अधिनियम, 1957 के अधीन हैं, उन पर इस अध्याय में परिभाषित किसी भी अपराध के लिए इस संहिता (दंड संहिता) के तहत दंड लागू नहीं होगा।
अर्थात्, ऐसे सैन्यकर्मी जो उपरोक्त विशेष सैन्य कानूनों के अधीन हैं, उन पर उन्हीं अधिनियमों के अंतर्गत कार्रवाई की जाएगी, इस संहिता के अंतर्गत नहीं।
यह प्रावधान सशस्त्र बलों के भीतर अनुशासन और दंड प्रक्रिया की स्वतंत्रता और विशिष्टता को बनाए रखने के उद्देश्य से है।
धारा 168: सैनिक, नाविक या वायुसैनिक की वेशभूषा पहनना या प्रतीक चिह्न धारण करना
जो कोई व्यक्ति, जो भारत सरकार की सेना, नौसेना या वायुसेना में सैनिक, नाविक या वायुसैनिक नहीं है, वह यदि इस मंशा से उनकी वेशभूषा पहनता है या उनसे मिलता-जुलता कोई प्रतीक चिह्न धारण करता है कि लोग उसे ऐसा सैनिक, नाविक या वायुसैनिक मान लें, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को अधिकतम तीन माह का साधारण या कठोर कारावास, या दो हजार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
यह प्रावधान सुरक्षा बलों की पहचान की गंभीरता बनाए रखने और झूठे प्रतिनिधित्व को रोकने के लिए लागू किया गया है।
CHAPTER – IX
OFFENCE RELATED TO ELECTIONS
धारा 169: अभ्यर्थी और निर्वाचन अधिकार की परिभाषा
इस अध्याय के उद्देश्यों के लिए:
(a) “अभ्यर्थी” (Candidate) वह व्यक्ति है जिसे किसी चुनाव में प्रत्याशी के रूप में नामित किया गया हो।
(b) “निर्वाचन अधिकार” (Electoral Right) से तात्पर्य है —
किसी व्यक्ति का अधिकार कि वह:
- चुनाव में प्रत्याशी बने या न बने,
- प्रत्याशी बनने से नाम वापस ले,
- या मतदान करे या न करे।
यह धारा चुनाव संबंधी अपराधों को समझने और परिभाषित करने के लिए मूलभूत शब्दों की स्पष्टता प्रदान करती है।
धारा 170: रिश्वतखोरी (Bribery)
जो कोई भी व्यक्ति किसी अन्य को चुनावी अधिकार (जैसे वोट देना या न देना, चुनाव लड़ना आदि) के प्रयोग के लिए प्रेरित करने या इसके बदले में उसे पुरस्कार स्वरूप कोई प्रलोभन (gratification) देता है, या स्वयं किसी ऐसे प्रलोभन को स्वीकार करता है, वह रिश्वतखोरी का अपराध करता है। इसमें यह भी शामिल है कि अगर कोई व्यक्ति किसी अन्य के लिए यह प्रलोभन देता है या उसे प्राप्त करने की कोशिश करता है, तो वह भी अपराध माना जाएगा।
यह स्पष्ट किया गया है कि यदि कोई व्यक्ति सार्वजनिक नीति की घोषणा करता है या लोकहित में कोई वादा करता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराध नहीं माना जाएगा। साथ ही, अगर कोई व्यक्ति रिश्वत इस मंशा से लेता है कि वह कुछ करेगा, लेकिन करने का इरादा नहीं रखता, तो उसे भी रिश्वत स्वीकार करने वाला माना जाएगा।
इस प्रकार, यह धारा चुनाव प्रक्रिया को निष्पक्ष और भ्रष्टाचार-मुक्त बनाए रखने के लिए कठोर प्रावधान करती है।
धारा 171: चुनावों में अनुचित प्रभाव (Undue Influence at Elections)
यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से किसी अन्य के चुनावी अधिकार के स्वतंत्र प्रयोग में हस्तक्षेप करता है या हस्तक्षेप करने का प्रयास करता है, तो वह चुनाव में अनुचित प्रभाव डालने का अपराध करता है ।
विशेष रूप से, यदि कोई व्यक्ति—
- किसी उम्मीदवार या मतदाता (या उनके करीबी व्यक्ति) को किसी प्रकार की क्षति की धमकी देता है, या
- यह विश्वास दिलाने का प्रयास करता है कि वह या उसका करीबी व्यक्ति ईश्वर के क्रोध या आध्यात्मिक दंड का पात्र बनेगा,
तो उसे इस धारा के अंतर्गत मतदान के अधिकार में अनुचित हस्तक्षेप माना जाएगा।
हालांकि, यदि कोई व्यक्ति केवल सार्वजनिक नीति की घोषणा, लोक-हित का वादा करता है या कानूनी अधिकार का प्रयोग करता है—बिना चुनावी अधिकार में हस्तक्षेप की मंशा के—तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराध नहीं होगा।
यह प्रावधान मतदाता की स्वतंत्रता और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने हेतु महत्वपूर्ण है।
धारा 172: चुनाव में प्रतिरूपण (Personation) का सारांश (हिंदी में)
यदि कोई व्यक्ति चुनाव में :-
- किसी अन्य व्यक्ति के नाम से (चाहे वह जीवित हो या मृत) या किसी काल्पनिक नाम से मतदान पत्र प्राप्त करता है या वोट डालता है,
- या एक बार मतदान करने के बाद फिर से अपने ही नाम से वोट मांगता है,
- या इस प्रकार के झूठे मतदान को उकसाता, कराता या करवाने की कोशिश करता है,
तो वह चुनाव में प्रतिरूपण (Personation) का अपराध करता है।
अपवाद: यदि कोई व्यक्ति विधिसम्मत तरीके से किसी मतदाता का प्रॉक्सी (प्रतिनिधि) बनकर अधिकृत है और उसी मतदाता के लिए वोट डालता है, तो उस पर यह धारा लागू नहीं होगी।
यह प्रावधान चुनावी प्रक्रिया की सत्यता और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
धारा 173: रिश्वतखोरी के लिए दंड (Punishment for Bribery)
जो कोई रिश्वतखोरी (bribery) का अपराध करता है, उसे अधिकतम एक वर्ष तक का कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
परंतु, यदि रिश्वतखोरी “ट्रीटिंग” (treating) के रूप में की जाती है, तो उस स्थिति में केवल जुर्माना लगाया जाएगा।
व्याख्या: “ट्रीटिंग” का अर्थ है ऐसा रिश्वत देना जिसमें भोजन, पेय, मनोरंजन या अन्य प्रकार की मेहमाननवाज़ी शामिल हो।
यह प्रावधान चुनावी ईमानदारी बनाए रखने हेतु मतदाताओं को प्रभावित करने वाले प्रलोभनों को रोकने के लिए लागू किया गया है।
धारा 174: चुनाव में अनुचित प्रभाव या व्यक्ति-सज्जा (Personation) के लिए दंड
जो कोई व्यक्ति चुनाव में अनुचित प्रभाव (undue influence) डालता है या किसी अन्य व्यक्ति के नाम पर मतदान करता है (personation), वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को अधिकतम एक वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
यह प्रावधान चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लागू किया गया है।
धारा 175: चुनाव के संबंध में झूठा बयान
जो कोई व्यक्ति चुनाव के परिणाम को प्रभावित करने के उद्देश्य से किसी उम्मीदवार के व्यक्तिगत चरित्र या आचरण से संबंधित कोई झूठा तथ्यात्मक बयान बनाता या प्रकाशित करता है, जबकि वह जानता है कि वह झूठा है, या उसे झूठा मानता है, या उसकी सत्यता पर विश्वास नहीं करता, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।
ऐसे व्यक्ति को जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
यह प्रावधान चुनावों की शुद्धता और उम्मीदवारों की प्रतिष्ठा की रक्षा के लिए लागू किया गया है।
धारा 176: चुनाव से संबंधित अवैध भुगतान
जो कोई व्यक्ति किसी उम्मीदवार की सामान्य या विशेष लिखित अनुमति के बिना चुनाव प्रचार के उद्देश्य से जनसभा आयोजित करने, विज्ञापन, परिपत्र या किसी प्रकाशन पर खर्च करने, या किसी अन्य माध्यम से खर्च करने की अनुमति देता है या स्वयं खर्च करता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।
ऐसे व्यक्ति को ₹10,000 तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
अपवाद: यदि कोई व्यक्ति ₹10 से अधिक न खर्च कर ऐसा खर्च करता है और 10 दिनों के भीतर उम्मीदवार की लिखित अनुमति प्राप्त कर लेता है, तो ऐसा खर्च उम्मीदवार की अनुमति से किया हुआ माना जाएगा।
यह प्रावधान चुनाव खर्च की पारदर्शिता बनाए रखने और अनधिकृत प्रचार गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए लागू किया गया है।
धारा 177: चुनावी खर्चों का हिसाब न रखने पर दंड
जो कोई व्यक्ति, जिस पर किसी प्रचलित कानून या वैधानिक नियम के अंतर्गत चुनाव या चुनाव से संबंधित खर्चों का लेखा-जोखा रखने की जिम्मेदारी है, यदि वह ऐसा हिसाब रखने में असफल रहता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को ₹5000 तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
यह प्रावधान चुनावों में वित्तीय पारदर्शिता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाया गया है ताकि सभी उम्मीदवार या संबंधित व्यक्ति नियमित और सत्य खर्च विवरण प्रस्तुत करें।
CHAPTER-X
OFFENCE RELATED TO COIN, CURRENCY-NOTES, BANK-NOTES, AND GOVERNMENT STAMPS
धारा 178: सिक्कों, सरकारी स्टैम्प, मुद्रा या बैंक नोट की कूट-प्रतिकृति (नकली बनाना)
जो कोई व्यक्ति किसी सिक्के, सरकारी राजस्व स्टैम्प, करेंसी नोट या बैंक नोट की नकली प्रति बनाता है या जानबूझकर नकली बनाने की प्रक्रिया में भाग लेता है, वह इस धारा के अंतर्गत अपराध करता है।
ऐसे अपराधी को आजन्म कारावास या 10 वर्षों तक के कारावास (साधारण या कठोर) तथा जुर्माना से दंडित किया जा सकता है।
स्पष्टीकरण:
- बैंक नोट वह वचनपत्र होता है जो किसी बैंकिंग संस्था या राज्य/सार्वभौम सत्ता द्वारा जारी किया गया हो और जिसे मुद्रा के रूप में प्रयोग किया जाता है।
- सिक्के वे धातुएं होती हैं जिन्हें मुद्रा के रूप में प्रयोग के लिए किसी राज्य या सत्ता द्वारा ढाला और जारी किया गया हो (Coinage Act, 2011 के अनुसार)।
- यदि कोई व्यक्ति एक असली स्टैम्प को किसी अन्य मूल्यवर्ग के असली स्टैम्प जैसा दिखाता है, तो यह सरकारी स्टैम्प की कूट-प्रतिकृति माना जाएगा।
- यदि कोई व्यक्ति असली सिक्के को इस प्रकार बदलता है कि वह किसी अन्य सिक्के जैसा दिखने लगे, तो यह सिक्के की नकली बनावट मानी जाएगी।
- सिक्के की नकली बनावट में उसका वजन घटाना, धातु-संरचना या रूप बदलना भी शामिल है।
निष्कर्ष: यह प्रावधान आर्थिक व्यवस्था की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बहुत कठोर है ताकि नकली मुद्रा या सरकारी दस्तावेज़ों से धोखाधड़ी को रोका जा सके।
धारा 179 – जाली सिक्के, सरकारी टिकट, मुद्रा या बैंक नोट को असली बताकर उपयोग करना
जो व्यक्ति किसी जाली या नक़ली सिक्के, सरकारी टिकट, करेंसी नोट या बैंक नोट को यह जानते हुए या विश्वास करने का उचित कारण होते हुए भी आयात करता है, निर्यात करता है, बेचता है, देता है, खरीदता है, प्राप्त करता है या किसी प्रकार से उसका व्यापार करता है अथवा उसे असली बताकर उपयोग करता है, वह इस धारा के अंतर्गत अपराध करता है।
इस अपराध के लिए आजीवन कारावास या अधिकतम दस वर्ष तक का साधारण या कठोर कारावास और जुर्माना भी हो सकता है। यह कानून आर्थिक धोखाधड़ी और सरकारी भरोसे के दस्तावेजों की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है।
धारा 180 : जाली सिक्के, सरकारी टिकट, करेंसी नोट या बैंक नोट का कब्जे में होना
जो कोई किसी जाली या नक़ली सिक्के, सरकारी टिकट, मुद्रा या बैंक नोट को अपने कब्जे में रखता है, यह जानते हुए या यह विश्वास करने का उचित कारण होते हुए कि वह जाली या नक़ली है, और उसे असली के रूप में उपयोग करने की मंशा रखता है या यह चाहता है कि उसे असली के रूप में उपयोग किया जाए – वह इस धारा के अंतर्गत अपराध करता है।
इसके लिए उसे सात वर्ष तक का कारावास (साधारण या कठोर), या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
स्पष्टीकरण: यदि कोई व्यक्ति यह सिद्ध कर देता है कि उसके पास यह वस्तु किसी वैध स्रोत से प्राप्त हुई थी, तो उसे इस धारा के अंतर्गत अपराधी नहीं माना जाएगा।
धारा 181 – जाली सिक्के, सरकारी टिकट, करेंसी-नोट या बैंक-नोट बनाने या नक़ल करने के यंत्र या सामग्री बनाना या रखना
यदि कोई व्यक्ति किसी सिक्के, सरकारी राजस्व टिकट, करेंसी-नोट या बैंक-नोट को नक़ल या जाली बनाने के लिए कोई यंत्र, साँचा, मशीन, उपकरण या अन्य सामग्री बनाता है, उसकी मरम्मत करता है, या उसका कोई भाग बनाता है, या उसे खरीदता, बेचता, निपटाता है या अपने पास रखता है, और उसे यह जानकारी या विश्वास होता है कि वह वस्तु जाली बनाने के लिए उपयोग की जाएगी, तो यह गंभीर अपराध माना जाएगा। इसके लिए उसे आजीवन कारावास या दस वर्ष तक का कारावास (साधारण या कठोर) और जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
यह धारा केवल जाली वस्तुओं के निर्माण को ही नहीं, बल्कि ऐसी सामग्री के कब्जे को भी अपराध मानती है, जिससे नकली मुद्रा या दस्तावेज़ तैयार किए जा सकते हैं। यह कानून जाली नोटों, सिक्कों और सरकारी दस्तावेज़ों के निर्माण को रोकने के लिए कठोर दंड का प्रावधान करता है।
धारा 182 – करेंसी-नोट या बैंक-नोट से मिलते-जुलते दस्तावेज़ बनाना या उपयोग करना
यदि कोई व्यक्ति ऐसा कोई दस्तावेज़ बनाता है, बनवाता है, किसी भी प्रयोजन से उपयोग करता है या किसी अन्य व्यक्ति को देता है, जो करेंसी-नोट या बैंक-नोट जैसा प्रतीत होता है या उसमें इतनी समानता होती है कि वह धोखा देने योग्य हो, तो उसे ₹300 तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
यदि ऐसा कोई व्यक्ति, जिसके नाम से ऐसा दस्तावेज़ बना है, पुलिस द्वारा पूछे जाने पर वैध कारण के बिना यह नहीं बताता कि वह दस्तावेज़ किसने छापा या तैयार किया, तो उसे ₹600 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त, यदि किसी दस्तावेज़ पर किसी व्यक्ति का नाम अंकित है, तो यह माना जाएगा (जब तक इसके विपरीत साबित न हो जाए) कि उस व्यक्ति ने ही वह दस्तावेज़ बनवाया है। यह प्रावधान नकली या भ्रमित करने वाले नोट जैसे दस्तावेज़ों के प्रसार को रोकने के लिए बनाया गया है।
धारा 183 – शासकीय मुहर लगी सामग्री से लेख मिटाना या स्टैम्प हटाना, जिससे सरकार को हानि हो
जो कोई व्यक्ति धोखाधड़ी से या सरकार को हानि पहुंचाने के उद्देश्य से, किसी ऐसी वस्तु से जिस पर राजस्व के लिए जारी सरकारी स्टैम्प लगा हो, उस पर लिखा गया लेख या दस्तावेज़ मिटा देता है, या किसी दस्तावेज़ से ऐसा स्टैम्प हटाता है ताकि वह स्टैम्प किसी और दस्तावेज़ पर पुनः प्रयोग किया जा सके तो ऐसा व्यक्ति अपराध का दोषी होगा।
उसे तीन वर्ष तक की कारावास (साधारण या कठोर), या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
यह प्रावधान सरकारी राजस्व की रक्षा के लिए है और उन लोगों को दंडित करता है जो पुराने स्टैम्प को पुनः उपयोग करके सरकार को आर्थिक नुकसान पहुँचाने का प्रयास करते हैं।
धारा 184 – पहले से उपयोग किए गए सरकारी स्टैम्प का प्रयोग करना
जो कोई व्यक्ति धोखाधड़ी से या सरकार को हानि पहुँचाने के इरादे से, किसी सरकारी राजस्व के लिए जारी किए गए स्टैम्प का उपयोग करता है, जबकि उसे यह पता हो कि वह स्टैम्प पहले ही उपयोग में लाया जा चुका है, वह अपराध का दोषी होगा।
ऐसे व्यक्ति को दो साल तक की कारावास (साधारण या कठोर), या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि सरकारी स्टैम्प केवल एक बार उपयोग में लाए जाएँ और पुनः प्रयोग से सरकारी राजस्व को नुकसान न हो।
धारा 185 – प्रयुक्त स्टैम्प पर लगे चिन्ह को मिटाना
जो कोई व्यक्ति धोखाधड़ी से या सरकार को हानि पहुँचाने के इरादे से, किसी सरकारी राजस्व स्टैम्प से उस चिन्ह या निशान को मिटाता या हटाता है, जो यह दर्शाता है कि वह स्टैम्प पहले इस्तेमाल किया जा चुका है, या ऐसा स्टैम्प जानबूझकर अपने पास रखता है, बेचता है या किसी को देता है, या ऐसा स्टैम्प बेचता है या देता है जबकि उसे पता है कि वह पहले इस्तेमाल हो चुका है, वह अपराध करता है।
इस अपराध के लिए व्यक्ति को अधिकतम तीन वर्ष की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
यह प्रावधान सरकार को स्टैम्प शुल्क में धोखाधड़ी से बचाने के लिए है, ताकि प्रयुक्त स्टैम्प का दोबारा उपयोग न हो सके।
धारा-186 – काल्पनिक स्टैम्प का निषेध
(1) जो कोई निम्नलिखित कार्य करता है, वह इस धारा के अंतर्गत अपराध करता है:
(a) जानबूझकर काल्पनिक स्टैम्प बनाता है, वितरित करता है, बेचता है, या किसी डाक प्रयोजन के लिए काल्पनिक स्टैम्प का उपयोग करता है;
(b) बिना किसी वैध कारण के काल्पनिक स्टैम्प अपने पास रखता है;
(c) बिना वैध कारण के काल्पनिक स्टैम्प बनाने के लिए कोई किट, प्लेट, यंत्र या सामग्री बनाता है या अपने पास रखता है, तो उसे दो सौ रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है।
(2) ऐसे किसी भी स्टैम्प, किट, प्लेट, यंत्र या सामग्री को जो काल्पनिक स्टैम्प बनाने के लिए इस्तेमाल की जा सकती हो, जब्त किया जा सकता है और यदि जब्त किया जाता है तो वह सदन में जब्त कर लिया जाएगा।
(3) इस धारा में “काल्पनिक स्टैम्प” से तात्पर्य है, कोई ऐसा स्टैम्प जो झूठा दावा करता है कि वह सरकार द्वारा डाक दर को चिह्नित करने के लिए जारी किया गया है, या कोई छायाप्रति, अनुकरण या चित्रण जो सरकार द्वारा जारी किए गए स्टैम्प का प्रतिनिधित्व करता है।
(4) इस धारा और धारा 178 से 181 (दोनों समाविष्ट) तथा धारा 183 से 185 (दोनों समाविष्ट) में, “सरकार” शब्द का अर्थ है, वह व्यक्ति या लोग जो कानून के तहत भारत के किसी भाग या विदेशी देश में कार्यकारी सरकार का संचालन करने के लिए अधिकृत हैं।
यह प्रावधान धोखाधड़ी और काल्पनिक डाक स्टैम्प के उपयोग को रोकने के उद्देश्य से है।
धारा 187. मिंट में काम करने वाले व्यक्ति द्वारा सिक्के का वजन या संरचना कानून से भिन्न करना
जो कोई भारत में किसी विधिक रूप से स्थापित मिंट में काम करते हुए ऐसा कोई कार्य करता है या ऐसा कार्य करने से बचता है, जिसका वह कानूनी रूप से बाध्य है, जिससे उस मिंट से जारी होने वाला सिक्का कानूनी रूप से निर्धारित वजन या संरचना से भिन्न हो, तो उसे सात वर्ष तक की सजा या जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
धारा 188. मिंट से सिक्का बनाने के उपकरण को अवैध रूप से बाहर निकालना
जो कोई भारत में विधिक रूप से स्थापित मिंट से बिना कानूनी अधिकार के सिक्का बनाने का कोई उपकरण या औजार निकालता है, उसे सात वर्ष तक की सजा और जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
CHAPTER- XI
OFFENCE AGAINST THE PUBLIC TRANQUILLITY
धारा 189 – गैरकानूनी सभा (Unlawful Assembly)
अगर पाँच या अधिक लोग किसी ऐसे उद्देश्य से इकट्ठा होते हैं, जिसमें सरकारी सत्ता को बलपूर्वक डराना, कानून के पालन का विरोध करना, कोई अपराध करना, बलपूर्वक संपत्ति या अधिकार छीनना, या किसी को ज़बरदस्ती कोई कार्य कराने या रोकने की मंशा हो – तो ऐसी सभा गैरकानूनी सभा मानी जाती है। यदि कोई व्यक्ति जानते हुए ऐसी सभा में शामिल होता है या बना रहता है, तो उसे अधिकतम 6 महीने की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
अगर कोई व्यक्ति ऐसे समय भी सभा में शामिल रहता है जब विधिवत उसे तितर-बितर होने का आदेश दे दिया गया हो, तो उसे अधिकतम 2 साल की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। यदि व्यक्ति हथियार से लैस है, तो भी वही सजा लागू होगी।
जो कोई व्यक्ति किसी को ऐसी सभा में शामिल होने के लिए नियुक्त करता है, उसकी भर्ती करता है, या उस प्रक्रिया में सहायता करता है, वह स्वयं भी उस सभा का सदस्य माना जाएगा और यदि उस सभा के दौरान कोई अपराध होता है तो उसे भी वैसी ही सजा होगी।
यदि कोई व्यक्ति अपने घर या नियंत्रण में ऐसी सभा के लिए लोगों को जानबूझकर एकत्र करता है, तो उसे भी 6 महीने तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। अगर कोई व्यक्ति हथियार से लैस होकर, या हथियार से लैस होने की मंशा से ऐसी सभा में सम्मिलित होता है, तो उसे 2 साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
नोट: ऐसी सभा भले ही शुरू में वैध हो, लेकिन बाद में यदि उसका उद्देश्य उपरोक्त में से कोई बन जाए, तो वह गैरकानूनी सभा मानी जाएगी।
धारा 190 – समान उद्देश्य की पूर्ति में किए गए अपराध के लिए प्रत्येक सदस्य उत्तरदायी (Every Member of Unlawful Assembly Guilty of Offence Committed in Prosecution of Common Object)
अगर कोई अपराध किसी गैरकानूनी सभा (Unlawful Assembly) के किसी सदस्य द्वारा उस सभा के सामान्य उद्देश्य (Common Object) को पूरा करने के लिए किया जाता है, या ऐसा अपराध जिसे सभा के सदस्य जानते थे कि वह उस उद्देश्य की पूर्ति में किया जा सकता है — तो उस समय उस सभा का हर सदस्य उस अपराध का दोषी माना जाएगा, चाहे उसने वह अपराध प्रत्यक्ष रूप से किया हो या नहीं।
सरल शब्दों में: यदि पांच या अधिक लोग मिलकर कोई गलत कार्य करने के इरादे से जुटे हैं और उनमें से कोई एक व्यक्ति अपराध करता है, तो बाकी सभी भी उस अपराध के लिए उतने ही ज़िम्मेदार माने जाते हैं, अगर वह अपराध सभा के उद्देश्य का हिस्सा था या उसकी संभावना सभी को थी।
धारा 191 – दंगा (Rioting)
यदि कोई गैरकानूनी सभा (जिसमें कम से कम 5 व्यक्ति हों) अपने सामान्य उद्देश्य की पूर्ति के लिए बल या हिंसा का प्रयोग करती है, तो उस सभा के हर सदस्य को “दंगे” (Rioting) का दोषी माना जाएगा, चाहे उसने स्वयं बल का प्रयोग किया हो या नहीं। जो व्यक्ति दंगे का दोषी होगा, उसे दो वर्ष तक की कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यदि वह व्यक्ति घातक हथियार से लैस होकर दंगे में भाग लेता है, या ऐसा हथियार रखता है जिससे मृत्यु हो सकती है, तो उसे पाँच वर्ष तक की सजा, जुर्माना या दोनों का सामना करना पड़ सकता है।
यह धारा यह स्पष्ट करती है कि दंगे के दौरान हिंसा का प्रयोग करने वाली सभा में शामिल सभी व्यक्ति समान रूप से उत्तरदायी होते हैं, विशेषकर यदि वे हथियारों से लैस हों।
धारा 192 – दंगा भड़काने के इरादे से उकसाना (यदि दंगा हो या न हो)
यदि कोई व्यक्ति दुर्भावनापूर्ण या बिना उचित कारण के कोई अवैध कार्य करता है जिससे किसी अन्य व्यक्ति को इस प्रकार उकसाया जाता है कि दंगा (Rioting) होने की संभावना या इरादा हो, तो उसे दंडित किया जाएगा। अगर उस उकसावे के परिणामस्वरूप वास्तव में दंगा हो जाता है, तो उसे एक वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा। लेकिन अगर दंगा नहीं होता, तब भी उस व्यक्ति को छह माह तक की सजा, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि दंगे को उकसाने के प्रयास को भी गंभीर अपराध माना जाए, चाहे दंगा वास्तव में हुआ हो या नहीं।
धारा 193 – उस भूमि के स्वामी, कब्जेदार आदि की ज़िम्मेदारी जिस पर दंगा या अवैध जमावड़ा हो
यदि किसी भूमि पर अवैध जमावड़ा या दंगा होता है, तो उस भूमि का मालिक, कब्जेदार, या उससे लाभ लेने वाला कोई भी व्यक्ति या उनका एजेंट/प्रबंधक, यदि यह जानते हुए कि ऐसा अपराध हो रहा है या होने वाला है, समय रहते नजदीकी पुलिस स्टेशन को सूचना नहीं देता और इसे रोकने या फैलने पर दबाने के लिए सभी वैध उपाय नहीं करता, तो वह अधिकतम ₹1000 तक के जुर्माने का पात्र होता है।
साथ ही, यदि यह दंगा उस व्यक्ति के लाभ के लिए या उसकी ओर से हुआ हो, चाहे वह ज़मीन से संबंधित विवाद का पक्षकार हो या उससे कोई लाभ लिया हो, और उसने या उसके एजेंट/प्रबंधक ने इसे रोकने के लिए सभी वैध उपाय नहीं किए, तो उन्हें भी जुर्माना भुगतना पड़ेगा। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि दंगे या अवैध जमावड़े को रोकने और कानून व्यवस्था बनाए रखने में भूमि मालिक और संबंधित पक्ष सक्रिय भूमिका निभाएं।
धारा 194 – लड़ाई-झगड़ा (Affray)
जब दो या दो से अधिक व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर आपस में लड़ाई करके जनता की शांति भंग करते हैं, तो इसे Affray (लड़ाई-झगड़ा) कहा जाता है। यह अपराध सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा माना जाता है क्योंकि यह आम नागरिकों की शांति और सुरक्षा को प्रभावित करता है।
जो कोई भी इस प्रकार का झगड़ा करता है, उसे एक महीने तक की कैद, या एक हजार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है। यह धारा इस बात को सुनिश्चित करती है कि सार्वजनिक जगहों पर लड़ाई करने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जा सके जिससे समाज में शांति बनी रहे।
धारा 195 – दंगा, झगड़े या अवैध जमावड़े को रोकते समय लोक सेवक पर हमला या बाधा डालना
यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक पर उस समय हमला करता है, अवैध बल प्रयोग करता है या रोकावट डालता है, जब वह लोक सेवक दंगा, अवैध जमावड़ा या झगड़ा (Affray) को रोकने या उसे खत्म करने की ड्यूटी निभा रहा हो, तो उसे तीन साल तक की सजा, या ₹25,000 से कम नहीं जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है।
यदि कोई व्यक्ति लोक सेवक को केवल धमकी देता है, या रोकने का प्रयास करता है, या अवैध बल प्रयोग की धमकी देता है, जब वह लोक सेवक ऐसी ड्यूटी में लगा हो, तो उसे एक साल तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों सजा मिल सकती है।
इस धारा का उद्देश्य यह है कि लोक सेवक अपनी जिम्मेदारियां बिना डर और बाधा के निभा सकें, खासकर जब वे सार्वजनिक शांति बनाए रखने के लिए कार्यरत हों।
धारा 196 – धर्म, जाति, भाषा आदि के आधार पर वैमनस्य फैलाना और सामाजिक सौहार्द को बिगाड़ना
यदि कोई व्यक्ति अपने शब्दों (मौखिक या लिखित), संकेतों, दृश्य माध्यमों, इलेक्ट्रॉनिक संचार या अन्य तरीकों से धर्म, जाति, भाषा, जन्मस्थान, निवास आदि के आधार पर विभिन्न समुदायों या समूहों के बीच द्वेष, घृणा या वैमनस्य फैलाता है या फैलाने की कोशिश करता है, या ऐसा कोई कार्य करता है जो समाज में शांति भंग करता है, या कोई ऐसा अभ्यास, आंदोलन या ड्रिल आयोजित करता है जिसमें हिंसा का प्रशिक्षण देने या उसका प्रयोग करने का इरादा हो, और जिससे किसी समुदाय में डर या असुरक्षा की भावना उत्पन्न हो – तो उसे तीन साल तक की सजा, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
अगर यह अपराध किसी धार्मिक स्थान पर या धार्मिक पूजा या समारोह के दौरान की गई सभा में किया गया हो, तो सजा और कड़ी होती है — ऐसे में अपराधी को पांच साल तक की कैद और जुर्माना दोनों दिए जा सकते हैं। यह धारा समाज में सांप्रदायिक सौहार्द और सार्वजनिक शांति बनाए रखने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
धारा 197 – राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने वाले आरोप या कथन
यदि कोई व्यक्ति अपने शब्दों (मौखिक या लिखित), संकेतों, दृश्य माध्यमों, इलेक्ट्रॉनिक संचार या अन्य तरीकों से ऐसा कोई कथन करता है या प्रकाशित करता है जिससे यह आरोप लगे कि किसी धार्मिक, जातीय, भाषाई या क्षेत्रीय समूह के लोग भारत के संविधान के प्रति सच्ची निष्ठा नहीं रख सकते, या भारत की संप्रभुता और एकता को बनाए नहीं रख सकते; या यह प्रचार करता है कि ऐसे वर्गों को नागरिक अधिकारों से वंचित किया जाना चाहिए; या उनके कर्तव्यों से संबंधित ऐसा कोई बयान देता है जिससे समाज में वैमनस्य, द्वेष या घृणा फैलती है या फैल सकती है; या भारत की संप्रभुता, एकता, अखंडता या सुरक्षा को खतरे में डालने वाली झूठी या भ्रामक जानकारी देता है — तो ऐसा व्यक्ति तीन साल तक की सजा, या जुर्माना, या दोनों का पात्र होता है।
यदि ये अपराध किसी धार्मिक स्थल पर या धार्मिक पूजा या समारोह के दौरान आयोजित सभा में किए जाते हैं, तो सजा बढ़कर पांच साल तक की कैद और जुर्माना हो सकती है। इस धारा का उद्देश्य भारत की संविधानिक एकता, संप्रभुता और सामाजिक समरसता को बनाए रखना है।
Chapter XII: Offence Related to Public Servants
धारा 198 – लोक सेवक द्वारा जानबूझकर कानून का उल्लंघन करना, जिससे किसी व्यक्ति को नुकसान पहुँचे
यदि कोई लोक सेवक, अपनी ड्यूटी से संबंधित किसी कानूनी आदेश का जानबूझकर उल्लंघन करता है, इस इरादे से या यह जानते हुए कि इससे किसी व्यक्ति को नुकसान हो सकता है, तो उसे एक साल तक की साधारण कैद, या जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है।
उदाहरण: यदि ‘A’ नामक अधिकारी, जिसे कानून के अनुसार ‘Z’ के पक्ष में पारित डिग्री को लागू करने के लिए संपत्ति जब्त करनी है, जानबूझकर ऐसा न करके ‘Z’ को नुकसान पहुँचाता है, तो ‘A’ इस धारा के अंतर्गत दंडनीय होगा।
यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि लोक सेवक अपने पद का दुरुपयोग न करें और कानून द्वारा निर्धारित कर्तव्यों का पालन ईमानदारी से करें, अन्यथा उन्हें सजा भुगतनी पड़ेगी।
धारा 199 – लोक सेवक द्वारा कानून के निर्देशों की अवहेलना
यदि कोई लोक सेवक जानबूझकर कानून के ऐसे निर्देशों का उल्लंघन करता है जो उसे किसी व्यक्ति को जांच के लिए उपस्थित होने से रोकते हैं, या जांच की प्रक्रिया को लेकर दिए गए कानूनी नियमों की अवहेलना करता है जिससे किसी व्यक्ति को नुकसान होता है, तो वह दंडनीय है। इसके अलावा, यदि कोई लोक सेवक भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 173(1) के अंतर्गत दर्ज कराए गए किसी गंभीर अपराध (जैसे धारा 64, 65, 66, 67, 68, 70, 71, 74, 76, 77, 79, 124, 143 या 144) की सूचना को दर्ज करने में विफल रहता है, तो यह भी एक दंडनीय अपराध है।
इस धारा के अंतर्गत, दोषी लोक सेवक को छह महीने से दो साल तक की कठोर कारावास, और जुर्माना दोनों हो सकते हैं। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि जांच की प्रक्रिया में पारदर्शिता और वैधानिकता बनी रहे तथा किसी भी पीड़ित की शिकायत को नजरअंदाज न किया जाए।
धारा 200 – पीड़ित का इलाज न करने पर दंड
यदि कोई व्यक्ति किसी सरकारी या निजी अस्पताल का प्रभारी है – चाहे वह केंद्र सरकार, राज्य सरकार, स्थानीय निकाय या किसी अन्य संस्था द्वारा संचालित हो – और वह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 397 में दिए गए प्रावधानों का उल्लंघन करता है (जिसमें पीड़ित का अनिवार्य रूप से इलाज करने का प्रावधान है), तो वह एक साल तक की सजा, या जुर्माना, या दोनों का पात्र होगा।
इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि आपात स्थिति में किसी भी पीड़ित को इलाज से वंचित न किया जाए, और अस्पतालों की मानवता तथा कानूनी जिम्मेदारी को बनाए रखा जाए। यह कानून स्वास्थ्य सेवाओं की जवाबदेही को मजबूती प्रदान करता है।
धारा 201 – लोक सेवक द्वारा किसी व्यक्ति को नुकसान पहुँचाने के इरादे से गलत दस्तावेज़ तैयार करना
यदि कोई लोक सेवक, जिसे किसी दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को तैयार करने या अनुवाद करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है, वह उसे जानबूझकर गलत तरीके से तैयार करता है या अनुवाद करता है, इस इरादे से या यह जानते हुए कि इससे किसी व्यक्ति को नुकसान पहुँच सकता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दंडनीय है।
ऐसे लोक सेवक को तीन साल तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है। इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि सरकारी रिकॉर्ड और दस्तावेजों की शुद्धता बनी रहे और कोई भी लोक सेवक अपनी शक्ति का दुरुपयोग करके किसी व्यक्ति के अधिकारों या हितों को नुकसान न पहुंचा सके।
धारा 202 – लोक सेवक का अवैध रूप से व्यापार में संलग्न होना
यदि कोई लोक सेवक, जिसे कानूनन व्यापार करने से प्रतिबंधित किया गया है, फिर भी व्यापार में संलग्न होता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दंडनीय है।
ऐसे लोक सेवक को एक साल तक की साधारण कैद, या जुर्माना, या दोनों, अथवा सामुदायिक सेवा (community service) की सजा दी जा सकती है। इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि लोक सेवक अपने पद की गरिमा और निष्पक्षता बनाए रखें, और निजी लाभ के लिए पद का दुरुपयोग न करें।
धारा 203 – लोक सेवक का अवैध रूप से संपत्ति खरीदना या बोली लगाना
यदि कोई लोक सेवक, जिसे कानून के अनुसार कुछ विशेष संपत्तियों को खरीदने या उनकी बोली लगाने से रोका गया है, फिर भी वह व्यक्ति स्वयं, किसी और के नाम से, या साझेदारी में उन संपत्तियों को खरीदता है या बोली लगाता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी माना जाएगा।
ऐसे लोक सेवक को दो साल तक की साधारण कैद, या जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है। साथ ही, यदि वह संपत्ति खरीदी गई हो तो उसे जब्त (confiscate) भी कर लिया जाएगा। इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि लोक सेवक निजी लाभ के लिए अपने पद का दुरुपयोग न करें और सरकारी प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे।
धारा 204 – लोक सेवक के रूप में झूठा प्रतिनिधित्व करना
यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए कि वह किसी लोक सेवक के पद पर नहीं है, फिर भी स्वयं को उस पद पर होने का दिखावा करता है, या किसी अन्य लोक सेवक का झूठा रूप धारण करता है, और उस झूठे पद के आधार पर कोई कार्य करता है या करने का प्रयास करता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराध करता है।
ऐसे व्यक्ति को छह महीने से कम नहीं और अधिकतम तीन साल तक की कैद, और जुर्माना – दोनों सजा दी जा सकती है। इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि कोई भी व्यक्ति सरकारी पद का झूठा लाभ उठाकर लोगों को धोखा न दे सके और सरकारी प्रणाली की प्रतिष्ठा और सुरक्षा बनी रहे।
धारा 205 – लोक सेवक के भेष या प्रतीक को धोखाधड़ी के इरादे से धारण करना
यदि कोई व्यक्ति, जो किसी विशेष लोक सेवक वर्ग का सदस्य नहीं है, फिर भी उस वर्ग के लोक सेवकों के जैसे वेशभूषा पहनता है या प्रतीक (जैसे बैज, आईडी आदि) धारण करता है, इस इरादे से कि लोग उसे उसी वर्ग का लोक सेवक समझें, या यह जानते हुए कि ऐसा माना जा सकता है – तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी है।
उसे तीन महीने तक की कैद, या ₹5,000 तक का जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है। इस धारा का उद्देश्य यह है कि कोई भी व्यक्ति सरकारी पहचान का दुरुपयोग करके लोगों को धोखा न दे और लोक सेवक की पहचान की गरिमा बनी रहे।
CHAPTER – XIII
CONTEMPTS OF THE LAWFUL AUTHORITY OF PUBLIC SERVANTS
धारा 206 – समन या अन्य विधिक कार्यवाही से बचने के लिए फरार होना
यदि कोई व्यक्ति इस उद्देश्य से फरार होता है कि उसे किसी कानूनी रूप से सक्षम लोक सेवक द्वारा जारी किया गया समन, नोटिस या आदेश न दिया जा सके, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराध करता है।
इसकी दो स्थितियां हैं:
(a) यदि व्यक्ति सामान्य समन, नोटिस या आदेश से बचने के लिए फरार होता है, तो उसे एक महीने तक की साधारण कैद, या ₹5,000 तक का जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है।
(b) यदि ऐसा समन या आदेश व्यक्तिगत रूप से या एजेंट के माध्यम से न्यायालय में उपस्थित होने, या कोई दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड प्रस्तुत करने के लिए हो, और व्यक्ति उससे बचने के लिए फरार होता है, तो उसे छह महीने तक की साधारण कैद, या ₹10,000 तक का जुर्माना, या दोनों सजा मिल सकती है।
इस धारा का उद्देश्य है कि कोई भी व्यक्ति न्यायिक प्रक्रिया से भागकर कानून से बचने का प्रयास न करे, और कानूनी कार्यवाहियों में सहयोग करना उसकी ज़िम्मेदारी है।
धारा 207 – समन, नोटिस या कानूनी आदेश की सेवा या प्रकाशन में बाधा डालना
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर खुद पर या किसी अन्य व्यक्ति पर किसी लोक सेवक द्वारा विधिपूर्वक जारी समन, नोटिस या आदेश की सेवा को रोकता है, या उसे किसी स्थान पर चिपकाने से रोकता है, या चिपकाए गए समन/नोटिस को हटा देता है, या कानूनी रूप से की जा रही सार्वजनिक घोषणा (proclamation) को रोकता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराध करता है।
अगर ऐसा कृत्य सामान्य नोटिस या आदेश से संबंधित हो, तो सजा एक महीने तक की साधारण कैद, या ₹5,000 तक का जुर्माना, या दोनों हो सकती है। लेकिन अगर यह आदेश या नोटिस किसी व्यक्ति को न्यायालय में उपस्थित होने या दस्तावेज़ प्रस्तुत करने से संबंधित हो, तो सजा छह महीने तक की साधारण कैद, या ₹10,000 तक का जुर्माना, या दोनों हो सकती है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति कानूनी कार्यवाही या न्यायिक प्रक्रिया को बाधित न कर सके।
धारा 208 – लोक सेवक के आदेश के अनुसार उपस्थिति दर्ज न कराना
यदि कोई व्यक्ति, जो कानूनन बाध्य है कि वह किसी निश्चित स्थान और समय पर स्वयं या अपने एजेंट के माध्यम से किसी समन, नोटिस, आदेश या उद्घोषणा के पालन में उपस्थित हो, और वह जानबूझकर उपस्थित नहीं होता, या उपस्थित होकर निर्धारित समय से पहले ही वहां से चला जाता, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होता है।
इसमें दो स्तर की सज़ा निर्धारित है:
(a) सामान्य मामलों में दोषी को एक महीने तक की साधारण कैद, या ₹5,000 तक का जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है।
(b) यदि यह आदेश किसी व्यक्ति को न्यायालय में उपस्थित होने से संबंधित है, तो सजा छह महीने तक की साधारण कैद, या ₹10,000 तक का जुर्माना, या दोनों हो सकती है।
उदाहरण:
(1) यदि ‘A’ को उच्च न्यायालय से समन मिला है और वह जानबूझकर उपस्थित नहीं होता, तो यह अपराध है।
(2) यदि ‘A’ को जिला न्यायाधीश ने गवाह के रूप में बुलाया है और वह जानबूझकर नहीं आता, तब भी यह धारा लागू होती है।
इस धारा का उद्देश्य यह है कि कानूनी आदेशों की अवहेलना न हो और व्यक्ति न्यायिक व प्रशासनिक प्रक्रिया में सहयोग करें।
धारा 209 – भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 84 के तहत उद्घोषणा पर उपस्थित न होना
यदि किसी व्यक्ति के नाम पर धारा 84(1) के अंतर्गत प्रकाशित उद्घोषणा (Proclamation) के अनुसार उसे किसी निर्धारित स्थान और समय पर उपस्थित होना आवश्यक था, और वह ऐसा करने में विफल रहता है, तो उसे तीन साल तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों, अथवा सामुदायिक सेवा की सजा दी जा सकती है।
यदि उसी उद्घोषणा के तहत धारा 84(4) के अंतर्गत प्रोक्लेम्ड ऑफेंडर (घोषित अपराधी) घोषित कर दिया गया हो, तो ऐसे व्यक्ति को सात साल तक की कैद और जुर्माने की सजा का प्रावधान है।
इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोई भी व्यक्ति कानूनी उद्घोषणा को नजरअंदाज न करे, और यदि वह फरार अपराधी घोषित किया गया है, तो उसे गंभीर दंड देकर कानून के पालन को सख्ती से लागू किया जाए।
धारा 210 – दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को प्रस्तुत करने से जानबूझकर चूक करना
यदि कोई व्यक्ति, जो कानूनन किसी दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को किसी लोक सेवक को प्रस्तुत करने के लिए बाध्य है, फिर भी वह उसे जानबूझकर प्रस्तुत नहीं करता या सौंपता नहीं है, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराध करता है।
इसमें दो स्थितियां होती हैं:
(a) यदि दस्तावेज़ या रिकॉर्ड किसी साधारण लोक सेवक को दिया जाना था, तो दोषी को एक महीने तक की साधारण कैद, या ₹5,000 तक का जुर्माना, या दोनों सजा हो सकती है।
(b) यदि वही दस्तावेज़ या रिकॉर्ड न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना था, और जानबूझकर नहीं किया गया, तो दोषी को छह महीने तक की साधारण कैद, या ₹10,000 तक का जुर्माना, या दोनों सजा हो सकती है।
उदाहरण: यदि ‘A’ को जिला न्यायालय में कोई दस्तावेज़ प्रस्तुत करना था और वह जानबूझकर ऐसा नहीं करता, तो यह धारा उस पर लागू होगी।
इस प्रावधान का उद्देश्य यह है कि कानूनी प्रक्रिया में आवश्यक दस्तावेज़ों की उपस्थिति सुनिश्चित हो, जिससे न्याय में कोई बाधा न आए।
धारा 211 – कानूनी रूप से सूचना या नोटिस देने के लिए बाध्य व्यक्ति द्वारा जानबूझकर न देना
यदि कोई व्यक्ति, जो कानूनन बाध्य है कि वह किसी विषय पर किसी लोक सेवक को सूचना या नोटिस दे, और वह जानबूझकर ऐसा नहीं करता, या निर्धारित समय और विधि के अनुसार जानकारी नहीं देता, तो वह इस धारा के अंतर्गत दंडनीय है।
इस धारा में तीन प्रकार की सजा का प्रावधान है:
(a) यदि सूचना/नोटिस सामान्य प्रकृति की है और जानबूझकर नहीं दी जाती, तो एक महीने तक की साधारण कैद, या ₹5,000 तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
(b) यदि वह सूचना किसी अपराध के घटित होने, उसे रोकने या अपराधी की गिरफ्तारी से संबंधित है, तो छह महीने तक की साधारण कैद, या ₹10,000 तक का जुर्माना, या दोनों सजा हो सकती है।
(c) यदि वह सूचना भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 394 के तहत दिए गए आदेश के अनुसार देनी थी, तो छह महीने तक की कैद, या ₹1,000 तक का जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि नागरिकों द्वारा सही समय पर आवश्यक सूचना या सहयोग लोक सेवकों को दिया जाए, जिससे न्याय और प्रशासनिक प्रक्रिया प्रभावी ढंग से चल सके।
धारा 212 – झूठी जानकारी प्रदान करना
यदि कोई व्यक्ति, जो कानूनन किसी लोक सेवक को किसी विषय पर सही जानकारी देने के लिए बाध्य है, जानबूझकर उस विषय पर ऐसी जानकारी देता है जो वह जानता है या विश्वास करने का कारण है कि वह झूठी है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी है।
इसमें दो स्थिति अनुसार दंड निर्धारित हैं:
(a) सामान्य मामलों में, दोषी को छह महीने तक की साधारण कैद, या ₹5,000 तक का जुर्माना, या दोनों सजा हो सकती है।
(b) यदि झूठी जानकारी किसी अपराध के होने, उसे रोकने या अपराधी की गिरफ्तारी से संबंधित है, तो सजा दो साल तक की साधारण या कठोर कैद, या जुर्माना, या दोनों हो सकती है।
उदाहरण:
- यदि एक ज़मींदार, जो जानता है कि उसकी ज़मीन पर हत्या हुई है, लेकिन वह मजिस्ट्रेट को सांप के काटने से मौत की झूठी जानकारी देता है, तो वह दोषी है।
- यदि एक गांव का चौकीदार, जानबूझकर डकैती की सच्ची जानकारी को गलत दिशा में मोड़ देता है, तो वह भी इस धारा के अंतर्गत अपराध करता है।
व्याख्या: धारा 211 और 212 में “अपराध” में वे कृत्य भी शामिल हैं जो भारत के बाहर किए गए हों, लेकिन यदि वे भारत में होते, तो उन्हें कुछ विशेष धाराओं (जैसे 103, 105, 307, 309(2)-(4), 310(2)-(5), 311, 312(f)(g), 331(4), (6)-(8), 332(a)(b)) के तहत दंडनीय माना जाता।
इस धारा का उद्देश्य है कि कोई भी व्यक्ति कानूनी या आपराधिक मामलों में जानबूझकर झूठी सूचना देकर प्रशासन या न्याय को गुमराह न करे।
धारा 213 – लोक सेवक द्वारा विधिपूर्वक शपथ या प्रतिज्ञा लेने की मांग पर इंकार करना
यदि कोई व्यक्ति, जिसे कोई कानूनन सक्षम लोक सेवक यह कहता है कि वह सत्य बोलने के लिए शपथ या प्रतिज्ञा ले, और वह व्यक्ति ऐसा करने से जानबूझकर इंकार करता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को छह महीने तक की साधारण कैद, या ₹5,000 तक का जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है।
इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायिक और प्रशासनिक कार्यवाहियों में सत्यनिष्ठा बनी रहे, और व्यक्ति शपथ लेने से बचकर कानूनी प्रक्रिया को बाधित न करें।
धारा 214 – अधिकृत लोक सेवक द्वारा पूछे गए प्रश्न का उत्तर देने से इनकार करना
यदि कोई व्यक्ति, जो कानूनन बाध्य है कि वह किसी विषय पर किसी लोक सेवक को सत्य बताए, और वह व्यक्ति उस लोक सेवक द्वारा कानूनन अधिकार के तहत पूछे गए प्रश्न का उत्तर देने से जानबूझकर इनकार करता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को छह महीने तक की साधारण कैद, या ₹5,000 तक का जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है।
इस धारा का उद्देश्य यह है कि लोक सेवकों को उनके कानूनी कार्यों में सही और पूरा सहयोग मिले, और कोई भी व्यक्ति जानबूझकर सत्य को छुपाकर जांच या न्यायिक प्रक्रिया को बाधित न करे।
धारा 215 – बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार करना
यदि कोई व्यक्ति, जिसने कोई बयान दिया है, और उसे कानूनन सक्षम लोक सेवक द्वारा उस बयान पर हस्ताक्षर करने को कहा जाता है, लेकिन वह व्यक्ति जानबूझकर हस्ताक्षर करने से इनकार करता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराध करता है।
ऐसे व्यक्ति को तीन महीने तक की साधारण कैद, या ₹3,000 तक का जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है।
इस धारा का उद्देश्य यह है कि व्यक्ति अपने दिए गए बयान की पुष्टि से बचकर कानूनी प्रक्रिया को बाधित न करे, और प्रक्रिया की प्रामाणिकता और वैधता सुनिश्चित बनी रहे।
धारा 216 – लोक सेवक या अधिकृत व्यक्ति को शपथ या प्रतिज्ञा पर झूठा बयान देना
यदि कोई व्यक्ति, जो कानूनन शपथ या प्रतिज्ञा लेकर सत्य बोलने के लिए बाध्य है, और वह किसी लोक सेवक या ऐसे व्यक्ति को, जो कानून द्वारा शपथ या प्रतिज्ञा दिलाने का अधिकार रखता है, जानबूझकर झूठा बयान देता है, और वह जानता है, विश्वास करता है, या यह मानता है कि उसका बयान सत्य नहीं है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी है।
ऐसे व्यक्ति को तीन वर्ष तक की साधारण या कठोर कारावास, और जुर्माना — दोनों सजा दी जा सकती है।
इस धारा का उद्देश्य यह है कि न्यायिक व प्रशासनिक प्रक्रियाओं में सच्चाई बनी रहे, और शपथ या प्रतिज्ञा के नाम पर झूठ बोलने वालों को दंडित किया जा सके, ताकि साक्ष्य की विश्वसनीयता और प्रक्रिया की गरिमा सुरक्षित रह सके।
धारा 217 – झूठी जानकारी देकर लोक सेवक से किसी अन्य व्यक्ति को नुकसान पहुँचाने का प्रयास
यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को जानबूझकर झूठी जानकारी देता है, यह इरादा रखते हुए या जानते हुए कि इसके कारण:
(a) लोक सेवक ऐसा कुछ कर देगा या करने से चूक जाएगा जो वह सत्य जानकारी होने पर नहीं करता, या
(b) वह अपनी कानूनी शक्ति का उपयोग किसी व्यक्ति को नुकसान या परेशानी पहुंचाने के लिए करेगा,
तो ऐसा करने वाला व्यक्ति एक साल तक की साधारण या कठोर कैद, या ₹10,000 तक का जुर्माना, या दोनों की सजा का पात्र होगा।
उदाहरण:
- (a) यदि कोई व्यक्ति मजिस्ट्रेट से झूठ बोलता है कि उसका अधीनस्थ पुलिस अधिकारी Z कर्तव्य में लापरवाही बरतता है, जिससे Z की नौकरी चली जाए — तो वह इस अपराध का दोषी है।
- (b) यदि कोई झूठी सूचना देता है कि Z ने गुप्त रूप से अवैध सामान छिपाया है, जिससे Z के घर की तलाशी ली जाती है — तो भी यह अपराध है।
- (c) यदि कोई कहता है कि उसके साथ लूटपाट हुई है और पुलिस उस गांव में पूछताछ और तलाशी शुरू कर देती है जिससे गांववालों को परेशानी होती है — यह भी इस धारा के अंतर्गत अपराध है।
इस धारा का उद्देश्य है कि कोई भी व्यक्ति झूठी सूचना देकर लोक सेवकों को गुमराह न करे और किसी निर्दोष व्यक्ति को कानूनी प्रक्रिया का अनुचित शिकार न बनने दे।
धारा 218 – लोक सेवक की विधिपूर्ण अधिकार द्वारा संपत्ति लेने में बाधा डालना
यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक द्वारा कानूनी अधिकार के तहत किसी संपत्ति को जब्त करने या लेने में जानबूझकर बाधा डालता है, जबकि वह जानता है या मानने का उचित कारण है कि वह व्यक्ति एक वैध लोक सेवक है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को छह महीने तक की साधारण या कठोर कारावास, या ₹10,000 तक का जुर्माना, या दोनों सजा हो सकती है।
इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी कार्यों में बाधा न आए, विशेषकर जब कोई लोक सेवक कानून के अनुसार संपत्ति जब्त कर रहा हो या कार्रवाई कर रहा हो, और उसे न्यायसंगत रूप से अपना कार्य करने दिया जाए।
धारा 219 – लोक सेवक की विधिपूर्ण अधिकार से की जा रही संपत्ति की बिक्री में बाधा डालना
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी ऐसी संपत्ति की बिक्री में बाधा डालता है जो किसी लोक सेवक के वैध अधिकार के तहत बिक्री के लिए प्रस्तुत की गई है, तो वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को एक महीने तक की साधारण या कठोर कैद, या ₹5,000 तक का जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है।
इस धारा का उद्देश्य यह है कि जब कोई सरकारी अथवा न्यायिक प्रक्रिया के तहत संपत्ति की नीलामी या बिक्री हो रही हो, तो उसमें किसी प्रकार की जानबूझकर रुकावट या व्यवधान न हो, और प्रक्रिया सार्वजनिक हित में सुचारु रूप से पूरी हो सके।
धारा 220 : लोक सेवक के वैध अधिकार से की जा रही बिक्री में अवैध रूप से खरीद या बोली लगाना
यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसी संपत्ति की बिक्री में, जो किसी लोक सेवक के विधिसम्मत अधिकार से की जा रही है:
- उस संपत्ति के लिए स्वयं या किसी ऐसे व्यक्ति की ओर से खरीदता या बोली लगाता है, जिसे वह जानता है कि वह कानूनन उस संपत्ति को खरीदने के अयोग्य है,
या - बोली लगाते समय यह इरादा ही नहीं रखता कि वह बोली के तहत ली गई जिम्मेदारियों को निभाएगा,
तो ऐसा व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा और उसे एक महीने तक की साधारण या कठोर कैद, या ₹200 तक का जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है।
इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी नीलामी पारदर्शिता और ईमानदारी से हो, और कोई भी व्यक्ति धोखे या नियमों के उल्लंघन से प्रक्रिया को प्रभावित न कर सके।
धारा 221 – लोक सेवक को उसके सार्वजनिक कार्यों के निष्पादन में बाधा डालना
यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से किसी लोक सेवक को उसके सार्वजनिक कर्तव्यों का निर्वहन करने से रोकता या उसमें बाधा डालता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी माना जाएगा।
ऐसे व्यक्ति को तीन महीने तक की साधारण या कठोर कैद, या ₹2,500 तक का जुर्माना, या दोनों सजा हो सकती है।
इस धारा का उद्देश्य यह है कि लोक सेवकों को उनके कर्तव्यों के निर्वहन में बिना किसी रुकावट के कार्य करने दिया जाए, ताकि सरकारी कार्य और प्रशासनिक प्रक्रिया सुचारू रूप से संचालित हो।
धारा 222 – लोक सेवक को सहायता देने से इंकार करना जब कानूनन बाध्य हो
यदि कोई व्यक्ति, जो कानून द्वारा बाध्य है कि वह किसी लोक सेवक को उसके सार्वजनिक कर्तव्य के निष्पादन में सहायता दे, और वह व्यक्ति जानबूझकर उस सहायता को देने से इंकार करता है, तो यह एक दंडनीय अपराध है।
इसमें दो प्रकार की स्थितियाँ हैं:
(a) सामान्य रूप से सहायता न देने पर — एक महीने तक की साधारण कैद, या ₹2,500 तक का जुर्माना, या दोनों सजा हो सकती है।
(b) यदि सहायता की मांग किसी न्यायालय के वैध आदेश के क्रियान्वयन, अपराध रोकने, दंगा या झगड़ा शांत कराने, अपराधी को पकड़ने, या कस्टडी से भागे हुए व्यक्ति को पकड़ने के लिए की गई थी, तो छह महीने तक की साधारण कैद, या ₹5,000 तक का जुर्माना, या दोनों सजा का प्रावधान है।
इस धारा का उद्देश्य यह है कि हर नागरिक अपने कर्तव्यों को समझे और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने में प्रशासन का सहयोग करे, विशेष रूप से जब वह कानूनन सहायता देने के लिए बाध्य हो।
धारा 223 – लोक सेवक के विधिपूर्वक जारी आदेश की अवज्ञा करना
यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए कि किसी सक्षम लोक सेवक ने कोई वैध आदेश जारी किया है जिससे उसे किसी विशेष कार्य से रोका गया है या किसी संपत्ति के संबंध में कोई विशेष निर्देश दिया गया है, और फिर भी वह जानबूझकर उस आदेश का उल्लंघन करता है, तो यह अपराध है। यदि इस अवज्ञा से किसी व्यक्ति को बाधा, परेशानी या हानि होती है, या होने की आशंका होती है, तो दोषी को छह महीने तक की साधारण कैद या ₹2,500 तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। और यदि इस अवज्ञा से मानव जीवन, स्वास्थ्य या सुरक्षा को खतरा पैदा होता है या दंगे या झगड़े की स्थिति उत्पन्न होती है, तो सजा एक वर्ष तक की साधारण या कठोर कैद, ₹5,000 तक जुर्माना या दोनों हो सकती है।
इस धारा में यह स्पष्ट किया गया है कि अपराध सिद्ध करने के लिए यह आवश्यक नहीं है कि आरोपी की मंशा हानि पहुँचाने की हो, बल्कि यह पर्याप्त है कि वह आदेश के बारे में जानता था और उसकी अवज्ञा से नुकसान हुआ या हो सकता था। यह धारा सार्वजनिक शांति, सुरक्षा और प्रशासनिक आदेशों के पालन को सुनिश्चित करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
धारा 224 – लोक सेवक को डराकर कर्तव्य प्रभावित करने की धमकी देना
यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को या ऐसे किसी व्यक्ति को, जिसे वह लोक सेवक महत्वपूर्ण समझता है, हानि पहुँचाने की धमकी देता है — इस उद्देश्य से कि वह लोक सेवक अपना कोई सार्वजनिक कर्तव्य निभाए, न निभाए, या उसमें देरी करे, तो ऐसा व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।
इस अपराध के लिए सजा के रूप में दो वर्ष तक की साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है।
इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लोक सेवक अपने कर्तव्यों को भय या दबाव के बिना निष्पक्षता से निभा सकें, और कोई भी व्यक्ति उन्हें धमकाकर सरकारी कार्य में हस्तक्षेप न कर सके।
धारा 225 – किसी व्यक्ति को लोक सेवक से संरक्षण की वैध मांग करने से रोकने के लिए धमकी देना
यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को यह धमकी देता है कि उसे हानि पहुँचाई जाएगी, ताकि वह व्यक्ति किसी लोक सेवक से वैध रूप से सुरक्षा की मांग न करे या ऐसी मांग करने से रुक जाए — जबकि वह लोक सेवक कानूनन उस व्यक्ति को संरक्षण देने के लिए अधिकृत है, तो ऐसा करना इस धारा के अंतर्गत अपराध है।
ऐसे अपराध के लिए दोषी को एक वर्ष तक की साधारण या कठोर कैद, या जुर्माना, या दोनों सजा दी जा सकती है।
इस धारा का उद्देश्य यह है कि कोई भी व्यक्ति डर या धमकी के कारण न्याय या सुरक्षा की वैध मांग करने से वंचित न रहे। यह प्रावधान आम जनता को यह अधिकार सुनिश्चित करता है कि वे बिना भय के कानूनी संरक्षण प्राप्त कर सकें।
धारा 226 – लोक सेवक को बाध्य करने या रोकने के लिए आत्महत्या का प्रयास करना
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर आत्महत्या का प्रयास इस उद्देश्य से करता है कि वह किसी लोक सेवक को उसके वैध कर्तव्यों को निभाने के लिए मजबूर करे या उसमें बाधा डाले, तो यह एक दंडनीय अपराध है।
ऐसे व्यक्ति को एक वर्ष तक की साधारण कैद, या जुर्माना, या दोनों, या कम्युनिटी सर्विस (सामुदायिक सेवा) की सजा दी जा सकती है।
इस धारा का उद्देश्य यह है कि कानूनी प्रक्रिया या सरकारी कार्यों में दबाव या भावनात्मक हथियार के रूप में आत्महत्या की धमकी या प्रयास को रोका जाए। यह कानून लोक सेवकों को बिना डर या दबाव के अपने कर्तव्यों के निष्पादन का संरक्षण देता है।
CHAPTER-XIV
OFFENCE REALTED TO FALSE EVIDENCE AND OFFENCES AGAINST PUBLIC JUSTICE
धारा 227 – झूठा साक्ष्य देना
यदि कोई व्यक्ति, जो कानून के तहत सत्य बोलने की शपथ या किसी विषय पर घोषणा करने के लिए बाध्य है, जानबूझकर झूठा बयान देता है, यानी ऐसा बयान देता है जो वह झूठा जानता या मानता है, या जिस पर वह स्वयं विश्वास नहीं करता, तो वह व्यक्ति झूठा साक्ष्य देने का अपराध करता है।
व्याख्याएं:
- यह बयान मौखिक या किसी अन्य रूप में हो सकता है।
- यदि कोई व्यक्ति यह कहता है कि उसे किसी बात पर विश्वास है, जबकि वास्तव में उसे विश्वास नहीं है, तब भी यह झूठा साक्ष्य माना जाएगा।
उदाहरण:
- यदि कोई व्यक्ति अदालत में झूठी गवाही देता है कि उसने किसी पक्ष को कर्ज स्वीकार करते सुना था, जबकि ऐसा नहीं हुआ — यह झूठा साक्ष्य है।
- यदि कोई बिना ज्ञान के यह कहता है कि उसने किसी को किसी स्थान पर देखा, तब भी वह झूठा साक्ष्य देता है।
- यदि कोई अनुवादक या दुभाषिया शपथपूर्वक गलत अनुवाद करता है, या जानबूझकर गलत प्रमाण पत्र देता है — तो वह भी झूठा साक्ष्य देता है।
यह धारा न्याय व्यवस्था की सत्यता और विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि झूठी गवाही से न्याय में बाधा आती है और निर्दोष व्यक्ति को हानि हो सकती है।
धारा 228 – झूठा साक्ष्य गढ़ना (Fabricating False Evidence)
यदि कोई व्यक्ति ऐसा कोई कार्य करता है जिससे कोई झूठा तथ्य, झूठी प्रविष्टि किसी दस्तावेज़, रिकॉर्ड, या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में इस नीयत से डाला जाता है कि वह न्यायिक कार्यवाही या किसी लोक सेवक अथवा मध्यस्थ (arbitrator) के समक्ष सबूत के रूप में पेश हो सके, और इससे निर्णय लेने वाले व्यक्ति की राय गलत दिशा में प्रभावित हो, तो ऐसा कृत्य झूठा साक्ष्य गढ़ना कहलाता है।
उदाहरण:
(a) कोई व्यक्ति चोरी का आरोप लगाने के उद्देश्य से जानबूझकर किसी के डिब्बे में गहने रख दे – यह झूठा साक्ष्य गढ़ना है।
(b) कोई दुकानदार अपनी बही में झूठी प्रविष्टि करता है ताकि उसे कोर्ट में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत कर सके – यह भी झूठा साक्ष्य है।
(c) कोई व्यक्ति षड्यंत्र के आरोप में फंसाने के लिए किसी और की लिखावट की नकल करके एक झूठा पत्र लिखता है और उसे पुलिस द्वारा खोजे जाने की जगह पर रखता है – यह भी झूठा साक्ष्य गढ़ना है।
यह धारा न्याय व्यवस्था को भ्रमित करने और दोषी या निर्दोष के निर्णय को गलत रूप में प्रभावित करने वाले झूठे प्रमाणों से बचाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
धारा 229 – झूठे साक्ष्य के लिए दंड
धारा 229 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी भी चरण में जानबूझकर झूठा साक्ष्य देता है या झूठा साक्ष्य बनाता है (जैसे दस्तावेज़, बयान आदि), तो उसे अधिकतम 7 वर्ष तक का कारावास (सादा या कठोर) और 10,000 रुपये तक जुर्माना हो सकता है। यदि ऐसा झूठा साक्ष्य किसी गैर-न्यायिक मामले में दिया या तैयार किया गया है, तो दंड 3 वर्ष तक का कारावास और 5,000 रुपये तक जुर्माना है।
इस धारा के तहत कोर्ट-मार्शल को भी न्यायिक कार्यवाही माना गया है। इसके अलावा, अदालत से पहले की जांच या कोर्ट द्वारा नियोजित जांच—even अगर वह कोर्ट के सामने न हो—भी न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा मानी जाती है। जैसे किसी मजिस्ट्रेट की पूछताछ में या कोर्ट द्वारा भेजे गए अधिकारी के समक्ष झूठा बयान देना भी इस धारा के अंतर्गत आएगा। इसका उद्देश्य न्यायिक प्रणाली की पवित्रता बनाए रखना है।
धारा 230 – मृत्युदंड योग्य अपराध में दोषसिद्धि दिलाने के उद्देश्य से झूठे साक्ष्य देना या गढ़ना
अगर कोई व्यक्ति जानबूझकर झूठे साक्ष्य देता है या उन्हें बनाता है, इस आशय से कि किसी निर्दोष व्यक्ति को ऐसे अपराध में दोषी ठहराया जाए जिसे भारतीय कानून के अनुसार मृत्युदंड (Capital Punishment) दिया जा सकता है, तो ऐसे व्यक्ति को आजीवन कारावास या अधिकतम दस वर्ष की कठोर कारावास तथा 50,000 रुपये तक के जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है।
यदि इस झूठे साक्ष्य के कारण कोई निर्दोष व्यक्ति दोषी ठहराया जाता है और उसे फांसी दे दी जाती है, तो झूठे साक्ष्य देने वाले को मृत्यु दंड या उपरोक्त पहली स्थिति में दी जाने वाली सज़ा (आजीवन कारावास या दस साल तक की कठोर कैद व जुर्माना) दी जा सकती है।
सार: यह धारा ऐसे अपराधों के लिए बहुत कठोर दंड का प्रावधान करती है जहाँ कोई व्यक्ति किसी निर्दोष को जानबूझकर मृत्युदंड दिलवाने की कोशिश करता है या करवाता है। यदि निर्दोष को फांसी हो जाती है, तो झूठ बोलने वाले को खुद भी मौत की सज़ा मिल सकती है।
धारा 231 – आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक की सज़ा वाले अपराध में दोषसिद्धि दिलाने के उद्देश्य से झूठे साक्ष्य देना या गढ़ना
अगर कोई व्यक्ति झूठे साक्ष्य देता है या बनाता है, इस उद्देश्य से कि किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध में दोषी ठहराया जाए, जो भारतीय कानून के अनुसार मृत्युदंड योग्य तो नहीं है लेकिन जिसमें आजीवन कारावास या सात वर्ष या उससे अधिक की कैद का प्रावधान है, तो उस झूठे साक्ष्य देने वाले को वही सज़ा दी जाएगी जो उस अपराध के लिए दी जा सकती है।
उदाहरण: यदि कोई व्यक्ति अदालत में झूठा बयान देता है ताकि किसी अन्य को डकैती के मामले में दोषी ठहराया जा सके (जिसमें आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की कठोर कैद हो सकती है), तो झूठा बयान देने वाला स्वयं भी उसी सज़ा का पात्र होगा।
सार: इस धारा के अंतर्गत, यदि किसी व्यक्ति ने झूठा साक्ष्य देकर किसी को ऐसे गंभीर अपराध में फँसाया जिसकी सज़ा आजीवन कैद या सात वर्ष से अधिक की हो सकती है, तो वह स्वयं उस अपराध के बराबर दंड का पात्र माना जाएगा।
धारा 232 – किसी व्यक्ति को झूठा साक्ष्य देने के लिए धमकाना
अगर कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को धमकी देता है—चाहे वह धमकी उसकी शारीरिक हानि, प्रतिष्ठा, संपत्ति या उसके प्रिय व्यक्ति की प्रतिष्ठा/सुरक्षा से संबंधित हो—इस इरादे से कि वह व्यक्ति झूठा साक्ष्य दे, तो ऐसे दोषी को अधिकतम 7 वर्ष की कारावास (साधारण या कठोर), या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
यदि इस प्रकार दी गई धमकी के कारण कोई निर्दोष व्यक्ति झूठे साक्ष्य के आधार पर दोषी ठहराया जाता है और उसे मृत्युदंड या सात वर्ष से अधिक की सज़ा दी जाती है, तो धमकी देने वाले व्यक्ति को भी उसी प्रकार की सज़ा और उतनी ही अवधि तक दंडित किया जाएगा, जितनी उस निर्दोष व्यक्ति को दी गई है।
धारा 233 – जानते हुए झूठे साक्ष्य का उपयोग करना
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर और भ्रष्ट तरीके से ऐसे साक्ष्य का उपयोग करता है या उपयोग करने का प्रयास करता है, जिसे वह झूठा या गढ़ा हुआ (बनावटी) जानता है, तो उसे उसी प्रकार दंडित किया जाएगा जैसे कि उसने स्वयं झूठा साक्ष्य दिया हो या गढ़ा हो।
सार: इस धारा के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति जानता है कि कोई साक्ष्य झूठा है, फिर भी उसे सच साबित करने की नीयत से अदालत में पेश करता है, तो उसे झूठा साक्ष्य देने वाले के समान ही सज़ा मिलेगी। यह प्रावधान न्याय प्रक्रिया की शुचिता बनाए रखने के लिए बनाया गया है।
सार: यह धारा ऐसे लोगों को दंडित करने का प्रावधान करती है जो दूसरों को झूठा गवाही देने के लिए धमकाते हैं। यदि इस धमकी के कारण किसी निर्दोष को मौत या लंबी सज़ा हो जाए, तो धमकी देने वाला खुद भी वैसी ही सज़ा भुगतेगा।
धारा 234 – झूठा प्रमाण-पत्र जारी करना या उस पर हस्ताक्षर करना
यदि कोई व्यक्ति ऐसा प्रमाण-पत्र (सर्टिफिकेट) जारी करता है या उस पर हस्ताक्षर करता है, जिसकी कानून द्वारा अपेक्षा की गई हो या जो किसी ऐसे तथ्य से संबंधित हो जो प्रमाण के रूप में स्वीकार्य हो, और वह व्यक्ति जानता हो या विश्वास करता हो कि प्रमाण-पत्र किसी महत्वपूर्ण बिंदु पर झूठा है, तो उसे उसी प्रकार दंडित किया जाएगा जैसे कि उसने झूठा साक्ष्य दिया हो।
सार: यदि कोई व्यक्ति किसी कानूनी या साक्ष्य के प्रयोजन के लिए आवश्यक प्रमाण-पत्र जानबूझकर झूठे तथ्यों के आधार पर जारी करता है या उस पर हस्ताक्षर करता है, तो उसे झूठा साक्ष्य देने के बराबर सज़ा दी जाएगी। यह प्रावधान प्रमाणों की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए लागू किया गया है।
धारा 235 – किसी झूठे प्रमाण-पत्र को सच मानकर उपयोग करना
यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे प्रमाण-पत्र का उपयोग करता है या उपयोग करने का प्रयास करता है, जिसे वह किसी महत्वपूर्ण बिंदु पर झूठा जानता है, और उसे जानबूझकर सच बताकर भ्रष्ट उद्देश्य से प्रस्तुत करता है, तो उसे उसी प्रकार दंडित किया जाएगा जैसे कि उसने झूठा साक्ष्य दिया हो।
सार: इस धारा के अंतर्गत, यदि कोई व्यक्ति जानते-बूझते किसी झूठे प्रमाण-पत्र को सच साबित करने की नीयत से उपयोग करता है, तो उसे भी झूठा साक्ष्य देने वाले के समान सज़ा दी जाएगी। यह कानून प्रमाण-पत्रों की प्रामाणिकता और न्यायिक प्रक्रिया की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है।
धारा 236 – ऐसे कथन में झूठ बोलना जो कानूनन साक्ष्य के रूप में स्वीकार्य हो
यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसी घोषणा (डिक्लरेशन) में, जो उसने स्वयं की हो या जिस पर उसने हस्ताक्षर किए हों – और जिसे कोई न्यायालय, सरकारी अधिकारी या अन्य व्यक्ति किसी तथ्य के प्रमाण के रूप में स्वीकार करने का कानूनी अधिकार या दायित्व रखता हो – कोई ऐसा कथन करता है जो झूठा है, और जिसे वह जानता है या मानता है कि वह झूठा है, या फिर जिसे वह सच मानता ही नहीं, तथा वह कथन उस उद्देश्य से संबंधित किसी महत्वपूर्ण विषय पर हो जिसके लिए घोषणा की गई है, तो ऐसे व्यक्ति को वैसी ही सज़ा दी जाएगी जैसी झूठा साक्ष्य देने पर दी जाती है।
सार: यदि कोई व्यक्ति किसी आधिकारिक घोषणा में जानबूझकर झूठ बोलता है और वह घोषणा कानूनन साक्ष्य के रूप में मान्य है, तो उसे झूठा साक्ष्य देने के बराबर सज़ा मिलेगी। यह प्रावधान इस बात को सुनिश्चित करता है कि घोषणाएँ, जो न्याय या प्रशासन में प्रमाण मानी जाती हैं, पूर्णतः सच्ची और विश्वसनीय हों।
धारा 237 – किसी झूठी घोषणा को जानते हुए सच के रूप में उपयोग करना
यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसी घोषणा (डिक्लरेशन) का उपयोग करता है या उपयोग करने का प्रयास करता है, जिसे वह किसी महत्वपूर्ण बिंदु पर झूठा जानता है, और फिर भी उसे जानबूझकर और भ्रष्ट उद्देश्य से सच के रूप में पेश करता है, तो उसे उसी प्रकार दंडित किया जाएगा जैसे कि उसने झूठा साक्ष्य दिया हो।
व्याख्या: कोई घोषणा केवल किसी औपचारिक त्रुटि (जैसे प्रारूप या प्रक्रिया की कमी) के कारण यदि साक्ष्य के रूप में अमान्य हो, तब भी वह धारा 236 और 237 के अंतर्गत “घोषणा” मानी जाएगी।
सार: इस धारा के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति किसी घोषणा को, जो वह जानता है कि महत्वपूर्ण तथ्य में झूठी है, फिर भी उसका उपयोग करता है, तो उसे झूठा साक्ष्य देने के बराबर सज़ा दी जाएगी। यहां तक कि यदि वह घोषणा केवल किसी तकनीकी गलती के कारण अमान्य हो, तब भी यह नियम लागू होगा। यह प्रावधान न्याय प्रक्रिया को झूठे दस्तावेज़ों से बचाने के लिए बहुत आवश्यक है।
धारा 238 : अपराध के साक्ष्य को नष्ट करना या अपराधी को छुपाने के लिए झूठी जानकारी देना
यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण होने पर कि कोई अपराध हुआ है, उस अपराध के साक्ष्य को जानबूझकर नष्ट करता है या झूठी जानकारी देता है ताकि अपराधी को कानून से बचाया जा सके, तो उसे अपराध की प्रकृति के अनुसार दंड दिया जाएगा:-
- अगर अपराध मृत्युदंड योग्य है, तो अधिकतम 7 वर्ष की कैद (साधारण या कठोर) और जुर्माना हो सकता है।
- अगर अपराध आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की सज़ा वाला है, तो अधिकतम 3 वर्ष की कैद और जुर्माना हो सकता है।
- अगर अपराध 10 वर्ष से कम की सज़ा वाला है, तो उस अपराध की अधिकतम सज़ा का चौथाई हिस्सा तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
सार: यह धारा उन व्यक्तियों को दंडित करती है जो किसी अपराध के बाद साक्ष्य को मिटाकर या झूठी सूचना देकर अपराधी को कानून से बचाने की कोशिश करते हैं। सज़ा इस बात पर निर्भर करती है कि मूल अपराध कितना गंभीर था। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अपराध की निष्पक्ष जांच और न्यायिक प्रक्रिया बाधित न हो।
धारा 239 – सूचना देने के लिए बाध्य व्यक्ति द्वारा जानबूझकर अपराध की जानकारी न देना
यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए या विश्वास करने का उचित कारण होने पर कि कोई अपराध हुआ है, फिर भी वह उस अपराध के संबंध में जानकारी देना जानबूझकर छोड़ देता है, जबकि वह कानूनी रूप से उस जानकारी को देने के लिए बाध्य होता है, तो उसे अधिकतम छह महीने की साधारण या कठोर कारावास, या पाँच हजार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
सार: यह धारा उन लोगों के लिए दंड का प्रावधान करती है जो किसी अपराध की जानकारी होने के बावजूद, जबकि उन्हें कानून के तहत ऐसी जानकारी देना आवश्यक होता है, जानबूझकर उसे छुपाते हैं। ऐसे व्यक्ति को हल्की अवधि की सज़ा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। इसका उद्देश्य यह है कि अपराधों की जानकारी दबाई न जाए और न्यायिक प्रणाली को सहयोग मिले।
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धारा 240 – किसी घटित अपराध के बारे में झूठी जानकारी देना
यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण होने पर कि कोई अपराध हुआ है, उस अपराध के संबंध में कोई ऐसी जानकारी देता है जो वह जानता है या मानता है कि झूठी है, तो उसे अधिकतम दो वर्ष की साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
व्याख्या: धारा 238, 239 और 240 में “अपराध” (offence) का अर्थ ऐसे किसी कार्य से भी है जो भारत के बाहर कहीं भी किया गया हो, लेकिन यदि वही कार्य भारत में किया गया होता, तो वह IPC की निम्नलिखित धाराओं के अंतर्गत दंडनीय होता — धारा 103, 105, 307, 309(2)(3)(4), 310(2)(3)(4)(5), 311, 312, 326(f)(g), 331(4)(6)(7)(8), और 332(a)(b)।
सार: यह धारा उन व्यक्तियों को दंडित करती है जो किसी अपराध की जानकारी देने के नाम पर जानबूझकर झूठी सूचना देते हैं, जबकि उन्हें पता होता है कि अपराध हुआ है। इसमें ऐसे विदेशी अपराध भी शामिल हैं जो अगर भारत में हुए होते तो गंभीर अपराध माने जाते। इस प्रावधान का उद्देश्य झूठी रिपोर्टिंग को रोककर न्याय प्रक्रिया की विश्वसनीयता बनाए रखना है।
धारा 241 – साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने से रोकने हेतु दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख का नष्ट करना
यदि कोई व्यक्ति किसी ऐसे दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को छुपाता है, नष्ट करता है, मिटा देता है या उसे पढ़ने योग्य नहीं रहने देता — जबकि उसे उसे अदालत या किसी वैध रूप से कार्यरत सरकारी अधिकारी के समक्ष साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत करने के लिए विधिक रूप से बाध्य किया जा सकता है — और वह ऐसा इस इरादे से करता है कि वह दस्तावेज़/रिकॉर्ड साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत न किया जा सके, या जब उसे विधिक रूप से ऐसा करने के लिए बुलाया जा चुका हो, तो उसे अधिकतम तीन वर्ष की साधारण या कठोर कारावास, या पाँच हजार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
सार: इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को जानबूझकर इस उद्देश्य से नष्ट करता है या छुपाता है कि वह साक्ष्य के रूप में अदालत या सरकारी अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत न हो सके, तो वह अपराध करता है। यह कानून साक्ष्यों की सुरक्षा और न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है।
धारा 242 – मुकदमे या अभियोजन की कार्यवाही में झूठी पहचान बनाकर कार्य करना
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का झूठा रूप धारण करता है (false personation), और उस झूठी पहचान में कोई बयान देता है, अपराध स्वीकार करता है, किसी विधिक प्रक्रिया को जारी कराता है, जमानती या ज़मानतदाता बनता है, या किसी सिविल मुकदमे या आपराधिक कार्यवाही में कोई अन्य कार्य करता है, तो उसे अधिकतम तीन वर्ष की साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
सार: इस धारा का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया को धोखाधड़ी से बचाना है। यदि कोई व्यक्ति किसी मुकदमे या अभियोजन में खुद को किसी और के रूप में प्रस्तुत कर कानून की प्रक्रिया में भाग लेता है — चाहे वह बयान देना हो, अपराध स्वीकार करना हो या जमानती बनना हो — तो वह गंभीर अपराध करता है और उसे तीन साल तक की सज़ा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
धारा 243 – संपत्ति को जब्ती या क्रियान्वयन से बचाने के लिए धोखापूर्वक हटाना या छुपाना
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर धोखे से किसी संपत्ति को हटा देता है, छुपा देता है, किसी को सौंप देता है या स्थानांतरित करता है — इस नीयत से कि वह संपत्ति या उसमें उसका हित किसी सज़ा के अंतर्गत जप्त न हो पाए, या जुर्माना वसूली में न ली जा सके, या फिर किसी दीवानी मुकदमे के आदेश या डिक्री के तहत क्रियान्वयन में न लाई जा सके — तो ऐसे व्यक्ति को अधिकतम तीन वर्ष की कारावास (साधारण या कठोर), या पाँच हजार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
सार: इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति अदालत या सक्षम प्राधिकारी द्वारा दी जाने वाली संभावित या घोषित सज़ा के तहत अपनी संपत्ति को जब्ती या वसूली से बचाने के लिए धोखे से हटा देता है, छुपा देता है या किसी और को दे देता है, तो यह एक अपराध है। इसे न्यायिक आदेशों से बचने की साजिश माना जाता है और इसके लिए तीन साल तक की सज़ा या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
धारा 244 – संपत्ति की जब्ती या क्रियान्वयन से बचाने के लिए उस पर धोखाधड़ी से दावा करना
यदि कोई व्यक्ति यह जानते हुए कि उसका किसी संपत्ति या उसमें किसी हिस्से पर कोई वैध अधिकार नहीं है, फिर भी वह धोखे से उस संपत्ति को स्वीकार करता है, प्राप्त करता है, उस पर दावा करता है, या उस पर अपने अधिकार का झूठा भ्रम पैदा करता है — इस नीयत से कि वह संपत्ति किसी अदालत या सक्षम प्राधिकारी द्वारा दी गई या संभावित सज़ा, जुर्माने की वसूली, या दीवानी आदेश/डिक्री के क्रियान्वयन के तहत जब्त न की जा सके — तो ऐसे व्यक्ति को अधिकतम दो वर्ष की साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
सार: इस धारा का उद्देश्य उन धोखेबाज़ लोगों को सज़ा देना है जो किसी ऐसी संपत्ति पर जानबूझकर झूठा दावा करते हैं, जिस पर उनका कोई कानूनी अधिकार नहीं होता, ताकि वह संपत्ति अदालत के आदेश से बचाई जा सके। यह कानून न्यायिक निर्णयों और सज़ा की प्रभावशीलता को सुनिश्चित करता है।
धारा 245 – ऐसी राशि, संपत्ति या अधिकार के लिए जानबूझकर और धोखाधड़ी से डिक्री पारित करवाना, जो देय नहीं है
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर और धोखे से किसी दूसरे व्यक्ति के पक्ष में अपने विरुद्ध ऐसी अदालती डिक्री या आदेश पारित करवाता है या होने देता है जिसमें:
- कोई ऐसी राशि हो जो वास्तव में देय नहीं है,
- या वास्तविक बकाया राशि से अधिक हो,
- या ऐसी संपत्ति/हक शामिल हो जिसका उस व्यक्ति को कोई वैध अधिकार नहीं है,
या फिर वह व्यक्ति ऐसी डिक्री को पूरा हो जाने के बाद भी धोखे से लागू करवाता है, तो यह अपराध माना जाएगा। इस अपराध के लिए अधिकतम 2 वर्ष की कारावास (साधारण या कठोर), या जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है।
सार: यह धारा उन व्यक्तियों को दंडित करती है जो अदालत को धोखा देकर जानबूझकर झूठी, अतिरिक्त या समाप्त हो चुकी डिक्री अपने विरुद्ध पारित या क्रियान्वित करवाते हैं, ताकि संपत्ति की बिक्री या फंड का गलत लाभ किसी और को दिया जा सके। इससे न्याय प्रक्रिया की पारदर्शिता और निष्पक्षता सुरक्षित रहती है।
धारा 246 – न्यायालय में जानबूझकर झूठा दावा करना
यदि कोई व्यक्ति धोखाधड़ी या बेईमानी से, या किसी व्यक्ति को हानि पहुँचाने या परेशान करने के इरादे से, न्यायालय में कोई ऐसा दावा करता है जिसे वह जानता है कि वह झूठा है, तो उसे अधिकतम दो वर्ष की साधारण या कठोर कारावास और जुर्माना – दोनों से दंडित किया जा सकता है।
सार: इस धारा का उद्देश्य न्यायालय में झूठे दावे कर न्याय प्रक्रिया का दुरुपयोग करने वालों को सज़ा देना है। यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर झूठा दावा करता है, चाहे उसका उद्देश्य किसी को हानि पहुँचाना हो, परेशान करना हो या अनुचित लाभ लेना हो, तो वह दंडनीय अपराध करता है। ऐसे व्यक्ति को दो साल तक की सज़ा और जुर्माना दोनों दिए जा सकते हैं। इससे न्यायिक प्रक्रिया की शुद्धता और सच्चाई बनी रहती है।
धारा 247 – धोखाधड़ी से गैरदेय राशि या संपत्ति के लिए डिक्री प्राप्त करना
यदि कोई व्यक्ति धोखाधड़ी से किसी अन्य व्यक्ति के विरुद्ध ऐसा न्यायालय का डिक्री या आदेश प्राप्त करता है जिसमें कोई ऐसी राशि हो जो वास्तव में देय नहीं है, या जो वास्तविक बकाया से अधिक है, या किसी ऐसी संपत्ति या संपत्ति में अधिकार के लिए हो जिस पर उसे कोई वैध हक नहीं है, या यदि वह जानबूझकर किसी पहले से संतुष्ट (पूरी हो चुकी) डिक्री को फिर से लागू करवाता है, या ऐसे किसी कार्य को अपने नाम से जानबूझकर होने देता है, तो वह अपराध करता है। ऐसे व्यक्ति को अधिकतम दो वर्ष की साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया की निष्पक्षता बनाए रखने और झूठे दावों से बचाव के लिए लागू किया गया है।
धारा 248 – किसी व्यक्ति को हानि पहुँचाने की नीयत से उस पर झूठा आपराधिक आरोप लगाना
यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को जानबूझकर हानि पहुँचाने के इरादे से उस पर आपराधिक कार्यवाही शुरू करता है या करवाता है, या उसे किसी अपराध के लिए झूठे तौर पर दोषी ठहराता है, जबकि उसे पता होता है कि ऐसे आरोप या कार्यवाही के लिए कोई वैध या न्यायसंगत आधार नहीं है, तो वह अपराध करता है। ऐसे व्यक्ति को अधिकतम 5 वर्ष की साधारण या कठोर कारावास, या 2 लाख रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है; और यदि यह झूठा आरोप किसी ऐसे अपराध से संबंधित हो जो मृत्युदंड, आजीवन कारावास, या 10 वर्ष या उससे अधिक की सज़ा वाला है, तो दोषी को अधिकतम 10 वर्ष की कारावास और जुर्माना दोनों का प्रावधान है। यह धारा निर्दोष व्यक्तियों को झूठे आरोपों से बचाने और न्यायिक प्रक्रिया के दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाई गई है।
धारा 249 – अपराधी को छिपाना या शरण देना
जब कोई अपराध घटित हो चुका होता है, तब यदि कोई व्यक्ति किसी अपराधी को यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण होते हुए छिपाता है या उसे शरण देता है, और उसका उद्देश्य उसे कानूनी सज़ा से बचाना होता है, तो वह अपराध करता है। यदि वह अपराध मृत्युदंड से दंडनीय है, तो शरण देने वाले को अधिकतम 5 वर्ष की कारावास और जुर्माना हो सकता है; यदि अपराध आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की सज़ा वाला है, तो अधिकतम 3 वर्ष की कारावास और जुर्माना हो सकता है; और यदि अपराध 1 वर्ष से अधिक लेकिन 10 वर्ष से कम की सज़ा वाला है, तो अधिकतम सज़ा की एक-चौथाई अवधि तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। इस धारा के अंतर्गत “अपराध” में वे कृत्य भी शामिल हैं जो भारत के बाहर हुए हों, पर यदि वे भारत में होते तो कुछ विशेष धाराओं (जैसे 103, 105, 307, 309, 310, 311, 312, 326, 331, 332 आदि) के अंतर्गत दंडनीय होते। अपवाद के रूप में, यदि अपराधी को उसका पति या पत्नी छिपाते हैं, तो यह धारा उन पर लागू नहीं होती।
धारा 250 – अपराधी को सज़ा से बचाने के बदले उपहार या लाभ लेना
यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध को छिपाने, या किसी व्यक्ति को कानूनी सज़ा से बचाने, या उसके विरुद्ध कानूनी कार्यवाही न करने के बदले अपने लिए या किसी और के लिए कोई उपहार, लाभ या संपत्ति की वापसी स्वीकार करता है, प्राप्त करने का प्रयास करता है, या सहमति देता है, तो वह दंडनीय अपराध करता है। यदि संबंधित अपराध मृत्युदंड से दंडनीय है, तो उसे अधिकतम 7 वर्ष की साधारण या कठोर कारावास और जुर्माना हो सकता है; यदि अपराध आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की सज़ा वाला है, तो अधिकतम 3 वर्ष की कारावास और जुर्माना हो सकता है; और यदि अपराध 10 वर्ष से कम की सज़ा वाला है, तो उस अपराध की अधिकतम सज़ा की एक-चौथाई अवधि तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। इस धारा का उद्देश्य न्यायिक प्रक्रिया में ईमानदारी बनाए रखना और अपराधियों को पैसे या लाभ के बदले बचाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाना है।
धारा 251 – अपराधी को सज़ा से बचाने के लिए किसी को उपहार या संपत्ति देना
यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध को छिपाने, या किसी व्यक्ति को कानूनी सज़ा से बचाने, या उसके विरुद्ध कार्यवाही न करने के बदले में किसी को उपहार (लाभ) देता है, देने की कोशिश करता है, देने का प्रस्ताव करता है, या सहमति देता है, या संपत्ति लौटाता है या लौटाने की व्यवस्था करता है, तो वह दंडनीय अपराध करता है। यदि वह अपराध मृत्युदंड योग्य है, तो ऐसे व्यक्ति को अधिकतम 7 वर्ष की कारावास और जुर्माना हो सकता है; यदि अपराध आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की सज़ा वाला है, तो अधिकतम 3 वर्ष की कारावास और जुर्माना हो सकता है; और यदि अपराध 10 वर्ष से कम की सज़ा वाला है, तो उस अपराध की अधिकतम सज़ा की एक-चौथाई अवधि तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। अपवाद: यह धारा और धारा 250 उन मामलों पर लागू नहीं होती जहाँ अपराध को कानूनन समझौते (compounding) के ज़रिए सुलझाया जा सकता है। यह प्रावधान न्यायिक व्यवस्था में पारदर्शिता बनाए रखने और अपराधियों को बचाने के लिए दिए जाने वाले प्रलोभनों को रोकने के लिए बनाया गया है।
धारा 252 – चोरी गई संपत्ति दिलाने के बहाने उपहार लेना
यदि कोई व्यक्ति यह दिखाकर या इस बहाने से कि वह किसी व्यक्ति की चोरी गई चल संपत्ति वापस दिलाने में मदद करेगा, कोई उपहार या लाभ लेता है, लेने पर सहमत होता है या उसे स्वीकार करता है, और वह उस अपराधी को पकड़वाने और सज़ा दिलाने के लिए अपनी पूरी कोशिश नहीं करता, तो उसे अधिकतम 2 वर्ष की साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह प्रावधान इस उद्देश्य से लाया गया है कि कोई व्यक्ति चोरी या अन्य अपराधों से संबंधित संपत्ति की बरामदगी के नाम पर लाभ लेकर अपराधियों को कानून से बचने न दे।
धारा 253 – हिरासत से भागे हुए अपराधी या जिसकी गिरफ्तारी का आदेश हुआ हो, उसे छिपाना या शरण देना
यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध के लिए कानूनी हिरासत में हो और वह हिरासत से भाग जाए, या किसी लोक सेवक द्वारा उसकी गिरफ्तारी का आदेश दिया गया हो, और कोई व्यक्ति यह जानते हुए कि वह भगोड़ा है या उसकी गिरफ्तारी का आदेश हुआ है, उसे छिपाता है या शरण देता है ताकि उसे पकड़ा न जा सके, तो वह अपराध करता है। यदि संबंधित अपराध मृत्युदंड से दंडनीय है, तो छिपाने वाले को अधिकतम 7 वर्ष की कारावास और जुर्माना हो सकता है; अगर अपराध आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की सज़ा वाला है, तो अधिकतम 3 वर्ष की कारावास (जुर्माने सहित या बिना); और यदि अपराध 1 वर्ष से अधिक लेकिन 10 वर्ष से कम की सज़ा वाला है, तो उस अपराध की अधिकतम सज़ा की एक-चौथाई अवधि तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं। व्याख्या के अनुसार, यह धारा उन अपराधों पर भी लागू होती है जो भारत के बाहर किए गए हों लेकिन यदि भारत में किए जाते तो अपराध माने जाते और जिनके लिए व्यक्ति भारत में प्रत्यर्पण (extradition) के अधीन पकड़ा जा सकता है। अपवाद: यदि अपराधी को उसका पति या पत्नी छिपाते हैं या शरण देते हैं, तो यह धारा उन पर लागू नहीं होती।
धारा 254 – डाकुओं या लुटेरों को छिपाने या शरण देने पर दंड
यदि कोई व्यक्ति यह जानता है या मानने का कारण होता है कि कुछ लोग डकैती या लूट करने वाले हैं या हाल ही में उन्होंने ऐसा अपराध किया है, और वह व्यक्ति उन अपराधियों को शरण देता है या छिपाता है, चाहे उनका उद्देश्य अपराध को अंजाम दिलवाना हो या उन्हें सज़ा से बचाना हो, तो वह अपराध करता है और उसे अधिकतम 7 वर्ष की कठोर कारावास तथा जुर्माना से दंडित किया जा सकता है। व्याख्या: यह बात महत्वपूर्ण नहीं है कि डकैती या लूट भारत में की गई है या भारत के बाहर — यह धारा दोनों स्थितियों में लागू होती है। अपवाद: यदि अपराधी को उसका पति या पत्नी छिपाते हैं, तो यह धारा उन पर लागू नहीं होती।
धारा 255 – लोक सेवक द्वारा कानून के निर्देशों की अवहेलना करना, सज़ा या जब्ती से बचाने की नीयत से
यदि कोई लोक सेवक अपने पद के अनुसार आचरण करने के लिए विधि द्वारा दिए गए किसी निर्देश को जानबूझकर नहीं मानता, और ऐसा करने का उसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को कानूनी सज़ा से बचाना या उसे वास्तविक सज़ा से कम सज़ा दिलाना, या किसी संपत्ति को कानूनी जब्ती या शुल्क से बचाना होता है (या ऐसा परिणाम होने की उसे आशंका होती है), तो वह अपराध करता है। ऐसे लोक सेवक को अधिकतम 2 वर्ष की साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह धारा इस उद्देश्य से बनाई गई है कि लोक सेवक अपने कर्तव्यों का निष्पक्ष पालन करें और कानून की प्रक्रिया से किसी को जानबूझकर अनुचित लाभ न दें।
धारा 256 – लोक सेवक द्वारा सज़ा या जब्ती से बचाने की नीयत से गलत अभिलेख या लेख तैयार करना
यदि कोई लोक सेवक, जो किसी दस्तावेज़ या अभिलेख तैयार करने का जिम्मेदार होता है, जानबूझकर ऐसा अभिलेख या लेख इस प्रकार तैयार करता है जिसे वह गलत जानता है, और ऐसा करने का उसका उद्देश्य जनता या किसी व्यक्ति को हानि पहुँचाना, या किसी व्यक्ति को कानूनी सज़ा से बचाना, या किसी संपत्ति को कानूनी जब्ती या दायित्व से बचाना होता है (या ऐसा होने की संभावना उसे होती है), तो उसे अधिकतम 3 वर्ष की साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह धारा लोक सेवकों द्वारा कर्तव्य के दुरुपयोग पर रोक लगाने और न्याय की निष्पक्षता बनाए रखने हेतु लागू की गई है।
धारा 257 : न्यायिक कार्यवाही में लोक सेवक द्वारा भ्रष्ट या दुर्भावनापूर्ण रूप से अवैध रिपोर्ट या निर्णय देना
यदि कोई लोक सेवक किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी भी चरण में भ्रष्ट तरीके से या दुर्भावना से प्रेरित होकर कोई रिपोर्ट, आदेश, निर्णय या अभिमत (verdict) देता है, जबकि वह जानता है कि यह कानून के विरुद्ध है, तो वह अपराध करता है। ऐसे लोक सेवक को अधिकतम 7 वर्ष की साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह धारा न्यायिक प्रणाली में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने हेतु लागू की गई है, ताकि कोई लोक सेवक जानबूझकर कानून का उल्लंघन करके किसी को लाभ या हानि न पहुँचा सके।
धारा 258 – विधि के विरुद्ध किसी व्यक्ति को मुकदमे के लिए भेजना या हिरासत में रखना
यदि कोई व्यक्ति ऐसा पदधारी है जिसे किसी को मुकदमे के लिए भेजने, हिरासत में रखने, या हिरासत बनाए रखने का कानूनी अधिकार प्राप्त है, और वह भ्रष्ट रूप से या दुर्भावना से प्रेरित होकर, यह जानते हुए कि वह कानून के विरुद्ध कार्य कर रहा है, किसी को मुकदमे के लिए भेजता है या हिरासत में रखता है, तो वह अपराध करता है। ऐसे व्यक्ति को अधिकतम 7 वर्ष की साधारण या कठोर कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि कानूनी अधिकार का दुरुपयोग न हो और किसी निर्दोष व्यक्ति को जानबूझकर अवैध रूप से जेल या मुकदमे में न फँसाया जाए।
धारा 259 – गिरफ्तारी या हिरासत से संबंधित लोक सेवक द्वारा जानबूझकर गिरफ्तारी न करना या अपराधी को भागने देना
यदि कोई लोक सेवक, जो कानून के अनुसार किसी आरोपी व्यक्ति को पकड़ने या हिरासत में रखने के लिए बाध्य है, जानबूझकर उसे न पकड़ता है, या जानबूझकर उसे भागने देता है या भागने में सहायता करता है, तो वह दंडनीय अपराध करता है। यदि वह आरोपी ऐसा अपराधी है जिसे मृत्युदंड मिल सकता है, तो लोक सेवक को अधिकतम 7 वर्ष की कारावास और जुर्माना (या बिना जुर्माना) से दंडित किया जा सकता है; यदि आरोपी को आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की सज़ा मिल सकती है, तो सज़ा अधिकतम 3 वर्ष की कारावास (जुर्माने सहित या बिना); और यदि आरोपी को 10 वर्ष से कम की सज़ा मिल सकती है, तो अधिकतम 2 वर्ष की कारावास, जुर्माना या दोनों दिए जा सकते हैं। यह प्रावधान लोक सेवकों की जिम्मेदारी तय करता है कि वे कानून के तहत अपने कर्तव्य का पालन करें और किसी अपराधी को जानबूझकर न बचाएं।
धारा 260 – सज़ायाफ्ता या विधिपूर्वक हिरासत में लिए गए व्यक्ति को पकड़ने से लोक सेवक द्वारा जानबूझकर चूक करना
यदि कोई लोक सेवक, जो कानूनन किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार करने या हिरासत में रखने के लिए बाध्य है जो या तो अदालत से सज़ायाफ्ता है या विधिपूर्वक हिरासत में लिया गया है, जानबूझकर उसे न पकड़ता है, या उसे जानबूझकर भागने देता है या भागने में सहायता करता है, तो उसे दंडित किया जाएगा: (a) यदि वह व्यक्ति मृत्युदंड से दंडित है, तो लोक सेवक को आजीवन कारावास या अधिकतम 14 वर्ष की कारावास (जुर्माने सहित या बिना) हो सकती है; (b) यदि व्यक्ति को अदालत द्वारा या उसकी सज़ा में कमी के अनुसार आजीवन कारावास या 10 वर्ष या उससे अधिक की सज़ा मिली है, तो दंड अधिकतम 7 वर्ष की कारावास, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं; (c) यदि व्यक्ति को 10 वर्ष से कम की सज़ा मिली है या वह केवल विधिपूर्वक हिरासत में है, तो दंड अधिकतम 3 वर्ष की कारावास, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं। यह प्रावधान लोक सेवकों की कानूनी जिम्मेदारी सुनिश्चित करता है कि वे सज़ायाफ्ता व्यक्तियों को जानबूझकर बचाने का कार्य न करें।
धारा 261 – लोक सेवक द्वारा लापरवाही से बंदी का भाग जाना
यदि कोई लोक सेवक, जो कानूनन किसी व्यक्ति को—चाहे वह किसी अपराध का आरोपी हो, दोषी ठहराया गया हो या विधिपूर्वक हिरासत में लिया गया हो—बंदी बनाकर रखने के लिए बाध्य है, और वह लोक सेवक लापरवाहीपूर्वक उस व्यक्ति को भागने देता है, तो वह अपराध करता है और उसे सरल कारावास जो अधिकतम दो वर्ष तक हो सकता है, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। इस धारा का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लोक सेवक अपनी जिम्मेदारी को सावधानीपूर्वक निभाएं और हिरासत में लिए गए व्यक्तियों की सुरक्षा और निगरानी में लापरवाही न करें।
धारा 262 – अपनी वैध गिरफ्तारी का विरोध या उसमें बाधा डालना
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर अपनी वैध गिरफ्तारी में विरोध करता है या अवैध रूप से बाधा डालता है, चाहे वह किसी अपराध का आरोपी हो या दोषी ठहराया गया हो, या यदि वह व्यक्ति हिरासत से भागता है या भागने का प्रयास करता है, जबकि वह उस अपराध के लिए विधिपूर्वक हिरासत में है, तो उसे दो वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
स्पष्टीकरण: इस धारा के अंतर्गत मिलने वाली सज़ा उस मूल अपराध की सज़ा के अतिरिक्त होगी, जिसके लिए व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया है या सज़ा दी गई है। इसका उद्देश्य यह है कि कोई भी आरोपी या दोषी व्यक्ति अपनी गिरफ्तारी से बचने हेतु कानून की प्रक्रिया में बाधा न डाले।
धारा 263 : किसी अन्य व्यक्ति की वैध गिरफ्तारी में बाधा या उसे छुड़ाने का प्रयास
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति की वैध गिरफ्तारी में बाधा डालता है या उसे हिरासत से छुड़ाता है या ऐसा करने का प्रयास करता है, तो उसे अपराध की गंभीरता के अनुसार सजा मिलती है—यदि संबंधित व्यक्ति किसी सामान्य अपराध में पकड़ा जा रहा है तो 2 साल तक की कारावास या जुर्माना या दोनों; यदि वह आजीवन कारावास या 10 साल तक की सजा वाले अपराध में आरोपी है तो 3 साल तक की कारावास और जुर्माना; अगर वह व्यक्ति मृत्युदंड योग्य अपराध में आरोपी है, तो 7 साल तक की कारावास और जुर्माना; अगर वह व्यक्ति कोर्ट से मिली सजा या क्षमा के तहत आजीवन कारावास या 10 वर्ष या उससे अधिक की सजा भुगत रहा है, तो भी 7 साल तक की कारावास और जुर्माना; और यदि वह व्यक्ति मृत्युदंड का दोषी है, तो आजीवन कारावास या अधिकतम 10 साल की कारावास और जुर्माना लगाया जा सकता है। यह धारा कानून के तहत न्यायिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने वाले व्यक्तियों के लिए कठोर दंड का प्रावधान करती है।
धारा 264 – ऐसे मामलों में सार्वजनिक सेवक द्वारा गिरफ्तारी में चूक या अभियुक्त के भागने देने पर दंड, जिनके लिए अन्यथा प्रावधान नहीं किया गया है
यदि कोई सार्वजनिक सेवक, जो विधिपूर्वक किसी व्यक्ति को गिरफ़्तार करने या हिरासत में रखने के लिए बाध्य है, और यह मामला धारा 259, 260 या 261 या किसी अन्य वर्तमान विधि में निर्दिष्ट नहीं है, तब भी यदि वह व्यक्ति को गिरफ़्तार करने में जानबूझकर चूक करता है या उसे भागने देता है, तो उसे तीन वर्ष तक की कारावास या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है; और यदि यह चूक लापरवाहीवश हुई है, तो उसे दो वर्ष तक की साधारण कारावास या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि सभी लोक सेवक, चाहे मामला किसी विशिष्ट धारा के अंतर्गत आता हो या नहीं, अपने कर्तव्यों का पालन ईमानदारी और सावधानीपूर्वक करें।
धारा 265 – ऐसे मामलों में विधिपूर्ण गिरफ्तारी में अवरोध, या विधिसम्मत हिरासत से भागना या बचाना, जिनके लिए अन्यथा प्रावधान नहीं किया गया है
यदि कोई व्यक्ति, ऐसे किसी मामले में जो धारा 262 या 263 या किसी अन्य लागू कानून के अंतर्गत नहीं आता, जानबूझकर अपनी या किसी अन्य व्यक्ति की विधिसम्मत गिरफ्तारी में अवरोध उत्पन्न करता है या अवैध रूप से बाधा डालता है, या स्वयं विधिपूर्ण हिरासत से भागता है या भागने का प्रयास करता है, या किसी अन्य व्यक्ति को हिरासत से बचाता है या बचाने का प्रयास करता है, तो उसे छह महीने तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों की सजा दी जा सकती है। यह धारा उन मामलों को कवर करती है जो अन्य विशिष्ट धाराओं में सम्मिलित नहीं हैं, परन्तु जिनमें गिरफ्तारी या हिरासत से अवैध रूप से बचने या अवरोध डालने का प्रयास किया गया हो।
धारा 266 – दंड की माफी की शर्त का उल्लंघन
यदि कोई व्यक्ति, दंड की किसी शर्तीय माफी (conditional remission of punishment) को स्वीकार करने के बाद, जानबूझकर उस शर्त का उल्लंघन करता है जिस पर माफी दी गई थी, तो उसे वही मूल सजा भुगतनी होगी जो पहले दी गई थी। यदि उसने पहले उस सजा का कोई भाग भोगा नहीं है, तो उसे पूरी सजा भुगतनी होगी, और यदि उसने कुछ भाग पहले ही भोग लिया है, तो उसे केवल शेष सजा भुगतनी होगी। यह धारा यह सुनिश्चित करती है कि माफी पाने वाला व्यक्ति शर्तों का पालन करे, अन्यथा उसे अपनी पूरी या बची हुई सजा काटनी पड़ेगी।
धारा 267 – न्यायिक कार्यवाही के दौरान न्यायिक अधिकारी का अपमान या व्यवधान उत्पन्न करना
यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक (public servant) को, जब वह किसी न्यायिक कार्यवाही (judicial proceeding) के किसी भी चरण में बैठा हो, जानबूझकर अपमानित करता है या व्यवधान उत्पन्न करता है, तो ऐसे व्यक्ति को छह महीने तक का साधारण कारावास, या पांच हजार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह धारा न्यायिक प्रक्रिया की गरिमा और न्यायिक अधिकारियों के कार्य में शांति बनाए रखने के लिए लागू की गई है।
धारा 268 – मूल्यांकनकर्ता (Assessor) के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करना (Personation of Assessor)
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर या छलपूर्वक स्वयं को किसी न्यायिक मामले में मूल्यांकनकर्ता (assessor) के रूप में नामित, चयनित या शपथबद्ध करवा लेता है, जबकि वह कानून के अनुसार ऐसा करने का अधिकारी नहीं है, या यह जानते हुए कि उसकी नियुक्ति कानून के विपरीत हुई है, फिर भी वह स्वेच्छा से उस पद पर कार्य करता है, तो उसे दो वर्ष तक का कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह धारा न्यायिक प्रक्रिया की शुद्धता बनाए रखने के लिए बनाई गई है ताकि कोई अयोग्य व्यक्ति न्यायिक कार्य में भाग न ले सके।
धारा 269 – जमानत या बांड पर रिहा व्यक्ति का न्यायालय में उपस्थित होने में विफल होना
यदि कोई व्यक्ति किसी अपराध में आरोपित होने के बाद जमानत या बांड पर रिहा किया गया हो, और वह बिना किसी वैध कारण के न्यायालय में उपस्थित नहीं होता, तो उसे एक वर्ष तक का कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। इस धारा के अंतर्गत, उचित कारण साबित करने की जिम्मेदारी उस व्यक्ति पर होती है जो न्यायालय में अनुपस्थित रहा हो। स्पष्टीकरण के अनुसार: (a) यह दंड उस अपराध के लिए मिलने वाले दंड के अतिरिक्त होगा जिसके लिए व्यक्ति आरोपित है; और (b) यह न्यायालय को बांड को ज़ब्त करने की शक्ति से अलग है। यह प्रावधान न्यायिक प्रक्रिया में अनुपस्थिति को गंभीरता से लेने के लिए बनाया गया है।
Chapter-XV
OFFENCES AFFECTING THE PUBLIC HEALTH, SAFETY, CONVENIENCE, DECENCY AND MORALS
धारा 270 – सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance)
जो कोई ऐसा कार्य करता है या किसी अवैध चूक का दोषी होता है जिससे आम जनता या किसी इलाके के निवासियों को सामान्य रूप से हानि, खतरा या कष्ट होता है, या जिससे सार्वजनिक अधिकारों का प्रयोग करने वाले व्यक्तियों को अनिवार्य रूप से चोट, बाधा, खतरा या परेशानी होती है, तो वह सार्वजनिक उपद्रव (Public Nuisance) का दोषी होता है। यह कोई बचाव नहीं है कि उस कृत्य से कुछ लोगों को सुविधा या लाभ हुआ हो — यदि उससे जनसामान्य को हानि या असुविधा होती है, तो वह कानूनन दंडनीय है।
धारा 271 – जीवन के लिए खतरनाक रोग के संक्रमण को फैलाने वाला लापरवाहीपूर्ण कार्य
यदि कोई व्यक्ति अवैध रूप से या लापरवाहीपूर्वक ऐसा कार्य करता है, जिसे वह जानता है या मानने का उचित कारण रखता है कि उससे किसी जीवन के लिए खतरनाक रोग का संक्रमण फैल सकता है, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 272 – दुर्भावनापूर्ण कार्य जिससे जीवन के लिए खतरनाक रोग का संक्रमण फैल सकता है
जो कोई व्यक्ति दुर्भावनापूर्वक ऐसा कार्य करता है, जिसे वह जानता है या मानने का उचित कारण रखता है कि उससे किसी जीवन के लिए खतरनाक रोग का संक्रमण फैल सकता है, तो वह दोषी होगा और उसे दो वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 273 – संगरोध (Quarantine) नियम का उल्लंघन:
जो कोई व्यक्ति जानबूझकर सरकार द्वारा बनाए गए किसी ऐसे नियम का उल्लंघन करता है, जो किसी यातायात साधन को संगरोध की स्थिति में रखने, या ऐसे संगरोधित यातायात के संचालन को नियंत्रित करने, या संक्रमण वाले क्षेत्रों और अन्य स्थानों के बीच संपर्क को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया हो, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 274 – बिक्री के लिए खाद्य या पेय पदार्थ में मिलावट:
जो कोई व्यक्ति किसी खाद्य या पेय पदार्थ में इस प्रकार मिलावट करता है कि वह हानिकारक हो जाए, और उस वस्तु को खाद्य या पेय के रूप में बेचने का इरादा रखता है, या जानता है कि वह वस्तु संभवतः खाद्य या पेय के रूप में बेची जाएगी, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 275 – हानिकारक खाद्य या पेय पदार्थ की बिक्री:
जो कोई व्यक्ति किसी ऐसे पदार्थ को खाद्य या पेय के रूप में बेचता है, बेचने की पेशकश करता है या बिक्री हेतु प्रदर्शित करता है, जो हानिकारक बना दिया गया हो या हो गया हो, या खाद्य या पेय के रूप में अनुपयुक्त स्थिति में हो, और वह जानता हो या मानने का उचित कारण रखता हो कि वह पदार्थ हानिकारक है, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 276 – औषधियों में मिलावट
जो कोई व्यक्ति किसी औषधि या चिकित्सकीय तैयारी में इस प्रकार मिलावट करता है कि उससे उसकी प्रभावशीलता कम हो जाए, या उसकी क्रिया में परिवर्तन हो जाए, या वह हानिकारक बन जाए, और उसका उद्देश्य हो कि वह औषधि बिके या चिकित्सकीय उपयोग में लाई जाए, या वह जानता हो या मानने का कारण रखता हो कि ऐसा होना संभव है, तो वह दोषी होगा और उसे एक वर्ष तक की कारावास, या पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 277 – मिलावटी औषधियों की बिक्री
जो कोई व्यक्ति यह जानते हुए कि किसी औषधि या चिकित्सकीय तैयारी में ऐसी मिलावट की गई है जिससे उसकी प्रभावशीलता कम हो गई है, उसकी क्रिया में परिवर्तन हो गया है या वह हानिकारक बन गई है, फिर भी उसे बेचता है, बिक्री के लिए प्रस्तुत करता है, औषधालय से बिना मिलावट के रूप में जारी करता है, या किसी अनजान व्यक्ति को चिकित्सकीय उपयोग के लिए प्रयुक्त कराता है, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 278 – किसी औषधि को भिन्न औषधि या तैयारी के रूप में बेचने की क्रिया
जो कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी औषधि या चिकित्सकीय तैयारी को किसी अन्य औषधि या तैयारी के रूप में बेचता है, या बिक्री के लिए प्रस्तुत करता है, या औषधालय से चिकित्सकीय प्रयोजनों हेतु जारी करता है, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 279 – सार्वजनिक झरने या जलाशय के जल को गंदा करना:
जो कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी सार्वजनिक झरने या जलाशय के जल को इस प्रकार गंदा या दूषित करता है कि वह अपने सामान्य उपयोग के लिए कम उपयुक्त हो जाए, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 280 – वातावरण को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बनाना:
जो कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी स्थान पर वातावरण को इस प्रकार दूषित करता है कि वह आस-पास रहने वाले, व्यापार करने वाले या सार्वजनिक मार्ग से गुजरने वाले व्यक्तियों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो जाए, तो उसे एक हज़ार रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
धारा 281 – सार्वजनिक मार्ग पर लापरवाही से वाहन चलाना या सवारी करना:
जो कोई व्यक्ति किसी सार्वजनिक मार्ग पर इस प्रकार लापरवाही या तेज़ी से वाहन चलाता है या सवारी करता है कि उससे मानव जीवन को खतरा हो, या किसी व्यक्ति को चोट या हानि पहुँचने की संभावना हो, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या एक हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 282 – जलयान को लापरवाहीपूर्वक चलाना:
जो कोई व्यक्ति किसी जलयान को इस प्रकार लापरवाही या तेज़ी से चलाता है कि उससे मानव जीवन को खतरा हो, या किसी व्यक्ति को चोट या हानि पहुँचने की संभावना हो, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या दस हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 283 – भ्रामक प्रकाश, संकेत या तैरते चिन्ह (buoy) का प्रदर्शन:
जो कोई व्यक्ति जानबूझकर या इस आशय से कि किसी नाविक को गुमराह किया जा सके, भ्रामक प्रकाश, चिन्ह या तैरता संकेत (buoy) प्रदर्शित करता है, तो वह दोषी होगा और उसे सात वर्ष तक की कारावास तथा कम से कम दस हज़ार रुपये के जुर्माने से दंडित किया जाएगा।
धारा 284 – किराए पर असुरक्षित या अधिक लदी नाव द्वारा व्यक्ति को जलमार्ग से ले जाना:
जो कोई व्यक्ति जानबूझकर या लापरवाही से किसी व्यक्ति को किराए पर किसी नाव के माध्यम से ले जाता है या ले जाने का कारण बनता है, जब वह नाव इतनी असुरक्षित स्थिति में हो या इतनी अधिक लदी हो कि उस व्यक्ति के जीवन को खतरा हो, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 285 – सार्वजनिक मार्ग या नौवहन मार्ग में खतरा या बाधा उत्पन्न करना:
जो कोई व्यक्ति किसी कार्य के करने से, या अपने अधिकार या नियंत्रण में किसी संपत्ति के संबंध में आवश्यक सावधानी न बरतने से, किसी सार्वजनिक मार्ग या नौवहन मार्ग में किसी व्यक्ति के लिए खतरा, बाधा या हानि उत्पन्न करता है, तो वह दोषी होगा और उसे पाँच हज़ार रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
धारा 286 – विषैले पदार्थ के संबंध में लापरवाहीपूर्ण आचरण:
जो कोई व्यक्ति किसी विषैले पदार्थ के साथ ऐसा कार्य करता है जो अत्यधिक लापरवाही या उतावलेपन से किया गया हो और जिससे मानव जीवन को खतरा हो या किसी व्यक्ति को चोट या हानि पहुँचने की संभावना हो, या जो व्यक्ति जानबूझकर या लापरवाहीपूर्वक अपने अधिकार में रखे विषैले पदार्थ के संबंध में आवश्यक सावधानी नहीं बरतता, जिससे मानव जीवन को संभावित खतरा उत्पन्न हो सकता है, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 287 – आग या ज्वलनशील पदार्थ के संबंध में लापरवाहीपूर्ण आचरण
जो कोई व्यक्ति आग या किसी ज्वलनशील पदार्थ के साथ इस प्रकार लापरवाही या उतावलेपन से कार्य करता है कि उससे मानव जीवन को खतरा हो या किसी व्यक्ति को चोट या हानि पहुँचने की संभावना हो, या जो व्यक्ति जानबूझकर या लापरवाहीपूर्वक अपने अधिकार में रखी आग या ज्वलनशील पदार्थ के संबंध में ऐसी व्यवस्था करने में चूक करता है जिससे मानव जीवन को संभावित खतरा उत्पन्न हो सकता है, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या दो हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 288 – विस्फोटक पदार्थ के संबंध में लापरवाहीपूर्ण आचरण:
जो कोई व्यक्ति किसी विस्फोटक पदार्थ के साथ इस प्रकार लापरवाही या उतावलेपन से कार्य करता है कि उससे मानव जीवन को खतरा हो या किसी व्यक्ति को चोट या हानि पहुँचने की संभावना हो, या जो व्यक्ति जानबूझकर या लापरवाहीपूर्वक अपने अधिकार में रखे विस्फोटक पदार्थ के संबंध में ऐसी व्यवस्था करने में चूक करता है जिससे मानव जीवन को संभावित खतरा उत्पन्न हो सकता है, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 289 – मशीनरी के संबंध में लापरवाहीपूर्ण आचरण
जो कोई व्यक्ति किसी मशीनरी के साथ इस प्रकार लापरवाही या उतावलेपन से कार्य करता है कि उससे मानव जीवन को खतरा हो या किसी व्यक्ति को चोट या हानि पहुँचने की संभावना हो, या जो व्यक्ति जानबूझकर या लापरवाहीपूर्वक अपने अधिकार या देखरेख में रखी मशीनरी के संबंध में ऐसी व्यवस्था करने में चूक करता है जिससे मानव जीवन को संभावित खतरा उत्पन्न हो सकता है, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 290 – भवन को गिराने, मरम्मत करने या निर्माण के संबंध में लापरवाहीपूर्ण आचरण:
जो कोई व्यक्ति किसी भवन को गिराते समय, उसकी मरम्मत करते समय या निर्माण करते समय, जानबूझकर या लापरवाहीपूर्वक ऐसी आवश्यक सावधानी बरतने में चूक करता है जिससे उस भवन या उसके किसी भाग के गिरने से मानव जीवन को संभावित खतरे से बचाया जा सके, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 291 – पशु के संबंध में लापरवाहीपूर्ण आचरण:
जो कोई व्यक्ति अपने अधिकार में किसी पशु के संबंध में जानबूझकर या लापरवाहीपूर्वक ऐसी आवश्यक सावधानी बरतने में चूक करता है जिससे उस पशु से मानव जीवन को संभावित खतरा या गंभीर चोट की संभावना हो, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 292 – ऐसे मामलों में सार्वजनिक उपद्रव के लिए दंड जिनके लिए अन्यथा प्रावधान नहीं है:
जो कोई व्यक्ति ऐसा सार्वजनिक उपद्रव करता है, जिसके लिए इस संहिता में अन्य किसी विशेष धारा के अंतर्गत अलग से दंड का प्रावधान नहीं है, तो उसे एक हज़ार रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
धारा 293 – सार्वजनिक उपद्रव को रोकने के आदेश के बाद भी उसका जारी रहना:
जो कोई व्यक्ति किसी विधिक प्राधिकृत लोक सेवक द्वारा सार्वजनिक उपद्रव को न दोहराने या बंद करने के आदेश के बावजूद उस उपद्रव को दोहराता है या जारी रखता है, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की साधारण कारावास, या पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 294 – अश्लील पुस्तकों आदि की बिक्री, प्रदर्शन या प्रसार
(1) यदि कोई पुस्तक, पैम्फलेट, लेख, चित्र, पेंटिंग, प्रतिनिधित्व, मूर्ति या कोई अन्य वस्तु (यहां तक कि इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रदर्शित सामग्री) ऐसी हो जो कामोत्तेजक हो, अश्लील रुचि को आकर्षित करती हो, या उसका प्रभाव (या उसमें सम्मिलित किसी एक वस्तु का प्रभाव) ऐसा हो जो पाठक, दर्शक या श्रोता को नैतिक दृष्टि से भ्रष्ट करने की प्रवृत्ति रखता हो, तो उसे अश्लील माना जाएगा।
(2) जो कोई व्यक्ति—
(a) किसी भी प्रकार की अश्लील वस्तु को बेचता है, किराए पर देता है, वितरित करता है, सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित करता है, प्रसारित करता है, या इस उद्देश्य से उत्पादन, निर्माण या अपने पास रखता है,
(b) किसी अश्लील वस्तु को आयात, निर्यात या परिवहन करता है,
(c) ऐसे किसी व्यापार में भाग लेता है या उससे लाभ कमाता है जिसमें वह जानता है या मानने का कारण रखता है कि अश्लील वस्तुएं बनाई, खरीदी, रखी, प्रदर्शित या प्रसारित की जा रही हैं,
(d) किसी व्यक्ति द्वारा ऐसा कोई कार्य करने की विज्ञप्ति या प्रचार करता है,
(e) उपर्युक्त किसी कृत्य को प्रस्तावित करता है या करने का प्रयास करता है,
तो पहली बार दोषी पाए जाने पर उसे दो वर्ष तक की कारावास और पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, तथा पुनः अपराध की स्थिति में पाँच वर्ष तक की कारावास और दस हज़ार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
अपवाद: यह धारा लागू नहीं होती—
(a) उन पुस्तकों, चित्रों आदि पर जो जनहित, विज्ञान, साहित्य, कला या शिक्षा के उद्देश्य से प्रकाशित हों, या जो धार्मिक प्रयोजनों के लिए रखे या प्रयुक्त किए जाते हों;
(b) वे चित्रण जो प्राचीन स्मारकों, मंदिरों, मूर्तियों के रथों या धार्मिक उपयोग की वस्तुओं पर बने हों।
धारा 295 – बच्चे को अश्लील वस्तु बेचना, किराए पर देना, वितरित करना या प्रदर्शित करना:
जो कोई व्यक्ति किसी बच्चे को, धारा 294 में उल्लिखित किसी अश्लील वस्तु को बेचता है, किराए पर देता है, वितरित करता है, प्रदर्शित करता है या प्रसारित करता है, या ऐसा करने का प्रस्ताव करता है या प्रयास करता है, तो वह दोषी होगा और पहली बार दोषी पाए जाने पर उसे तीन वर्ष तक की कारावास और दो हज़ार रुपये तक का जुर्माना, तथा दुबारा या उसके बाद अपराध करने पर सात वर्ष तक की कारावास और पाँच हज़ार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
धारा 296 – अश्लील कृत्य और गीत
जो कोई व्यक्ति, दूसरों को क्षोभ या असुविधा पहुँचाते हुए—
(a) किसी सार्वजनिक स्थान पर कोई अश्लील कृत्य करता है, या
(b) किसी सार्वजनिक स्थान में या उसके आस-पास अश्लील गीत, कविता या शब्द गाता, पढ़ता या बोलता है,
तो वह दोषी होगा और उसे तीन महीने तक की कारावास, या एक हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 297 – लॉटरी कार्यालय रखना:
(1) जो कोई व्यक्ति राज्य लॉटरी या राज्य सरकार द्वारा अधिकृत लॉटरी को छोड़कर किसी भी अन्य लॉटरी के संचालन के लिए कार्यालय या स्थान स्थापित करता है, तो वह दोषी होगा और उसे छह महीने तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
(2) जो कोई व्यक्ति ऐसी किसी लॉटरी के टिकट, लॉट, संख्या या आकृति के ड्रॉ से संबंधित किसी घटना या संभावना पर किसी व्यक्ति को कोई धनराशि देने, वस्तु प्रदान करने, या कोई कार्य करने या न करने का प्रस्ताव प्रकाशित करता है, तो उसे पाँच हज़ार रुपये तक के जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
Chapter-16 : Offences Relating to Religion
धारा 298 – किसी वर्ग के धर्म का अपमान करने के उद्देश्य से पूजा स्थल को नुकसान पहुँचाना या अपवित्र करना
जो कोई व्यक्ति किसी पूजा स्थल को नष्ट करता है, क्षति पहुँचाता है या अपवित्र करता है, या किसी ऐसे वस्तु को नुकसान पहुँचाता है जिसे किसी वर्ग के लोग पवित्र मानते हैं, इस उद्देश्य से कि उस वर्ग के धर्म का अपमान हो, या यह जानते हुए कि ऐसा कार्य उस वर्ग के लोगों को उनके धर्म का अपमान प्रतीत होगा, तो वह दोषी होगा और उसे दो वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 299 – किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने हेतु जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कार्य करना:
जो कोई व्यक्ति भारत के किसी नागरिक वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण इरादे से, शब्दों (मौखिक या लिखित रूप में), संकेतों, दृश्य अभिव्यक्तियों, इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों या अन्य किसी विधि से उस वर्ग के धर्म या धार्मिक विश्वासों का अपमान करता है या अपमान करने का प्रयास करता है, तो वह दोषी होगा और उसे तीन वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 300 – धार्मिक सभा में बाधा पहुँचाना:
जो कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी ऐसी सभा में विघ्न उत्पन्न करता है जो धार्मिक पूजा या धार्मिक अनुष्ठानों के विधिपूर्वक आयोजन में संलग्न हो, तो वह दोषी होगा और उसे एक वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 301 – समाधि स्थलों या अंतिम संस्कार स्थलों पर अतिक्रमण
जो कोई व्यक्ति किसी व्यक्ति की भावनाओं को ठेस पहुँचाने, या उसके धर्म का अपमान करने के इरादे से, या यह जानते हुए कि ऐसा करने से किसी की भावनाएं आहत होंगी या धर्म का अपमान होगा, किसी पूजा स्थल, कब्र या समाधि स्थल, अंत्येष्टि स्थलों, या मृत अवशेषों को रखने के स्थान में अवैध रूप से प्रवेश करता है, या किसी मानव शव का अपमान करता है, या अंत्येष्टि में एकत्रित लोगों को बाधा पहुँचाता है, तो वह दोषी होगा और उसे एक वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 302 – किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के इरादे से शब्द कहना, संकेत करना या वस्तु दिखाना:
जो कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के उद्देश्य से, उस व्यक्ति की सुनने की सीमा में कोई शब्द कहता है, या ध्वनि करता है, या उसकी दृष्टि में कोई संकेत करता है, या कोई वस्तु रखता है, तो वह दोषी होगा और उसे एक वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
Chapter-17: Offence against Property
धारा 303 – चोरी
(1) जो कोई व्यक्ति किसी चल संपत्ति को किसी व्यक्ति के कब्जे से, उसकी अनुमति के बिना, बेईमानी से लेने के इरादे से हिलाता / ले जाता है, वह चोरी करता है।
स्पष्टीकरण:
- जब तक कोई वस्तु पृथ्वी से जुड़ी होती है, वह चल संपत्ति नहीं मानी जाती, लेकिन पृथ्वी से अलग होते ही वह चोरी का विषय बन जाती है।
- पृथ्वी से वस्तु अलग करने और उसे हिलाने का कार्य एक साथ हो तो भी चोरी मानी जाएगी।
- कोई वस्तु किसी रुकावट को हटाकर या उसे अन्य वस्तु से अलग करके हिलाई जाए, तो उसे भी हिलाना कहा जाएगा।
- कोई व्यक्ति यदि किसी जानवर को किसी भी तरह हिलाता है, तो वह उस जानवर और उस जानवर द्वारा हिलाई गई वस्तुओं को हिलाने वाला माना जाएगा।
- अनुमति स्पष्ट या निहित हो सकती है और वह व्यक्ति स्वयं या उसके द्वारा अधिकृत किसी अन्य व्यक्ति द्वारा दी जा सकती है।
दोष सिद्धि के उदाहरणों में पेड़ काटना, किसी की वस्तु छिपाना, जानवरों को बहला कर ले जाना, जमानत या गिरवी रखी वस्तु को बिना चुकता किए ले जाना, या ईनाम पाने की मंशा से वस्तु रखना — सभी चोरी के उदाहरण हैं।
(2) जो कोई चोरी करता है, उसे तीन वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
यदि वह दूसरी बार या उससे अधिक बार चोरी करता है, तो उसे एक वर्ष से कम नहीं और पाँच वर्ष तक की कठोर कारावास तथा जुर्माना से दंडित किया जाएगा।
प्रावधान: यदि चोरी की गई संपत्ति का मूल्य पाँच हज़ार रुपये से कम है, और व्यक्ति पहली बार दोषी ठहराया गया है, तथा वह संपत्ति लौटा देता है या उसका मूल्य चुका देता है, तो उसे सामुदायिक सेवा से दंडित किया जाएगा।
धारा 304 – छिनतई/ छीनना
(1) यदि कोई व्यक्ति चोरी करने के उद्देश्य से किसी व्यक्ति से या उसके कब्जे से किसी चल संपत्ति को अचानक, तेजी से या बलपूर्वक छीनता, पकड़ता, जब्त करता या ले जाता है, तो यह कृत्य छिनतई (Snatching) कहलाता है।
(2) जो कोई छिनतई करता है, उसे तीन वर्ष तक की कारावास से दंडित किया जा सकता है, और उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
धारा 305 – आवास, परिवहन साधन, पूजा स्थल आदि में चोरी:
जो कोई व्यक्ति निम्न में से किसी स्थान या वस्तु में चोरी करता है—
(a) किसी भवन, तंबू या पोत में जो मनुष्यों के निवास या संपत्ति की रखवाली के लिए प्रयुक्त हो;
(b) माल या यात्रियों के परिवहन के लिए प्रयुक्त किसी परिवहन साधन की चोरी;
(c) किसी ऐसे परिवहन साधन से कोई वस्तु या माल चुराना जो माल या यात्रियों के परिवहन हेतु प्रयोग हो;
(d) किसी पूजा स्थल से मूर्ति या प्रतिमा की चोरी;
(e) सरकार या स्थानीय प्राधिकरण की संपत्ति की चोरी;
तो वह दोषी होगा और उसे सात वर्ष तक की कारावास, तथा जुर्माना से दंडित किया जाएगा।
धारा 306 – कर्मचारी या नौकर द्वारा स्वामी के कब्जे की संपत्ति की चोरी:
जो कोई व्यक्ति क्लर्क या नौकर के रूप में कार्यरत हो, या उस भूमिका में कार्य कर रहा हो, और वह अपने स्वामी या नियोक्ता के कब्जे में रखी किसी संपत्ति की चोरी करता है, तो वह दोषी होगा और उसे सात वर्ष तक की कारावास, तथा जुर्माना से दंडित किया जाएगा।
धारा 307 – मृत्यु, चोट या बंधन की तैयारी के साथ की गई चोरी:
जो कोई व्यक्ति चोरी करने के लिए, या चोरी के बाद भागने के लिए, या चोरी की गई संपत्ति को अपने पास रखने के लिए, पहले से किसी व्यक्ति को मृत्यु, चोट, बंधन, या उनके भय में डालने की तैयारी करता है, और फिर चोरी करता है, तो वह दोषी होगा और उसे दस वर्ष तक की कठोर कारावास, तथा जुर्माना से दंडित किया जाएगा।
उदाहरण:
(a) यदि कोई व्यक्ति चोरी करते समय अपने वस्त्रों में छुपी हुई लोडेड पिस्तौल लेकर आता है, ताकि विरोध होने पर चोट पहुँचा सके, तो यह धारा लागू होगी।
(b) यदि कोई व्यक्ति जेब काटते समय अपने साथियों को पास में खड़ा रखता है, ताकि कोई विरोध या गिरफ्तारी का प्रयास हो तो वे उस व्यक्ति को रोक सकें, तब भी यह धारा लागू होती है।
Offences of Extortion
धारा 308 – जबरन वसूली (Extortion):
(1) जो कोई व्यक्ति जानबूझकर किसी अन्य व्यक्ति को स्वयं या किसी और को क्षति पहुँचाने के भय में डालता है, और इस भय का उपयोग करके उससे कोई संपत्ति, कीमती सुरक्षा दस्तावेज़, या ऐसा कोई दस्तावेज़ जो मूल्यवान सुरक्षा में बदला जा सके, दिलवाता है, वह जबरन वसूली (extortion) करता है।
उदाहरणों में शामिल है:
- बदनामी की धमकी देकर पैसे लेना,
- बच्चे को बंदी बनाने की धमकी देकर कर्जनामा लिखवाना,
- धमकी देकर किसी खेत को बर्बाद करवाने की धमकी देकर अनुबंध कराना,
- गंभीर चोट के भय से खाली कागज़ पर दस्तखत करवाना,
- इलेक्ट्रॉनिक संदेश के माध्यम से बच्चे की हत्या की धमकी देकर पैसा लेना — ये सभी जबरन वसूली के उदाहरण हैं।
(2) जो कोई जबरन वसूली करता है, उसे सात वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
(3) यदि कोई व्यक्ति जबरन वसूली करने के लिए किसी को साधारण चोट के भय में डालता है या ऐसा प्रयास करता है, तो उसे दो वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
(4) यदि वह गंभीर चोट या मृत्यु के भय में डालता है या डालने का प्रयास करता है, तो उसे सात वर्ष तक की कारावास, और जुर्माना से दंडित किया जाएगा।
(5) यदि जबरन वसूली मृत्यु या गंभीर चोट के भय द्वारा की जाती है, तो दस वर्ष तक की कारावास और जुर्माना से दंडित किया जाएगा।
(6) यदि वह किसी पर या किसी अन्य व्यक्ति पर ऐसा गंभीर आरोप लगाने के भय में डालता है, जो अपराध मृत्यु, आजीवन कारावास या दस वर्ष तक की सजा से दंडनीय हो, तो उसे दस वर्ष तक की कारावास और जुर्माना से दंडित किया जाएगा।
(7) यदि जबरन वसूली ऐसे ही आरोप के भय के आधार पर की जाती है, तो भी दस वर्ष तक की कारावास और जुर्माना से दंडनीय है।
धारा 309 – लूट
डकैती में चोरी या जबरन वसूली में से कोई एक शामिल होती है। चोरी, तब डकैती बन जाती है, जब चोर चोरी करते समय, या चोरी के बाद संपत्ति ले जाने या उसकी कोशिश करते समय किसी व्यक्ति को जानबूझकर मौत, चोट, गलत तरीके से रोके जाने, या तुरंत मौत, तुरंत चोट या तुरंत गलत तरीके से रोके जाने का डर उत्पन्न करता है। जबरन वसूली, तब डकैती बनती है, जब अपराधी पीड़ित की सामने उपस्थिति में उसे तुरंत मौत, चोट या गलत तरीके से रोके जाने के डर से कोई चीज दिलवा लेता है। यदि अपराधी इतना पास है कि वह तुरंत डर उत्पन्न कर सके, तो उसे “उपस्थित” माना जाएगा। उदाहरणों में दिखाया गया है कि अगर कोई व्यक्ति किसी को रोककर या जान से मारने की धमकी देकर संपत्ति लेता है, तो वह डकैती मानी जाती है, लेकिन अगर खतरा “तुरंत” न हो, तो वह केवल जबरन वसूली होगी। जो कोई डकैती करता है, उसे 10 साल तक की कठोर कैद और जुर्माना हो सकता है, और यदि डकैती सूर्यास्त और सूर्योदय के बीच सड़क पर की गई हो, तो सजा 14 साल तक बढ़ सकती है। डकैती का प्रयास करने पर 7 साल तक की कठोर कैद और जुर्माना हो सकता है। अगर डकैती करते समय या उसके प्रयास में किसी को चोट पहुंचाई जाए, तो अपराधी को आजीवन कारावास या 10 साल तक की कठोर कैद और जुर्माना हो सकता है, और जो अन्य लोग इस अपराध में शामिल हों, वे भी उतने ही दंड के भागी होंगे।
धारा 310 – डकैती
जब पाँच या अधिक व्यक्ति मिलकर डकैती करते हैं या उसकी कोशिश करते हैं, या डकैती करने वाले और उसमें सहायता करने वाले सभी व्यक्तियों की संख्या मिलाकर पाँच या अधिक होती है, तो उसमें शामिल हर व्यक्ति को डकैती का अपराधी माना जाता है। जो व्यक्ति डकैती करता है, उसे आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की कठोर कैद और जुर्माना हो सकता है। यदि इन पाँच या अधिक व्यक्तियों में से कोई एक डकैती करते समय हत्या कर देता है, तो सभी व्यक्ति जो उस डकैती में शामिल थे, उन्हें मृत्युदंड, आजीवन कारावास या न्यूनतम 10 वर्ष की कठोर कैद और जुर्माना हो सकता है। जो कोई डकैती की तैयारी करता है, उसे 10 साल तक की कठोर कैद और जुर्माना हो सकता है। जो व्यक्ति डकैती करने के इरादे से पाँच या अधिक लोगों के साथ इकट्ठा होता है, उसे 7 साल तक की कठोर कैद और जुर्माना हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति ऐसी टोली का सदस्य है जो नियमित रूप से डकैती करने के लिए बनी हो, तो उसे आजीवन कारावास या 10 साल तक की कठोर कैद और जुर्माना दिया जा सकता है।
धारा 311 – डकैती या डकैती के समय मृत्यु या गंभीर चोट पहुंचाने का प्रयास
यदि कोई व्यक्ति डकैती या डकैती करते समय घातक हथियार का उपयोग करता है, या किसी व्यक्ति को गंभीर चोट पहुंचाता है या मृत्यु या गंभीर चोट पहुंचाने का प्रयास करता है, तो उसे सात वर्ष से कम की सजा नहीं दी जा सकती। इस अपराध में न्यूनतम सजा 7 साल की कठोर कारावास अनिवार्य है।
धारा 312 – घातक हथियार से लैस होकर डकैती या डकैती का प्रयास करना
यदि कोई व्यक्ति डकैती या डकैती का प्रयास करते समय घातक हथियार से लैस होता है, तो उसे सात वर्ष से कम की कठोर कारावास की सजा नहीं दी जा सकती। इस अपराध में न्यूनतम सजा 7 साल की कठोर कैद अनिवार्य है।
धारा 313 – चोरों या लुटेरों के गिरोह का सदस्य होने पर दंड
जो कोई व्यक्ति ऐसे गिरोह का सदस्य हो जो नियमित रूप से चोरी या लूट (डकैती नहीं) करता है, तो उसे सात वर्ष तक की कठोर कारावास की सजा दी जा सकती है और वह जुर्माने का भी पात्र होगा ।
Offences Related to Dishonest Misappropriation of Property
धारा 314 – संपत्ति का बेइमानी से दुरुपयोग (अन्यायपूर्ण उपयोग)
जो कोई भी किसी चल संपत्ति का बेइमानी से दुरुपयोग करता है या उसे अपने स्वयं के उपयोग में ले आता है, उसे कम से कम 6 महीने की और अधिकतम 2 वर्ष की कारावास (साधारण या कठोर) और जुर्माना से दंडित किया जा सकता है। अगर कोई व्यक्ति किसी वस्तु को यह सोचकर लेता है कि वह उसकी है, तो यह चोरी नहीं मानी जाएगी, लेकिन बाद में अगर उसे सच का पता चलने पर भी वह उसे जानबूझकर अपने पास रखता या बेचता है, तो वह इस धारा के तहत दोषी होगा। इसी प्रकार, यदि कोई मित्रता के आधार पर किसी वस्तु को लेता है, लेकिन बाद में उसे अपने लाभ के लिए बेच देता है, या कोई साझा संपत्ति को बेचकर पूरा लाभ खुद रखता है, तो भी वह इस अपराध का भागी होता है।
स्पष्टीकरण 1: अगर कोई व्यक्ति केवल कुछ समय के लिए भी बेइमानी से संपत्ति का उपयोग करता है, तो वह भी इस धारा के अंतर्गत अपराध माना जाएगा।
स्पष्टीकरण 2: अगर कोई व्यक्ति ऐसी संपत्ति पाता है जो किसी के कब्जे में नहीं है, और वह उसे मालिक को लौटाने या सुरक्षित रखने के इरादे से लेता है, तो यह अपराध नहीं है। लेकिन यदि वह मालिक का पता होने के बावजूद या पता लगाने का प्रयास किए बिना संपत्ति अपने लाभ के लिए उपयोग करता है, तो यह अपराध है।
महत्वपूर्ण उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि अगर कोई व्यक्ति मिली हुई चीज़ को यह जानते हुए या यह जानने का अवसर होते हुए भी कि वह किसकी है, अपने उपयोग में ले लेता है या बेच देता है, तो वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा। परंतु अगर उसे यह न पता हो कि वस्तु किसकी है और उसने मालिक का पता लगाने की कोशिश की हो या वस्तु को सुरक्षित रखा हो, तो वह दोषी नहीं माना जाएगा।
धारा 315 – मृत्यु के समय मृतक के पास मौजूद संपत्ति का बेइमानी से दुरुपयोग
जो कोई यह जानते हुए कि कोई संपत्ति किसी व्यक्ति के मरने के समय उसके कब्जे में थी, और वह संपत्ति अब तक किसी वैध उत्तराधिकारी के कब्जे में नहीं आई है, फिर भी उसे बेईमानी से अपने उपयोग में ले लेता है या उसका दुरुपयोग करता है, तो उसे तीन साल तक की कारावास (साधारण या कठोर) और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। यदि ऐसा व्यक्ति मृतक का नौकर या क्लर्क था, तो सजा सात साल तक बढ़ सकती है। उदाहरण के लिए, यदि किसी मृतक के पास मौजूद फर्नीचर और पैसे उसके मृत्यु के बाद उसके नौकर द्वारा चोरी-छिपे रख लिए जाएं, तो यह इस धारा के अंतर्गत अपराध होगा।
Criminal Breach of Trust
धारा 316 – आपराधिक विश्वासभंग
जो व्यक्ति किसी संपत्ति या उस पर अधिकार को किसी प्रकार से सौंपे जाने के बाद ईमानदारी से उसका दुरुपयोग करता है, या उसे अपने उपयोग में लेता है, या कानूनी निर्देशों या अनुबंध के विरुद्ध उसे प्रयोग या व्यय करता है, या किसी अन्य को ऐसा करने देता है, वह आपराधिक विश्वासभंग का दोषी होता है। यदि कोई नियोक्ता कर्मचारी के वेतन से भविष्य निधि या पारिवारिक पेंशन निधि हेतु कटौती करता है और उसे समय पर संबंधित कोष में जमा नहीं करता, तो वह भी विश्वासभंग का दोषी माना जाएगा। इसी तरह कर्मचारी राज्य बीमा कोष में कटौती जमा न करने वाला नियोक्ता भी ऐसा ही अपराध करता है। उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि वसीयत का निष्पादन करने वाला, गोदाम-रक्षक, एजेंट, राजस्व अधिकारी या मालवाहक यदि सौपी गई संपत्ति का दुरुपयोग करता है तो वह अपराधी होता है; किंतु यदि ईमानदारी से भले के लिए निर्देशों का उल्लंघन किया गया है तो यह अपराध नहीं है। सजा के प्रावधान इस प्रकार हैं: सामान्य अपराध के लिए पाँच वर्ष तक की कैद, जुर्माना या दोनों, वाहक या गोदाम-रक्षक द्वारा किए गए अपराध के लिए सात वर्ष तक की कैद व जुर्माना, कर्मचारी या नौकर द्वारा किए गए विश्वासभंग के लिए सात वर्ष तक की कैद व जुर्माना, और यदि यह अपराध लोक सेवक, बैंकर, व्यापारी, एजेंट आदि द्वारा किया गया हो, तो आजीवन कारावास या दस वर्ष तक की कैद व जुर्माना हो सकता है।
Receiving Stolen Property
धारा 317 – चोरी की संपत्ति
जो संपत्ति चोरी, जबरन वसूली, डकैती, धोखाधड़ी, आपराधिक दुरुपयोग या आपराधिक विश्वासभंग द्वारा प्राप्त की गई हो, उसे चोरी की संपत्ति कहा जाता है, चाहे वह अपराध भारत में हुआ हो या विदेश में; लेकिन यदि वह संपत्ति बाद में कानूनी रूप से अधिकृत व्यक्ति के पास आ जाती है, तो वह चोरी की संपत्ति नहीं मानी जाती। यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर या विश्वास के आधार पर चोरी की संपत्ति को प्राप्त करता है या अपने पास रखता है, तो उसे तीन साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। यदि कोई व्यक्ति ऐसी संपत्ति प्राप्त करता है जो डकैती से प्राप्त हुई हो, या डकैती करने वाले गिरोह के सदस्य से चोरी की संपत्ति प्राप्त करता है, तो उसे आजीवन कारावास या दस साल तक की कठोर कैद और जुर्माने की सजा हो सकती है। जो व्यक्ति नियमित रूप से चोरी की संपत्ति खरीदता या उसका व्यापार करता है, उसे भी आजीवन कारावास या दस साल तक की सजा व जुर्माना हो सकता है। जो व्यक्ति चोरी की संपत्ति को छिपाने, नष्ट करने या हटाने में सहायता करता है, उसे तीन साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है।
Cheating
धारा 318 – धोखाधड़ी (Cheating)
जब कोई व्यक्ति किसी अन्य को धोखे से या बेईमानी से इस प्रकार प्रेरित करता है कि वह कोई संपत्ति दे दे, किसी को संपत्ति रखने की अनुमति दे, या ऐसा कार्य करे या न करे जिसे वह सामान्यतः न करता यदि उसे धोखा न दिया गया होता, और जिससे उसे शारीरिक, मानसिक, प्रतिष्ठा या संपत्ति की हानि होती है या हो सकती है, तो यह धोखाधड़ी कहलाती है। तथ्यों को जानबूझकर छिपाना भी धोखा देना माना जाता है। उदाहरणस्वरूप, झूठी पहचान बनाकर उधार पर वस्तुएं लेना, नकली सामान असली बताकर बेचना, जाली दस्तावेज़ दिखाकर वस्तु खरीदना, या किसी अनुबंध के पालन का झूठा दावा करके धन प्राप्त करना, सभी धोखाधड़ी की श्रेणी में आते हैं। यदि कोई व्यक्ति केवल अनुबंध नहीं निभाता लेकिन शुरू में उसका पालन करने का इरादा रखता था, तो यह केवल सिविल विवाद माना जाएगा, न कि आपराधिक धोखाधड़ी। सजा के अनुसार, सामान्य धोखाधड़ी के लिए तीन साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों, यदि किसी व्यक्ति को हानि पहुंचाने के आशय से या संविदात्मक/कानूनी दायित्व की रक्षा करने में विफल होकर धोखा दिया गया हो, तो पाँच साल तक की कैद, जुर्माना या दोनों, और यदि धोखाधड़ी से किसी को संपत्ति देने, कोई मूल्यवान सुरक्षा बनाने, बदलने या नष्ट करने के लिए प्रेरित किया गया हो, तो सात साल तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
धारा 319 – व्यक्ति का रूप धरकर धोखाधड़ी करना (Cheating by Personation)
जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति का रूप धरकर, या किसी व्यक्ति को जानबूझकर किसी अन्य के स्थान पर प्रस्तुत कर, या यह दर्शाकर कि वह स्वयं या कोई अन्य व्यक्ति ऐसा है जो वास्तव में वह नहीं है, धोखाधड़ी करता है, तो यह व्यक्ति का रूप धरकर धोखाधड़ी (cheating by personation) मानी जाती है। यह अपराध वास्तविक या काल्पनिक व्यक्ति दोनों के मामले में लागू होता है। उदाहरणस्वरूप, यदि कोई व्यक्ति किसी अमीर बैंकर का रूप धरता है या किसी मृत व्यक्ति के नाम से धोखाधड़ी करता है, तो यह धारा लागू होगी। इस अपराध के लिए पाँच वर्ष तक की कैद, जुर्माना या दोनों की सजा का प्रावधान है।
Offences of Fraudulent deeds and dispositions of property
धारा 320 – लेनदारों में संपत्ति के वितरण को रोकने हेतु बेईमानी या धोखाधड़ी से संपत्ति को हटाना या छिपाना
यदि कोई व्यक्ति इस इरादे से या यह जानते हुए कि ऐसा करने से संपत्ति का कानूनी रूप से लेनदारों में वितरण रुक जाएगा, किसी संपत्ति को बेईमानी या धोखाधड़ी से हटा देता है, छिपा देता है, किसी अन्य को सौंप देता है, या बिना उचित मूल्य के किसी को हस्तांतरित कर देता है, तो वह अपराध करता है। यह किसी व्यक्ति की अपनी संपत्ति या किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति के संदर्भ में भी हो सकता है। ऐसे अपराध के लिए न्यूनतम छह महीने की कैद, जो दो वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है, या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है।
धारा 321 – लेनदारों को ऋण की उपलब्धता को बेईमानी या धोखाधड़ी से रोकना
जो व्यक्ति जानबूझकर बेईमानी या धोखाधड़ी से किसी ऐसे ऋण या मांग को, जो उसके स्वयं के या किसी अन्य व्यक्ति के हक में हो, इस प्रकार कानूनी रूप से उपलब्ध होने से रोकता है कि उससे उस व्यक्ति के या उस अन्य व्यक्ति के लेनदारों को भुगतान किया जा सके, वह अपराध करता है। ऐसे कृत्य के लिए दो वर्ष तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है।
धारा 322 – संपत्ति के हस्तांतरण से संबंधित दस्तावेज़ में झूठे मूल्य का कथन करते हुए बेईमानी या धोखाधड़ी से निष्पादन करना
जो कोई व्यक्ति बेईमानी या धोखाधड़ी से किसी ऐसे विलेख (deed) या दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करता है, उसे निष्पादित करता है या उसका पक्षकार बनता है, जो किसी संपत्ति या उसमें किसी हित के हस्तांतरण या उस पर भार लगाने का दावा करता हो, और जिसमें हस्तांतरण या भार से संबंधित मूल्य (consideration) या उस व्यक्ति के बारे में, जिसके वास्तविक उपयोग या लाभ हेतु वह दस्तावेज़ बनाया गया है, कोई झूठा विवरण हो, तो वह व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी होता है। इस अपराध के लिए तीन वर्ष तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों की सजा का प्रावधान है।
धारा 323 – संपत्ति को बेईमानी या धोखाधड़ी से छिपाना या हटाना
जो व्यक्ति बेईमानी या धोखाधड़ी से अपनी या किसी अन्य की संपत्ति को छिपाता या हटाता है, या इस कार्य में जानबूझकर सहायता करता है, अथवा किसी वैध मांग या दावा से बेईमानी से मुक्ति देता है, वह इस धारा के अंतर्गत अपराधी होता है। ऐसे व्यक्ति को तीन वर्ष तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों की सजा दी जा सकती है।
Mischief
धारा 324 – शरारत (Mischief)
जब कोई व्यक्ति जानबूझकर या यह जानते हुए कि वह सार्वजनिक या किसी व्यक्ति को गलत हानि या क्षति पहुंचा सकता है, किसी संपत्ति को नष्ट करता है, या उसमें ऐसा परिवर्तन करता है जिससे उसकी मूल्य, उपयोगिता या स्थिति को क्षति पहुंचे, तो वह शरारत का अपराध करता है। इसमें यह आवश्यक नहीं है कि क्षति संपत्ति के स्वामी को ही हो; यदि किसी अन्य को हानि पहुंचाने की मंशा हो या संभावना हो, तो भी यह अपराध है। व्यक्ति अपनी या साझेदारी की संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर भी यह अपराध कर सकता है। उदाहरणस्वरूप: बीमा राशि पाने हेतु जहाज डुबोना, कर्ज चुकाने से बचने के लिए संपत्ति नष्ट करना, जानबूझकर फसल को नुकसान पहुंचाना आदि, सभी शरारत के उदाहरण हैं।
सजा के अनुसार:
- सामान्य शरारत के लिए छह माह तक की कैद, जुर्माना या दोनों,
- यदि सरकारी या स्थानीय निकाय की संपत्ति को नुकसान पहुंचे तो एक वर्ष तक की कैद, जुर्माना या दोनों,
- यदि हानि ₹20,000 या उससे अधिक लेकिन ₹1 लाख से कम हो तो दो वर्ष तक की कैद, जुर्माना या दोनों,
- यदि हानि ₹1 लाख या उससे अधिक हो तो पाँच वर्ष तक की कैद, जुर्माना या दोनों,
- यदि शरारत के लिए मृत्यु, चोट, अनुचित बंधन या उसका भय उत्पन्न करने की पूर्व तैयारी की गई हो, तो पाँच वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
धारा 325 – किसी पशु को मारकर या अपंग बनाकर की गई शरारत
जो कोई व्यक्ति किसी पशु को मारकर, विष देकर, अपंग बनाकर या उसे उपयोगहीन बनाकर शरारत करता है, वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होता है। ऐसे कृत्य के लिए पाँच वर्ष तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों की सजा का प्रावधान है।
धारा 326 – चोट, बाढ़, आग या विस्फोटक पदार्थ के माध्यम से की गई शरारत
जो कोई व्यक्ति निम्नलिखित कृत्यों के माध्यम से जानबूझकर या यह जानते हुए कि वह नुकसान पहुंचा सकता है, शरारत करता है, उसे इस धारा के अंतर्गत दंडित किया जाएगा:
(a) यदि वह ऐसा कार्य करता है जिससे खेती, मानव या पशु के पेयजल, सफाई या उद्योग कार्यों के लिए जल की आपूर्ति में कमी आती है, तो उसे 5 वर्ष तक की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
(b) यदि वह किसी सार्वजनिक सड़क, पुल, नदी या जलमार्ग को दुर्गम या कम सुरक्षित बनाता है, तो उसे 5 वर्ष तक की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
(c) यदि वह ऐसा कार्य करता है जिससे बाढ़ या सार्वजनिक नाले में बाधा उत्पन्न होती है जिससे हानि होती है, तो उसे 5 वर्ष तक की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
(d) यदि वह रेल, विमान या जहाज की नेविगेशन से संबंधित किसी संकेत या मार्गदर्शक चिन्ह को नष्ट या हटाता है, तो उसे 7 वर्ष तक की कैद, जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
(e) यदि वह किसी सार्वजनिक अधिकारी द्वारा स्थापित भूमि-चिन्ह (landmark) को नष्ट करता है या उसकी उपयोगिता कम करता है, तो उसे 1 वर्ष तक की कैद, जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
(f) यदि वह आग या विस्फोटक पदार्थ का उपयोग कर किसी संपत्ति, जिसमें कृषि उत्पाद भी शामिल है, को नुकसान पहुंचाता है, तो उसे 7 वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
(g) यदि वह किसी इमारत जो सामान्यतः पूजा स्थल, आवासीय भवन या संपत्ति रखने की जगह के रूप में प्रयुक्त होती है, को आग या विस्फोटक पदार्थ से नष्ट करने का इरादा रखता है, तो उसे आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
धारा 327 – रेल, विमान, छतयुक्त जलयान या 20 टन या उससे अधिक भार वाले जहाज को नष्ट करने या असुरक्षित बनाने के इरादे से की गई शरारत
(1) जो कोई व्यक्ति रेल, विमान, छतयुक्त जलयान या बीस टन या उससे अधिक भार वाले किसी भी जलयान के विरुद्ध शरारत करता है, इस इरादे से कि वह उसे नष्ट कर दे या असुरक्षित बना दे, या यह जानते हुए कि ऐसा परिणाम हो सकता है, तो उसे 10 वर्ष तक की कैद और जुर्माना की सजा दी जा सकती है।
(2) यदि कोई व्यक्ति उक्त प्रकार की शरारत को आग या किसी विस्फोटक पदार्थ के माध्यम से करता है या उसका प्रयास करता है, तो उसे आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की कैद और जुर्माना की सजा हो सकती है।
धारा 328 – चोरी या बेईमानी से संपत्ति हड़पने के इरादे से जलयान को जानबूझकर किनारे ले जाना या भूमि पर अटकाना
जो कोई व्यक्ति किसी जलयान को जानबूझकर किनारे या भूमि पर अटका देता है, इस इरादे से कि उसमें मौजूद संपत्ति की चोरी की जाए या उसे बेईमानी से अपने कब्जे में ले लिया जाए, या इस इरादे से कि ऐसा कृत्य किया जा सके, वह इस धारा के अंतर्गत अपराध करता है। ऐसे व्यक्ति को 10 वर्ष तक की कैद और जुर्माना की सजा दी जा सकती है।
Criminal Tresspass
धारा 329 : आपराधिक अतिक्रमण और गृह-अतिक्रमण
(1) जब कोई व्यक्ति किसी अन्य की कब्जे वाली संपत्ति में इस इरादे से प्रवेश करता है कि वह कोई अपराध करेगा या उस संपत्ति के कब्जाधारी व्यक्ति को धमकाए, अपमानित या परेशान करेगा, या यदि कोई व्यक्ति वैध रूप से प्रवेश करने के बाद गैरकानूनी रूप से वहीं ठहरता है इन्हीं इरादों से, तो यह आपराधिक अतिक्रमण (Criminal Trespass) कहलाता है।
(2) यदि यह अतिक्रमण किसी भवन, तंबू या जलयान में होता है जो रहने के लिए, पूजा के स्थान के रूप में, या संपत्ति की सुरक्षा के लिए प्रयोग होता है, तो यह गृह-अतिक्रमण (House-Trespass) कहलाता है।
स्पष्टीकरण: यदि अतिक्रमणकर्ता अपने शरीर का कोई भी हिस्सा अंदर करता है, तो भी यह गृह-अतिक्रमण माना जाएगा।
(3) आपराधिक अतिक्रमण करने वाले को तीन महीने तक की कैद, ₹5000 तक जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
(4) गृह-अतिक्रमण करने वाले को एक वर्ष तक की कैद, ₹5000 तक जुर्माना या दोनों की सजा दी जा सकती है।
धारा 330 – गृह-अतिक्रमण और गृह-भेदन (House-Trespass and House-Breaking)
(1) जब कोई व्यक्ति ऐसे उपाय अपनाकर गृह-अतिक्रमण करता है, जिससे वह उस व्यक्ति से छिपा रह सके जिसे उस भवन, तंबू या जलयान से उसे बाहर निकालने या रोकने का अधिकार है, तो इसे छिपा हुआ गृह-अतिक्रमण (Lurking House-Trespass) कहा जाता है।
(2) कोई व्यक्ति यदि गृह-अतिक्रमण करते समय या वहां से निकलते समय नीचे बताए गए छह तरीकों में से किसी एक का प्रयोग करता है, तो वह गृह-भेदन (House-Breaking) करता है:
(a) स्वयं या किसी सहअपराधी द्वारा बनाया गया रास्ता अपनाकर प्रवेश या निकास करना।
(b) ऐसा रास्ता जिससे सामान्य रूप से लोग प्रवेश नहीं करते, या किसी दीवार या इमारत को चढ़कर प्रवेश करना।
(c) ऐसा मार्ग खोलकर प्रवेश या निकास करना जो मकान के निवासी द्वारा उस उद्देश्य के लिए नहीं खोला गया हो।
(d) ताला खोलकर घर में घुसना या बाहर निकलना।
(e) आपराधिक बल, मारपीट या धमकी देकर घर में प्रवेश या निकास करना।
(f) ऐसा रास्ता जो अंदर-बाहर जाने से रोकने के लिए बंद किया गया था, लेकिन उसे स्वयं या सहअपराधी द्वारा खोलकर प्रवेश/निकास करना।
स्पष्टीकरण: घर से जुड़े किसी भी बाहरी हिस्से (जैसे आउट-हाउस) को, यदि उसका भीतर से सीधा संबंध हो, तो वह भी “घर” माना जाएगा।
उदाहरण: दीवार में छेद कर हाथ डालना, जहाज में छिपकर जाना, खिड़की से घुसना, दरवाज़ा खोलकर घुसना, कुंडी या ताले से प्रवेश करना, खोई हुई चाबी से दरवाज़ा खोलना, दरवाज़े पर खड़े व्यक्ति को धक्का देकर घुसना, या उसे धमकाकर प्रवेश करना — ये सभी गृह-भेदन के उदाहरण हैं।
धारा 331 – गृह-अतिक्रमण या गृह-भेदन के लिए दंड
(1) जो कोई छिपकर गृह-अतिक्रमण (lurking house-trespass) या गृह-भेदन (house-breaking) करता है, उसे दो वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
(2) यदि यह अपराध सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले किया जाए, तो सजा तीन वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकती है।
(3) यदि यह अतिक्रमण किसी ऐसे अपराध को अंजाम देने के लिए किया गया हो, जिसकी सजा कैद है, तो तीन वर्ष तक की कैद और जुर्माना का प्रावधान है; और यदि उद्देश्य चोरी करना हो, तो सजा 10 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।
(4) यदि यह अपराध रात में (सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले) किया जाए और किसी दंडनीय अपराध को करने के उद्देश्य से हो, तो 5 वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है; और यदि उद्देश्य चोरी हो, तो 14 वर्ष तक की कैद हो सकती है।
(5) यदि आरोपी ने किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाने, हमला करने, अनुचित रूप से रोकने या चोट/आक्रमण का भय दिखाने की तैयारी की हो, तो उसे 10 वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
(6) यदि उक्त तैयारी के साथ अपराध रात में किया गया हो, तो सजा 14 वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकती है।
(7) यदि अपराध करते समय गंभीर चोट पहुंचाई जाए या मृत्यु/गंभीर चोट पहुंचाने का प्रयास किया जाए, तो सजा आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकती है।
(8) यदि कोई व्यक्ति रात के समय छिपकर अतिक्रमण या भेदन करते समय किसी को जानबूझकर मौत या गंभीर चोट पहुंचाता है या उसका प्रयास करता है, तो सभी सह-अपराधियों को भी आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
धारा 332 – किसी अपराध को करने के उद्देश्य से किया गया गृह-अतिक्रमण
जो कोई व्यक्ति किसी भवन में इस उद्देश्य से अतिक्रमण करता है कि वह कोई अपराध करे, उसकी सजा उस अपराध की प्रकृति पर निर्भर करती है:
(a) यदि अतिक्रमण ऐसे अपराध के लिए किया गया है जिसकी सजा मृत्यु है, तो उसे आजीवन कारावास या अधिकतम 10 वर्ष की कठोर कैद और जुर्माना हो सकता है।
(b) यदि अतिक्रमण ऐसे अपराध के लिए किया गया है जिसकी सजा आजीवन कारावास है, तो उसे 10 वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
(c) यदि अतिक्रमण ऐसे अपराध के लिए किया गया है जिसकी सजा सामान्य कैद है, तो उसे 2 वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है।
अपवाद: यदि ऐसा अतिक्रमण चोरी करने के उद्देश्य से किया गया है, तो कैद की अवधि 7 वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है।
धारा 333 – चोट पहुंचाने, हमला करने या अनुचित रूप से रोकने की तैयारी के साथ किया गया गृह-अतिक्रमण
जो कोई व्यक्ति किसी भवन में इस तैयारी के साथ अतिक्रमण करता है कि वह किसी व्यक्ति को चोट पहुँचाए, हमला करे, अनुचित रूप से रोके, या किसी व्यक्ति को चोट, हमला या अनुचित रोक का भय दिलाए, तो ऐसा व्यक्ति गंभीर अपराध का दोषी होता है। ऐसे अपराध के लिए उसे 7 वर्ष तक की कैद (सरल या कठोर, न्यायालय के विवेक पर) और जुर्माने की सजा दी जा सकती है।
धारा 334 – बेईमानी से संपत्ति वाले बंद पात्र को तोड़ना या खोलना
(1) जो कोई व्यक्ति बेईमानी से या शरारत करने के इरादे से किसी बंद पात्र (receptacle) को तोड़ता या खोलता है, जिसमें संपत्ति रखी हो या वह मानता हो कि उसमें संपत्ति है, तो उसे 2 वर्ष तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों की सजा हो सकती है।
(2) यदि कोई व्यक्ति किसी बंद पात्र के संरक्षक के रूप में नियुक्त हो, और उसे खोलने का अधिकार न होते हुए, वह उसे बेईमानी से या शरारत की नीयत से तोड़ता या खोलता है, तो उसे 3 वर्ष तक की कैद, या जुर्माना, या दोनों की सजा दी जा सकती है।
Chapter- 18
Offences Relating to Documents and to Property Marks
धारा 335 – झूठा दस्तावेज बनाना
यदि कोई व्यक्ति बेईमानी या धोखे की नीयत से किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख को इस प्रकार बनाता है, हस्ताक्षर करता है, सील करता है, निष्पादित करता है, इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर करता है, या ऐसा दर्शाता है कि वह दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड किसी और व्यक्ति द्वारा या उसकी अनुमति से बनाया गया है जबकि वह जानता है कि ऐसा नहीं है, तो वह झूठा दस्तावेज बनाता है। यदि कोई व्यक्ति कानूनी अधिकार के बिना किसी दस्तावेज या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड में महत्वपूर्ण बदलाव करता है, या ऐसे व्यक्ति से हस्ताक्षर करवाता है जो मानसिक रूप से अक्षम, नशे में या धोखे में है, तो यह भी जालसाजी (forgery) है। इच्छा पूर्वक गलत जानकारी या तिथि जोड़ना, किसी मृत या काल्पनिक व्यक्ति के नाम से दस्तावेज बनाना, अथवा दूसरे के नाम का उपयोग कर भरोसा प्राप्त करना भी forgery कहलाता है। इस धारा के तहत, अपने ही नाम से दस्तावेज बनाकर यह जताना कि वह किसी और ने बनाया है, या इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर का दुरुपयोग करना भी forgery माना जाएगा। ऐसे अपराध के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है और यह भारतीय कानून में गंभीर अपराध माना गया है।
धारा 336 – जालसाजी (Forgery)
जो कोई व्यक्ति झूठा दस्तावेज या झूठा इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड इस उद्देश्य से बनाता है कि किसी व्यक्ति या जनता को नुकसान या क्षति पहुँचे, या किसी झूठे अधिकार या दावे को सिद्ध किया जाए, या किसी को संपत्ति देने, किसी अनुबंध में प्रवेश करने के लिए मजबूर किया जाए, या धोखा देने की नीयत से ऐसा किया जाए, वह जालसाजी करता है। सामान्य रूप से जालसाजी के लिए दो वर्ष तक की सजा, या जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है। यदि जालसाजी धोखा देने के उद्देश्य से की गई हो, तो सात वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। यदि इसका उद्देश्य किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाना हो, या ऐसा करने की संभावना हो, तो तीन वर्ष तक की कैद और जुर्माना की सजा हो सकती है।
धारा 337 – न्यायालय के अभिलेख या सार्वजनिक रजिस्टर आदि की जालसाजी
जो कोई व्यक्ति किसी न्यायालय के अभिलेख या कार्यवाही, या सरकार द्वारा जारी की गई पहचान-पत्र (जैसे मतदाता पहचान-पत्र या आधार कार्ड), या जन्म, विवाह, या मृत्यु रजिस्टर, या किसी लोक सेवक द्वारा रखे गए रजिस्टर, या उसकी आधिकारिक क्षमता में बनाए गए प्रमाणपत्र या दस्तावेज, अथवा वकालतनामा, मुकदमा चलाने या बचाव का अधिकार, या स्वीकार्य निर्णय हेतु अधिकार जैसे दस्तावेजों की जालसाजी करता है, उसे सात वर्ष तक की कैद और जुर्माना हो सकता है। इस धारा में “रजिस्टर” में इलेक्ट्रॉनिक रूप में रखा गया कोई भी रिकॉर्ड, सूची या डाटा भी शामिल है।
धारा 338 – बहुमूल्य प्रतिभूति, वसीयतनामा आदि की जालसाजी
जो कोई व्यक्ति किसी बहुमूल्य प्रतिभूति, वसीयतनामा, पुत्र गोद लेने के अधिकार पत्र, या किसी को बहुमूल्य प्रतिभूति बनाने, स्थानांतरित करने, ब्याज/मूलधन/लाभांश प्राप्त करने, या धन, चल संपत्ति, प्रतिभूति प्राप्त या सुपुर्द करने का अधिकार देने वाले दस्तावेज, अथवा धन या संपत्ति की रसीद या भुगतान की रसीद जैसे दस्तावेजों की जालसाजी करता है, उसे आजीवन कारावास या दस वर्ष तक की कारावास और जुर्माना की सजा हो सकती है।
धारा 339 – जाली दस्तावेज़ को असली के रूप में प्रयोग करने के इरादे से अपने पास रखना
जो कोई व्यक्ति किसी ऐसे दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को अपने पास रखता है, जिसे वह जाली जानता है और जिसका प्रयोग धोखाधड़ी या बेईमानी से असली के रूप में करने का इरादा रखता है, यदि वह दस्तावेज़ धारा 337 में वर्णित श्रेणी का है, तो उसे सात वर्ष तक की कारावास और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है; और यदि वह दस्तावेज़ धारा 338 में वर्णित श्रेणी का है, तो उसे आजीवन कारावास, या सात वर्ष तक की कारावास और जुर्माना की सजा हो सकती है।
धारा 340 – जाली दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को असली के रूप में उपयोग करना
(1) जो दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड पूरी तरह या आंशिक रूप से जालसाज़ी से बनाया गया हो, उसे जाली दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड कहा जाता है।
(2) जो कोई व्यक्ति धोखाधड़ी या बेईमानी से किसी ऐसे दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड का प्रयोग असली के रूप में करता है, जिसे वह जाली जानता है या विश्वास करने का कारण रखता है, तो उसे उसी प्रकार दंडित किया जाएगा जैसे उसने स्वयं उस दस्तावेज़ या रिकॉर्ड की जालसाज़ी की हो।
धारा 341 – जालसाज़ी के इरादे से नकली सील आदि बनाना या रखना (धारा 338 के तहत दंडनीय)
जो कोई व्यक्ति धारा 338 के अंतर्गत दंडनीय जालसाज़ी करने के इरादे से किसी सील, प्लेट या छाप बनाने वाले उपकरण को बनाता है या नकली बनाता है, या ऐसे नकली उपकरण को जानते हुए अपने पास रखता है, उसे आजीवन कारावास या सात वर्ष तक की कारावास और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। यदि ऐसी वस्तुएं अन्य किसी धारा के अंतर्गत जालसाज़ी के लिए बनाईं गई हों, तो सात वर्ष तक की कारावास और जुर्माना हो सकता है। केवल नकली सील या उपकरण को जानते हुए रखना, तीन वर्ष तक की कारावास और जुर्माने से दंडनीय है। अगर कोई व्यक्ति किसी नकली सील, प्लेट या उपकरण का उपयोग करता है यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह नकली है, तो उसे उसी प्रकार दंडित किया जाएगा जैसे उसने स्वयं वह नकली वस्तु बनाई हो।
धारा 342 – दस्तावेज़ों की प्रमाणिकता के लिए प्रयुक्त चिह्न या उपकरण की नक़ल बनाना या नक़ली चिह्न लगे पदार्थ को रखना
जो कोई व्यक्ति धारा 338 में वर्णित दस्तावेज़ों की प्रमाणिकता सिद्ध करने वाले किसी चिह्न या उपकरण की नक़ल किसी सामग्री पर या उसके अंश में करता है, इस आशय से कि यह नक़ली चिह्न किसी जाली दस्तावेज़ को प्रामाणिक दिखाने में प्रयुक्त होगा, या ऐसा नक़ली चिह्न लगा हुआ पदार्थ जानबूझकर अपने पास रखता है, उसे आजीवन कारावास या अधिकतम सात वर्ष तक की कारावास और जुर्माने से दंडित किया जाएगा। यदि ऐसा चिह्न किसी अन्य दस्तावेज़ या इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड की प्रमाणिकता सिद्ध करने के लिए नक़ल किया गया हो, तो अपराधी को अधिकतम सात वर्ष की कारावास और जुर्माने का प्रावधान है। इस धारा का उद्देश्य नक़ली प्रमाणिकता दर्शाकर दस्तावेज़ों की वैधता को धोखे से प्रस्तुत करने को रोकना है।
धारा 343 – वसीयत, दत्तक ग्रहण की स्वीकृति अथवा मूल्यवान सुरक्षा दस्तावेज़ का धोखाधड़ी से रद्द करना, नष्ट करना आदि
जो कोई व्यक्ति धोखाधड़ी या बेईमानी से, अथवा किसी व्यक्ति या जनसाधारण को हानि पहुँचाने के इरादे से, किसी ऐसे दस्तावेज़ को जो वसीयत, पुत्र को दत्तक लेने की अनुमति या कोई मूल्यवान सुरक्षा हो या ऐसा प्रतीत होता हो, रद्द करता है, नष्ट करता है, कुरूप करता है, छिपाता है या ऐसा करने का प्रयास करता है, अथवा उस दस्तावेज़ के संबंध में कोई शरारतपूर्ण कार्य करता है, तो उसे आजीवन कारावास या अधिकतम सात वर्ष की कारावास और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है। यह प्रावधान महत्वपूर्ण दस्तावेजों की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, जिनके नष्ट होने से गंभीर हानि हो सकती है।
धारा 344 – खातों में हेरफेर करना (Falsification of Accounts)
यदि कोई व्यक्ति जो क्लर्क, अधिकारी या नौकर के रूप में कार्यरत है, या इस रूप में कार्य कर रहा है, और वह जानबूझकर एवं धोखा देने की नीयत से किसी भी पुस्तक, इलेक्ट्रॉनिक अभिलेख, काग़ज़, लिखत, मूल्यवान सुरक्षा या खाता जो उसके नियोक्ता की मालिकियत या कब्जे में हो, या जिसे उसने नियोक्ता की ओर से प्राप्त किया हो, उसे नष्ट करता है, बदलता है, विकृत करता है या उसमें झूठी प्रविष्टि करता है, या ऐसी प्रविष्टि करवाने में मदद करता है, अथवा किसी महत्वपूर्ण विवरण को हटाता या बदलता है, तो उसे अधिकतम सात वर्ष की कारावास या जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है। स्पष्टीकरण के अनुसार, अभियोजन के लिए यह दिखाना पर्याप्त होगा कि धोखा देने की सामान्य नीयत थी, किसी विशेष व्यक्ति, राशि या तिथि का उल्लेख आवश्यक नहीं है।
Offeces of Property Marks
धारा 345 – संपत्ति चिह्न (Property Mark)
(1) किसी चल संपत्ति पर लगाया गया वह चिह्न जो दर्शाता है कि वह संपत्ति किसी विशेष व्यक्ति की है, उसे संपत्ति चिह्न कहा जाता है। (2) यदि कोई व्यक्ति किसी चल संपत्ति, सामान या उसके डिब्बे, पैकेज आदि पर ऐसा चिह्न लगाता है या ऐसा चिह्न लगे डिब्बे का उपयोग करता है, जिससे झूठा विश्वास उत्पन्न हो कि वह संपत्ति किसी ऐसे व्यक्ति की है, जिसकी वास्तव में वह नहीं है, तो इसे झूठा संपत्ति चिह्न (false property mark) कहा जाता है। (3) ऐसा झूठा संपत्ति चिह्न लगाने वाला व्यक्ति, जब तक वह यह सिद्ध न कर दे कि उसने धोखाधड़ी की नीयत से कार्य नहीं किया, उसे एक वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 346 – हानि पहुँचाने के आशय से संपत्ति चिह्न से छेड़छाड़ करना
कोई भी व्यक्ति जो किसी संपत्ति चिह्न को हटाता, नष्ट करता, विकृत करता या उसमें कोई परिवर्तन करता है, इस आशय से या यह जानते हुए कि इससे किसी व्यक्ति को हानि पहुँच सकती है, वह व्यक्ति एक वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 347 – संपत्ति चिह्न की कूटरचना करना
(1) जो कोई किसी अन्य व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त संपत्ति चिह्न की कूटरचना करता है, उसे दो वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
(2) जो कोई किसी लोक सेवक द्वारा प्रयुक्त संपत्ति चिह्न, या ऐसा कोई चिह्न जो यह दर्शाता है कि कोई वस्तु विशिष्ट व्यक्ति, समय, स्थान पर बनी है, या विशिष्ट गुणवत्ता की है, या किसी कार्यालय से गुज़री है, या किसी छूट की अधिकारी है, उसकी कूटरचना करता है या जानते हुए उसका प्रयोग करता है, वह तीन वर्ष तक की कारावास और जुर्माने से दंडित किया जा सकता है।
धारा 348 – संपत्ति चिह्न की कूटरचना के उपकरण बनाना या रखना
जो कोई किसी संपत्ति चिह्न की कूटरचना के उद्देश्य से कोई साँचा, प्लेट या अन्य उपकरण बनाता है या अपने पास रखता है, या ऐसा संपत्ति चिह्न अपने पास रखता है जिससे यह दर्शाया जा सके कि कोई वस्तु उस व्यक्ति की है जिससे वह वास्तव में संबंधित नहीं है, तो उसे तीन वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 349 – कूट संपत्ति चिह्न लगे वस्तुओं का विक्रय
जो कोई किसी वस्तु या वस्तुओं को बेचता है, बिक्री के लिए प्रदर्शित करता है या अपने पास रखता है, जिन पर कूट (नकली) संपत्ति चिह्न लगा हो या छपा हो, या ऐसे किसी पैकेट, डिब्बे या अन्य पात्र पर जो उन वस्तुओं को समेटे हो, तो** जब तक वह यह सिद्ध नहीं कर देता** कि—
(a) उसने इस अपराध से बचने के लिए सभी उचित सावधानियाँ बरती थीं और उसे उस चिह्न की प्रामाणिकता पर संदेह करने का कोई कारण नहीं था;
(b) अभियोजन पक्ष की माँग पर उसने उन व्यक्तियों की पूरी जानकारी दी जिनसे उसने वह वस्तुएँ प्राप्त की थीं; या
(c) उसने अन्यथा निष्कलंक रूप से कार्य किया था—
वह व्यक्ति एक वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 350 – माल रखने वाले पात्र पर झूठा चिन्ह बनाना
जो कोई किसी डिब्बे, पैकेट या अन्य पात्र पर ऐसा झूठा चिन्ह बनाता है जिससे यह विश्वास हो कि उसमें ऐसी वस्तुएँ हैं जो वास्तव में नहीं हैं, या यह कि वह वस्तुएँ नहीं हैं जबकि वे वास्तव में हैं, या यह कि वहाँ रखी वस्तुएँ उनकी वास्तविक प्रकृति या गुणवत्ता से भिन्न हैं, तो जब तक वह यह सिद्ध नहीं करता कि उसने धोखा देने के इरादे से कार्य नहीं किया, उसे तीन वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
यदि कोई व्यक्ति ऐसे झूठे चिन्ह का उपयोग करता है जैसा उपरोक्त उपधारा (1) में निषिद्ध किया गया है, और वह यह सिद्ध नहीं करता कि उसका उद्देश्य धोखाधड़ी नहीं था, तो उसके साथ उसी प्रकार दंडित किया जाएगा जैसे उसने स्वयं झूठा चिन्ह बनाया हो।
Cahpter-19 : Criiminal Intimidation, Insult, Annoyance
धारा 351 – आपराधिक डराना-धमकाना (Criminal Intimidation)
जो कोई किसी व्यक्ति को उसके स्वयं के, उसकी प्रतिष्ठा या संपत्ति के, या किसी ऐसे व्यक्ति के जो उसके लिए महत्त्वपूर्ण हो, हानि पहुँचाने की धमकी देता है, इस उद्देश्य से कि वह व्यक्ति डरकर कोई ऐसा कार्य करे जो वह कानूनी रूप से करने के लिए बाध्य नहीं है, या कोई ऐसा कार्य न करे जो वह करने का कानूनी अधिकार रखता है, तो वह आपराधिक धमकी का अपराध करता है। मृत व्यक्ति की प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाने की धमकी देना भी इस धारा के अंतर्गत अपराध है। इसके लिए दो वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यदि धमकी में मृत्यु, गंभीर चोट, आग से संपत्ति नष्ट करने, आजीवन कारावास योग्य अपराध करने या किसी स्त्री की शीलता पर लांछन लगाने की बात हो, तो दंड सात वर्ष तक की कारावास, जुर्माना या दोनों हो सकता है। यदि धमकी गुमनाम रूप से या पहचान छुपाकर दी गई हो, तो दो वर्ष अतिरिक्त सजा दी जा सकती है।
धारा 352 – शांति भंग करने के उद्देश्य से जानबूझकर किया गया अपमान
जो कोई किसी व्यक्ति को जानबूझकर किसी भी तरीके से अपमानित करता है, और इस प्रकार उसे उत्तेजित करता है, इस उद्देश्य से या यह जानते हुए कि इससे सार्वजनिक शांति भंग हो सकती है या वह व्यक्ति कोई अन्य अपराध कर सकता है, तो वह व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी है। ऐसे व्यक्ति को दो वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।
धारा 353 – लोक उपद्रव के लिए सहायक बयान
जो कोई झूठा वक्तव्य, सूचना, अफ़वाह या रिपोर्ट बनाता, प्रकाशित करता या प्रसारित करता है, चाहे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से ही क्यों न हो, यदि उसका उद्देश्य या प्रभाव यह हो कि:
(a) भारत की सेना, नौसेना या वायुसेना के किसी अधिकारी या सैनिक को विद्रोह के लिए उकसाना या कर्तव्य से च्युत करना;
(b) जनसामान्य में भय या घबराहट फैलाना जिससे कोई व्यक्ति राज्य या सार्वजनिक शांति के विरुद्ध अपराध करे;
(c) किसी वर्ग या समुदाय को दूसरे वर्ग या समुदाय के विरुद्ध अपराध करने के लिए उकसाना —
तो उसे तीन वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
यदि कोई व्यक्ति धार्मिक, जातीय, भाषाई या क्षेत्रीय आधारों पर विभिन्न समूहों में द्वेष, शत्रुता या वैमनस्यता फैलाने की नीयत से झूठी सूचना या अफ़वाह फैलाता है, तो उसे भी तीन वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों हो सकते हैं।
और यदि ऐसा अपराध किसी धर्मस्थल या धार्मिक सभा में किया गया हो, तो सजा पांच वर्ष तक की कारावास और जुर्माना होगी।
अपवाद: यदि व्यक्ति को ऐसा वक्तव्य सत्य मानने का उचित आधार है और उसने वह वक्तव्य सद्भावना और बिना आपराधिक मंशा से किया है, तो यह अपराध नहीं माना जाएगा।
धारा 354 – किसी व्यक्ति को यह विश्वास दिलाकर कार्य कराना कि वह ईश्वरीय अप्रसन्नता का पात्र बन जाएगा
जो कोई व्यक्ति स्वेच्छा से किसी अन्य व्यक्ति को ऐसा कार्य करने के लिए विवश करता है, जिसे वह कानूनी रूप से करने के लिए बाध्य नहीं है, या उसे कोई ऐसा कार्य न करने के लिए विवश करता है, जिसे वह करने का अधिकारी है, इस प्रकार कि उसे यह विश्वास हो जाए कि यदि उसने वह कार्य नहीं किया (या किया), तो वह या उसका कोई प्रियजन ईश्वर की नाराज़गी का पात्र बन जाएगा, तो वह व्यक्ति एक वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जाएगा।
उदाहरण:
(क) यदि कोई व्यक्ति किसी के घर के बाहर धरना देकर यह संदेश देता है कि ऐसा करने से वह व्यक्ति ईश्वरीय अप्रसन्नता का पात्र बन जाएगा — यह अपराध है।
(ख) यदि कोई व्यक्ति धमकी देता है कि यदि सामने वाला कोई कार्य नहीं करेगा तो वह अपने बच्चे की हत्या कर देगा जिससे वह व्यक्ति ईश्वर की नज़र में दोषी माना जाएगा — यह भी इस धारा के अंतर्गत अपराध है।
धारा 355 – नशे में सार्वजनिक स्थान पर अनुचित व्यवहार
जो कोई व्यक्ति नशे की स्थिति में किसी सार्वजनिक स्थान पर या ऐसे किसी स्थान पर जो उसके लिए अतिक्रमण की श्रेणी में आता हो, उपस्थित होता है और वहाँ इस प्रकार का व्यवहार करता है जिससे किसी व्यक्ति को परेशानी या कष्ट हो, तो उसे 24 घंटे तक की साधारण कारावास, या एक हजार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों, या समुदाय सेवा की सजा दी जा सकती है।
Offences of Defamation
धारा 356 – मानहानि
कोई व्यक्ति यदि किसी अन्य व्यक्ति की प्रतिष्ठा को हानि पहुँचाने के इरादे से, बोले गए या पढ़ने के लिए लिखे गए शब्दों से, संकेतों से या दृश्य रूप से कोई आरोप लगाता है या प्रकाशित करता है, तो उसे मानहानि (defamation) का दोषी माना जाता है। यह दोष मृत व्यक्ति, कंपनी, या समूह पर भी लागू हो सकता है यदि आरोप से प्रतिष्ठा पर आघात हो। यदि किसी आरोप से किसी की नैतिक, बौद्धिक, जातीय, व्यावसायिक या सामाजिक प्रतिष्ठा घटती है, तो वह मानहानि मानी जाएगी। धारा में 10 अपवाद भी हैं, जैसे—यदि आरोप सत्य हो और जनहित में हो, या किसी सार्वजनिक कर्मचारी या सार्वजनिक प्रश्न पर की गई सद्भावनापूर्ण आलोचना हो, न्यायिक कार्यवाही की सत्य रिपोर्ट, न्यायालय द्वारा निर्णय की गई बातों पर ईमानदारी से की गई राय, किसी सार्वजनिक प्रदर्शन की आलोचना, कानूनी रूप से अधिकार प्राप्त व्यक्ति द्वारा अनुशासनात्मक टिप्पणी, प्राधिकृत अधिकारी को शिकायत, अपने हित की रक्षा में की गई टिप्पणी, और भलाई हेतु दी गई चेतावनी आदि।
ऐसी मानहानि करने वाले को दो वर्ष तक का साधारण कारावास, या जुर्माना, या दोनों, या सामुदायिक सेवा, तथा जान-बूझकर ऐसी सामग्री छापने, बेचने या बेचने के लिए रखने पर भी समान दंड का प्रावधान है।
Breach of Contract to Attend on and supply wants of helpless person
धारा 357 – असहाय व्यक्ति की आवश्यकताएं पूरी करने या उसकी देखभाल के कानूनी अनुबंध के उल्लंघन पर दंड
जो कोई व्यक्ति कानूनी अनुबंध के तहत किसी असहाय व्यक्ति—जो अल्पायु, मानसिक विकृति, बीमारी या शारीरिक दुर्बलता के कारण अपनी सुरक्षा या आवश्यकताओं की पूर्ति करने में अक्षम हो—की देखभाल करने या उसकी आवश्यकताएं पूरी करने के लिए बाध्य है, और जानबूझकर ऐसा करने में विफल रहता है, वह अपराध करता है। इस अपराध के लिए तीन महीने तक की कारावास, या पाँच हजार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों का प्रावधान है।
धारा 358 – निरसन और संरक्षण
(1) भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) को निरस्त किया गया है।
(2) इस निरसन के बावजूद, निम्न बातों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा:
(a) निरस्त संहिता का पूर्व प्रवर्तन या उसके अंतर्गत किया गया कोई कार्य या भुगता गया कोई दंड;
(b) उस संहिता के अंतर्गत अर्जित कोई अधिकार, विशेषाधिकार, दायित्व या दायित्व;
(c) उस संहिता के अंतर्गत किए गए अपराधों के लिए लगी कोई सजा या दंड;
(d) किसी दंड या सजा से संबंधित कोई जांच या उपचार;
(e) ऐसी किसी सजा या दंड से संबंधित कोई भी प्रक्रिया, जो मानो पुरानी संहिता निरस्त नहीं हुई हो, जारी या प्रवर्तित की जा सकेगी।
(3) निरसन के बावजूद, पुरानी संहिता के अंतर्गत किया गया कोई भी कार्य इस नई संहिता की समरूप धाराओं के अंतर्गत किया गया माना जाएगा।
(4) उपधारा (2) में उल्लिखित बिंदुओं का उल्लेख, सामान्य धाराओं की व्याख्या अधिनियम, 1897 की धारा 6 के सामान्य प्रवर्तन को प्रभावित नहीं करेगा।