Registration Act, 1908

The Registration Act, 1908

पंजीकरण अधिनियम, 1908

Act 16 of 1908

Assented on 18 December 1908

Effective: 01 Jan 1909

 

  1. मूल उद्देश्य
    • यह एक शुद्ध समेकित (Consolidated) विधेयक है।
    • दस्तावेजों के पंजीकरण के नियम पहले 7 अलग-अलग अधिनियमों में बिखरे थे।
    • अब इन्हें इकट्ठा कर एक ही अधिनियम में रखा गया है ताकि कानून को आसानी से समझा और लागू किया जा सके।
    • इससे तीन पुराने अधिनियम पूरी तरह साफ हो जाएंगे और सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 व भारतीय सीमा विधेयक लागू होने पर दो और अधिनियम हटाए जा सकेंगे।
    • सामान्य खंड अधिनियम, 1897 के लागू होने से कुछ पुराने प्रावधान हटाना संभव हो गया है।
    • भाषा सुधारने और सरल बनाने के लिए छोटे-छोटे औपचारिक परिवर्तन भी किए गए हैं।
    • 1877 के अधिनियम की धारा संख्या वही रखी गई है।
    • समेकन के दौरान कानून में अनजाने में बदलाव न हो जाए, इसलिए कुछ छोटे संशोधन भी किए गए हैं।
  2. संशोधन अधिनियम 17, 1956 का उद्देश्य
    • भारत एक धर्मनिरपेक्ष (Secular) देश है।
    • इसलिए विलेखों (Documents) में जाति और उपजाति का जिक्र रखना गलत था।
    • इस विसंगति को दूर करने के लिए यह संशोधन किया गया।
  3. संशोधन अधिनियम 45, 1969 का उद्देश्य
    • पहले, कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास के रजिस्ट्रार भारत में कहीं भी अचल संपत्ति (Immovable property) के दस्तावेज रजिस्टर्ड कर सकते थे।
    • दिल्ली अब देश की राजधानी और बड़ा व्यापारिक केंद्र बन गया था।
    • इसलिए, दिल्ली को भी धारा 30(2) का वही लाभ देने की ज़रूरत महसूस हुई।
    • दिल्ली प्रशासन और विधि आयोग ने भी यही सुझाव दिया।
    • साथ ही “भारतीय” शब्द को हटाकर केवल “पंजीकरण अधिनियम, 1908” कहने का प्रस्ताव हुआ, ताकि नया नाम आजादी के बाद की नीतियों के अनुरूप हो।
  4. संशोधन अधिनियम 48, 2001 का उद्देश्य
    • दस्तावेजों के पंजीकरण कानून को और मजबूत बनाने के लिए किया गया।
    • 1998 में राज्यों के मुख्यमंत्रियों और वित्त मंत्रियों के सम्मेलन में ये सुझाव दिए गए:
      • (i) धारा 30(2) को हटा दिया जाए।
      • (ii) अचल संपत्ति बेचने से जुड़े सामान्य पावर ऑफ अटॉर्नी (General Power of Attorney) का पंजीकरण अनिवार्य किया जाए।
      • (iii) दस्तावेज़ों पर निष्पादनकर्ताओं (Executants) की फोटो और उंगलियों के निशान अनिवार्य हों।
      • (iv) पंजीकरण के रिकॉर्ड को कम्प्यूटरीकृत (Computerized) किया जाए।
    • इन सुझावों को लागू करने के लिए प्रस्ताव:
      • (i) धारा 17 में एक नई उप-धारा (1A) जोड़ना, ताकि अचल संपत्ति के अनुबंधों का पंजीकरण अनिवार्य हो सके।
      • (ii) धारा 30(2) और 67 को हटा देना।
      • (iii) धारा 16-A जोड़ना ताकि कम्प्यूटरीकरण को कानूनी आधार मिल सके।
      • (iv) धारा 32-A जोड़ना ताकि दस्तावेजों पर फोटो और उंगली के निशान जरूरी हो जाएं।
  1. [मुख्य अधिनियम का विस्तार (18 दिसम्बर 1908)]
    • दस्तावेजों के पंजीकरण से जुड़े सभी पुराने कानूनों को समेकित करने के लिए बनाया गया था।
    • विस्तार:
      • (i) 1949 में विलयित राज्यों तक।
      • (ii) 1950 में मणिपुर, त्रिपुरा और विंध्य प्रदेश तक।
      • (iii) मणिपुर और त्रिपुरा अब पूर्ण राज्य बन चुके हैं (1971)।
      • (iv) विंध्य प्रदेश अब मध्यप्रदेश में मिल गया है (1956)।
      • (v) तमिलनाडु में कुछ क्षेत्र जुड़े हैं लेकिन 1964 में अलग कानून से पुराने प्रावधान रद्द कर दिए गए।
      • (vi) गोवा (अब राज्य), दमन और दीव, लक्षद्वीप और पांडिचेरी क्षेत्रों में भी विस्तार किया गया।

 

धारा 1. संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ।

(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 है।

(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण भारत पर है। परन्तु राज्य सरकार देश के किसी जिले या भू-भाग को इसके प्रभाव से बाहर रख सकेगी।

(3) यह अधिनियम 1 जनवरी, 1909 को प्रवृत्त (लागू) होगा।

धारा 2. परिभाषाएँ।

इस अधिनियम में, जब तक कि विषय या संदर्भ में कोई बात प्रतिकूल न हो,–

(1) “जोड़” (Addition) से वर्णित व्यक्ति का निवास स्थान, तथा पेशा, व्यापार, पद और उपाधि (यदि कोई हो) अभिप्रेत है, तथा [भारतीय] की दशा में, उसके पिता का नाम, या जहाँ उसे सामान्यतः उसकी माता का पुत्र बताया गया है, वहाँ उसकी माता का नाम

(2) “पुस्तक” में पुस्तक का कोई भाग तथा पुस्तक या पुस्तक का भाग बनाने की दृष्टि से एक साथ जुड़े हुए पन्नों की कोई भी संख्या सम्मिलित है।

(3) “जिला” और “उप-जिला” से क्रमशः इस अधिनियम के अधीन गठित जिला और उप-जिला अभिप्रेत है।

(4) “जिला न्यायालय” में उच्च न्यायालय भी शामिल है, जो अपनी साधारण आरंभिक सिविल अधिकारिता में आता है।

(5) “पृष्ठांकन” और “पृष्ठांकित” में इस अधिनियम के अधीन पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किसी दस्तावेज के राइडर या कवरिंग स्लिप पर पंजीकरण अधिकारी द्वारा लिखित प्रविष्टि सम्मिलित है और उस पर लागू होती है।

(6) “अचल संपत्ति” में भूमि, भवन, वंशानुगत भत्ते, रास्ते, रोशनी, घाट, मत्स्य पालन या भूमि से उत्पन्न होने वाले किसी भी अन्य लाभ के अधिकार, और पृथ्वी से जुड़ी चीजें, या पृथ्वी से जुड़ी किसी भी चीज से स्थायी रूप से जुड़ी हुई चीजें शामिल हैं, लेकिन खड़ी लकड़ी, बढ़ती फसलें या घास नहीं।

(6क) “भारत” से जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर भारत का क्षेत्र अभिप्रेत है।

(7) “पट्टे” में प्रतिपक्ष (counterpart), काबुलियत, खेती या कब्जा करने का वचन और पट्टे का करार शामिल है।

(8) “अवयस्क” से ऐसा व्यक्ति अभिप्रेत है जो उस वैयक्तिक कानून के अनुसार, जिसके वह अधीन है, वयस्क नहीं हुआ है।

(9) “जंगम संपत्ति” में खड़ी लकड़ी, उगती फसलें, घास, पेड़ों पर लगे फल और उनका रस, तथा अचल संपत्ति को छोड़कर हर अन्य प्रकार की संपत्ति शामिल है।

(10) “प्रतिनिधि” में नाबालिग का अभिभावक और पागल या मूर्ख व्यक्ति की समिति या अन्य कानूनी संरक्षक शामिल हैं।

धारा 3. पंजीयन महानिरीक्षक (Inspector-General of Registration)

  • राज्य सरकार अपने राज्य के लिए एक पंजीकरण महानिरीक्षक (Inspector General of Registration) नियुक्त करेगी।
  • लेकिन, राज्य सरकार चाहे तो सीधे आदेश देकर महानिरीक्षक के काम को किसी और अधिकारी या अधिकारियों को भी सौंप सकती है, और यह तय कर सकती है कि किस इलाके में कौन काम करेगा।
  • एक महानिरीक्षक, एक साथ सरकार का कोई और पद भी संभाल सकता है।

धारा 4. [निरसन]।

[सिंध शाखा महानिरीक्षक (निरस्त)] — भारत सरकार (भारतीय विधियों का अनुकूलन) आदेश, 1937 द्वारा निरसित।

धारा 5 — जिले और उप-जिले (सरल रूप में)

  • राज्य सरकार जिले और उप-जिले बना सकती है।
  • राज्य सरकार उनकी सीमाएँ तय कर सकती है और बदल भी सकती है।
  • जिले और उप-जिले और उनकी सीमाओं के बदलावों को सरकारी राजपत्र (Government Gazette) में छपवाना जरूरी है।
  • बदलाव उसी दिन से लागू होंगे जो अधिसूचना (Notification) में लिखा होगा।

धारा 6 — रजिस्ट्रार और उप-रजिस्ट्रार

  • राज्य सरकार यह तय करेगी कि किसे रजिस्ट्रार (Registrar) और उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) बनाया जाए।
  • सरकार किसी भी व्यक्ति को नियुक्त कर सकती है — चाहे वह सरकारी कर्मचारी हो या न हो
  • रजिस्ट्रार को जिले का काम सौंपा जाएगा और उप-रजिस्ट्रार को उप-जिले का।

धारा 7 — रजिस्ट्रार और उप-रजिस्ट्रार के कार्यालय

  • राज्य सरकार हर जिले में एक रजिस्ट्रार का कार्यालय बनाएगी और उप-जिले में उप-रजिस्ट्रार या संयुक्त उप-रजिस्ट्रार का कार्यालय बनाएगी।
  • राज्य सरकार रजिस्ट्रार के कार्यालय को उप-रजिस्ट्रार के कार्यालय से जोड़ सकती है।
  • यदि ऐसा होता है, तो उप-रजिस्ट्रार को रजिस्ट्रार के कुछ अधिकार और कर्तव्य दिए जा सकते हैं।
  • लेकिन, उप-रजिस्ट्रार को अपील सुनने का अधिकार नहीं मिलेगा, जब बात रजिस्ट्रार के आदेश से संबंधित हो।

धारा 8 — पंजीकरण कार्यालयों के निरीक्षक

  • राज्य सरकार पंजीकरण कार्यालयों के लिए निरीक्षक नियुक्त कर सकती है।
  • इन निरीक्षकों के कर्तव्य भी राज्य सरकार निर्धारित कर सकती है।
  • निरीक्षक का कार्य महानिरीक्षक के अधीन होगा।

धारा 9 — [निरसन]

पहले यह प्रावधान था कि सैन्य छावनियों (military cantonments) को उप-जिला या जिला घोषित किया जा सकता है।

  • लेकिन अब यह धारा हटा दी गई है (निरसित कर दी गई है)।
  • इसे 1927 के निरसन और संशोधन अधिनियम द्वारा समाप्त किया गया।

धारा 10 – रजिस्ट्रार की अनुपस्थिति या पद रिक्त होने पर

(1) प्रेसिडेंसी नगर को छोड़कर बाकी जिलों में:

  • अगर कोई रजिस्ट्रार काम से अलग किसी कारण जिले से अनुपस्थित हो जाए, या
  • अगर उसका पद अस्थायी रूप से खाली हो जाए,
  • तब —
    • महानिरीक्षक (Inspector General) किसी व्यक्ति को कार्यवाहक रजिस्ट्रार बना सकता है।
    • अगर महानिरीक्षक ने नियुक्ति नहीं की, तो जिला न्यायालय का न्यायाधीश, जिसके अधिकार क्षेत्र में रजिस्ट्रार का कार्यालय है, स्वतः रजिस्ट्रार बन जाएगा,
    • और वह तब तक काम करेगा जब तक राज्य सरकार नया रजिस्ट्रार नियुक्त नहीं कर देती।

(2) प्रेसिडेंसी नगर वाले जिलों में:

  • वही नियम लागू होगा —
    • यानी महानिरीक्षक कोई व्यक्ति नियुक्त करेगा कार्यवाहक रजिस्ट्रार के तौर पर,
    • और वह तब तक काम करेगा जब तक राज्य सरकार रिक्ति को भर नहीं देती।

धारा 11 — रजिस्ट्रार का अपने जिले में ड्यूटी से अनुपस्थित रहना

अगर कोई रजिस्ट्रार अपने जिले में ही है, लेकिन अपने कार्यालय से अनुपस्थित है,

  • तो वह —
    • अपने जिले के किसी उप-रजिस्ट्रार या
    • किसी अन्य व्यक्ति को,
  • अपनी अनुपस्थिति के दौरान
    • सभी कर्तव्यों का पालन करने के लिए नियुक्त कर सकता है,
  • लेकिन, धारा 68 और 72 में बताए गए कर्तव्य वह व्यक्ति नहीं निभा सकता

धारा 12 – उप-रजिस्ट्रार की अनुपस्थिति या उसके कार्यालय में रिक्ति

जब कोई उप-रजिस्ट्रार

    • अनुपस्थित हो, या
    • उसका पद अस्थायी रूप से खाली हो जाए,
  • तब —
    • जिले का रजिस्ट्रार किसी व्यक्ति को इस काम के लिए नियुक्त कर सकता है,
  • जो —
    • उस अनुपस्थिति या रिक्ति के दौरान उप-रजिस्ट्रार के रूप में काम करेगा,
  • जब तक कि नया उप-रजिस्ट्रार नियुक्त नहीं हो जाता

धारा 13 — धारा 10, 11 और 12 के अधीन नियुक्तियों की राज्य सरकार को रिपोर्ट

धारा 10, धारा 11, और धारा 12 के तहत जो भी नियुक्तियाँ की जाती हैं,

  • उनकी रिपोर्ट
    • महानिरीक्षक द्वारा
    • राज्य सरकार को दी जाएगी।
  • यह रिपोर्ट —
    • या तो विशेष (special) होगी,
    • या फिर सामान्य (general) होगी,
  • जैसा कि राज्य सरकार निर्देश (आदेश) दे।

धारा 14 — रजिस्ट्रीकरण अधिकारियों की स्थापनाएं राज्य सरकार,

  • इस अधिनियम के तहत बने हुए विभिन्न कार्यालयों के लिए,
  • उचित स्थापना (यानि जितने अफसर, स्टाफ आदि चाहिए) की अनुमति दे सकती है।

धारा 15 – रजिस्ट्रीकरण अधिकारी की मुहर

रजिस्ट्रार और उप-रजिस्ट्रार को एक मुहर (seal) इस्तेमाल करनी होगी।

  • इस मुहर पर,
    • अंग्रेजी में, और
    • कोई और भाषा जो राज्य सरकार बताए,
      में लिखा होगा —
       “रजिस्ट्रार (या उप-रजिस्ट्रार) की मुहर“।

धारा 16 – रजिस्टर-पुस्तकें और अग्निरोधक (fire-proof) बक्से

 

(1) राज्य सरकार हर रजिस्ट्रीकरण ऑफिस के लिए जरूरी पुस्तकें (Registers) उपलब्ध कराएगी।

  • (2) इन पुस्तकों में :-
    महानिरीक्षक जो फॉर्मेट (format) बताएगा (राज्य सरकार की मंजूरी से), वही फॉर्मेट होगा।
     किताब के हर पन्ने पर क्रम संख्या (serial number) छपी होगी।
     किताब में कुल पेजों की संख्या सर्टिफाई (certify) करनी होगी उस अधिकारी द्वारा जिसने वह किताब जारी की है।
  • (3) राज्य सरकार हर रजिस्ट्रार ऑफिस में —
     अग्निरोधक बक्सा (fireproof box) देगी ताकि दस्तावेज सुरक्षित रहें।
     और पूरे जिले में दस्तावेजों की सुरक्षित रख-रखाव (safe custody) की सही व्यवस्था भी करेगी।

धारा 16A — पुस्तकों को कंप्यूटर फ्लॉपी, डिस्केट आदि में रखना

(1) भले ही धारा 16 कुछ कहती हो, लेकिन —
 रजिस्टर-बुक्स अब कंप्यूटर फ्लॉपी, डिस्केट या किसी और इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म (जैसे हार्ड ड्राइव वगैरह) में भी रखी जा सकती हैं।
 यह काम तभी होगा जब —
 राज्य सरकार की मंजूरी हो।
 और महानिरीक्षक ने तरीका और सुरक्षा उपाय (protection rules) तय किए हों।

  • (2) चाहे इस अधिनियम या किसी और कानून में कुछ भी लिखा हो —
     जो किताबें इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में रखी गई हैं, उनसे अगर रजिस्ट्रेशन अधिकारी ने अपनी सील (mohar) और हस्ताक्षर लगाकर कोई कॉपी या उद्धरण (extract) दिया,
     तो उसे उसी तरह मानेंगे जैसे धारा 57 के तहत दी गई ऑफिशियल कॉपी मानी जाती है।

धारा 17 — दस्तावेज जिनका पंजीकरण अनिवार्य है

(1) निम्नलिखित दस्तावेजों का पंजीकरण अनिवार्य है, अगर संबंधित संपत्ति उस जिले में स्थित है और दस्तावेज़ उस तारीख को या बाद में निष्पादित किए गए हैं:

  • (a) अचल संपत्ति के दान के दस्तावेज
  • (b) ऐसे दस्तावेज़ जो अचल संपत्ति में या उसके प्रति कोई अधिकार, शीर्षक या हित सृजित करने, समर्पित करने, सीमित करने या समाप्त करने का संकेत देते हों और जिनकी कीमत ₹100 या उससे अधिक हो।
  • (c) ऐसे दस्तावेज़ जो किसी अधिकार या शीर्षक को स्वीकार करते हैं।
  • (d) अचल संपत्ति का पट्टा (यदि एक वर्ष या उससे अधिक समय के लिए)।
  • (e) न्यायालय की डिक्री या आदेश जो संपत्ति में ₹100 या उससे अधिक का अधिकार सृजित करता हो।

छूट:

  • राज्य सरकार किसी पट्टे को पंजीकरण से छूट दे सकती है, यदि शर्तें 5 साल से अधिक नहीं हैं और वार्षिक किराया ₹50 से अधिक नहीं है।
  • (1a) 1882 के संपत्ति अंतरण अधिनियम के तहत संपत्ति का ट्रांसफर करने वाली संविदा का पंजीकरण भी अनिवार्य है, यदि इसे पंजीकृत नहीं किया गया है तो इसका कोई प्रभाव नहीं होगा।
  • (2) कुछ दस्तावेज़ पंजीकरण से मुक्त हैं, जैसे:
  • (i) संयोजन विलेख (Composition Deed)
  • (ii) किसी संयुक्त स्टॉक कंपनी के शेयर से संबंधित दस्तावेज़।
  • (iii) कोई डिबेंचर जो अचल संपत्ति पर अधिकार नहीं सृजित करता।
  • (iv) सरकारी अनुदान या राजस्व अधिकारी द्वारा विभाजन से संबंधित दस्तावेज़।
  • (3) 1 जनवरी 1872 के बाद, गोद लेने के अधिकार वाले दस्तावेज़ों का भी पंजीकरण अनिवार्य है।

मूल अधिनियम के अनुसार:

(1) ₹100 या उससे अधिक मूल्य की अचल संपत्ति से संबंधित दान, बिक्री, पट्टा आदि वाले दस्तावेज़ों का पंजीकरण अनिवार्य है।
(2) कुछ दस्तावेज़ों को पंजीकरण से छूट दी गई है — जैसे संयोजन विलेख, सरकारी आदेश, न्यायालय की डिक्री आदि।

 राजस्थान संशोधन (राजस्थान अधिनियम 18, 1989):

 (1) उपधारा (1) में नए दो खंड जोड़े गए (घ) और परंतुक के बीच):

  • (च) ऐसा बिक्री करार (Agreement to Sell) जिसमें कब्जा क्रेता को दे दिया गया हो या दिया जा रहा हो, वह भी पंजीकृत किया जाएगा।
  • (छ) अपरिवर्तनीय मुख्तारनामा (Irrevocable Power of Attorney) जो किसी अचल संपत्ति के ट्रांसफर से जुड़ा हो, उसका पंजीकरण भी अनिवार्य होगा।

 (2) उपधारा (2) में मौजूद “स्पष्टीकरण” हटा दिया गया है।
(जो पहले कहता था कि अगर किसी बिक्री-संविदा में बयाना या राशि का उल्लेख हो, तो उससे पंजीकरण अनिवार्य नहीं होगा। अब यह राजस्थान में लागू नहीं है।)

 राजस्थान संशोधन (राजस्थान अधिनियम 16, 1976):

 (1) उपधारा (2) के खंड (xii) में बदलाव:

  • अंतिम में पूर्णविराम की जगह अल्पविराम और “या” जोड़ा गया।

 (2) नया खंड जोड़ा गया:

  • (xiii) ऐसा कोई उपकरण (instrument) जो धारा 89 की उपधारा (5) में निर्दिष्ट है — उसे भी पंजीकृत दस्तावेजों की सूची में शामिल किया गया।

धारा 18 – दस्तावेज जिनका पंजीकरण वैकल्पिक है (Documents of which registration is optional)

मतलब:
कुछ दस्तावेज ऐसे होते हैं जिनका पंजीकरण ज़रूरी नहीं होता, पर अगर कोई चाहे तो पंजीकरण करवा सकता है।

ऐसे दस्तावेज जिनका पंजीकरण वैकल्पिक (optional) है:

  1. ₹100 से कम मूल्य के अचल संपत्ति वाले दस्तावेज
    जैसे कोई अधिकार/हक बनाना, देना, सीमित करना, खत्म करना (दान या वसीयत को छोड़कर)
  2. ऐसे दस्तावेज जो किसी अधिकार या हक के बदले में भुगतान स्वीकार करें
    मतलब कोई सौदा हो, लेकिन ₹100 से कम मूल्य का।
  3. 1 साल से ज्यादा के लिए अचल संपत्ति का पट्टा (lease)
    लेकिन वो पट्टे जो धारा 17 के अंतर्गत अनिवार्य नहीं हैं।
  4. ऐसी डिक्री, आदेश या पंचाट वाली लिखत जिसमें ₹100 से कम मूल्य का अचल संपत्ति में हक बनता हो
    डिक्री/पंचाट का असर स्थावर संपत्ति पर हो, लेकिन बहुत कम मूल्य का।
  5. चल संपत्ति (movable property) से जुड़े दस्तावेज
    जैसे किसी वस्तु या गाड़ी के हक को देने या खत्म करने वाला दस्तावेज (वसीयत को छोड़कर)।
  6. वसीयत (Will)
    जो मृत्यु के बाद संपत्ति किसे मिले, यह बताती है — इसका पंजीकरण वैकल्पिक है।
  7. ऐसे सभी दस्तावेज जिनका ज़िक्र धारा 17 में नहीं है
    मतलब जो अनिवार्य पंजीकरण में नहीं आते।

 एग्जाम टिप्स (One-Liner Memory Aids):

  • “100 से कम – रजिस्ट्रेशन मन!”
    (₹100 से कम मूल्य वाले अचल संपत्ति दस्तावेज का पंजीकरण वैकल्पिक है।)
  • “चल संपत्ति – चलो मत करो पंजीकरण!”
  • “वसीयत – इच्छा है तो कराओ!”
  • “1 साल से ज्यादा पट्टा – ऑप्शन है!”

धारा 19 – ऐसी भाषा में दस्तावेज जो रजिस्ट्रीकरण अधिकारी द्वारा समझी न जाए (Section 19 – Document in Language Not Understood by Registering Officer)

अगर कोई दस्तावेज ऐसी भाषा में है:

  • जिसे रजिस्ट्रीकरण अधिकारी नहीं समझता,
  • और जो भाषा उस जिले में आम तौर पर प्रयोग में नहीं है,

तो वह अधिकारी पंजीकरण करने से मना कर देगा,
जब तक दस्तावेज के साथ—  उस दस्तावेज का सही अनुवाद (correct translation) और
सही प्रतिलिपि (true copy) उसी जिले में प्रचलित भाषा में प्रस्तुत न किया जाए।

धारा 20 – अंतर्लिखित, रिक्त स्थान, विलोपन या परिवर्तन वाले दस्तावेज(Section 20 – Documents containing interlineations, blanks, erasures or alterations)

(1) रजिस्ट्रीकरण से इनकार की शक्ति:

अगर किसी दस्तावेज़ में –
 अंतराल (interlineations)
रिक्त स्थान (blanks)
 विलोपन (erasures)
 परिवर्तन (alterations)
दिखाई देते हैं,
तो रजिस्ट्रीकरण अधिकारी पंजीकरण से मना कर सकता है,
जब तक दस्तावेज़ को निष्पादित (execute) करने वाले व्यक्ति
 उन सभी बातों को अपने हस्ताक्षर या आद्याक्षरों (initials) से प्रमाणित न करें।

 (2) पंजीकरण की स्थिति में क्या करना होगा:

अगर अधिकारी ऐसा दस्तावेज पंजीकृत कर देता है,
तो वह रजिस्टर में इन सभी
 अंतराल / रिक्त स्थान / विलोपन / परिवर्तन
के बारे में स्पष्ट नोट लिखेगा।

 एग्जाम मेमोरी टिप:

 “अगर दस्तावेज़ में गड़बड़ दिखे, तो बिना हस्ताक्षर के रजिस्ट्रेशन नहीं हो सके!”
 “अगर रजिस्ट्रेशन हो जाए – तो रजिस्टर में गड़बड़ी की नोटिंग ज़रूरी है!”

धारा 21 – संपत्ति का विवरण तथा मानचित्र या योजना (Description of property and maps or plans)

(1) पहचान के लिए पूरा विवरण अनिवार्य:

कोई भी गैर-वसीयती दस्तावेज (non-testamentary document)
जो अचल संपत्ति (immovable property) से जुड़ा हो,
तब तक रजिस्ट्रीकरण के लिए स्वीकार नहीं होगा,
जब तक उस दस्तावेज़ में उस संपत्ति का इतना स्पष्ट विवरण न हो
कि जिससे वह संपत्ति पहचानी जा सके।

(2) शहरी क्षेत्र में मकानों का विवरण कैसे होगा:

🏠 शहरों में मकानों का वर्णन इस तरह होगा:

  • कौन-सी गली या सड़क के सामने है – ये बताया जाएगा।
  • साथ ही:
     वर्तमान और पूर्व निवासी कौन थे,
     यदि मकानों की नंबरिंग है, तो उनका नंबर भी लिखा जाएगा।

(3) अन्य मकान और ज़मीन का विवरण कैसे होगा:

 जो मकान या ज़मीन शहर से बाहर है, उनका विवरण इस तरह होगा:

  • अगर कोई नाम है, तो नाम से,
  • प्रादेशिक सीमा (region/sub-division) के अनुसार,
  • उनकी सतही रचना (surface area),
  • किस-किस से लगे हुए हैं (सड़क, पड़ोसी संपत्ति आदि),
  • वर्तमान निवासी कौन हैं,
  • और संभव हो तो –
     किसी सरकारी नक्शे या सर्वेक्षण (map/survey reference) का भी ज़िक्र किया जाएगा।

 (4) मानचित्र या योजना होने की स्थिति में:

 अगर दस्तावेज़ में कोई नक्शा या योजना (map or sketch) शामिल है,
तो पंजीकरण के लिए यह तब तक स्वीकार नहीं होगा जब तक:

  • उसकी सत्य प्रतिलिपि (true copy) न हो;
  • और अगर संपत्ति एक से अधिक जिलों में है,
    तो हर जिले के लिए अलग-अलग सत्य प्रतिलिपि जरूरी होगी।

 एग्जाम मेमोरी टिप:

 “संपत्ति दिखे – तो पहचान की पूरी जानकारी लिखी होनी चाहिए!”
 “शहर – गली, नंबर, निवासी। गांव – नाम, सीमा, पास की चीजें, नक्शे का हवाला।”
 “नक्शा है तो उसकी सच्ची कॉपी भी ज़रूरी!”

धारा 22 – सरकारी मानचित्रों या सर्वेक्षणों के संदर्भ में मकानों और भूमि का वर्णन (Description of houses and land by reference to government maps or surveys)

(1) राज्य सरकार विशेष नियम बना सकती है:

 यदि राज्य सरकार की राय में – नगरों के बाहर के मकान और जमीनें
सरकारी नक्शे या सर्वे (survey) के आधार पर पहचानी जा सकती हैं, तो:  सरकार नियम बना सकती है कि: ऐसी संपत्तियों का वर्णन, धारा 21 के उद्देश्यों के लिए, सरकारी नक्शे या सर्वे के अनुसार किया जाए।

(2) विवरण में छोटी कमी से पंजीकरण नहीं रुकेगा:

यदि सरकार द्वारा बनाए गए नियमों में कोई विशेष बात न कही गई हो, तो: केवल इस कारण से कि – धारा 21(2) या 21(3) के सभी नियमों का पालन नहीं हुआ है, दस्तावेज़ को पंजीकरण से वंचित नहीं किया जाएगा अगर उस संपत्ति का विवरण इतना है कि
वह पहचान में आ जाए।

 एग्जाम मेमोरी टिप:

 “सरकार नियम बना सकती है – गांव की जमीन हो तो नक्शे से पहचान हो।”
 “छोटी कमी हो – पर पहचान साफ हो, तो पंजीकरण मना नहीं होगा!”

धारा 23 – दस्तावेज प्रस्तुत करने का समय (Time for Presenting Documents)

मुख्य बात:

वसीयत को छोड़कर कोई भी दस्तावेज़ पंजीकरण (registration) के लिए तभी स्वीकार किया जाएगा, जब वह निष्पादन (execution) की तारीख से 4 महीने के भीतर
उचित रजिस्ट्रीकरण अधिकारी के सामने प्रस्तुत किया गया हो।

मतलब – जो दिन दस्तावेज़ पर साइन हुआ (execute किया गया), उसी दिन से 4 महीने के अंदर जमा करना ज़रूरी है।

 बशर्ते (Exception): डिक्री या आदेश की प्रतिलिपि (copy of decree/order अगर पंजीकरण के लिए दी गई चीज़  कोर्ट की डिक्री या आदेश की प्रतिलिपि है,
तो:

(1) उसे डिक्री/आदेश पारित होने की तारीख से 4 महीने के भीतर प्रस्तुत किया जा सकता है।
या
अगर वह अपील योग्य है, तो उसे उस दिन से 4 महीने के भीतर प्रस्तुत किया जा सकता है
जिस दिन वह अंतिम (final) हो जाता है (यानी अपील की कोई और संभावना न रहे)।

 एग्जाम के लिए याद रखने वाली बातें:

 “निष्पादन से 4 महीने – सामान्य दस्तावेज़”
 “डिक्री/आदेश – पारित या अंतिम होने की तारीख से 4 महीने”

 

धारा 23A – कुछ दस्तावेजों का पुनः पंजीकरण

 मुख्य उद्देश्य:

यदि कोई ऐसा दस्तावेज जिसे रजिस्ट्री (पंजीकरण) करवाना जरूरी था, गलती से ऐसे व्यक्ति से स्वीकार कर लिया गया जो उसे पंजीकरण के लिए देने का अधिकार नहीं रखता था, तो ऐसे दस्तावेज को फिर से रजिस्ट्री (re-registration) करवाया जा सकता है।

सरल बिंदुवार व्याख्या:

  1. अगर कोई दस्तावेज़ जिसे रजिस्टर करवाना ज़रूरी था,
     ऐसे व्यक्ति से रजिस्टर हो गया जो इसे प्रस्तुत करने के लिए अधिकृत (अधिकार वाला) नहीं था,
     तो वह रजिस्ट्रेशन अवैध (invalid) माना जाएगा।
  2. ऐसे दस्तावेज पर दावा करने वाला व्यक्ति,
    जब उसे यह पता चले कि रजिस्ट्रेशन अवैध था,
     तो 4 महीने के अंदर, उस दस्तावेज को फिर से रजिस्ट्रार कार्यालय में पुनः पंजीकरण के लिए दे सकता है।
  3. रजिस्ट्रार जब यह संतुष्ट हो जाए कि दस्तावेज़ गलती से किसी अधिकारहीन व्यक्ति से लिया गया,
     तब वह दस्तावेज को ऐसे रजिस्ट्री करेगा जैसे वह पहली बार हो रहा हो।
  4. इस दोबारा पंजीकरण पर इस कानून की सभी सामान्य प्रक्रियाएं लागू होंगी,
     और यह मान लिया जाएगा कि दस्तावेज समय पर और वैध रूप से रजिस्टर हुआ है।
  5. 📆 एक विशेष छूट भी है:
    यदि यह गलती 12 सितम्बर 1917 को या उससे पहले हुई हो,
     तो दस्तावेज पर दावा करने वाला व्यक्ति 3 महीने के अंदर उसे पुनः रजिस्ट्रेशन के लिए दे सकता है,
     भले ही उसे पहले कभी भी उस अवैध रजिस्ट्री की जानकारी मिली हो।

धारा 24 – विभिन्न समयों पर कई व्यक्तियों द्वारा निष्पादित दस्तावेज

 

 

 

 सरल बिंदुवार व्याख्या:

  1. जब एक दस्तावेज़ को अलग-अलग तारीखों पर अलग-अलग लोगों ने साइन किया हो,
     जैसे एक व्यक्ति ने आज किया, दूसरा एक हफ्ते बाद।
  2. तो ऐसे दस्तावेज़ को हर व्यक्ति के साइन (निष्पादन) की तारीख से चार महीने के अंदर
     रजिस्ट्रेशन (या Re-registration) के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है।

 

धारा 25 – प्रावधान जहां प्रस्तुति में विलम्ब अपरिहार्य (unavoidable) है

 मुख्य उद्देश्य:

अगर किसी दस्तावेज़ को रजिस्ट्रेशन के लिए समय पर पेश नहीं किया जा सका और देरी मजबूरी या दुर्घटना की वजह से हुई, तो भी उसे कुछ शर्तों के साथ स्वीकार किया जा सकता है।

 सरल बिंदुवार व्याख्या:

 (1) मूल प्रावधान (All India):

  1. अगर कोई दस्तावेज़ या डिक्री/आदेश की कॉपी भारत में निष्पादित हुई है,
  2. और वह समय पर रजिस्ट्रेशन के लिए पेश नहीं की गई,
  3. और ऐसा अत्यावश्यक कारण (emergency) या अपरिहार्य दुर्घटना (unavoidable accident) के कारण हुआ है,
  4. तो रजिस्ट्रार, उन मामलों में जहाँ देरी 4 महीने से अधिक न हो,
    आदेश दे सकता है कि:

 दस्तावेज़ को रजिस्ट्रेशन के लिए स्वीकार किया जाए,
 बशर्ते, तय रजिस्ट्री शुल्क के 10 गुना तक जुर्माना भर दिया जाए।

  1. इसके लिए आवेदन उप-रजिस्ट्रार को दिया जा सकता है, जो उसे तुरंत अपने उच्च अधिकारी (रजिस्ट्रार) को भेज देगा।

राजस्थान संशोधन (Rajasthan Amendment):

राजस्थान ने इस धारा में कुछ बदलाव किए हैं:

 उपधारा (1):

  • “रजिस्ट्रार” शब्द की जगह अब “रजिस्ट्रीकर्ता अधिकारी” शब्द आएगा।
  • “निर्देश दें कि दस्तावेज को रजिस्टर करें” की जगह अब “ऐसे दस्तावेज पर” शब्द होंगे।
  • मतलब अब रजिस्ट्रेशन के निर्देश नहीं दिए जाएंगे, बल्कि दस्तावेज को सीधे स्वीकार किया जाएगा।

 उपधारा (2):

  • पूरा हटा दिया गया है।
  • यानी अब उप-रजिस्ट्रार के माध्यम से आवेदन भेजने की व्यवस्था नहीं रहेगी

 EXAM KE LIYE KEY POINTS:

  • समय पर रजिस्ट्रेशन न हो पाने पर राहत – मजबूरी या दुर्घटना के कारण होनी चाहिए।
  • 4 महीने से ज्यादा देरी नहीं होनी चाहिए।
  • जुर्माना = रजिस्ट्री फीस का 10 गुना तक।
  • आवेदन रजिस्ट्रार को (RAJ में सीधे रजिस्ट्रीकर्ता अधिकारी को)।
  • राजस्थान में:
     उपधारा (2) हटा दी गई है।
     और शब्दों में थोड़ा बदलाव किया गया है।

 

धारा 26 – भारत से बाहर निष्पादित दस्तावेज़ (Document executed outside India)

 सरल बिंदु:

  1. अगर कोई दस्तावेज़ भारत के बाहर साइन किया गया है, और
    वह दस्तावेज़ समय पर रजिस्ट्रेशन के लिए पेश नहीं किया गया, तो…
  2. रजिस्ट्रेशन अधिकारी उसे पंजीकरण के लिए स्वीकार कर सकता है यदि:

(a) उसे भरोसा हो जाए कि दस्तावेज़ वास्तव में भारत के बाहर साइन किया गया था, और
(b) वह दस्तावेज़ भारत में आने के बाद 4 महीने के भीतर रजिस्ट्रेशन के लिए पेश कर दिया गया।

  1. अगर ऊपर की दोनों बातें पूरी हो जाती हैं,
     और पंजीकरण शुल्क भी जमा कर दिया गया हो,
     तो दस्तावेज को रजिस्ट्रीकरण के लिए स्वीकार कर लिया जाएगा।

 EXAM के लिए याद रखें:

  • दस्तावेज़ अगर भारत के बाहर निष्पादित (execute) हुआ हो
  • तो भारत आने के बाद 4 महीने के भीतर रजिस्ट्रेशन के लिए दिया जाना चाहिए
  • रजिस्ट्रेशन ऑफिसर की संतुष्टि और फीस जरूरी है
  • तभी वह दस्तावेज़ को स्वीकार करेगा

धारा 27 – वसीयत कभी भी प्रस्तुत की जा सकती है

 सरल बिंदु:

  1. वसीयत को रजिस्ट्रेशन के लिए कोई समय-सीमा नहीं है
  2. इसे किसी भी समय
    रजिस्ट्रेशन के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है,
     या फिर बाद में जमा किया जा सकता है (as per process)।

EXAM के लिए याद रखें:

  • वसीयत = समय की कोई सीमा नहीं
  • जब चाहे पंजीकरण या जमा किया जा सकता है
  • यह नियम सिर्फ Will (वसीयत) पर लागू होता है

धारा 28 – भूमि से संबंधित दस्तावेजों का पंजीकरण कहाँ होगा?

 सरल बिंदु:

  • यदि दस्तावेज़ स्थावर संपत्ति (Immovable Property) से संबंधित है,
  • तो उसका पंजीकरण उसी उप-रजिस्ट्रार कार्यालय में होगा,
     जहाँ वह संपत्ति (या उसका कोई हिस्सा) स्थित है।

 परीक्षा के लिए याद रखें:

भूमि वाला दस्तावेज = उसी क्षेत्र के उप-रजिस्ट्रार के पास जहाँ जमीन है।

धारा 29 – अन्य दस्तावेजों के पंजीकरण का स्थान

 सरल बिंदु:

(1) अगर दस्तावेज़ भूमि से संबंधित नहीं है, तो:

  • रजिस्ट्रेशन किया जा सकता है:  वहाँ जहाँ दस्तावेज निष्पादित (sign) हुआ,
     या वहाँ जहाँ सभी संबंधित व्यक्ति उसे रजिस्टर करवाना चाहते हैं (यदि राज्य सरकार अनुमति दे)।

(2) अगर डिक्री या आदेश की कॉपी है:

  • तब उसे:  वहाँ पंजीकरण के लिए दिया जा सकता है जहाँ वह डिक्री/आदेश पास हुआ हो,
     या जहाँ सभी संबंधित लोग उसे रजिस्टर करवाना चाहें (अगर वह अचल संपत्ति को प्रभावित नहीं करता हो)।

 परीक्षा के लिए याद रखें:

गैर-भूमि दस्तावेज = साइनिंग की जगह या इच्छानुसार रजिस्ट्रेशन।
डिक्री/आदेश = पास होने की जगह या इच्छानुसार।

धारा 30 – कुछ मामलों में रजिस्ट्रार द्वारा पंजीकरण

 मूल बात:

  • रजिस्ट्रार (Registrar) अपने विवेक से (discretion)
     किसी भी ऐसे दस्तावेज को स्वीकार और पंजीकृत कर सकता है,
     जिसे उसके अधीन उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) पंजीकृत कर सकता है।

 परीक्षा के लिए सरल निष्कर्ष:

  • रजिस्ट्रार = खुद भी रजिस्टर कर सकता है।
  • शर्त = वही दस्तावेज होना चाहिए जो उप-रजिस्ट्रार के अधिकार में आता है।
  • यह रजिस्ट्रार का विकल्प है, बाध्यता नहीं।

 याद रखने की ट्रिक:

“जो उप-रजिस्ट्रार कर सकता है, वह रजिस्ट्रार भी कर सकता है – अगर चाहे।”

धारा 31 – निजी आवास पर पंजीकरण या जमा की स्वीकृति

 मूल बात:

  • सामान्य स्थिति में:  दस्तावेजों का पंजीकरण या जमा केवल कार्यालय में होगा,
     और वही अधिकारी करेगा जो पंजीकरण के लिए अधिकृत है।
  • विशेष स्थिति में:  अगर कोई विशेष कारण हो,
     तो अधिकारी व्यक्ति के घर (निजी आवास) पर जाकर
     दस्तावेज या वसीयत स्वीकार कर सकता है या जमा कर सकता है।

 परीक्षा के लिए सरल निष्कर्ष:

  • नियम = पंजीकरण ऑफिस में होगा।
  • अपवाद = विशेष कारण हो तो घर जाकर पंजीकरण संभव।
  • यह सुविधा जरूरतमंद या असमर्थ लोगों के लिए है।

 याद रखने की ट्रिक:

“दफ्तर में दस्तावेज – यही नियम है,
पर ज़रूरत हो तो अधिकारी घर भी आ सकता है।”

धारा 32 – दस्तावेज कौन प्रस्तुत करेगा पंजीकरण के लिए

मूल नियम:

धारा 31, 88 और 89 को छोड़कर,
हर दस्तावेज जो पंजीकरण के लिए लाया जाएगा — चाहे अनिवार्य हो या वैकल्पिक —
उसे सही पंजीकरण कार्यालय में इन व्यक्तियों द्वारा प्रस्तुत किया जाना चाहिए:

प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति:

 (a) मूल निष्पादक या उसके अधीन दावा करने वाला व्यक्ति
 मतलब – जिसने दस्तावेज बनाया या उसके नाम पर अधिकार जताया।

(b) उसके प्रतिनिधि या समनुदेशिती (assignee)
 यानी – जिसे कानूनी रूप से उसका अधिकार सौंपा गया हो।

(c) विधिवत् प्राधिकृत एजेंट (Agent)
 पर शर्त ये है कि: उसके पास प्रॉपर मुख्तारनामा (Power of Attorney) हो, जो दस्तावेज़ के अनुसार निष्पादित और प्रमाणित किया गया हो।

धारा 32A – फोटोग्राफ और अंगुलियों के निशान लगाना अनिवार्य

मुख्य बात:

जब कोई व्यक्ति किसी दस्तावेज को धारा 32 के तहत रजिस्ट्रेशन ऑफिस में प्रस्तुत करता है, तो उसे दो चीजें दस्तावेज पर लगानी होंगी:

उसका पासपोर्ट साइज फोटोग्राफ, और उसके अंगुलियों के निशान (fingerprints)।

विशेष स्थिति – जब दस्तावेज अचल संपत्ति के स्वामित्व के अंतरण से संबंधित हो (Sale/Transfer):

 उस स्थिति में केवल प्रस्तुतकर्ता का ही नहीं,

 बल्कि दस्तावेज़ में जिनका नाम है : –
हर खरीदार (Buyer) और हर विक्रेता (Seller) का भी:

  पासपोर्ट फोटो
 अंगुलियों के निशान
दस्तावेज पर चिपकाए जाएंगे।

धारा 33 – किस प्रकार का Power of Attorney (मुख्तारनामा) मान्य होगा

यह धारा बताती है कि अगर कोई एजेंट (agent) दस्तावेज़ को रजिस्ट्रेशन ऑफिस में प्रस्तुत करने जा रहा है (धारा 32 के तहत), तो वह किस प्रकार का मुख्तारनामा (Power of Attorney) होना चाहिए ताकि वह मान्य हो।

 

(1) केवल ये तीन प्रकार के मुख्तारनामे ही मान्य हैं:

(a) जब Principal (मुख्य व्यक्ति/प्रधान) भारत में रहता हो:

  • तब मुख्तारनामा उसी ज़िले/उपज़िले के रजिस्ट्रार या उप-रजिस्ट्रार के सामने निष्पादित (executed) और प्रमाणित (authenticated) होना चाहिए ।

(b) जब Principal भारत के उस हिस्से में रहता हो जहां यह अधिनियम लागू नहीं है : –

  • तब यह मुख्तारनामा मजिस्ट्रेट के सामने निष्पादित और प्रमाणित होना चाहिए।

(c) जब Principal भारत में ही न हो:-

  • तब यह मुख्तारनामा निम्नलिखित के सामने निष्पादित और प्रमाणित हो सकता है:
    • नोटरी पब्लिक
    • कोई न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट
    • भारतीय वाणिज्यदूत या उप-वाणिज्यदूत
    • केंद्र सरकार का कोई प्रतिनिधि

परंतु – निम्नलिखित लोग कोर्ट या रजिस्ट्री ऑफिस में खुद आने से छूटे होंगे:

  • (i) जो शारीरिक रूप से अक्षम हों और आने में जोखिम/दिक्कत हो
  • (ii) जो जेल में बंद हों
  • (iii) जिन्हें कानूनन व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट मिली हो

स्पष्टीकरण: “भारत” शब्द का अर्थ 1897 के सामान्य खंड अधिनियम की धारा 3(28) के अनुसार होगा।

(2) अगर रजिस्ट्रार/उप-रजिस्ट्रार/मजिस्ट्रेट को यह विश्वास हो जाए कि:

यह मुख्तारनामा Principal द्वारा स्वेच्छा से बनाया गया है, तो वे बिना उसकी व्यक्तिगत उपस्थिति के भी इसे प्रमाणित कर सकते हैं।

(3) स्वेच्छा की पुष्टि करने के लिए क्या कर सकते हैं?

रजिस्ट्रार/मजिस्ट्रेट को यह जांचने के लिए कि व्यक्ति ने स्वेच्छा से दस्तावेज़ बनाया है, वे:

   उस व्यक्ति के घर जा सकते हैं
   जेल में जाकर उसकी जांच कर सकते हैं
   या कमीशन (न्यायिक आदेश) जारी कर सकते हैं

(4) जब ऐसा मान्य मुख्तारनामा पेश किया जाए तो:

 उसे सिर्फ पेश करके ही प्रमाणित माना जाएगा,
 यानी और कोई अतिरिक्त प्रमाण नहीं देना होगा, अगर यह स्पष्ट हो कि वह मान्य अधिकारी के सामने बना और प्रमाणित हुआ है।

धारा 34 – दस्तावेज रजिस्टर करने से पहले रजिस्ट्रार क्या-क्या जांचेगा

(1) सामान्य नियम:

 जब तक दस्तावेज़ को निष्पादित (execute) करने वाला व्यक्ति या उसका:

  • प्रतिनिधि (representative),
  • समनुदेशिती (assign), या
  • प्राधिकृत अभिकर्ता (duly authorized agent)
    स्वयं रजिस्ट्रार ऑफिस में उपस्थित न हो, तब तक दस्तावेज़ रजिस्टर नहीं किया जाएगा।

  यह उपस्थिति इन धाराओं के अनुसार निर्धारित समय में होनी चाहिए:
धारा 23, 24, 25, 26

परंतु (विशेष स्थिति में छूट):

अगर बहुत जरूरी कारण (urgent necessity) या अपरिहार्य दुर्घटना (unavoidable accident) के कारण कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं हो पाया,
और देरी 4 महीने से ज़्यादा नहीं हुई हो, तो:

 

 रजिस्ट्रार निर्देश दे सकता है कि दस्तावेज़ को रजिस्टर किया जाए
 बशर्ते:

  • धारा 25 के तहत जो जुर्माना देय हो, वो दिया जाए
  • और रजिस्ट्रेशन फीस का 10 गुना तक जुर्माना दिया जाए

(2) उपस्थिति एक साथ या अलग-अलग हो सकती है।

यानी सभी लोग एक साथ भी आ सकते हैं या अलग-अलग समय पर भी उपस्थित हो सकते हैं।

(3) रजिस्ट्रार को क्या-क्या जांचना होगा?

(a) यह जांचना कि:

  • दस्तावेज़ उन्हीं लोगों ने निष्पादित किया है जिनके नाम उस पर हैं।

(b) रजिस्ट्रार को संतुष्ट होना होगा कि:

  • उपस्थित व्यक्ति वही है जो दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करने का दावा कर रहा है।

(c) अगर कोई एजेंट / प्रतिनिधि / समनुदेशिती आया है तो:

  • रजिस्ट्रार को यह भी जांचना होगा कि उसे ऐसा करने का वैध अधिकार है या नहीं।

(4) यदि व्यक्ति उपस्थित नहीं हो पाए और जुर्माने की छूट चाहिए:

तब आवेदन उप-रजिस्ट्रार को दिया जा सकता है, जो उसे तुरंत अपने रजिस्ट्रार अधिकारी को भेजेगा।

(5) यह धारा किन पर लागू नहीं होती?

 यह धारा डिक्री या न्यायालय के आदेश की प्रतियों पर लागू नहीं होती।

 

धारा 35. निष्पादन की स्वीकृति और अस्वीकृति पर प्रक्रिया।

(1)(क) अगर दस्तावेज को निष्पादित करने वाले सभी व्यक्ति पंजीकरण अधिकारी (रजिस्ट्रेशन अफसर) के सामने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होते हैं, और अधिकारी उन्हें व्यक्तिगत रूप से जानता है या किसी भी तरह से यह समझ जाता है कि ये वही व्यक्ति हैं जो वे दावा करते हैं, और
 वे सभी व्यक्ति दस्तावेज के निष्पादन को स्वीकार करते हैं,
या
(ख) अगर कोई व्यक्ति खुद न आकर अपने प्रतिनिधि (representative), समनुदेशिती (assign) या अभिकर्ता (agent) को भेजता है और
 वह प्रतिनिधि दस्तावेज के निष्पादन को स्वीकार कर लेता है,
या
(ग) अगर दस्तावेज़ निष्पादित करने वाला व्यक्ति मर चुका है और
 उसका प्रतिनिधि या समनुदेशिती रजिस्ट्रेशन ऑफिसर के सामने आकर निष्पादन स्वीकार करता है,
 तब पंजीकरण अधिकारी धारा 58 से 61 तक दिए गए निर्देशों के अनुसार दस्तावेज को रजिस्टर करेगा

(2) रजिस्ट्रेशन अफसर यह निश्चित करने के लिए कि उसके सामने मौजूद व्यक्ति वही है जो वह दावा करता है,
 अपने ऑफिस में उपस्थित किसी भी व्यक्ति की परीक्षा (examination) कर सकता है।
यह अधिकार उसे इस अधिनियम में दिए गए किसी भी प्रयोजन के लिए भी है।

(3) (क) अगर कोई व्यक्ति जिससे यह उम्मीद है कि उसने दस्तावेज निष्पादित किया है,
 वह निष्पादन से इनकार कर दे,
या
(ख) वह व्यक्ति रजिस्ट्रेशन अधिकारी को नाबालिग, मूर्ख या पागल लगे,
या
(ग) अगर वह व्यक्ति मर चुका है और उसका प्रतिनिधि या समनुदेशिती
 दस्तावेज के निष्पादन से इनकार करता है,
 तब पंजीकरण अधिकारी उस दस्तावेज को रजिस्टर करने से मना कर देगा,
क्योंकि या तो वह व्यक्ति खुद आकर इनकार कर चुका है, या वह मर चुका है

बशर्ते
अगर ऐसा अधिकारी रजिस्ट्रार है,
 तो वह भाग XII में दी गई प्रक्रिया का पालन करेगा।

बशर्ते यह भी कि,                       
राज्य सरकार राजपत्र (official gazette) में अधिसूचना (notification) द्वारा यह घोषित कर सकती है कि
 अधिसूचना में नामित कोई उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar)
 उन दस्तावेजों के संबंध में, जिनके निष्पादन से इनकार किया गया है,
 इस उपधारा और भाग 12 के प्रयोजनों के लिए रजिस्ट्रार माना जाएगा

धारा 36. प्रक्रिया जहां निष्पादक या साक्षी की उपस्थिति वांछित है।

यदि कोई व्यक्ति किसी दस्तावेज को रजिस्ट्रेशन के लिए प्रस्तुत करता है, या
किसी दस्तावेज के आधार पर कोई दावा करता है,
 और वह व्यक्ति चाहता है कि
कोई दूसरा व्यक्ति, जिसकी उपस्थिति या गवाही उस दस्तावेज के रजिस्ट्रेशन के लिए जरूरी है, वह उपस्थित हो,

तब रजिस्ट्रेशन अधिकारी (Registrar) अपनी स्वविवेक से यह कर सकता है कि —
वह ऐसे अधिकारी या न्यायालय को बुलाए जिसे राज्य सरकार ने इस काम के लिए अधिकृत किया हो,
 ताकि वह अधिकारी या न्यायालय समन (summons) जारी करे और यह आदेश दे कि —
 वह आवश्यक व्यक्ति रजिस्ट्रेशन ऑफिस में
 व्यक्तिगत रूप से, या
 उचित रूप से अधिकृत अभिकर्ता (agent) के माध्यम से
 समय पर, जैसा कि समन में लिखा हो, उपस्थित हो।

 

धारा 37. अधिकारी या न्यायालय द्वारा समन जारी करना तथा उसकी तामील कराना।

अधिकारी या न्यायालय
ऐसे मामलों में, जब चपरासी की देय फीस प्राप्त हो जाती है, तब वह समन (summons) को उचित रूप से जारी करेगा,और उस समन को उस व्यक्ति पर तामील (serve) कराएगा जिसकी उपस्थिति अपेक्षित (desired/necessary) है।

धारा 38. पंजीकरण कार्यालय में उपस्थित होने से छूट प्राप्त व्यक्ति।

(1)
(क) ऐसा कोई व्यक्ति जो शारीरिक अशक्तता (physical disability) के कारण जोखिम (risk) या गंभीर असुविधा (serious inconvenience) के बिना पंजीकरण कार्यालय में उपस्थित नहीं हो सकता, या
(ख) सिविल या आपराधिक प्रक्रिया के अंतर्गत जेल में बंद व्यक्ति, या
(ग) ऐसा व्यक्ति जिसे न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने से कानून द्वारा छूट दी गई है,
 और जिसे अन्यथा पंजीकरण कार्यालय में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होना होता,
 उससे ऐसी उपस्थिति की अपेक्षा नहीं की जाएगी

 (2)
 ऐसे हर व्यक्ति के मामले में, रजिस्ट्रीकर्ता अधिकारी या तो
— स्वयं उस व्यक्ति के घर जाएगा,
— या उस जेल में जाएगा जहाँ वह बंद है,
— और उसे परीक्षा (examine) करेगा,
  या फिर, उसकी परीक्षा के लिए कमीशन (commission) जारी करेगा

धारा 39. समन, कमीशन और साक्षियों के संबंध में विधि।

 सिविल न्यायालयों में जो वाद (cases) चलते हैं,
उनमें
समन (summons),
कमीशन (commission),
साक्षियों को बुलाना (summoning witnesses)
और
साक्षियों को मिलने वाला पारिश्रमिक (remuneration) के बारे में जो भी कानून उस समय लागू (in force) होता है,
 वही कानून (with necessary changes) और सिवाय जब कुछ अलग कहा गया हो),
 इस अधिनियम के अंतर्गत जारी किए गए किसी भी समन या कमीशन पर लागू होगा,
और
 किसी भी व्यक्ति पर, जिसे उपस्थित होने के लिए समन किया गया है, लागू होगा।

धारा 40. वसीयत और गोद लेने के प्राधिकार प्रस्तुत करने के हकदार व्यक्ति।

(1)  वसीयतकर्ता (will बनाने वाला व्यक्ति), या उसकी मृत्यु के बाद, कोई व्यक्ति जो निष्पादक (executor) के रूप में या अन्य किसी रूप में  स वसीयत के अधीन दावा करता है, वह उस वसीयत को
 पंजीकरण के लिए
 किसी रजिस्ट्रार या उप-रजिस्ट्रार के सामने प्रस्तुत कर सकता है

(2) कोई व्यक्ति जिसने गोद लेने का अधिकार (adoption authority) दिया है,
या उसकी मृत्यु के बाद,
 गोद लेने वाला (recipient) या
 गोद लिया गया पुत्र (adopted son),

वह भी रजिस्ट्रेशन के लिए किसी रजिस्ट्रार या उप-रजिस्ट्रार के सामने प्रस्तुत कर सकता है

धारा 41. वसीयत का पंजीकरण और गोद लेने के प्राधिकार।

(1) अगर वसीयतकर्ता (will बनाने वाला) या  गोद देने वाला व्यक्ति (दाता)
वसीयत या गोद लेने के अधिकार (adoption authority) को
 पंजीकरण के लिए प्रस्तुत करता है, तो वह दस्तावेज़
 किसी अन्य सामान्य दस्तावेज की तरह ही पंजीकृत किया जा सकता है

(2) अगर वसीयत या गोद लेने का प्राधिकार उसे प्रस्तुत करने के हकदार कोई दूसरा व्यक्ति पंजीकरण के लिए प्रस्तुत करता है, तो वह पंजीकृत किया जाएगा, अगर रजिस्ट्रेशन अधिकारी को यह संतोष हो जाए कि

(क)  वसीयत या गोद लेने का प्राधिकार, सही में वसीयतकर्ता या गोद देने वाले व्यक्ति द्वारा बनाया गया था;

(ख)  वसीयतकर्ता या गोद देने वाला व्यक्ति मर चुका है; और

(ग)  दस्तावेज प्रस्तुत करने वाला व्यक्ति,
 धारा 40 के अनुसार उसे प्रस्तुत करने का हकदार है

धारा 42. वसीयत जमा करना।

 कोई भी वसीयतकर्ता (जिसने वसीयत बनाई है),
 व्यक्तिगत रूप से या
 कानूनी रूप से अधिकृत एजेंट (प्राधिकृत प्रतिनिधि) के द्वारा,
 किसी भी रजिस्ट्रार के पास अपनी वसीयत (Will)
 एक सीलबंद लिफाफे (sealed envelope) में जमा कर सकता है,

 लिफाफे पर ये बातें लिखी होनी चाहिए
 वसीयतकर्ता का नाम,
 और उसके एजेंट का नाम (यदि कोई एजेंट हो),
 और यह भी कि उस लिफाफे में दस्तावेज़ किस प्रकार का है (यानी वसीयत है)।

धारा 43. वसीयत जमा करने की प्रक्रिया।

(1) जब रजिस्ट्रार को ऐसा सीलबंद लिफाफा मिलता है, और यदि रजिस्ट्रार को यह विश्वास हो जाता है कि जो व्यक्ति वह लिफाफा जमा कर रहा है —
 या तो वसीयतकर्ता (Will बनाने वाला) है,
 या उसका अभिकर्ता (Agent) है,
 तब रजिस्ट्रार यह कार्य करेगा:

 वह Register Book No. 5 में
 लिफाफे पर लिखा हुआ शीर्षक (उपरिलेख) दर्ज करेगा।

 उसी रजिस्टर बुक में और
 लिफाफे पर भी ये जानकारियाँ दर्ज करेगा:
 प्रस्तुति (submission) और प्राप्ति का वर्ष, महीना, दिन और समय,
 उस व्यक्ति का नाम जो
वसीयतकर्ता या उसके अभिकर्ता की पहचान की पुष्टि (गवाही) कर सकता है,
 और लिफाफे की सील पर लिखा कोई भी साफ़-साफ़ पढ़ा जाने वाला (सुपाठ्य) अभिलेख।

(2) रजिस्ट्रार उस सीलबंद लिफाफे को अपने अग्निरोधी बक्से (fireproof box) में रखेगा और अपने पास सुरक्षित रखेगा।

धारा 44. धारा 42 के अधीन जमा किए गए सीलबंद लिफाफे को वापस लेना

अगर वसीयतकर्ता (Will बनाने वाला व्यक्ति), जिसने अपनी वसीयत को धारा 42 के तहत सीलबंद लिफाफे में जमा किया है, उसे वापस लेना चाहता है,
तो वह ऐसा कर सकता है —

 या तो स्वयं व्यक्तिगत रूप से जाकर,
 या अपने विधिवत् (properly) प्राधिकृत (authorized) एजेंट के माध्यम से,
उस रजिस्ट्रार को आवेदन देकर
 जिसके पास वह लिफाफा जमा है।

 यदि रजिस्ट्रार संतुष्ट हो जाता है कि आवेदन करने वाला वास्तव में
वसीयतकर्ता है
या
उसका सही एजेंट है,
 तो वह रजिस्ट्रार वह सीलबंद लिफाफा (सुरक्षा) उसे वापस कर देगा

धारा 45. जमाकर्ता (वसीयतकर्ता) की मृत्यु पर कार्यवाही

(1) अगर जिस व्यक्ति (वसीयतकर्ता) ने धारा 42 के तहत सीलबंद लिफाफा जमा किया था, मर जाता है,
और कोई व्यक्ति उस सीलबंद लिफाफे को खोलने के लिए आवेदन करता है,
तो —

वह आवेदन उसी रजिस्ट्रार को दिया जाएगा जो वह लिफाफा अपने पास रखता है।

यदि रजिस्ट्रार को यह संतोष हो जाए कि वसीयतकर्ता की मृत्यु हो गई है,
 तो वह उस आवेदक की उपस्थिति में लिफाफा खोलेगा,
और —

उस लिफाफे में जो वसीयत रखी है, उसकी एक प्रति (copy)
रजिस्ट्रार की रजिस्टर-बुक संख्या 3 में लिखवाई जाएगी,
और उसका खर्चा आवेदक को देना होगा।

(2) जब वसीयत की प्रतिलिपि तैयार हो जाती है,
तब रजिस्ट्रार उस मूल वसीयत को दोबारा सीलबंद करके जमा कर देगा।

धारा 46. कुछ अधिनियमों और न्यायालयों की शक्तियों की कोई हानि नहीं (व्यावृत्ति)

(1) इस अधिनियम की पहले की किसी भी बात का यह अर्थ नहीं निकाला जाएगा कि:

वह भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1865 की धारा 259, या
प्रोबेट और प्रशासन अधिनियम, 1881 की धारा 81,
या
किसी न्यायालय की वह शक्ति, जिसके तहत वह किसी वसीयत को प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है

इनमें से किसी भी बात को यह अधिनियम समाप्त या कम नहीं करता है

मतलब – यह अधिनियम इन पुराने कानूनों या कोर्ट की वसीयत प्रस्तुत करवाने की शक्ति को नहीं छीनता।

(2) यदि कोई न्यायालय ऐसा आदेश देता है कि वसीयत प्रस्तुत की जाए,
तो रजिस्ट्रार, अगर धारा 45 के तहत वसीयत की प्रति पहले से न बनाई गई हो:

तो वह सीलबंद लिफाफा खोलेगा और उस वसीयत की एक प्रति
रजिस्टर-बुक संख्या 3 में तैयार करवाएगा।

 साथ ही, वह उस प्रति पर यह नोट लिखवाएगा कि —
“मूल वसीयत न्यायालय के आदेश के पालन में कोर्ट ले जाई गई है।”

धारा 47. वह समय जिससे पंजीकृत दस्तावेज लागू होता है

कोई भी पंजीकृत दस्तावेज (Registered Document) उस समय से लागू माना जाएगा (Effect देगा) :

जिस समय से वह वैसे ही लागू होता, अगर उसका पंजीकरण ज़रूरी नहीं होता या पंजीकरण न भी हुआ होता

   यह नहीं माना जाएगा कि वह पंजीकरण की तारीख से लागू होता है

 सरल शब्दों में समझें:
अगर कोई दस्तावेज़ आज लिखा गया लेकिन उसका रजिस्ट्रेशन 10 दिन बाद हुआ,
तो वह आज से ही वैध माना जाएगा, रजिस्ट्रेशन की तारीख से नहीं।

धारा 48. संपत्ति से संबंधित पंजीकृत दस्तावेज मौखिक समझौतों के विरुद्ध कब प्रभावी होंगे।

इस अधिनियम के अनुसार ठीक तरह से पंजीकृत (registered) किए गए सभी गैर-वसीयती दस्तावेज (non-testamentary documents),
जो किसी चल (movable) या अचल (immovable) संपत्ति से संबंधित हों,
वे प्रभावी माने जाएंगे (enforceable होंगे)—

ऐसे किसी आदेश (order), करार (agreement) या घोषणा (declaration) के विरुद्ध, जो उसी संपत्ति से संबंधित हो, चाहे वो मौखिक हो या लिखित,

जब तक उस करार या घोषणा के साथ या उसके बाद उस संपत्ति का कब्जा (possession) न दे दिया गया हो,
और वह कब्जा तत्समय प्रवृत्त (Provided) किसी वैध कानून के अनुसार वैध अंतरण (valid transfer) न हो।

बशर्ते (Proviso):
 लेकिन अगर यह मामला बंधक (mortgage) से जुड़ा है,
जो कि सम्पत्ति अन्तरण अधिनियम, 1882 की धारा 58 में परिभाषित है,
तो अगर बाद में उसी संपत्ति पर बंधक-विलेख (mortgage-deed) बनाया और पंजीकृत किया गया है,
तो वह पहले के मौखिक करार पर प्रभावी रहेगा

सरल समझ:

पंजीकृत दस्तावेज की कानूनी ताकत मौखिक या अपंजीकृत दस्तावेजों से ज्यादा होती है,
लेकिन अगर मौखिक करार के आधार पर कब्जा भी दे दिया गया हो और वो वैध हो,
तो फिर पंजीकृत दस्तावेज उस पर असर नहीं करेगा।

धारा 49. पंजीकृत किये जाने हेतु अपेक्षित दस्तावेजों के गैर-पंजीकरण का प्रभाव।

अगर कोई दस्तावेज़ ऐसा है जिसे धारा 17 या संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (1882 का 4) के किसी प्रावधान के तहत पंजीकृत (registered) किया जाना अनिवार्य (compulsory) है, और वह दस्तावेज पंजीकृत नहीं है,
तो—

(a) वह दस्तावेज़

किसी अचल संपत्ति (immovable property) पर कोई प्रभाव नहीं डालेगा,

(b) वह दस्तावेज़

किसी को गोद लेने की शक्ति (authority to adopt) देने के रूप में मान्य नहीं होगा,

(c) वह दस्तावेज़

ऐसे किसी लेन-देन (transaction) का सबूत नहीं माना जाएगा
जो किसी अचल संपत्ति को प्रभावित करता हो
या
जो किसी को ऐसी शक्ति (power) देता हो—
जब तक कि वह दस्तावेज़ पंजीकृत न किया गया हो।

बशर्ते (Proviso):
 लेकिन कोई भी अ-पंजीकृत दस्तावेज, जो किसी अचल संपत्ति को प्रभावित करता हो, और जिसे इस अधिनियम या संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 के अनुसार
पंजीकृत किया जाना जरूरी हो,
तो—

उसे विशिष्ट अनुतोष अधिनियम, 1877 (1877 का 3) के
अध्याय 2 के अंतर्गत किसी “विशिष्ट पालन (specific performance)” के वाद (suit) में—

 संपत्ति से संबंधित अनुबंध (contract) का सबूत माना जा सकता है,
या
 किसी ऐसे संपार्श्विक (collateral) लेन-देन का सबूत माना जा सकता है
जिसके लिए पंजीकरण आवश्यक नहीं है

सरल समझ:

  • अगर कोई ऐसा दस्तावेज जो रजिस्ट्री के लिए जरूरी है, और फिर भी रजिस्ट्री नहीं कराई गई—
    तो वह:

    • ना तो जमीन-जायदाद पर कोई असर डालेगा,
    • ना ही किसी को गोद लेने का हक देगा,
    • और ना ही अदालत में लेन-देन के सबूत के तौर पर मान्य होगा।

लेकिन,
अगर आप विशिष्ट पालन (specific performance) का केस फाइल करते हैं,
तो ऐसा अपंजीकृत दस्तावेज, सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है

धारा 50. भूमि से संबंधित कुछ पंजीकृत दस्तावेजों का अपंजीकृत दस्तावेजों के विरुद्ध प्रभावी होना।

(1)  धारा 17 की उपधारा (1) के खंड (a), (b), (c), (d) और
धारा 18 के खंड (a) और (b) में जिन प्रकार के दस्तावेजों का ज़िक्र किया गया है—
अगर ऐसे दस्तावेज़ सम्यक रूप से पंजीकृत (properly registered) हैं,
तो वे दस्तावेज़ उस संपत्ति के संबंध में प्रभावी होंगे उसी संपत्ति से जुड़े किसी भी अपंजीकृत दस्तावेज़ के विरुद्ध

 भले ही वह अपंजीकृत दस्तावेज़

  • कोई डिक्री (court decree) या आदेश (order) ना हो,
  • और भले ही वह पंजीकृत दस्तावेज़ के समान प्रकृति का ना हो।

(2)  उप-धारा (1) की कोई बात लागू नहीं होगी

  • धारा 17 की उपधारा (1) के परन्तुक (proviso) के अंतर्गत छूट प्राप्त पट्टों (leases) पर,
  • या उसी धारा की उपधारा (2) में बताए गए किसी दस्तावेज़ पर,
  • या ऐसे पंजीकृत दस्तावेज़ पर जिसे इस अधिनियम के लागू होने से पहले वाली क़ानून के तहत पूर्वता (priority) प्राप्त नहीं थी

स्पष्टीकरण (Explanation):

 जिन क्षेत्रों में

  • अधिनियम संख्या 16, सन् 1864,
  • या भारतीय रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1866 (1866 का 20)
    उस स्थान और समय में लागू था जहाँ और जब वह अपंजीकृत दस्तावेज़ बनाया गया था –

तो वहाँ “अपंजीकृत (unregistered)” का मतलब होगा कि वह दस्तावेज़
उन अधिनियमों के अनुसार पंजीकृत नहीं किया गया था।

 और अगर वह दस्तावेज़
1 जुलाई 1871 के बाद बनाया गया है,
तो उसका मतलब होगा कि वह दस्तावेज़—

  • भारतीय रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1871 (1871 का 8), या
  • भारतीय रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1877 (1877 का 3), या
  • इस अधिनियम (वर्तमान रजिस्ट्रेशन एक्ट) के तहत पंजीकृत नहीं किया गया था।

सरल याद रखने योग्य बात:

  यदि ज़मीन से जुड़ा कोई दस्तावेज़ रजिस्टर्ड है,
तो वह अ-रजिस्टर्ड दस्तावेज़ के मुकाबले मजबूत (stronger) माना जाएगा—
भले ही दोनों का प्रकार अलग हो,
जब तक वो कोई कोर्ट डिक्री या आदेश ना हो।

   लेकिन, अगर अ-रजिस्टर्ड दस्तावेज़ ऐसे पट्टे या दस्तावेज़ से जुड़ा है जो कानून के तहत रजिस्ट्रेशन से छूट में आता है, या पहले से priority नहीं रखता था, तो ये नियम लागू नहीं होंगे

धारा 51. विभिन्न कार्यालयों में रजिस्टर-पुस्तकें रखी जाएंगी।

(1) नीचे दी गई किताबें अलग-अलग कार्यालयों में रखी जाएंगी:

 सभी पंजीकरण कार्यालयों में:

  • पुस्तक 1 – “अचल संपत्ति से संबंधित गैर-वसीयती दस्तावेजों का रजिस्टर”
  • पुस्तक 2 – “पंजीकरण से इनकार करने के कारणों का रिकॉर्ड”
  • पुस्तक 3 – “वसीयत और गोद लेने के प्राधिकारियों का रजिस्टर”
  • पुस्तक 4 – “विविध रजिस्टर”

 केवल रजिस्ट्रार के कार्यालयों में:

  • पुस्तक 5 – “वसीयत जमा करने का रजिस्टर”

(2) पुस्तक 1 में दर्ज होगा:

वे सभी दस्तावेज़ या ज्ञापन जो धारा 17, धारा 18, और धारा 89 के तहत
पंजीकृत किए गए हों, जो अचल संपत्ति से संबंधित हैं, और वसीयत नहीं हैं।

 

(3) पुस्तक 4 में दर्ज किए जाएंगे:

वे सभी दस्तावेज़ जो धारा 18 के खंड (घ) और (च) के तहत पंजीकृत हुए हों,
जो अचल संपत्ति से संबंधित नहीं हैं।

 

(4)  इस धारा का कोई भी हिस्सा यह नहीं कहता कि
अगर रजिस्ट्रार का कार्यालय किसी उप-रजिस्ट्रार कार्यालय के साथ जोड़ (merge) दिया गया हो,
तो हर किताब की अलग से प्रति रखना ज़रूरी है।
(यानी एक सेट से काम चल जाएगा)

धारा 52. दस्तावेज प्रस्तुत करते समय रजिस्ट्रीकरण अधिकारी के कर्तव्य।

(1) जब कोई दस्तावेज़ रजिस्ट्रेशन के लिए प्रस्तुत किया जाता है, तो रजिस्ट्रेशन अधिकारी को ये 3 काम करने होंगे:

(क) दस्तावेज पर दर्ज किया जाएगा (mark किया जाएगा):

  • प्रस्तुत करने का दिन (date)
  • समय (time)
  • स्थान (place)
  • धारा 32A के तहत खींचे गए फोटो और अंगुलियों के निशान
  • और जो भी व्यक्ति दस्तावेज़ लेकर आया है, उसका हस्ताक्षर (signature)

 ये सारी चीज़ें दस्तावेज़ पर उसे प्रस्तुत करते समय ही अंकित की जाएंगी।

(ख) दस्तावेज़ देने वाले को रजिस्ट्रेशन अधिकारी एक रसीद (receipt) देगा।

(ग) धारा 62 में बताए गए नियमों के अधीन रहते हुए, हर स्वीकृत (accepted) दस्तावेज़ की प्रतिलिपि (copy) जो उसके लिए तय की गई किताब (पुस्तक) में होनी है,
उसे जैसे-जैसे दस्तावेज़ आते हैं (क्रम के अनुसार) बिना किसी अनावश्यक देरी (delay) के बना दिया जाएगा।

(2) सभी ऐसी पुस्तकों को समय-समय पर महानिरीक्षक (Inspector-General) द्वारा निर्धारित नियमों के अनुसार, नियत अंतराल (intervals) पर और निर्धारित तरीके से,
प्रमाणित (authenticated) किया जाएगा।

धारा 53. प्रविष्टियों को क्रमिक रूप से क्रमांकित किया जाएगा।

हर पुस्तक (register book) में जो भी प्रविष्टियाँ (entries) की जाएंगी,
उन्हें एक क्रमिक श्रृंखला (serial sequence) में क्रमांकित (numbered) किया जाएगा।

यह क्रम उस वर्ष (year) के साथ शुरू और समाप्त होगा।

 और हर साल की शुरुआत में एक नई क्रमिक श्रृंखला (new serial sequence) शुरू की जाएगी।

धारा 54. वर्तमान अनुक्रमणिकाएँ और उनमें प्रविष्टियाँ।

हर कार्यालय (office) में,
जहाँ ये पहले बताई गई पुस्तकें (register books) रखी जाती हैं,
उन पुस्तकों की चालू अनुक्रमणिकाएँ (current indexes) तैयार की जाएंगी।

ऐसी अनुक्रमणिकाओं (indexes) में हर प्रविष्टि (entry), जहाँ तक संभव हो,
रजिस्ट्रीकरण अधिकारी द्वारा उस दस्तावेज़ की प्रतिलिपि (copy) बनाने या उसका ज्ञापन (memorandum) फाइल करने के तुरंत बाद ही की जाएगी
जिससे वह संबंधित है।

धारा 55. रजिस्ट्रीकरण अधिकारियों द्वारा बनाई जाने वाली अनुक्रमणिकाएँ और उनकी सामग्री।

(1) हर रजिस्ट्रीकरण कार्यालय में चार अनुक्रमणिकाएँ बनाई जाएंगी, जिन्हें नाम दिया जाएगा:
 अनुक्रमणिका संख्या I
 अनुक्रमणिका संख्या II
 अनुक्रमणिका संख्या III
 अनुक्रमणिका संख्या IV

(2) अनुक्रमणिका संख्या I में –
 पुस्तक संख्या 1 में जो भी दस्तावेज या ज्ञापन दाखिल हो,उसे निष्पादित करने वाले (executing) सभी व्यक्तियों के नाम, और उसके आधार पर दावा करने वाले (claiming) सभी व्यक्तियों के नाम और परिवर्धन (additions) दर्ज होंगे।

(3) अनुक्रमणिका संख्या II में –
 धारा 21 में बताए गए वे विवरण (particulars) दर्ज होंगे जो हर उस दस्तावेज़ और ज्ञापन से जुड़े होंगे जिनके लिए महानिरीक्षक समय-समय पर आदेश दे।

(4) अनुक्रमणिका संख्या III में –
 पुस्तक संख्या 3 में जो भी वसीयत (will) और गोद लेने के अधिकार पत्र (authority) दर्ज हैं,
उन्हें निष्पादित करने वाले सभी व्यक्तियों के नाम और परिवर्धन,
और उस वसीयत/प्राधिकार में नियुक्त निष्पादकों (executors)लाभार्थियों (beneficiaries) के नाम और परिवर्धन, साथ ही वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद, उस पर दावा करने वालों के नाम और परिवर्धन दर्ज होंगे
(लेकिन मृत्यु से पहले नहीं)।

(5) अनुक्रमणिका संख्या IV में –
 पुस्तक संख्या 4 में जो भी दस्तावेज प्रविष्ट किए गए हैं,
उन्हें निष्पादित करने वाले सभी व्यक्तियों के नाम और उस पर दावा करने वाले सभी व्यक्तियों के नाम और परिवर्धन शामिल होंगे।

(6) हर अनुक्रमणिका में –
अन्य जरूरी विवरण (details) भी होंगे
और वो ऐसे प्रारूप (format) में बनाई जाएगी जैसा महानिरीक्षक (Inspector General) समय-समय पर निर्देश दे।

स्मरण सूत्र:
📒 कुल 4 इंडेक्स बनती हैं — I से IV

 I = बुक 1 के एग्जीक्यूटर और क्लेमेंट्स
 II = सेक्शन 21 के डिटेल्स
 III = वसीयत और गोद से जुड़ी एंट्री (मरणोपरांत क्लेम भी)
 IV = बुक 4 की एंट्री से जुड़े नाम

धारा 56.   [निरसन].

धारा 57. पंजीयन अधिकारी (Registrar) द्वारा कुछ किताबें देखने की अनुमति देना और प्रमाणित प्रतियाँ (Certified copies) देना।

(1) जब कोई व्यक्ति उचित फीस पहले से जमा कर देता है,
तो:
 पुस्तक संख्या 1 और 2,
और
📗 पुस्तक संख्या 1 से संबंधित अनुक्रमणिकाएँ (indexes)
 वह व्यक्ति जब चाहे निरीक्षण (inspection) कर सकता है।
 और धारा 62 में दिए गए नियमों के अनुसार, इन पुस्तकों की प्रविष्टियों (entries) या प्रमाणित प्रतियों (certified copies) को माँग करने वाले किसी भी व्यक्ति को दिया जाएगा।

(2) ऊपर जैसे ही नियमों के तहत:
 पुस्तक संख्या 3 और उसकी अनुक्रमणिका (index) में दर्ज की गई प्रविष्टियों की प्रतियाँ:
 केवल उन्हीं व्यक्तियों को मिलेंगी,
जिन्होंने वह वसीयत या प्राधिकार (will or authority) निष्पादित (execute) किया है,
या उनके अभिकर्ता (agents) को।
 और अगर वे व्यक्ति मर चुके हैं,
तो उनकी मृत्यु के बाद में, कोई भी व्यक्ति इन प्रविष्टियों की प्रतियाँ माँग सकता है।
(मृत्यु से पहले कोई अन्य व्यक्ति नहीं पा सकता)

(3) इसी तरह,
 पुस्तक संख्या 4 और उसकी अनुक्रमणिका (index) में दर्ज प्रविष्टियों की प्रतियाँ
 उस दस्तावेज़ को निष्पादित करने वाले (executing) या दावा करने वाले (claiming) व्यक्ति को, या उसके एजेंट या प्रतिनिधि को दी जाएंगी।

(4)  पुस्तक संख्या 3 और 4 की प्रविष्टियाँ देखने की जो तलाशी (search) चाहिए,
वह सिर्फ रजिस्ट्रीकरण अधिकारी (Registrar) ही करेगा।

(5)  इस धारा के अंतर्गत जो भी प्रतियाँ दी जाती हैं, वे सब रजिस्ट्रीकरण अधिकारी द्वारा हस्ताक्षरित और मुहरबंद होंगी, और वे प्रतियाँ मूल दस्तावेज़ की सामग्री को साबित करने के लिए मान्य (admissible) होंगी।

 स्मरण सूत्र:

  •  बुक 1-2 सबको देखनी और कॉपी मिल सकती है।
  •  बुक 3 सिर्फ निष्पादक/मृत्यु के बाद कोई भी।
  •  बुक 4 निष्पादक या क्लेम करने वाला।
  •  बुक 3-4 की तलाशी सिर्फ रजिस्ट्रार करेगा।
  •  सभी कॉपीज़ प्रमाणित और कोर्ट में मान्य होंगी।

धारा 59. पृष्ठांकन (endorsement) पर तारीख लगेगी और रजिस्ट्रेशन अधिकारी हस्ताक्षर करेगा।

जब कोई दस्तावेज़ धारा 52 या धारा 58 के तहत प्रस्तुत किया गया हो, और उस पर उसी दिन और रजिस्ट्रेशन अधिकारी की उपस्थिति में जो भी पृष्ठांकन (endorsements) किए गए हों —
तो:

 पंजीकरण अधिकारी (Registrar) उन सभी पृष्ठांकनों (endorsements) पर
📅 तारीख लिखेगा, और अपने हस्ताक्षर (signature) करेगा।

धारा 60. पंजीकरण प्रमाणपत्र (Registration Certificate)

(1) जब किसी दस्तावेज़ के बारे में –

 धारा 34 (सत्यापन / प्रस्तुत करने की प्रक्रिया)
 धारा 35 (स्वीकृति या अस्वीकृति)
 धारा 58 (समझौते / ज्ञापन आदि)
 धारा 59 (पृष्ठांकन पर हस्ताक्षर व तारीख)

— इन सभी प्रावधानों का पालन (अनुपालन) हो गया हो,
तब:

 रजिस्ट्रेशन अधिकारी उस दस्तावेज़ पर एक प्रमाणपत्र (certificate) लिखेगा,
जिसमें:

 “पंजीकृत” (Registered) शब्द शामिल होगा,
 और उस पुस्तक की संख्या तथा पृष्ठ संख्या भी लिखी जाएगी
 जिसमें उस दस्तावेज़ की प्रतिलिपि (copy) दर्ज (record) की गई है।

 स्मरण सूत्र:

  • दस्तावेज़ की सारी कानूनी प्रक्रिया पूरी हो जाए = तब ही “पंजीकृत” की मुहर लगती है।
  • साथ में यह भी दर्ज होता है कि दस्तावेज़ किस बुक और पेज में गया।

धारा 62. रजिस्ट्रीकरण अधिकारी को अज्ञात भाषा (unknown language) में दस्तावेज प्रस्तुत करने की प्रक्रिया।

(1)   जब कोई दस्तावेज धारा 19 के अंतर्गत रजिस्ट्रेशन के लिए प्रस्तुत किया जाता है,
तो जो अनुवाद (translation) दिया गया है, उसे मूल के स्वरूप (form of the original) वाले दस्तावेजों के रजिस्टर में लिखा जाएगा (entered in register),
और वह धारा 19 में बताए गए प्रति-पत्र (copy) के साथ रजिस्ट्रेशन कार्यालय में फाइल (file) किया जाएगा।

(2) धारा 59 और धारा 60 में जो पृष्ठांकन (endorsement) और प्रमाणपत्र (certificate) की बात कही गई है, वे मूल दस्तावेज (original document) पर ही बनाए जाएंगे।

लेकिन जब धारा 57, 64, 65, और 66 के अनुसार प्रतियां (copies) या ज्ञापन (memoranda) बनाने की जरूरत हो, तो वहां पर अनुवाद (translation) को ही ऐसा माना जाएगा मानो वह मूल दस्तावेज हो

 स्मरण सूत्र:

  • अज्ञात भाषा में दस्तावेज आए तो उसका अनुवाद रजिस्टर में लिखा जाएगा और फाइल किया जाएगा।
  • पृष्ठांकन मूल दस्तावेज पर ही होगा।
  • लेकिन प्रतियां बनाने के लिए अनुवाद को ही “मूल” माना जाएगा ।

धारा 63. शपथ दिलाने और कथनों का सार अभिलेखित करने की शक्ति

(1) प्रत्येक रजिस्ट्रीकर्ता अधिकारी (registrar officer),
अपने विवेकानुसार (discretion), इस अधिनियम के उपबंधों (provisions) के अधीन,
किसी भी व्यक्ति को शपथ दिला सकता है, जिसे वह परीक्षित (examined) करता है।

(2) हर वह अधिकारी, अपने विवेकानुसार,
हर व्यक्ति द्वारा किए गए कथन (statement) का सार (summary) टिप्पण (record) करके लिख सकता है।
यह कथन (statement) या तो पढ़कर (read aloud) सुनाया जाएगा,
या यदि वह कथन किसी ऐसी भाषा में किया गया हो, जिससे व्यक्ति परिचित नहीं है,
तो उसे उस व्यक्ति की परिचित भाषा (known language) में अनुवाद करके सुनाया जाएगा।
यदि वह व्यक्ति कथन के सही होने (correctness) को स्वीकार करता है,
तो रजिस्ट्रीकर्ता अधिकारी उस पर हस्ताक्षर (sign) करेगा।

(3) हस्ताक्षरित (signed) प्रत्येक नोट साबित करने के लिए (admissible as evidence) ग्राह्य होगा, यह दिखाने के लिए कि उसमें अभिलिखित कथन (recorded statement) उसे करने वाले व्यक्ति द्वारा और उन्हीं परिस्थितियों में दिए गए थे,
जैसा कि उसमें उल्लिखित है।

 स्मरण सूत्र:

  • रजिस्ट्रीकर्ता अधिकारी शपथ दिला सकता है और कथन का सार लिख सकता है।
  • कथन अनुवाद किया जाएगा यदि व्यक्ति भाषा से अपरिचित हो।
  • हस्ताक्षरित नोट वैध साबित करने के लिए प्रमाणित किया जाएगा।

धारा 64. जहां दस्तावेज़ कई उप-जिलों में भूमि से संबंधित हो, वहां प्रक्रिया।

जब कोई गैर-वसीयती दस्तावेज (non-testamentary document),
जिसका संबंध अचल संपत्ति (immovable property) से हो,
किसी एक उप-जिले में पूरी तरह स्थित नहीं होता,
और उसे उप-पंजीयक (Sub-Registrar) द्वारा पंजीकृत किया जाता है—

तब:

  • वह उप-पंजीयक उस दस्तावेज का एक ज्ञापन (memorandum),
    और उस पर किया गया पृष्ठांकन (endorsement) और प्रमाणपत्र (certificate) (यदि कोई हो), बनाएगा।
  • और वह ज्ञापन उसी रजिस्ट्रार के अधीनस्थ हर उस अन्य उप-पंजीयक को भेजेगा,
    जिसके उप-जिले में ऐसी संपत्ति का कोई भाग स्थित हो
  • वह अन्य उप-पंजीयक उस ज्ञापन को अपनी बुक नंबर 1 में दाखिल करेगा

धारा 65. जहां दस्तावेज़ कई जिलों में भूमि से संबंधित हो, वहां प्रक्रिया।

(1) जब कोई गैर-वसीयती दस्तावेज, जिसका संबंध अचल संपत्ति से हो,
और वह एक से अधिक जिलों में फैली हो—

तब उप-पंजीयक को करना होगा:

  • दस्तावेज की एक प्रति,
  • उस पर किया गया पृष्ठांकन और प्रमाणपत्र (यदि कोई हो),
  • और धारा 21 में उल्लिखित मानचित्र या योजना (map/plan) की प्रति (यदि हो),
    प्रत्येक उस जिले के रजिस्ट्रार को भेजनी होगी,
    जहां संपत्ति का कोई भाग स्थित हो, सिवाय उस जिले के जहां वह खुद स्थित है।

(2) जब रजिस्ट्रार को ये चीजें मिलती हैं—

  • वह उन्हें अपनी बुक नंबर 1 में दाखिल करेगा,
  • और दस्तावेज का ज्ञापन, अपने अधीनस्थ हर उस उप-पंजीयक को भेजेगा,
    जिसके उप-जिले में संपत्ति का कोई हिस्सा है।
  • और वह उप-पंजीयक उसे अपनी बुक नंबर 1 में दाखिल करेगा

धारा 66. रजिस्ट्रार के विशेष कर्तव्य

(भूमि से संबंधित दस्तावेजों के पंजीकरण के बाद की प्रक्रिया)

(1) जब रजिस्ट्रार स्वयं अचल संपत्ति से संबंधित गैर-वसीयती दस्तावेज का पंजीकरण करता है, तो वह उसका ज्ञापन, अपने अधीन हर उप-पंजीयक को भेजेगा,
जिसके उप-जिले में संपत्ति का कोई हिस्सा है।

(2) वह उस दस्तावेज की एक प्रति और मानचित्र या योजना की प्रति (यदि कोई हो) भी हर उस अन्य रजिस्ट्रार को भेजेगा, जिसके जिले में संपत्ति का कोई हिस्सा है।

(3) वह अन्य रजिस्ट्रार,

  • दस्तावेज की प्रति को अपनी बुक संख्या 1 में दाखिल करेगा,
  • और उसका ज्ञापन, अपने अधीनस्थ हर उप-पंजीयक को भेजेगा,
    जिसके उप-जिले में संपत्ति का कोई भाग हो।

(4) ज्ञापन पाने वाला हर उप-पंजीयक, उसे अपनी बुक नंबर 1 में दाखिल करेगा

सारांश याद रखने के लिए:

  • 64: एक उप-जिले से ज़्यादा में फैली संपत्ति  ज्ञापन अन्य उप-पंजीयकों को
  • 65: एक जिले से ज़्यादा में फैली संपत्ति  प्रति अन्य रजिस्ट्रारों को
  • 66: रजिस्ट्रार स्वयं पंजीकरण करे  ज्ञापन और प्रतियां अन्य उप-पंजीयक और रजिस्ट्रारों को भेजना

धारा 67 अब क़ानून में लुप्त (repealed) कर दी गई है।

  • मूल विषय था: “धारा 30 की उपधारा (2) के अधीन पंजीकरण के पश्चात प्रक्रिया।”
    लेकिन अब इसे पंजीकरण और अन्य संबंधित विधियां (संशोधन) अधिनियम, 2001 की धारा 8 द्वारा 24 सितम्बर 2001 से हटा दिया गया है।

धारा 68 – उप-रजिस्ट्रारों का अधीक्षण और नियंत्रण करने की रजिस्ट्रार की शक्ति।

(1) हर उप-रजिस्ट्रार (Sub-Registrar) को अपने ऑफिस से जुड़े सारे काम उस रजिस्ट्रार (Registrar) के अधीक्षण (supervision) और नियंत्रण (control) में करना होगा, जिसके जिले में उसका ऑफिस आता है।
यानी उप-रजिस्ट्रार अकेले स्वतंत्र नहीं है, बल्कि उसे रजिस्ट्रार की निगरानी और आदेशों के अनुसार काम करना होता है।

(2) हर रजिस्ट्रार को ये अधिकार है कि वह —
शिकायत मिलने पर या बिना शिकायत के भी
अपने अधीन काम करने वाले किसी भी उप-रजिस्ट्रार के किसी काम या गलती के बारे में या उस ऑफिस या रजिस्ट्रेशन बुक की किसी गलती के बारे में कोई भी ऐसा आदेश जारी कर सकता है जो इस कानून के अनुसार हो और उसे जरूरी लगे।

मुख्य बिंदु याद रखने योग्य (Exam Point of View):

  • उप-रजिस्ट्रार का नियंत्रण संबंधित जिला रजिस्ट्रार के अधीन है।
  • रजिस्ट्रार के पास उप-रजिस्ट्रार की गलती सुधारने या निर्देश देने की शक्ति है।
  • यह शक्ति बिना शिकायत के भी प्रयोग की जा सकती है।

धारा 69 – महानिरीक्षक की रजिस्ट्रीकरण कार्यालयों का अधीक्षण करने तथा नियम बनाने की शक्ति।

(1) महानिरीक्षक (Inspector-General) पूरे राज्य में सभी रजिस्ट्रेशन ऑफिसों पर साधारण अधीक्षण (general supervision) रखेगा और उसे समय-समय पर इस अधिनियम के अनुसार निम्नलिखित विषयों पर नियम बनाने की शक्ति होगी—

(a) पुस्तकों, कागज़ों और दस्तावेजों की सुरक्षित अभिरक्षा (safe custody) की व्यवस्था करना।
(अक) धारा 16क(1) के अनुसार ऐसी प्रक्रिया और सुरक्षा उपाय तय करना, जिनसे रजिस्ट्रेशन की किताबें कंप्यूटर फ्लॉपी, डिस्केट या अन्य इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म में रखी जा सकें।
(b) यह तय करना कि प्रत्येक जिले में सामान्य भाषा कौन सी मानी जाएगी।
(c) यह तय करना कि धारा 21 के अनुसार कौन-कौन से क्षेत्रीय डिवीजन (pradeshiya prabhag) मान्य होंगे।
(d) धारा 25 और 34 के तहत लगने वाले जुर्माने की राशि को नियंत्रित करना।
(e) धारा 63 में रजिस्ट्रीकरण अधिकारी को जो विवेकाधिकार (discretion) मिला है, उसके प्रयोग को नियंत्रित करना।
(f) वह फॉर्मेट तय करना जिसमें रजिस्ट्रेशन अधिकारी दस्तावेजों के ज्ञापन तैयार करेंगे।
(g) धारा 51 के अनुसार रजिस्ट्रार और उप-रजिस्ट्रार द्वारा रखी गई पुस्तकों के प्रमाणीकरण (authentication) को नियंत्रित करना।
(घ) यह निर्धारित करना कि धारा 88(2) में बताई गई लिखतें रजिस्ट्रेशन के लिए कैसे पेश की जाएंगी।
(h) अनुक्रमणिका संख्या I, II, III और IV में कौन-कौन सी जानकारी डाली जाएगी, इसका निर्धारण करना।
(i) रजिस्ट्रेशन कार्यालयों में किन-किन छुट्टियों (holidays) में कार्य नहीं होगा, यह घोषित करना।
(j) सामान्य तौर पर रजिस्ट्रारों और उप-रजिस्ट्रारों के कार्यों को विनियमित करना।

(2)

उपर्युक्त विषयों पर जो भी नियम बनाए जाएंगे, वे राज्य सरकार को अनुमोदन (approval) के लिए भेजे जाएंगे।
 राज्य सरकार के स्वीकृत (approve) कर देने के बाद उन्हें राजपत्र (Official Gazette) में प्रकाशित किया जाएगा।
 और प्रकाशन के बाद ऐसा माना जाएगा मानो वे इस अधिनियम के अंदर ही बने कानून हैं।

याद रखने योग्य (Judicial Exam Focus):

  • महानिरीक्षक को अधीक्षण के साथ-साथ नियम बनाने की शक्तियां दी गई हैं।
  • नियम प्रभावी तभी माने जाएंगे जब वे राज्य सरकार द्वारा अनुमोदित होकर राजपत्र में प्रकाशित हो जाएं।
  • नियम कई बिंदुओं को कवर करते हैं, जैसे — भाषा, छुट्टियां, दस्तावेज का फॉर्मेट, इलेक्ट्रॉनिक रिकार्ड, आदि।

राजस्थान संशोधन — धारा 69 का विशेष जोड़ (धारा 2, राजस्थान अधिनियम XVIII, 1953) [भारतीय रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 (अधिनियम सं. XVI, 1908) की धारा 69 में किया गया संशोधन]

 मुख्य बिंदु:

धारा 69 की उपधारा (1) में, खंड (ख) के बाद, निम्न नया खंड जोड़ा गया है:

सरल हिंदी में व्याख्या:

राजस्थान सरकार ने एक अतिरिक्त प्रावधान जोड़ा है जो कहता है कि महानिरीक्षक (Inspector General) नियम बना सकता है—

  दस्तावेज लिखने वालों को लाइसेंस देने के लिए,
  लाइसेंस रद्द करने के लिए,
  यह तय करने के लिए कि
— कौन प्राधिकारी लाइसेंस देगा,
— कौन-कौन सी शर्तें होंगी जिन पर लाइसेंस मिलेगा,
 और दस्तावेज लेखन से जुड़े सभी अन्य नियम तय करने के लिए।

महत्वपूर्ण परीक्षा उपयोगी बात (Judicial Exam के लिए):

  • यह खंड केवल राजस्थान राज्य पर लागू होता है।
  • यह संशोधन रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया में पारदर्शिता और नियंत्रण लाने के लिए है।
  • अब सरकारी अनुमति (licensed) के बिना कोई भी व्यक्ति दस्तावेज लेखन नहीं कर सकता, यदि राज्य नियम बनाए।
  • यह संशोधन दस्तावेज लेखकों के लिए नियमन (regulation) का आधार प्रदान करता है।

धारा 70 – जुर्माना माफ करने की महानिरीक्षक की शक्ति
(Section 70 – Power of Inspector-General to remit fines)

  • मुख्य बात:
    महानिरीक्षक (Inspector-General) को यह अधिकार है कि वह अपने विवेक से:
  • धारा 25 (दस्तावेज प्रस्तुत करने में देरी) या
    धारा 34 (पेशी में देरी)
    के अंतर्गत जो जुर्माना लगाया गया है, और जो
    सामान्य पंजीकरण शुल्क से अधिक है—
  • उस अतिरिक्त जुर्माने को पूरा या आंशिक रूप से माफ कर सकता है।

धारा 71 – अभिलेखित किये जाने हेतु रजिस्ट्रीकरण से इन्कार करने के कारण
(Section 71 – Reasons for refusal to register to be recorded)

(1) हर उप-रजिस्ट्रार, अगर वह किसी दस्तावेज को रजिस्ट्रीकरण से इन्कार करता है, और यह इन्कार इस कारण नहीं है कि संबंधित संपत्ति उसके उप-जिले में स्थित नहीं है,
तो वह:

  • एक इन्कार का आदेश (order of refusal) देगा,
  • इस आदेश के कारणों को अपनी पुस्तक संख्या 2 में लिखेगा (अभिलिखित करेगा),
  • दस्तावेज पर “पंजीकरण से इंकार किया गया” यह शब्द पृष्ठांकित करेगा (endorse करेगा),
  • और दस्तावेज को निष्पादित (execute) करने वाले या उस दस्तावेज के अधीन दावा करने वाले किसी भी व्यक्ति द्वारा आवेदन करने पर,
     बिना कोई शुल्क लिए और
     बिना अनावश्यक देरी के,
     उस इन्कार के लिखित कारणों की एक प्रति देगा।

(2)
कोई भी रजिस्ट्रीकरण अधिकारी, ऐसे दस्तावेज को जिस पर “पंजीकरण से इंकार किया गया” लिखा है,
 तब तक पंजीकरण के लिए स्वीकार नहीं करेगा,
 जब तक कि आगे की विधि अनुसार (जैसे अपील में सफलता के बाद) ऐसा निर्देश न दिया जाए कि दस्तावेज का पंजीकरण किया जाए।

 मुख्य बिंदु (Exam Point of View):

  • पंजीकरण से इंकार होने पर कारण लिखना अनिवार्य है।
  • कारण पुस्तक संख्या 2 में दर्ज होते हैं।
  • व्यक्ति को मुफ्त में और जल्दी कारणों की प्रति मिलनी चाहिए।
  • रजिस्ट्रीकरण अधिकारी उस दस्तावेज को दोबारा तब तक नहीं मानेगा जब तक कोई उच्च आदेश न हो।

धारा 72 – निष्पादन से इनकार करने के अलावा अन्य आधार पर पंजीकरण से इनकार करने वाले उप-रजिस्ट्रार के आदेशों के खिलाफ रजिस्ट्रार को अपील
(Section 72 – Appeal to Registrar from orders of Sub-Registrar refusing registration on grounds other than denial of execution)

(1)
यदि किसी दस्तावेज का पंजीकरण उप-रजिस्ट्रार द्वारा इस आधार पर इन्कार किया गया हो कि निष्पादन (execution) से इनकार नहीं है,
तो:

  • उस इन्कार के आदेश के खिलाफ अपील की जा सकती है
  • उस रजिस्ट्रार के पास, जिसके अधीन वह उप-रजिस्ट्रार काम करता है
  • यह अपील आदेश की तारीख से 30 दिनों के अंदर करनी होती है
  • रजिस्ट्रार के पास यह अधिकार होता है कि वह उप-रजिस्ट्रार का आदेश रद्द (उलट) या बदल (परिवर्तित) सके।

(2)
अगर रजिस्ट्रार निर्देश देता है कि दस्तावेज को पंजीकृत किया जाए,
तो:

  • दस्तावेज को उस आदेश के बाद 30 दिनों के भीतर सही तरीके से (सम्यक रूप से) रजिस्ट्रेशन के लिए फिर से प्रस्तुत किया जाना चाहिए
  • इसके बाद, उप-रजिस्ट्रार को उस दस्तावेज का पंजीकरण करना होगा और
  • जहां तक संभव हो, वह धारा 58, 59 और 60 की प्रक्रिया का पालन करेगा।
  • ऐसा पंजीकरण ऐसे माना जाएगा जैसे दस्तावेज पहली बार जब प्रस्तुत किया गया था, तभी रजिस्ट्रीकृत किया गया हो

 मुख्य बिंदु (Exam Point of View):

  • निष्पादन से इन्कार न हो, तो धारा 72 लागू होती है।
  • अपील 30 दिन के भीतर रजिस्ट्रार को करनी होती है।
  • रजिस्ट्रार आदेश रद्द या बदल सकता है
  • अगर रजिस्ट्रार दस्तावेज के पंजीकरण का आदेश देता है, और दस्तावेज 30 दिन में दोबारा प्रस्तुत होता है,
     तो वह पंजीकरण पहली बार की तारीख से मान्य माना जाएगा।

धारा 73 – रजिस्ट्रार को आवेदन जहां उप-रजिस्ट्रार निष्पादन से इनकार करने के आधार पर पंजीकरण करने से इनकार करता है
(Section 73 – Application to Registrar where Sub-Registrar refuses to register on ground of denial of execution)

(1)
यदि उप-रजिस्ट्रार ने किसी दस्तावेज के पंजीकरण से इस आधार पर इनकार किया है कि:

  • कोई व्यक्ति,
  • जिसके द्वारा वह दस्तावेज हस्ताक्षरित (निष्पादित) होना अपेक्षित है,
  • या उसका प्रतिनिधि, या समनुदेशिती (assign),
  • दस्तावेज के निष्पादन (execution) से इनकार करता है,

तो ऐसे दस्तावेज के:

  • दावा करने वाला व्यक्ति,
  • या उसका प्रतिनिधि,
  • या उसका समनुदेशिती,
  • या विधिवत रूप से अधिकृत अभिकर्ता (agent),

उप-रजिस्ट्रार के इंकार के आदेश के 30 दिन के भीतर उस रजिस्ट्रार को आवेदन कर सकता है
जिसके अधीन वह उप-रजिस्ट्रार कार्यरत है,
ताकि वह यह सिद्ध कर सके कि उसे दस्तावेज को पंजीकृत कराने का अधिकार है

(2)
ऐसा आवेदन:

  • लिखित रूप में होना चाहिए।
  • आवेदन के साथ, धारा 71 के तहत दिए गए इंकार के कारणों की प्रति संलग्न होनी चाहिए।
  • आवेदन में जो भी बयान (statements) दिए गए हों, उन्हें आवेदक द्वारा शपथपत्र (affidavit) के रूप में उसी प्रकार सत्यापित किया जाना चाहिए,
     जैसे वादपत्र (plaint) में किया जाता है, अर्थात विधि द्वारा अपेक्षित रीति से।

 मुख्य बिंदु (Exam Point of View):

  • धारा 73 तब लागू होती है जब निष्पादन (execution) से इनकार किया गया हो।
  • 30 दिन के भीतर रजिस्ट्रार को आवेदन किया जा सकता है।
  • आवेदन में:
     इंकार के कारणों की प्रति लगेगी (धारा 71 के अनुसार)
     सत्यापन शपथपत्र के समान होगा।

 

धारा 74 – ऐसे आवेदन पर रजिस्ट्रार की प्रक्रिया
(Section 74 – Procedure of the Registrar in case of such application)

जब:

  • कोई व्यक्ति धारा 73 के अंतर्गत रजिस्ट्रार के पास आवेदन करता है,
    या
  • जब कोई दस्तावेज सीधे रजिस्ट्रार के समक्ष पंजीकरण हेतु प्रस्तुत किया गया हो और
    रजिस्ट्रार स्वयं उसके निष्पादन (execution) को लेकर संदेह करता हो,

तो ऐसी स्थिति में रजिस्ट्रार को यथाशीघ्र (as soon as possible) निम्न बातों की जांच करनी होगी:

(क)
 क्या दस्तावेज निष्पादित (executed) किया गया है?
(यानी क्या उस पर सही तरीके से हस्ताक्षर/अंगूठा लगा है और क्या सही व्यक्ति द्वारा निष्पादित किया गया है?)

(ख)
 क्या आवेदक या जिस व्यक्ति ने दस्तावेज प्रस्तुत किया है (जैसा मामला हो),
ने उस कानून का पालन किया है जो उस समय लागू (applicable) है,
ताकि वह दस्तावेज पंजीकरण योग्य (eligible for registration) हो?

 मुख्य बिंदु (Exam Point of View):

  • रजिस्ट्रार की जांच दो चीजों पर केंद्रित होगी:
  1. दस्तावेज निष्पादित हुआ है या नहीं।
  2. आवेदक ने सभी वैधानिक शर्तें पूरी की हैं या नहीं।
  • यह प्रक्रिया धारा 73 के तहत आवेदन पर या सीधे रजिस्ट्रार के समक्ष दस्तावेज प्रस्तुत किए जाने की स्थिति में लागू होती है।
  • रजिस्ट्रार को यह कार्रवाई “यथाशीघ्र” करनी होती है।

धारा 75 – रजिस्ट्रार द्वारा पंजीकरण करने का आदेश और उस पर प्रक्रिया
(Section 75 – Order by Registrar for registration and procedure thereon)

(1)
 अगर रजिस्ट्रार यह पाता है कि —

  • दस्तावेज सही तरीके से निष्पादित (executed) हुआ है, और
  • दस्तावेज पंजीकरण के लिए अपेक्षित सभी शर्तों का पालन करता है,
     तब वह पंजीकरण का आदेश देगा

(2)
 यदि यह दस्तावेज उस आदेश के बाद 30 दिन के भीतर ठीक ढंग से पंजीकरण के लिए प्रस्तुत कर दिया जाता है,
 तब उप-रजिस्ट्रार या संबंधित अधिकारी उस आदेश का पालन करेगा
 और फिर वह धारा 58, 59 और 60 में दी गई प्रक्रिया का पालन करेगा (जैसे कि सामान्य पंजीकरण में होता है)।

(3)
 ऐसा पंजीकरण ऐसे माना जाएगा
जैसे दस्तावेज उसी पहली तारीख को पंजीकृत हुआ हो
जब वह सबसे पहले पंजीकरण के लिए प्रस्तुत किया गया था।

(4)
 रजिस्ट्रार, धारा 74 के अंतर्गत की जाने वाली जांच में—

  • गवाहों को बुला सकता है,
  • उन्हें उपस्थित करा सकता है,
  • और उन्हें साक्ष्य देने के लिए बाध्य कर सकता है,
    जैसे कोई सिविल न्यायालय करता है।

 वह यह भी आदेश दे सकता है कि:

  • जांच का पूरा खर्च या कोई भाग किस पक्ष द्वारा वहन किया जाएगा।
  • और यह खर्च ऐसे वसूला जाएगा मानो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के किसी मुकदमे में अदालत ने उसे तय किया हो

 मुख्य बिंदु (Exam Point of View):

  • रजिस्ट्रार की पुष्टि के बाद दस्तावेज पंजीकृत करने का आदेश दिया जाएगा।
  • दस्तावेज को 30 दिन के भीतर दोबारा प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
  • पंजीकरण की तारीख पिछली मान्य होगी (retrospective effect)।
  • रजिस्ट्रार के पास साक्ष्य लेने और खर्च का आदेश देने की सिविल न्यायालय जैसी शक्ति होती है

धारा 76 – रजिस्ट्रार द्वारा इनकार का आदेश
(Section 76 – Order of refusal by Registrar)

(1)
 जब कोई रजिस्ट्रार किसी दस्तावेज को:

(a)

  • इस आधार पर पंजीकृत करने से मना करता है कि
    • संबंधित संपत्ति उसके जिले में नहीं है, या
    • दस्तावेज को उप-रजिस्ट्रार के कार्यालय में पंजीकृत किया जाना चाहिए,

या

(b)

  • वह धारा 72 या धारा 75 के अंतर्गत पंजीकरण करने का निर्देश देने से इनकार करता है,

 तब वह इनकार का आदेश देगा,
 और उस इनकार के कारणों को अपनी ‘पुस्तक संख्या 2’ में दर्ज करेगा,
 और अगर दस्तावेज को निष्पादित करने वाला व्यक्ति या उसके अधीन दावा करने वाला कोई व्यक्ति अनुरोध करता है,
 तो उसे इनकार के कारणों की एक प्रति, बिना अनावश्यक विलम्ब के, नि:शुल्क दे देगा।

(2)
 इस धारा या धारा 72 के अंतर्गत रजिस्ट्रार द्वारा जो भी आदेश दिया गया हो,
 उसके विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती

 मुख्य बिंदु (Exam Point of View):

  • रजिस्ट्रार द्वारा इनकार का आदेश लिखित रूप में होता है और पुस्तक संख्या 2 में दर्ज किया जाता है।
  • कारणों की प्रति नि:शुल्क और बिना देरी के दी जाती है
  • धारा 72 और 76 के अंतर्गत दिए गए आदेशों के खिलाफ अपील नहीं हो सकती – यह महत्वपूर्ण बिंदु है।

 

धारा 77 – रजिस्ट्रार द्वारा इनकार के आदेश के मामले में वाद
(Section 77 – Suit in case of order of refusal by Registrar)

(1)
 जब रजिस्ट्रार:

  • धारा 72 के तहत दस्तावेज को रजिस्टर करने का आदेश देने से इनकार कर दे,
    या
  • धारा 76 के तहत दस्तावेज को रजिस्टर करने की डिक्री (decree/निर्देश) देने से इनकार कर दे,

 तब उस दस्तावेज के अधीन दावा करने वाला व्यक्ति, या उसका प्रतिनिधि, समनुदेशिती (beneficiary), या अभिकर्ता (authorized agent),

 इनकार का आदेश दिए जाने के 30 दिन के अंदर,

 उस सिविल न्यायालय में वाद (civil suit) दायर कर सकता है,

  • जिसकी स्थानीय सीमाओं में वह पंजीकरण कार्यालय स्थित है,
  • जहाँ दस्तावेज को रजिस्टर कराना चाहा गया था।

 अगर न्यायालय ऐसी डिक्री (निर्देश) दे देता है कि दस्तावेज रजिस्टर किया जाए,
 और दस्तावेज उस डिक्री के पारित होने के 30 दिन के भीतर सम्यक् रूप से प्रस्तुत कर दिया जाता है,
 तब दस्तावेज रजिस्टर किया जाएगा

(2)
 धारा 75 की उपधारा (2) और (3) के नियम –
(जो पंजीकरण की प्रक्रिया और प्रभाव बताते हैं) –
 वे उसी तरह से लागू होंगे जैसे वे न्यायालय द्वारा दी गई डिक्री पर लागू हों,
 और इस अधिनियम में कुछ भी होने पर भी –
 ऐसे दस्तावेज को इस वाद में साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाएगा

 मुख्य बिंदु (Exam Point of View):

  • रजिस्ट्रार के इनकार के बाद भी अंतिम उपाय के रूप में सिविल न्यायालय में वाद दायर किया जा सकता है
  • यह वाद 30 दिनों के अंदर करना होता है।
  • अगर कोर्ट पंजीकरण का निर्देश देता है, तो दस्तावेज फिर से प्रस्तुत करने के 30 दिन के अंदर रजिस्ट्रीकरण हो सकता है
  • दस्तावेज साक्ष्य के रूप में मान्य होंगे, भले ही रजिस्ट्रेशन न हुआ हो।

धारा 78 – फीस का राज्य सरकार द्वारा नियत किया जाना
(Section 78 – Fees fixed by the State Government)

 राज्य सरकार एक फीस तालिका (fee table) तैयार करेगी, जिसमें यह बताया जाएगा कि किन-किन कार्यों के लिए कितनी फीस देय होगी।

इस तालिका में निम्नलिखित कार्य शामिल होंगे:

(क) दस्तावेजों के पंजीकरण (registration) के लिए फीस।

(ख) रजिस्टरों की तलाशी (search) करने के लिए फीस।

(ग) दस्तावेजों की प्रविष्टियों, कारणों या प्रतियों को
 पंजीकरण से पहले या बाद में
 बनवाने या प्राप्त करने के लिए फीस।

(घ) धारा 30 के अधीन प्रत्येक पंजीकरण के लिए अतिरिक्त शुल्क
( धारा 30 कुछ खास मामलों में दस्तावेज पंजीकरण की अनुमति देती है।)

(ङ) (i.e., ई) कमीशन जारी करने के लिए फीस।
( जैसे दस्तावेज निष्पादन की जांच करने के लिए)

(च) अनुवाद दाखिल करने के लिए फीस।
( जब दस्तावेज दूसरी भाषा में हो)

(छ) निजी आवासों पर उपस्थित होने के लिए फीस।
( यदि पंजीकरण अधिकारी किसी व्यक्ति के घर दस्तावेज पंजीकरण हेतु जाता है)

(ज) दस्तावेज की सुरक्षित अभिरक्षा (safe custody) और वापसी के लिए फीस।

(i) ऐसे अन्य विषय, जो सरकार को आवश्यक लगें इस अधिनियम को प्रभावी बनाने के लिए।

मुख्य बिंदु (Exam Point of View):

  • फीस तय करने का अधिकार राज्य सरकार को है
  • यह फीस अलग-अलग कार्यों के लिए वर्गीकृत होती है।
  • सरकार को यह छूट है कि वह और भी विषयों को शामिल कर सकती है, यदि अधिनियम के उद्देश्यों को पूरा करने हेतु जरूरी हो।

राजस्थान संशोधन – भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1908 (केन्द्रीय अधिनियम XVI) की धारा 78 का संशोधन
(Rajasthan Amendment to Section 78 of the Registration Act, 1908)

 मूल धारा 78 को अब उपधारा (1) माना जाएगा।
 इसके बाद राजस्थान सरकार ने एक नई उपधारा (2) जोड़ी है।

नई उपधारा (2) का सरल, शब्द-दर-शब्द हिंदी में अनुवाद:

“(2) यदि राज्य सरकार की राय में ऐसा करना लोकहित में आवश्यक है,
 तो वह एक आदेश के द्वारा, जो कि राजपत्र (Official Gazette) में प्रकाशित किया जाएगा,
 धारा 78 की उपधारा (1) में दिए गए खंड (क) से (झ) तक के किसी भी विषय से संबंधित,
 फीस को माफ (exempt) या कम (reduce) कर सकती है।

 यह छूट या कमी निम्न प्रकार से हो सकती है:

  • सामान्य रूप से (Generally)
  • या किसी विशेष वर्ग (specific class) या वर्गों के मामलों के लिए
  • तथा सामान्य रूप से व्यक्तियों के लिए
  • या किसी विशेष वर्ग या वर्गों के व्यक्तियों के संबंध में

 मुख्य बातें (Exam Point of View):

  • राज्य सरकार को फीस माफ या कम करने का विशेष अधिकार है।
  • यह निर्णय वह “लोकहित (public interest)” में ले सकती है।
  • यह माफी सामान्य रूप से या वर्ग विशेष के लिए दी जा सकती है।
  • इसका प्रकाशन राजपत्र में अनिवार्य है।

 

धारा 79 – फीस का प्रकाशन
(Section 79 – Publication of Fees)

इस प्रकार देय फीस की एक तालिका
 जो कि धारा 78 के अधीन निर्धारित की गई है,
 उसे राजपत्र (Official Gazette) में प्रकाशित किया जाएगा।

और

 उस तालिका की एक प्रति,
 अंग्रेज़ी और
 जिले की स्थानीय भाषा में,
 हर पंजीकरण कार्यालय में,
 सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित (publicly displayed) की जाएगी।

 मुख्य बिंदु (स्मरण हेतु):

  • फीस की तालिका का सरकारी प्रकाशन अनिवार्य है।
  • हर रजिस्ट्रेशन ऑफिस में अंग्रेजी व स्थानीय भाषा में सार्वजनिक प्रदर्शन जरूरी है।
  • इससे पारदर्शिता (transparency) और नागरिकों की सुविधा सुनिश्चित होती है।

 

धारा 80 – प्रस्तुतीकरण पर देय फीस
(Section 80 – Fees Payable Upon Presentation)

इस अधिनियम के अधीन
 जो भी दस्तावेज़ों का पंजीकरण (registration of documents) किया जाना है,
 उसके लिए सभी फीस
 उसी समय देय (payable) होगी
 जब ऐसे दस्तावेज़ों को प्रस्तुत (present) किया जाएगा।

 मुख्य बिंदु (स्मरण हेतु):

  • रजिस्ट्रेशन की फीस दस्तावेज देने के समय ही देनी होगी।
  • बाद में भुगतान की अनुमति नहीं है
  • यह नियम समयबद्ध शुल्क वसूली को सुनिश्चित करता है।

 

धारा 81 – क्षति पहुंचाने के इरादे से दस्तावेजों का गलत पृष्ठांकन, प्रतिलिपिकरण, अनुवाद या पंजीकरण करने पर सज़ा
(Section 81 – Penalty for Incorrect Endorsement, Copying, Translation or Registration with Intent to Injure)

 इस अधिनियम के अधीन नियुक्त हर पंजीकरण अधिकारी और उसके कार्यालय में कार्यरत हर व्यक्ति,
 जो किसी दस्तावेज का पृष्ठांकन (endorsement), प्रतिलिपिकरण (copying), अनुवाद (translation) या पंजीकरण (registration) करने का जिम्मेदार है,
 यदि वह व्यक्ति जानबूझकर या यह विश्वास रखते हुए कि वह गलत तरीका है,
 ऐसा कार्य करता है जिससे किसी व्यक्ति को हानि पहुँचाने का इरादा रखता है,
 या यह जानते हुए भी कि इससे हानि हो सकती है,

 तो वह व्यक्ति:
 सात वर्ष तक की जेल, या
 जुर्माना,
 या दोनों से दंडित किया जाएगा।

 मुख्य बिंदु (स्मरण हेतु):

  • जानबूझकर या संभावित हानि जानकर की गई गलत प्रविष्टि या पंजीकरण = अपराध।
  • इसमें सभी जिम्मेदार अधिकारी और कर्मचारी शामिल हैं।
  • जेल + जुर्माना – दोनों संभावित दंड हैं।

 

धारा 82 – झूठे बयान देने, झूठी प्रतियां या अनुवाद देने, झूठा प्रतिरूपण करने और उकसाने के लिए दंड
(Section 82 – Penalty for False Statement, False Copy or Translation, False Personation, and Abetment)

जो कोई भी व्यक्ति––

(क) इस अधिनियम के तहत किसी कार्यवाही या जांच में, किसी पंजीकरण अधिकारी के सामने,
– चाहे शपथ पर हो या नहीं,
– और चाहे लिखित में हो या नहीं,
जानबूझकर झूठा बयान (मिथ्या कथन) देता है; या

(ख) धारा 19 या धारा 21 के तहत किसी कार्यवाही में,
पंजीकरण अधिकारी को जानबूझकर
– किसी दस्तावेज की झूठी प्रति (मिथ्या प्रतिलिपि),
– या उसका गलत अनुवाद,
– या किसी नक्शे या योजना की झूठी प्रति देता है; या

(ग) किसी दूसरे व्यक्ति का झूठा रूप (मिथ्या प्रतिरूपण) करता है, और
– उस झूठे चरित्र में
 कोई दस्तावेज पेश करता है,
 कोई स्वीकृति या बयान करता है,
 कोई समन (summon) या कमीशन जारी करवाता है,
 या किसी कार्यवाही या जांच में कोई और कार्य करता है; या

(घ) इस अधिनियम में दंडनीय किसी अपराध को उकसाता है (दुष्प्रेरित करता है),

तो वह व्यक्ति:
 सात वर्ष तक की जेल, या
 जुर्माना,
 या दोनों से दंडनीय होगा।

 मुख्य बिंदु (स्मरण हेतु):

  • झूठा बयान, झूठी प्रति/अनुवाद, किसी और का रूप धारण, या अपराध के लिए उकसाना – सभी अपराध हैं।
  • सज़ा: 7 साल तक की जेल, जुर्माना, या दोनों
  • किसी भी कार्यवाही या जांच में यह लागू होता है, चाहे वह शपथ पर हो या नहीं।

 

धारा 83 – पंजीकरण अधिकारी अभियोजन प्रारंभ कर सकते हैं
(Section 83 – Registering Officer may Commence Prosecution)

 (1) इस अधिनियम के तहत किसी अपराध के लिए अभियोजन (prosecution)––
 जो किसी रजिस्ट्रीकरण अधिकारी को उसकी पदीय (official) हैसियत में जानकारी में आता है,
 उसे महानिरीक्षक, रजिस्ट्रार, या उप-रजिस्ट्रार द्वारा
या
उनकी अनुमति से प्रारंभ (शुरू) किया जा सकता है,
 बशर्ते वह अधिकारी उस क्षेत्र (राज्यक्षेत्र, जिला या उप-जिला) से संबंधित हो जहाँ अपराध हुआ है

(2) इस अधिनियम के तहत जो अपराध दंडनीय हैं,
 उनका विचारण (trial/hearing)
 केवल ऐसे न्यायालय या मजिस्ट्रेट द्वारा किया जाएगा
 जो द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट (Second Class Magistrate) या उससे उच्च शक्तियाँ रखता हो।
 यानी, द्वितीय श्रेणी मजिस्ट्रेट से नीचे का कोई अधिकारी ऐसे मामले नहीं सुन सकता।

मुख्य बिंदु (याद करने हेतु):

  • पद पर रहते हुए जानकारी में आए अपराध के लिए अभियोजन तभी शुरू हो सकता है जब:
    • महानिरीक्षक / रजिस्ट्रार / उप-रजिस्ट्रार खुद करें या उनकी अनुमति से किया जाए।
  • केवल द्वितीय श्रेणी या उच्च मजिस्ट्रेट ही ऐसे अपराधों का विचार कर सकते हैं।

धारा 84 – रजिस्टर करने वाले अधिकारियों को लोक सेवक समझा जाएगा
(Section 84 – Registering Officers to be deemed Public Servants)

(1) इस अधिनियम के तहत नियुक्त
हर पंजीकरण अधिकारी (Registering Officer)
 को भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) के अनुसार
 लोक सेवक (Public Servant) माना जाएगा।

(2) हर व्यक्ति
 ऐसा पंजीकरण अधिकारी जब उससे जानकारी मांगता है,
 तो उसे कानूनन (legally) वह जानकारी देना अनिवार्य (bound) होगा।

(3) भारतीय दण्ड संहिता की धारा 228 में
 “न्यायिक कार्यवाही (Judicial Proceeding)” शब्दों का अर्थ
 इस अधिनियम के अंतर्गत की गई कोई भी कार्यवाही भी माना जाएगा
 यानी, पंजीकरण अधिनियम के तहत चल रही कोई कार्यवाही भी न्यायिक कार्यवाही मानी जाएगी।

 मुख्य बिंदु (याद रखने हेतु):

  • पंजीकरण अधिकारी = लोक सेवक
  • लोग उन अधिकारियों को जरूरी जानकारी देने के कानूनन बाध्य हैं
  • इस अधिनियम के तहत चलने वाली कार्यवाही = IPC की धारा 228 (267 BNS) के लिए “न्यायिक कार्यवाही”

 

धारा 85 – दावा न किए गए दस्तावेजों का नष्ट करना
(Section 85 – Destruction of Unclaimed Documents)

किसी भी पंजीकरण कार्यालय (Registration Office) में
 जो दस्तावेज (Documents)
 दो वर्ष (2 years) से अधिक समय तक
 बिना दावे के (Unclaimed) पड़े रहते हैं,
 उन्हें नष्ट (Destroy) किया जा सकता है।

लेकिन:
 वसीयत (Will) इस नियम से बाहर है।
 यानी वसीयत को नष्ट नहीं किया जा सकता।

मुख्य बिंदु (याद रखने हेतु):

  • 2 साल से ज्यादा समय तक पड़े अनक्लेम दस्तावेज नष्ट किए जा सकते हैं।
  • वसीयत को छोड़कर बाकी दस्तावेजों पर लागू होता है।
  • लागू होता है सभी पंजीकरण कार्यालयों में।

धारा 86 – रजिस्ट्रीकरण अधिकारी अपनी पदीय क्षमता में सद्भावपूर्वक की गई या अस्वीकार की गई बात के लिए उत्तरदायी नहीं होगा
(Section 86 – Registering officer not liable for act done in good faith in official capacity)

कोई भी पंजीकरण अधिकारी (Registration Officer)
 जो अपनी पदीय (Official) हैसियत/क्षमता में
 सद्भावपूर्वक (In Good Faith)
 कोई कार्य करे या करने से इनकार करे,
 तो वह किसी भी मुकदमे (Lawsuit), दावे (Claim) या मांग (Demand) के लिए
 उत्तरदायी (Liable) नहीं होगा।

 मुख्य बिंदु (याद रखने हेतु):

  • अधिकारी को सुरक्षा तब मिलेगी जब उसने कार्य ईमानदारी से और अधिकार के अंतर्गत किया हो।
  • अगर कार्य सद्भावपूर्वक किया गया है या अस्वीकार किया गया है, तो कोई कानूनी दायित्व नहीं होगा।
  • यह प्रावधान पंजीकरण अधिकारियों को साहसपूर्वक कार्य करने की छूट देता है।

 

धारा 87 – नियुक्ति या प्रक्रिया में त्रुटि के कारण ऐसा किया गया कोई कार्य अवैध नहीं होगा
(Section 87 – Nothing done in good faith to be deemed invalid merely by reason of defect in appointment or procedure)

इस अधिनियम या इसके द्वारा निरसित किसी अधिनियम (Repealed Act) के तहत,
किसी पंजीकरण अधिकारी (Registration Officer) द्वारा सद्भावपूर्वक (In Good Faith) किया गया कोई भी कार्य (Action), सिर्फ इसलिए अवैध (Invalid) नहीं माना जाएगा
 क्योंकि उसकी नियुक्ति (Appointment) या
 प्रक्रिया (Procedure) में कोई त्रुटि (Defect/Error) थी।

 मुख्य बिंदु (याद रखने हेतु):

  • यदि पंजीकरण अधिकारी ने कोई कार्य ईमानदारी से किया है,
    तो नियुक्ति या प्रक्रिया में गलती उसका कार्य अवैध नहीं बनाएगी
  • यह प्रावधान अधिकारियों को कानूनी संरक्षण (Legal Protection) देता है ताकि प्रक्रिया में तकनीकी त्रुटि के कारण कार्य अस्वीकार न हो जाए।
  • उद्देश्य: सद्भावपूर्वक किए गए कार्यों को मान्यता देना, न कि केवल तकनीकी गलतियों के आधार पर उन्हें अमान्य ठहराना।

 

धारा 88 – सरकारी अधिकारियों या कतिपय सार्वजनिक पदाधिकारियों द्वारा निष्पादित दस्तावेजों का रजिस्ट्रीकरण
(Section 88 – Registration of documents executed by Government officers or certain public functionaries)

(1) इस अधिनियम में कुछ भी होने के बावजूद (Notwithstanding anything in this Act), यह आवश्यक नहीं होगा कि–

(क) सरकार का कोई अधिकारी,
(ख) कोई महाप्रशासक (Administrator General), आधिकारिक ट्रस्टी (Official Trustee), या आधिकारिक समनुदेशिती (Official Assignee),
(ग) किसी उच्च न्यायालय का शेरिफ (Sheriff), रिसीवर (Receiver) या रजिस्ट्रार (Registrar),
(घ) कोई अन्य सार्वजनिक पदाधिकारी (public officer), जिसे राज्य सरकार राजपत्र (Official Gazette) में अधिसूचना द्वारा इस प्रयोजन हेतु घोषित करे,

 जब वह अपनी आधिकारिक हैसियत (official capacity) में कोई दस्तावेज (document) निष्पादित करे, तो
 उसे पंजीकरण कार्यालय (registration office) में
 स्वयं या अपने एजेंट के माध्यम से उपस्थित होना जरूरी नहीं होगा,
 और न ही उसे धारा 58 के अनुसार दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करना आवश्यक होगा

(2) सरकार के किसी अधिकारी या उपरोक्त (1) में वर्णित किसी अन्य व्यक्ति द्वारा या उसके पक्ष में जो दस्तावेज़ निष्पादित किया गया है,
 वह रजिस्ट्रेशन के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है,
 जैसा कि धारा 69 के अंतर्गत बनाए गए नियमों में बताया गया है

(3) रजिस्ट्रार के समक्ष जब इस धारा के अनुसार कोई दस्तावेज प्रस्तुत किया जाए,
 तो वह यदि आवश्यक समझे,
 तो वह सरकार के किसी सचिव (Secretary) या उस अधिकारी या व्यक्ति से,
 दस्तावेज़ से जुड़ी जानकारी या स्पष्टीकरण (clarification) मांग सकता है।
 और जब उसे दस्तावेज़ के निष्पादन (execution) पर संतोष हो जाए,
 तब वह उस दस्तावेज़ को रजिस्टर कर सकता है

 याद रखने योग्य मुख्य बातें:

  • सरकारी अधिकारी, ट्रस्टी, रजिस्ट्रार, रिसीवर आदि को स्वयं उपस्थित होकर दस्तावेज पंजीकृत कराने की आवश्यकता नहीं
  • दस्तावेज़ उनके द्वारा आधिकारिक रूप से निष्पादित होने चाहिए।
  • रजिस्ट्रार को यदि शंका हो, तो वह सरकार से सत्यापन (verification) कर सकता है।
  • इससे दस्तावेजों का सरलीकृत रजिस्ट्रेशन सुनिश्चित होता है जब वे सरकारी अधिकारियों द्वारा किए गए हों।

 

धारा 90 – सरकार द्वारा या उसके पक्ष में निष्पादित कुछ दस्तावेजों को छूट
(Section 90 – Exemption of certain documents executed by or in favour of Government)

(1) इस अधिनियम, या
पुराने अधिनियम –
 भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1877 (1877 का अधिनियम 3),
 भारतीय पंजीकरण अधिनियम, 1871 (1871 का अधिनियम 8)
 या इनसे पूर्व किसी अधिनियम में कुछ भी लिखा हो,

तो भी ऐसा नहीं समझा जाएगा कि वे अधिनियम निम्नलिखित दस्तावेजों या मानचित्रों के रजिस्ट्रेशन की मांग करते हैं या कभी ऐसी मांग करते थे, अर्थात्:

(क) ऐसे दस्तावेज जो –
 किसी भू-राजस्व अधिकारी द्वारा जो बंदोबस्त (settlement), पुनरीक्षण (revision) या नई बंदोबस्त कर रहा हो,
 जारी किए गए हों, प्राप्त किए गए हों या प्रमाणित (certified) किए गए हों,
 और जो बंदोबस्त के अभिलेख (record) का हिस्सा बनते हैं।

(ख) ऐसे दस्तावेज या मानचित्र जो –
 सरकार द्वारा भूमि के सर्वेक्षण या संशोधन हेतु नियुक्त अधिकारी द्वारा
 जारी, प्राप्त या प्रमाणित किए गए हों,
 और जो ऐसे सर्वेक्षण के रिकॉर्ड का हिस्सा हैं।

(ग) वे दस्तावेज जो –
 किसी समय की विधियों के अधीन,
 पटवारी या ग्राम अभिलेख तैयार करने वाले अन्य अधिकारी
 राजस्व कार्यालय में दाखिल करते थे

(घ) सनद, इनाम, स्वामित्व-पत्र और अन्य दस्तावेज –
 जो यह दावा करते हैं कि सरकार ने किसी भूमि या उसमें हित (interest) को अनुदान (grant) या समनुदेशन (convey) किया है,
 या उसका साक्ष्य (evidence) देते हैं।

(ई) बॉम्बे भूमि-राजस्व संहिता, 1879 की धारा 74 या 76 के अंतर्गत –
 सरकार द्वारा दी गई सूचनाएं,
 या अधिभोगियों (occupants) द्वारा अधिभोग का त्याग (relinquishment),
 या भूमि के हस्तांतरण के दस्तावेज।

(2) उपर्युक्त सभी दस्तावेज और मानचित्र,
 इस अधिनियम की धारा 48 और 49 के प्रयोजन हेतु,
 पंजीकृत माने जाएंगे,
 जैसे कि वे इस अधिनियम के प्रावधानों के तहत वास्तव में रजिस्टर्ड किए गए हों

  मुख्य बिंदु याद रखने के लिए:

  • कुछ सरकारी दस्तावेज, जैसे बंदोबस्त, सर्वेक्षण, इनाम, पटवारी रिकॉर्ड आदि का रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं है।
  • फिर भी, ऐसे दस्तावेज धारा 48 और 49 (जो प्रभाव और साक्ष्य से संबंधित हैं) के लिए रजिस्टर्ड माने जाएंगे
  • इससे सरकार द्वारा बनाए गए भूमि-सम्बंधी रिकॉर्ड मान्य और उपयोगी साक्ष्य बने रहते हैं बिना औपचारिक पंजीकरण के

 

धारा 91 – ऐसे दस्तावेजों का निरीक्षण और उनकी प्रतियां
(Section 91 – Inspection and copies of such documents)

(1)
 जो नियम राज्य सरकार द्वारा बनाए जाएंगे,
 और जो राजपत्र में अधिसूचना द्वारा प्रकाशित किए जाएंगे,
 तथा जिनमें कुछ फीस का पूर्व-भुगतान भी निर्धारित हो सकता है —

उनके अधीन रहते हुए:

धारा 90 के

  • (क) (बंदोबस्त से संबंधित दस्तावेज),
  • (ख) (सरकारी सर्वेक्षण से संबंधित दस्तावेज),
  • (ग) (पटवारी आदि द्वारा दाखिल दस्तावेज),
  • (ई) (बॉम्बे भूमि-राजस्व संहिता से संबंधित सूचनाएं) में वर्णित
    सभी दस्तावेज और मानचित्र,

   और
धारा 90 के खंड (घ) (सनद, इनाम, स्वामित्व-पत्र आदि) में उल्लिखित
दस्तावेजों के सभी रजिस्टर,

 ऐसे व्यक्ति के निरीक्षण (inspection) के लिए खुले होंगे
 जो व्यक्ति निरीक्षण के लिए आवेदन करता है

और उसी प्रकार –
 ऐसे दस्तावेजों की प्रतियां (copies) भी
 जो कोई व्यक्ति प्रति के लिए आवेदन करे,
 उसे दी जाएंगी,
 नियमों और फीस के अधीन रहते हुए

(2)
 इस उपधारा के अधीन बनाए गए हर नियम,
या
 धारा 69 के अंतर्गत बनाए गए हर नियम,
 राज्य विधानमंडल के सामने तुरंत रखा जाएगा
 जब वह बना लिया जाएगा

 मुख्य बिंदु (Revision Point Format)

  • धारा 90 के तहत जिन सरकारी दस्तावेजों को रजिस्ट्रेशन से छूट मिली है –
    उनका निरीक्षण और कॉपी प्राप्त करना संभव है
  • राज्य सरकार नियम और फीस तय करेगी
  • दस्तावेजों और मानचित्रों को कोई भी व्यक्ति देख सकता है और प्रति ले सकता है – नियमों के अनुसार।
  • जो भी नियम बनाए जाएं, वे राज्य विधानमंडल के समक्ष प्रस्तुत किए जाएंगे

 

धारा 92 – 93 has been repealed.