Rajasthan Land Revenue Act 1956
Act 15 of 1956
भूमि से संबंधित कानून का एकीक्रीकरण और संशोधन अधिनियम – An Act to Consolidate and Amend the Law Relating to Land
यह एक अधिनियम है जिसका उद्देश्य भूमि संबंधी कानूनों का एक रूप में एकीकरण और उनमें संशोधन करना है। यह अधिनियम निम्नलिखित विषयों से संबंधित है —
भूमि, राजस्व न्यायालयों, राजस्व अधिकारियों और ग्राम सेवकों की नियुक्ति, अधिकार और कर्तव्य, नक्शों और भू-अभिलेखों की तैयारी और रखरखाव, राजस्व और किराए का निर्धारण, जमींदारी की बंटवारा प्रक्रिया,
राजस्व की वसूली, और इनसे संबंधित अन्य मामलों का प्रबंधन।
धारा 1 : संक्षिप्त नाम, प्रसार और प्रारंभ – Short Title, Extent and Commencement
(1) इस अधिनियम का नाम “राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956” होगा।
(2) यह अधिनियम राजस्थान राज्य के संपूर्ण क्षेत्र में लागू होगा।
(3) यह अधिनियम 13 जनवरी 1958 से प्रभाव में आया, जैसा कि राज्य सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचना द्वारा घोषित किया गया।
धारा 4 : राजस्व बोर्ड की स्थापना और संरचना – Establishment and Composition of the Board
(1) राजस्थान राज्य के लिए एक राजस्व बोर्ड की स्थापना की जाएगी, जिसे आगे बोर्ड कहा जाएगा।
(2) इस बोर्ड में एक अध्यक्ष और कम से कम तीन तथा अधिकतम बीस सदस्य होंगे।
(टिप्पणी : पहले अधिकतम सीमा पंद्रह थी, जिसे वर्ष 2011 के संशोधन द्वारा बीस कर दिया गया।)
(3) उपधारा (2) के अंतर्गत किए गए सभी नियुक्तियों की अधिसूचना राजकीय राजपत्र में प्रकाशित की जाएगी।
(4) राज्य सरकार अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति के लिए आवश्यक योग्यता, चयन की विधि, और सेवा की शर्तें निर्धारित करेगी।
परंतु, जब तक सरकार द्वारा नई योग्यता और नियुक्ति की प्रक्रिया निर्धारित नहीं की जाती, तब तक उनकी योग्यता वही मानी जाएगी जो राजस्थान भू-राजस्व (संशोधन) अध्यादेश, 1969 के प्रारंभ से पहले उपधारा (4) में थी।
(5) यदि अध्यक्ष या किसी सदस्य की मृत्यु, त्यागपत्र, कार्यकाल की समाप्ति, नियुक्ति की समाप्ति, या अस्थायी अनुपस्थिति के कारण कोई पद रिक्त हो जाता है, तो भी बोर्ड की संरचना अवैध नहीं मानी जाएगी।
महत्वपूर्ण बिंदु: राजस्व बोर्ड की स्थापना अनिवार्य है, अध्यक्ष सहित कुल सदस्य न्यूनतम 3 और अधिकतम 20, राजपत्र में नियुक्तियों की अधिसूचना, योग्यता व चयन प्रक्रिया राज्य सरकार द्वारा निर्धारित, रिक्त पद होने पर भी बोर्ड वैध माना जाएगा।
धारा 8 : बोर्ड की शक्तियाँ – Powers of the Board
(1) इस अधिनियम, राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955, या किसी अन्य प्रचलित कानून के प्रावधानों के अधीन रहते हुए, बोर्ड राजस्थान में अपील, पुनर्विलोकन और संदर्भ का सर्वोच्च राजस्व न्यायालय होगा।
परंतु, यदि किसी मामले में यह विवाद या संदेह उत्पन्न हो कि उस पर दीवानी न्यायालय या राजस्व न्यायालय का क्षेत्राधिकार है, तो उस विषय में उच्च न्यायालय का निर्णय अंतिम और सभी दीवानी व राजस्व न्यायालयों पर बाध्यकारी होगा, जिसमें बोर्ड भी शामिल है।
(2) उपधारा (1) में दी गई शक्तियों के अतिरिक्त, राज्य सरकार समय-समय पर बोर्ड को जो अन्य शक्तियाँ सौंपेगी या कर्तव्य सौंपेगी, या जो शक्तियाँ इस अधिनियम या किसी अन्य प्रभावी कानून के अंतर्गत बोर्ड को प्रदान या लागू की जाएँगी, वे भी बोर्ड द्वारा प्रयोग और पालन की जाएँगी।
मुख्य बिंदु:
बोर्ड राजस्थान का सर्वोच्च राजस्व अपीलीय न्यायालय है,
न्यायालयों के क्षेत्राधिकार से जुड़े विवादों में उच्च न्यायालय का निर्णय अंतिम होगा,
बोर्ड को राज्य सरकार या कानून द्वारा अन्य शक्तियाँ भी दी जा सकती हैं।
धारा 10 : बोर्ड का क्षेत्राधिकार कैसे प्रयोग किया जाए – Jurisdiction of Board how exercised
(1) जब तक इस अधिनियम या किसी अन्य प्रचलित कानून में कुछ भिन्न न प्रावधान किया गया हो, और संबंधित नियमों के अधीन, बोर्ड का क्षेत्राधिकार इस प्रकार प्रयोग किया जा सकता है—
(क) अध्यक्ष या कोई अन्य सदस्य अकेले, या
(ख) दो या अधिक सदस्यों वाली पीठ द्वारा।
परंतु, यदि किसी पक्ष को एकल सदस्य द्वारा दिए गए निर्णय से आपत्ति हो, तो वह उस निर्णय की तारीख से एक माह के भीतर दो या अधिक सदस्यों वाली पीठ के समक्ष विशेष अपील कर सकता है, बशर्ते कि निर्णय देने वाला सदस्य स्वयं यह माने कि मामला अपील योग्य है, और यदि वह सदस्य अब बोर्ड से संबद्ध नहीं है, तो कोई अन्य सदस्य ऐसा घोषित करे।
(2) बनाए गए नियमों के अधीन, अध्यक्ष बोर्ड के कार्यों का वितरण कर सकता है और क्षेत्रीय या अन्य किसी भी प्रकार के विभाजन कर सकता है जैसा वह उचित समझे।
(3) उपधारा (1) या (2) के अंतर्गत किया गया हर आदेश या कार्य बोर्ड का आदेश या कार्य माना जाएगा।
धारा 11 : पीठ को प्रश्न भेजने की शक्ति – Power to refer to a Bench
बोर्ड का कोई सदस्य जो किसी मामले की सुनवाई कर रहा हो, यदि उचित समझे, तो कानून या प्रथा से संबंधित कोई प्रश्न, या किसी दस्तावेज की व्याख्या से जुड़ा प्रश्न को लिखित कारणों सहित पीठ की राय के लिए भेज सकता है, और फिर मामला पीठ की राय के अनुसार निपटाया जाएगा।
धारा 12 : उच्च न्यायालय को प्रश्न भेजने की शक्ति – Power to refer question to High Court
(1) यदि पीठ को लगे कि धारा 11 में उल्लिखित कोई प्रश्न सार्वजनिक महत्व का है और उच्च न्यायालय की राय लेना आवश्यक है, तो वह प्रश्न उच्च न्यायालय को भेज सकती है।
(2) उच्च न्यायालय इच्छानुसार सुनवाई के बाद अपनी राय दर्ज करेगा, और उस राय के अनुसार ही मामले का निर्णय किया जाएगा।
धारा 13 : मतभेद की स्थिति में निर्णय – Decision in case of difference of opinion
(1) यदि कोई मामला बोर्ड की पीठ द्वारा सुना गया हो, तो उसका निर्णय अधिकांश सदस्यों की राय के अनुसार होगा।
(2) यदि सदस्य समान संख्या में मत विभाजित हों, तो मामला एक और सदस्य को सौंपा जाएगा, और फिर उसका निर्णय सभी सदस्यों (नए सदस्य सहित) की बहुमत राय से किया जाएगा।
धारा 14 : रजिस्टर आदि रखना – Registers etc. to be kept
बोर्ड ऐसे रजिस्टर, पुस्तकें और लेखा रखेगा और संधारित करेगा, जो कि नियमानुसार निर्धारित किए जाएँ या अपने कार्य संचालन के लिए आवश्यक हों।
मुख्य बिंदु:
बोर्ड का क्षेत्राधिकार एकल सदस्य या बहुसदस्यीय पीठ द्वारा,
विशेष अपील की व्यवस्था,
महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न पीठ या उच्च न्यायालय को भेजे जा सकते हैं,
मतभेद की स्थिति में बहुमत से निर्णय,
कार्यालयीन रिकॉर्ड अनिवार्य रूप से बनाए जाएँगे।
अध्याय 4 : राजस्व न्यायालयों और अधिकारियों की प्रक्रिया – Procedure of Revenue Courts and Officers
धारा 51 : न्यायालय आयोजित करने या जांच करने का स्थान – Place for holding Court or making inquiries
(1) अध्याय III के अंतर्गत नियुक्त प्रत्येक अधिकारी, धारा 20-A के प्रावधानों के अधीन, अपने क्षेत्राधिकार की सीमाओं के भीतर कहीं भी न्यायालय आयोजित कर सकता है और जांच कर सकता है।
(2) परंतु, यदि कोई अधिकारी अपनी क्षेत्रसीमा के बाहर कोई मामला सुनता या जांच करता है, तो उसे लिखित रूप में कारण दर्ज करने होंगे।
धारा 52 : भूमि में प्रवेश करने और सर्वेक्षण करने की शक्ति – Power to enter upon and survey land
सभी राजस्व और ग्राम अधिकारी, उनके सेवक या मजदूर, जब मौखिक या लिखित रूप से अधिकृत किए जाएँ, तो वे—
भूमि में प्रवेश कर सकते हैं,
सर्वेक्षण कर सकते हैं,
सीमांकन कर सकते हैं,
और इस अधिनियम या किसी अन्य लागू कानून के अंतर्गत अपने कर्तव्यों से संबंधित कार्य कर सकते हैं।
परंतु, कोई भी व्यक्ति किसी आवासीय भवन या उससे जुड़ी घिरी हुई जगह (आंगन या बाग़) में तब तक प्रवेश नहीं कर सकता जब तक—
- उसके निवासी की अनुमति न ली गई हो, या
- उसे कम से कम 24 घंटे पहले सूचना न दी गई हो,
और प्रवेश करते समय उस व्यक्ति की सामाजिक और धार्मिक भावनाओं का सम्मान किया जाएगा।
धारा 53 : सरकार, बोर्ड आदि की मामलों को स्थानांतरित करने की शक्ति – Power of Government, Board etc. to transfer cases
राज्य सरकार, भूमि अभिलेख निदेशक या आयुक्त किसी भी गैर-न्यायिक मामले या उनके वर्ग, जो सेटलमेंट से संबंधित न हो, को एक राजस्व अधिकारी या न्यायालय से दूसरे सक्षम अधिकारी या न्यायालय को स्थानांतरित कर सकते हैं।
बोर्ड, सेटलमेंट कमिश्नर या भूमि अभिलेख निदेशक, न्यायिक या सेटलमेंट मामलों या उनके वर्गों को एक अधीनस्थ न्यायालय या अधिकारी से दूसरे सक्षम न्यायालय या अधिकारी को स्थानांतरित कर सकते हैं।
धारा 54 : अधीनस्थ अधिकारियों से मामलों का हस्तांतरण – Power to transfer cases to and from subordinates
आयुक्त, कलेक्टर, मंडल अधिकारी, तहसीलदार, भूमि अभिलेख अधिकारी या सेटलमेंट अधिकारी, अपने पास किसी भी मामले या मामलों के वर्ग को, जो इस अधिनियम के अंतर्गत हों या अन्यथा, किसी अधीनस्थ सक्षम अधिकारी को जांच या निर्णय के लिए दे सकते हैं, या
किसी अधीनस्थ अधिकारी से कोई मामला वापस लेकर,
- स्वयं निर्णय कर सकते हैं, या
- किसी अन्य सक्षम अधिकारी को सौंप सकते हैं।
परंतु, यदि किसी मामले में राजस्व अधिकारी द्वारा जांच के बाद कोई रिपोर्ट उच्च अधिकारी को भेजी गई है, तो वह उच्च अधिकारी अंतिम आदेश देने से पहले पक्षों को सुनने का अवसर दे सकता है।
मुख्य बिंदु :
अधिकारी अपने क्षेत्र में कहीं भी न्यायालय या जांच कर सकते हैं,
क्षेत्र के बाहर जांच के लिए लिखित कारण आवश्यक,
अधिकृत राजस्व अधिकारी भूमि में प्रवेश व सीमांकन कर सकते हैं,
निजी भवन में प्रवेश से पहले अनुमति या 24 घंटे की सूचना अनिवार्य,
मामलों का स्थानांतरण सरकार, बोर्ड या अधिकारी कर सकते हैं,
उच्च अधिकारी अधीनस्थ से मामला लेकर स्वयं निपटा सकता है या अन्य को दे सकता है,
अंतिम आदेश से पहले सुनवाई का अवसर दिया जा सकता है।
अध्याय 5 : अपील, संदर्भ, पुनर्विलोकन और पुनर्विचार – Appeal, Reference, Revision and Review
धारा 74 : केवल इस अधिनियम द्वारा अनुमत अपील – Appeal to be as allowed by this Act
इस समय लागू किसी भी अन्य कानून के होते हुए भी, राजस्व न्यायालय या अधिकारी द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध अपील केवल इस अधिनियम में वर्णित प्रावधानों के अनुसार ही की जा सकती है।
धारा 75 : प्रथम अपील – First Appeals
जब तक इस अधिनियम में अन्यथा प्रावधान न हो, प्रथम अपील निम्नानुसार की जाएगी—
(क) तहसीलदार के मूल आदेश के विरुद्ध (सेटलमेंट या भूमि अभिलेख से संबंधित नहीं हो) कलेक्टर के पास।
(ख) सहायक कलेक्टर, उपखंड अधिकारी या कलेक्टर के मूल आदेश के विरुद्ध (सेटलमेंट से संबंधित नहीं हो) राजस्व अपीलीय प्राधिकारी के पास।
(ग) राजस्व न्यायालय या अधिकारी के मूल आदेश के विरुद्ध (जो उसके अधीन हो) सेटलमेंट अधिकारी के पास।
(घ) राजस्व न्यायालय या अधिकारी के मूल आदेश के विरुद्ध (जो उसके अधीन हो) भूमि अभिलेख अधिकारी के पास।
(ङ) सेटलमेंट अधिकारी या कलेक्टर द्वारा पारित मूल आदेश (सेटलमेंट से संबंधित) के विरुद्ध सेटलमेंट आयुक्त के पास।
(च) भूमि अभिलेख अधिकारी द्वारा पारित मूल आदेश (भूमि अभिलेख से संबंधित) के विरुद्ध भूमि अभिलेख निदेशक के पास।
(छ) आयुक्त, अतिरिक्त आयुक्त, राजस्व अपीलीय प्राधिकारी या सेटलमेंट आयुक्त द्वारा पारित मूल आदेश के विरुद्ध बोर्ड के पास।
धारा 76 : द्वितीय अपील – Second Appeals
अपील में पारित आदेश के विरुद्ध द्वितीय अपील की जा सकती है—
(क) कलेक्टर द्वारा पारित आदेश (सेटलमेंट या भूमि अभिलेख से संबंधित नहीं) के विरुद्ध राजस्व अपीलीय प्राधिकारी के पास।
(ख) सेटलमेंट अधिकारी या धारा 181 के अंतर्गत कार्य कर रहे कलेक्टर द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध सेटलमेंट आयुक्त के पास।
(ग) आयुक्त, राजस्व अपीलीय प्राधिकारी या सेटलमेंट आयुक्त द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध बोर्ड के पास।
धारा 77 : कुछ मामलों में अपील वर्जित – No appeal in certain cases
(1) निम्नलिखित मामलों में अपील नहीं की जा सकती—
(क) अपील या पुनर्विचार की स्वीकृति पर पारित आदेश (यदि वह भारतीय विलंब अधिनियम की धारा 5 के आधार पर हो),
(ख) पुनर्विलोकन या पुनर्विचार याचिका को अस्वीकार करने का आदेश,
(ग) जिस आदेश को इस अधिनियम द्वारा अंतिम घोषित किया गया हो,
(घ) अंतरिम आदेश पर।
(2) उपधारा (1) के प्रावधान उन सभी याचिकाओं या कार्यवाहियों पर भी लागू होंगे जो राजस्थान राजस्व कानून (संशोधन) अध्यादेश, 1975 के प्रारंभ की तिथि पर लंबित थीं।
(3) धारा 75 या 76 के अंतर्गत अंतरिम आदेशों के विरुद्ध लंबित सभी अपीलें, इस अध्यादेश के प्रारंभ की तिथि पर समाप्त मानी जाएँगी।
धारा 78 : अपील के लिए समय सीमा – Limitation for Appeals
कोई अपील निम्नलिखित समय-सीमा के बाद स्वीकार नहीं की जाएगी—
(क) कलेक्टर, भूमि अभिलेख अधिकारी या सेटलमेंट अधिकारी के पास – 30 दिन।
(ख) राजस्व अपीलीय प्राधिकारी, सेटलमेंट आयुक्त या भूमि अभिलेख निदेशक के पास – 60 दिन।
(ग) बोर्ड के पास – 90 दिन।
मुख्य बिंदु : अपील केवल इस अधिनियम के अनुसार ही हो सकती है,
प्रथम अपील और द्वितीय अपील के स्पष्ट प्रावधान दिए गए हैं,
कुछ आदेशों के विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती,
अंतरिम आदेशों के विरुद्ध अपीलें समाप्त मानी जाएँगी,
अपील करने के लिए स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित की गई है।
अध्याय 5 : अपील, संदर्भ, पुनर्विलोकन और पुनर्विचार – Appeal, Reference, Revision and Review
धारा 82 : रिकॉर्ड और कार्यवाही मंगवाने तथा राज्य सरकार या बोर्ड को संदर्भ भेजने की शक्ति – Power to call for records and proceeding and reference to State Government or Board
सेटलमेंट कमिश्नर, भूमि अभिलेख निदेशक या कलेक्टर, अपने अधीन किसी राजस्व न्यायालय या अधिकारी द्वारा किए गए निर्णय या कार्यवाही का रिकॉर्ड मंगवाकर यह देख सकते हैं कि आदेश वैध है या नहीं और कार्यवाही नियमपूर्वक हुई या नहीं।
यदि वे मानें कि आदेश को बदलना, रद्द करना या पलटना चाहिए, तो—
- न्यायिक प्रकृति या सेटलमेंट से संबंधित मामला हो तो वह बोर्ड को भेजेंगे,
- गैर-न्यायिक और सेटलमेंट से असंबंधित मामला हो तो वह राज्य सरकार को भेजेंगे,
और बोर्ड या राज्य सरकार जैसा उचित समझे, वैसा आदेश पारित करेगी।
धारा 83 : सरकार की रिकॉर्ड मंगवाने और आदेश संशोधित करने की शक्ति – Power of Government to call for records and revise orders
राज्य सरकार किसी गैर-न्यायिक और सेटलमेंट से असंबंधित कार्यवाही का रिकॉर्ड मंगवा सकती है और उस पर उचित आदेश पारित कर सकती है।
धारा 84 : बोर्ड की रिकॉर्ड मंगवाने और आदेश संशोधित करने की शक्ति – Power of Board to call for records and revise orders
यदि किसी न्यायिक या सेटलमेंट से संबंधित मामले में बोर्ड को अपील का अधिकार नहीं है, फिर भी यदि ऐसा प्रतीत हो कि—
- निचली अदालत या अधिकारी ने अवैध रूप से अधिकार का प्रयोग किया है,
- न्यायिक अधिकार का प्रयोग नहीं किया है, या
- अनियमितता के साथ कार्य किया है,
तो बोर्ड ऐसे मामलों में रिकॉर्ड मंगवा कर उचित आदेश पारित कर सकता है।
धारा 84A : कुछ मामलों में पुनर्विलोकन नहीं – No revision in Certain Cases
इस अधिनियम के अंतर्गत किसी कार्यवाही में पारित अंतरिम आदेश के विरुद्ध कोई पुनर्विलोकन नहीं किया जा सकता।
ऐसे आदेशों के विरुद्ध लंबित सभी पुनर्विलोकन, राजस्थान राजस्व कानून (संशोधन) अध्यादेश, 1975 के प्रारंभ की तारीख पर समाप्त माने जाएँगे।
धारा 85 : सुनवाई का अधिकार – Hearing
धारा 82, 83 या 84 के अंतर्गत कोई आदेश किसी व्यक्ति के प्रतिकूल नहीं दिया जाएगा, जब तक उसे सुनने का अवसर न दिया गया हो।
धारा 85A : राज्य सरकार द्वारा पुनर्विचार – Review by the State Government
राज्य सरकार, स्वतः या किसी पक्ष की याचिका पर, अपने द्वारा पारित आदेश का पुनर्विचार कर सकती है और उसे रद्द, परिवर्तित या यथावत रख सकती है।
धारा 86 : बोर्ड और अन्य न्यायालयों द्वारा पुनर्विचार – Review by the Board and other Courts
(1) बोर्ड, स्वयं या किसी पक्ष की याचिका पर, अपने या अपने किसी सदस्य द्वारा पारित आदेश का पुनर्विचार कर सकता है और उसे रद्द, परिवर्तित या यथावत रख सकता है।
(2) अन्य सभी राजस्व न्यायालय या अधिकारी, स्वयं या किसी पक्ष की याचिका पर, अपने या अपने पूर्वाधिकारी द्वारा पारित आदेश का पुनर्विचार कर सकते हैं, बशर्ते—
(i) आदेश को परिवर्तित या रद्द करने से पहले संबंधित पक्षों को सूचना और सुनवाई का अवसर दिया जाए,
(ii) यदि आदेश के विरुद्ध अपील या पुनर्विलोकन लंबित है, तो पुनर्विचार नहीं किया जाएगा,
(iii) यदि आदेश दो निजी पक्षों के अधिकार या विवाद से संबंधित है, तो केवल पक्ष की याचिका पर और 90 दिनों के भीतर ही पुनर्विचार किया जाएगा।
(3) पुनर्विचार की याचिका केवल उन्हीं कारणों पर आधारित होनी चाहिए जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (आदेश 47, नियम 1) में बताए गए हैं, और उनके प्रावधान इस धारा के अधीन लागू होंगे।
धारा 87 : अधिनियम IX, 1908 की आवेदनता – Application of Act IX of 1908
भारतीय विलंब अधिनियम, 1908 (Indian Limitation Act, 1908) के प्रावधान, इस अधिनियम के अंतर्गत की गई सभी अपीलों और पुनर्विचार याचिकाओं पर लागू होंगे।
मुख्य बिंदु :
बोर्ड, राज्य सरकार और वरिष्ठ अधिकारी रिकॉर्ड मंगवाकर आदेश की वैधता की जांच कर सकते हैं गैर-न्यायिक मामलों में सरकार आदेश संशोधित कर सकती है,
न्यायिक/सेटलमेंट मामलों में बोर्ड आदेश पलट सकता है,
अंतरिम आदेश पर पुनर्विलोकन नहीं होता,
किसी के प्रतिकूल आदेश देने से पहले उसे सुनना आवश्यक है,
पुनर्विचार केवल सीमित आधारों पर और समय सीमा के भीतर किया जा सकता है,
विलंब अधिनियम के प्रावधान भी इन याचिकाओं पर लागू होते हैं।
धारा 259 : दीवानी न्यायालयों का अधिकार क्षेत्र वर्जित – Jurisdiction of Civil Courts Excluded
जब तक इस अधिनियम या किसी अन्य लागू कानून में स्पष्ट रूप से अन्यथा प्रावधान न किया गया हो, इस अधिनियम के अंतर्गत उत्पन्न किसी भी विषय के संबंध में कोई वाद या कार्यवाही किसी दीवानी न्यायालय में दाखिल नहीं की जा सकती।
परंतु, यदि सीमा विवाद या दो भू-स्वामियों के बीच किसी अन्य विवाद में स्वामित्व (title) का प्रश्न उत्पन्न होता है, तो उस प्रश्न के निर्णय के लिए दीवानी वाद दायर किया जा सकता है।
महत्वपूर्ण बिंदु: इस अधिनियम से संबंधित मामलों पर सामान्य रूप से दीवानी न्यायालय का अधिकार नहीं होगा, लेकिन स्वामित्व से संबंधित विवादों पर दीवानी न्यायालय में वाद लाया जा सकता है।