Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012

Protection of Children from Sexual Offences Act, 2012.

Act No. 32/2012

धारा 1 – संक्षिप्त नाम, क्षेत्र और प्रारंभ

इस अधिनियम को “बाल यौन अपराधों से संरक्षण अधिनियम, 2012” कहा जाता है। यह संपूर्ण भारत में लागू होता है (अब जम्मू और कश्मीर सहित)।

यह अधिनियम 14 नवम्बर 2012 से लागू हुआ, जिसे भारत सरकार द्वारा राजपत्र में अधिसूचना के माध्यम से घोषित किया गया।

धारा 2 – परिभाषाएँ

इस अधिनियम में, जब तक संदर्भ से अन्यथा न हो, निम्नलिखित शब्दों का अर्थ इस प्रकार है:

(a) “गंभीर भेदन यौन उत्पीड़न” (aggravated penetrative sexual assault) का अर्थ धारा 5 में दिया गया है।

(b) “गंभीर यौन उत्पीड़न” (aggravated sexual assault) का अर्थ धारा 9 में दिया गया है।

(c) “सशस्त्र बल या सुरक्षा बल” से तात्पर्य केंद्र सरकार के सशस्त्र बल, सुरक्षा बल या पुलिस बल से है, जैसा कि अनुसूची में वर्णित है।

(d) “बालक/बालिका” (child) वह व्यक्ति है जिसकी आयु 18 वर्ष से कम है।

(da) “बाल अश्लीलता” (child pornography) का अर्थ है बच्चे को शामिल करते हुए किसी यौन क्रिया का दृश्य चित्रण, जिसमें फोटो, वीडियो, डिजिटल या कंप्यूटर-निर्मित छवि शामिल है, जो असली बच्चे जैसी लगे — भले ही वह बदली गई या बनाई गई हो।

(e) “घरेलू संबंध” (domestic relationship) का वही अर्थ है जो घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 की धारा 2(f) में दिया गया है।

(f) “भेदन यौन उत्पीड़न” (penetrative sexual assault) का अर्थ धारा 3 में दिया गया है।
(g) “नियत” (prescribed) से तात्पर्य है कि यह इस अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए नियमों द्वारा निर्धारित हो।

(h) “धार्मिक संस्था” (religious institution) का वही अर्थ है जो धार्मिक संस्थानों के दुरुपयोग की रोकथाम अधिनियम, 1988 में दिया गया है।

(i) “यौन उत्पीड़न” (sexual assault) का अर्थ धारा 7 में दिया गया है।

(j) “यौन उत्पीड़न/उत्पीड़न” (sexual harassment) का अर्थ धारा 11 में दिया गया है।
(k) “संयुक्त निवास” (shared household) से तात्पर्य है वह घर जहाँ आरोपी और बच्चा कभी घरेलू संबंध में एक साथ रहते थे या रहते हैं।

(l) “विशेष न्यायालय” (Special Court) का अर्थ वह न्यायालय है जिसे धारा 28 के अंतर्गत विशेष रूप से नामित किया गया है।

(m) “विशेष लोक अभियोजक” (Special Public Prosecutor) वह अभियोजक है जिसे धारा 32 के अंतर्गत नियुक्त किया गया है।

(2) इस अधिनियम में प्रयुक्त वे शब्द और अभिव्यक्तियाँ जिन्हें यहाँ परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन जो भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता, किशोर न्याय अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम में परिभाषित हैं, उन्हें वहीं दिया गया अर्थ माना जाएगा।

धारा 3 – भेदन यौन उत्पीड़न (Penetrative Sexual Assault)

यदि कोई व्यक्ति निम्न में से कोई भी कार्य करता है, तो उसे “भेदन यौन उत्पीड़न” का दोषी माना जाएगा:

(a) वह अपने लिंग को किसी बच्चे के योनि, मुंह, मूत्रमार्ग या गुदा में किसी भी सीमा तक प्रविष्ट करता है, या बच्चे से ऐसा कराता है, अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ;

(b) वह किसी वस्तु या शरीर के किसी भाग (लिंग को छोड़कर) को बच्चे की योनि, मूत्रमार्ग या गुदा में किसी भी सीमा तक प्रविष्ट करता है, या बच्चे से ऐसा कराता है, अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ;

(c) वह बच्चे के शरीर के किसी भाग से इस प्रकार छेड़छाड़ करता है जिससे उसकी योनि, मूत्रमार्ग, गुदा या शरीर के किसी भी भाग में प्रविष्टि हो, या बच्चे से ऐसा कराता है, अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ;

(d) वह बच्चे के लिंग, योनि, गुदा या मूत्रमार्ग पर अपना मुंह लगाता है, या बच्चे से ऐसा कराता है, अपने या किसी अन्य व्यक्ति के साथ।

ये सभी कृत्य भेदन (penetrative) और यौन प्रकृति के गंभीर अपराध माने जाते हैं।

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धारा 4 – भेदन यौन उत्पीड़न के लिए दंड

(1) जो कोई भेदन यौन उत्पीड़न करता है, उसे कम से कम 10 वर्ष की सजा होगी, जिसे बढ़ाकर आजीवन कारावास (जीवनभर के लिए) तक किया जा सकता है, और उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा।

(2) यदि कोई व्यक्ति 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चे के साथ भेदन यौन उत्पीड़न करता है, तो उसे कम से कम 20 वर्ष की सजा दी जाएगी, जिसे बढ़ाकर प्राकृतिक जीवनकाल तक कारावास (आजन्म कारावास) तक किया जा सकता है, और जुर्माना भी लगेगा।

(3) उपधारा (1) के अंतर्गत लगाया गया जुर्माना उचित और न्यायसंगत होना चाहिए और वह पीड़ित को चिकित्सा और पुनर्वास संबंधी खर्चों के लिए दिया जाएगा।

धारा 5 – गंभीर प्रवेश यौन शोषण (Aggravated Penetrative Sexual Assault)

निम्नलिखित स्थितियों में जब कोई व्यक्ति किसी बच्चे के साथ प्रवेश यौन शोषण करता है, तो यह गंभीर प्रवेश यौन शोषण माना जाएगा:

(a) यदि कोई पुलिस अधिकारी बच्चे के साथ यौन शोषण करता है:
(i) उसी थाने या परिसर में जहाँ उसकी नियुक्ति हो,
(ii) किसी स्टेशन हाउस में चाहे वह थाना क्षेत्र में हो या नहीं,
(iii) अपनी ड्यूटी के दौरान या अन्यथा,
(iv) जब वह एक पुलिस अधिकारी के रूप में पहचाना जाता हो।

(b) यदि कोई सेना या सुरक्षा बल का सदस्य बच्चे के साथ यौन शोषण करता है:
(i) उस क्षेत्र में जहाँ उसकी तैनाती हो,
(ii) किसी ऐसे क्षेत्र में जो बलों के अधीन हो,
(iii) ड्यूटी के दौरान या अन्यथा,
(iv) जब वह सदस्य के रूप में पहचाना जाता हो।

(c) यदि कोई सार्वजनिक सेवक ऐसा करे।

(d) यदि जेल, बालगृह, संरक्षण गृह, अवलोकन गृह या अन्य किसी सरकारी या कानूनी संरक्षण संस्था में कार्यरत व्यक्ति वहाँ के बच्चे के साथ ऐसा करे।

(e) यदि सरकारी या निजी अस्पताल में कार्यरत कोई व्यक्ति वहाँ भर्ती बच्चे के साथ ऐसा करे।

(f) यदि शैक्षणिक या धार्मिक संस्था का कोई प्रबंधक या कर्मचारी वहाँ के बच्चे के साथ ऐसा करे।

(g) यदि समूह में मिलकर बच्चे का यौन शोषण किया जाए (गैंग रैप)।
इस स्थिति में समूह के सभी लोग उस अपराध के लिए समान रूप से उत्तरदायी होंगे, जैसे कि उन्होंने अकेले अपराध किया हो।

(h) यदि घातक हथियार, आग, गर्म या तेजाबीय पदार्थ का उपयोग कर ऐसा किया जाए।

(i) यदि इससे बच्चे को गंभीर चोट या यौन अंगों को नुकसान हो।

(j) यदि शोषण के कारण –
(i) बच्चा शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम हो जाए,
(ii) लड़की गर्भवती हो जाए,
(iii) बच्चे को HIV या अन्य जानलेवा बीमारी हो जाए,
(iv) बच्चे की मृत्यु हो जाए।

(k) यदि किसी शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम बच्चे के साथ ऐसा किया जाए।

(l) यदि एक से अधिक बार बच्चे के साथ यौन शोषण किया जाए।

(m) यदि 12 वर्ष से कम आयु के बच्चे के साथ ऐसा किया जाए।

(n) यदि कोई रिश्तेदार (खून, गोद लेना, विवाह, पालक, या घरेलू संबंध) ऐसा करे।

(o) यदि कोई संस्था, जो बच्चों को सेवा प्रदान करती हो, वहाँ कार्यरत व्यक्ति ऐसा करे।

(p) यदि कोई व्यक्ति, जो बच्चे के लिए भरोसे या अधिकार की स्थिति में हो, ऐसा करे, चाहे वह बच्चे के घर या अन्य किसी जगह हो।

(q) यदि आरोपी को पता हो कि बच्ची गर्भवती है, फिर भी वह ऐसा करे।

(r) यदि यौन शोषण के साथ-साथ हत्या का प्रयास किया जाए।

(s) यदि यह सांप्रदायिक/धार्मिक हिंसा, प्राकृतिक आपदा या ऐसे ही हालात में किया जाए।

(t) यदि आरोपी पहले भी ऐसे अपराध में दोषी पाया गया हो।

(u) यदि यौन शोषण के साथ बच्चे को नग्न कर या नग्न घुमाया जाए।

उपरोक्त सभी स्थितियों में किया गया प्रवेश यौन शोषण गंभीर (aggravated) माना जाएगा, और इसके लिए सख्त सजा का प्रावधान है।

धारा 6 – उग्र भेदक यौन उत्पीड़न के लिए दंड

जो कोई उग्र भेदक यौन उत्पीड़न (Aggravated Penetrative Sexual Assault) करता है, उसे कम से कम 20 वर्षों की कठोर कारावास की सजा दी जाएगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है — जिसका अर्थ है कि अपराधी को अपने प्राकृतिक जीवन के अंत तक जेल में रहना होगा। इसके साथ-साथ, अपराधी पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है, या फिर मृत्युदंड भी दिया जा सकता है।
यह जो जुर्माना लगाया जाएगा, वह उचित और न्यायसंगत होना चाहिए, और इसे पीड़ित को चिकित्सा खर्च व पुनर्वास के लिए दिया जाएगा।

महत्वपूर्ण बिंदु (याद रखने हेतु):

  • कम से कम 20 साल की कठोर सजा
  • आजीवन कारावास या मृत्युदंड तक सजा का विस्तार संभव
  • उचित जुर्माना
  • जुर्माना पीड़ित को चिकित्सा और पुनर्वास हेतु दिया जाएगा

धारा 7 – यौन उत्पीड़न (Sexual Assault)

यदि कोई व्यक्ति यौन इरादे से किसी बच्चे के गुप्तांग (योनि, लिंग, गुदा) या स्तनों को छूता है, या बच्चे से कहता है कि वह उस व्यक्ति या किसी अन्य व्यक्ति के इन अंगों को छुए, या फिर ऐसा कोई भी कार्य करता है जो यौन इरादे से हो और जिसमें शारीरिक संपर्क हो लेकिन भेदन (penetration) न हो, तो यह यौन उत्पीड़न (Sexual Assault) माना जाएगा।

महत्वपूर्ण बिंदु (याद रखने हेतु):

  • यौन इरादे से बच्चे के गुप्त अंगों या स्तनों को छूना
  • बच्चे से किसी अन्य के अंगों को छूने को कहना
  • भेदन के बिना किसी भी प्रकार का यौन इरादे वाला शारीरिक संपर्क
    = यह सब यौन उत्पीड़न की श्रेणी में आता है।

धारा 8 – यौन उत्पीड़न के लिए दंड

जो कोई यौन उत्पीड़न करता है, उसे कम से कम तीन वर्ष की कारावास, जो पांच वर्ष तक बढ़ाई जा सकती है, की सजा दी जाएगी, और उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा

महत्वपूर्ण बिंदु (याद रखने हेतु):

  • सजा: न्यूनतम 3 वर्ष, अधिकतम 5 वर्ष
  • जुर्माने का भी प्रावधान है
  • यह सजा साधारण या कठोर कारावास दोनों हो सकती है, न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है।

धारा 9 – उग्र यौन उत्पीड़न (Aggravated Sexual Assault)

जब कोई व्यक्ति यौन उत्पीड़न ऐसे विशेष, संवेदनशील या गंभीर हालातों में करता है, जिससे बच्चे की स्थिति, अधिकार या सुरक्षा और अधिक प्रभावित होती है, तो उसे उग्र यौन उत्पीड़न (Aggravated Sexual Assault) माना जाता है। निम्नलिखित परिस्थितियों में ऐसा माना जाएगा:

  • (a) यदि कोई पुलिस अधिकारी बच्चे के साथ:
    • अपनी नियुक्ति क्षेत्र में या पुलिस स्टेशन में,
    • ड्यूटी के दौरान या सामान्य परिस्थिति में,
    • या जब वह पुलिस अधिकारी के रूप में पहचाना जाता है,
      यौन उत्पीड़न करे।
  • (b) यदि कोई सुरक्षा बल या सैन्य बल का सदस्य:
    • ड्यूटी क्षेत्र में,
    • कमांड क्षेत्र में,
    • ड्यूटी के दौरान या अन्यथा,
    • या बल के सदस्य के रूप में पहचाने जाने की स्थिति में,
      यौन उत्पीड़न करे।
  • (c) कोई सरकारी कर्मचारी यदि बच्चे का यौन उत्पीड़न करे।
  • (d) यदि कोई व्यक्ति जेल, रिमांड होम, संरक्षण गृह या अन्य किसी देखभाल केंद्र के प्रबंधन/स्टाफ में हो और वहाँ के बच्चे का यौन उत्पीड़न करे।
  • (e) सरकारी या निजी अस्पताल के स्टाफ या प्रबंधन द्वारा अस्पताल में बच्चे का यौन उत्पीड़न।
  • (f) शैक्षणिक या धार्मिक संस्थान के स्टाफ द्वारा वहाँ बच्चे का यौन उत्पीड़न।
  • (g) यदि कई लोग मिलकर (गैंग) बच्चे पर यौन उत्पीड़न करते हैं।
    • स्पष्टीकरण: यदि समूह के एक से अधिक लोग बच्चे पर यौन उत्पीड़न करते हैं, तो सभी को सामूहिक अपराधी माना जाएगा, चाहे उन्होंने प्रत्यक्ष कार्य किया हो या नहीं।
  • (h) यदि यौन उत्पीड़न घातक हथियार, आग, गर्म या जंग लगे पदार्थ से किया जाए।
  • (i) यौन उत्पीड़न के कारण गंभीर चोट, विशेषकर यौन अंगों को नुकसान।
  • (j) यदि यौन उत्पीड़न के कारण:
    • बच्चा शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम हो जाए,
    • या बच्चा मानसिक बीमारी (Mental Illness) से ग्रसित हो जाए,
    • या बच्चा HIV या किसी गंभीर रोग से संक्रमित हो जाए।
  • (k) यदि बच्चे की शारीरिक या मानसिक अक्षमता का फायदा उठाकर यौन उत्पीड़न किया जाए।
  • (l) बार-बार या एक से अधिक बार बच्चे का यौन उत्पीड़न करना।
  • (m) 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे का यौन उत्पीड़न।
  • (n) यदि रिश्तेदार (खून, गोद, विवाह, संरक्षण, पालक देखभाल) या समान घर में रहने वाला व्यक्ति यौन उत्पीड़न करे।
  • (o) यदि कोई व्यक्ति, जो बच्चों को सेवा देने वाले संस्थान का मालिक/प्रबंधक/स्टाफ हो, बच्चे का उत्पीड़न करे।
  • (p) जो व्यक्ति बच्चे की देखभाल या अधिकार की स्थिति में हो, वह यौन उत्पीड़न करे, चाहे वह संस्थान में हो या घर में।
  • (q) यदि वह जानता है कि बच्ची गर्भवती है, फिर भी यौन उत्पीड़न करे।
  • (r) यदि यौन उत्पीड़न के साथ-साथ बच्चे की हत्या का प्रयास भी किया जाए।
  • (s) यदि सांप्रदायिक हिंसा, प्राकृतिक आपदा या ऐसी किसी स्थिति के दौरान यौन उत्पीड़न किया जाए।
  • (t) यदि अपराधी पहले से ही POCSO या किसी अन्य यौन अपराध में दोषी रह चुका हो।
  • (u) यदि बच्चे को सार्वजनिक रूप से नग्न कराना या नग्न घुमाना यौन उत्पीड़न के साथ किया जाए।
  • (v) यदि कोई व्यक्ति बच्चे को जल्दी यौन परिपक्वता (early sexual maturity) दिलाने के उद्देश्य से ड्रग, हार्मोन या रसायन का सेवन कराए, कराए जाने का दबाव डाले, या किसी से दिलवाए।

याद रखने हेतु संक्षेप:

  • विशेष स्थिति में किया गया यौन उत्पीड़न = उग्र यौन उत्पीड़न
  • अधिक जिम्मेदार व्यक्ति या गंभीर परिणाम वाले मामले शामिल
  • जैसे: पुलिस, शिक्षक, डॉक्टर, संरक्षक, रिश्तेदार, अस्पताल/संस्थान में किया गया अपराध, गैंग द्वारा, बार-बार, हथियारों से, 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चे पर, गर्भवती बच्ची पर, मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम बच्ची पर, सार्वजनिक नग्नता, या हत्या के प्रयास के साथ — ये सब इस श्रेणी में आते हैं।

धारा 10 – उग्र यौन उत्पीड़न के लिए दंड

जो कोई उग्र यौन उत्पीड़न (Aggravated Sexual Assault) करता है, उसे कम से कम 5 वर्षों की कारावास, जो कि 7 वर्षों तक बढ़ाई जा सकती है, की सजा दी जाएगी, और उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा। यह कारावास साधारण या कठोर, दोनों में से कोई भी हो सकता है, न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है।

महत्वपूर्ण बिंदु (याद रखने हेतु):

  • न्यूनतम सजा: 5 वर्ष
  • अधिकतम सजा: 7 वर्ष
  • जुर्माने का प्रावधान अनिवार्य
  • यह सजा उन मामलों में दी जाती है जहाँ यौन उत्पीड़न विशेष गंभीर परिस्थितियों में (धारा 9 में वर्णित) किया गया हो।

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धारा 11 – बच्चे के प्रति यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment)

जब कोई व्यक्ति यौन इरादे से बच्चे के साथ निम्नलिखित में से कोई कार्य करता है, तो यह यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) माना जाता है:

  • (i) ऐसा कोई शब्द कहना, आवाज़ निकालना, इशारा करना, वस्तु या शरीर का कोई भाग दिखाना, ताकि बच्चा उसे सुन सके या देख सके
  • (ii) बच्चे को मजबूर करना कि वह अपना शरीर या शरीर का कोई भाग किसी व्यक्ति को दिखाए
  • (iii) अश्लील उद्देश्य से बच्चे को कोई वस्तु किसी भी माध्यम (जैसे चित्र, वीडियो, आदि) से दिखाना।
  • (iv) बच्चे का लगातार पीछा करना, उसे घूरना, संपर्क करना, चाहे वह सीधे हो या इलेक्ट्रॉनिक/डिजिटल माध्यमों से।
  • (v) बच्चे के शरीर के किसी भाग या यौन क्रिया से जुड़े किसी दृश्य को, मीडिया में असली या नकली रूप में दिखाने की धमकी देना
  • (vi) बच्चे को अश्लील उद्देश्यों के लिए लुभाना या इसके बदले में उसे कोई लाभ देना

स्पष्टीकरण:
किसी भी स्थिति में यह तय करना कि यौन इरादा था या नहीं, तथ्य का विषय (question of fact) होगा — यानी इसे परिस्थितियों के आधार पर जाँचा जाएगा।

महत्वपूर्ण बिंदु (याद रखने हेतु):

  • बोलकर, दिखाकर, धमकाकर, पीछा करके या लालच देकर यौन इरादा दिखाना = यौन उत्पीड़न
  • डिजिटल माध्यमों से भी किया गया व्यवहार शामिल
  • यौन इरादा होना आवश्यक – यह न्यायालय तथ्यों के आधार पर तय करेगा।

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धारा 12 – बच्चे के प्रति यौन उत्पीड़न के लिए दंड

जो कोई बच्चे के साथ यौन उत्पीड़न (Sexual Harassment) करता है, उसे अधिकतम 3 वर्ष तक की कारावास (साधारण या कठोर, न्यायालय के अनुसार) की सजा दी जा सकती है, और उस पर जुर्माना भी लगाया जाएगा

महत्वपूर्ण बिंदु (याद रखने हेतु):

  • अधिकतम सजा: 3 वर्ष
  • जुर्माने का प्रावधान अनिवार्य
  • यह सजा उन मामलों में दी जाती है जहाँ व्यक्ति ने बच्चे के प्रति यौन इरादे से बोलकर, दिखाकर, पीछा करके या धमकाकर उत्पीड़न किया हो (धारा 11 में वर्णित)।

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धारा 13 – अश्लील उद्देश्यों के लिए बच्चे का उपयोग

यदि कोई व्यक्ति किसी बच्चे को यौन सुख (sexual gratification) के उद्देश्य से किसी भी माध्यम (जैसे टीवी कार्यक्रम, विज्ञापन, इंटरनेट, इलेक्ट्रॉनिक या मुद्रित रूप आदि) में उपयोग करता है — चाहे वह निजी उपयोग के लिए हो या प्रसारण/वितरण के लिए — तो वह व्यक्ति बच्चे के अश्लील उपयोग (Use of child for pornographic purposes) का अपराधी माना जाएगा।

इस अपराध में निम्नलिखित कार्य शामिल माने जाते हैं:

  • (a) बच्चे के यौन अंगों का चित्रण या प्रदर्शन
  • (b) बच्चे को किसी वास्तविक या धारा नकली यौन क्रिया (penetration हो या न हो) में दिखाना।
  • (c) बच्चे की अश्लील या अशोभनीय तरीके से प्रस्तुति

स्पष्टीकरण:
“बच्चे का उपयोग” का अर्थ है बच्चे को किसी भी माध्यम (जैसे प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक, कंप्यूटर या अन्य तकनीक) के ज़रिये अश्लील सामग्री के निर्माण, तैयारी, पेशकश, प्रसारण, प्रकाशन, सहायता या वितरण में शामिल करना।

महत्वपूर्ण बिंदु (याद रखने हेतु):

  • किसी भी माध्यम में बच्चे को यौन उद्देश्य से दिखाना = अपराध
  • यौन अंगों का चित्रण, यौन क्रिया में दिखाना, या अश्लील प्रस्तुति शामिल
  • सिर्फ निर्माण ही नहीं, प्रसारण/प्रकाशन/सहायता भी अपराध के दायरे में
  • निजी उपयोग हो या सार्वजनिक – कोई फर्क नहीं पड़ता, ये कानून लागू होगा।

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धारा 14 – अश्लील उद्देश्यों के लिए बच्चे का उपयोग करने के लिए दंड

(1) जो कोई व्यक्ति किसी बच्चे या बच्चों का अश्लील उद्देश्यों से उपयोग करता है, उसे कम से कम 5 वर्ष की कारावास की सजा दी जाएगी, जिसे बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माना भी लगाया जाएगा। यदि यह अपराध दोबारा या बार-बार किया जाता है, तो सजा कम से कम 7 वर्ष की होगी, और जुर्माना भी अनिवार्य होगा।

(2) यदि कोई व्यक्ति अश्लील उद्देश्यों से बच्चे के उपयोग के साथ-साथ प्रत्यक्ष रूप से धारा 3, 5, 7 या 9 में वर्णित अपराध भी करता है (जैसे – भेदन यौन उत्पीड़न, उग्र भेदन यौन उत्पीड़न, साधारण या उग्र यौन उत्पीड़न), तो उसे केवल धारा 14 के अंतर्गत नहीं, बल्कि संबंधित धाराओं की सजा भी अलग से दी जाएगी — अर्थात:

  • धारा 3 के लिए सजा – धारा 4 के तहत
  • धारा 5 के लिए – धारा 6 के तहत
  • धारा 7 के लिए – धारा 8 के तहत
  • धारा 9 के लिए – धारा 10 के तहत

महत्वपूर्ण बिंदु (याद रखने हेतु):

  • पहली बार अपराध: न्यूनतम 5 वर्ष की सजा + जुर्माना
  • दोबारा अपराध: न्यूनतम 7 वर्ष की सजा + जुर्माना
  • यदि यौन अपराध भी शामिल हैं, तो उनकी सजा अतिरिक्त रूप से दी जाएगी
  • यह सख्त प्रावधान इसलिए है क्योंकि अश्लीलता और यौन अपराध दोनों के साथ बच्चे का शोषण अत्यंत गंभीर माना गया है।

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धारा 15 – बच्चे से संबंधित अश्लील सामग्री संग्रहित (Storage) करने के लिए दंड

(1) यदि कोई व्यक्ति किसी भी रूप में बच्चे से संबंधित अश्लील सामग्री अपने पास रखता है या संग्रह करता है, और उसे हटाता (delete) या नष्ट नहीं करता, और निश्चित प्राधिकरण (जैसे पुलिस आदि) को रिपोर्ट नहीं करता, तथा इसका उद्देश्य उसे साझा या प्रसारित करना है, तो उस पर कम से कम ₹5000 का जुर्माना लगेगा। यदि यह अपराध दूसरी बार या बार-बार किया गया हो, तो कम से कम ₹10,000 का जुर्माना लगेगा।

(2) यदि कोई व्यक्ति इस तरह की सामग्री को प्रसारित, प्रचारित, प्रदर्शित या वितरित करने के लिए अपने पास रखता है — रिपोर्टिंग या न्यायालय में साक्ष्य देने के उद्देश्य को छोड़कर — तो उसे अधिकतम 3 वर्ष की कारावास, जुर्माना, या दोनों की सजा दी जा सकती है।

(3) यदि कोई व्यक्ति इस सामग्री को व्यावसायिक (commercial) उद्देश्य से संग्रह करता है, तो:

  • पहली बार अपराध पर: 3 वर्ष से 5 वर्ष तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों
  • दूसरी बार या आगे भी अपराध करने पर: 5 वर्ष से 7 वर्ष तक की कारावास, और जुर्माना अनिवार्य होगा।

महत्वपूर्ण बिंदु (याद रखने हेतु):

  • केवल संग्रह करना और रिपोर्ट न करना = ₹5000 से ₹10,000 तक का जुर्माना
  • प्रसारण, प्रचार, वितरण के लिए संग्रह = अधिकतम 3 साल की सजा
  • व्यावसायिक उद्देश्य से संग्रह = 3 से 7 साल की सजा + जुर्माना
  • रिपोर्टिंग या कोर्ट में सबूत देने के लिए संग्रह को छोड़कर, किसी भी अन्य उद्देश्य से संग्रह गंभीर अपराध माना जाएगा।

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धारा 16 – अपराध के लिए उकसाना (Abetment of an Offence)

कोई व्यक्ति अपराध का उकसावे (abetment) का दोषी तब माना जाता है जब वह निम्नलिखित में से कोई कार्य करता है:

पहला – किसी अन्य व्यक्ति को अपराध करने के लिए उकसाता है

दूसरा – एक या अधिक व्यक्तियों के साथ साज़िश (conspiracy) करता है उस अपराध को करने के लिए, और उस साज़िश के अंतर्गत कोई कार्य या गैरकानूनी चूक होती है।

तीसरा – जानबूझकर किसी कार्य या गैरकानूनी चूक के ज़रिये अपराध करने में सहायता करता है

व्याख्या 1:
यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर गलत जानकारी देता है या कोई महत्वपूर्ण तथ्य छुपाता है, जिसे बताना उसका कर्तव्य था, और इसके कारण कोई कार्य कराया जाता है या कराया जाने का प्रयास होता है, तो उसे उकसावा देना माना जाएगा।

व्याख्या 2:
जो कोई अपराध होने से पहले या उसके समय पर कोई ऐसा कार्य करता है जिससे अपराध करना आसान या संभव हो जाए, वह व्यक्ति अपराध में सहायता करने वाला माना जाएगा।

व्याख्या 3:
जो कोई व्यक्ति बच्चे को धमकी, बल प्रयोग, जबरदस्ती, अपहरण, धोखा, शक्ति या स्थिति का दुरुपयोग, पैसे या लाभ देकर या लेकर किसी अपराध के लिए रखता, छुपाता, लाता या ले जाता है, वह व्यक्ति भी अपराध में सहायता करने वाला माना जाएगा।

महत्वपूर्ण बिंदु (याद रखने हेतु):

  • उकसाना, साज़िश रचना, या सहायता करना = अपराध का उकसावा
  • जानबूझकर तथ्य छुपाना या गलत बताना = उकसावे में शामिल
  • किसी भी माध्यम से अपराध को आसान बनाना = aiding the offence
  • बच्चे की तस्करी या जबरन उपयोग (force, fraud, threat) = aiding under this Act

इस धारा का उद्देश्य यह है कि सिर्फ मुख्य अपराधी ही नहीं, बल्कि जो लोग परोक्ष रूप से अपराध में भूमिका निभाते हैं, उन्हें भी उत्तरदायी ठहराया जाए।

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धारा 17 – उकसावे के लिए दंड

यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम (POCSO Act) के अंतर्गत किसी अपराध के लिए उकसाता है, और उस उकसावे के परिणामस्वरूप वह अपराध हो जाता है, तो उसे उसी अपराध के लिए निर्धारित सजा दी जाएगी।
स्पष्टीकरण: किसी अपराध को उकसावे का परिणाम तब माना जाता है जब वह अपराध उकसावे, साज़िश के पालन में, या किए गए सहयोग के कारण किया गया हो — और यही उकसावे की श्रेणी में आता है।

याद रखने योग्य बात:
जिसने अपराध नहीं किया लेकिन उसे उकसाया, और अगर वह अपराध वास्तव में हो गया — तो उसे उसी सजा का भागी माना जाएगा जैसे अपराध करने वाले को।

धारा 18 – अपराध करने के प्रयास के लिए दंड

यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम (POCSO Act) के अंतर्गत किसी दंडनीय अपराध को करने या करवाने का प्रयास करता है, और उस प्रयास में कोई ऐसा कार्य करता है जो उस अपराध को अंजाम देने की दिशा में हो, तो उसे उस अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम सजा का आधा तक कारावास, जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है। यह सजा उसी प्रकार की होगी जैसी उस अपराध के लिए निर्धारित है, चाहे वह साधारण हो या कठोर।

याद रखने योग्य बात: अगर अपराध पूरा नहीं हुआ, लेकिन साफ़ तौर पर उसे करने की कोशिश की गई और कोई कार्रवाई की गई, तो उस प्रयास के लिए भी कानूनी सजा का प्रावधान है — जो मुख्य अपराध की सजा का आधा हो सकती है।

धारा 19 – अपराधों की रिपोर्टिंग

इस अधिनियम के अंतर्गत यदि किसी व्यक्ति (यहां तक कि स्वयं बच्चा भी) को यह आशंका हो कि कोई अपराध होने वाला है, या उसे यह ज्ञान हो कि अपराध हो चुका है, तो उसे यह जानकारी अनिवार्य रूप से विशेष किशोर पुलिस इकाई (Special Juvenile Police Unit) या स्थानीय पुलिस को देनी होगी। ऐसी रिपोर्ट को एक एंट्री नंबर देकर लिखित रूप में दर्ज किया जाएगा, उसे सूचना देने वाले को पढ़कर सुनाया जाएगा, और पुलिस इकाई द्वारा रखी जाने वाली विशेष पुस्तिका में दर्ज किया जाएगा। यदि रिपोर्ट बच्चे द्वारा दी गई हो, तो उसे सरल भाषा में दर्ज किया जाएगा ताकि बच्चा उसे समझ सके। यदि रिपोर्ट ऐसी भाषा में दर्ज हो जिसे बच्चा न समझ पाए, तो ज़रूरत पड़ने पर अनुवादक या दुभाषिया की व्यवस्था की जाएगी। यदि पुलिस या विशेष पुलिस इकाई को यह लगता है कि बच्चा देखभाल और संरक्षण की स्थिति में है, तो वे इसे लिखित रूप में दर्ज कर, 24 घंटे के भीतर बच्चे को शेल्टर होम या नज़दीकी अस्पताल में भेजने की व्यवस्था करेंगे। साथ ही, पुलिस को 24 घंटे के भीतर यह मामला बाल कल्याण समिति (CWC) और विशेष न्यायालय (या सेशन न्यायालय) को रिपोर्ट करना होगा, और बताना होगा कि बच्चे को किन कदमों के तहत देखभाल दी जा रही है। यदि कोई व्यक्ति यह सूचना सच्ची नीयत और भलाई के इरादे से देता है, तो उस पर कोई कानूनी (सिविल या आपराधिक) ज़िम्मेदारी नहीं आएगी

याद रखने योग्य बात:

  • जानकारी देना अनिवार्य, चाहे अपराध की आशंका हो या घटना हो चुकी हो
  • बच्चे द्वारा दी गई जानकारी को सरल भाषा में दर्ज किया जाएगा
  • 24 घंटे के भीतर बच्चे की सुरक्षा और न्यायालय को सूचना देना आवश्यक
  • ईमानदारी से दी गई सूचना देने पर कोई ज़िम्मेदारी नहीं लगेगी (सिविल या क्रिमिनल नहीं)
  • पुलिस पर तत्काल देखभाल की व्यवस्था करने की कानूनी ज़िम्मेदारी है

धारा 20 – मीडिया, स्टूडियो और फ़ोटोग्राफिक सुविधाओं की रिपोर्टिंग की बाध्यता

यदि मीडिया, होटल, लॉज, अस्पताल, क्लब, स्टूडियो या फ़ोटोग्राफिक सेवा से जुड़ा कोई भी व्यक्ति – चाहे वहां कितने भी कर्मचारी हों — किसी भी ऐसे सामग्री या वस्तु के संपर्क में आता है जो किसी बच्चे का यौन शोषण दर्शाती है (जैसे कि अश्लील, यौन-सम्बंधित, या अशोभनीय चित्रण), चाहे वह किसी भी माध्यम (जैसे डिजिटल, प्रिंट, वीडियो आदि) से हो, तो उस व्यक्ति की कानूनी जिम्मेदारी है कि वह यह सूचना विशेष किशोर पुलिस इकाई (Special Juvenile Police Unit) या स्थानीय पुलिस को तुरंत दे।

याद रखने योग्य बात:

  • मीडिया, होटल, स्टूडियो आदि के किसी भी कर्मचारी को अगर बच्चे के यौन शोषण से जुड़ी सामग्री मिलती है, तो उसे पुलिस को रिपोर्ट करना अनिवार्य है।
  • कर्मचारियों की संख्या कोई मायने नहीं रखती – यह नियम सभी पर लागू होता है।
  • सूचना न देने पर संबंधित व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है

धारा 21 – अपराध की रिपोर्ट या रिकॉर्ड न करने पर दंड

यदि कोई व्यक्ति धारा 19(1) या धारा 20 के तहत अपराध की रिपोर्ट करने में असफल रहता है, या फिर धारा 19(2) के तहत उचित तरीके से अपराध को दर्ज नहीं करता, तो उसे छह माह तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों की सजा दी जा सकती है। यदि कोई व्यक्ति किसी कंपनी या संस्था का प्रभारी है और उसके नियंत्रण में कार्यरत व्यक्ति द्वारा किए गए अपराध की रिपोर्ट नहीं करता, तो उसे एक वर्ष तक की कारावास और जुर्माना दोनों से दंडित किया जा सकता है। हालांकि, यह दंडात्मक प्रावधान किसी बच्चे पर लागू नहीं होगा, यानी अगर बच्चा रिपोर्ट नहीं करता तो उस पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होगी।

याद रखने योग्य बात:

  • अपराध की रिपोर्ट या रिकॉर्ड न करना = 6 माह तक की सजा या जुर्माना या दोनों
  • प्रभारी व्यक्ति द्वारा अधीनस्थ के अपराध की रिपोर्ट न करना = 1 वर्ष तक की सजा + जुर्माना
  • बच्चों को इससे छूट प्राप्त है, उन पर यह जिम्मेदारी नहीं है।

धारा 22 – झूठी शिकायत या झूठी सूचना देने पर दंड

यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर झूठी शिकायत या झूठी सूचना देता है कि किसी व्यक्ति ने धारा 3, 5, 7 या 9 के अंतर्गत अपराध किया है, और उसका उद्देश्य सिर्फ अपमानित करना, डराना, ब्लैकमेल करना या बदनाम करना है, तो उसे छह महीने तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों की सजा दी जा सकती है। लेकिन यदि यह झूठी शिकायत किसी बच्चे द्वारा की गई है, तो उस बच्चे को कोई सजा नहीं दी जाएगी। वहीं, यदि कोई बालक नहीं है और वह जानबूझकर किसी बच्चे के खिलाफ झूठी शिकायत करता है जिससे वह बच्चा इस अधिनियम के अंतर्गत अपराध का झूठा शिकार बनता है, तो उसे एक साल तक की कारावास, या जुर्माना, या दोनों की सजा दी जा सकती है।

याद रखने योग्य बात:

  • झूठी शिकायत (धारा 3, 5, 7, 9) = 6 महीने तक की सजा + जुर्माना
  • बच्चे द्वारा की गई झूठी शिकायत पर कोई सजा नहीं
  • अगर कोई बच्चे के खिलाफ झूठी शिकायत करता है, तो 1 साल तक की सजा + जुर्माना

धारा 23 – मीडिया के लिए प्रक्रिया

किसी भी व्यक्ति को यह अनुमति नहीं है कि वह मीडिया, स्टूडियो या फ़ोटोग्राफिक साधनों से किसी बच्चे की कोई रिपोर्ट या टिप्पणी प्रस्तुत करे, जब तक पूरी और प्रामाणिक जानकारी न हो — विशेषकर यदि इससे बच्चे की प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचे या उसकी निजता का उल्लंघन हो। किसी भी मीडिया रिपोर्ट में बच्चे की पहचान उजागर नहीं की जा सकती, जैसे उसका नाम, पता, फोटो, पारिवारिक जानकारी, स्कूल, पड़ोस आदि, जब तक कि विशेष न्यायालय लिखित रूप में यह न माने कि ऐसा करना बच्चे के हित में है। किसी मीडिया संस्था, स्टूडियो या फ़ोटोग्राफिक सुविधा के मालिक या प्रकाशक को अपने कर्मचारी द्वारा की गई गलती या चूक के लिए पूरी जिम्मेदारी उठानी होगी। यदि कोई व्यक्ति इन नियमों का उल्लंघन करता है, तो उसे कम से कम 6 महीने और अधिकतम 1 वर्ष तक की सजा, या जुर्माना, या दोनों से दंडित किया जा सकता है।

याद रखने योग्य बात:

  • बिना सत्य जानकारी के बच्चे पर रिपोर्ट = अपराध
  • बच्चे की पहचान उजागर करना निषिद्ध, जब तक विशेष न्यायालय अनुमति न दे
  • मालिक और कर्मचारी दोनों उत्तरदायी होंगे
  • उल्लंघन पर 6 महीने से 1 वर्ष तक की सजा + जुर्माना

धारा 24 – बच्चे का बयान दर्ज करने की प्रक्रिया

बच्चे का बयान उसके घर पर, या जहां वह सामान्यतः रहता है, या उसके पसंद की किसी सुरक्षित जगह पर दर्ज किया जाएगा, और इसे यथासंभव सब-इंस्पेक्टर या ऊपर रैंक की महिला पुलिस अधिकारी द्वारा लिया जाएगा। बयान दर्ज करते समय पुलिस अधिकारी वर्दी में नहीं होगा, ताकि बच्चा असहज न महसूस करे। जांच करने वाला अधिकारी यह सुनिश्चित करेगा कि बच्चे का आरोपी से किसी भी प्रकार का सामना न हो। किसी भी स्थिति में बच्चे को रात में थाने में नहीं रोका जाएगा। साथ ही, पुलिस यह सुनिश्चित करेगी कि बच्चे की पहचान मीडिया से पूरी तरह गोपनीय रखी जाए, जब तक कि विशेष न्यायालय यह निर्देश न दे कि बच्चे के हित में उसकी पहचान उजागर की जा सकती है।

याद रखने योग्य बात:

  • बयान घर या बच्चे की पसंद की जगह पर होगा
  • महिला सब-इंस्पेक्टर या ऊपर अधिकारी द्वारा (यदि संभव हो) और बिना वर्दी के
  • बच्चे और आरोपी के बीच कोई संपर्क नहीं होना चाहिए
  • रात में थाने में रोका नहीं जा सकता
  • पहचान मीडिया से गोपनीय रखना अनिवार्य

धारा 25 – मजिस्ट्रेट द्वारा बच्चे का बयान दर्ज करना

यदि बच्चे का बयान दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 164 के अंतर्गत दर्ज किया जा रहा हो, तो मजिस्ट्रेट को बच्चे द्वारा जैसे बोला गया है, वैसा ही बयान दर्ज करना होगा, चाहे CrPC में कुछ भी लिखा हो। साथ ही, CrPC की धारा 164(1) के पहले प्रावधान में जहां आरोपी के वकील की उपस्थिति की अनुमति दी गई है, वह POCSO मामलों में लागू नहीं होगी, यानी बच्चे का बयान दर्ज करते समय आरोपी के वकील की उपस्थिति नहीं होगी। जब पुलिस द्वारा अंतिम रिपोर्ट CrPC की धारा 173 के तहत दाखिल की जाती है, तो मजिस्ट्रेट को बच्चे और उसके माता-पिता या उसके प्रतिनिधि को CrPC की धारा 207 में उल्लिखित दस्तावेजों की प्रति देनी होगी।

याद रखने योग्य बात:

  • बच्चे के शब्दों में बयान दर्ज किया जाएगा
  • आरोपी का वकील मौजूद नहीं रहेगा
  • अंतिम रिपोर्ट के बाद जरूरी दस्तावेजों की प्रति बच्चे व उसके परिवार को मिलनी चाहिए

धारा 26 – बच्चे का बयान दर्ज करने से संबंधित अतिरिक्त प्रावधान

जब भी मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी बच्चे का बयान दर्ज करे, तो वह बयान बच्चे के माता-पिता या किसी ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति में लिया जाएगा जिस पर बच्चा विश्वास करता हो। यदि ज़रूरत हो, तो वे अनुवादक या दुभाषिया की मदद ले सकते हैं, निर्धारित योग्यता और शुल्क के अनुसार। यदि बच्चा मानसिक या शारीरिक रूप से दिव्यांग हो, तो मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी को विशेष शिक्षक, बच्चे की संप्रेषण शैली से परिचित व्यक्ति, या उस क्षेत्र के विशेषज्ञ की सहायता लेनी चाहिए। साथ ही, जहां भी संभव हो, बच्चे का बयान ऑडियो-वीडियो रिकॉर्डिंग के माध्यम से भी दर्ज किया जाना चाहिए, ताकि प्रक्रिया पारदर्शिता और प्रमाणिकता के साथ पूरी हो।

याद रखने योग्य बात:-

  • बयान विश्वासी व्यक्ति की उपस्थिति में होगा
  • ज़रूरत पर अनुवादक/दुभाषिया/विशेषज्ञ की सहायता
  • दिव्यांग बच्चों के लिए विशेष सहायता अनिवार्य
  • जहां संभव हो, बयान को ऑडियो-वीडियो माध्यम से रिकॉर्ड किया जाना चाहिए

धारा 27 – बच्चे की चिकित्सकीय जांच

यदि किसी बच्चे के साथ इस अधिनियम के अंतर्गत कोई अपराध हुआ हो, तो उसकी चिकित्सकीय जांच (medical examination) एफआईआर या शिकायत दर्ज हुए बिना भी की जा सकती है, और यह जांच CrPC की धारा 164A के अनुसार की जाएगी। यदि पीड़ित बच्ची है, तो उसकी जांच महिला डॉक्टर द्वारा ही की जानी अनिवार्य है। यह जांच बच्चे के माता-पिता या किसी ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति में की जाएगी जिस पर बच्चा विश्वास करता हो। यदि किसी कारणवश न तो माता-पिता और न ही विश्वासी व्यक्ति मौजूद हो सके, तो यह जांच चिकित्सकीय संस्थान के प्रमुख द्वारा नियुक्त किसी महिला की उपस्थिति में कराई जाएगी।

याद रखने योग्य बात:

  • एफआईआर न हो फिर भी मेडिकल जांच हो सकती है
  • बच्ची की जांच महिला डॉक्टर द्वारा अनिवार्य
  • बच्चे की उपस्थिति में विश्वासी व्यक्ति होना जरूरी
  • यदि कोई विश्वासी मौजूद न हो सके तो मेडिकल संस्थान की महिला प्रतिनिधि को उपस्थित किया जाएगा

धारा 28 – विशेष न्यायालय (Special Courts) का नामांकन

इस अधिनियम के तहत मामलों की तेज़ सुनवाई सुनिश्चित करने के लिए, राज्य सरकार को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श कर प्रत्येक ज़िले में एक सत्र न्यायालय (Court of Session) को विशेष न्यायालय (Special Court) के रूप में राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नामित करना होगा। यदि पहले से ही कोई सत्र न्यायालय बाल अधिकार संरक्षण आयोग अधिनियम, 2005 के तहत बाल न्यायालय के रूप में अधिसूचित है, या अन्य किसी कानून के तहत इसी प्रकार के उद्देश्य से नामित है, तो वह न्यायालय इस अधिनियम के तहत विशेष न्यायालय माना जाएगा। विशेष न्यायालय इस अधिनियम के तहत अपराधों की सुनवाई करते समय, आरोपी पर यदि CrPC के तहत कोई अन्य अपराध भी लागू होता है, तो वह भी उसी मुकदमे में सुन सकता है। साथ ही, यह विशेष न्यायालय, चाहे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 में कुछ भी कहा गया हो, IT Act की धारा 67B के अंतर्गत बच्चों से संबंधित यौन स्पष्ट सामग्री के प्रकाशन या प्रसारण से जुड़े अपराधों की भी सुनवाई कर सकता है।

याद रखने योग्य बात:

  • हर ज़िले में विशेष न्यायालय नियुक्त किया जाएगा
  • पहले से बने बाल न्यायालय या समान उद्देश्य वाले न्यायालय को ही विशेष न्यायालय माना जाएगा
  • अन्य जुड़े अपराधों की भी सुनवाई एक साथ हो सकती है
  • बच्चों से संबंधित ऑनलाइन यौन शोषण (IT Act, 67B) के मामलों पर भी विशेष न्यायालय को अधिकार होगा

 

धारा 29 – कुछ विशेष अपराधों के संबंध में दोष का अनुमान

यदि किसी व्यक्ति पर इस अधिनियम की धारा 3, 5, 7 या 9 के अंतर्गत कोई अपराध करने, उसमें सहायक होने (उकसाने), या उसका प्रयास करने का अभियोग लगाया गया हो, तो विशेष न्यायालय यह मान कर चलेगा कि उस व्यक्ति ने अपराध किया है, जब तक कि वह स्वयं यह साबित न कर दे कि उसने ऐसा नहीं किया

याद रखने योग्य बात:

  • धारा 3 (दुष्कर्म), 5 (गंभीर दुष्कर्म), 7 (यौन शोषण), 9 (गंभीर यौन शोषण) के मामलों में
  • अदालत मान लेगी कि आरोपी ने अपराध किया है
  • आरोपी को अपने निर्दोष होने का प्रमाण देना होगा
  • यह कानून में एक विशेष presumption (अनुमान) है, जो बच्चों की सुरक्षा के हित में है

धारा 30 – दोषपूर्ण मानसिक अवस्था (Culpable Mental State) का अनुमान

इस अधिनियम के किसी भी अपराध की सुनवाई में, यदि उस अपराध में आरोपी की मानसिक दोषपूर्ण अवस्था (culpable mental state) आवश्यक हो, तो विशेष न्यायालय यह मान लेगा कि आरोपी में वह मानसिक अवस्था थी। हालांकि, आरोपी को यह सिद्ध करने का अवसर मिलेगा कि उस विशेष कृत्य के समय उसके पास ऐसी कोई मानसिक अवस्था नहीं थी। इस धारा के अनुसार, कोई तथ्य तभी सिद्ध माना जाएगा जब न्यायालय उसे संदेह से परे सही माने, न कि केवल संभावना के आधार पर।

व्याख्या:
दोषपूर्ण मानसिक अवस्था” का अर्थ है – इरादा, उद्देश्य (motive), किसी तथ्य का ज्ञान, या किसी तथ्य में विश्वास या उसे सही मानने का कारण

याद रखने योग्य बात:

  • यदि अपराध के लिए मानसिक दोष की आवश्यकता है, तो अदालत मान लेगी कि वह दोष मौजूद था
  • आरोपी को स्वयं यह साबित करना होगा कि उसकी मानसिक अवस्था निर्दोष थी
  • तथ्य केवल तब साबित माना जाएगा जब वह संदेह से परे सत्य प्रतीत हो
  • इसमें इरादा, जानकारी, उद्देश्य और विश्वास सभी शामिल हैं

धारा 31 – विशेष न्यायालय की कार्यवाही में दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) का प्रयोग

जब तक इस अधिनियम में अन्यथा न कहा गया हो, विशेष न्यायालय में चल रही कार्यवाहियों पर दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की सभी धाराएं, जमानत और बॉन्ड से संबंधित प्रावधानों सहित, पूर्ण रूप से लागू होंगी। इस अधिनियम के तहत, विशेष न्यायालय को सत्र न्यायालय (Court of Sessions) माना जाएगा, और जो व्यक्ति विशेष न्यायालय में अभियोजन (prosecution) करता है, उसे लोक अभियोजक (Public Prosecutor) माना जाएगा।

याद रखने योग्य बात:

  • CrPC की सभी प्रक्रियाएं विशेष न्यायालय पर लागू होंगी
  • इसमें जमानत, बॉन्ड आदि भी शामिल हैं
  • विशेष न्यायालय को सत्र न्यायालय की तरह माना जाएगा
  • मुकदमा लड़ने वाला अभियोजक, लोक अभियोजक माना जाएगा

धारा 32 – विशेष लोक अभियोजक (Special Public Prosecutors)

राज्य सरकार को यह आवश्यक है कि वह प्रत्येक विशेष न्यायालय के लिए, केवल इस अधिनियम के अंतर्गत मामलों के संचालन हेतु, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा एक विशेष लोक अभियोजक नियुक्त करे। कोई व्यक्ति तभी विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किया जा सकता है, यदि उसने कम से कम 7 वर्षों तक अधिवक्ता के रूप में कार्य किया हो। इस धारा के तहत नियुक्त हर विशेष लोक अभियोजक को दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 2(u) के अनुसार लोक अभियोजक (Public Prosecutor) माना जाएगा, और CrPC के प्रावधान उसी अनुसार लागू होंगे।

याद रखने योग्य बात:

  • हर विशेष न्यायालय के लिए विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति अनिवार्य
  • न्यूनतम 7 वर्ष का वकालत का अनुभव जरूरी
  • नियुक्त विशेष लोक अभियोजक को CrPC के तहत लोक अभियोजक माना जाएगा

 

धारा 33 – विशेष न्यायालय की प्रक्रिया और शक्तियां

विशेष न्यायालय, बिना आरोपी को उसके समक्ष प्रस्तुत किए भी, प्रत्यक्ष शिकायत या पुलिस रिपोर्ट के आधार पर अपराध का संज्ञान ले सकता है

बच्चे की गवाही (मुख्य परीक्षा, जिरह या पुनः परीक्षा) के दौरान, प्रश्न पहले विशेष लोक अभियोजक या आरोपी के वकील द्वारा न्यायालय को दिए जाएंगे, और कोर्ट ही उन प्रश्नों को बच्चे से पूछेगी

यदि आवश्यक लगे तो बच्चे को सुनवाई के दौरान बार-बार विश्राम दिया जा सकता है। न्यायालय को बच्चे के लिए अनुकूल वातावरण बनाना होगा, जिसमें कोई विश्वासी परिजन या मित्र उसकी उपस्थिति में कोर्ट में रह सकता है।

बच्चे को बार-बार गवाही के लिए न बुलाया जाए, इसका विशेष ध्यान रखा जाएगा। बच्चे से आक्रामक प्रश्न या चरित्र हनन वाले प्रश्न नहीं पूछे जाएंगे, और उसकी गरिमा की रक्षा की जाएगी

बच्चे की पहचान को जांच और सुनवाई के दौरान गुप्त रखा जाएगा, जब तक कि विशेष न्यायालय लिखित कारणों सहित यह न माने कि पहचान उजागर करना बच्चे के हित में है

यहां पहचान में स्कूल, परिवार, पड़ोस आदि से जुड़ी सभी जानकारियां शामिल हैं। विशेष मामलों में, न्यायालय दंड के साथ-साथ बच्चे को मानसिक या शारीरिक पीड़ा अथवा पुनर्वास हेतु क्षतिपूर्ति देने का भी आदेश दे सकता है।

यह न्यायालय सत्र न्यायालय के सभी अधिकार रखता है और CrPC के तहत सत्र न्यायालय की प्रक्रिया के अनुसार मुकदमा चलाता है

याद रखने योग्य बात:

  • कोर्ट स्वयं अपराध का सीधा संज्ञान ले सकता है
  • प्रश्नों को कोर्ट के माध्यम से ही बच्चे से पूछा जाएगा
  • बच्चे के लिए आराम, सुरक्षित माहौल और गरिमा की रक्षा जरूरी
  • पहचान गोपनीय रखना अनिवार्य, जब तक कोर्ट लिखित रूप से अनुमति न दे
  • सजा के अलावा मुआवज़ा भी दिया जा सकता है
  • कोर्ट को सत्र न्यायालय जैसे सभी अधिकार प्राप्त हैं

 

धारा 34 – बच्चे द्वारा अपराध किए जाने की स्थिति में प्रक्रिया एवं आयु निर्धारण

यदि इस अधिनियम के अंतर्गत कोई अपराध किसी बच्चे द्वारा किया गया हो, तो ऐसे बच्चे के साथ जुवेनाइल जस्टिस (बाल न्याय) अधिनियम, 2015 के प्रावधानों के अनुसार व्यवहार किया जाएगा। यदि विशेष न्यायालय में यह प्रश्न उठता है कि कोई व्यक्ति वास्तव में बच्चा है या नहीं, तो न्यायालय उसकी आयु की पुष्टि करके स्वयं यह निर्णय लेगा और उस निर्णय का कारण लिखित रूप में दर्ज करेगा। यदि बाद में यह साबित हो जाए कि न्यायालय द्वारा तय की गई उम्र गलत थी, तो भी उस आधार पर न्यायालय का निर्णय अमान्य नहीं माना जाएगा

याद रखने योग्य बात:

  • बच्चे द्वारा अपराध की स्थिति में जुवेनाइल जस्टिस एक्ट, 2015 लागू होगा
  • बच्चे की आयु पर विवाद हो तो विशेष न्यायालय खुद जांच कर निर्णय लेगा
  • आयु संबंधी त्रुटि के बावजूद न्यायालय का आदेश अमान्य नहीं होगा

धारा 35 – बच्चे की गवाही दर्ज करने और मुकदमे के निपटारे की समय-सीमा

जब विशेष न्यायालय किसी अपराध का संज्ञान लेता है, तो बच्चे की गवाही 30 दिनों के भीतर दर्ज की जानी चाहिए। यदि इसमें देरी होती है, तो विशेष न्यायालय को इसके कारण लिखित रूप में दर्ज करने होंगे। इसके अलावा, न्यायालय को पूरे मुकदमे की सुनवाई, संभव हो तो, एक वर्ष के भीतर पूरी करनी चाहिए, जिसकी गणना संज्ञान लेने की तिथि से की जाएगी

याद रखने योग्य बात:

  • गवाही 30 दिन में दर्ज होनी चाहिए, नहीं तो देरी का कारण दर्ज करना होगा
  • संपूर्ण मुकदमा 1 साल में निपटाने का प्रयास अनिवार्य है

 

धारा 36 – गवाही देते समय बच्चे को आरोपी से सामना नहीं कराना

जब बच्चे की गवाही रिकॉर्ड की जा रही हो, तो विशेष न्यायालय यह सुनिश्चित करेगा कि बच्चे का किसी भी प्रकार से आरोपी से आमना-सामना न हो। साथ ही, यह भी सुनिश्चित किया जाएगा कि आरोपी बच्चे की गवाही को सुन सके और अपने वकील से संवाद कर सके। इसके लिए विशेष न्यायालय वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, एकतरफा शीशे, परदों या अन्य किसी उपयुक्त माध्यम का उपयोग कर सकता है।

याद रखने योग्य बात:

  • बच्चे का आरोपी से आमना-सामना नहीं होगा
  • आरोपी को गवाही सुनने और अपने वकील से बात करने का अधिकार रहेगा
  • गवाही के लिए तकनीकी या भौतिक माध्यमों (जैसे वीडियो, परदा आदि) का प्रयोग किया जा सकता है

धारा 37 – बंद कमरे में (इन कैमरा) सुनवाई

विशेष न्यायालय द्वारा सभी मामलों की सुनवाई बंद कमरे में (in camera) की जाएगी, और उसमें बच्चे के माता-पिता या कोई ऐसा व्यक्ति जिसे बच्चा विश्वास करता हो, उसकी उपस्थिति अनिवार्य होगी।
यदि न्यायालय यह माने कि बच्चे की गवाही कोर्ट के बाहर किसी अन्य स्थान पर ली जानी चाहिए, तो वह दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 284 के अनुसार कमिशन जारी कर गवाही की प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकता है

याद रखने योग्य बात:

  • सुनवाई इन कैमरा (बंद कमरे में) होगी
  • बच्चे के माता-पिता या विश्वसनीय व्यक्ति की उपस्थिति आवश्यक
  • आवश्यकता पड़ने पर कोर्ट से बाहर भी गवाही हो सकती है (कमिशन के माध्यम से)

धारा 38 – बच्चे की गवाही दर्ज करते समय दुभाषिए या विशेषज्ञ (interpreter or expert ) की सहायता

जब आवश्यक हो, तो विशेष न्यायालय बच्चे की गवाही दर्ज करते समय किसी अनुवादक या दुभाषिए की सहायता ले सकता है, जिसकी योग्यता, अनुभव तथा निर्धारित शुल्क अनुसार नियुक्ति की जाएगी।
यदि बच्चे को मानसिक या शारीरिक अक्षमता है, तो न्यायालय विशेष शिक्षक (special educator) या ऐसे किसी व्यक्ति या विशेषज्ञ की सहायता ले सकता है जो बच्चे के संवाद के तरीके से परिचित हो, ताकि उसकी गवाही ठीक से दर्ज की जा सके।

याद रखने योग्य बात:

  • आवश्यक होने पर दुभाषिए या अनुवादक की सहायता ली जा सकती है
  • विकलांगता होने पर विशेष शिक्षक या विशेषज्ञ की मदद से गवाही दर्ज की जाएगी
  • इनकी नियुक्ति अनुभव, योग्यता और निर्धारित शुल्क के आधार पर होगी

धारा 39 – बच्चे को विशेषज्ञों आदि की सहायता देने हेतु दिशानिर्देश

राज्य सरकार, निर्धारित नियमों के अधीन, ऐसे दिशानिर्देश तैयार करेगी जिनके तहत गैर-सरकारी संगठनों, पेशेवरों, विशेषज्ञों या मनोविज्ञान, समाज कार्य, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य, तथा बाल विकास के जानकार व्यक्तियों की सहायता ली जा सकेगी। ये लोग मुकदमे की पूर्व-चरण (pre-trial) और सुनवाई के दौरान (trial stage) बच्चे की मदद करने के लिए जुड़े रहेंगे

याद रखने योग्य बात:

  • राज्य सरकार दिशानिर्देश बनाएगी
  • मनोवैज्ञानिक, सामाजिक कार्यकर्ता, स्वास्थ्य विशेषज्ञ आदि की मदद ली जाएगी
  • ये सहायता पूर्व-शुरुआती और सुनवाई के समय बच्चे को उपलब्ध कराई जाएगी

धारा 40 – बच्चे को विधिक सहायता (वकील) लेने का अधिकार

CrPC की धारा 301 के प्रावधानों के अधीन, बच्चे का परिवार या अभिभावक इस अधिनियम के अंतर्गत किसी भी अपराध में अपनी पसंद का वकील रख सकते हैं
यदि परिवार या अभिभावक वकील रखने में असमर्थ हैं, तो उन्हें विधिक सेवा प्राधिकरण (Legal Services Authority) द्वारा निशुल्क वकील उपलब्ध कराया जाएगा

याद रखने योग्य बात:

  • बच्चे के परिवार को अपनी पसंद का वकील रखने का अधिकार है
  • आर्थिक रूप से कमजोर होने पर सरकार निशुल्क वकील उपलब्ध कराएगी

धारा 41 – कुछ मामलों में धाराओं 3 से 13 लागू नहीं होंगी

यदि किसी बच्चे की चिकित्सकीय जांच या इलाज उसके माता-पिता या अभिभावक की सहमति से किया जा रहा हो, तो ऐसी स्थिति में धारा 3 से 13 तक के प्रावधान लागू नहीं होंगे

याद रखने योग्य बात:

  • माता-पिता/अभिभावक की सहमति से की गई मेडिकल जांच या इलाज पर यौन अपराध संबंधी धाराएं (3 से 13) लागू नहीं होंगी
  • इसका उद्देश्य वैध चिकित्सा उपचार को अपराध की श्रेणी से बाहर रखना है।

धारा 42 – वैकल्पिक दंड (Alternative Punishment)

यदि किसी कार्य या चूक (act or omission) से ऐसा अपराध होता है जो इस अधिनियम के अंतर्गत और साथ ही भारतीय दंड संहिता (IPC) की धाराओं 166A, 354A, 354B, 354C, 354D, 370, 370A, 375, 376, 376A, 376AB, 376B, 376C, 376D, 376DA, 376DB, 376E, धारा 509 IPC या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 67B के अंतर्गत भी दंडनीय है, तो ऐसी स्थिति में आरोपी को केवल उसी कानून के तहत दंड दिया जाएगा जिसमें दंड अधिक है

याद रखने योग्य बात:

  • अपराध यदि POCSO अधिनियम और IPC/IT अधिनियम दोनों में आता हो,
  • तो उस कानून के तहत दंड मिलेगा जहां सजा अधिक कठोर हो
  • इसका उद्देश्य दोहरी सजा से बचाव करते हुए अधिकतम दंड सुनिश्चित करना है।

धारा 42A – अन्य कानूनों के हनन में नहीं (Act not in derogation of any other law)

इस अधिनियम के प्रावधान किसी अन्य प्रचलित कानून के प्रावधानों के अतिरिक्त हैं, न कि उनके विरुद्ध। यदि इस अधिनियम और किसी अन्य कानून के प्रावधानों में कोई असंगति (inconsistency) हो, तो इस अधिनियम के प्रावधान प्रभावी रहेंगे, लेकिन केवल उस सीमा तक जहाँ तक वह असंगति है

याद रखने योग्य बात:

  • POCSO अधिनियम किसी अन्य कानून को खत्म नहीं करता, बल्कि उसे पूरक रूप से लागू होता है
  • यदि कोई टकराव होता है, तो POCSO अधिनियम के प्रावधानों को प्राथमिकता दी जाएगी

धारा 43 – अधिनियम के बारे में सार्वजनिक जागरूकता

केंद्र सरकार और प्रत्येक राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए सभी आवश्यक कदम उठाएंगी कि—

(a) इस अधिनियम के प्रावधानों की टीवी, रेडियो, प्रिंट मीडिया आदि के माध्यम से नियमित रूप से व्यापक प्रचार-प्रसार किया जाए, ताकि सामान्य जनता, बच्चे, उनके माता-पिता और अभिभावक इस अधिनियम के बारे में जागरूक हो सकें

(b) केंद्र व राज्य सरकारों के अधिकारी और अन्य संबंधित व्यक्ति (जैसे पुलिस अधिकारी) को इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने से संबंधित समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाए

याद रखने योग्य बात:

  • सरकारों की जागरूकता फैलाने की जिम्मेदारी
  • मीडिया के माध्यम से प्रचार और
  • सरकारी अधिकारियों को नियमित प्रशिक्षण अनिवार्य

धारा 44 – अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) या राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग (SCPCR), जिन्हें Commissions for Protection of Child Rights Act, 2005 के तहत गठित किया गया है, इस अधिनियम के अंतर्गत निम्नलिखित कार्य करेंगे—

(1) ये आयोग POCSO अधिनियम के प्रावधानों के कार्यान्वयन की निगरानी करेंगे, जैसा कि नियमों में निर्धारित किया गया है, और यह कार्य उनके अन्य कर्तव्यों के अतिरिक्त होगा।

(2) इन आयोगों को किसी भी अपराध की जांच करते समय वही अधिकार प्राप्त होंगे जो उन्हें 2005 के अधिनियम के अंतर्गत मिले हैं (जैसे समन जारी करना, गवाही लेना आदि)।

(3) ये आयोग अपने इस कार्य से संबंधित सभी गतिविधियों को अपनी वार्षिक रिपोर्ट में शामिल करेंगे, जैसा कि 2005 के अधिनियम की धारा 16 में कहा गया है।

याद रखने योग्य बात:

  • NCPCR/SCPCR को निगरानी की जिम्मेदारी दी गई है
  • उन्हें जांच के कानूनी अधिकार प्राप्त हैं
  • सालाना रिपोर्ट में POCSO कार्यान्वयन की जानकारी देना आवश्यक है

धारा 45 – नियम बनाने की शक्ति

(1) केंद्र सरकार इस अधिनियम के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए राजपत्र में अधिसूचना द्वारा नियम बना सकती है

(2) विशेष रूप से, लेकिन सामान्य अधिकारों को प्रभावित किए बिना, सरकार निम्नलिखित विषयों पर नियम बना सकती है—
(a) बाल अश्लील सामग्री से संबंधित हटाने, नष्ट करने या रिपोर्ट करने की प्रक्रिया (धारा 15(1));
(aa) बाल अश्लील सामग्री की रिपोर्टिंग की प्रक्रिया (धारा 15(2));
(ab) अनुवादक, दुभाषिया, विशेष शिक्षक या विशेषज्ञों की योग्यता, अनुभव और फीस (धारा 19(4), 26(2)(3), 38);
(b) धारा 19(5) के अंतर्गत बच्चे की देखभाल, सुरक्षा और आपातकालीन चिकित्सा उपचार;
(c) धारा 33(8) के तहत मुआवजा भुगतान की प्रक्रिया;
(d) धारा 44(1) के अंतर्गत अधिनियम के नियमित निरीक्षण की विधि

(3) बनाए गए हर नियम को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाएगा, और यदि दोनों सदन 30 दिनों के भीतर किसी संशोधन या निरस्तीकरण पर सहमत होते हैं, तो नियम उसी रूप में प्रभावी रहेगा या प्रभावहीन माना जाएगा, लेकिन उससे पहले उस नियम के अंतर्गत की गई कोई भी कार्रवाई वैध मानी जाएगी

मुख्य बातें याद रखने के लिए:

  • केंद्र सरकार को नियम बनाने की शक्ति है
  • महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए विस्तृत नियम बन सकते हैं
  • संसद की निगरानी में नियम लागू होते हैं

धारा 46 – कठिनाइयों को दूर करने की शक्ति

यदि इस अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने में कोई कठिनाई उत्पन्न होती है, तो केंद्र सरकार राजपत्र में आदेश प्रकाशित करके ऐसी व्यवस्था कर सकती है जो इस अधिनियम के प्रावधानों से विरोधाभासी न हो और कठिनाई को दूर करने के लिए आवश्यक या उपयुक्त हो।
शर्त: यह शक्ति अधिनियम के लागू होने की तारीख से दो वर्ष की अवधि समाप्त होने के बाद प्रयोग नहीं की जा सकती
इसके अतिरिक्त, इस धारा के अंतर्गत किया गया हर आदेश संसद के दोनों सदनों के समक्ष यथाशीघ्र प्रस्तुत किया जाएगा।

मुख्य बातें:

  • केंद्र सरकार को प्रारंभिक दिक्कतें दूर करने का अधिकार है।
  • यह शक्ति सीमित अवधि (2 वर्ष) तक ही वैध है।
  • संसदीय निगरानी अनिवार्य है।