Hindu Succession Act, 1956

Hindu Succession Act, 1956

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956

Act No. 30/56

Effective: 17.06.1956

1. संक्षिप्त शीर्षक और विस्तार:

(1) इस अधिनियम का नाम हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 है।
(2) यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत में लागू होगा I

2. अधिनियम का अनुप्रयोग (Application) :

(1) यह अधिनियम निम्नलिखित व्यक्तियों पर लागू होता है:

(a) जो हिन्दू धर्म से संबंधित हैं, जिसमें वीरशैव, लिंगायत, ब्रह्मो, प्रार्थना और आर्य समाज के अनुयायी भी शामिल हैं।
(b) जो बौद्ध, जैन, सिख धर्म से संबंधित हैं।
(c) जो मुसलमान, ईसाई, पारसी या यहूदी धर्म से संबंधित नहीं हैं, लेकिन यदि इस अधिनियम को लागू न किया जाता तो वे हिन्दू विधि के तहत आते।

स्पष्टीकरण:

  • वह बच्चा जो हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिख धर्म के माता-पिता से जन्मा है, चाहे वह वैध हो या नाजायज।
  • वह बच्चा जिसका पालन-पोषण हिन्दू धर्म, बौद्ध, जैन या सिख धर्म के अनुसार हुआ हो, चाहे उसके माता-पिता में से कोई एक ही धर्म से संबंधित हो।
  • वह व्यक्ति जो धर्म परिवर्तन करके हिन्दू, बौद्ध, जैन या सिख धर्म में आया हो।

(2) उपधारा (1) के बावजूद, यह अधिनियम अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर तब तक लागू नहीं होगा जब तक केंद्र सरकार इस पर विशेष अधिसूचना जारी न करे।

(3) इस अधिनियम में “हिन्दू” शब्द का अर्थ है, वह व्यक्ति जो धर्म से हिन्दू नहीं है, लेकिन इस अधिनियम के तहत हिन्दू विधि के आधार पर शासित होता है।

3. परिभाषाएँ एवं व्याख्या (interpretation):

(1) इस अधिनियम में, जब तक संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो,—
(a) “सगोत्रीय” (Agnate)- एक व्यक्ति को दूसरे का सगोत्रीय कहा जाता है यदि दोनों रक्त से संबंधित हों या पूरी तरह से पुरुषों के माध्यम से गोद लिए गए हों।

(b) “अलियासंतना कानून” (Aliyasantana Law) – यह उन व्यक्तियों पर लागू विधि प्रणाली को दर्शाता है जो मद्रास अलियासंतना अधिनियम, 1949 या उस विषय के संबंध में प्रथागत अलियासंतना कानून द्वारा शासित होते।

(c) “सजातीय” (Cognate)- एक व्यक्ति को दूसरे का सजातीय कहा जाता है यदि दोनों रक्त या दत्तक ग्रहण से संबंधित हों, लेकिन पूरी तरह से पुरुषों के माध्यम से नहीं

(d) “प्रथा” – यह किसी ऐसे नियम को दर्शाता है जो लंबे समय से निरंतर पालन किया गया हो और जिसे किसी समुदाय या परिवार में हिन्दू कानून के रूप में मान्यता प्राप्त हो।

(e) “पूर्ण रक्त”, “आधा रक्त” और “गर्भाशय रक्त”
(i) पूर्ण रक्त तब माना जाता है जब दो व्यक्ति एक ही पूर्वज से एक ही पत्नी के वंशज हों।

(ii) आधा रक्त तब माना जाता है जब दो व्यक्ति एक ही पूर्वज से भिन्न पत्नियों के वंशज हों।

(iii) गर्भाशय रक्त तब माना जाता है जब दो व्यक्ति एक ही पूर्वज से उत्पन्न होते हैं लेकिन अलग-अलग पतियों से।

स्पष्टीकरण:पूर्वज” में पिता और माता दोनों शामिल हैं।

(f) “उत्तराधिकारी” (heir) – वह व्यक्ति, पुरुष या महिला, जो इस अधिनियम के तहत किसी निर्वसीयत व्यक्ति की संपत्ति का उत्तराधिकारी है।

(g) “बिना वसीयत के” – किसी व्यक्ति को वह संपत्ति बिना वसीयत के मरा हुआ माना जाता है, जिसके लिए उसने कोई प्रभावी वसीयत नहीं बनाई है।

(h) “मरुमाक्कट्टयम कानून” – यह विधि उन व्यक्तियों पर लागू होती है जो मद्रास मरुमक्कट्टयम अधिनियम, 1932 या अन्य संबंधित कानूनों द्वारा शासित होते हैं।

(i) “नम्बूद्री कानून” – यह उन व्यक्तियों पर लागू विधि को दर्शाता है जो मद्रास नम्बूद्री अधिनियम, 1932 द्वारा शासित होते हैं।

(j) “सम्बन्धित” – यह शब्द वैध रिश्तेदारी को दर्शाता है, जिसमें नाजायज संतानें अपनी माताओं से और एक दूसरे से संबंधित मानी जाती हैं।

(2) इस अधिनियम में, जब तक संदर्भ से अन्यथा अपेक्षित न हो, पुल्लिंग का अर्थ लगाने वाले शब्दों में स्त्रीलिंग भी शामिल माना जाएगा।

4. अधिनियम का अध्यारोही प्रभाव (Overiding Effect):

(1) इस अधिनियम में अन्यथा स्पष्ट रूप से उपबंधित के सिवाय,—
(a) इस अधिनियम के प्रारंभ से पहले की कोई भी हिन्दू विधि, नियम या व्याख्या, या कोई प्रथा, इस अधिनियम द्वारा प्रदत्त विषय पर प्रभावी नहीं होगी।
(b) इस अधिनियम के प्रारंभ से पहले का कोई अन्य कानून हिन्दुओं पर लागू नहीं होगा, यदि वह इस अधिनियम के किसी उपबंध से असंगत हो।

5. अधिनियम का कुछ संपत्तियों पर लागू नहीं होना:

यह अधिनियम निम्नलिखित पर लागू नहीं होगा—
(i) कोई संपत्ति जो भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 द्वारा विनियमित हो, विशेष विवाह अधिनियम, 1954 की धारा 21 के तहत।
(ii) कोई संपत्ति जो भारत सरकार के साथ शासक (Ruler) द्वारा किए गए अनुबंध या समझौते के आधार पर एकल उत्तराधिकारी को मिलती हो।
(iii) वलियम्मा थंपुरन कोविलगम एस्टेट और पैलेस फंड का प्रशासन, जो कोचीन के महाराजा द्वारा जारी उद्घोषणा द्वारा नियंत्रित है।

6. सहदायिक (coparcenary) संपत्ति में हित का हस्तांतरण।

(1) मिताक्षरा कानून द्वारा शासित संयुक्त हिंदू परिवार में लड़की के अधिकार

  • (a) हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के लागू होने से, मिताक्षरा परिवार में बेटी को जन्म से ही बेटे के समान संपत्ति पर अधिकार मिल जाएगा
  • (b) बेटी को वही अधिकार प्राप्त होंगे जो बेटे को मिलते हैं।
  • (c) बेटी को संपत्ति के संबंध में वही दायित्व होंगे जो बेटे के होते हैं।
  • बशर्ते कि 20 दिसंबर 2004 से पहले हुए संपत्ति के बंटवारे या वसीयत पर इसका कोई असर न पड़े।

(2) संपत्ति पर अधिकार

  • बेटी को जो संपत्ति मिलती है, वह उसे सहदायिकी स्वामित्व के साथ मिलेगी और उसमें उसे वही अधिकार होंगे जो बेटों को मिलते हैं।

(3) संपत्ति का बंटवारा

  • (a) अगर मिताक्षरा परिवार में कोई सदस्य मरता है, तो उसकी संपत्ति का बंटवारा इस तरह होगा कि बेटी को भी बेटे के समान हिस्सा मिलेगा।
  • (b) अगर कोई बेटा या बेटी पहले मर चुका हो, तो उसका हिस्सा उनकी संतान को मिलेगा
  • (c) अगर कोई पूर्व-मृत बेटा या बेटी की संतान पहले मर चुकी हो, तो उसका हिस्सा उनकी संतान को मिलेगा।

स्पष्टीकरण: अगर संपत्ति का बंटवारा उसकी मृत्यु से ठीक पहले होता, तो उस व्यक्ति को वही हिस्सा मिलता जो उसे बंटवारे के समय मिलना चाहिए था।

(4) ऋण का भुगतान

  • (a) कोई भी बेटा, पौत्र, या प्रपौत्र अपने पिता, दादा या परदादा के ऋण का भुगतान नहीं करेगा क्योंकि उसे ऐसा करने का कोई पवित्र दायित्व नहीं है।
  • बशर्ते कि 20 दिसंबर 2004 से पहले लिया गया ऋण इस नियम से बाहर रहेगा।
  • (b) 2004 से पहले लिया गया ऋण वसूला जा सकता है और वह वही नियमों के तहत रहेगा जैसे पहले थे।
  • स्पष्टीकरण: “पुत्र”, “पौत्र”, या “प्रपौत्र” का मतलब उस व्यक्ति से है जो 2004 से पहले पैदा हुआ था या गोद लिया गया था।

(5) विभाजन पर प्रभाव

  • (a) 20 दिसंबर 2004 से पहले संपत्ति का जो बंटवारा हुआ, वह इस अधिनियम से प्रभावित नहीं होगा।
  • स्पष्टीकरण: “विभाजन” से मतलब है पंजीकृत विलेख या न्यायालय के द्वारा किया गया बंटवारा।

7. पारिवारिक संपत्ति में हित का हस्तांतरण (Tarwada, Tavazi, etc.)

  1. तरवाड, तवाजी, कुटुम्ब की संपत्ति

(a) अगर कोई हिंदू मरता है और उस पर मरुमक्कट्टयम या नम्बूद्री कानून लागू होता है, तो उसकी संपत्ति का हित वसीयत या उत्तराधिकार से जाएगा, न कि मरुमक्कट्टयम या नम्बूद्री कानून से।

स्पष्टीकरण: संपत्ति में उसका हित वही माना जाएगा जो उसे मिलता यदि संपत्ति का बंटवारा उसकी मृत्यु से ठीक पहले किया जाता।

  1. कुटुम्ब या कवरु की संपत्ति में अधिकार
  • (a) अगर कोई हिंदू मर जाता है और उस पर अलीयासंतना कानून लागू होता है, तो उसकी संपत्ति का हस्तांतरण वसीयत या उत्तराधिकार से होगा, न कि अलीयासंतना कानून से।
  • स्पष्टीकरण: संपत्ति का हिस्सा वही माना जाएगा जो उसे मिल सकता था अगर संपत्ति का बंटवारा उसकी मृत्यु से ठीक पहले होता।
  1. स्थानम संपत्ति का हस्तांतरण
  • (a) अगर स्थानमदार मर जाता है, तो उसकी संपत्ति परिवार के सदस्यों को उसी तरह मिलेगी जैसे संपत्ति का बंटवारा उनके बीच किया जाता है, और वे अपनी संपत्ति को स्वतंत्र रूप से रखेंगे।

स्पष्टीकरण: स्थानमदार के परिवार में उस परिवार की हर शाखा सम्मिलित होगी, चाहे वह विभाजित हो या नहीं, जो उत्तराधिकारी होने का हक रखती है।

8. पुरुषों के मामले में उत्तराधिकार के सामान्य नियम

बिना वसीयत (intestate) के मरने वाले हिंदू पुरुष की संपत्ति इस अध्याय के उपबंधों के अनुसार हस्तांतरित होगी-

(अ) प्रथमतः – उत्तराधिकारियों पर, जो अनुसूची की श्रेणी-1 (Class-1) में विनिर्दिष्ट रिश्तेदार होंगे।

(ब) दूसरे – यदि श्रेणी-1 (Class-1) का कोई वारिस नहीं है, तो वारिस, अनुसूची के श्रेणी-2 (Class-2) में निर्दिष्ट रिश्तेदार होंगे।

(स) तीसरा – यदि दोनों श्रेणी में से किसी का भी कोई उत्तराधिकारी न हो, तो मृतक के सगे-संबंधियों पर।

(द) अंत में – यदि कोई सगोत्रीय (agnate) न हो, तो मृतक के सजातीयों (cognates) पर।

9. अनुसूची में उत्तराधिकारियों के बीच उत्तराधिकार का क्रम

अनुसूची में विनिर्दिष्ट उत्तराधिकारियों में से:
(अ) वर्ग I में आने वाले उत्तराधिकारियों को अन्य सभी उत्तराधिकारियों को अपवर्जित (exclusion) करते हुए एक साथ ही उत्तराधिकार ग्रहण किया जाएगा।

(ब) वर्ग II में प्रथम प्रविष्टि में आने वाले उत्तराधिकारियों को द्वितीय प्रविष्टि में आने वाले उत्तराधिकारियों की अपेक्षा वरीयता दी जाएगी।

(स) वर्ग II के द्वितीय प्रविष्टि में आने वाले उत्तराधिकारियों को तृतीय प्रविष्टि में आने वाले उत्तराधिकारियों की अपेक्षा वरीयता दी जाएगी।

(द) इसी प्रकार क्रमिक रूप से।

10. अनुसूची के वर्ग 1 (Class-I) के उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति का वितरण

किसी निर्वसीयत व्यक्ति की संपत्ति अनुसूची के वर्ग I के उत्तराधिकारियों के बीच निम्नलिखित नियमों के अनुसार विभाजित की जाएगी:

नियम 1 – निर्वसीयत विधवा को, या यदि एक से अधिक विधवाएं हों तो सब विधवाएं मिलकर एक हिस्सा लेंगी।

नियम 2 – जीवित पुत्र-पुत्रियाँ तथा निर्वसीयत व्यक्ति की माता प्रत्येक को एक हिस्सा मिलेगा।

नियम 3 – निर्वसीयत व्यक्ति के प्रत्येक पूर्व-मृत पुत्र या प्रत्येक पूर्व-मृत पुत्री की शाखा के उत्तराधिकारी आपस में एक हिस्सा लेंगे।

नियम 4 – नियम 3 में निर्दिष्ट शेयर का वितरण:

(अ) पूर्व मृत पुत्र की शाखा के उत्तराधिकारियों के बीच इस प्रकार विभाजन किया जाएगा कि उसकी विधवा (या विधवाओं को मिलाकर) और जीवित पुत्रों और पुत्रियों को बराबर हिस्सा मिले; और उसके पूर्व मृत पुत्रों की शाखा को भी वही हिस्सा मिले।

(ब) पूर्व मृत पुत्री की शाखा के उत्तराधिकारियों के बीच इस प्रकार विभाजन किया जाएगा कि जीवित पुत्र और पुत्रियों को समान हिस्सा मिले।

11. अनुसूची के वर्ग 2 (Class-2) के उत्तराधिकारियों के बीच संपत्ति का वितरण

किसी निर्वसीयतधारी की संपत्ति अनुसूची के वर्ग II में किसी एक प्रविष्टि में निर्दिष्ट उत्तराधिकारियों के बीच इस प्रकार विभाजित की जाएगी कि वे समान रूप से साझा करें।

12. सगोत्रीय और सजातीय गणों में उत्तराधिकार का क्रम

सगोत्रीय या सजातीय व्यक्तियों के बीच उत्तराधिकार का क्रम, जैसा भी मामला हो, नीचे दिए गए वरीयता नियमों के अनुसार निर्धारित किया जाएगा:

नियम 1 – दो उत्तराधिकारियों में से, जिसके पास कम या कोई आरोही डिग्री नहीं है, उसे प्राथमिकता दी जाती है।

नियम 2 – जहां आरोहण की डिग्री की संख्या समान हो या न हो, वहां उस उत्तराधिकारी को प्राथमिकता दी जाती है जिसके वंश की डिग्री कम हो या न हो।

नियम 3 – जहां कोई भी वारिस नियम 1 या नियम 2 के तहत दूसरे पर वरीयता पाने का हकदार नहीं है, वे एक साथ लेते हैं।

13. डिग्री की गणना

(1) सगोत्रीय या सजातीय व्यक्तियों के बीच उत्तराधिकार के क्रम को तय करने के लिए, संबंध की गणना उस व्यक्ति से उत्तराधिकारी तक की जाएगी, ऊपर (आरोहण) या नीचे (अवरोहण) या दोनों तरह से, जैसे भी मामला हो।

(2) आरोहण और अवरोहण की डिग्री की गिनती करते समय मृतक (निर्वसीयत) को भी गिना जाएगा।

(3) हर पीढ़ी को एक डिग्री माना जाएगा, चाहे ऊपर की ओर हो या नीचे की ओर।

14. किसी हिन्दू स्त्री की सम्पत्ति उसकी पूर्ण सम्पत्ति होगी

(1) किसी हिन्दू महिला के पास जो भी संपत्ति हो, चाहे वह इस कानून के लागू होने से पहले या बाद में मिली हो, वह उसे पूर्ण स्वामित्व (पूरी मालिकाना हक) के रूप में धारण करेगी, न कि सीमित अधिकार के रूप में।
स्पष्टीकरण – “संपत्ति” में चल और अचल संपत्ति दोनों शामिल हैं, जो महिला ने निम्न प्रकार से प्राप्त की हो:

  • विरासत या वसीयत द्वारा
  • विभाजन में
  • भरण-पोषण या भरण-पोषण के बकाया के बदले में
  • उपहार के रूप में (रिश्तेदार या गैर-रिश्तेदार से, विवाह से पहले, विवाह के समय या बाद में)
  • अपने स्वयं के कौशल या मेहनत से
  • खरीद या कब्जे द्वारा
  • अन्य किसी भी तरीके से
  • और वह संपत्ति जो उसने इस अधिनियम के लागू होने से पहले स्त्रीधन के रूप में रखी हो।

(2) उपधारा (1) का नियम उन संपत्तियों पर लागू नहीं होगा जो:

  • दान, वसीयत, लिखत (instrument)
  • सिविल न्यायालय के आदेश या डिक्री
  • पंचाट (award)
    के द्वारा मिली हों और जिसमें संपत्ति पर सीमित अधिकार तय किया गया हो।

15. हिन्दू महिलाओं के मामले में उत्तराधिकार के सामान्य नियम

(1) बिना वसीयत के मरने वाली हिन्दू महिला की संपत्ति धारा 16 के अनुसार इस क्रम में जाएगी:
(अ) सबसे पहले – पुत्रों, पुत्रियों (पूर्व मृत पुत्र या पुत्री के बच्चे भी शामिल) और पति पर।
(ब) फिर – पति के उत्तराधिकारियों पर।
(स) फिर – माता और पिता पर।
(द) फिर – पिता के उत्तराधिकारियों पर।
(य) अंत में – माता के उत्तराधिकारियों पर।

(2) उपधारा (1) के बावजूद:
(अ) अगर किसी महिला को अपने पिता या माता से विरासत में संपत्ति मिली थी, और उसके कोई संतान नहीं है (जिसमें पूर्व मृत संतान के बच्चे भी गिने जाएंगे), तो वह संपत्ति उपधारा (1) में लिखे क्रम के अनुसार नहीं, बल्कि पिता के उत्तराधिकारियों को जाएगी।
(ब) अगर किसी महिला को अपने पति या ससुर से विरासत में संपत्ति मिली थी, और उसके कोई संतान नहीं है (जिसमें पूर्व मृत संतान के बच्चे भी गिने जाएंगे), तो वह संपत्ति उपधारा (1) में लिखे क्रम के अनुसार नहीं, बल्कि पति के उत्तराधिकारियों को जाएगी।

16. हिन्दू स्त्री के उत्तराधिकारियों के बीच उत्तराधिकार का क्रम और वितरण की रीति

धारा 15 में जो उत्तराधिकारी बताए गए हैं, उनके बीच संपत्ति इस प्रकार वितरित होगी:
नियम 1
धारा 15(1) में एक प्रविष्टि के सभी उत्तराधिकारी साथ-साथ संपत्ति लेंगे और किसी भी बाद की प्रविष्टि में लिखे उत्तराधिकारियों से ऊपर प्राथमिकता पाएंगे।

नियम 2
अगर मृतक महिला के कोई पुत्र या पुत्री उसकी मृत्यु से पहले मर गए थे, लेकिन उनके बच्चे जीवित हैं, तो वे बच्चे मिलकर वही हिस्सा लेंगे जो उनका माता या पिता लेता अगर वह जीवित होता।

नियम 3
धारा 15(1)(ब), (द), (य) और धारा 15(2) में जो उत्तराधिकारी बताए गए हैं, उनके बीच संपत्ति का वितरण उसी तरह से होगा जैसे अगर वह संपत्ति पिता, माता या पति की संपत्ति होती और उनकी मृत्यु निर्वसीयत महिला की मृत्यु के ठीक बाद होती।

17. मरुमक्कट्टयम और अलियासंतना कानूनों द्वारा शासित व्यक्तियों के लिए विशेष नियम

  • मरुमक्कट्टयम या अलियासंतना कानूनों से जिन लोगों की संपत्ति चलती थी, उनके लिए कुछ अलग व्यवस्था है।
  • धारा 8, 10, 15, 23 इनके ऊपर लागू होंगी, लेकिन:
    • धारा 8 के तहत अगर दोनों तरफ का कोई वारिस न हो, तो रिश्तेदार (चाहे सगोत्र या सजातीय) को संपत्ति मिलेगी।
    • धारा 15 के तहत विधवा की संपत्ति का क्रम बदला गया है — पहले संतान (पुत्र-पुत्री) और मां, फिर पिता और पति, फिर मां के वारिस, फिर पिता के वारिस, फिर पति के वारिस।
    • धारा 15(2)(a) को हटा दिया गया है।
    • धारा 23 (आवास गृह वाला प्रावधान) हटा दिया गया है।

18. आधे खून के बजाय पूरे खून को प्राथमिकता

  • जब रिश्ते समान हों, तो पूरा खून (same parents) वाला रिश्तेदार, आधे खून (एक parent common) वाले से पहले वारिस बनेगा।

19. दो या अधिक उत्तराधिकारियों के साथ उत्तराधिकार का तरीका

  • जब दो या ज्यादा लोग एक साथ वारिस बनते हैं:
    • तो संपत्ति हर व्यक्ति को अलग-अलग (per capita) मिलेगी, न कि परिवार की शाखा के आधार पर (per stirpes)।
    • वे “साझा किरायेदार” (tenants-in-common) होंगे, “संयुक्त किरायेदार” (joint tenants) नहीं।

20. गर्भस्थ शिशु का अधिकार

  • अगर मृतक की मृत्यु के समय बच्चा गर्भ में था और जन्म के बाद जीवित रहा,
  • तो उसे भी वही संपत्ति का अधिकार मिलेगा जैसे वह मृत्यु से पहले पैदा हुआ होता

21. एक साथ मृत्यु होने पर उपधारणा

  • अगर दो लोगों की साथ में मृत्यु हुई और तय न हो सके कि कौन पहले मरा,
  • तो यह माना जाएगा कि छोटा व्यक्ति बड़े व्यक्ति के बाद जीवित रहा, जब तक इसका उल्टा साबित न हो जाए।

22. संपत्ति अर्जित करने का अधिमान्य  (preferential) अधिकार

  • अगर दो या अधिक उत्तराधिकारियों को कोई अचल संपत्ति या कारोबार में हिस्सा मिलता है,
  • और उनमें से कोई अपना हिस्सा बेचना चाहता है,
  • तो बाकी उत्तराधिकारियों को उसे खरीदने का पहला अधिकार होगा (preference right)।
  • यदि कीमत पर सहमति न हो, तो अदालत तय करेगी।
  • अगर कई वारिस खरीदना चाहें, तो जो सबसे ज्यादा कीमत देगा उसे प्राथमिकता मिलेगी।
  • “न्यायालय” मतलब जहां संपत्ति या कारोबार स्थित है या जिसे राज्य सरकार अधिसूचित करे।

23. आवास गृह से जुड़ा प्रावधान (अब हटा दिया गया)

  • पहले घर (residential house) के संबंध में विशेष नियम था, अब इसे खत्म कर दिया गया है।

24. पुनर्विवाह करने वाली विधवा का अधिकार खत्म

  • अगर कोई विधवा पुनर्विवाह कर लेती है, तो कुछ मामलों में वह अपने पूर्व पति की संपत्ति पर वारिस नहीं बन सकती। (Deleted)

25. हत्यारा उत्तराधिकार के लिए अयोग्य

  • जो व्यक्ति हत्या करता है या हत्या कराता (abets) है, वह मरे हुए व्यक्ति की किसी भी संपत्ति पर अधिकार नहीं पा सकता।

26. धर्म बदलने पर वंशज (decendants) अयोग्य

  • अगर कोई हिंदू धर्म बदल लेता है, तो उसके धर्म बदलने के बाद पैदा हुए बच्चे भी हिंदू रिश्तेदारों की संपत्ति के वारिस नहीं बन सकते,
  • जब तक कि वे उत्तराधिकार के समय फिर से हिंदू न बन जाएं।

27. अयोग्य (Disqualify) वारिस के मामले में उत्तराधिकार

  • अगर कोई व्यक्ति अयोग्य घोषित हो जाए, तो उसे ऐसे माना जाएगा जैसे वह मृतक से पहले ही मर गया था,
  • और संपत्ति अगले वारिस को जाएगी।

28. रोग, विकृति आदि से अयोग्यता नहीं

  • केवल बीमारी, विकृति (defect) या अन्य विकलांगता (deformity) के आधार पर कोई वारिस अयोग्य नहीं होगा,
  • सिवाय यदि कानून में विशेष रूप से ऐसा कहा गया हो।

29. वारिसों का न रहना — संपत्ति सरकार को

  • अगर मृतक का कोई भी वैध वारिस नहीं बचा,
  • तो उसकी संपत्ति सरकार के पास चली जाएगी
  • सरकार उस संपत्ति के दायित्व और कर्ज भी संभालेगी।

30. वसीयत द्वारा संपत्ति का निपटान (Testamentary Succession)

  • कोई भी हिन्दू वसीयत (Will) या अन्य वसीयती दस्तावेज के जरिए अपनी संपत्ति का निपटान in accordance with Indian Succession Act, 1956 कर सकता है,
  • चाहे वह अपनी खुद की संपत्ति हो या संयुक्त परिवार में उसका हिस्सा हो।
  • विशेष रूप से, मिताक्षरा सहदायिक संपत्ति में पुरुष का हिस्सा या तरवाड़, तवाझी, इलोम, कुटुंब की संपत्ति में सदस्य का हिस्सा — वसीयत से निपटाया जा सकता है।

31. निरसन

  • कुछ पुराने प्रावधानों को समाप्त कर दिया गया है (details Act में दी गई हैं)।

Class – I के उत्तराधिकारी (Class I Heirs)

जब कोई हिंदू पुरुष या महिला मरता है, और उसके वारिस कक्षा I में हैं, तो संपत्ति सबसे पहले इन्हीं में बंटेगी।

Class – I  में ये लोग आते हैं:

  • पुत्र (Son)
  • पुत्री (Daughter)
  • विधवा (Widow)
  • माता (Mother)
  • पूर्व मृत (already dead) पुत्र का पुत्र (son’s son)
  • पूर्व मृत पुत्र की पुत्री (son’s daughter)
  • पूर्व मृत पुत्री का पुत्र (daughter’s son)
  • पूर्व मृत पुत्री की पुत्री (daughter’s daughter)
  • पूर्व मृत पुत्र की विधवा (son’s widow)
  • पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र का पुत्र (son’s son’s son)
  • पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र की पुत्री (son’s son’s daughter)
  • पूर्व मृत पुत्र के पूर्व मृत पुत्र की विधवा (son’s son’s widow)
  • पूर्व मृत पुत्री के पूर्व मृत पुत्री का पुत्र (daughter’s daughter’s son)
  • पूर्व मृत पुत्री के पूर्व मृत पुत्री की पुत्री (daughter’s daughter’s daughter)
  • पूर्व मृत पुत्री के पूर्व मृत पुत्र की पुत्री (daughter’s son’s daughter)
  • पूर्व मृत पुत्र की पूर्व मृत पुत्री की पुत्री (son’s daughter’s daughter)

स्मरण सूत्र:

  • सबसे पहले: पुत्र, पुत्री, विधवा, माता
  • फिर: मरे हुए बेटे-बेटियों के बेटे-बेटियाँ और विधवाएँ

कक्षा II के उत्तराधिकारी (Class II Heirs)

यदि कक्षा I में कोई भी उत्तराधिकारी नहीं है, तब कक्षा II वालों को संपत्ति जाएगी।
कक्षा II को “क्रमशः” (order-wise) देखा जाता है — पहले जो जिंदा है, वही संपत्ति का पूरा मालिक बनेगा।
एक क्रम खत्म होने के बाद ही अगला क्रम आएगा।

क्रमवार सूची:

I.

  • पिता (Father)

II.

  • बेटे की बेटी का बेटा (son’s daughter’s son)
  • बेटे की बेटी की बेटी (son’s daughter’s daughter)
  • भाई (Brother)
  • बहन (Sister)

III.

  • बेटी के बेटे का बेटा (daughter’s son’s son)
  • बेटी के बेटे की बेटी (daughter’s son’s daughter)
  • बेटी की बेटी का बेटा (daughter’s daughter’s son)
  • बेटी की बेटी की बेटी (daughter’s daughter’s daughter)

IV.

  • भाई का बेटा (brother’s son)
  • बहन का बेटा (sister’s son)
  • भाई की बेटी (brother’s daughter)
  • बहन की बेटी (sister’s daughter)

V.

  • पिता का पिता (father’s father)
  • पिता की माता (father’s mother)

VI.

  • पिता की विधवा (father’s widow)
  • भाई की विधवा (brother’s widow)

VII.

  • पिता का भाई (father’s brother)
  • पिता की बहन (father’s sister)

VIII.

  • माता का पिता (mother’s father)
  • माता की माता (mother’s mother)

IX.

  • माँ का भाई (mother’s brother)
  • माँ की बहन (mother’s sister)

स्पष्टीकरण (Important Clarification)

  • “भाई” या “बहन” का मतलब केवल सगे भाई-बहन से है (जो माँ और पिता दोनों से संबंधित हों)।
  • अर्ध रक्त (half-blood) वाले भाई-बहन इसमें शामिल नहीं हैं।

फटाफट रिवीजन के लिए टिप्स:

  • कक्षा I: पुत्र, पुत्री, माता, विधवा + मरे हुए पुत्र/पुत्री के वंशज
  • कक्षा II: पिता सबसे पहले, फिर धीरे-धीरे दूर के रिश्तेदार (क्रमवार)
  • अगर एक भी Class I वारिस है, तो Class II के लोगों तक बारी नहीं आएगी।
  • Class II में एक ग्रुप पूरा निपटे बिना अगला ग्रुप नहीं खुलेगा।
  • सगे भाई-बहन = Only Full Blood Siblings ही माने जाएंगे।